Al-Anfal

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Hindi: Suhel Farooq Khan and Saifur Rahman Nadwi

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# Translation Ayah
1 (ऐ रसूल) तुम से लोग अनफाल (माले ग़नीमत) के बारे में पूछा करते हैं तुम कह दो कि अनफाल मख़सूस ख़ुदा और रसूल के वास्ते है तो ख़ुदा से डरो (और) अपने बाहमी (आपसी) मामलात की इसलाह करो और अगर तुम सच्चे (ईमानदार) हो तो ख़ुदा की और उसके रसूल की इताअत करो يَسْأَلُونَكَ عَنِ الأَنفَالِ قُلِ الأَنفَالُ لِلّهِ وَالرَّسُولِ فَاتَّقُواْ اللّهَ وَأَصْلِحُواْ ذَاتَ بِيْنِكُمْ وَأَطِيعُواْ اللّهَ وَرَسُولَهُ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
2 सच्चे ईमानदार तो बस वही लोग हैं कि जब (उनके सामने) ख़ुदा का ज़िक्र किया जाता है तो उनके दिल हिल जाते हैं और जब उनके सामने उसकी आयतें पढ़ी जाती हैं तो उनके ईमान को और भी ज्यादा कर देती हैं और वह लोग बस अपने परवरदिगार ही पर भरोसा रखते हैं إِنَّمَا الْمُؤْمِنُونَ الَّذِينَ إِذَا ذُكِرَ اللّهُ وَجِلَتْ قُلُوبُهُمْ وَإِذَا تُلِيَتْ عَلَيْهِمْ آيَاتُهُ زَادَتْهُمْ إِيمَانًا وَعَلَى رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُونَ
3 नमाज़ को पाबन्दी से अदा करते हैं और जो हम ने उन्हें दिया हैं उसमें से (राहे ख़ुदा में) ख़र्च करते हैं الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلاَةَ وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنفِقُونَ
4 यही तो सच्चे ईमानदार हैं उन्हीं के लिए उनके परवरदिगार के हॉ (बड़े बड़े) दरजे हैं और बख्शिश और इज्ज़त और आबरू के साथ रोज़ी है (ये माले ग़नीमत का झगड़ा वैसा ही है) أُوْلَـئِكَ هُمُ الْمُؤْمِنُونَ حَقًّا لَّهُمْ دَرَجَاتٌ عِندَ رَبِّهِمْ وَمَغْفِرَةٌ وَرِزْقٌ كَرِيمٌ
5 जिस तरह तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हें बिल्कुल ठीक (मसलहत से) तुम्हारे घर से (जंग बदर) में निकाला था और मोमिनीन का एक गिरोह (उससे) नाखुश था كَمَا أَخْرَجَكَ رَبُّكَ مِن بَيْتِكَ بِالْحَقِّ وَإِنَّ فَرِيقاً مِّنَ الْمُؤْمِنِينَ لَكَارِهُونَ
6 कि वह लोग हक़ के ज़ाहिर होने के बाद भी तुमसे (ख्वाह माख्वाह) सच्ची बात में झगड़तें थें और इस तरह (करने लगे) गोया (ज़बरदस्ती) मौत के मुँह में ढकेले जा रहे हैं يُجَادِلُونَكَ فِي الْحَقِّ بَعْدَ مَا تَبَيَّنَ كَأَنَّمَا يُسَاقُونَ إِلَى الْمَوْتِ وَهُمْ يَنظُرُونَ
