An-Nur

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Hindi: Suhel Farooq Khan and Saifur Rahman Nadwi

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# Translation Ayah
1 (ये) एक सूरा है जिसे हमने नाज़िल किया है और उस (के एहक़ाम) को फर्ज क़र दिया है और इसमें हमने वाज़ेए व रौशन आयतें नाज़िल की हैं ताकि तुम (ग़ौर करके) नसीहत हासिल करो سُورَةٌ أَنزَلْنَاهَا وَفَرَضْنَاهَا وَأَنزَلْنَا فِيهَا آيَاتٍ بَيِّنَاتٍ لَّعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ
2 ़ज़िना करने वाली औरत और ज़िना करने वाले मर्द इन दोनों में से हर एक को सौ (सौ) कोडे मारो और अगर तुम ख़ुदा और रोजे अाख़िरत पर ईमान रखते हो तो हुक्मे खुदा के नाफिज़ करने में तुमको उनके बारे में किसी तरह की तरस का लिहाज़ न होने पाए और उन दोनों की सज़ा के वक्त मोमिन की एक जमाअत को मौजूद रहना चाहिए الزَّانِيَةُ وَالزَّانِي فَاجْلِدُوا كُلَّ وَاحِدٍ مِّنْهُمَا مِئَةَ جَلْدَةٍ وَلَا تَأْخُذْكُم بِهِمَا رَأْفَةٌ فِي دِينِ اللَّهِ إِن كُنتُمْ تُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ وَلْيَشْهَدْ عَذَابَهُمَا طَائِفَةٌ مِّنَ الْمُؤْمِنِينَ
3 ज़िना करने वाला मर्द तो ज़िना करने वाली औरत या मुशरिका से निकाह करेगा और ज़िना करने वाली औरत भी बस ज़िना करने वाले ही मर्द या मुशरिक से निकाह करेगी और सच्चे ईमानदारों पर तो इस क़िस्म के ताल्लुक़ात हराम हैं الزَّانِي لَا يَنكِحُ إلَّا زَانِيَةً أَوْ مُشْرِكَةً وَالزَّانِيَةُ لَا يَنكِحُهَا إِلَّا زَانٍ أَوْ مُشْرِكٌ وَحُرِّمَ ذَلِكَ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ
4 और जो लोग पाक दामन औरतों पर (ज़िना की) तोहमत लगाएँ फिर (अपने दावे पर) चार गवाह पेश न करें तो उन्हें अस्सी कोड़ें मारो और फिर (आइन्दा) कभी उनकी गवाही कुबूल न करो और (याद रखो कि) ये लोग ख़ुद बदकार हैं وَالَّذِينَ يَرْمُونَ الْمُحْصَنَاتِ ثُمَّ لَمْ يَأْتُوا بِأَرْبَعَةِ شُهَدَاء فَاجْلِدُوهُمْ ثَمَانِينَ جَلْدَةً وَلَا تَقْبَلُوا لَهُمْ شَهَادَةً أَبَدًا وَأُوْلَئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَ
5 मगर हाँ जिन लोगों ने उसके बाद तौबा कर ली और अपनी इसलाह की तो बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है إِلَّا الَّذِينَ تَابُوا مِن بَعْدِ ذَلِكَ وَأَصْلَحُوا فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
6 और जो लोग अपनी बीवियों पर (ज़िना) का ऐब लगाएँ और (इसके सुबूत में) अपने सिवा उनका कोई गवाह न हो तो ऐसे लोगों में से एक की गवाही चार मरतबा इस तरह होगी कि वह (हर मरतबा) ख़ुदा की क़सम खाकर बयान करे कि वह (अपने दावे में) जरुर सच्चा है وَالَّذِينَ يَرْمُونَ أَزْوَاجَهُمْ وَلَمْ يَكُن لَّهُمْ شُهَدَاء إِلَّا أَنفُسُهُمْ فَشَهَادَةُ أَحَدِهِمْ أَرْبَعُ شَهَادَاتٍ بِاللَّهِ إِنَّهُ لَمِنَ الصَّادِقِينَ
7 और पाँचवी (मरतबा) यूँ (कहेगा) अगर वह झूट बोलता हो तो उस पर ख़ुदा की लानत وَالْخَامِسَةُ أَنَّ لَعْنَتَ اللَّهِ عَلَيْهِ إِن كَانَ مِنَ الْكَاذِبِينَ
8 और औरत (के सर से) इस तरह सज़ा टल सकती है कि वह चार मरतबा ख़ुदा की क़सम खा कर बयान कर दे कि ये शख्स (उसका शौहर अपने दावे में) ज़रुर झूठा है وَيَدْرَأُ عَنْهَا الْعَذَابَ أَنْ تَشْهَدَ أَرْبَعَ شَهَادَاتٍ بِاللَّهِ إِنَّهُ لَمِنَ الْكَاذِبِينَ
9 और पाँचवी मरतबा यूँ करेगी कि अगर ये शख्स (अपने दावे में) सच्चा हो तो मुझ पर खुदा का ग़ज़ब पड़े وَالْخَامِسَةَ أَنَّ غَضَبَ اللَّهِ عَلَيْهَا إِن كَانَ مِنَ الصَّادِقِينَ
10 और अगर तुम पर ख़ुदा का फज़ल (व करम) और उसकी मेहरबानी न होती तो देखते कि तोहमत लगाने वालों का क्या हाल होता और इसमें शक ही नहीं कि ख़ुदा बड़ा तौबा क़ुबूल करने वाला हकीम है وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ وَأَنَّ اللَّهَ تَوَّابٌ حَكِيمٌ
11 बेशक जिन लोगों ने झूठी तोहमत लगायी वह तुम्ही में से एक गिरोह है तुम अपने हक़ में इस तोहमत को बड़ा न समझो बल्कि ये तुम्हारे हक़ में बेहतर है इनमें से जिस शख्स ने जितना गुनाह समेटा वह उस (की सज़ा) को खुद भुगतेगा और उनमें से जिस शख्स ने तोहमत का बड़ा हिस्सा लिया उसके लिए बड़ी (सख्त) सज़ा होगी إِنَّ الَّذِينَ جَاؤُوا بِالْإِفْكِ عُصْبَةٌ مِّنكُمْ لَا تَحْسَبُوهُ شَرًّا لَّكُم بَلْ هُوَ خَيْرٌ لَّكُمْ لِكُلِّ امْرِئٍ مِّنْهُم مَّا اكْتَسَبَ مِنَ الْإِثْمِ وَالَّذِي تَوَلَّى كِبْرَهُ مِنْهُمْ لَهُ عَذَابٌ عَظِيمٌ
