Al-Qasas

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Hindi: Suhel Farooq Khan and Saifur Rahman Nadwi

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# Translation Ayah
1 ता सीन मीम طسم
2 (ऐ रसूल) ये वाज़ेए व रौशन किताब की आयतें हैं تِلْكَ آيَاتُ الْكِتَابِ الْمُبِينِ
3 (जिसमें) हम तुम्हारें सामने मूसा और फिरऔन का वाक़िया ईमानदार लोगों के नफ़े के वास्ते ठीक ठीक बयान करते हैं نَتْلُوا عَلَيْكَ مِن نَّبَإِ مُوسَى وَفِرْعَوْنَ بِالْحَقِّ لِقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ
4 बेशक फिरऔन ने (मिस्र की) सरज़मीन में बहुत सर उठाया था और उसने वहाँ के रहने वालों को कई गिरोह कर दिया था उनमें से एक गिरोह (बनी इसराइल) को आजिज़ कर रखा थ कि उनके बेटों को ज़बाह करवा देता था और उनकी औरतों (बेटियों) को ज़िन्दा छोड़ देता था बेशक वह भी मुफ़सिदों में था إِنَّ فِرْعَوْنَ عَلَا فِي الْأَرْضِ وَجَعَلَ أَهْلَهَا شِيَعًا يَسْتَضْعِفُ طَائِفَةً مِّنْهُمْ يُذَبِّحُ أَبْنَاءهُمْ وَيَسْتَحْيِي نِسَاءهُمْ إِنَّهُ كَانَ مِنَ الْمُفْسِدِينَ
5 और हम तो ये चाहते हैं कि जो लोग रुए ज़मीन में कमज़ोर कर दिए गए हैं उनपर एहसान करे और उन्हींको (लोगों का) पेशवा बनाएँ और उन्हीं को इस (सरज़मीन) का मालिक बनाएँ وَنُرِيدُ أَن نَّمُنَّ عَلَى الَّذِينَ اسْتُضْعِفُوا فِي الْأَرْضِ وَنَجْعَلَهُمْ أَئِمَّةً وَنَجْعَلَهُمُ الْوَارِثِينَ
6 और उन्हीं को रुए ज़मीन पर पूरी क़ुदरत अता करे और फिरऔन और हामान और उन दोनों के लश्करो को उन्हीं कमज़ोरों के हाथ से वह चीज़ें दिखायें जिससे ये लोग डरते थे وَنُمَكِّنَ لَهُمْ فِي الْأَرْضِ وَنُرِي فِرْعَوْنَ وَهَامَانَ وَجُنُودَهُمَا مِنْهُم مَّا كَانُوا يَحْذَرُونَ
7 और हमने मूसा की माँ के पास ये वही भेजी कि तुम उसको दूध पिला लो फिर जब उसकी निस्बत तुमको कोई ख़ौफ हो तो इसको (एक सन्दूक़ में रखकर) दरिया में डाल दो और (उस पर) तुम कुछ न डरना और न कुढ़ना (तुम इतमेनान रखो) हम उसको फिर तुम्हारे पास पहुँचा देगें और उसको (अपना) रसूल बनाएँगें وَأَوْحَيْنَا إِلَى أُمِّ مُوسَى أَنْ أَرْضِعِيهِ فَإِذَا خِفْتِ عَلَيْهِ فَأَلْقِيهِ فِي الْيَمِّ وَلَا تَخَافِي وَلَا تَحْزَنِي إِنَّا رَادُّوهُ إِلَيْكِ وَجَاعِلُوهُ مِنَ الْمُرْسَلِينَ
8 (ग़रज़ मूसा की माँ ने दरिया में डाल दिया) वह सन्दूक़ बहते बहते फिरऔन के महल के पास आ लगा तो फिरऔन के लोगों ने उसे उठा लिया ताकि (एक दिन यही) उनका दुश्मन और उनके राज का बायस बने इसमें शक नहीं कि फिरऔन और हामान उन दोनों के लश्कर ग़लती पर थे فَالْتَقَطَهُ آلُ فِرْعَوْنَ لِيَكُونَ لَهُمْ عَدُوًّا وَحَزَنًا إِنَّ فِرْعَوْنَ وَهَامَانَ وَجُنُودَهُمَا كَانُوا خَاطِئِينَ
9 और (जब मूसा महल में लाए गए तो) फिरऔन की बीबी (आसिया अपने शौहर से) बोली कि ये मेरी और तुम्हारी (दोनों की) ऑंखों की ठन्डक है तो तुम लोग इसको क़त्ल न करो क्या अजब है कि ये हमको नफ़ा पहुँचाए या हम उसे ले पालक ही बना लें और उन्हें (उसी के हाथ से बर्बाद होने की) ख़बर न थी وَقَالَتِ امْرَأَتُ فِرْعَوْنَ قُرَّتُ عَيْنٍ لِّي وَلَكَ لَا تَقْتُلُوهُ عَسَى أَن يَنفَعَنَا أَوْ نَتَّخِذَهُ وَلَدًا وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ
10 इधर तो ये हो रहा था और (उधर) मूसा की माँ का दिल ऐसा बेचैन हो गया कि अगर हम उसके दिल को मज़बूत कर देते तो क़रीब था कि मूसा का हाल ज़ाहिर कर देती (और हमने इसीलिए ढारस दी) ताकि वह (हमारे वायदे का) यक़ीन रखे وَأَصْبَحَ فُؤَادُ أُمِّ مُوسَى فَارِغًا إِن كَادَتْ لَتُبْدِي بِهِ لَوْلَا أَن رَّبَطْنَا عَلَى قَلْبِهَا لِتَكُونَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ
11 और मूसा की माँ ने (दरिया में डालते वक्त) उनकी बहन (कुलसूम) से कहा कि तुम इसके पीछे पीछे (अलग) चली जाओ तो वह मूसा को दूर से देखती रही और उन लोगो को उसकी ख़बर भी न हुई وَقَالَتْ لِأُخْتِهِ قُصِّيهِ فَبَصُرَتْ بِهِ عَن جُنُبٍ وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ
12 और हमने मूसा पर पहले ही से और दाईयों (के दूध) को हराम कर दिया था (कि किसी की छाती से मुँह न लगाया) तब मूसा की बहन बोली भला मै तुम्हें एक घराने का पता बताऊ कि वह तुम्हारी ख़ातिर इस बच्चे की परवरिश कर देंगे और वह यक़ीनन इसके खैरख्वाह होगे وَحَرَّمْنَا عَلَيْهِ الْمَرَاضِعَ مِن قَبْلُ فَقَالَتْ هَلْ أَدُلُّكُمْ عَلَى أَهْلِ بَيْتٍ يَكْفُلُونَهُ لَكُمْ وَهُمْ لَهُ نَاصِحُونَ
13 ग़रज़ (इस तरकीब से) हमने मूसा को उसकी माँ तक फिर पहुँचा दिया ताकि उसकी ऑंख ठन्डी हो जाए और रंज न करे और ताकि समझ ले ख़ुदा का वायदा बिल्कुल ठीक है मगर उनमें के अक्सर नहीं जानते हैं فَرَدَدْنَاهُ إِلَى أُمِّهِ كَيْ تَقَرَّ عَيْنُهَا وَلَا تَحْزَنَ وَلِتَعْلَمَ أَنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ وَلَكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ
