Al-Muddathth

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Hindi: Suhel Farooq Khan and Saifur Rahman Nadwi

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# Translation Ayah
1 ऐ (मेरे) कपड़ा ओढ़ने वाले (रसूल) उठो يَا أَيُّهَا الْمُدَّثِّرُ
2 और लोगों को (अज़ाब से) डराओ قُمْ فَأَنذِرْ
3 और अपने परवरदिगार की बड़ाई करो وَرَبَّكَ فَكَبِّرْ
4 और अपने कपड़े पाक रखो وَثِيَابَكَ فَطَهِّرْ
5 और गन्दगी से अलग रहो وَالرُّجْزَ فَاهْجُرْ
6 और इसी तरह एहसान न करो कि ज्यादा के ख़ास्तगार बनो وَلَا تَمْنُن تَسْتَكْثِرُ
7 और अपने परवरदिगार के लिए सब्र करो وَلِرَبِّكَ فَاصْبِرْ
8 फिर जब सूर फूँका जाएगा فَإِذَا نُقِرَ فِي النَّاقُورِ
9 तो वह दिन काफ़िरों पर सख्त दिन होगा فَذَلِكَ يَوْمَئِذٍ يَوْمٌ عَسِيرٌ
10 आसान नहीं होगा عَلَى الْكَافِرِينَ غَيْرُ يَسِيرٍ
11 (ऐ रसूल) मुझे और उस शख़्श को छोड़ दो जिसे मैने अकेला पैदा किया ذَرْنِي وَمَنْ خَلَقْتُ وَحِيدًا
12 और उसे बहुत सा माल दिया وَجَعَلْتُ لَهُ مَالًا مَّمْدُودًا
13 और नज़र के सामने रहने वाले बेटे (दिए) وَبَنِينَ شُهُودًا
14 और उसे हर तरह के सामान से वुसअत दी وَمَهَّدتُّ لَهُ تَمْهِيدًا
15 फिर उस पर भी वह तमाअ रखता है कि मैं और बढ़ाऊँ ثُمَّ يَطْمَعُ أَنْ أَزِيدَ
16 ये हरगिज़ न होगा ये तो मेरी आयतों का दुश्मन था كَلَّا إِنَّهُ كَانَ لِآيَاتِنَا عَنِيدًا
17 तो मैं अनक़रीब उस सख्त अज़ाब में मुब्तिला करूँगा سَأُرْهِقُهُ صَعُودًا
18 उसने फिक्र की और ये तजवीज़ की إِنَّهُ فَكَّرَ وَقَدَّرَ
19 तो ये (कम्बख्त) मार डाला जाए فَقُتِلَ كَيْفَ قَدَّرَ
20 उसने क्यों कर तजवीज़ की ثُمَّ قُتِلَ كَيْفَ قَدَّرَ
21 फिर ग़ौर किया ثُمَّ نَظَرَ
22 फिर त्योरी चढ़ाई और मुँह बना लिया ثُمَّ عَبَسَ وَبَسَرَ
23 फिर पीठ फेर कर चला गया और अकड़ बैठा ثُمَّ أَدْبَرَ وَاسْتَكْبَرَ
24 फिर कहने लगा ये बस जादू है जो (अगलों से) चला आता है فَقَالَ إِنْ هَذَا إِلَّا سِحْرٌ يُؤْثَرُ
25 ये तो बस आदमी का कलाम है إِنْ هَذَا إِلَّا قَوْلُ الْبَشَرِ
26 (ख़ुदा का नहीं) मैं उसे अनक़रीब जहन्नुम में झोंक दूँगा سَأُصْلِيهِ سَقَرَ
27 और तुम क्या जानों कि जहन्नुम क्या है وَمَا أَدْرَاكَ مَا سَقَرُ
28 वह न बाक़ी रखेगी न छोड़ देगी لَا تُبْقِي وَلَا تَذَرُ
29 और बदन को जला कर सियाह कर देगी لَوَّاحَةٌ لِّلْبَشَرِ
30 उस पर उन्नीस (फ़रिश्ते मुअय्यन) हैं عَلَيْهَا تِسْعَةَ عَشَرَ
31 और हमने जहन्नुम का निगेहबान तो बस फरिश्तों को बनाया है और उनका ये शुमार भी काफिरों की आज़माइश के लिए मुक़र्रर किया ताकि अहले किताब (फौरन) यक़ीन कर लें और मोमिनो का ईमान और ज्यादा हो और अहले किताब और मोमिनीन (किसी तरह) शक़ न करें और जिन लोगों के दिल में (निफ़ाक का) मर्ज़ है (वह) और काफिर लोग कह बैठे कि इस मसल (के बयान करने) से ख़ुदा का क्या मतलब है यूँ ख़ुदा जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिसे चाहता है हिदायत करता है और तुम्हारे परवरदिगार के लशकरों को उसके सिवा कोई नहीं जानता और ये तो आदमियों के लिए बस नसीहत है وَمَا جَعَلْنَا أَصْحَابَ النَّارِ إِلَّا مَلَائِكَةً وَمَا جَعَلْنَا عِدَّتَهُمْ إِلَّا فِتْنَةً لِّلَّذِينَ كَفَرُوا لِيَسْتَيْقِنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ وَيَزْدَادَ الَّذِينَ آمَنُوا إِيمَانًا وَلَا يَرْتَابَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ وَالْمُؤْمِنُونَ وَلِيَقُولَ الَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٌ وَالْكَافِرُونَ مَاذَا أَرَادَ اللَّهُ بِهَذَا مَثَلًا كَذَلِكَ يُضِلُّ اللَّهُ مَن يَشَاء وَيَهْدِي مَن يَشَاء وَمَا يَعْلَمُ جُنُودَ رَبِّكَ إِلَّا هُوَ وَمَا هِيَ إِلَّا ذِكْرَى لِلْبَشَرِ
32 सुन रखो (हमें) चाँद की क़सम كَلَّا وَالْقَمَرِ
33 और रात की जब जाने लगे وَاللَّيْلِ إِذْ أَدْبَرَ
34 और सुबह की जब रौशन हो जाए وَالصُّبْحِ إِذَا أَسْفَرَ
35 कि वह (जहन्नुम) भी एक बहुत बड़ी (आफ़त) है إِنَّهَا لَإِحْدَى الْكُبَرِ
36 (और) लोगों के डराने वाली है نَذِيرًا لِّلْبَشَرِ
37 (सबके लिए नहीें बल्कि) तुममें से वह जो शख़्श (नेकी की तरफ़) आगे बढ़ना لِمَن شَاء مِنكُمْ أَن يَتَقَدَّمَ أَوْ يَتَأَخَّرَ
38 और (बुराई से) पीछे हटना चाहे हर शख़्श अपने आमाल के बदले गिर्द है كُلُّ نَفْسٍ بِمَا كَسَبَتْ رَهِينَةٌ
39 मगर दाहिने हाथ (में नामए अमल लेने) वाले إِلَّا أَصْحَابَ الْيَمِينِ
40 (बेहिश्त के) बाग़ों में गुनेहगारों से बाहम पूछ रहे होंगे فِي جَنَّاتٍ يَتَسَاءلُونَ
41 कि आख़िर तुम्हें दोज़ख़ में कौन सी चीज़ (घसीट) लायी عَنِ الْمُجْرِمِينَ
42 वह लोग कहेंगे مَا سَلَكَكُمْ فِي سَقَرَ
43 कि हम न तो नमाज़ पढ़ा करते थे قَالُوا لَمْ نَكُ مِنَ الْمُصَلِّينَ
44 और न मोहताजों को खाना खिलाते थे وَلَمْ نَكُ نُطْعِمُ الْمِسْكِينَ
45 और अहले बातिल के साथ हम भी बड़े काम में घुस पड़ते थे وَكُنَّا نَخُوضُ مَعَ الْخَائِضِينَ
46 और रोज़ जज़ा को झुठलाया करते थे (और यूँ ही रहे) وَكُنَّا نُكَذِّبُ بِيَوْمِ الدِّينِ
47 यहाँ तक कि हमें मौत आ गयी حَتَّى أَتَانَا الْيَقِينُ
48 तो (उस वक्त) उन्हें सिफ़ारिश करने वालों की सिफ़ारिश कुछ काम न आएगी فَمَا تَنفَعُهُمْ شَفَاعَةُ الشَّافِعِينَ
49 और उन्हें क्या हो गया है कि नसीहत से मुँह मोड़े हुए हैं فَمَا لَهُمْ عَنِ التَّذْكِرَةِ مُعْرِضِينَ
50 गोया वह वहशी गधे हैं كَأَنَّهُمْ حُمُرٌ مُّسْتَنفِرَةٌ
51 कि येर से (दुम दबा कर) भागते हैं فَرَّتْ مِن قَسْوَرَةٍ
52 असल ये है कि उनमें से हर शख़्श इसका मुतमइनी है कि उसे खुली हुई (आसमानी) किताबें अता की जाएँ بَلْ يُرِيدُ كُلُّ امْرِئٍ مِّنْهُمْ أَن يُؤْتَى صُحُفًا مُّنَشَّرَةً
53 ये तो हरगिज़ न होगा बल्कि ये तो आख़ेरत ही से नहीं डरते كَلَّا بَل لَا يَخَافُونَ الْآخِرَةَ
54 हाँ हाँ बेशक ये (क़ुरान सरा सर) नसीहत है كَلَّا إِنَّهُ تَذْكِرَةٌ
55 तो जो चाहे उसे याद रखे فَمَن شَاء ذَكَرَهُ
56 और ख़ुदा की मशीयत के बग़ैर ये लोग याद रखने वाले नहीं वही (बन्दों के) डराने के क़ाबिल और बख्यिश का मालिक है وَمَا يَذْكُرُونَ إِلَّا أَن يَشَاء اللَّهُ هُوَ أَهْلُ التَّقْوَى وَأَهْلُ الْمَغْفِرَةِ
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