An-Nabaa

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Hindi: Suhel Farooq Khan and Saifur Rahman Nadwi

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# Translation Ayah
1 ये लोग आपस में किस चीज़ का हाल पूछते हैं عَمَّ يَتَسَاءلُونَ
2 एक बड़ी ख़बर का हाल عَنِ النَّبَإِ الْعَظِيمِ
3 जिसमें लोग एख्तेलाफ कर रहे हैं الَّذِي هُمْ فِيهِ مُخْتَلِفُونَ
4 देखो उन्हें अनक़रीब ही मालूम हो जाएगा كَلَّا سَيَعْلَمُونَ
5 फिर इन्हें अनक़रीब ही ज़रूर मालूम हो जाएगा ثُمَّ كَلَّا سَيَعْلَمُونَ
6 क्या हमने ज़मीन को बिछौना أَلَمْ نَجْعَلِ الْأَرْضَ مِهَادًا
7 और पहाड़ों को (ज़मीन) की मेख़े नहीं बनाया وَالْجِبَالَ أَوْتَادًا
8 और हमने तुम लोगों को जोड़ा जोड़ा पैदा किया وَخَلَقْنَاكُمْ أَزْوَاجًا
9 और तुम्हारी नींद को आराम (का बाइस) क़रार दिया وَجَعَلْنَا نَوْمَكُمْ سُبَاتًا
10 और रात को परदा बनाया وَجَعَلْنَا اللَّيْلَ لِبَاسًا
11 और हम ही ने दिन को (कसब) मआश (का वक्त) बनाया وَجَعَلْنَا النَّهَارَ مَعَاشًا
12 और तुम्हारे ऊपर सात मज़बूत (आसमान) बनाए وَبَنَيْنَا فَوْقَكُمْ سَبْعًا شِدَادًا
13 और हम ही ने (सूरज) को रौशन चिराग़ बनाया وَجَعَلْنَا سِرَاجًا وَهَّاجًا
14 और हम ही ने बादलों से मूसलाधार पानी बरसाया وَأَنزَلْنَا مِنَ الْمُعْصِرَاتِ مَاء ثَجَّاجًا
15 ताकि उसके ज़रिए से दाने और सबज़ी لِنُخْرِجَ بِهِ حَبًّا وَنَبَاتًا
16 और घने घने बाग़ पैदा करें وَجَنَّاتٍ أَلْفَافًا
17 बेशक फैसले का दिन मुक़र्रर है إِنَّ يَوْمَ الْفَصْلِ كَانَ مِيقَاتًا
18 जिस दिन सूर फूँका जाएगा और तुम लोग गिरोह गिरोह हाज़िर होगे يَوْمَ يُنفَخُ فِي الصُّورِ فَتَأْتُونَ أَفْوَاجًا
19 और आसमान खोल दिए जाएँगे وَفُتِحَتِ السَّمَاء فَكَانَتْ أَبْوَابًا
20 तो (उसमें) दरवाज़े हो जाएँगे और पहाड़ (अपनी जगह से) चलाए जाएँगे तो रेत होकर रह जाएँगे وَسُيِّرَتِ الْجِبَالُ فَكَانَتْ سَرَابًا
21 बेशक जहन्नुम घात में है إِنَّ جَهَنَّمَ كَانَتْ مِرْصَادًا
22 सरकशों का (वही) ठिकाना है لِلْطَّاغِينَ مَآبًا
23 उसमें मुद्दतों पड़े झींकते रहेंगें لَابِثِينَ فِيهَا أَحْقَابًا
24 न वहाँ ठन्डक का मज़ा चखेंगे और न खौलते हुए पानी لَّا يَذُوقُونَ فِيهَا بَرْدًا وَلَا شَرَابًا
25 और बहती हुई पीप के सिवा कुछ पीने को मिलेगा إِلَّا حَمِيمًا وَغَسَّاقًا
26 (ये उनकी कारस्तानियों का) पूरा पूरा बदला है جَزَاء وِفَاقًا
27 बेशक ये लोग आख़ेरत के हिसाब की उम्मीद ही न रखते थे إِنَّهُمْ كَانُوا لَا يَرْجُونَ حِسَابًا
28 और इन लोगो हमारी आयतों को बुरी तरह झुठलाया وَكَذَّبُوا بِآيَاتِنَا كِذَّابًا
29 और हमने हर चीज़ को लिख कर मनज़बत कर रखा है وَكُلَّ شَيْءٍ أَحْصَيْنَاهُ كِتَابًا
30 तो अब तुम मज़ा चखो हमतो तुम पर अज़ाब ही बढ़ाते जाएँगे فَذُوقُوا فَلَن نَّزِيدَكُمْ إِلَّا عَذَابًا
31 बेशक परहेज़गारों के लिए बड़ी कामयाबी है إِنَّ لِلْمُتَّقِينَ مَفَازًا
32 (यानि बेहश्त के) बाग़ और अंगूर حَدَائِقَ وَأَعْنَابًا
33 और वह औरतें जिनकी उठती हुई जवानियाँ وَكَوَاعِبَ أَتْرَابًا
34 और बाहम हमजोलियाँ हैं और शराब के लबरेज़ साग़र وَكَأْسًا دِهَاقًا
35 और शराब के लबरेज़ साग़र वहाँ न बेहूदा बात सुनेंगे और न झूठ لَّا يَسْمَعُونَ فِيهَا لَغْوًا وَلَا كِذَّابًا
36 (ये) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से काफ़ी इनाम और सिला है جَزَاء مِّن رَّبِّكَ عَطَاء حِسَابًا
37 जो सारे आसमान और ज़मीन और जो इन दोनों के बीच में है सबका मालिक है बड़ा मेहरबान लोगों को उससे बात का पूरा न होगा رَبِّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا الرحْمَنِ لَا يَمْلِكُونَ مِنْهُ خِطَابًا
38 जिस दिन जिबरील और फरिश्ते (उसके सामने) पर बाँध कर खड़े होंगे (उस दिन) उससे कोई बात न कर सकेगा मगर जिसे ख़ुदा इजाज़त दे और वह ठिकाने की बात कहे يَوْمَ يَقُومُ الرُّوحُ وَالْمَلَائِكَةُ صَفًّا لَّا يَتَكَلَّمُونَ إِلَّا مَنْ أَذِنَ لَهُ الرحْمَنُ وَقَالَ صَوَابًا
39 वह दिन बरहक़ है तो जो शख़्श चाहे अपने परवरदिगार की बारगाह में (अपना) ठिकाना बनाए ذَلِكَ الْيَوْمُ الْحَقُّ فَمَن شَاء اتَّخَذَ إِلَى رَبِّهِ مَآبًا
40 हमने तुम लोगों को अनक़रीब आने वाले अज़ाब से डरा दिया जिस दिन आदमी अपने हाथों पहले से भेजे हुए (आमाल) को देखेगा और काफ़िर कहेगा काश मैं ख़ाक हो जाता إِنَّا أَنذَرْنَاكُمْ عَذَابًا قَرِيبًا يَوْمَ يَنظُرُ الْمَرْءُ مَا قَدَّمَتْ يَدَاهُ وَيَقُولُ الْكَافِرُ يَا لَيْتَنِي كُنتُ تُرَابًا
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