14 और जब मूसा अपनी जवानी को पहुँचे और (हाथ पाँव निकाल के) दुरुस्त हो गए तो हमने उनको हिकमत और इल्म अता किया और नेकी करने वालों को हम यूँ जज़ाए खैर देते हैं وَلَمَّا بَلَغَ أَشُدَّهُ وَاسْتَوَى آتَيْنَاهُ حُكْمًا وَعِلْمًا وَكَذَلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ
15 और एक दिन इत्तिफाक़न मूसा शहर में ऐसे वक्त अाए कि वहाँ के लोग (नींद की) ग़फलत में पडे हुए थे तो देखा कि वहाँ दो आदमी आपस में लड़े मरते हैं ये (एक) तो उनकी क़ौम (बनी इसराइल) में का है और वह (दूसरा) उनके दुश्मन की क़ौम (क़िब्ती) का है तो जो शख्स उनकी क़ौम का था उसने उस शख्स से जो उनके दुश्मनों में था (ग़लबा हासिल करने के लिए) मूसा से मदद माँगी ये सुनते ही मूसा ने उसे एक घूसा मारा था कि उसका काम तमाम हो गया फिर (ख्याल करके) कहने लगे ये शैतान का काम था इसमें शक नहीं कि वह दुश्मन और खुल्लम खुल्ला गुमराह करने वाला है وَدَخَلَ الْمَدِينَةَ عَلَى حِينِ غَفْلَةٍ مِّنْ أَهْلِهَا فَوَجَدَ فِيهَا رَجُلَيْنِ يَقْتَتِلَانِ هَذَا مِن شِيعَتِهِ وَهَذَا مِنْ عَدُوِّهِ فَاسْتَغَاثَهُ الَّذِي مِن شِيعَتِهِ عَلَى الَّذِي مِنْ عَدُوِّهِ فَوَكَزَهُ مُوسَى فَقَضَى عَلَيْهِ قَالَ هَذَا مِنْ عَمَلِ الشَّيْطَانِ إِنَّهُ عَدُوٌّ مُّضِلٌّ مُّبِينٌ
16 (फिर बारगाहे ख़ुदा में) अर्ज़ की परवरदिगार बेशक मैने अपने ऊपर आप ज़ुल्म किया (कि इस शहर में आया) तो तू मुझे (दुश्मनों से) पोशीदा रख-ग़रज़ ख़ुदा ने उन्हें पोशीदा रखा (इसमें तो शक नहीं कि वह बड़ा पोशीदा रखने वाला मेहरबान है) قَالَ رَبِّ إِنِّي ظَلَمْتُ نَفْسِي فَاغْفِرْ لِي فَغَفَرَ لَهُ إِنَّهُ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ
17 मूसा ने अर्ज क़ी परवरदिगार चूँकि तूने मुझ पर एहसान किया है मै भी आइन्दा गुनाहगारों का हरगिज़ मदद गार न बनूगाँ قَالَ رَبِّ بِمَا أَنْعَمْتَ عَلَيَّ فَلَنْ أَكُونَ ظَهِيرًا لِّلْمُجْرِمِينَ
18 ग़रज़ (रात तो जो त्यों गुज़री) सुबह को उम्मीदो बीम की हालत में मूसा शहर में गए तो क्या देखते हैं कि वही शख्स जिसने कल उनसे मदद माँगी थी उनसे (फिर) फरियाद कर रहा है-मूसा ने उससे कहा बेशक तू यक़ीनी खुल्लम खुल्ला गुमराह है فَأَصْبَحَ فِي الْمَدِينَةِ خَائِفًا يَتَرَقَّبُ فَإِذَا الَّذِي اسْتَنصَرَهُ بِالْأَمْسِ يَسْتَصْرِخُهُ قَالَ لَهُ مُوسَى إِنَّكَ لَغَوِيٌّ مُّبِينٌ
19 ग़रज़ जब मूसा ने चाहा कि उस शख्स पर जो दोनों का दुश्मन था (छुड़ाने के लिए) हाथ बढ़ाएँ तो क़िब्ती कहने लगा कि ऐ मूसा जिस तरह तुमने कल एक आदमी को मार डाला (उसी तरह) मुझे भी मार डालना चाहते हो तो तुम बस ये चाहते हो कि रुए ज़मीन में सरकश बन कर रहो और मसलह (क़ौम) बनकर रहना नहीं चाहते فَلَمَّا أَنْ أَرَادَ أَن يَبْطِشَ بِالَّذِي هُوَ عَدُوٌّ لَّهُمَا قَالَ يَا مُوسَى أَتُرِيدُ أَن تَقْتُلَنِي كَمَا قَتَلْتَ نَفْسًا بِالْأَمْسِ إِن تُرِيدُ إِلَّا أَن تَكُونَ جَبَّارًا فِي الْأَرْضِ وَمَا تُرِيدُ أَن تَكُونَ مِنَ الْمُصْلِحِينَ
20 और एक शख्स शहर के उस किनारे से डराता हुआ आया और (मूसा से) कहने लगा मूसा (तुम ये यक़ीन जानो कि शहर के) बड़े बड़े आदमी तुम्हारे आदमी तुम्हारे बारे में मशवरा कर रहे हैं कि तुमको कत्ल कर डालें तो तुम (शहर से) निकल भागो وَجَاء رَجُلٌ مِّنْ أَقْصَى الْمَدِينَةِ يَسْعَى قَالَ يَا مُوسَى إِنَّ الْمَلَأَ يَأْتَمِرُونَ بِكَ لِيَقْتُلُوكَ فَاخْرُجْ إِنِّي لَكَ مِنَ النَّاصِحِينَ
21 मै तुमसे ख़ैरख्वाहाना (भलाइ के लिए) कहता हूँ ग़रज़ मूसा वहाँ से उम्मीद व बीम की हालत में निकल खडे हुए और (बारगाहे ख़ुदा में) अर्ज़ की परवरदिगार मुझे ज़ालिम लोगों (के हाथ) से नजात दे فَخَرَجَ مِنْهَا خَائِفًا يَتَرَقَّبُ قَالَ رَبِّ نَجِّنِي مِنَ الْقَوْمِ الظَّالِمِينَ
22 और जब मदियन की तरफ रुख़ किया (और रास्ता मालूम न था) तो आप ही आप बोले मुझे उम्मीद है कि मेरा परवरदिगार मुझे सीधे रास्ता दिखा दे وَلَمَّا تَوَجَّهَ تِلْقَاء مَدْيَنَ قَالَ عَسَى رَبِّي أَن يَهْدِيَنِي سَوَاء السَّبِيلِ
23 और (आठ दिन फाक़ा करते चले) जब शहर मदियन के कुओं पर (जो शहर के बाहर था) पहुँचें तो कुओं पर लोगों की भीड़ देखी कि वह (अपने जानवरों को) पानी पिला रहे हैं और उन सबके पीछे दो औरतो (हज़रत शुएब की बेटियों) को देखा कि वह (अपनी बकरियों को) रोके खड़ी है मूसा ने पूछा कि तुम्हारा क्या मतलब है वह बोली जब तक सब चरवाहे (अपने जानवरों को) ख़ूब छक के पानी पिला कर फिर न जाएँ हम नहीं पिला सकते और हमारे वालिद बहुत बूढे हैं وَلَمَّا وَرَدَ مَاء مَدْيَنَ وَجَدَ عَلَيْهِ أُمَّةً مِّنَ النَّاسِ يَسْقُونَ وَوَجَدَ مِن دُونِهِمُ امْرَأتَيْنِ تَذُودَانِ قَالَ مَا خَطْبُكُمَا قَالَتَا لَا نَسْقِي حَتَّى يُصْدِرَ الرِّعَاء وَأَبُونَا شَيْخٌ كَبِيرٌ
