An-Nazi'at

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Hindi: Suhel Farooq Khan and Saifur Rahman Nadwi

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# Translation Ayah
1 उन (फ़रिश्तों) की क़सम وَالنَّازِعَاتِ غَرْقًا
2 जो (कुफ्फ़ार की रूह) डूब कर सख्ती से खींच लेते हैं وَالنَّاشِطَاتِ نَشْطًا
3 और उनकी क़सम जो (मोमिनीन की जान) आसानी से खोल देते हैं وَالسَّابِحَاتِ سَبْحًا
4 और उनकी क़सम जो (आसमान ज़मीन के दरमियान) पैरते फिरते हैं فَالسَّابِقَاتِ سَبْقًا
5 फिर एक के आगे बढ़ते हैं فَالْمُدَبِّرَاتِ أَمْرًا
6 फिर (दुनिया के) इन्तज़ाम करते हैं (उनकी क़सम) कि क़यामत हो कर रहेगी يَوْمَ تَرْجُفُ الرَّاجِفَةُ
7 जिस दिन ज़मीन को भूचाल आएगा फिर उसके पीछे और ज़लज़ला आएगा تَتْبَعُهَا الرَّادِفَةُ
8 उस दिन दिलों को धड़कन होगी قُلُوبٌ يَوْمَئِذٍ وَاجِفَةٌ
9 उनकी ऑंखें (निदामत से) झुकी हुई होंगी أَبْصَارُهَا خَاشِعَةٌ
10 कुफ्फ़ार कहते हैं कि क्या हम उलटे पाँव (ज़िन्दगी की तरफ़) फिर लौटेंगे يَقُولُونَ أَئِنَّا لَمَرْدُودُونَ فِي الْحَافِرَةِ
11 क्या जब हम खोखल हड्डियाँ हो जाएँगे أَئِذَا كُنَّا عِظَامًا نَّخِرَةً
12 कहते हैं कि ये लौटना तो बड़ा नुक़सान देह है قَالُوا تِلْكَ إِذًا كَرَّةٌ خَاسِرَةٌ
13 वह (क़यामत) तो (गोया) बस एक सख्त चीख़ होगी فَإِنَّمَا هِيَ زَجْرَةٌ وَاحِدَةٌ
14 और लोग शक़ बारगी एक मैदान (हश्र) में मौजूद होंगे فَإِذَا هُم بِالسَّاهِرَةِ
15 (ऐ रसूल) क्या तुम्हारे पास मूसा का किस्सा भी पहुँचा है هَلْ أتَاكَ حَدِيثُ مُوسَى
16 जब उनको परवरदिगार ने तूवा के मैदान में पुकारा إِذْ نَادَاهُ رَبُّهُ بِالْوَادِ الْمُقَدَّسِ طُوًى
17 कि फिरऔन के पास जाओ वह सरकश हो गया है اذْهَبْ إِلَى فِرْعَوْنَ إِنَّهُ طَغَى
18 (और उससे) कहो कि क्या तेरी ख्वाहिश है कि (कुफ्र से) पाक हो जाए فَقُلْ هَل لَّكَ إِلَى أَن تَزَكَّى
19 और मैं तुझे तेरे परवरदिगार की राह बता दूँ तो तुझको ख़ौफ (पैदा) हो وَأَهْدِيَكَ إِلَى رَبِّكَ فَتَخْشَى
20 ग़रज़ मूसा ने उसे (असा का बड़ा) मौजिज़ा दिखाया فَأَرَاهُ الْآيَةَ الْكُبْرَى
21 तो उसने झुठला दिया और न माना فَكَذَّبَ وَعَصَى
22 फिर पीठ फेर कर (ख़िलाफ़ की) तदबीर करने लगा ثُمَّ أَدْبَرَ يَسْعَى
23 फिर (लोगों को) जमा किया और बुलन्द आवाज़ से चिल्लाया فَحَشَرَ فَنَادَى
24 तो कहने लगा मैं तुम लोगों का सबसे बड़ा परवरदिगार हूँ فَقَالَ أَنَا رَبُّكُمُ الْأَعْلَى
