An-Naml

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Hindi: Suhel Farooq Khan and Saifur Rahman Nadwi

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# Translation Ayah
1 ता सीन ये क़ुरान वाजेए व रौशन किताब की आयतें है طس تِلْكَ آيَاتُ الْقُرْآنِ وَكِتَابٍ مُّبِينٍ
2 (ये) उन ईमानदारों के लिए (अज़सरतापा) हिदायत और (जन्नत की) ख़ुशखबरी है هُدًى وَبُشْرَى لِلْمُؤْمِنِينَ
3 जो नमाज़ को पाबन्दी से अदा करते हैं और ज़कात दिया करते हैं और यही लोग आख़िरत (क़यामत) का भी यक़ीन रखते हैं الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُم بِالْآخِرَةِ هُمْ يُوقِنُونَ
4 इसमें शक नहीं कि जो लोग आखिरत पर ईमान नहीं रखते (गोया) हमने ख़ुद (उनकी कारस्तानियों को उनकी नज़र में) अच्छा कर दिखाया है إِنَّ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ زَيَّنَّا لَهُمْ أَعْمَالَهُمْ فَهُمْ يَعْمَهُونَ
5 तो ये लोग भटकते फिरते हैं- यही वह लोग हैं जिनके लिए (क़यामत में) बड़ा अज़ाब है और यही लोग आख़िरत में सबसे ज्यादा घाटा उठाने वाले हैं أُوْلَئِكَ الَّذِينَ لَهُمْ سُوءُ الْعَذَابِ وَهُمْ فِي الْآخِرَةِ هُمُ الْأَخْسَرُونَ
6 और (ऐ रसूल) तुमको तो क़ुरान एक बडे वाक़िफकार हकीम की बारगाह से अता किया जाता है وَإِنَّكَ لَتُلَقَّى الْقُرْآنَ مِن لَّدُنْ حَكِيمٍ عَلِيمٍ
7 (वह वाक़िया याद दिलाओ) जब मूसा ने अपने लड़के बालों से कहा कि मैने (अपनी बायीं तरफ) आग देखी है (एक ज़रा ठहरो तो) मै वहाँ से कुछ (राह की) ख़बर लाँऊ या तुम्हें एक सुलगता हुआ आग का अंगारा ला दूँ ताकि तुम तापो إِذْ قَالَ مُوسَى لِأَهْلِهِ إِنِّي آنَسْتُ نَارًا سَآتِيكُم مِّنْهَا بِخَبَرٍ أَوْ آتِيكُم بِشِهَابٍ قَبَسٍ لَّعَلَّكُمْ تَصْطَلُونَ
8 ग़रज़ जब मूसा इस आग के पास आए तो उनको आवाज़ आयी कि मुबारक है वह जो आग में (तजल्ली दिखाना) है और जो उसके गिर्द है और वह ख़ुदा सारे जहाँ का पालने वाला है فَلَمَّا جَاءهَا نُودِيَ أَن بُورِكَ مَن فِي النَّارِ وَمَنْ حَوْلَهَا وَسُبْحَانَ اللَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ
9 (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है- ऐ मूसा इसमें शक नहीं कि मै ज़बरदस्त हिकमत वाला हूँ يَا مُوسَى إِنَّهُ أَنَا اللَّهُ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ
10 और (हाँ) अपनी छड़ी तो (ज़मीन पर) डाल दो तो जब मूसा ने उसको देखा कि वह इस तरह लहरा रही है गोया वह जिन्दा अज़दहा है तो पिछले पावँ भाग चले और पीछे मुड़कर भी न देखा (तो हमने कहा) ऐ मूसा डरो नहीं हमारे पास पैग़म्बर लोग डरा नहीं करते हैं وَأَلْقِ عَصَاكَ فَلَمَّا رَآهَا تَهْتَزُّ كَأَنَّهَا جَانٌّ وَلَّى مُدْبِرًا وَلَمْ يُعَقِّبْ يَا مُوسَى لَا تَخَفْ إِنِّي لَا يَخَافُ لَدَيَّ الْمُرْسَلُونَ
11 (मुतमइन हो जाते है) मगर जो शख्स गुनाह करे फिर गुनाह के बाद उसे नेकी (तौबा) से बदल दे तो अलबत्ता बड़ा बख्शने वाला मेहरबान हूँ إِلَّا مَن ظَلَمَ ثُمَّ بَدَّلَ حُسْنًا بَعْدَ سُوءٍ فَإِنِّي غَفُورٌ رَّحِيمٌ
12 (वहाँ) और अपना हाथ अपने गरेबॉ में तो डालो कि वह सफेद बुर्राक़ होकर बेऐब निकल आएगा (ये वह मौजिज़े) मिन जुमला नौ मोजिज़ात के हैं जो तुमको मिलेगें तुम फिरऔन और उसकी क़ौम के पास (जाओ) क्योंकि वह बदकिरदार लोग हैं وَأَدْخِلْ يَدَكَ فِي جَيْبِكَ تَخْرُجْ بَيْضَاء مِنْ غَيْرِ سُوءٍ فِي تِسْعِ آيَاتٍ إِلَى فِرْعَوْنَ وَقَوْمِهِ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمًا فَاسِقِينَ
13 तो जब उनके पास हमारे ऑंखें खोल देने वाले मैजिज़े आए तो कहने लगे ये तो खुला हुआ जादू है فَلَمَّا جَاءتْهُمْ آيَاتُنَا مُبْصِرَةً قَالُوا هَذَا سِحْرٌ مُّبِينٌ