24 तब मूसा ने उन की (बकरियों) के लिए (पानी खीच कर) पिला दिया फिर वहाँ से हट कर छांव में जा बैठे तो (चूँकि बहुत भूक थी) अर्ज क़ी परवरदिगार (उस वक्त) ज़ो नेअमत तू मेरे पास भेज दे मै उसका सख्त हाजत मन्द हूँ فَسَقَى لَهُمَا ثُمَّ تَوَلَّى إِلَى الظِّلِّ فَقَالَ رَبِّ إِنِّي لِمَا أَنزَلْتَ إِلَيَّ مِنْ خَيْرٍ فَقِيرٌ
25 इतने में उन्हीं दो मे से एक औरत शर्मीली चाल से आयी (और मूसा से) कहने लगी-मेरे वालिद तुम को बुलाते हैं ताकि तुमने जो (हमारी बकरियों को) पानी पिला दिया है तुम्हें उसकी मज़दूरी दे ग़रज़ जब मूसा उनके पास आए और उनसे अपने किस्से बयान किए तो उन्होंने कहा अब कुछ अन्देशा न करो तुमने ज़ालिम लोगों के हाथ से नजात पायी فَجَاءتْهُ إِحْدَاهُمَا تَمْشِي عَلَى اسْتِحْيَاء قَالَتْ إِنَّ أَبِي يَدْعُوكَ لِيَجْزِيَكَ أَجْرَ مَا سَقَيْتَ لَنَا فَلَمَّا جَاءهُ وَقَصَّ عَلَيْهِ الْقَصَصَ قَالَ لَا تَخَفْ نَجَوْتَ مِنَ الْقَوْمِ الظَّالِمِينَ
26 (इसी असना में) उन दोनों में से एक लड़की ने कहा ऐ अब्बा इन को नौकर रख लीजिए क्योंकि आप जिसको भी नौकर रखें सब में बेहतर वह है जो मज़बूत और अमानतदार हो قَالَتْ إِحْدَاهُمَا يَا أَبَتِ اسْتَأْجِرْهُ إِنَّ خَيْرَ مَنِ اسْتَأْجَرْتَ الْقَوِيُّ الْأَمِينُ
27 (और इनमें दोनों बातें पायी जाती हैं तब) शुएब ने कहा मै चाहता हूँ कि अपनी दोनों लड़कियों में से एक के साथ तुम्हारा इस (महर) पर निकाह कर दूँ कि तुम आठ बरस तक मेरी नौकरी करो और अगर तुम दस बरस पूरे कर दो तो तुम्हारा एहसान और मै तुम पर मेहनत मशक्क़त भी डालना नही चाहता और तुम मुझे इन्शा अल्लाह नेको कार आदमी पाओगे قَالَ إِنِّي أُرِيدُ أَنْ أُنكِحَكَ إِحْدَى ابْنَتَيَّ هَاتَيْنِ عَلَى أَن تَأْجُرَنِي ثَمَانِيَ حِجَجٍ فَإِنْ أَتْمَمْتَ عَشْرًا فَمِنْ عِندِكَ وَمَا أُرِيدُ أَنْ أَشُقَّ عَلَيْكَ سَتَجِدُنِي إِن شَاء اللَّهُ مِنَ الصَّالِحِينَ
28 मूसा ने कहा ये मेरे और आप के दरमियान (मुहाएदा) है दोनों मुद्दतों मे से मै जो भी पूरी कर दूँ (मुझे एख्तियार है) फिर मुझ पर जब्र और ज्यादती (देने का आपको हक़) नहीं और हम आप जो कुछ कर रहे हैं (उसका) ख़ुदा गवाह है قَالَ ذَلِكَ بَيْنِي وَبَيْنَكَ أَيَّمَا الْأَجَلَيْنِ قَضَيْتُ فَلَا عُدْوَانَ عَلَيَّ وَاللَّهُ عَلَى مَا نَقُولُ وَكِيلٌ
29 ग़रज़ मूसा का छोटी लड़की से निकाह हो गया और रहने लगे फिर जब मूसा ने अपनी (दस बरस की) मुद्दत पूरी की और बीवी को लेकर चले तो अंधेरीरात जाड़ों के दिन राह भूल गए और बीबी सफ़ूरा को दर्द ज़ेह शुरु हुआ (इतने में) कोहेतूर की तरफ आग दिखायी दी तो अपने लड़के बालों से कहा तुम लोग ठहरो मैने यक़ीनन आग देखी है (मै वहाँ जाता हूँ) क्या अजब है वहाँ से (रास्ते की) कुछ ख़बर लाऊँ या आग की कोई चिंगारी (लेता आऊँ) ताकि तुम लोग तापो فَلَمَّا قَضَى مُوسَىالْأَجَلَ وَسَارَ بِأَهْلِهِ آنَسَ مِن جَانِبِ الطُّورِ نَارًا قَالَ لِأَهْلِهِ امْكُثُوا إِنِّي آنَسْتُ نَارًا لَّعَلِّي آتِيكُم مِّنْهَا بِخَبَرٍ أَوْ جَذْوَةٍ مِنَ النَّارِ لَعَلَّكُمْ تَصْطَلُونَ
30 ग़रज़ जब मूसा आग के पास आए तो मैदान के दाहिने किनारे से इस मुबारक जगह में एक दरख्त से उन्हें आवाज़ आयी कि ऐ मूसा इसमें शक नहीं कि मै ही अल्लाह सारे जहाँ का पालने वाला हूँ فَلَمَّا أَتَاهَا نُودِي مِن شَاطِئِ الْوَادِي الْأَيْمَنِ فِي الْبُقْعَةِ الْمُبَارَكَةِ مِنَ الشَّجَرَةِ أَن يَا مُوسَى إِنِّي أَنَا اللَّهُ رَبُّ الْعَالَمِينَ
31 और यह (भी आवाज़ आयी) कि तुम आपनी छड़ी (ज़मीन पर) डाल दो फिर जब (डाल दिया तो) देखा कि वह इस तरह बल खा रही है कि गोया वह (ज़िन्दा) अजदहा है तो पीठ फेरके भागे और पीछे मुड़कर भी न देखा (तो हमने फरमाया) ऐ मूसा आगे आओ और डरो नहीं तुम पर हर तरह अमन व अमान में हो وَأَنْ أَلْقِ عَصَاكَ فَلَمَّا رَآهَا تَهْتَزُّ كَأَنَّهَا جَانٌّ وَلَّى مُدْبِرًا وَلَمْ يُعَقِّبْ يَا مُوسَى أَقْبِلْ وَلَا تَخَفْ إِنَّكَ مِنَ الْآمِنِينَ
32 (अच्छा और लो) अपना हाथ गरेबान में डालो (और निकाल लो) तो सफेद बुर्राक़ होकर बेऐब निकल आया और ख़ौफ की (वजह) से अपने बाजू अपनी तरफ समेट लो (ताकि ख़ौफ जाता रहे) ग़रज़ ये दोनों (असा व यदे बैज़ा) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से (तुम्हारी नुबूवत की) दो दलीलें फिरऔन और उसके दरबार के सरदारों के वास्ते हैं और इसमें शक नहीं कि वह बदकार लोग थे اسْلُكْ يَدَكَ فِي جَيْبِكَ تَخْرُجْ بَيْضَاء مِنْ غَيْرِ سُوءٍ وَاضْمُمْ إِلَيْكَ جَنَاحَكَ مِنَ الرَّهْبِ فَذَانِكَ بُرْهَانَانِ مِن رَّبِّكَ إِلَى فِرْعَوْنَ وَمَلَئِهِ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمًا فَاسِقِينَ