25 तो ख़ुदा ने उसे दुनिया और आख़ेरत (दोनों) के अज़ाब में गिरफ्तार किया فَأَخَذَهُ اللَّهُ نَكَالَ الْآخِرَةِ وَالْأُولَى
26 बेशक जो शख़्श (ख़ुदा से) डरे उसके लिए इस (किस्से) में इबरत है إِنَّ فِي ذَلِكَ لَعِبْرَةً لِّمَن يَخْشَى
27 भला तुम्हारा पैदा करना ज्यादा मुश्किल है या आसमान का أَأَنتُمْ أَشَدُّ خَلْقًا أَمِ السَّمَاء بَنَاهَا
28 कि उसी ने उसको बनाया उसकी छत को ख़ूब ऊँचा रखा رَفَعَ سَمْكَهَا فَسَوَّاهَا
29 फिर उसे दुरूस्त किया और उसकी रात को तारीक बनाया और (दिन को) उसकी धूप निकाली وَأَغْطَشَ لَيْلَهَا وَأَخْرَجَ ضُحَاهَا
30 और उसके बाद ज़मीन को फैलाया وَالْأَرْضَ بَعْدَ ذَلِكَ دَحَاهَا
31 उसी में से उसका पानी और उसका चारा निकाला أَخْرَجَ مِنْهَا مَاءهَا وَمَرْعَاهَا
32 और पहाड़ों को उसमें गाड़ दिया وَالْجِبَالَ أَرْسَاهَا
33 (ये सब सामान) तुम्हारे और तुम्हारे चारपायो के फ़ायदे के लिए है مَتَاعًا لَّكُمْ وَلِأَنْعَامِكُمْ
34 तो जब बड़ी सख्त मुसीबत (क़यामत) आ मौजूद होगी فَإِذَا جَاءتِ الطَّامَّةُ الْكُبْرَى
35 जिस दिन इन्सान अपने कामों को कुछ याद करेगा يَوْمَ يَتَذَكَّرُ الْإِنسَانُ مَا سَعَى
36 और जहन्नुम देखने वालों के सामने ज़ाहिर कर दी जाएगी وَبُرِّزَتِ الْجَحِيمُ لِمَن يَرَى
37 तो जिसने (दुनिया में) सर उठाया था فَأَمَّا مَن طَغَى
38 और दुनियावी ज़िन्दगी को तरजीह दी थी وَآثَرَ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا
39 उसका ठिकाना तो यक़ीनन दोज़ख़ है فَإِنَّ الْجَحِيمَ هِيَ الْمَأْوَى
40 मगर जो शख़्श अपने परवरदिगार के सामने खड़े होने से डरता और जी को नाजायज़ ख्वाहिशों से रोकता रहा وَأَمَّا مَنْ خَافَ مَقَامَ رَبِّهِ وَنَهَى النَّفْسَ عَنِ الْهَوَى
41 तो उसका ठिकाना यक़ीनन बेहश्त है فَإِنَّ الْجَنَّةَ هِيَ الْمَأْوَى
42 (ऐ रसूल) लोग तुम से क़यामत के बारे में पूछते हैं يَسْأَلُونَكَ عَنِ السَّاعَةِ أَيَّانَ مُرْسَاهَا
43 कि उसका कहीं थल बेड़ा भी है فِيمَ أَنتَ مِن ذِكْرَاهَا
44 तो तुम उसके ज़िक्र से किस फ़िक्र में हो إِلَى رَبِّكَ مُنتَهَاهَا
45 उस (के इल्म) की इन्तेहा तुम्हारे परवरदिगार ही तक है तो तुम बस जो उससे डरे उसको डराने वाले हो إِنَّمَا أَنتَ مُنذِرُ مَن يَخْشَاهَا
46 जिस दिन वह लोग इसको देखेंगे तो (समझेंगे कि दुनिया में) बस एक शाम या सुबह ठहरे थे كَأَنَّهُمْ يَوْمَ يَرَوْنَهَا لَمْ يَلْبَثُوا إِلَّا عَشِيَّةً أَوْ ضُحَاهَا
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