12 और जब तुम लोगो ने उसको सुना था तो उसी वक्त ईमानदार मर्दों और ईमानदार औरतों ने अपने लोगों पर भलाई का गुमान क्यो न किया और ये क्यों न बोल उठे कि ये तो खुला हुआ बोहतान है لَوْلَا إِذْ سَمِعْتُمُوهُ ظَنَّ الْمُؤْمِنُونَ وَالْمُؤْمِنَاتُ بِأَنفُسِهِمْ خَيْرًا وَقَالُوا هَذَا إِفْكٌ مُّبِينٌ
13 और जिन लोगों ने तोहमत लगायी थी अपने दावे के सुबूत में चार गवाह क्यों न पेश किए फिर जब इन लोगों ने गवाह न पेश किये तो ख़ुदा के नज़दीक यही लोग झूठे हैं لَوْلَا جَاؤُوا عَلَيْهِ بِأَرْبَعَةِ شُهَدَاء فَإِذْ لَمْ يَأْتُوا بِالشُّهَدَاء فَأُوْلَئِكَ عِندَ اللَّهِ هُمُ الْكَاذِبُونَ
14 और अगर तुम लोगों पर दुनिया और आख़िरत में ख़ुदा का फज़ल (व करम) और उसकी रहमत न होती तो जिस बात का तुम लोगों ने चर्चा किया था उस की वजह से तुम पर कोई बड़ा (सख्त) अज़ाब आ पहुँचता وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ لَمَسَّكُمْ فِي مَا أَفَضْتُمْ فِيهِ عَذَابٌ عَظِيمٌ
15 कि तुम अपनी ज़बानों से इसको एक दूसरे से बयान करने लगे और अपने मुँह से ऐसी बात कहते थे जिसका तुम्हें इल्म व यक़ीन न था (और लुत्फ ये है कि) तुमने इसको एक आसान बात समझी थी हॉलाकि वह ख़ुदा के नज़दीक बड़ी सख्त बात थी إِذْ تَلَقَّوْنَهُ بِأَلْسِنَتِكُمْ وَتَقُولُونَ بِأَفْوَاهِكُم مَّا لَيْسَ لَكُم بِهِ عِلْمٌ وَتَحْسَبُونَهُ هَيِّنًا وَهُوَ عِندَ اللَّهِ عَظِيمٌ
16 और जब तुमने ऐसी बात सुनी थी तो तुमने लोगों से क्यों न कह दिया कि हमको ऐसी बात मुँह से निकालनी मुनासिब नहीं सुबहान अल्लाह ये बड़ा भारी बोहतान है وَلَوْلَا إِذْ سَمِعْتُمُوهُ قُلْتُم مَّا يَكُونُ لَنَا أَن نَّتَكَلَّمَ بِهَذَا سُبْحَانَكَ هَذَا بُهْتَانٌ عَظِيمٌ
17 ख़ुदा तुम्हारी नसीहत करता है कि अगर तुम सच्चे ईमानदार हो तो ख़बरदार फिर कभी ऐसा न करना يَعِظُكُمُ اللَّهُ أَن تَعُودُوا لِمِثْلِهِ أَبَدًا إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
18 और ख़ुदा तुम से (अपने) एहकाम साफ साफ बयान करता है और ख़ुदा तो बड़ा वाक़िफकार हकीम है وَيُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمُ الْآيَاتِ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
19 जो लोग ये चाहते हैं कि ईमानदारों में बदकारी का चर्चा फैल जाए बेशक उनके लिए दुनिया और आख़िरत में दर्दनाक अज़ाब है और ख़ुदा (असल हाल को) ख़ूब जानता है और तुम लोग नहीं जानते हो إِنَّ الَّذِينَ يُحِبُّونَ أَن تَشِيعَ الْفَاحِشَةُ فِي الَّذِينَ آمَنُوا لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ وَاللَّهُ يَعْلَمُ وَأَنتُمْ لَا تَعْلَمُونَ
20 और अगर ये बात न होती कि तुम पर ख़ुदा का फ़ज़ल (व करम) और उसकी रहमत से और ये कि ख़ुदा (अपने बन्दों पर) बड़ा शफीक़ मेहरबान है وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ وَأَنَّ اللَّه رَؤُوفٌ رَحِيمٌ
21 (तो तुम देखते क्या होता) ऐ ईमानदारों शैतान के क़दम ब क़दम न चलो और जो शख्स शैतान के क़दम ब क़दम चलेगा तो वह यक़ीनन उसे बदकारी और बुरी बात (करने) का हुक्म देगा और अगर तुम पर ख़ुदा का फ़ज़ल (व करम) और उसकी रहमत न होती तो तुममें से कोई भी कभी पाक साफ न होता मगर ख़ुदा तो जिसे चहता है पाक साफ कर देता है और ख़ुदा बड़ा सुनने वाला वाकिफकार है يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَتَّبِعُوا خُطُوَاتِ الشَّيْطَانِ وَمَن يَتَّبِعْ خُطُوَاتِ الشَّيْطَانِ فَإِنَّهُ يَأْمُرُ بِالْفَحْشَاء وَالْمُنكَرِ وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ مَا زَكَا مِنكُم مِّنْ أَحَدٍ أَبَدًا وَلَكِنَّ اللَّهَ يُزَكِّي مَن يَشَاء وَاللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
22 और तुममें से जो लोग ज्यादा दौलत और मुक़द्दर वालें है क़राबतदारों और मोहताजों और ख़ुदा की राह में हिजरत करने वालों को कुछ देने (लेने) से क़सम न खा बैठें बल्कि उन्हें चाहिए कि (उनकी ख़ता) माफ कर दें और दरगुज़र करें क्या तुम ये नहीं चाहते हो कि ख़ुदा तुम्हारी ख़ता माफ करे और खुदा तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है وَلَا يَأْتَلِ أُوْلُوا الْفَضْلِ مِنكُمْ وَالسَّعَةِ أَن يُؤْتُوا أُوْلِي الْقُرْبَى وَالْمَسَاكِينَ وَالْمُهَاجِرِينَ فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَلْيَعْفُوا وَلْيَصْفَحُوا أَلَا تُحِبُّونَ أَن يَغْفِرَ اللَّهُ لَكُمْ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