33 मूसा ने अर्ज़ की परवरदिगार मैने उनमें से एक शख्स को मार डाला था तो मै डरता हूँ कहीं (उसके बदले) मुझे न मार डालें قَالَ رَبِّ إِنِّي قَتَلْتُ مِنْهُمْ نَفْسًا فَأَخَافُ أَن يَقْتُلُونِ
34 और मेरा भाई हारुन वह मुझसे (ज़बान में ज्यादा) फ़सीह है तो तू उसे मेरे साथ मेरा मददगार बनाकर भेज कि वह मेरी तसदीक करे क्योंकि यक़ीनन मै इस बात से डरता हूँ कि मुझे वह लोग झुठला देंगे (तो उनके जवाब के लिए गोयाइ की ज़रुरत है) وَأَخِي هَارُونُ هُوَ أَفْصَحُ مِنِّي لِسَانًا فَأَرْسِلْهُ مَعِيَ رِدْءًا يُصَدِّقُنِي إِنِّي أَخَافُ أَن يُكَذِّبُونِ
35 फ़रमाया अच्छा हम अनक़रीब तुम्हारे भाई की वजह से तुम्हारे बाज़ू क़वी कर देगें और तुम दोनों को ऐसा ग़लबा अता करेंगें कि फिरऔनी लोग तुम दोनों तक हमारे मौजिज़े की वजह से पहुँच भी न सकेंगे लो जाओ तुम दोनो और तुम्हारे पैरवी करने वाले गालिब रहेंगे قَالَ سَنَشُدُّ عَضُدَكَ بِأَخِيكَ وَنَجْعَلُ لَكُمَا سُلْطَانًا فَلَا يَصِلُونَ إِلَيْكُمَا بِآيَاتِنَا أَنتُمَا وَمَنِ اتَّبَعَكُمَا الْغَالِبُونَ
36 ग़रज़ जब मूसा हमारे वाजेए व रौशन मौजिज़े लेकर उनके पास आए तो वह लोग कहने लगे कि ये तो बस अपने दिल का गढ़ा हुआ जादू है और हमने तो अपने अगले बाप दादाओं (के ज़माने) में ऐसी बात सुनी भी नहीें فَلَمَّا جَاءهُم مُّوسَى بِآيَاتِنَا بَيِّنَاتٍ قَالُوا مَا هَذَا إِلَّا سِحْرٌ مُّفْتَرًى وَمَا سَمِعْنَا بِهَذَا فِي آبَائِنَا الْأَوَّلِينَ
37 और मूसा ने कहा मेरा परवरदिगार उस शख्स से ख़ूब वाक़िफ़ है जो उसकी बारगाह से हिदायत लेकर आया है और उस शख्स से भी जिसके लिए आख़िरत का घर है इसमें तो शक ही नहीं कि ज़ालिम लोग कामयाब नहीं होते وَقَالَ مُوسَى رَبِّي أَعْلَمُ بِمَن جَاء بِالْهُدَى مِنْ عِندِهِ وَمَن تَكُونُ لَهُ عَاقِبَةُ الدَّارِ إِنَّهُ لَا يُفْلِحُ الظَّالِمُونَ
38 और (ये सुनकर) फिरऔन ने कहा ऐ मेरे दरबार के सरदारों मुझ को तो अपने सिवा तुम्हारा कोई परवरदिगार मालूम नही होता (और मूसा दूसरे को ख़ुदा बताता है) तो ऐ हामान (वज़ीर फिरऔन) तुम मेरे वास्ते मिट्टी (की ईटों) का पजावा सुलगाओ फिर मेरे वास्ते एक पुख्ता महल तैयार कराओ ताकि मै (उस पर चढ़ कर) मूसा के ख़ुदा को देंखू और मै तो यक़ीनन मूसा को झूठा समझता हूँ وَقَالَ فِرْعَوْنُ يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ مَا عَلِمْتُ لَكُم مِّنْ إِلَهٍ غَيْرِي فَأَوْقِدْ لِي يَا هَامَانُ عَلَى الطِّينِ فَاجْعَل لِّي صَرْحًا لَّعَلِّي أَطَّلِعُ إِلَى إِلَهِ مُوسَى وَإِنِّي لَأَظُنُّهُ مِنَ الْكَاذِبِينَ
39 और फिरऔन और उसके लश्कर ने रुए ज़मीन में नाहक़ सर उठाया था और उन लोगों ने समझ लिया था कि हमारी बारगाह मे वह कभी पलट कर नही आएँगे وَاسْتَكْبَرَ هُوَ وَجُنُودُهُ فِي الْأَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَظَنُّوا أَنَّهُمْ إِلَيْنَا لَا يُرْجَعُونَ
40 तो हमने उसको और उसके लश्कर को ले डाला फिर उन सबको दरिया में डाल दिया तो (ऐ रसूल) ज़रा देखों तो कि ज़ालिमों का कैसा बुरा अन्जाम हुआ فَأَخَذْنَاهُ وَجُنُودَهُ فَنَبَذْنَاهُمْ فِي الْيَمِّ فَانظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الظَّالِمِينَ
41 और हमने उनको (गुमराहों का) पेशवा बनाया कि (लोगों को) जहन्नुम की तरफ बुलाते है और क़यामत के दिन (ऐसे बेकस होगें कि) उनको किसी तरह की मदद न दी जाएगी وَجَعَلْنَاهُمْ أَئِمَّةً يَدْعُونَ إِلَى النَّارِ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ لَا يُنصَرُونَ
42 और हमने दुनिया में भी तो लानत उन के पीछे लगा दी है और क़यामत के दिन उनके चेहरे बिगाड़ दिए जायेंगे وَأَتْبَعْنَاهُمْ فِي هَذِهِ الدُّنْيَا لَعْنَةً وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ هُم مِّنَ الْمَقْبُوحِينَ
43 और हमने बहुतेरी अगली उम्मतों को हलाक कर डाला उसके बाद मूसा को किताब (तौरैत) अता की जो लोगों के लिए अजसरतापा बसीरत और हिदायत और रहमत थी ताकि वह लोग इबरत व नसीहत हासिल करें وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ مِن بَعْدِ مَا أَهْلَكْنَا الْقُرُونَ الْأُولَى بَصَائِرَ لِلنَّاسِ وَهُدًى وَرَحْمَةً لَّعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ
44 और (ऐ रसूल) जिस वक्त हमने मूसा के पास अपना हुक्म भेजा था तो तुम (तूर के) मग़रिबी जानिब मौजूद न थे और न तुम उन वाक्यात को चश्मदीद देखने वालों में से थे وَمَا كُنتَ بِجَانِبِ الْغَرْبِيِّ إِذْ قَضَيْنَا إِلَى مُوسَى الْأَمْرَ وَمَا كُنتَ مِنَ الشَّاهِدِينَ
