Al-Furqan

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Hindi: Suhel Farooq Khan and Saifur Rahman Nadwi

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# Translation Ayah
1 (ख़ुदा) बहुत बाबरकत है जिसने अपने बन्दे (मोहम्मद) पर कुरान नाज़िल किया ताकि सारे जहॉन के लिए (ख़ुदा के अज़ाब से) डराने वाला हो تَبَارَكَ الَّذِي نَزَّلَ الْفُرْقَانَ عَلَى عَبْدِهِ لِيَكُونَ لِلْعَالَمِينَ نَذِيرًا
2 वह खुदा कि सारे आसमान व ज़मीन की बादशाहत उसी की है और उसने (किसी को) न अपना लड़का बनाया और न सल्तनत में उसका कोई शरीक है और हर चीज़ को (उसी ने पैदा किया) फिर उस अन्दाज़े से दुरुस्त किया الَّذِي لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَلَمْ يَتَّخِذْ وَلَدًا وَلَمْ يَكُن لَّهُ شَرِيكٌ فِي الْمُلْكِ وَخَلَقَ كُلَّ شَيْءٍ فَقَدَّرَهُ تَقْدِيرًا
3 और लोगों ने उसके सिवा दूसरे दूसरे माबूद बना रखें हैं जो कुछ भी पैदा नहीं कर सकते बल्कि वह खुद दूसरे के पैदा किए हुए हैं और वह खुद अपने लिए भी न नुक़सान पर क़ाबू रखते हैं न नफा पर और न मौत ही पर एख़्तियार रखते हैं और न ज़िन्दगी पर और न मरने बाद जी उठने पर وَاتَّخَذُوا مِن دُونِهِ آلِهَةً لَّا يَخْلُقُونَ شَيْئًا وَهُمْ يُخْلَقُونَ وَلَا يَمْلِكُونَ لِأَنفُسِهِمْ ضَرًّا وَلَا نَفْعًا وَلَا يَمْلِكُونَ مَوْتًا وَلَا حَيَاةً وَلَا نُشُورًا
4 और जो लोग काफिर हो गए बोल उठे कि ये (क़ुरान) तो निरा झूठ है जिसे उस शख्स (रसूल) ने अपने जी से गढ़ लिया और कुछ और लोगों ने इस इफतिरा परवाज़ी में उसकी मदद भी की है وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا إِنْ هَذَا إِلَّا إِفْكٌ افْتَرَاهُ وَأَعَانَهُ عَلَيْهِ قَوْمٌ آخَرُونَ فَقَدْ جَاؤُوا ظُلْمًا وَزُورًا
5 तो यक़ीनन ख़ुद उन ही लोगों ने ज़ुल्म व फरेब किया है और (ये भी) कहा कि (ये तो) अगले लोगों के ढकोसले हैं जिसे उसने किसी से लिखवा लिया है पस वही सुबह व शाम उसके सामने पढ़ा जाता है وَقَالُوا أَسَاطِيرُ الْأَوَّلِينَ اكْتَتَبَهَا فَهِيَ تُمْلَى عَلَيْهِ بُكْرَةً وَأَصِيلًا
6 (ऐ रसूल) तुम कह दो कि इसको उस शख्स ने नाज़िल किया है जो सारे आसमान व ज़मीन की पोशीदा बातों को ख़ूब जानता है बेशक वह बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है قُلْ أَنزَلَهُ الَّذِي يَعْلَمُ السِّرَّ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ إِنَّهُ كَانَ غَفُورًا رَّحِيمًا
7 और उन लोगों ने (ये भी) कहा कि ये कैसा रसूल है जो खाना खाता है और बाज़ारों में चलता है फिरता है उसके पास कोई फरिश्ता क्यों नहीं नाज़िल होता कि वह भी उसके साथ (ख़ुदा के अज़ाब से) डराने वाला होता وَقَالُوا مَالِ هَذَا الرَّسُولِ يَأْكُلُ الطَّعَامَ وَيَمْشِي فِي الْأَسْوَاقِ لَوْلَا أُنزِلَ إِلَيْهِ مَلَكٌ فَيَكُونَ مَعَهُ نَذِيرًا
8 (कम से कम) इसके पास ख़ज़ाना ही ख़ज़ाना ही (आसमान से) गिरा दिया जाता या (और नहीं तो) उसके पास कोई बाग़ ही होता कि उससे खाता (पीता) और ये ज़ालिम (कुफ्फ़ार मोमिनों से) कहते हैं कि तुम लोग तो बस ऐसे आदमी की पैरवी करते हो जिस पर जादू कर दिया गया है أَوْ يُلْقَى إِلَيْهِ كَنزٌ أَوْ تَكُونُ لَهُ جَنَّةٌ يَأْكُلُ مِنْهَا وَقَالَ الظَّالِمُونَ إِن تَتَّبِعُونَ إِلَّا رَجُلًا مَّسْحُورًا
9 (ऐ रसूल) ज़रा देखो तो कि इन लोगों ने तुम्हारे वास्ते कैसी कैसी फबत्तियां गढ़ी हैं और गुमराह हो गए तो अब ये लोग किसी तरह राह पर आ ही नहीं सकते انظُرْ كَيْفَ ضَرَبُوا لَكَ الْأَمْثَالَ فَضَلُّوا فَلَا يَسْتَطِيعُونَ سَبِيلًا
10 ख़ुदा तो ऐसा बारबरकत है कि अगर चाहे तो (एक बाग़ क्या चीज़ है) इससे बेहतर बहुतेरे ऐसे बाग़ात तुम्हारे वास्ते पैदा करे जिन के नीचे नहरें जारी हों और (बाग़ात के अलावा उनमें) तुम्हारे वास्ते महल बना दे تَبَارَكَ الَّذِي إِن شَاء جَعَلَ لَكَ خَيْرًا مِّن ذَلِكَ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ وَيَجْعَل لَّكَ قُصُورًا
11 (ये सब कुछ नहीं) बल्कि (सच यूँ है कि) उन लोगों ने क़यामत ही को झूठ समझा है और जिस शख्स ने क़यामत को झूठ समझा उसके लिए हमने जहन्नुम को (दहका के) तैयार कर रखा है بَلْ كَذَّبُوا بِالسَّاعَةِ وَأَعْتَدْنَا لِمَن كَذَّبَ بِالسَّاعَةِ سَعِيرًا
12 जब जहन्नुम इन लोगों को दूर से दखेगी तो (जोश खाएगी और) ये लोग उसके जोश व ख़रोश की आवाज़ सुनेंगें إِذَا رَأَتْهُم مِّن مَّكَانٍ بَعِيدٍ سَمِعُوا لَهَا تَغَيُّظًا وَزَفِيرًا
13 और जब ये लोग ज़ज़ीरों से जकड़कर उसकी किसी तंग जगह मे झोंक दिए जाएँगे तो उस वक्त मौत को पुकारेंगे وَإِذَا أُلْقُوا مِنْهَا مَكَانًا ضَيِّقًا مُقَرَّنِينَ دَعَوْا هُنَالِكَ ثُبُورًا
14 (उस वक्त उनसे कहा जाएगा कि) आज एक मौत को न पुकारो बल्कि बहुतेरी मौतों को पुकारो (मगर इससे भी कुछ होने वाला नहीं) لَا تَدْعُوا الْيَوْمَ ثُبُورًا وَاحِدًا وَادْعُوا ثُبُورًا كَثِيراً
15 (ऐ रसूल) तुम पूछो तो कि जहन्नुम बेहतर है या हमेशा रहने का बाग़ (बेहश्त) जिसका परहेज़गारों से वायदा किया गया है कि वह उन (के आमाल) का सिला होगा और आख़िरी ठिकाना قُلْ أَذَلِكَ خَيْرٌ أَمْ جَنَّةُ الْخُلْدِ الَّتِي وُعِدَ الْمُتَّقُونَ كَانَتْ لَهُمْ جَزَاء وَمَصِيرًا
16 जिस चीज़ की ख्वाहिश करेंगें उनके लिए वहाँ मौजूद होगी (और) वह हमेशा (उसी हाल में) रहेंगें ये तुम्हारे परवरदिगार पर एक लाज़िमी और माँगा हुआ वायदा है لَهُمْ فِيهَا مَا يَشَاؤُونَ خَالِدِينَ كَانَ عَلَى رَبِّكَ وَعْدًا مَسْؤُولًا
17 और जिस दिन ख़ुदा उन लोगों को और जिनकी ये लोग ख़ुदा को छोड़कर परसतिश किया करते हैं (उनको) जमा करेगा और पूछेगा क्या तुम ही ने हमारे उन बन्दों को गुमराह कर दिया था या ये लोग खुद राह रास्ते से भटक गए थे وَيَوْمَ يَحْشُرُهُمْ وَمَا يَعْبُدُونَ مِن دُونِ اللَّهِ فَيَقُولُ أَأَنتُمْ أَضْلَلْتُمْ عِبَادِي هَؤُلَاء أَمْ هُمْ ضَلُّوا السَّبِيلَ