7 और उसे (अपनी ऑंखों से) देख रहे हैं और (ये वक्त था) जब ख़ुदा तुमसे वायदा कर रहा था कि (कुफ्फार मक्का) दो जमाअतों में से एक तुम्हारे लिए ज़रूरी हैं और तुम ये चाहते थे कि कमज़ोर जमाअत तुम्हारे हाथ लगे (ताकि बग़ैर लड़े भिड़े माले ग़नीमत हाथ आ जाए) और ख़ुदा ये चाहता था कि अपनी बातों से हक़ को साबित (क़दम) करें और काफिरों की जड़ काट डाले وَإِذْ يَعِدُكُمُ اللّهُ إِحْدَى الطَّائِفَتِيْنِ أَنَّهَا لَكُمْ وَتَوَدُّونَ أَنَّ غَيْرَ ذَاتِ الشَّوْكَةِ تَكُونُ لَكُمْ وَيُرِيدُ اللّهُ أَن يُحِقَّ الحَقَّ بِكَلِمَاتِهِ وَيَقْطَعَ دَابِرَ الْكَافِرِينَ
8 ताकि हक़ को (हक़) साबित कर दे और बातिल का मटियामेट कर दे अगर चे गुनाहगार (कुफ्फार उससे) नाखुश ही क्यों न हो لِيُحِقَّ الْحَقَّ وَيُبْطِلَ الْبَاطِلَ وَلَوْ كَرِهَ الْمُجْرِمُونَ
9 (ये वह वक्त था) जब तुम अपने परवदिगार से फरियाद कर रहे थे उसने तुम्हारी सुन ली और जवाब दे दिया कि मैं तुम्हारी लगातार हज़ार फ़रिश्तों से मदद करूँगा إِذْ تَسْتَغِيثُونَ رَبَّكُمْ فَاسْتَجَابَ لَكُمْ أَنِّي مُمِدُّكُم بِأَلْفٍ مِّنَ الْمَلآئِكَةِ مُرْدِفِينَ
10 और (ये इमदाद ग़ैबी) ख़ुदा ने सिर्फ तुम्हारी ख़ातिर (खुशी) के लिए की थी और तुम्हारे दिल मुतमइन हो जाएं और (याद रखो) मदद ख़ुदा के सिवा और कहीं से (कभी) नहीं होती बेशक ख़ुदा ग़ालिब हिकमत वाला है وَمَا جَعَلَهُ اللّهُ إِلاَّ بُشْرَى وَلِتَطْمَئِنَّ بِهِ قُلُوبُكُمْ وَمَا النَّصْرُ إِلاَّ مِنْ عِندِ اللّهِ إِنَّ اللّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ
11 ये वह वक्त था जब अपनी तरफ से इत्मिनान देने के लिए तुम पर नींद को ग़ालिब कर रहा था और तुम पर आसमान से पानी बरस रहा था ताकि उससे तुम्हें पाक (पाकीज़ा कर दे और तुम से शैतान की गन्दगी दूर कर दे और तुम्हारे दिल मज़बूत कर दे और पानी से (बालू जम जाए) और तुम्हारे क़दम ब क़दम (अच्छी तरह) जमाए रहे إِذْ يُغَشِّيكُمُ النُّعَاسَ أَمَنَةً مِّنْهُ وَيُنَزِّلُ عَلَيْكُم مِّن السَّمَاء مَاء لِّيُطَهِّرَكُم بِهِ وَيُذْهِبَ عَنكُمْ رِجْزَ الشَّيْطَانِ َلِيَرْبِطَ عَلَى قُلُوبِكُمْ وَيُثَبِّتَ بِهِ الأَقْدَامَ
12 (ऐ रसूल ये वह वक्त था) जब तुम्हारा परवरदिगार फ़रिश्तों से फरमा रहा था कि मै यकीनन तुम्हारे साथ हूँ तुम ईमानदारों को साबित क़दम रखो मै बहुत जल्द काफिरों के दिलों में (तुम्हारा रौब) डाल दूँगा (पस फिर क्या है अब) तो उन कुफ्फार की गर्दनों पर मारो और उनकी पोर पोर को चटिया कर दो إِذْ يُوحِي رَبُّكَ إِلَى الْمَلآئِكَةِ أَنِّي مَعَكُمْ فَثَبِّتُواْ الَّذِينَ آمَنُواْ سَأُلْقِي فِي قُلُوبِ الَّذِينَ كَفَرُواْ الرَّعْبَ فَاضْرِبُواْ فَوْقَ الأَعْنَاقِ وَاضْرِبُواْ مِنْهُمْ كُلَّ بَنَانٍ
13 ये (सज़ा) इसलिए है कि उन लोगों ने ख़ुदा और उसके रसूल की मुख़ालिफ की और जो शख़्स (भी) ख़ुदा और उसके रसूल की मुख़ालफ़त करेगा तो (याद रहें कि) ख़ुदा बड़ा सख्त अज़ाब करने वाला है ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ شَآقُّواْ اللّهَ وَرَسُولَهُ وَمَن يُشَاقِقِ اللّهَ وَرَسُولَهُ فَإِنَّ اللّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ
14 (काफिरों दुनिया में तो) लो फिर उस (सज़ा का चखो और (फिर आख़िर में तो) काफिरों के वास्ते जहन्नुम का अज़ाब ही है ذَلِكُمْ فَذُوقُوهُ وَأَنَّ لِلْكَافِرِينَ عَذَابَ النَّارِ
15 ऐ ईमानदारों जब तुमसे कुफ्फ़ार से मैदाने जंग में मुक़ाबला हुआ तो (ख़बरदार) उनकी तरफ पीठ न करना يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ إِذَا لَقِيتُمُ الَّذِينَ كَفَرُواْ زَحْفاً فَلاَ تُوَلُّوهُمُ الأَدْبَارَ
16 (याद रहे कि) उस शख़्स के सिवा जो लड़ाई वास्ते कतराए या किसी जमाअत के पास (जाकर) मौके पाए (और) जो शख़्स भी उस दिन उन कुफ्फ़ार की तरफ पीठ फेरेगा वह यक़ीनी (हिर फिर के) ख़ुदा के ग़जब में आ गया और उसका ठिकाना जहन्नुम ही हैं और वह क्या बुरा ठिकाना है وَمَن يُوَلِّهِمْ يَوْمَئِذٍ دُبُرَهُ إِلاَّ مُتَحَرِّفاً لِّقِتَالٍ أَوْ مُتَحَيِّزاً إِلَى فِئَةٍ فَقَدْ بَاء بِغَضَبٍ مِّنَ اللّهِ وَمَأْوَاهُ جَهَنَّمُ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ
17 और (मुसलमानों) उन कुफ्फ़ार को कुछ तुमने तो क़त्ल किया नही बल्कि उनको तो ख़ुदा ने क़त्ल किया और (ऐ रसूल) जब तुमने तीर मारा तो कुछ तुमने नही मारा बल्कि ख़ुदा ख़ुदा ने तीर मारा और ताकि अपनी तरफ से मोमिनीन पर खूब एहसान करे बेशक ख़ुदा (सबकी) सुनता और (सब कुछ) जानता है فَلَمْ تَقْتُلُوهُمْ وَلَـكِنَّ اللّهَ قَتَلَهُمْ وَمَا رَمَيْتَ إِذْ رَمَيْتَ وَلَـكِنَّ اللّهَ رَمَى وَلِيُبْلِيَ الْمُؤْمِنِينَ مِنْهُ بَلاء حَسَناً إِنَّ اللّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
18 ये तो ये ख़ुदा तो काफिरों की मक्कारी का कमज़ोर कर देने वाला है ذَلِكُمْ وَأَنَّ اللّهَ مُوهِنُ كَيْدِ الْكَافِرِينَ
19 (काफ़िर) अगर तुम ये चाहते हो (कि जो हक़ पर हो उसकी) फ़तेह हो (मुसलमानों की) फ़तेह भी तुम्हारे सामने आ मौजूद हुई अब क्या गुरूर बाक़ी है और अगर तुम (अब भी मुख़तलिफ़ इस्लाम) से बाज़ रहो तो तुम्हारे वास्ते बेहतर है और अगर कहीं तुम पलट पड़े तो (याद रहे) हम भी पलट पड़ेगें (और तुम्हें तबाह कर छोड़ देगें) और तुम्हारी जमाअत अगरचे बहुत ज्यादा भी हो हरगिज़ कुछ काम न आएगी और ख़ुदा तो यक़ीनी मामिनीन के साथ है إِن تَسْتَفْتِحُواْ فَقَدْ جَاءكُمُ الْفَتْحُ وَإِن تَنتَهُواْ فَهُوَ خَيْرٌ لَّكُمْ وَإِن تَعُودُواْ نَعُدْ وَلَن تُغْنِيَ عَنكُمْ فِئَتُكُمْ شَيْئًا وَلَوْ كَثُرَتْ وَأَنَّ اللّهَ مَعَ الْمُؤْمِنِينَ
20 (ऐ ईमानदारों खुदा और उसके रसूल की इताअत करो और उससे मुँह न मोड़ो जब तुम समझ रहे हो يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ أَطِيعُواْ اللّهَ وَرَسُولَهُ وَلاَ تَوَلَّوْا عَنْهُ وَأَنتُمْ تَسْمَعُونَ