23 बेशक जो लोग पाक दामन बेख़बर और ईमानदार औरतों पर (ज़िना की) तोहमत लगाते हैं उन पर दुनिया और आख़िरत में (ख़ुदा की) लानत है और उन पर बड़ा (सख्त) अज़ाब होगा إِنَّ الَّذِينَ يَرْمُونَ الْمُحْصَنَاتِ الْغَافِلَاتِ الْمُؤْمِنَاتِ لُعِنُوا فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ
24 जिस दिन उनके ख़िलाफ उनकी ज़बानें और उनके हाथ उनके पावँ उनकी कारस्तानियों की गवाही देगें يَوْمَ تَشْهَدُ عَلَيْهِمْ أَلْسِنَتُهُمْ وَأَيْدِيهِمْ وَأَرْجُلُهُم بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ
25 उस दिन ख़ुदा उनको ठीक उनका पूरा पूरा बदला देगा और जान जाएँगें कि ख़ुदा बिल्कुल बरहक़ और (हक़ का) ज़ाहिर करने वाला है يَوْمَئِذٍ يُوَفِّيهِمُ اللَّهُ دِينَهُمُ الْحَقَّ وَيَعْلَمُونَ أَنَّ اللَّهَ هُوَ الْحَقُّ الْمُبِينُ
26 गन्दी औरते गन्दें मर्दों के लिए (मुनासिब) हैं और गन्दे मर्द गन्दी औरतो के लिए और पाक औरतें पाक मर्दों के लिए (मौज़ूँ) हैं और पाक मर्द पाक औरतों के लिए लोग जो कुछ उनकी निस्बत बका करते हैं उससे ये लोग बुरी उल ज़िम्मा हैं उन ही (पाक लोगों) के लिए (आख़िरत में) बख़्शिस है الْخَبِيثَاتُ لِلْخَبِيثِينَ وَالْخَبِيثُونَ لِلْخَبِيثَاتِ وَالطَّيِّبَاتُ لِلطَّيِّبِينَ وَالطَّيِّبُونَ لِلطَّيِّبَاتِ أُوْلَئِكَ مُبَرَّؤُونَ مِمَّا يَقُولُونَ لَهُم مَّغْفِرَةٌ وَرِزْقٌ كَرِيمٌ
27 और इज्ज़त की रोज़ी ऐ ईमानदारों अपने घरों के सिवा दूसरे घरों में (दर्राना) न चले जाओ यहाँ तक कि उनसे इजाज़त ले लो और उन घरों के रहने वालों से साहब सलामत कर लो यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَدْخُلُوا بُيُوتًا غَيْرَ بُيُوتِكُمْ حَتَّى تَسْتَأْنِسُوا وَتُسَلِّمُوا عَلَى أَهْلِهَا ذَلِكُمْ خَيْرٌ لَّكُمْ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ
28 (ये नसीहत इसलिए है) ताकि तुम याद रखो पस अगर तुम उन घरों में किसी को न पाओ तो तावाक़फियत कि तुम को (ख़ास तौर पर) इजाज़त न हासिल हो जाए उन में न जाओ और अगर तुम से कहा जाए कि फिर जाओ तो तुम (बे ताम्मुल) फिर जाओ यही तुम्हारे वास्ते ज्यादा सफाई की बात है और तुम जो कुछ भी करते हो ख़ुदा उससे खूब वाकिफ़ है فَإِن لَّمْ تَجِدُوا فِيهَا أَحَدًا فَلَا تَدْخُلُوهَا حَتَّى يُؤْذَنَ لَكُمْ وَإِن قِيلَ لَكُمُ ارْجِعُوا فَارْجِعُوا هُوَ أَزْكَى لَكُمْ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ عَلِيمٌ
29 इसमें अलबत्ता तुम पर इल्ज़ाम नहीं कि ग़ैर आबाद मकानात में जिसमें तुम्हारा कोई असबाब हो (बे इजाज़त) चले जाओ और जो कुछ खुल्लम खुल्ला करते हो और जो कुछ छिपाकर करते हो खुदा (सब कुछ) जानता है لَّيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَن تَدْخُلُوا بُيُوتًا غَيْرَ مَسْكُونَةٍ فِيهَا مَتَاعٌ لَّكُمْ وَاللَّهُ يَعْلَمُ مَا تُبْدُونَ وَمَا تَكْتُمُونَ
30 (ऐ रसूल) ईमानदारों से कह दो कि अपनी नज़रों को नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें यही उनके वास्ते ज्यादा सफाई की बात है ये लोग जो कुछ करते हैं ख़ुदा उससे यक़ीनन ख़ूब वाक़िफ है قُل لِّلْمُؤْمِنِينَ يَغُضُّوا مِنْ أَبْصَارِهِمْ وَيَحْفَظُوا فُرُوجَهُمْ ذَلِكَ أَزْكَى لَهُمْ إِنَّ اللَّهَ خَبِيرٌ بِمَا يَصْنَعُونَ
31 और (ऐ रसूल) ईमानदार औरतों से भी कह दो कि वह भी अपनी नज़रें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें और अपने बनाव सिंगार (के मक़ामात) को (किसी पर) ज़ाहिर न होने दें मगर जो खुद ब खुद ज़ाहिर हो जाता हो (छुप न सकता हो) (उसका गुनाह नही) और अपनी ओढ़नियों को (घूँघट मारके) अपने गरेबानों (सीनों) पर डाले रहें और अपने शौहर या अपने बाप दादाओं या आपने शौहर के बाप दादाओं या अपने बेटों या अपने शौहर के बेटों या अपने भाइयों या अपने भतीजों या अपने भांजों या अपने (क़िस्म की) औरतों या अपनी या अपनी लौंडियों या (घर के) नौकर चाकर जो मर्द सूरत हैं मगर (बहुत बूढे होने की वजह से) औरतों से कुछ मतलब नहीं रखते या वह कमसिन लड़के जो औरतों के पर्दे की बात से आगाह नहीं हैं उनके सिवा (किसी पर) अपना बनाव सिंगार ज़ाहिर न होने दिया करें और चलने में अपने