14 और बावजूद के उनके दिल को उन मौजिज़ात का यक़ीन था मगर फिर भी उन लोगों ने सरकशी और तकब्बुर से उनको न माना तो (ऐ रसूल) देखो कि (आखिर) मुफसिदों का अन्जाम क्या होगा وَجَحَدُوا بِهَا وَاسْتَيْقَنَتْهَا أَنفُسُهُمْ ظُلْمًا وَعُلُوًّا فَانظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُفْسِدِينَ
15 और इसमें शक नहीं कि हमने दाऊद और सुलेमान को इल्म अता किया और दोनों ने (ख़ुश होकर) कहा ख़ुदा का शुक्र जिसने हमको अपने बहुतेरे ईमानदार बन्दों पर फज़ीलत दी وَلَقَدْ آتَيْنَا دَاوُودَ وَسُلَيْمَانَ عِلْمًا وَقَالَا الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي فَضَّلَنَا عَلَى كَثِيرٍ مِّنْ عِبَادِهِ الْمُؤْمِنِينَ
16 और (इल्म हिकमत जाएदाद (मनकूला) गैर मनकूला सब में) सुलेमान दाऊद के वारिस हुए और कहा कि लोग हम को (ख़ुदा के फज़ल से) परिन्दों की बोली भी सिखायी गयी है और हमें (दुनिया की) हर चीज़ अता की गयी है इसमें शक नहीं कि ये यक़ीनी (ख़ुदा का) सरीही फज़ल व करम है وَوَرِثَ سُلَيْمَانُ دَاوُودَ وَقَالَ يَا أَيُّهَا النَّاسُ عُلِّمْنَا مَنطِقَ الطَّيْرِ وَأُوتِينَا مِن كُلِّ شَيْءٍ إِنَّ هَذَا لَهُوَ الْفَضْلُ الْمُبِينُ
17 और सुलेमान के सामने उनके लशकर जिन्नात और आदमी और परिन्दे सब जमा किए जाते थे وَحُشِرَ لِسُلَيْمَانَ جُنُودُهُ مِنَ الْجِنِّ وَالْإِنسِ وَالطَّيْرِ فَهُمْ يُوزَعُونَ
18 तो वह सबके सब (मसल मसल) खडे क़िए जाते थे (ग़रज़ इस तरह लशकर चलता) यहाँ तक कि जब (एक दिन) चीटीयों के मैदान में आ निकले तो एक चीटीं बोली ऐ चीटीयों अपने अपने बिल में घुस जाओ- ऐसा न हो कि सुलेमान और उनका लश्कर तुम्हे रौन्द डाले और उन्हें उसकी ख़बर भी न हो حَتَّى إِذَا أَتَوْا عَلَى وَادِي النَّمْلِ قَالَتْ نَمْلَةٌ يَا أَيُّهَا النَّمْلُ ادْخُلُوا مَسَاكِنَكُمْ لَا يَحْطِمَنَّكُمْ سُلَيْمَانُ وَجُنُودُهُ وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ
19 तो सुलेमान इस बात से मुस्कुरा के हँस पड़ें और अर्ज क़ी परवरदिगार मुझे तौफीक़ अता फरमा कि जैसी जैसी नेअमतें तूने मुझ पर और मेरे वालदैन पर नाज़िल फरमाई हैं मै (उनका) शुक्रिया अदा करुँ और मैं ऐसे नेक काम करुँ जिसे तू पसन्द फरमाए और तू अपनी ख़ास मेहरबानी से मुझे (अपने) नेकोकार बन्दों में दाखिल कर فَتَبَسَّمَ ضَاحِكًا مِّن قَوْلِهَا وَقَالَ رَبِّ أَوْزِعْنِي أَنْ أَشْكُرَ نِعْمَتَكَ الَّتِي أَنْعَمْتَ عَلَيَّ وَعَلَى وَالِدَيَّ وَأَنْ أَعْمَلَ صَالِحًا تَرْضَاهُ وَأَدْخِلْنِي بِرَحْمَتِكَ فِي عِبَادِكَ الصَّالِحِينَ
20 और सुलेमान ने परिन्दों (के लश्कर) की हाज़िरी ली तो कहने लगे कि क्या बात है कि मै हुदहुद को (उसकी जगह पर) नहीं देखता क्या (वाक़ई में) वह कही ग़ायब है وَتَفَقَّدَ الطَّيْرَ فَقَالَ مَا لِيَ لَا أَرَى الْهُدْهُدَ أَمْ كَانَ مِنَ الْغَائِبِينَ
21 (अगर ऐसा है तो) मै उसे सख्त से सख्त सज़ा दूँगा या (नहीं तो ) उसे ज़बाह ही कर डालूँगा या वह (अपनी बेगुनाही की) कोई साफ दलील मेरे पास पेश करे لَأُعَذِّبَنَّهُ عَذَابًا شَدِيدًا أَوْ لَأَذْبَحَنَّهُ أَوْ لَيَأْتِيَنِّي بِسُلْطَانٍ مُّبِينٍ
22 ग़रज़ सुलेमान ने थोड़ी ही देर (तवक्कुफ़ किया था कि (हुदहुद) आ गया) तो उसने अर्ज़ की मुझे यह बात मालूम हुई है जो अब तक हुज़ूर को भी मालूम नहीं है और आप के पास शहरे सबा से एक तहक़ीकी ख़बर लेकर आया हूँ فَمَكَثَ غَيْرَ بَعِيدٍ فَقَالَ أَحَطتُ بِمَا لَمْ تُحِطْ بِهِ وَجِئْتُكَ مِن سَبَإٍ بِنَبَإٍ يَقِينٍ
23 मैने एक औरत को देखा जो वहाँ के लोगों पर सलतनत करती है और उसे (दुनिया की) हर चीज़ अता की गयी है और उसका एक बड़ा तख्त है إِنِّي وَجَدتُّ امْرَأَةً تَمْلِكُهُمْ وَأُوتِيَتْ مِن كُلِّ شَيْءٍ وَلَهَا عَرْشٌ عَظِيمٌ
24 मैने खुद मलका को देखा और उसकी क़ौम को देखा कि वह लोग ख़ुदा को छोड़कर आफताब को सजदा करते हैं शैतान ने उनकी करतूतों को (उनकी नज़र में) अच्छा कर दिखाया है और उनको राहे रास्त से रोक रखा है وَجَدتُّهَا وَقَوْمَهَا يَسْجُدُونَ لِلشَّمْسِ مِن دُونِ اللَّهِ وَزَيَّنَ لَهُمُ الشَّيْطَانُ أَعْمَالَهُمْ فَصَدَّهُمْ عَنِ السَّبِيلِ فَهُمْ لَا يَهْتَدُونَ