21 और उन लोगों के ऐसे न हो जाओं जो (मुँह से तो) कहते थे कि हम सुन रहे हैं हालाकि वह सुनते (सुनाते ख़ाक) न थे وَلاَ تَكُونُواْ كَالَّذِينَ قَالُوا سَمِعْنَا وَهُمْ لاَ يَسْمَعُونَ
22 इसमें शक़ नहीं कि ज़मीन पर चलने वाले तमाम हैवानात से बदतर ख़ुदा के नज़दीक वह बहरे गूँगे (कुफ्फार) हैं जो कुछ नहीं समझते إِنَّ شَرَّ الدَّوَابَّ عِندَ اللّهِ الصُّمُّ الْبُكْمُ الَّذِينَ لاَ يَعْقِلُونَ
23 और अगर ख़ुदा उनमें नेकी (की बू भी) देखता तो ज़रूर उनमें सुनने की क़ाबलियत अता करता मगर ये ऐसे हैं कि अगर उनमें सुनने की क़ाबिलयत भी देता तो मुँह फेर कर भागते। وَلَوْ عَلِمَ اللّهُ فِيهِمْ خَيْرًا لَّأسْمَعَهُمْ وَلَوْ أَسْمَعَهُمْ لَتَوَلَّواْ وَّهُم مُّعْرِضُونَ
24 ऐ ईमानदार जब तुम को हमारा रसूल (मोहम्मद) ऐसे काम के लिए बुलाए जो तुम्हारी रूहानी ज़िन्दगी का बाइस हो तो तुम ख़ुदा और रसूल के हुक्म दिल से कुबूल कर लो और जान लो कि ख़ुदा वह क़ादिर मुतलिक़ है कि आदमी और उसके दिल (इरादे) के दरमियान इस तरह आ जाता है और ये भी समझ लो कि तुम सबके सब उसके सामने हाज़िर किये जाओगे يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اسْتَجِيبُواْ لِلّهِ وَلِلرَّسُولِ إِذَا دَعَاكُم لِمَا يُحْيِيكُمْ وَاعْلَمُواْ أَنَّ اللّهَ يَحُولُ بَيْنَ الْمَرْءِ وَقَلْبِهِ وَأَنَّهُ إِلَيْهِ تُحْشَرُونَ
25 और उस फितने से डरते रहो जो ख़ास उन्हीं लोगों पर नही पड़ेगा जिन्होने तुम में से ज़ुल्म किया (बल्कि तुम सबके सब उसमें पड़ जाओगे) और यक़ीन मानों कि ख़ुदा बड़ा सख्त अज़ाब करने वाला है وَاتَّقُواْ فِتْنَةً لاَّ تُصِيبَنَّ الَّذِينَ ظَلَمُواْ مِنكُمْ خَآصَّةً وَاعْلَمُواْ أَنَّ اللّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ
26 (मुसलमानों वह वक्त याद करो) जब तुम सर ज़मीन (मक्के) में बहुत कम और बिल्कुल बेबस थे उससे सहमे जाते थे कि कहीं लोग तुमको उचक न ले जाए तो ख़ुदा ने तुमको (मदीने में) पनाह दी और ख़ास अपनी मदद से तुम्हारी ताईद की और तुम्हे पाक व पाकीज़ा चीज़े खाने को दी ताकि तुम शुक्र गुज़ारी करो وَاذْكُرُواْ إِذْ أَنتُمْ قَلِيلٌ مُّسْتَضْعَفُونَ فِي الأَرْضِ تَخَافُونَ أَن يَتَخَطَّفَكُمُ النَّاسُ فَآوَاكُمْ وَأَيَّدَكُم بِنَصْرِهِ وَرَزَقَكُم مِّنَ الطَّيِّبَاتِ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
27 ऐ ईमानदारों न तो ख़ुदा और रसूल की (अमानत में) ख्यानत करो और न अपनी अमानतों में ख्यानत करो हालॉकि समझते बूझते हो يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تَخُونُواْ اللّهَ وَالرَّسُولَ وَتَخُونُواْ أَمَانَاتِكُمْ وَأَنتُمْ تَعْلَمُونَ