45 मगर हमने (मूसा के बाद) बहुतेरी उम्मतें पैदा की फिर उन पर एक ज़माना दराज़ गुज़र गया और न तुम मदैन के लोगों में रहे थे कि उनके सामने हमारी आयते पढ़ते (और न तुम को उन के हालात मालूम होते) मगर हम तो (तुमको) पैग़म्बर बनाकर भेजने वाले थे وَلَكِنَّا أَنشَأْنَا قُرُونًا فَتَطَاوَلَ عَلَيْهِمُ الْعُمُرُ وَمَا كُنتَ ثَاوِيًا فِي أَهْلِ مَدْيَنَ تَتْلُو عَلَيْهِمْ آيَاتِنَا وَلَكِنَّا كُنَّا مُرْسِلِينَ
46 और न तुम तूर की किसी जानिब उस वक्त मौजूद थे जब हमने (मूसा को) आवाज़ दी थी (ताकि तुम देखते) मगर ये तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी है ताकि तुम उन लोगों को जिनके पास तुमसे पहले कोई डराने वाला आया ही नहीं डराओ ताकि ये लोग नसीहत हासिल करें وَمَا كُنتَ بِجَانِبِ الطُّورِ إِذْ نَادَيْنَا وَلَكِن رَّحْمَةً مِّن رَّبِّكَ لِتُنذِرَ قَوْمًا مَّا أَتَاهُم مِّن نَّذِيرٍ مِّن قَبْلِكَ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ
47 और अगर ये नही होता कि जब उन पर उनकी अगली करतूतों की बदौलत कोई मुसीबत पड़ती तो बेसाख्ता कह बैठते कि परवरदिगार तूने हमारे पास कोई पैग़म्बर क्यों न भेजा कि हम तेरे हुक्मों पर चलते और ईमानदारों में होते (तो हम तुमको न भेजते ) وَلَوْلَا أَن تُصِيبَهُم مُّصِيبَةٌ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ فَيَقُولُوا رَبَّنَا لَوْلَا أَرْسَلْتَ إِلَيْنَا رَسُولًا فَنَتَّبِعَ آيَاتِكَ وَنَكُونَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ
48 मगर फिर जब हमारी बारगाह से (दीन) हक़ उनके पास पहुँचा तो कहने लगे जैसे (मौजिज़े) मूसा को अता हुए थे वैसे ही इस रसूल (मोहम्मद) को क्यों नही दिए गए क्या जो मौजिज़े इससे पहले मूसा को अता हुए थे उनसे इन लोगों ने इन्कार न किया था कुफ्फ़ार तो ये भी कह गुज़रे कि ये दोनों के दोनों (तौरैत व कुरान) जादू हैं कि बाहम एक दूसरे के मददगार हो गए हैं فَلَمَّا جَاءهُمُ الْحَقُّ مِنْ عِندِنَا قَالُوا لَوْلَا أُوتِيَ مِثْلَ مَا أُوتِيَ مُوسَى أَوَلَمْ يَكْفُرُوا بِمَا أُوتِيَ مُوسَى مِن قَبْلُ قَالُوا سِحْرَانِ تَظَاهَرَا وَقَالُوا إِنَّا بِكُلٍّ كَافِرُونَ
49 और ये भी कह चुके कि हम एब के मुन्किर हैं (ऐ रसूल) तुम (इन लोगों से) कह दो कि अगर सच्चे हो तो ख़ुदा की तरफ से एक ऐसी किताब जो इन दोनों से हिदायत में बेहतर हो ले आओ قُلْ فَأْتُوا بِكِتَابٍ مِّنْ عِندِ اللَّهِ هُوَ أَهْدَى مِنْهُمَا أَتَّبِعْهُ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ
50 कि मै भी उस पर चलँ फिर अगर ये लोग (इस पर भी) न मानें तो समझ लो कि ये लोग बस अपनी हवा व हवस की पैरवी करते है और जो शख्स ख़ुदा की हिदायत को छोड़ कर अपनी हवा व हवस की पैरवी करते है उससे ज्यादा गुमराह कौन होगा बेशक ख़ुदा सरकश लोगों को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता فَإِن لَّمْ يَسْتَجِيبُوا لَكَ فَاعْلَمْ أَنَّمَا يَتَّبِعُونَ أَهْوَاءهُمْ وَمَنْ أَضَلُّ مِمَّنِ اتَّبَعَ هَوَاهُ بِغَيْرِ هُدًى مِّنَ اللَّهِ إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ
51 और हम यक़ीनन लगातार (अपने एहकाम भेजकर) उनकी नसीहत करते रहे ताकि वह लोग नसीहत हासिल करें وَلَقَدْ وَصَّلْنَا لَهُمُ الْقَوْلَ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ
52 जिन लोगों को हमने इससे पहले किताब अता की है वह उस (क़ुरान) पर ईमान लाते हैं الَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ مِن قَبْلِهِ هُم بِهِ يُؤْمِنُونَ
53 और जब उनके सामने ये पढ़ा जाता है तो बोल उठते हैं कि हम तो इस पर ईमान ला चुके बेशक ये ठीक है (और) हमारे परवरदिगार की तरफ से है हम तो इसको पहले ही मानते थे وَإِذَا يُتْلَى عَلَيْهِمْ قَالُوا آمَنَّا بِهِ إِنَّهُ الْحَقُّ مِن رَّبِّنَا إِنَّا كُنَّا مِن قَبْلِهِ مُسْلِمِينَ
54 यही वह लोग हैं जिन्हें (इनके आमाले ख़ैर की) दोहरी जज़ा दी जाएगी-चूँकि उन लोगों ने सब्र किया और बदी को नेकी से दफ़ा करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें अता किया है उसमें से (हमारी राह में) ख़र्च करते हैं أُوْلَئِكَ يُؤْتَوْنَ أَجْرَهُم مَّرَّتَيْنِ بِمَا صَبَرُوا وَيَدْرَؤُونَ بِالْحَسَنَةِ السَّيِّئَةَ وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنفِقُونَ
55 और जब किसी से कोई बुरी बात सुनी तो उससे किनारा कश रहे और साफ कह दिया कि हमारे वास्ते हमारी कारगुज़ारियाँ हैं और तुम्हारे वास्ते तुम्हारी कारस्तानियाँ (बस दूर ही से) तुम्हें सलाम है हम जाहिलो (की सोहबत) के ख्वाहॉ नहीं وَإِذَا سَمِعُوا اللَّغْوَ أَعْرَضُوا عَنْهُ وَقَالُوا لَنَا أَعْمَالُنَا وَلَكُمْ أَعْمَالُكُمْ سَلَامٌ عَلَيْكُمْ لَا نَبْتَغِي الْجَاهِلِينَ