पाँव ज़मीन पर इस तरह न रखें कि लोगों को उनके पोशीदा बनाव सिंगार (झंकार वग़ैरह) की ख़बर हो जाए और ऐ ईमानदारों तुम सबके सब ख़ुदा की बारगाह में तौबा करो ताकि तुम फलाह पाओ وَقُل لِّلْمُؤْمِنَاتِ يَغْضُضْنَ مِنْ أَبْصَارِهِنَّ وَيَحْفَظْنَ فُرُوجَهُنَّ وَلَا يُبْدِينَ زِينَتَهُنَّ إِلَّا مَا ظَهَرَ مِنْهَا وَلْيَضْرِبْنَ بِخُمُرِهِنَّ عَلَى جُيُوبِهِنَّ وَلَا يُبْدِينَ زِينَتَهُنَّ إِلَّا لِبُعُولَتِهِنَّ أَوْ آبَائِهِنَّ أَوْ آبَاء بُعُولَتِهِنَّ أَوْ أَبْنَائِهِنَّ أَوْ أَبْنَاء بُعُولَتِهِنَّ أَوْ إِخْوَانِهِنَّ أَوْ بَنِي إِخْوَانِهِنَّ أَوْ بَنِي أَخَوَاتِهِنَّ أَوْ نِسَائِهِنَّ أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُهُنَّ أَوِ التَّابِعِينَ غَيْرِ أُوْلِي الْإِرْبَةِ مِنَ الرِّجَالِ أَوِ الطِّفْلِ الَّذِينَ لَمْ يَظْهَرُوا عَلَى عَوْرَاتِ النِّسَاء وَلَا يَضْرِبْنَ بِأَرْجُلِهِنَّ لِيُعْلَمَ مَا يُخْفِينَ مِن زِينَتِهِنَّ وَتُوبُوا إِلَى اللَّهِ جَمِيعًا أَيُّهَا الْمُؤْمِنُونَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ
32 और अपनी (क़ौम की) बेशौहर औरतों और अपने नेक बख्त गुलामों और लौंडियों का निकाह कर दिया करो अगर ये लोग मोहताज होंगे तो खुदा अपने फज़ल व (करम) से उन्हें मालदार बना देगा और ख़ुदा तो बड़ी गुन्जाइश वाला वाक़िफ कार है وَأَنكِحُوا الْأَيَامَى مِنكُمْ وَالصَّالِحِينَ مِنْ عِبَادِكُمْ وَإِمَائِكُمْ إِن يَكُونُوا فُقَرَاء يُغْنِهِمُ اللَّهُ مِن فَضْلِهِ وَاللَّهُ وَاسِعٌ عَلِيمٌ
33 और जो लोग निकाह करने का मक़दूर नहीं रखते उनको चाहिए कि पाक दामिनी एख्तियार करें यहाँ तक कि ख़ुदा उनको अपने फज़ल व (करम) से मालदार बना दे और तुम्हारी लौन्डी ग़ुलामों में से जो मकातबत होने (कुछ रुपए की शर्त पर आज़ादी का सरख़त लेने) की ख्वाहिश करें तो तुम अगर उनमें कुछ सलाहियत देखो तो उनको मकातिब कर दो और ख़ुदा के माल से जो उसने तुम्हें अता किया है उनका भी दो और तुम्हारी लौन्डियाँ जो पाक दामन ही रहना चाहती हैं उनको दुनियावी ज़िन्दगी के फायदे हासिल करने की ग़रज़ से हराम कारी पर मजबूर न करो और जो शख्स उनको मजबूर करेगा तो इसमें शक नहीं कि ख़ुदा उसकी बेबसी के बाद बड़ा बख्शने वाले मेहरबान है وَلْيَسْتَعْفِفِ الَّذِينَ لَا يَجِدُونَ نِكَاحًا حَتَّى يُغْنِيَهُمْ اللَّهُ مِن فَضْلِهِ وَالَّذِينَ يَبْتَغُونَ الْكِتَابَ مِمَّا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ فَكَاتِبُوهُمْ إِنْ عَلِمْتُمْ فِيهِمْ خَيْرًا وَآتُوهُم مِّن مَّالِ اللَّهِ الَّذِي آتَاكُمْ وَلَا تُكْرِهُوا فَتَيَاتِكُمْ عَلَى الْبِغَاء إِنْ أَرَدْنَ َحَصُّنًا لِّتَبْتَغُوا عَرَضَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَمَن يُكْرِههُّنَّ فَإِنَّ اللَّهَ مِن بَعْدِ إِكْرَاهِهِنَّ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
34 और (ईमानदारों) हमने तो तुम्हारे पास (अपनी) वाज़ेए व रौशन आयतें और जो लोग तुमसे पहले गुज़र चुके हैं उनकी हालतें और परहेज़गारों के लिए नसीहत (की बाते) नाज़िल की وَلَقَدْ أَنزَلْنَا إِلَيْكُمْ آيَاتٍ مُّبَيِّنَاتٍ وَمَثَلًا مِّنَ الَّذِينَ خَلَوْا مِن قَبْلِكُمْ وَمَوْعِظَةً لِّلْمُتَّقِينَ
35 ख़ुदा तो सारे आसमान और ज़मीन का नूर है उसके नूर की मिसल (ऐसी) है जैसे एक ताक़ (सीना) है जिसमे एक रौशन चिराग़ (इल्मे शरीयत) हो और चिराग़ एक शीशे की क़न्दील (दिल) में हो (और) क़न्दील (अपनी तड़प में) गोया एक जगमगाता हुआ रौशन सितारा (वह चिराग़) जैतून के मुबारक दरख्त (के तेल) से रौशन किया जाए जो न पूरब की तरफ हो और न पश्चिम की तरफ (बल्कि बीचों बीच मैदान में) उसका तेल (ऐसा) शफ्फाफ हो कि अगरचे आग उसे छुए भी नही ताहम ऐसा मालूम हो कि आप ही आप रौशन हो जाएगा (ग़रज़ एक नूर नहीं बल्कि) नूर आला नूर (नूर की नूर पर जोत पड़ रही है) ख़ुदा अपने नूर की तरफ जिसे चाहता है हिदायत करता है और ख़ुदा तो हर चीज़ से खूब वाक़िफ है اللَّهُ نُورُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ مَثَلُ نُورِهِ كَمِشْكَاةٍ فِيهَا مِصْبَاحٌ الْمِصْبَاحُ فِي زُجَاجَةٍ الزُّجَاجَةُ كَأَنَّهَا كَوْكَبٌ دُرِّيٌّ يُوقَدُ مِن شَجَرَةٍ مُّبَارَكَةٍ زَيْتُونِةٍ لَّا شَرْقِيَّةٍ وَلَا غَرْبِيَّةٍ يَكَادُ زَيْتُهَا يُضِيءُ وَلَوْ لَمْ تَمْسَسْهُ نَارٌ نُّورٌ عَلَى نُورٍ يَهْدِي اللَّهُ لِنُورِهِ مَن يَشَاء وَيَضْرِبُ اللَّهُ الْأَمْثَالَ لِلنَّاسِ وَاللَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ
36 (वह क़न्दील) उन घरों में रौशन है जिनकी निस्बत ख़ुदा ने हुक्म दिया कि उनकी ताज़ीम की जाए और उनमें उसका नाम लिया जाए जिनमें सुबह व शाम वह लोग उसकी तस्बीह किया करते हैं فِي بُيُوتٍ أَذِنَ اللَّهُ أَن تُرْفَعَ وَيُذْكَرَ فِيهَا اسْمُهُ يُسَبِّحُ لَهُ فِيهَا بِالْغُدُوِّ وَالْآصَالِ
37 ऐसे लोग जिनको ख़ुदा के ज़िक्र और नमाज़ पढ़ने और ज़कात अदा करने से न तो तिजारत ही ग़ाफिल कर सकती है न (ख़रीद फरोख्त) (का मामला क्योंकि) वह लोग उस दिन से डरते हैं जिसमें ख़ौफ के मारे दिल और ऑंखें उलट जाएँगी رِجَالٌ لَّا تُلْهِيهِمْ تِجَارَةٌ وَلَا بَيْعٌ عَن ذِكْرِ اللَّهِ وَإِقَامِ الصَّلَاةِ وَإِيتَاء الزَّكَاةِ يَخَافُونَ يَوْمًا تَتَقَلَّبُ فِيهِ الْقُلُوبُ وَالْأَبْصَارُ
38 (उसकी इबादत इसलिए करते हैं) ताकि ख़ुदा उन्हें उनके आमाल का बेहतर से बेहतर बदला अता फरमाए और अपने फज़ल व करम से कुछ और ज्यादा भी दे और ख़ुदा तो जिसे चाहता है बेहिसाब रोज़ी देता है لِيَجْزِيَهُمُ اللَّهُ أَحْسَنَ مَا عَمِلُوا وَيَزِيدَهُم مِّن فَضْلِهِ وَاللَّهُ يَرْزُقُ مَن يَشَاء بِغَيْرِ حِسَابٍ
39 और जिन लोगों ने कुफ्र एख्तेयार किया उनकी कारस्तानियाँ (ऐसी है) जैसे एक चटियल मैदान का चमकता हुआ बालू कि प्यासा उस को दूर से देखे तो पानी ख्याल करता है यहाँ तक कि जब उसके पास आया तो उसको कुछ भी न पाया (और प्यास से तड़प कर मर गया) और ख़ुदा को अपने पास मौजूद पाया तो उसने उसका हिसाब (किताब) पूरा पूरा चुका दिया और ख़ुदा तो बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है وَالَّذِينَ كَفَرُوا أَعْمَالُهُمْ كَسَرَابٍ بِقِيعَةٍ يَحْسَبُهُ الظَّمْآنُ مَاء حَتَّى إِذَا جَاءهُ لَمْ يَجِدْهُ شَيْئًا وَوَجَدَ اللَّهَ عِندَهُ فَوَفَّاهُ حِسَابَهُ وَاللَّهُ سَرِيعُ الْحِسَابِ
40 (या काफिरों के आमाल की मिसाल) उस बड़े गहरे दरिया की तारिकियों की सी है- जैसे एक लहर उसके ऊपर दूसरी लहर उसके ऊपर अब्र (तह ब तह) ढॉके हुए हो (ग़रज़) तारिकियाँ है कि एक से ऊपर एक (उमड़ी) चली आती हैं (इसी तरह से) कि अगर कोइ शख्स अपना हाथ निकाले तो (शिद्दत तारीकी से) उसे देख न सके और जिसे खुद ख़ुदा ही ने (हिदायत की) रौशनी न दी हो तो (समझ लो कि) उसके लिए कहीं कोई रौशनी नहीं है أَوْ كَظُلُمَاتٍ فِي بَحْرٍ لُّجِّيٍّ يَغْشَاهُ مَوْجٌ مِّن فَوْقِهِ مَوْجٌ مِّن فَوْقِهِ سَحَابٌ ظُلُمَاتٌ بَعْضُهَا فَوْقَ بَعْضٍ إِذَا أَخْرَجَ يَدَهُ لَمْ يَكَدْ يَرَاهَا وَمَن لَّمْ يَجْعَلِ اللَّهُ لَهُ نُورًا فَمَا لَهُ مِن نُّورٍ
41 (ऐ शख्स) क्या तूने इतना भी नहीं देखा कि जितनी मख़लूक़ात सारे आसमान और ज़मीन में हैं और परिन्दें पर फैलाए (ग़रज़ सब) उसी को तस्बीह किया करते हैं सब के सब अपनी नमाज़ और अपनी तस्बीह का तरीक़ा खूब जानते हैं और जो कुछ ये किया करते हैं ख़ुदा उससे खूब वाक़िफ है أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ يُسَبِّحُ لَهُ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَالطَّيْرُ صَافَّاتٍ كُلٌّ قَدْ عَلِمَ صَلَاتَهُ وَتَسْبِيحَهُ وَاللَّهُ عَلِيمٌ بِمَا يَفْعَلُونَ
42 और सारे आसमान व ज़मीन की सल्तनत ख़ास ख़ुदा ही की है और ख़ुदा ही की तरफ (सब को) लौट कर जाना है وَلِلَّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَإِلَى اللَّهِ الْمَصِيرُ
43 क्या तूने उस पर भी नज़र नहीं की कि यक़ीनन ख़ुदा ही अब्र को चलाता है फिर वही बाहम उसे जोड़ता है-फिर वही उसे तह ब तह रखता है तब तू तो बारिश उसके दरमियान से निकलते हुए देखता है और आसमान में जो (जमे हुए बादलों के) पहाड़ है उनमें से वही उसे बरसाता है- फिर उन्हें जिस (के सर) पर चाहता है पहुँचा देता है- और जिस (के सर) से चाहता है टाल देता है- क़रीब है कि उसकी बिजली की कौन्द आखों की रौशनी उचके लिये जाती है أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ يُزْجِي سَحَابًا ثُمَّ يُؤَلِّفُ بَيْنَهُ ثُمَّ يَجْعَلُهُ رُكَامًا فَتَرَى الْوَدْقَ يَخْرُجُ مِنْ خِلَالِهِ وَيُنَزِّلُ مِنَ السَّمَاء مِن جِبَالٍ فِيهَا مِن بَرَدٍ فَيُصِيبُ بِهِ مَن يَشَاء وَيَصْرِفُهُ عَن مَّن يَشَاء يَكَادُ سَنَا بَرْقِهِ يَذْهَبُ بِالْأَبْصَارِ