18 (उनके माबूद) अर्ज़ करेंगें- सुबहान अल्लाह (हम तो ख़ुद तेरे बन्दे थे) हमें ये किसी तरह ज़ेबा न था कि हम तुझे छोड़कर दूसरे को अपना सरपरस्त बनाते (फिर अपने को क्यों कर माबूद बनाते) मगर बात तो ये है कि तू ही ने इनको बाप दादाओं को चैन दिया-यहाँ तक कि इन लोगों ने (तेरी) याद भुला दी और ये ख़ुद हलाक होने वाले लोग थे قَالُوا سُبْحَانَكَ مَا كَانَ يَنبَغِي لَنَا أَن نَّتَّخِذَ مِن دُونِكَ مِنْ أَوْلِيَاء وَلَكِن مَّتَّعْتَهُمْ وَآبَاءهُمْ حَتَّى نَسُوا الذِّكْرَ وَكَانُوا قَوْمًا بُورًا
19 तब (काफ़िरों से कहा जाएगा कि) तुम जो कुछ कह रहे हो उसमें तो तुम्हारे माबूदों ने तुम्हें झूठला दिया तो अब तुम न (हमारे अज़ाब के) टाल देने की सकत रखते हो न किसी से मदद ले सकते हो और (याद रखो) तुममें से जो ज़ुल्म करेगा हम उसको बड़े (सख्त) अज़ाब का (मज़ा) चखाएगें فَقَدْ كَذَّبُوكُم بِمَا تَقُولُونَ فَمَا تَسْتَطِيعُونَ صَرْفًا وَلَا نَصْرًا وَمَن يَظْلِم مِّنكُمْ نُذِقْهُ عَذَابًا كَبِيرًا
20 और (ऐ रसूल) हमने तुम से पहले जितने पैग़म्बर भेजे वह सब के सब यक़ीनन बिला शक खाना खाते थे और बाज़ारों में चलते फिरते थे और हमने तुम में से एक को एक का (ज़रिया) आज़माइश बना दिया (मुसलमानों) क्या तुम अब भी सब्र करते हो (या नहीं) और तुम्हारा परवरदिगार (सब की) देख भाल कर रहा है وَما أَرْسَلْنَا قَبْلَكَ مِنَ الْمُرْسَلِينَ إِلَّا إِنَّهُمْ لَيَأْكُلُونَ الطَّعَامَ وَيَمْشُونَ فِي الْأَسْوَاقِ وَجَعَلْنَا بَعْضَكُمْ لِبَعْضٍ فِتْنَةً أَتَصْبِرُونَ وَكَانَ رَبُّكَ بَصِيرًا
21 और जो लोग (क़यामत में) हमारी हुज़ूरी की उम्मीद नहीं रखते कहा करते हैं कि आख़िर फरिश्ते हमारे पास क्यों नहीं नाज़िल किए गए या हम अपने परवरदिगार को (क्यों नहीं) देखते उन लोगों ने अपने जी में अपने को (बहुत) बड़ा समझ लिया है और बड़ी सरकशी की وَقَالَ الَّذِينَ لَا يَرْجُونَ لِقَاءنَا لَوْلَا أُنزِلَ عَلَيْنَا الْمَلَائِكَةُ أَوْ نَرَى رَبَّنَا لَقَدِ اسْتَكْبَرُوا فِي أَنفُسِهِمْ وَعَتَوْ عُتُوًّا كَبِيرًا
22 जिस दिन ये लोग फरिश्तों को देखेंगे उस दिन गुनाह गारों को कुछ खुशी न होगी और फरिश्तों को देखकर कहेंगे दूर दफान يَوْمَ يَرَوْنَ الْمَلَائِكَةَ لَا بُشْرَى يَوْمَئِذٍ لِّلْمُجْرِمِينَ وَيَقُولُونَ حِجْرًا مَّحْجُورًا
23 और उन लोगों ने (दुनिया में) जो कुछ नेक काम किए हैं हम उसकी तरफ तवज्जों करेंगें तो हम उसको (गोया) उड़ती हुई ख़ाक बनाकर (बरबाद कर) देगें وَقَدِمْنَا إِلَى مَا عَمِلُوا مِنْ عَمَلٍ فَجَعَلْنَاهُ هَبَاء مَّنثُورًا
24 उस दिन जन्नत वालों का ठिकाना भी बेहतर है बेहतर होगा और आरमगाह भी अच्छी से अच्छी أَصْحَابُ الْجَنَّةِ يَوْمَئِذٍ خَيْرٌ مُّسْتَقَرًّا وَأَحْسَنُ مَقِيلًا
25 और जिस दिन आसमान बदली के सबब से फट जाएगा और फरिश्ते कसरत से (जूक दर ज़ूक) नाज़िल किए जाएँगे وَيَوْمَ تَشَقَّقُ السَّمَاء بِالْغَمَامِ وَنُزِّلَ الْمَلَائِكَةُ تَنزِيلًا
26 उसे दिन की सल्तनल ख़ास ख़ुदा ही के लिए होगी और वह दिन काफिरों पर बड़ा सख्त होगा الْمُلْكُ يَوْمَئِذٍ الْحَقُّ لِلرَّحْمَنِ وَكَانَ يَوْمًا عَلَى الْكَافِرِينَ عَسِيرًا
