Al-Qiyamat

Change Language
Change Surah
Change Recitation

Hindi: Suhel Farooq Khan and Saifur Rahman Nadwi

Play All
# Translation Ayah
1 मैं रोजे क़यामत की क़सम खाता हूँ لَا أُقْسِمُ بِيَوْمِ الْقِيَامَةِ
2 (और बुराई से) मलामत करने वाले जी की क़सम खाता हूँ (कि तुम सब दोबारा) ज़रूर ज़िन्दा किए जाओगे وَلَا أُقْسِمُ بِالنَّفْسِ اللَّوَّامَةِ
3 क्या इन्सान ये ख्याल करता है (कि हम उसकी हड्डियों को बोसीदा होने के बाद) जमा न करेंगे हाँ (ज़रूर करेंगें) أَيَحْسَبُ الْإِنسَانُ أَلَّن نَجْمَعَ عِظَامَهُ
4 हम इस पर क़ादिर हैं कि हम उसकी पोर पोर दुरूस्त करें بَلَى قَادِرِينَ عَلَى أَن نُّسَوِّيَ بَنَانَهُ
5 मगर इन्सान तो ये जानता है कि अपने आगे भी (हमेशा) बुराई करता जाए بَلْ يُرِيدُ الْإِنسَانُ لِيَفْجُرَ أَمَامَهُ
6 पूछता है कि क़यामत का दिन कब होगा يَسْأَلُ أَيَّانَ يَوْمُ الْقِيَامَةِ
7 तो जब ऑंखे चकाचौन्ध में आ जाएँगी فَإِذَا بَرِقَ الْبَصَرُ
8 और चाँद गहन में लग जाएगा وَخَسَفَ الْقَمَرُ
9 और सूरज और चाँद इकट्ठा कर दिए जाएँगे وَجُمِعَ الشَّمْسُ وَالْقَمَرُ
10 तो इन्सान कहेगा आज कहाँ भाग कर जाऊँ يَقُولُ الْإِنسَانُ يَوْمَئِذٍ أَيْنَ الْمَفَرُّ
11 यक़ीन जानों कहीं पनाह नहीं كَلَّا لَا وَزَرَ
12 उस रोज़ तुम्हारे परवरदिगार ही के पास ठिकाना है إِلَى رَبِّكَ يَوْمَئِذٍ الْمُسْتَقَرُّ
13 उस दिन आदमी को जो कुछ उसके आगे पीछे किया है बता दिया जाएगा يُنَبَّأُ الْإِنسَانُ يَوْمَئِذٍ بِمَا قَدَّمَ وَأَخَّرَ
14 बल्कि इन्सान तो अपने ऊपर आप गवाह है بَلِ الْإِنسَانُ عَلَى نَفْسِهِ بَصِيرَةٌ
15 अगरचे वह अपने गुनाहों की उज्र व ज़रूर माज़ेरत पढ़ा करता रहे وَلَوْ أَلْقَى مَعَاذِيرَهُ
16 (ऐ रसूल) वही के जल्दी याद करने वास्ते अपनी ज़बान को हरकत न दो لَا تُحَرِّكْ بِهِ لِسَانَكَ لِتَعْجَلَ بِهِ
17 उसका जमा कर देना और पढ़वा देना तो यक़ीनी हमारे ज़िम्मे है إِنَّ عَلَيْنَا جَمْعَهُ وَقُرْآنَهُ
18 तो जब हम उसको (जिबरील की ज़बानी) पढ़ें तो तुम भी (पूरा) सुनने के बाद इसी तरह पढ़ा करो فَإِذَا قَرَأْنَاهُ فَاتَّبِعْ قُرْآنَهُ
19 फिर उस (के मुश्किलात का समझा देना भी हमारे ज़िम्में है) ثُمَّ إِنَّ عَلَيْنَا بَيَانَهُ
20 मगर (लोगों) हक़ तो ये है कि तुम लोग दुनिया को दोस्त रखते हो كَلَّا بَلْ تُحِبُّونَ الْعَاجِلَةَ
21 और आख़ेरत को छोड़े बैठे हो وَتَذَرُونَ الْآخِرَةَ
22 उस रोज़ बहुत से चेहरे तो तरो ताज़ा बशबाब होंगे وُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ نَّاضِرَةٌ
23 (और) अपने परवरदिगार (की नेअमत) को देख रहे होंगे إِلَى رَبِّهَا نَاظِرَةٌ
24 और बहुतेरे मुँह उस दिन उदास होंगे وَوُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ بَاسِرَةٌ
25 समझ रहें हैं कि उन पर मुसीबत पड़ने वाली है कि कमर तोड़ देगी تَظُنُّ أَن يُفْعَلَ بِهَا فَاقِرَةٌ
26 सुन लो जब जान (बदन से खिंच के) हँसली तक आ पहुँचेगी كَلَّا إِذَا بَلَغَتْ التَّرَاقِيَ
27 और कहा जाएगा कि (इस वक्त) क़ोई झाड़ फूँक करने वाला है وَقِيلَ مَنْ رَاقٍ
28 और मरने वाले ने समझा कि अब (सबसे) जुदाई है وَظَنَّ أَنَّهُ الْفِرَاقُ
29 और (मौत की तकलीफ़ से) पिन्डली से पिन्डली लिपट जाएगी وَالْتَفَّتِ السَّاقُ بِالسَّاقِ
30 उस दिन तुमको अपने परवरदिगार की बारगाह में चलना है إِلَى رَبِّكَ يَوْمَئِذٍ الْمَسَاقُ
31 तो उसने (ग़फलत में) न (कलामे ख़ुदा की) तसदीक़ की न नमाज़ पढ़ी فَلَا صَدَّقَ وَلَا صَلَّى
32 मगर झुठलाया और (ईमान से) मुँह फेरा وَلَكِن كَذَّبَ وَتَوَلَّى
33 अपने घर की तरफ इतराता हुआ चला ثُمَّ ذَهَبَ إِلَى أَهْلِهِ يَتَمَطَّى
34 अफसोस है तुझ पर फिर अफसोस है फिर तुफ़ है أَوْلَى لَكَ فَأَوْلَى
35 तुझ पर फिर तुफ़ है ثُمَّ أَوْلَى لَكَ فَأَوْلَى
36 क्या इन्सान ये समझता है कि वह यूँ ही छोड़ दिया जाएगा أَيَحْسَبُ الْإِنسَانُ أَن يُتْرَكَ سُدًى
37 क्या वह (इब्तेदन) मनी का एक क़तरा न था जो रहम में डाली जाती है أَلَمْ يَكُ نُطْفَةً مِّن مَّنِيٍّ يُمْنَى
38 फिर लोथड़ा हुआ फिर ख़ुदा ने उसे बनाया ثُمَّ كَانَ عَلَقَةً فَخَلَقَ فَسَوَّى
39 फिर उसे दुरूस्त किया फिर उसकी दो किस्में बनायीं (एक) मर्द और (एक) औरत فَجَعَلَ مِنْهُ الزَّوْجَيْنِ الذَّكَرَ وَالْأُنثَى
40 क्या इस पर क़ादिर नहीं कि (क़यामत में) मुर्दों को ज़िन्दा कर दे أَلَيْسَ ذَلِكَ بِقَادِرٍ عَلَى أَن يُحْيِيَ الْمَوْتَى
;