25 तो उन्हें (इतनी सी बात भी नहीं सूझती) कि वह लोग ख़ुदा ही का सजदा क्यों नहीं करते जो आसमान और ज़मीन की पोशीदा बातों को ज़ाहिर कर देता है और तुम लोग जो कुछ छिपाकर या ज़ाहिर करके करते हो सब जानता है أَلَّا يَسْجُدُوا لِلَّهِ الَّذِي يُخْرِجُ الْخَبْءَ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَيَعْلَمُ مَا تُخْفُونَ وَمَا تُعْلِنُونَ
26 अल्लाह वह है जिससे सिवा कोई माबूद नहीं वही (इतने) बड़े अर्श का मालिक है (सजदा) اللَّهُ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ رَبُّ الْعَرْشِ الْعَظِيمِ
27 (ग़रज़) सुलेमान ने कहा हम अभी देखते हैं कि तूने सच सच कहा या तू झूठा है قَالَ سَنَنظُرُ أَصَدَقْتَ أَمْ كُنتَ مِنَ الْكَاذِبِينَ
28 (अच्छा) हमारा ये ख़त लेकर जा और उसको उन लोगों के सामने डाल दे फिर उन के पास से जाना फिर देखते रहना कि वह लोग अख़िर क्या जवाब देते हैं اذْهَب بِّكِتَابِي هَذَا فَأَلْقِهْ إِلَيْهِمْ ثُمَّ تَوَلَّ عَنْهُمْ فَانظُرْ مَاذَا يَرْجِعُونَ
29 (ग़रज़) हुद हुद ने मलका के पास ख़त पहुँचा दिया तो मलका बोली ऐ (मेरे दरबार के) सरदारों ये एक वाजिबुल एहतराम ख़त मेरे पास डाल दिया गया है قَالَتْ يَا أَيُّهَا المَلَأُ إِنِّي أُلْقِيَ إِلَيَّ كِتَابٌ كَرِيمٌ
30 सुलेमान की तरफ से है (ये उसका सरनामा) है बिस्मिल्लाहिररहमानिरहीम إِنَّهُ مِن سُلَيْمَانَ وَإِنَّهُ بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ
31 (और मज़मून) यह है कि मुझ से सरकशी न करो और मेरे सामने फरमाबरदार बन कर हाज़िर हो أَلَّا تَعْلُوا عَلَيَّ وَأْتُونِي مُسْلِمِينَ
32 तब मलका (विलक़ीस) बोली ऐ मेरे दरबार के सरदारों तुम मेरे इस मामले में मुझे राय दो (क्योंकि मेरा तो ये क़ायदा है कि) जब तक तुम लोग मेरे सामने मौजूद न हो (मशवरा न दे दो) मैं किसी अम्र में क़तई फैसला न किया करती قَالَتْ يَا أَيُّهَا المَلَأُ أَفْتُونِي فِي أَمْرِي مَا كُنتُ قَاطِعَةً أَمْرًا حَتَّى تَشْهَدُونِ
33 उन लोगों ने अर्ज़ की हम बड़े ज़ोरावर बडे लड़ने वाले हैं और (आइन्दा) हर अम्र का आप को एख्तियार है तो जो हुक्म दे आप (खुद अच्छी) तरह इसके अन्जाम पर ग़ौर कर ले قَالُوا نَحْنُ أُوْلُوا قُوَّةٍ وَأُولُوا بَأْسٍ شَدِيدٍ وَالْأَمْرُ إِلَيْكِ فَانظُرِي مَاذَا تَأْمُرِينَ
34 मलका ने कहा बादशाहों का क़ायदा है कि जब किसी बस्ती में (बज़ोरे फ़तेह) दाख़िल हो जाते हैं तो उसको उजाड़ देते हैं और वहाँ के मुअज़िज़ लोगों को ज़लील व रुसवा कर देते हैं और ये लोग भी ऐसा ही करेंगे قَالَتْ إِنَّ الْمُلُوكَ إِذَا دَخَلُوا قَرْيَةً أَفْسَدُوهَا وَجَعَلُوا أَعِزَّةَ أَهْلِهَا أَذِلَّةً وَكَذَلِكَ يَفْعَلُونَ
35 और मैं उनके पास (एलचियों की माअरफ़त कुछ तोहफा भेजकर देखती हूँ कि एलची लोग क्या जवाब लाते हैं) ग़रज़ जब बिलक़ीस का एलची (तोहफा लेकर) सुलेमान के पास आया وَإِنِّي مُرْسِلَةٌ إِلَيْهِم بِهَدِيَّةٍ فَنَاظِرَةٌ بِمَ يَرْجِعُ الْمُرْسَلُونَ
36 तो सुलेमान ने कहा क्या तुम लोग मुझे माल की मदद देते हो तो ख़ुदा ने जो (माल दुनिया) मुझे अता किया है वह (माल) उससे जो तुम्हें बख्शा है कहीं बेहतर है (मैं तो नही) बल्कि तुम्ही लोग अपने तोहफे तहायफ़ से ख़ुश हुआ करो فَلَمَّا جَاء سُلَيْمَانَ قَالَ أَتُمِدُّونَنِ بِمَالٍ فَمَا آتَانِيَ اللَّهُ خَيْرٌ مِّمَّا آتَاكُم بَلْ أَنتُم بِهَدِيَّتِكُمْ تَفْرَحُونَ
37 (फिर तोहफा लाने वाले ने कहा) तो उन्हीं लोगों के पास जा हम यक़ीनन ऐसे लश्कर से उन पर चढ़ाई करेंगे जिसका उससे मुक़ाबला न हो सकेगा और हम ज़रुर उन्हें वहाँ से ज़लील व रुसवा करके निकाल बाहर करेंगे ارْجِعْ إِلَيْهِمْ فَلَنَأْتِيَنَّهُمْ بِجُنُودٍ لَّا قِبَلَ لَهُم بِهَا وَلَنُخْرِجَنَّهُم مِّنْهَا أَذِلَّةً وَهُمْ صَاغِرُونَ