27 और जिस दिन जुल्म करने वाला अपने हाथ (मारे अफ़सोस के) काटने लगेगा और कहेगा काश रसूल के साथ मैं भी (दीन का सीधा) रास्ता पकड़ता وَيَوْمَ يَعَضُّ الظَّالِمُ عَلَى يَدَيْهِ يَقُولُ يَا لَيْتَنِي اتَّخَذْتُ مَعَ الرَّسُولِ سَبِيلًا
28 हाए अफसोस काश मै फला शख्स को अपना दोस्त न बनाता يَا وَيْلَتَى لَيْتَنِي لَمْ أَتَّخِذْ فُلَانًا خَلِيلًا
29 बेशक यक़ीनन उसने हमारे पास नसीहत आने के बाद मुझे बहकाया और शैतान तो आदमी को रुसवा करने वाला ही है لَقَدْ أَضَلَّنِي عَنِ الذِّكْرِ بَعْدَ إِذْ جَاءنِي وَكَانَ الشَّيْطَانُ لِلْإِنسَانِ خَذُولًا
30 और (उस वक्त) रसूल (बारगाहे ख़ुदा वन्दी में) अर्ज़ करेगें कि ऐ मेरे परवरदिगार मेरी क़ौम ने तो इस क़ुरान को बेकार बना दिया وَقَالَ الرَّسُولُ يَا رَبِّ إِنَّ قَوْمِي اتَّخَذُوا هَذَا الْقُرْآنَ مَهْجُورًا
31 और हमने (गोया ख़ुद) गुनाहगारों में से हर नबी के दुश्मन बना दिए हैं और तुम्हारा परवरदिगार हिदायत और मददगारी के लिए काफी है وَكَذَلِكَ جَعَلْنَا لِكُلِّ نَبِيٍّ عَدُوًّا مِّنَ الْمُجْرِمِينَ وَكَفَى بِرَبِّكَ هَادِيًا وَنَصِيرًا
32 और कुफ्फार कहने लगे कि उनके ऊपर (आख़िर) क़ुरान का कुल (एक ही दफा) क्यों नहीं नाज़िल किया गया (हमने) इस तरह इसलिए (नाज़िल किया) ताकि तुम्हारे दिल को तस्कीन देते रहें और हमने इसको ठहर ठहर कर नाज़िल किया وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لَوْلَا نُزِّلَ عَلَيْهِ الْقُرْآنُ جُمْلَةً وَاحِدَةً كَذَلِكَ لِنُثَبِّتَ بِهِ فُؤَادَكَ وَرَتَّلْنَاهُ تَرْتِيلًا
33 और (ये कुफ्फार) चाहे कैसी ही (अनोखी) मसल बयान करेंगे मगर हम तुम्हारे पास (उनका) बिल्कुल ठीक और निहायत उम्दा (जवाब) बयान कर देगें وَلَا يَأْتُونَكَ بِمَثَلٍ إِلَّا جِئْنَاكَ بِالْحَقِّ وَأَحْسَنَ تَفْسِيرًا
34 जो लोग (क़यामत के दिन) अपने अपने मोहसिनों के बल जहन्नुम में हकाए जाएगें वही लोग बदतर जगह में होगें और सब से ज्यादा राह रास्त से भटकने वाले الَّذِينَ يُحْشَرُونَ عَلَى وُجُوهِهِمْ إِلَى جَهَنَّمَ أُوْلَئِكَ شَرٌّ مَّكَانًا وَأَضَلُّ سَبِيلًا
35 और अलबत्ता हमने मूसा को किताब (तौरैत) अता की और उनके साथ उनके भाई हारुन को (उनका) वज़ीर बनाया وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ وَجَعَلْنَا مَعَهُ أَخَاهُ هَارُونَ وَزِيرًا
36 तो हमने कहा तुम दोनों उन लोगों के पास जा जो हमारी (कुदरत की) निशानियों को झुठलाते हैं जाओ (और समझाओ जब न माने) तो हमने उन्हें खूब बरबाद कर डाला فَقُلْنَا اذْهَبَا إِلَى الْقَوْمِ الَّذِينَ كَذَّبُوا بِآيَاتِنَا فَدَمَّرْنَاهُمْ تَدْمِيرًا
37 और नूह की क़ौम को जब उन लोगों ने (हमारे) पैग़म्बरों को झुठलाया तो हमने उन्हें डुबो दिया और हमने उनको लोगों (के हैरत) की निशानी बनाया और हमने ज़ालिमों के वास्ते दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है وَقَوْمَ نُوحٍ لَّمَّا كَذَّبُوا الرُّسُلَ أَغْرَقْنَاهُمْ وَجَعَلْنَاهُمْ لِلنَّاسِ آيَةً وَأَعْتَدْنَا لِلظَّالِمِينَ عَذَابًا أَلِيمًا