44 ख़ुदा ही रात और दिन को फेर बदल करता रहता है- बेशक इसमें ऑंख वालों के लिए बड़ी इबरत है يُقَلِّبُ اللَّهُ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَعِبْرَةً لِّأُوْلِي الْأَبْصَارِ
45 और ख़ुदा ही ने तमाम ज़मीन पर चलने वाले (जानवरों) को पानी से पैदा किया उनमें से बाज़ तो ऐसे हैं जो अपने पेट के बल चलते हैं और बाज़ उनमें से ऐसे हैं जो दो पाँव पर चलते हैं और बाज़ उनमें से ऐसे हैं जो चार पावों पर चलते हैं- ख़ुदा जो चाहता है पैदा करता है इसमें शक नहीं कि खुदा हर चीज़ पर क़ादिर है وَاللَّهُ خَلَقَ كُلَّ دَابَّةٍ مِن مَّاء فَمِنْهُم مَّن يَمْشِي عَلَى بَطْنِهِ وَمِنْهُم مَّن يَمْشِي عَلَى رِجْلَيْنِ وَمِنْهُم مَّن يَمْشِي عَلَى أَرْبَعٍ يَخْلُقُ اللَّهُ مَا يَشَاء إِنَّ اللَّهَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
46 हम ही ने यक़ीनन वाजेए व रौशन आयतें नाज़िल की और खुदा ही जिसको चाहता है सीधी राह की हिदायत करता है لَقَدْ أَنزَلْنَا آيَاتٍ مُّبَيِّنَاتٍ وَاللَّهُ يَهْدِي مَن يَشَاء إِلَى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ
47 और (जो लोग ऐसे भी है जो) कहते हैं कि ख़ुदा पर और रसूल पर ईमान लाए और हमने इताअत क़ुबूल की- फिर उसके बाद उन में से कुछ लोग (ख़ुदा के हुक्म से) मुँह फेर लेते हैं और (सच यूँ है कि) ये लोग ईमानदार थे ही नहीं وَيَقُولُونَ آمَنَّا بِاللَّهِ وَبِالرَّسُولِ وَأَطَعْنَا ثُمَّ يَتَوَلَّى فَرِيقٌ مِّنْهُم مِّن بَعْدِ ذَلِكَ وَمَا أُوْلَئِكَ بِالْمُؤْمِنِينَ
48 और जब वह लोग ख़ुदा और उसके रसूल की तरफ बुलाए जाते हैं ताकि रसूल उनके आपस के झगड़े का फैसला कर दें तो उनमें का एक फरीक रदगिरदानी करता है وَإِذَا دُعُوا إِلَى اللَّهِ وَرَسُولِهِ لِيَحْكُمَ بَيْنَهُمْ إِذَا فَرِيقٌ مِّنْهُم مُّعْرِضُونَ
49 और (असल ये है कि) अगर हक़ उनकी तरफ होता तो गर्दन झुकाए (चुपके) रसूल के पास दौड़े हुए आते وَإِن يَكُن لَّهُمُ الْحَقُّ يَأْتُوا إِلَيْهِ مُذْعِنِينَ
50 क्या उन के दिल में (कुफ्र का) मर्ज़ (बाक़ी) है या शक में पड़े हैं या इस बात से डरते हैं कि (मुबादा) ख़ुदा और उसका रसूल उन पर ज़ुल्म कर बैठेगा- (ये सब कुछ नहीं) बल्कि यही लोग ज़ालिम हैं أَفِي قُلُوبِهِم مَّرَضٌ أَمِ ارْتَابُوا أَمْ يَخَافُونَ أَن يَحِيفَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ وَرَسُولُهُ بَلْ أُوْلَئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ
51 ईमानदारों का क़ौल तो बस ये है कि जब उनको ख़ुदा और उसके रसूल के पास बुलाया जाता है ताकि उनके बाहमी झगड़ों का फैसला करो तो कहते हैं कि हमने (हुक्म) सुना और (दिल से) मान लिया और यही लोग (आख़िरत में) कामयाब होने वाले हैं إِنَّمَا كَانَ قَوْلَ الْمُؤْمِنِينَ إِذَا دُعُوا إِلَى اللَّهِ وَرَسُولِهِ لِيَحْكُمَ بَيْنَهُمْ أَن يَقُولُوا سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا وَأُوْلَئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ
52 और जो शख्स ख़ुदा और उसके रसूल का हुक्म माने और ख़ुदा से डरे और उस (की नाफरमानी) से बचता रहेगा तो ऐसे ही लोग अपनी मुराद को पहुँचेगें وَمَن يُطِعِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ وَيَخْشَ اللَّهَ وَيَتَّقْهِ فَأُوْلَئِكَ هُمُ الْفَائِزُونَ
53 और (ऐ रसूल) उन (मुनाफेक़ीन) ने तुम्हारी इताअत की ख़ुदा की सख्त से सख्त क़समें खाई कि अगर तुम उन्हें हुक्म दो तो बिला उज़्र (घर बार छोड़कर) निकल खडे हों- तुम कह दो कि क़समें न खाओ दस्तूर के मुवाफिक़ इताअत (इससे बेहतर) और बेशक तुम जो कुछ करते हो ख़ुदा उससे ख़बरदार है وَأَقْسَمُوا بِاللَّهِ جَهْدَ أَيْمَانِهِمْ لَئِنْ أَمَرْتَهُمْ لَيَخْرُجُنَّ قُل لَّا تُقْسِمُوا طَاعَةٌ مَّعْرُوفَةٌ إِنَّ اللَّهَ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ
54 (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ख़ुदा की इताअत करो और रसूल की इताअत करो इस पर भी अगर तुम सरताबी करोगे तो बस रसूल पर इतना ही (तबलीग़) वाजिब है जिसके वह ज़िम्मेदार किए गए हैं और जिसके ज़िम्मेदार तुम बनाए गए हो तुम पर वाजिब है और अगर तुम उसकी इताअत करोगे तो हिदायत पाओगे और रसूल पर तो सिर्फ साफ तौर पर (एहकाम का) पहुँचाना फर्ज है قُلْ أَطِيعُوا اللَّهَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ فَإِن تَوَلَّوا فَإِنَّمَا عَلَيْهِ مَا حُمِّلَ وَعَلَيْكُم مَّا حُمِّلْتُمْ وَإِن تُطِيعُوهُ تَهْتَدُوا وَمَا عَلَى الرَّسُولِ إِلَّا الْبَلَاغُ الْمُبِينُ