56 (ऐ रसूल) बेशक तुम जिसे चाहो मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचा सकते मगर हाँ जिसे खुदा चाहे मंज़िल मक़सूद तक पहुचाए और वही हिदायत याफ़ता लोगों से ख़ूब वाक़िफ़ है إِنَّكَ لَا تَهْدِي مَنْ أَحْبَبْتَ وَلَكِنَّ اللَّهَ يَهْدِي مَن يَشَاء وَهُوَ أَعْلَمُ بِالْمُهْتَدِينَ
57 (ऐ रसूल) कुफ्फ़ार (मक्का) तुमसे कहते हैं कि अगर हम तुम्हारे साथ दीन हक़ की पैरवी करें तो हम अपने मुल्क़ से उचक लिए जाएँ (ये क्या बकते है) क्या हमने उन्हें हरम (मक्का) में जहाँ हर तरह का अमन है जगह नहीं दी वहाँ हर किस्म के फल रोज़ी के वास्ते हमारी बारगाह से खिंचे चले जाते हैं मगर बहुतेरे लोग नहीं जाते وَقَالُوا إِن نَّتَّبِعِ الْهُدَى مَعَكَ نُتَخَطَّفْ مِنْ أَرْضِنَا أَوَلَمْ نُمَكِّن لَّهُمْ حَرَمًا آمِنًا يُجْبَى إِلَيْهِ ثَمَرَاتُ كُلِّ شَيْءٍ رِزْقًا مِن لَّدُنَّا وَلَكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ
58 और हमने तो बहुतेरी बस्तियाँ बरबाद कर दी जो अपनी मइशत (रोजी) में बहुत इतराहट से (ज़िन्दगी) बसर किया करती थीं-(तो देखो) ये उन ही के (उजड़े हुए) घर हैं जो उनके बाद फिर आबाद नहीं हुए मगर बहुत कम और (आख़िर) हम ही उनके (माल व असबाब के) वारिस हुए وَكَمْ أَهْلَكْنَا مِن قَرْيَةٍ بَطِرَتْ مَعِيشَتَهَا فَتِلْكَ مَسَاكِنُهُمْ لَمْ تُسْكَن مِّن بَعْدِهِمْ إِلَّا قَلِيلًا وَكُنَّا نَحْنُ الْوَارِثِينَ
59 और तुम्हारा परवरदिगार जब तक उन गाँव के सदर मक़ाम पर अपना पैग़म्बर न भेज ले और वह उनके सामने हमारी आयतें न पढ़ दे (उस वक्त तक) बस्तियों को बरबाद नहीं कर दिया करता-और हम तो बस्तियों को बरबाद करते ही नहीं जब तक वहाँ के लोग ज़ालिम न हों وَمَا كَانَ رَبُّكَ مُهْلِكَ الْقُرَى حَتَّى يَبْعَثَ فِي أُمِّهَا رَسُولًا يَتْلُو عَلَيْهِمْ آيَاتِنَا وَمَا كُنَّا مُهْلِكِي الْقُرَى إِلَّا وَأَهْلُهَا ظَالِمُونَ
60 और तुम लोगों को जो कुछ अता हुआ है तो दुनिया की (ज़रा सी) ज़िन्दगी का फ़ायदा और उसकी आराइश है और जो कुछ ख़ुदा के पास है वह उससे कही बेहतर और पाएदार है तो क्या तुम इतना भी नहीं समझते وَمَا أُوتِيتُم مِّن شَيْءٍ فَمَتَاعُ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَزِينَتُهَا وَمَا عِندَ اللَّهِ خَيْرٌ وَأَبْقَى أَفَلَا تَعْقِلُونَ
61 तो क्या वह शख्स जिससे हमने (बेहश्त का) अच्छा वायदा किया है और वह उसे पाकर रहेगा उस शख्स के बराबर हो सकता है जिसे हमने दुनियावी ज़िन्दगी के (चन्द रोज़ा) फायदे अता किए हैं और फिर क़यामत के दिन (जवाब देही के वास्ते हमारे सामने) हाज़िर किए जाएँगें أَفَمَن وَعَدْنَاهُ وَعْدًا حَسَنًا فَهُوَ لَاقِيهِ كَمَن مَّتَّعْنَاهُ مَتَاعَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ثُمَّ هُوَ يَوْمَ الْقِيَامَةِ مِنَ الْمُحْضَرِينَ
62 और जिस दिन ख़ुदा उन कुफ्फ़ार को पुकारेगा और पूछेगा कि जिनको तुम हमारा शरीक ख्याल करते थे वह (आज) कहाँ हैं (ग़रज़ वह शरीक भी बुलाँए जाएँगे) وَيَوْمَ يُنَادِيهِمْ فَيَقُولُ أَيْنَ شُرَكَائِيَ الَّذِينَ كُنتُمْ تَزْعُمُونَ
63 वह लोग जो हमारे अज़ाब के मुस्ताजिब हो चुके हैं कह देगे कि परवरदिगार यही वह लोग हैं जिन्हें हमने गुमराह किया था जिस तरह हम ख़़ुद गुमराह हुए उसी तरह हमने इनको गुमराह किया-अब हम तेरी बारगाह में (उनसे) दस्तबरदार होते है-ये लोग हमारी इबादत नहीं करते थे قَالَ الَّذِينَ حَقَّ عَلَيْهِمُ الْقَوْلُ رَبَّنَا هَؤُلَاء الَّذِينَ أَغْوَيْنَا أَغْوَيْنَاهُمْ كَمَا غَوَيْنَا تَبَرَّأْنَا إِلَيْكَ مَا كَانُوا إِيَّانَا يَعْبُدُونَ
64 और कहा जाएगा कि भला अपने उन शरीको को (जिन्हें तुम ख़ुदा समझते थे) बुलाओ तो ग़रज़ वह लोग उन्हें बुलाएँगे तो वह उन्हें जवाब तक नही देगें और (अपनी ऑंखों से) अज़ाब को देखेंगें काश ये लोग (दुनिया में) राह पर आए होते وَقِيلَ ادْعُوا شُرَكَاءكُمْ فَدَعَوْهُمْ فَلَمْ يَسْتَجِيبُوا لَهُمْ وَرَأَوُا الْعَذَابَ لَوْ أَنَّهُمْ كَانُوا يَهْتَدُونَ
65 और (वह दिन याद करो) जिस दिन ख़ुदा लोगों को पुकार कर पूछेगा कि तुम लोगों ने पैग़म्बरों को (उनके समझाने पर) क्या जवाब दिया وَيَوْمَ يُنَادِيهِمْ فَيَقُولُ مَاذَا أَجَبْتُمُ الْمُرْسَلِينَ
66 तब उस दिन उन्हें बातें न सूझ पडेग़ी (और) फिर बाहम एक दूसरे से पूछ भी न सकेगें فَعَمِيَتْ عَلَيْهِمُ الْأَنبَاء يَوْمَئِذٍ فَهُمْ لَا يَتَسَاءلُونَ
67 मगर हाँ जिस शख्स ने तौबा कर ली और ईमान लाया और अच्छे अच्छे काम किए तो क़रीब है कि ये लोग अपनी मुरादें पाने वालों से होंगे فَأَمَّا مَن تَابَ وَآمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَعَسَى أَن يَكُونَ مِنَ الْمُفْلِحِينَ