38 और (इसी तरह) आद और समूद और नहर वालों और उनके दरमियान में बहुत सी जमाअतों को (हमने हलाक कर डाला) وَعَادًا وَثَمُودَ وَأَصْحَابَ الرَّسِّ وَقُرُونًا بَيْنَ ذَلِكَ كَثِيراً
39 और हमने हर एक से मिसालें बयान कर दी थीं और (खूब समझाया) मगर न माना وَكُلًّا ضَرَبْنَا لَهُ الْأَمْثَالَ وَكُلًّا تَبَّرْنَا تَتْبِيرًا
40 हमने उनको ख़ूब सत्यानास कर छोड़ा और ये लोग (कुफ्फ़ारे मक्का) उस बस्ती पर (हो) आए हैं जिस पर (पत्थरों की) बुरी बारिश बरसाई गयी तो क्या उन लोगों ने इसको देखा न होगा मगर (बात ये है कि) ये लोग मरने के बाद जी उठने की उम्मीद नहीं रखते (फिर क्यों ईमान लाएँ) وَلَقَدْ أَتَوْا عَلَى الْقَرْيَةِ الَّتِي أُمْطِرَتْ مَطَرَ السَّوْءِ أَفَلَمْ يَكُونُوا يَرَوْنَهَا بَلْ كَانُوا لَا يَرْجُونَ نُشُورًا
41 और (ऐ रसूल) ये लोग तुम्हें जब देखते हैं तो तुम से मसख़रा पन ही करने लगते हैं कि क्या यही वह (हज़रत) हैं जिन्हें अल्लाह ने रसूल बनाकर भेजा है (माज़ अल्लाह) وَإِذَا رَأَوْكَ إِن يَتَّخِذُونَكَ إِلَّا هُزُوًا أَهَذَا الَّذِي بَعَثَ اللَّهُ رَسُولًا
42 अगर बुतों की परसतिश पर साबित क़दम न रहते तो इस शख्स ने हमको हमारे माबूदों से बहका दिया था और बहुत जल्द (क़यामत में) जब ये लोग अज़ाब को देखेंगें तो उन्हें मालूम हो जाएगा कि राहे रास्त से कौन ज्यादा भटका हुआ था إِن كَادَ لَيُضِلُّنَا عَنْ آلِهَتِنَا لَوْلَا أَن صَبَرْنَا عَلَيْهَا وَسَوْفَ يَعْلَمُونَ حِينَ يَرَوْنَ الْعَذَابَ مَنْ أَضَلُّ سَبِيلًا
43 क्या तुमने उस शख्स को भी देखा है जिसने अपनी नफ़सियानी ख्वाहिश को अपना माबूद बना रखा है तो क्या तुम उसके ज़िम्मेदार हो सकते हो (कि वह गुमराह न हों) أَرَأَيْتَ مَنِ اتَّخَذَ إِلَهَهُ هَوَاهُ أَفَأَنتَ تَكُونُ عَلَيْهِ وَكِيلًا
44 क्या ये तुम्हारा ख्याल है कि इन (कुफ्फ़ारों) में अक्सर (बात) सुनते या समझते है (नहीं) ये तो बस बिल्कुल मिसल जानवरों के हैं बल्कि उन से भी ज्यादा राह (रास्त) से भटके हुए أَمْ تَحْسَبُ أَنَّ أَكْثَرَهُمْ يَسْمَعُونَ أَوْ يَعْقِلُونَ إِنْ هُمْ إِلَّا كَالْأَنْعَامِ بَلْ هُمْ أَضَلُّ سَبِيلًا
45 (ऐ रसूल) क्या तुमने अपने परवरदिगार की कुदरत की तरफ नज़र नहीं की कि उसने क्योंकर साये को फैला दिया अगर वह चहता तो उसे (एक ही जगह) ठहरा हुआ कर देता फिर हमने आफताब को (उसकी शिनाख्त के वास्ते) उसका रहनुमा बना दिया أَلَمْ تَرَ إِلَى رَبِّكَ كَيْفَ مَدَّ الظِّلَّ وَلَوْ شَاء لَجَعَلَهُ سَاكِنًا ثُمَّ جَعَلْنَا الشَّمْسَ عَلَيْهِ دَلِيلًا
46 फिर हमने उसको थोड़ा थोड़ा करके अपनी तरफ खीच लिया ثُمَّ قَبَضْنَاهُ إِلَيْنَا قَبْضًا يَسِيرًا
47 और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने तुम्हारे वास्ते रात को पर्दा बनाया और नींद को राहत और दिन को (कारोबार के लिए) उठ खड़ा होने का वक्त बनाया وَهُوَ الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ اللَّيْلَ لِبَاسًا وَالنَّوْمَ سُبَاتًا وَجَعَلَ النَّهَارَ نُشُورًا