28 और यक़ीन जानों कि तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद तुम्हारी आज़माइश (इम्तेहान) की चीज़े हैं कि जो उनकी मोहब्बत में भी ख़ुदा को न भूले और वह दीनदार है وَاعْلَمُواْ أَنَّمَا أَمْوَالُكُمْ وَأَوْلاَدُكُمْ فِتْنَةٌ وَأَنَّ اللّهَ عِندَهُ أَجْرٌ عَظِيمٌ
29 और यक़ीनन ख़ुदा के हॉ बड़ी मज़दूरी है ऐ ईमानदारों अगर तुम ख़ुदा से डरते रहोगे तो वह तुम्हारे वास्ते इम्तियाज़ पैदा करे देगा और तुम्हारी तरफ से तुम्हारे गुनाह का कफ्फ़ारा क़रार देगा और तुम्हें बख्श देगा और ख़ुदा बड़ा साहब फज़ल (व करम) है يِا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ إَن تَتَّقُواْ اللّهَ يَجْعَل لَّكُمْ فُرْقَاناً وَيُكَفِّرْ عَنكُمْ سَيِّئَاتِكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ وَاللّهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيمِ
30 और (ऐ रसूल वह वक्त याद करो) जब कुफ्फ़ार तुम से फरेब कर रहे थे ताकि तुमको क़ैद कर लें या तुमको मार डाले तुम्हें (घर से) निकाल बाहर करे वह तो ये तदबीर (चालाकी) कर रहे थे और ख़ुदा भी (उनके ख़िलाफ) तदबीरकर रहा था وَإِذْ يَمْكُرُ بِكَ الَّذِينَ كَفَرُواْ لِيُثْبِتُوكَ أَوْ يَقْتُلُوكَ أَوْ يُخْرِجُوكَ وَيَمْكُرُونَ وَيَمْكُرُ اللّهُ وَاللّهُ خَيْرُ الْمَاكِرِينَ
31 और ख़ुदा तो सब तदबीरकरने वालों से बेहतर है और जब उनके सामने हमारी आयते पढ़ी जाती हैं तो बोल उठते हैं कि हमने सुना तो लेकिन अगर हम चाहें तो यक़ीनन ऐसा ही (क़रार) हम भी कह सकते हैं-तो बस अगलों के क़िस्से है وَإِذَا تُتْلَى عَلَيْهِمْ آيَاتُنَا قَالُواْ قَدْ سَمِعْنَا لَوْ نَشَاء لَقُلْنَا مِثْلَ هَـذَا إِنْ هَـذَا إِلاَّ أَسَاطِيرُ الأوَّلِينَ
32 और (ऐ रसूल वह वक्त याद करो) जब उन काफिरों ने दुआएँ माँगीं थी कि ख़ुदा (वन्द) अगर ये (दीन इस्लाम) हक़ है और तेरे पास से (आया है) तो हम पर आसमान से पत्थर बरसा या हम पर कोई और दर्दनाक अज़ाब ही नाज़िल फरमा وَإِذْ قَالُواْ اللَّهُمَّ إِن كَانَ هَـذَا هُوَ الْحَقَّ مِنْ عِندِكَ فَأَمْطِرْ عَلَيْنَا حِجَارَةً مِّنَ السَّمَاء أَوِ ائْتِنَا بِعَذَابٍ أَلِيمٍ
33 हालॉकि जब तक तुम उनके दरमियान मौजूद हो ख़ुदा उन पर अज़ाब नहीं करेगा और अल्लाह ऐसा भी नही कि लोग तो उससे अपने गुनाहो की माफी माँग रहे हैं और ख़ुदा उन पर नाज़िल फरमाए وَمَا كَانَ اللّهُ لِيُعَذِّبَهُمْ وَأَنتَ فِيهِمْ وَمَا كَانَ اللّهُ مُعَذِّبَهُمْ وَهُمْ يَسْتَغْفِرُونَ
34 और जब ये लोग लोगों को मस्जिदुल हराम (ख़ान ए काबा की इबादत) से रोकते है तो फिर उनके लिए कौन सी बात बाक़ी है कि उन पर अज़ाब न नाज़िल करे और ये लोग तो ख़ानाए काबा के मुतवल्ली भी नहीं (फिर क्यों रोकते है) इसके मुतवल्ली तो सिर्फ परहेज़गार लोग हैं मगर इन काफ़िरों में से बहुतेरे नहीं जानते وَمَا لَهُمْ أَلاَّ يُعَذِّبَهُمُ اللّهُ وَهُمْ يَصُدُّونَ عَنِ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ وَمَا كَانُواْ أَوْلِيَاءهُ إِنْ أَوْلِيَآؤُهُ إِلاَّ الْمُتَّقُونَ وَلَـكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لاَ يَعْلَمُونَ