38 (जब वह जा चुका) तो सुलेमान ने अपने अहले दरबार से कहा ऐ मेरे दरबार के सरदारो तुममें से कौन ऐसा है कि क़ब्ल इसके वह लोग मेरे सामने फरमाबरदार बनकर आयें قَالَ يَا أَيُّهَا المَلَأُ أَيُّكُمْ يَأْتِينِي بِعَرْشِهَا قَبْلَ أَن يَأْتُونِي مُسْلِمِينَ
39 मलिका का तख्त मेरे पास ले आए (इस पर) जिनों में से एक दियो बोल उठा कि क़ब्ल इसके कि हुज़ूर (दरबार बरख़ास्त करके) अपनी जगह से उठे मै तख्त आपके पास ले आऊँगा और यक़ीनन उस पर क़ाबू रखता हूँ (और) ज़िम्मेदार हूँ قَالَ عِفْريتٌ مِّنَ الْجِنِّ أَنَا آتِيكَ بِهِ قَبْلَ أَن تَقُومَ مِن مَّقَامِكَ وَإِنِّي عَلَيْهِ لَقَوِيٌّ أَمِينٌ
40 इस पर अभी सुलेमान कुछ कहने न पाए थे कि वह शख्स (आसिफ़ बिन बरख़िया) जिसके पास किताबे (ख़ुदा) का किस कदर इल्म था बोला कि मै आप की पलक झपकने से पहले तख्त को आप के पास हाज़िर किए देता हूँ (बस इतने ही में आ गया) तो जब सुलेमान ने उसे अपने पास मौजूद पाया तो कहने लगे ये महज़ मेरे परवरदिगार का फज़ल व करम है ताकि वह मेरा इम्तेहान ले कि मै उसका शुक्र करता हूँ या नाशुक्री करता हूँ और जो कोई शुक्र करता है वह अपनी ही भलाई के लिए शुक्र करता है और जो शख्स ना शुक्री करता है तो (याद रखिए) मेरा परवरदिगार यक़ीनन बेपरवा और सख़ी है قَالَ الَّذِي عِندَهُ عِلْمٌ مِّنَ الْكِتَابِ أَنَا آتِيكَ بِهِ قَبْلَ أَن يَرْتَدَّ إِلَيْكَ طَرْفُكَ فَلَمَّا رَآهُ مُسْتَقِرًّا عِندَهُ قَالَ هَذَا مِن فَضْلِ رَبِّي لِيَبْلُوَنِي أَأَشْكُرُ أَمْ أَكْفُرُ وَمَن شَكَرَ فَإِنَّمَا يَشْكُرُ لِنَفْسِهِ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ رَبِّي غَنِيٌّ كَرِيمٌ
41 (उसके बाद) सुलेमान ने कहा कि उसके तख्त में (उसकी अक्ल के इम्तिहान के लिए) तग़य्युर तबददुल कर दो ताकि हम देखें कि फिर भी वह समझ रखती है या उन लोगों में है जो कुछ समझ नहीं रखते قَالَ نَكِّرُوا لَهَا عَرْشَهَا نَنظُرْ أَتَهْتَدِي أَمْ تَكُونُ مِنَ الَّذِينَ لَا يَهْتَدُونَ
42 (चुनान्चे ऐसा ही किया गया) फिर जब बिलक़ीस (सुलेमान के पास) आयी तो पूछा गया कि तुम्हारा तख्त भी ऐसा ही है वह बोली गोया ये वही है (फिर कहने लगी) हमको तो उससे पहले ही (आपकी नुबूवत) मालूम हो गयी थी और हम तो आपके फ़रमाबरदार थे ही فَلَمَّا جَاءتْ قِيلَ أَهَكَذَا عَرْشُكِ قَالَتْ كَأَنَّهُ هُوَ وَأُوتِينَا الْعِلْمَ مِن قَبْلِهَا وَكُنَّا مُسْلِمِينَ
43 और ख़ुदा के सिवा जिसे वह पूजती थी सुलेमान ने उससे उसे रोक दिया क्योंकि वह काफिर क़ौम की थी (और आफताब को पूजती थी) وَصَدَّهَا مَا كَانَت تَّعْبُدُ مِن دُونِ اللَّهِ إِنَّهَا كَانَتْ مِن قَوْمٍ كَافِرِينَ
44 फिर उससे कहा गया कि आप अब महल मे चलिए तो जब उसने महल (में शीशे के फर्श) को देखा तो उसको गहरा पानी समझी (और गुज़रने के लिए इस तरह अपने पाएचे उठा लिए कि) अपनी दोनों पिन्डलियाँ खोल दी सुलेमान ने कहा (तुम डरो नहीं) ये (पानी नहीं है) महल है जो शीशे से मढ़ा हुआ है (उस वक्त तम्बीह हुई और) अर्ज़ की परवरदिगार मैने (आफताब को पूजा कर) यक़ीनन अपने ऊपर ज़ुल्म किया قِيلَ لَهَا ادْخُلِي الصَّرْحَ فَلَمَّا رَأَتْهُ حَسِبَتْهُ لُجَّةً وَكَشَفَتْ عَن سَاقَيْهَا قَالَ إِنَّهُ صَرْحٌ مُّمَرَّدٌ مِّن قَوَارِيرَ قَالَتْ رَبِّ إِنِّي ظَلَمْتُ نَفْسِي وَأَسْلَمْتُ مَعَ سُلَيْمَانَ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ
45 और अब मैं सुलेमान के साथ सारे जहाँ के पालने वाले खुदा पर ईमान लाती हूँ और हम ही ने क़ौम समूद के पास उनके भाई सालेह को पैग़म्बर बनाकर भेजा कि तुम लोग ख़ुदा की इबादत करो तो वह सालेह के आते ही (मोमिन व काफिर) दो फरीक़ बनकर बाहम झगड़ने लगे وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا إِلَى ثَمُودَ أَخَاهُمْ صَالِحًا أَنِ اعْبُدُوا اللَّهَ فَإِذَا هُمْ فَرِيقَانِ يَخْتَصِمُونَ