48 और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने अपनी रहमत (बारिश) के आगे आगे हवाओं को खुश ख़बरी देने के लिए (पेश ख़ेमा बना के) भेजा और हम ही ने आसमान से बहुत पाक और सुथरा हुआ पानी बरसाया وَهُوَ الَّذِي أَرْسَلَ الرِّيَاحَ بُشْرًا بَيْنَ يَدَيْ رَحْمَتِهِ وَأَنزَلْنَا مِنَ السَّمَاء مَاء طَهُورًا
49 ताकि हम उसके ज़रिए से मुर्दा (वीरान) शहर को ज़िन्दा (आबाद) कर दें और अपनी मख़लूकात में से चौपायों और बहुत से आदमियों को उससे सेराब करें لِنُحْيِيَ بِهِ بَلْدَةً مَّيْتًا وَنُسْقِيَهُ مِمَّا خَلَقْنَا أَنْعَامًا وَأَنَاسِيَّ كَثِيراً
50 और हमने पानी को उनके दरमियान (तरह तरह से) तक़सीम किया ताकि लोग नसीहत हासिल करें मगर अक्सर लोगों ने नाशुक्री के सिवा कुछ न माना وَلَقَدْ صَرَّفْنَاهُ بَيْنَهُمْ لِيَذَّكَّرُوا فَأَبَى أَكْثَرُ النَّاسِ إِلَّا كُفُورًا
51 और अगर हम चाहते तो हर बस्ती में ज़रुर एक (अज़ाबे ख़ुदा से) डराने वाला पैग़म्बर भेजते وَلَوْ شِئْنَا لَبَعَثْنَا فِي كُلِّ قَرْيَةٍ نَذِيرًا
52 (तो ऐ रसूल) तुम काफिरों की इताअत न करना और उनसे कुरान के (दलाएल) से खूब लड़ों فَلَا تُطِعِ الْكَافِرِينَ وَجَاهِدْهُم بِهِ جِهَادًا كَبِيرًا
53 और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने दरयाओं को आपस में मिला दिया (और बावजूद कि) ये खालिस मज़ेदार मीठा है और ये बिल्कुल खारी कड़वा (मगर दोनों को मिलाया) और दोनों के दरमियान एक आड़ और मज़बूत ओट बना दी है (कि गड़बड़ न हो) وَهُوَ الَّذِي مَرَجَ الْبَحْرَيْنِ هَذَا عَذْبٌ فُرَاتٌ وَهَذَا مِلْحٌ أُجَاجٌ وَجَعَلَ بَيْنَهُمَا بَرْزَخًا وَحِجْرًا مَّحْجُورًا
54 और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने पानी (मनी) से आदमी को पैदा किया फिर उसको ख़ानदान और सुसराल वाला बनाया और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार हर चीज़ पर क़ादिर है وَهُوَ الَّذِي خَلَقَ مِنَ الْمَاء بَشَرًا فَجَعَلَهُ نَسَبًا وَصِهْرًا وَكَانَ رَبُّكَ قَدِيرًا
55 और लोग (कुफ्फ़ारे मक्का) ख़ुदा को छोड़कर उस चीज़ की परसतिश करते हैं जो न उन्हें नफा ही दे सकती है और न नुक़सान ही पहुँचा सकती है और काफिर (अबूजहल) तो हर वक्त अपने परवरदिगार की मुख़ालेफत पर ज़ोर लगाए हुए है وَيَعْبُدُونَ مِن دُونِ اللَّهِ مَا لَا يَنفَعُهُمْ وَلَا يَضُرُّهُمْ وَكَانَ الْكَافِرُ عَلَى رَبِّهِ ظَهِيرًا
56 और (ऐ रसूल) हमने तो तुमको बस (नेकी को जन्नत की) खुशख़बरी देने वाला और (बुरों को अज़ाब से) डराने वाला बनाकर भेजा है وَمَا أَرْسَلْنَاكَ إِلَّا مُبَشِّرًا وَنَذِيرًا
57 और उन लोगों से तुम कह दो कि मै इस (तबलीगे रिसालत) पर तुमसे कुछ मज़दूरी तो माँगता नहीं हूँ मगर तमन्ना ये है कि जो चाहे अपने परवरदिगार तक पहुँचने की राह पकडे قُلْ مَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ إِلَّا مَن شَاء أَن يَتَّخِذَ إِلَى رَبِّهِ سَبِيلًا