55 (ऐ ईमानदारों) तुम में से जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए उन से ख़ुदा ने वायदा किया कि उन को (एक न एक) दिन रुए ज़मीन पर ज़रुर (अपना) नाएब मुक़र्रर करेगा जिस तरह उन लोगों को नाएब बनाया जो उनसे पहले गुज़र चुके हैं और जिस दीन को उसने उनके लिए पसन्द फरमाया है (इस्लाम) उस पर उन्हें ज़रुर ज़रुर पूरी क़ुदरत देगा और उनके ख़ाएफ़ होने के बाद (उनकी हर आस को) अमन से ज़रुर बदल देगा कि वह (इत्मेनान से) मेरी ही इबादत करेंगे और किसी को हमारा शरीक न बनाएँगे और जो शख्स इसके बाद भी नाशुक्री करे तो ऐसे ही लोग बदकार हैं وَعَدَ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا مِنكُمْ وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَيَسْتَخْلِفَنَّهُم فِي الْأَرْضِ كَمَا اسْتَخْلَفَ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ وَلَيُمَكِّنَنَّ لَهُمْ دِينَهُمُ الَّذِي ارْتَضَى لَهُمْ وَلَيُبَدِّلَنَّهُم مِّن بَعْدِ خَوْفِهِمْ أَمْنًا يَعْبُدُونَنِي لَا يُشْرِكُونَ بِي شَيْئًا وَمَن كَفَرَ بَعْدَ ذَلِكَ فَأُوْلَئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَ
56 और (ऐ ईमानदारों) नमाज़ पाबन्दी से पढ़ा करो और ज़कात दिया करो और (दिल से) रसूल की इताअत करो ताकि तुम पर रहम किया जाए وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ
57 और (ऐ रसूल) तुम ये ख्याल न करो कि कुफ्फार (इधर उधर) ज़मीन मे (फैल कर हमें) आजिज़ कर देगें (ये ख़ुद आजिज़ हो जाएगें) और उनका ठिकाना तो जहन्नुम है और क्या बुरा ठिकाना है لَا تَحْسَبَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا مُعْجِزِينَ فِي الْأَرْضِ وَمَأْوَاهُمُ النَّارُ وَلَبِئْسَ الْمَصِيرُ
58 ऐ ईमानदारों तुम्हारी लौन्डी ग़ुलाम और वह लड़के जो अभी तक बुलूग़ की हद तक नहीं पहुँचे हैं उनको भी चाहिए कि (दिन रात में) तीन मरतबा (तुम्हारे पास आने की) तुमसे इजाज़त ले लिया करें तब आएँ (एक) नमाज़ सुबह से पहले और (दूसरे) जब तुम (गर्मी से) दोपहर को (सोने के लिए मामूलन) कपड़े उतार दिया करते हो (तीसरी) नमाजे इशा के बाद (ये) तीन (वक्त) तुम्हारे परदे के हैं इन अवक़ात के अलावा (बे अज़न आने मे) न तुम पर कोई इल्ज़ाम है-न उन पर (क्योंकि) उन अवक़ात के अलावा (ब ज़रुरत या बे ज़रुरत) लोग एक दूसरे के पास चक्कर लगाया करते हैं- यँ ख़ुदा (अपने) एहकाम तुम से साफ साफ बयान करता है और ख़ुदा तो बड़ा वाकिफ़कार हकीम है يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لِيَسْتَأْذِنكُمُ الَّذِينَ مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ وَالَّذِينَ لَمْ يَبْلُغُوا الْحُلُمَ مِنكُمْ ثَلَاثَ مَرَّاتٍ مِن قَبْلِ صَلَاةِ الْفَجْرِ وَحِينَ تَضَعُونَ ثِيَابَكُم مِّنَ الظَّهِيرَةِ وَمِن بَعْدِ صَلَاةِ الْعِشَاء ثَلَاثُ عَوْرَاتٍ لَّكُمْ لَيْسَ عَلَيْكُمْ وَلَا عَلَيْهِمْ جُنَاحٌ بَعْدَهُنَّ طَوَّافُونَ عَلَيْكُم بَعْضُكُمْ عَلَى بَعْضٍ كَذَلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمُ الْآيَاتِ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
59 और (ऐ ईमानदारों) जब तुम्हारे लड़के हदे बुलूग को पहुँचें तो जिस तरह उन के कब्ल (बड़ी उम्र) वाले (घर में आने की) इजाज़त ले लिया करते थे उसी तरह ये लोग भी इजाज़त ले लिया करें-यूँ ख़ुदा अपने एहकाम साफ साफ बयान करता है और ख़ुदा तो बड़ा वाकिफकार हकीम है وَإِذَا بَلَغَ الْأَطْفَالُ مِنكُمُ الْحُلُمَ فَلْيَسْتَأْذِنُوا كَمَا اسْتَأْذَنَ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ كَذَلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمْ آيَاتِهِ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
60 और बूढ़ी बूढ़ी औरतें जो (बुढ़ापे की वजह से) निकाह की ख्वाहिश नही रखती वह अगर अपने कपड़े (दुपट्टे वगैराह) उतारकर (सर नंगा) कर डालें तो उसमें उन पर कुछ गुनाह नही है- बशर्ते कि उनको अपना बनाव सिंगार दिखाना मंज़ूर न हो और (इस से भी) बचें तो उनके लिए और बेहतर है और ख़ुदा तो (सबकी सब कुछ) सुनता और जानता है وَالْقَوَاعِدُ مِنَ النِّسَاء اللَّاتِي لَا يَرْجُونَ نِكَاحًا فَلَيْسَ عَلَيْهِنَّ جُنَاحٌ أَن يَضَعْنَ ثِيَابَهُنَّ غَيْرَ مُتَبَرِّجَاتٍ بِزِينَةٍ وَأَن يَسْتَعْفِفْنَ خَيْرٌ لَّهُنَّ وَاللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