68 और तुम्हारा परवरदिगार जो चाहता है पैदा करता है और (जिसे चाहता है) मुन्तख़िब करता है और ये इन्तिख़ाब लोगों के एख्तियार में नहीं है और जिस चीज़ को ये लोग ख़ुदा का शरीक बनाते हैं उससे ख़ुदा पाक और (कहीं) बरतर है وَرَبُّكَ يَخْلُقُ مَا يَشَاء وَيَخْتَارُ مَا كَانَ لَهُمُ الْخِيَرَةُ سُبْحَانَ اللَّهِ وَتَعَالَى عَمَّا يُشْرِكُونَ
69 और (ऐ रसूल) ये लोग जो बातें अपने दिलों में छिपाते हैं और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं तुम्हारा परवरदिगार खूब जानता है وَرَبُّكَ يَعْلَمُ مَا تُكِنُّ صُدُورُهُمْ وَمَا يُعْلِنُونَ
70 और वही ख़ुदा है उसके सिवा कोई क़ाबिले परसतिश नहीं दुनिया और आख़िरत में उस की तारीफ़ है और उसकी हुकूमत है और तुम लोग (मरने के बाद) उसकी तरफ लौटाए जाओगे وَهُوَ اللَّهُ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ لَهُ الْحَمْدُ فِي الْأُولَى وَالْآخِرَةِ وَلَهُ الْحُكْمُ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ
71 (ऐ रसूल इन लोगों से) कहो कि भला तुमने देखा कि अगर ख़ुदा हमेशा के लिए क़यामत तक तुम्हारे सरों पर रात को छाए रहता तो अल्लाह के सिवा कौन ख़ुदा है जो तुम्हारे पास रौशनी ले आता तो क्या तुम सुनते नहीं हो قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِن جَعَلَ اللَّهُ عَلَيْكُمُ اللَّيْلَ سَرْمَدًا إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ مَنْ إِلَهٌ غَيْرُ اللَّهِ يَأْتِيكُم بِضِيَاء أَفَلَا تَسْمَعُونَ
72 (ऐ रसूल उन से) कह दो कि भला तुमने देखा कि अगर ख़ुदा क़यामत तक बराबर तुम्हारे सरों पर दिन किए रहता तो अल्लाह के सिवा कौन ख़ुदा है जो तुम्हारे लिए रात को ले आता कि तुम लोग इसमें रात को आराम करो तो क्या तुम लोग (इतना भी) नहीं देखते قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِن جَعَلَ اللَّهُ عَلَيْكُمُ النَّهَارَ سَرْمَدًا إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ مَنْ إِلَهٌ غَيْرُ اللَّهِ يَأْتِيكُم بِلَيْلٍ تَسْكُنُونَ فِيهِ أَفَلَا تُبْصِرُونَ
73 और उसने अपनी मेहरबानी से तुम्हारे वास्ते रात और दिन को बनाया ताकि तुम रात में आराम करो और दिन में उसके फज़ल व करम (रोज़ी) की तलाश करो और ताकि तुम लोग शुक्र करो وَمِن رَّحْمَتِهِ جَعَلَ لَكُمُ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ لِتَسْكُنُوا فِيهِ وَلِتَبْتَغُوا مِن فَضْلِهِ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
74 और (उस दिन को याद करो) जिस दिन वह उन्हें पुकार कर पूछेगा जिनको तुम लोग मेरा शरीक ख्याल करते थे वह (आज) कहाँ हैं وَيَوْمَ يُنَادِيهِمْ فَيَقُولُ أَيْنَ شُرَكَائِيَ الَّذِينَ كُنتُمْ تَزْعُمُونَ
75 और हम हर एक उम्मत से एक गवाह (पैग़म्बर) निकाले (सामने बुलाएँगे) फिर (उस दिन मुशरेकीन से) कहेंगे कि अपनी (बराअत की) दलील पेश करो तब उन्हें मालूम हो जाएगा कि हक़ ख़ुदा ही की तरफ़ है और जो इफ़तेरा परवाज़ियाँ ये लोग किया करते थे सब उनसे ग़ायब हो जाएँगी وَنَزَعْنَا مِن كُلِّ أُمَّةٍ شَهِيدًا فَقُلْنَا هَاتُوا بُرْهَانَكُمْ فَعَلِمُوا أَنَّ الْحَقَّ لِلَّهِ وَضَلَّ عَنْهُم مَّا كَانُوا يَفْتَرُونَ
76 (नाशुक्री का एक क़िस्सा सुनो) मूसा की क़ौम से एक शख्स कारुन (नामी) था तो उसने उन पर सरकशी शुरु की और हमने उसको इस क़दर ख़ज़ाने अता किए थे कि उनकी कुन्जियाँ एक सकतदार जमाअत (की जामअत) को उठाना दूभर हो जाता था जब (एक बार) उसकी क़ौम ने उससे कहा कि (अपनी दौलत पर) इतरा मत क्योंकि ख़ुदा इतराने वालों को दोस्त नहीं रखता إِنَّ قَارُونَ كَانَ مِن قَوْمِ مُوسَى فَبَغَى عَلَيْهِمْ وَآتَيْنَاهُ مِنَ الْكُنُوزِ مَا إِنَّ مَفَاتِحَهُ لَتَنُوءُ بِالْعُصْبَةِ أُولِي الْقُوَّةِ إِذْ قَالَ لَهُ قَوْمُهُ لَا تَفْرَحْ إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ الْفَرِحِينَ
77 और जो कुछ ख़ुदा ने तूझे दे रखा है उसमें आख़िरत के घर की भी जुस्तजू कर और दुनिया से जिस क़दर तेरा हिस्सा है मत भूल जा और जिस तरह ख़ुदा ने तेरे साथ एहसान किया है तू भी औरों के साथ एहसान कर और रुए ज़मीन में फसाद का ख्वाहा न हो-इसमें शक नहीं कि ख़ुदा फ़साद करने वालों को दोस्त नहीं रखता وَابْتَغِ فِيمَا آتَاكَ اللَّهُ الدَّارَ الْآخِرَةَ وَلَا تَنسَ نَصِيبَكَ مِنَ الدُّنْيَا وَأَحْسِن كَمَا أَحْسَنَ اللَّهُ إِلَيْكَ وَلَا تَبْغِ الْفَسَادَ فِي الْأَرْضِ إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ الْمُفْسِدِينَ
78 तो क़ारुन कहने लगा कि ये (माल व दौलत) तो मुझे अपने इल्म (कीमिया) की वजह से हासिल होता है क्या क़ारुन ने ये भी न ख्याल किया कि अल्लाह उसके पहले उन लोगों को हलाक़ कर चुका है जो उससे क़ूवत और हैसियत में कहीं बढ़ बढ़ के थे और गुनाहगारों से (उनकी सज़ा के वक्त) उनके गुनाहों की पूछताछ नहीं हुआ करती قَالَ إِنَّمَا أُوتِيتُهُ عَلَى عِلْمٍ عِندِي أَوَلَمْ يَعْلَمْ أَنَّ اللَّهَ قَدْ أَهْلَكَ مِن قَبْلِهِ مِنَ القُرُونِ مَنْ هُوَ أَشَدُّ مِنْهُ قُوَّةً وَأَكْثَرُ جَمْعًا وَلَا يُسْأَلُ عَن ذُنُوبِهِمُ الْمُجْرِمُونَ