58 और (ऐ रसूल) तुम उस (ख़ुदा) पर भरोसा रखो जो ऐसा ज़िन्दा है कि कभी नहीं मरेगा और उसकी हम्द व सना की तस्बीह पढ़ो और वह अपने बन्दों के गुनाहों की वाक़िफ कारी में काफी है (वह ख़ुद समझ लेगा) وَتَوَكَّلْ عَلَى الْحَيِّ الَّذِي لَا يَمُوتُ وَسَبِّحْ بِحَمْدِهِ وَكَفَى بِهِ بِذُنُوبِ عِبَادِهِ خَبِيرًا
59 जिसने सारे आसमान व ज़मीन और जो कुछ उन दोनों में है छह: दिन में पैदा किया फिर अर्श (के बनाने) पर आमादा हुआ और वह बड़ा मेहरबान है तो तुम उसका हाल किसी बाख़बर ही से पूछना الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ ثُمَّ اسْتَوَى عَلَى الْعَرْشِ الرَّحْمَنُ فَاسْأَلْ بِهِ خَبِيرًا
60 और जब उन कुफ्फारों से कहा जाता है कि रहमान (ख़ुदा) को सजदा करो तो कहते हैं कि रहमान क्या चीज़ है तुम जिसके लिए कहते हो हम उस का सजदा करने लगें और (इससे) उनकी नफरत और बढ़ जाती है (60) सजदा وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ اسْجُدُوا لِلرَّحْمَنِ قَالُوا وَمَا الرَّحْمَنُ أَنَسْجُدُ لِمَا تَأْمُرُنَا وَزَادَهُمْ نُفُورًا
61 बहुत बाबरकत है वह ख़ुदा जिसने आसमान में बुर्ज बनाए और उन बुर्जों में (आफ़ताब का) चिराग़ और जगमगाता चाँद बनाया تَبَارَكَ الَّذِي جَعَلَ فِي السَّمَاء بُرُوجًا وَجَعَلَ فِيهَا سِرَاجًا وَقَمَرًا مُّنِيرًا
62 और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने रात और दिन (एक) को (एक का) जानशीन बनाया (ये) उस के (समझने के) लिए है जो नसीहत हासिल करना चाहे या शुक्र गुज़ारी का इरादा करें وَهُوَ الَّذِي جَعَلَ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ خِلْفَةً لِّمَنْ أَرَادَ أَن يَذَّكَّرَ أَوْ أَرَادَ شُكُورًا
63 और (ख़ुदाए) रहमान के ख़ास बन्दे तो वह हैं जो ज़मीन पर फिरौतनी के साथ चलते हैं और जब जाहिल उनसे (जिहालत) की बात करते हैं तो कहते हैं कि सलाम (तुम सलामत रहो) وَعِبَادُ الرَّحْمَنِ الَّذِينَ يَمْشُونَ عَلَى الْأَرْضِ هَوْنًا وَإِذَا خَاطَبَهُمُ الْجَاهِلُونَ قَالُوا سَلَامًا
64 और वह लोग जो अपने परवरदिगार के वास्ते सज़दे और क़याम में रात काट देते हैं وَالَّذِينَ يَبِيتُونَ لِرَبِّهِمْ سُجَّدًا وَقِيَامًا
65 और वह लोग जो दुआ करते हैं कि परवरदिगारा हम से जहन्नुम का अज़ाब फेरे रहना क्योंकि उसका अज़ाब बहुत (सख्त और पाएदार होगा) وَالَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا اصْرِفْ عَنَّا عَذَابَ جَهَنَّمَ إِنَّ عَذَابَهَا كَانَ غَرَامًا
66 बेशक वह बहुत बुरा ठिकाना और बुरा मक़ाम है إِنَّهَا سَاءتْ مُسْتَقَرًّا وَمُقَامًا
67 और वह लोग कि जब खर्च करते हैं तो न फुज़ूल ख़र्ची करते हैं और न तंगी करते हैं और उनका ख़र्च उसके दरमेयान औसत दर्जे का रहता है وَالَّذِينَ إِذَا أَنفَقُوا لَمْ يُسْرِفُوا وَلَمْ يَقْتُرُوا وَكَانَ بَيْنَ ذَلِكَ قَوَامًا