61 इस बात में न तो अंधे आदमी के लिए मज़ाएक़ा है और न लँगड़ें आदमी पर कुछ इल्ज़ाम है- और न बीमार पर कोई गुनाह है और न ख़ुद तुम लोगो पर कि अपने घरों से खाना खाओ या अपने बाप दादा नाना बग़ैरह के घरों से या अपनी माँ दादी नानी वगैरह के घरों से या अपने भाइयों के घरों से या अपनी बहनों के घरों से या अपने चचाओं के घरों से या अपनी फूफ़ियों के घरों से या अपने मामूओं के घरों से या अपनी खालाओं के घरों से या उस घर से जिसकी कुन्जियाँ तुम्हारे हाथ में है या अपने दोस्तों (के घरों) से इस में भी तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं कि सब के सब मिलकर खाओ या अलग अलग फिर जब तुम घर वालों में जाने लगो (और वहाँ किसी का न पाओ) तो ख़ुद अपने ही ऊपर सलाम कर लिया करो जो ख़ुदा की तरफ से एक मुबारक पाक व पाकीज़ा तोहफा है- ख़ुदा यूँ (अपने) एहकाम तुमसे साफ साफ बयान करता है ताकि तुम समझो لَيْسَ عَلَى الْأَعْمَى حَرَجٌ وَلَا عَلَى الْأَعْرَجِ حَرَجٌ وَلَا عَلَى الْمَرِيضِ حَرَجٌ وَلَا عَلَى أَنفُسِكُمْ أَن تَأْكُلُوا مِن بُيُوتِكُمْ أَوْ بُيُوتِ آبَائِكُمْ أَوْ بُيُوتِ أُمَّهَاتِكُمْ أَوْ بُيُوتِ إِخْوَانِكُمْ أَوْ بُيُوتِ أَخَوَاتِكُمْ أَوْ بُيُوتِ أَعْمَامِكُمْ أَوْ بُيُوتِ عَمَّاتِكُمْ أَوْ بُيُوتِ أَخْوَالِكُمْ أَوْ بُيُوتِ خَالَاتِكُمْ أَوْ مَا مَلَكْتُم مَّفَاتِحَهُ أَوْ صَدِيقِكُمْ لَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَن تَأْكُلُوا جَمِيعًا أَوْ أَشْتَاتًا فَإِذَا دَخَلْتُم بُيُوتًا فَسَلِّمُوا عَلَى أَنفُسِكُمْ تَحِيَّةً مِّنْ عِندِ اللَّهِ مُبَارَكَةً طَيِّبَةً كَذَلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمُ الْآيَاتِ لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُون
62 सच्चे ईमानदार तो सिर्फ वह लोग हैं जो ख़ुदा और उसके रसूल पर ईमान लाए और जब किसी ऐसे काम के लिए जिसमें लोंगों के जमा होने की ज़रुरत है- रसूल के पास होते हैं जब तक उससे इजाज़त न ले ली न गए (ऐ रसूल) जो लोग तुम से (हर बात में) इजाज़त ले लेते हैं वे ही लोग (दिल से) ख़ुदा और उसके रसूल पर ईमान लाए हैं तो जब ये लोग अपने किसी काम के लिए तुम से इजाज़त माँगें तो तुम उनमें से जिसको (मुनासिब ख्याल करके) चाहो इजाज़त दे दिया करो और खुदा उसे उसकी बख़्शिस की दुआ भी करो बेशक खुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है إِنَّمَا الْمُؤْمِنُونَ الَّذِينَ آمَنُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ وَإِذَا كَانُوا مَعَهُ عَلَى أَمْرٍ جَامِعٍ لَمْ يَذْهَبُوا حَتَّى يَسْتَأْذِنُوهُ إِنَّ الَّذِينَ يَسْتَأْذِنُونَكَ أُوْلَئِكَ الَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ فَإِذَا اسْتَأْذَنُوكَ لِبَعْضِ شَأْنِهِمْ فَأْذَن لِّمَن شِئْتَ مِنْهُمْ وَاسْتَغْفِرْ لَهُمُ اللَّهَ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
63 (ऐ ईमानदारों) जिस तरह तुम में से एक दूसरे को (नाम ले कर) बुलाया करते हैं उस तरह आपस में रसूल का बुलाना न समझो ख़ुदा उन लोगों को खूब जानता है जो तुम में से ऑंख बचा के (पैग़म्बर के पास से) खिसक जाते हैं- तो जो लोग उसके हुक्म की मुख़ालफत करते हैं उनको इस बात से डरते रहना चाहिए कि (मुबादा) उन पर कोई मुसीबत आ पडे या उन पर कोई दर्दनाक अज़ाब नाज़िल हो لَا تَجْعَلُوا دُعَاء الرَّسُولِ بَيْنَكُمْ كَدُعَاء بَعْضِكُم بَعْضًا قَدْ يَعْلَمُ اللَّهُ الَّذِينَ يَتَسَلَّلُونَ مِنكُمْ لِوَاذًا فَلْيَحْذَرِ الَّذِينَ يُخَالِفُونَ عَنْ أَمْرِهِ أَن تُصِيبَهُمْ فِتْنَةٌ أَوْ يُصِيبَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
64 ख़बरदार जो कुछ सारे आसमान व ज़मीन में है (सब) यक़ीनन ख़ुदा ही का है जिस हालत पर तुम हो ख़ुदा ख़ूब जानता है और जिस दिन उसके पास ये लोग लौटा कर लाएँ जाएँगें तो जो कुछ उन लोगों ने किया कराया है बता देगा और ख़ुदा तो हर चीज़ से खूब वाकिफ है أَلَا إِنَّ لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ قَدْ يَعْلَمُ مَا أَنتُمْ عَلَيْهِ وَيَوْمَ يُرْجَعُونَ إِلَيْهِ فَيُنَبِّئُهُم بِمَا عَمِلُوا وَاللَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ
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