46 सालेह ने कहा ऐ मेरी क़ौम (आख़िर) तुम लोग भलाई से पहल बुराई के वास्ते जल्दी क्यों कर रहे हो तुम लोग ख़ुदा की बारगाह में तौबा व अस्तग़फार क्यों नही करते ताकि तुम पर रहम किया जाए قَالَ يَا قَوْمِ لِمَ تَسْتَعْجِلُونَ بِالسَّيِّئَةِ قَبْلَ الْحَسَنَةِ لَوْلَا تَسْتَغْفِرُونَ اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ
47 वह लोग बोले हमने तो तुम से और तुम्हारे साथियों से बुरा शगुन पाया सालेह ने कहा तुम्हारी बदकिस्मती ख़ुदा के पास है (ये सब कुछ नहीं) बल्कि तुम लोगों की आज़माइश की जा रही है قَالُوا اطَّيَّرْنَا بِكَ وَبِمَن مَّعَكَ قَالَ طَائِرُكُمْ عِندَ اللَّهِ بَلْ أَنتُمْ قَوْمٌ تُفْتَنُونَ
48 और शहर में नौ आदमी थे जो मुल्क के बानीये फसाद थे और इसलाह की फिक्र न करते थे-उन लोगों ने (आपस में) कहा कि बाहम ख़ुदा की क़सम खाते जाओ وَكَانَ فِي الْمَدِينَةِ تِسْعَةُ رَهْطٍ يُفْسِدُونَ فِي الْأَرْضِ وَلَا يُصْلِحُونَ
49 कि हम लोग सालेह और उसके लड़के बालो पर शब खून करे उसके बाद उसके वाली वारिस से कह देगें कि हम लोग उनके घर वालों को हलाक़ होते वक्त मौजूद ही न थे और हम लोग तो यक़ीनन सच्चे हैं قَالُوا تَقَاسَمُوا بِاللَّهِ لَنُبَيِّتَنَّهُ وَأَهْلَهُ ثُمَّ لَنَقُولَنَّ لِوَلِيِّهِ مَا شَهِدْنَا مَهْلِكَ أَهْلِهِ وَإِنَّا لَصَادِقُونَ
50 और उन लोगों ने एक तदबीर की और हमने भी एक तदबीर की और (हमारी तदबीर की) उनको ख़बर भी न हुई وَمَكَرُوا مَكْرًا وَمَكَرْنَا مَكْرًا وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ
51 तो (ऐ रसूल) तुम देखो उनकी तदबीर का क्या (बुरा) अन्जाम हुआ कि हमने उनको और सारी क़ौम को हलाक कर डाला فَانظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ مَكْرِهِمْ أَنَّا دَمَّرْنَاهُمْ وَقَوْمَهُمْ أَجْمَعِينَ
52 ये बस उनके घर हैं कि उनकी नाफरमानियों की वज़ह से ख़ाली वीरान पड़े हैं इसमे शक नही कि उस वाक़िये में वाक़िफ कार लोगों के लिए बड़ी इबरत है فَتِلْكَ بُيُوتُهُمْ خَاوِيَةً بِمَا ظَلَمُوا إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَةً لِّقَوْمٍ يَعْلَمُونَ
53 और हमने उन लोगों को जो ईमान लाए थे और परहेज़गार थे बचा लिया وَأَنجَيْنَا الَّذِينَ آمَنُوا وَكَانُوا يَتَّقُونَ
54 और (ऐ रसूल) लूत को (याद करो) जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि क्या तुम देखभाल कर (समझ बूझ कर) ऐसी बेहयाई करते हो وَلُوطًا إِذْ قَالَ لِقَوْمِهِ أَتَأْتُونَ الْفَاحِشَةَ وَأَنتُمْ تُبْصِرُونَ
55 क्या तुम औरतों को छोड़कर शहवत से मर्दों के आते हो (ये तुम अच्छा नहीं करते) बल्कि तुम लोग बड़ी जाहिल क़ौम हो तो लूत की क़ौम का इसके सिवा कुछ जवाब न था أَئِنَّكُمْ لَتَأْتُونَ الرِّجَالَ شَهْوَةً مِّن دُونِ النِّسَاء بَلْ أَنتُمْ قَوْمٌ تَجْهَلُونَ
56 कि वह लोग बोल उठे कि लूत के खानदान को अपनी बस्ती (सदूम) से निकाल बाहर करो ये लोग बड़े पाक साफ बनना चाहते हैं فَمَا كَانَ جَوَابَ قَوْمِهِ إِلَّا أَن قَالُوا أَخْرِجُوا آلَ لُوطٍ مِّن قَرْيَتِكُمْ إِنَّهُمْ أُنَاسٌ يَتَطَهَّرُونَ
57 ग़रज हमने लूत को और उनके ख़ानदान को बचा लिया मगर उनकी बीवी कि हमने उसकी तक़दीर में पीछे रह जाने वालों में लिख दिया था فَأَنجَيْنَاهُ وَأَهْلَهُ إِلَّا امْرَأَتَهُ قَدَّرْنَاهَا مِنَ الْغَابِرِينَ
58 और (फिर तो) हमने उन लोगों पर (पत्थर का) मेंह बरसाया तो जो लोग डराए जा चुके थे उन पर क्या बुरा मेंह बरसा وَأَمْطَرْنَا عَلَيْهِم مَّطَرًا فَسَاء مَطَرُ الْمُنذَرِينَ
59 (ऐ रसूल) तुम कह दो (उनके हलाक़ होने पर) खुदा का शुक्र और उसके बरगुज़ीदा बन्दों पर सलाम भला ख़ुदा बेहतर है या वह चीज़ जिसे ये लोग शरीके ख़ुदा कहते हैं قُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ وَسَلَامٌ عَلَى عِبَادِهِ الَّذِينَ اصْطَفَى آللَّهُ خَيْرٌ أَمَّا يُشْرِكُونَ