79 ग़रज़ (एक दिन क़ारुन) अपनी क़ौम के सामने बड़ी आराइश और ठाठ के साथ निकला तो जो लोग दुनिया को (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी के तालिब थे (इस शान से देख कर) कहने लगे जो माल व दौलत क़ारुन को अता हुई है काश मेरे लिए भी होती इसमें शक नहीं कि क़ारुन बड़ा नसीब वर था فَخَرَجَ عَلَى قَوْمِهِ فِي زِينَتِهِ قَالَ الَّذِينَ يُرِيدُونَ الْحَيَاةَ الدُّنيَا يَا لَيْتَ لَنَا مِثْلَ مَا أُوتِيَ قَارُونُ إِنَّهُ لَذُو حَظٍّ عَظِيمٍ
80 और जिन लोगों को (हमारी बारगाह में) इल्म अता हुआ था कहनें लगे तुम्हारा नास हो जाए (अरे) जो शख्स ईमान लाए और अच्छे काम करे उसके लिए तो ख़ुदा का सवाब इससे कही बेहतर है और वह तो अब सब्र करने वालों के सिवा दूसरे नहीं पा सकते وَقَالَ الَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ وَيْلَكُمْ ثَوَابُ اللَّهِ خَيْرٌ لِّمَنْ آمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا وَلَا يُلَقَّاهَا إِلَّا الصَّابِرُونَ
81 और हमने क़ारुन और उसके घर बार को ज़मीन में धंसा दिया फिर ख़ुदा के सिवा कोई जमाअत ऐसी न थी कि उसकी मदद करती और न खुद आप अपनी मदद आप कर सका فَخَسَفْنَا بِهِ وَبِدَارِهِ الْأَرْضَ فَمَا كَانَ لَهُ مِن فِئَةٍ يَنصُرُونَهُ مِن دُونِ اللَّهِ وَمَا كَانَ مِنَ المُنتَصِرِينَ
82 और जिन लोगों ने कल उसके जाह व मरतबे की तमन्ना की थी वह (आज ये तमाशा देखकर) कहने लगे अरे माज़अल्लाह ये तो ख़ुदा ही अपने बन्दों से जिसकी रोज़ी चाहता है कुशादा कर देता है और जिसकी रोज़ी चाहता है तंग कर देता है और अगर (कहीं) ख़ुदा हम पर मेहरबानी न करता (और इतना माल दे देता) तो उसकी तरह हमको भी ज़रुर धॅसा देता-और माज़अल्लाह (सच है) हरगिज़ कुफ्फार अपनी मुरादें न पाएँगें وَأَصْبَحَ الَّذِينَ تَمَنَّوْا مَكَانَهُ بِالْأَمْسِ يَقُولُونَ وَيْكَأَنَّ اللَّهَ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَن يَشَاء مِنْ عِبَادِهِ وَيَقْدِرُ لَوْلَا أَن مَّنَّ اللَّهُ عَلَيْنَا لَخَسَفَ بِنَا وَيْكَأَنَّهُ لَا يُفْلِحُ الْكَافِرُونَ
83 ये आख़िरत का घर तो हम उन्हीं लोगों के लिए ख़ास कर देगें जो रुए ज़मीन पर न सरकशी करना चाहते हैं और न फसाद-और (सच भी यूँ ही है कि) फिर अन्जाम तो परहेज़गारों ही का है تِلْكَ الدَّارُ الْآخِرَةُ نَجْعَلُهَا لِلَّذِينَ لَا يُرِيدُونَ عُلُوًّا فِي الْأَرْضِ وَلَا فَسَادًا وَالْعَاقِبَةُ لِلْمُتَّقِينَ
84 जो शख्स नेकी करेगा तो उसके लिए उसे कहीं बेहतर बदला है औ जो बुरे काम करेगा तो वह याद रखे कि जिन लोगों ने बुराइयाँ की हैं उनका वही बदला हे जो दुनिया में करते रहे हैं مَن جَاء بِالْحَسَنَةِ فَلَهُ خَيْرٌ مِّنْهَا وَمَن جَاء بِالسَّيِّئَةِ فَلَا يُجْزَى الَّذِينَ عَمِلُوا السَّيِّئَاتِ إِلَّا مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ
85 (ऐ रसूल) ख़ुदा जिसने तुम पर क़ुरान नाज़िल किया ज़रुर ठिकाने तक पहुँचा देगा (ऐ रसूल) तुम कह दो कि कौन राह पर आया और कौन सरीही गुमराही में पड़ा रहा إِنَّ الَّذِي فَرَضَ عَلَيْكَ الْقُرْآنَ لَرَادُّكَ إِلَى مَعَادٍ قُل رَّبِّي أَعْلَمُ مَن جَاء بِالْهُدَى وَمَنْ هُوَ فِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ
86 इससे मेरा परवरदिगार ख़ूब वाक़िफ है और तुमको तो ये उम्मीद न थी कि तुम्हारे पास ख़ुदा की तरफ से किताब नाज़िल की जाएगी मगर तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी से नाज़िल हुई तो तुम हरग़िज़ काफिरों के पुश्त पनाह न बनना وَمَا كُنتَ تَرْجُو أَن يُلْقَى إِلَيْكَ الْكِتَابُ إِلَّا رَحْمَةً مِّن رَّبِّكَ فَلَا تَكُونَنَّ ظَهِيرًا لِّلْكَافِرِينَ
87 कहीं ऐसा न हो एहकामे ख़ुदा वन्दी नाज़िल होने के बाद तुमको ये लोग उनकी तबलीग़ से रोक दें और तुम अपने परवरदिगार की तरफ (लोगों को) बुलाते जाओ और ख़बरदार मुशरेकीन से हरगिज़ न होना وَلَا يَصُدُّنَّكَ عَنْ آيَاتِ اللَّهِ بَعْدَ إِذْ أُنزِلَتْ إِلَيْكَ وَادْعُ إِلَى رَبِّكَ وَلَا تَكُونَنَّ مِنَ الْمُشْرِكِينَ
88 और ख़ुदा के सिवा किसी और माबूद की परसतिश न करना उसके सिवा कोई क़ाबिले परसतिश नहीं उसकी ज़ात के सिवा हर चीज़ फना होने वाली है उसकी हुकूमत है और तुम लोग उसकी तरफ़ (मरने के बाद) लौटाये जाओगे وَلَا تَدْعُ مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آخَرَ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ كُلُّ شَيْءٍ هَالِكٌ إِلَّا وَجْهَهُ لَهُ الْحُكْمُ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ
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