68 और वह लोग जो ख़ुदा के साथ दूसरे माबूदों की परसतिश नही करते और जिस जान के मारने को ख़ुदा ने हराम कर दिया है उसे नाहक़ क़त्ल नहीं करते और न ज़िना करते हैं और जो शख्स ऐसा करेगा वह आप अपने गुनाह की सज़ा भुगतेगा وَالَّذِينَ لَا يَدْعُونَ مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آخَرَ وَلَا يَقْتُلُونَ النَّفْسَ الَّتِي حَرَّمَ اللَّهُ إِلَّا بِالْحَقِّ وَلَا يَزْنُونَ وَمَن يَفْعَلْ ذَلِكَ يَلْقَ أَثَامًا
69 कि क़यामत के दिन उसके लिए अज़ाब दूना कर दिया जाएगा और उसमें हमेशा ज़लील व ख़वार रहेगा يُضَاعَفْ لَهُ الْعَذَابُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَيَخْلُدْ فِيهِ مُهَانًا
70 मगर (हाँ) जिस शख्स ने तौबा की और ईमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए तो (अलबत्ता) उन लोगों की बुराइयों को ख़ुदा नेकियों से बदल देगा और ख़ुदा तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है إِلَّا مَن تَابَ وَآمَنَ وَعَمِلَ عَمَلًا صَالِحًا فَأُوْلَئِكَ يُبَدِّلُ اللَّهُ سَيِّئَاتِهِمْ حَسَنَاتٍ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا
71 और जिस शख्स ने तौबा कर ली और अच्छे अच्छे काम किए तो बेशक उसने ख़ुदा की तरफ (सच्चे दिल से) हक़ीकक़तन रुजु की وَمَن تَابَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَإِنَّهُ يَتُوبُ إِلَى اللَّهِ مَتَابًا
72 और वह लोग जो फरेब के पास ही नही खड़े होते और वह लोग जब किसी बेहूदा काम के पास से गुज़रते हैं तो बुर्ज़ुगाना अन्दाज़ से गुज़र जाते हैं وَالَّذِينَ لَا يَشْهَدُونَ الزُّورَ وَإِذَا مَرُّوا بِاللَّغْوِ مَرُّوا كِرَامًا
73 और वह लोग कि जब उन्हें उनके परवरदिगार की आयतें याद दिलाई जाती हैं तो बहरे अन्धें होकर गिर नहीं पड़ते बल्कि जी लगाकर सुनते हैं وَالَّذِينَ إِذَا ذُكِّرُوا بِآيَاتِ رَبِّهِمْ لَمْ يَخِرُّوا عَلَيْهَا صُمًّا وَعُمْيَانًا
74 और वह लोग जो (हमसे) अर्ज़ करते हैं कि परवरदिगार हमें हमारी बीबियों और औलादों की तरफ से ऑंखों की ठन्डक अता फरमा और हमको परहेज़गारों का पेशवा बना وَالَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا هَبْ لَنَا مِنْ أَزْوَاجِنَا وَذُرِّيَّاتِنَا قُرَّةَ أَعْيُنٍ وَاجْعَلْنَا لِلْمُتَّقِينَ إِمَامًا
75 ये वह लोग हैं जिन्हें उनकी जज़ा में (बेहश्त के) बाला ख़ाने अता किए जाएँगें और वहाँ उन्हें ताज़ीम व सलाम (का बदला) पेश किया जाएगा أُوْلَئِكَ يُجْزَوْنَ الْغُرْفَةَ بِمَا صَبَرُوا وَيُلَقَّوْنَ فِيهَا تَحِيَّةً وَسَلَامًا
76 ये लोग उसी में हमेशा रहेंगें और वह रहने और ठहरने की अच्छी जगह है خَالِدِينَ فِيهَا حَسُنَتْ مُسْتَقَرًّا وَمُقَامًا
77 (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर दुआ नही किया करते तो मेरा परवरदिगार भी तुम्हारी कुछ परवाह नही करता तुमने तो (उसके रसूल को) झुठलाया तो अन क़रीब ही (उसका वबाल) तुम्हारे सर पडेग़ा قُلْ مَا يَعْبَأُ بِكُمْ رَبِّي لَوْلَا دُعَاؤُكُمْ فَقَدْ كَذَّبْتُمْ فَسَوْفَ يَكُونُ لِزَامًا
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