60 भला वह कौन है जिसने आसमान और ज़मीन को पैदा किया और तुम्हारे वास्ते आसमान से पानी बरसाया फिर हम ही ने पानी से दिल चस्प (ख़ुशनुमा) बाग़ उठाए तुम्हारे तो ये बस की बात न थी कि तुम उनके दरख्तों को उगा सकते तो क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद भी है (हरगिज़ नहीं) बल्कि ये लोग खुद अपने जी से गढ़ के बुतो को उसके बराबर बनाते हैं أَمَّنْ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَأَنزَلَ لَكُم مِّنَ السَّمَاء مَاء فَأَنبَتْنَا بِهِ حَدَائِقَ ذَاتَ بَهْجَةٍ مَّا كَانَ لَكُمْ أَن تُنبِتُوا شَجَرَهَا أَإِلَهٌ مَّعَ اللَّهِ بَلْ هُمْ قَوْمٌ يَعْدِلُونَ
61 भला वह कौन है जिसने ज़मीन को (लोगों के) ठहरने की जगह बनाया और उसके दरमियान जा बजा नहरें दौड़ायी और उसकी मज़बूती के वास्ते पहाड़ बनाए और (मीठे खारी) दरियाओं के दरमियान हदे फासिल बनाया तो क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद भी है (हरगिज़ नहीं) बल्कि उनमें के अकसर कुछ जानते ही नहीं أَمَّن جَعَلَ الْأَرْضَ قَرَارًا وَجَعَلَ خِلَالَهَا أَنْهَارًا وَجَعَلَ لَهَا رَوَاسِيَ وَجَعَلَ بَيْنَ الْبَحْرَيْنِ حَاجِزًا أَإِلَهٌ مَّعَ اللَّهِ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ
62 भला वह कौन है कि जब मुज़तर उसे पुकारे तो दुआ क़ुबूल करता है और मुसीबत को दूर करता है और तुम लोगों को ज़मीन में (अपना) नायब बनाता है तो क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद है (हरगिज़ नहीं) उस पर भी तुम लोग बहुत कम नसीहत व इबरत हासिल करते हो أَمَّن يُجِيبُ الْمُضْطَرَّ إِذَا دَعَاهُ وَيَكْشِفُ السُّوءَ وَيَجْعَلُكُمْ خُلَفَاء الْأَرْضِ أَإِلَهٌ مَّعَ اللَّهِ قَلِيلًا مَّا تَذَكَّرُونَ
63 भला वह कौन है जो तुम लोगों की ख़़ुश्की और तरी की तारिक़ियों में राह दिखाता है और कौन उसकी बाराने रहमत के आगे आगे (बारिश की) ख़ुशखबरी लेकर हवाओं को भेजता है-क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद भी है (हरगिज़ नहीं) ये लोग जिन चीज़ों को ख़ुदा का शरीक ठहराते हैं ख़ुदा उससे बालातर है أَمَّن يَهْدِيكُمْ فِي ظُلُمَاتِ الْبَرِّ وَالْبَحْرِ وَمَن يُرْسِلُ الرِّيَاحَ بُشْرًا بَيْنَ يَدَيْ رَحْمَتِهِ أَإِلَهٌ مَّعَ اللَّهِ تَعَالَى اللَّهُ عَمَّا يُشْرِكُونَ
64 भला वह कौन हैं जो ख़िलकत को नए सिरे से पैदा करता है फिर उसे दोबारा (मरने के बाद) पैदा करेगा और कौन है जो तुम लोगों को आसमान व ज़मीन से रिज़क़ देता है- तो क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद भी है (हरग़िज़ नहीं) (ऐ रसूल) तुम (इन मुशरेकीन से) कहा दो कि अगर तुम सच्चे हो तो अपनी दलील पेश करो أَمَّن يَبْدَأُ الْخَلْقَ ثُمَّ يُعِيدُهُ وَمَن يَرْزُقُكُم مِّنَ السَّمَاء وَالْأَرْضِ أَإِلَهٌ مَّعَ اللَّهِ قُلْ هَاتُوا بُرْهَانَكُمْ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ
65 (ऐ रसूल इन से) कह दो कि जितने लोग आसमान व ज़मीन में हैं उनमे से कोई भी गैब की बात के सिवा नहीं जानता और वह भी तो नहीं समझते कि क़ब्र से दोबारा कब ज़िन्दा उठ खडे क़िए जाएँगें قُل لَّا يَعْلَمُ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ الْغَيْبَ إِلَّا اللَّهُ وَمَا يَشْعُرُونَ أَيَّانَ يُبْعَثُونَ
66 बल्कि (असल ये है कि) आख़िरत के बारे में उनके इल्म का ख़ात्मा हो गया है बल्कि उसकी तरफ से शक में पड़ें हैं बल्कि (सच ये है कि) इससे ये लोग अंधे बने हुए हैं بَلِ ادَّارَكَ عِلْمُهُمْ فِي الْآخِرَةِ بَلْ هُمْ فِي شَكٍّ مِّنْهَا بَلْ هُم مِّنْهَا عَمِونَ
67 और कुफ्फार कहने लगे कि क्या जब हम और हमारे बाप दादा (सड़ गल कर) मिट्टी हो जाएँगें तो क्या हम फिर निकाले जाएँगें وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا أَئِذَا كُنَّا تُرَابًا وَآبَاؤُنَا أَئِنَّا لَمُخْرَجُونَ
68 उसका तो पहले भी हम से और हमारे बाप दादाओं से वायदा किया गया था (कहाँ का उठना और कैसी क़यामत) ये तो हो न हो अगले लोगों के ढकोसले हैं لَقَدْ وُعِدْنَا هَذَا نَحْنُ وَآبَاؤُنَا مِن قَبْلُ إِنْ هَذَا إِلَّا أَسَاطِيرُ الْأَوَّلِينَ
69 (ऐ रसूल) लोगों से कह दो कि रुए ज़मीन पर ज़रा चल फिर कर देखो तो गुनाहगारों का अन्जाम क्या हुआ قُلْ سِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَانظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُجْرِمِينَ
70 (ऐ रसूल) तुम उनके हाल पर कुछ अफ़सोस न करो और जो चालें ये लोग (तुम्हारे ख़िलाफ) चल रहे हैं उससे तंग दिल न हो وَلَا تَحْزَنْ عَلَيْهِمْ وَلَا تَكُن فِي ضَيْقٍ مِّمَّا يَمْكُرُونَ
71 और ये (कुफ्फ़ार मुसलमानों से) पूछते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो (आख़िर) ये (क़यामत या अज़ाब का) वायदा कब पूरा होगा وَيَقُولُونَ مَتَى هَذَا الْوَعْدُ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ
72 (ऐ रसूल) तुम कह दो कि जिस (अज़ाब) की तुम लोग जल्दी मचा रहे हो क्या अजब है इसमे से कुछ करीब आ गया हो قُلْ عَسَى أَن يَكُونَ رَدِفَ لَكُم بَعْضُ الَّذِي تَسْتَعْجِلُونَ
73 और इसमें तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार लोगों पर बड़ा फज़ल व करम करने वाला है मगर बहुतेरे लोग (उसका) शुक्र नहीं करते وَإِنَّ رَبَّكَ لَذُو فَضْلٍ عَلَى النَّاسِ وَلَكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَشْكُرُونَ
74 और इसमें तो शक नहीं जो बातें उनके दिलों में पोशीदा हैं और जो कुछ ये एलानिया करते हैं तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनी जानता है وَإِنَّ رَبَّكَ لَيَعْلَمُ مَا تُكِنُّ صُدُورُهُمْ وَمَا يُعْلِنُونَ
75 और आसमान व ज़मीन में कोई ऐसी बात पोशीदा नहीं जो वाज़ेए व रौशन किताब (लौहे महफूज़) में (लिखी) मौजूद न हो وَمَا مِنْ غَائِبَةٍ فِي السَّمَاء وَالْأَرْضِ إِلَّا فِي كِتَابٍ مُّبِينٍ
76 इसमें भी शक नहीं कि ये क़ुरान बनी इसराइल पर उनकी अक्सर बातों को जिन में ये इख्तेलाफ़ करते हैं ज़ाहिर कर देता है إِنَّ هَذَا الْقُرْآنَ يَقُصُّ عَلَى بَنِي إِسْرَائِيلَ أَكْثَرَ الَّذِي هُمْ فِيهِ يَخْتَلِفُونَ
77 और इसमें भी शक नहीं कि ये कुरान ईमानदारों के वास्ते अज़सरतापा हिदायत व रहमत है وَإِنَّهُ لَهُدًى وَرَحْمَةٌ لِّلْمُؤْمِنِينَ
78 (ऐ रसूल) बेशक तुम्हारा परवरदिगार अपने हुक्म से उनके आपस (के झगड़ों) का फैसला कर देगा और वह (सब पर) ग़ालिब और वाक़िफकार है إِنَّ رَبَّكَ يَقْضِي بَيْنَهُم بِحُكْمِهِ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْعَلِيمُ
79 तो (ऐ रसूल) तुम खुदा पर भरोसा रखो बेशक तुम यक़ीनी सरीही हक़ पर हो فَتَوَكَّلْ عَلَى اللَّهِ إِنَّكَ عَلَى الْحَقِّ الْمُبِينِ
80 बेशक न तो तुम मुर्दों को (अपनी बात) सुना सकते हो और न बहरों को अपनी आवाज़ सुना सकते हो (ख़ासकर) जब वह पीठ फेर कर भाग ख़डें हो إِنَّكَ لَا تُسْمِعُ الْمَوْتَى وَلَا تُسْمِعُ الصُّمَّ الدُّعَاء إِذَا وَلَّوْا مُدْبِرِينَ
81 और न तुम अंधें को उनकी गुमराही से राह पर ला सकते हो तुम तो बस उन्हीं लोगों को (अपनी बात) सुना सकते हो जो हमारी आयतों पर ईमान रखते हैं وَمَا أَنتَ بِهَادِي الْعُمْيِ عَن ضَلَالَتِهِمْ إِن تُسْمِعُ إِلَّا مَن يُؤْمِنُ بِآيَاتِنَا فَهُم مُّسْلِمُونَ
82 फिर वही लोग तो मानने वाले भी हैं जब उन लोगों पर (क़यामत का) वायदा पूरा होगा तो हम उनके वास्ते ज़मीन से एक चलने वाला निकाल खड़ा करेंगे जो उनसे ये बाते करेंगा कि (फलॉ फला) लोग हमारी आयतो का यक़ीन नहीं रखते थे وَإِذَا وَقَعَ الْقَوْلُ عَلَيْهِمْ أَخْرَجْنَا لَهُمْ دَابَّةً مِّنَ الْأَرْضِ تُكَلِّمُهُمْ أَنَّ النَّاسَ كَانُوا بِآيَاتِنَا لَا يُوقِنُونَ
83 और (उस दिन को याद करो) जिस दिन हम हर उम्मत से एक ऐसे गिरोह को जो हमारी आयतों को झुठलाया करते थे (ज़िन्दा करके) जमा करेंगे फिर उन की टोलियाँ अलहदा अलहदा करेंगे وَيَوْمَ نَحْشُرُ مِن كُلِّ أُمَّةٍ فَوْجًا مِّمَّن يُكَذِّبُ بِآيَاتِنَا فَهُمْ يُوزَعُونَ
84 यहाँ तक कि जब वह सब (ख़ुदा के सामने) आएँगें और ख़ुदा उनसे कहेगा क्या तुम ने हमारी आयतों को बगैर अच्छी तरह समझे बूझे झुठलाया-भला तुम क्या क्या करते थे और चूँकि ये लोग ज़ुल्म किया करते थे حَتَّى إِذَا جَاؤُوا قَالَ أَكَذَّبْتُم بِآيَاتِي وَلَمْ تُحِيطُوا بِهَا عِلْمًا أَمَّاذَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ
85 इन पर (अज़ाब का) वायदा पूरा हो गया फिर ये लोग कुछ बोल भी तो न सकेंगें وَوَقَعَ الْقَوْلُ عَلَيْهِم بِمَا ظَلَمُوا فَهُمْ لَا يَنطِقُونَ
86 क्या इन लोगों ने ये भी न देखा कि हमने रात को इसलिए बनाया कि ये लोग इसमे चैन करें और दिन को रौशन (ताकि देखभाल करे) बेशक इसमें ईमान लाने वालों के लिए (कुदरते ख़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं أَلَمْ يَرَوْا أَنَّا جَعَلْنَا اللَّيْلَ لِيَسْكُنُوا فِيهِ وَالنَّهَارَ مُبْصِرًا إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ
87 और (उस दिन याद करो) जिस दिन सूर फूँका जाएगा तो जितने लोग आसमानों मे हैं और जितने लोग ज़मीन में हैं (ग़रज़ सब के सब) दहल जाएंगें मगर जिस शख्स को ख़ुदा चाहे (वो अलबत्ता मुतमइन रहेगा) और सब लोग उसकी बारगाह में ज़िल्लत व आजिज़ी की हालत में हाज़िर होगें وَيَوْمَ يُنفَخُ فِي الصُّورِ فَفَزِعَ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَمَن فِي الْأَرْضِ إِلَّا مَن شَاء اللَّهُ وَكُلٌّ أَتَوْهُ دَاخِرِينَ
88 और तुम पहाड़ों को देखकर उन्हें मज़बूर जमे हुए समझतें हो हालाकि ये (क़यामत के दिन) बादल की तरह उड़े उडे फ़िरेगें (ये भी) ख़ुदा की कारीगरी है कि जिसने हर चीज़ को ख़ूब मज़बूत बनाया है बेशक जो कुछ तुम लोग करते हो उससे वह ख़ूब वाक़िफ़ है وَتَرَى الْجِبَالَ تَحْسَبُهَا جَامِدَةً وَهِيَ تَمُرُّ مَرَّ السَّحَابِ صُنْعَ اللَّهِ الَّذِي أَتْقَنَ كُلَّ شَيْءٍ إِنَّهُ خَبِيرٌ بِمَا تَفْعَلُونَ
89 जो शख्स नेक काम करेगा उसके लिए उसकी जज़ा उससे कहीं बेहतर है ओर ये लोग उस दिन ख़ौफ व ख़तरे से महफूज़ रहेंगे مَن جَاء بِالْحَسَنَةِ فَلَهُ خَيْرٌ مِّنْهَا وَهُم مِّن فَزَعٍ يَوْمَئِذٍ آمِنُونَ
90 और जो लोग बुरा काम करेंगे वह मुँह के बल जहन्नुम में झोक दिए जाएँगे (और उनसे कहा जाएगा कि) जो कुछ तुम (दुनिया में) करते थे बस उसी का जज़ा तुम्हें दी जाएगी وَمَن جَاء بِالسَّيِّئَةِ فَكُبَّتْ وُجُوهُهُمْ فِي النَّارِ هَلْ تُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ
91 (ऐ रसूल उनसे कह दो कि) मुझे तो बस यही हुक्म दिया गया है कि मै इस शहर (मक्का) के मालिक की इबादत करुँ जिसने उसे इज्ज़त व हुरमत दी है और हर चीज़ उसकी है और मुझे ये हुक्म दिया गया कि मै (उसके) फरमाबरदार बन्दों में से हूँ إِنَّمَا أُمِرْتُ أَنْ أَعْبُدَ رَبَّ هَذِهِ الْبَلْدَةِ الَّذِي حَرَّمَهَا وَلَهُ كُلُّ شَيْءٍ وَأُمِرْتُ أَنْ أَكُونَ مِنَ الْمُسْلِمِينَ
92 और ये कि मै क़ुरान पढ़ा करुँ फिर जो शख्स राह पर आया तो अपनी ज़ात के नफे क़े वास्ते राह पर आया और जो गुमराह हुआ तो तुम कह दो कि मै भी एक एक डराने वाला हूँ وَأَنْ أَتْلُوَ الْقُرْآنَ فَمَنِ اهْتَدَى فَإِنَّمَا يَهْتَدِي لِنَفْسِهِ وَمَن ضَلَّ فَقُلْ إِنَّمَا أَنَا مِنَ الْمُنذِرِينَ
93 और तुम कह दो कि अल्हमदोलिल्लाह वह अनक़रीब तुम्हें (अपनी क़ुदरत की) निशानियाँ दिखा देगा तो तुम उन्हें पहचान लोगे और जो कुछ तुम करते हो तुम्हारा परवरदिगार उससे ग़ाफिल नहीं है وَقُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ سَيُرِيكُمْ آيَاتِهِ فَتَعْرِفُونَهَا وَمَا رَبُّكَ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ
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