35 और ख़ानाए काबे के पास सीटियॉ तालिया बजाने के सिवा उनकी नमाज ही क्या थी तो (ऐ काफिरों) जब तुम कुफ्र किया करते थे उसकी सज़ा में (पड़े) अज़ाब के मज़े चखो وَمَا كَانَ صَلاَتُهُمْ عِندَ الْبَيْتِ إِلاَّ مُكَاء وَتَصْدِيَةً فَذُوقُواْ الْعَذَابَ بِمَا كُنتُمْ تَكْفُرُونَ
36 इसमें शक़ नहीं कि ये कुफ्फार अपने माल महज़ इस वास्ते खर्च करेगें फिर उसके बाद उनकी हसरत का बाइस होगा फिर आख़िर ये लोग हार जाएँगें और जिन लोगों ने कुफ्र एख्तियार किया (क़यामत में) सब के सब जहन्नुम की तरफ हाके जाएँगें إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ يُنفِقُونَ أَمْوَالَهُمْ لِيَصُدُّواْ عَن سَبِيلِ اللّهِ فَسَيُنفِقُونَهَا ثُمَّ تَكُونُ عَلَيْهِمْ حَسْرَةً ثُمَّ يُغْلَبُونَ وَالَّذِينَ كَفَرُواْ إِلَى جَهَنَّمَ يُحْشَرُونَ
37 ताकि ख़ुदा पाक को नापाक से जुदा कर दे और नापाक लोगों को एक दूसरे पर रखके ढेर बनाए फिर सब को जहन्नुम में झोंक दे यही लोग घाटा उठाने वाले हैं لِيَمِيزَ اللّهُ الْخَبِيثَ مِنَ الطَّيِّبِ وَيَجْعَلَ الْخَبِيثَ بَعْضَهُ عَلَىَ بَعْضٍ فَيَرْكُمَهُ جَمِيعاً فَيَجْعَلَهُ فِي جَهَنَّمَ أُوْلَـئِكَ هُمُ الْخَاسِرُونَ
38 (ऐ रसूल) तुम काफिरों से कह दो कि अगर वह लोग (अब भी अपनी शरारत से) बाज़ रहें तो उनके पिछले कुसूर माफ कर दिए जाएं और अगर फिर कहीं पलटें तो यक़ीनन अगलों के तरीक़े गुज़र चुके जो, उनकी सज़ा हुई वही इनकी भी होगी قُل لِلَّذِينَ كَفَرُواْ إِن يَنتَهُواْ يُغَفَرْ لَهُم مَّا قَدْ سَلَفَ وَإِنْ يَعُودُواْ فَقَدْ مَضَتْ سُنَّةُ الأَوَّلِينِ
39 मुसलमानों काफ़िरों से लड़े जाओ यहाँ तक कि कोई फसाद (बाक़ी) न रहे और (बिल्कुल सारी ख़ुदाई में) ख़ुदा की दीन ही दीन हो जाए फिर अगर ये लोग (फ़साद से) न बाज़ आएं तो ख़ुदा उनकी कारवाइयों को ख़ूब देखता है وَقَاتِلُوهُمْ حَتَّى لاَ تَكُونَ فِتْنَةٌ وَيَكُونَ الدِّينُ كُلُّهُ لِلّه فَإِنِ انتَهَوْاْ فَإِنَّ اللّهَ بِمَا يَعْمَلُونَ بَصِيرٌ
40 और अगर सरताबी करें तो (मुसलमानों) समझ लो कि ख़ुदा यक़ीनी तुम्हारा मालिक है और वह क्या अच्छा मालिक है और क्या अच्छा मददगार है وَإِن تَوَلَّوْاْ فَاعْلَمُواْ أَنَّ اللّهَ مَوْلاَكُمْ نِعْمَ الْمَوْلَى وَنِعْمَ النَّصِيرُ
41 और जान लो कि जो कुछ तुम (माल लड़कर) लूटो तो उनमें का पॉचवॉ हिस्सा मख़सूस ख़ुदा और रसूल और (रसूल के) क़राबतदारों और यतीमों और मिस्कीनों और परदेसियों का है अगर तुम ख़ुदा पर और उस (ग़ैबी इमदाद) पर ईमान ला चुके हो जो हमने ख़ास बन्दे (मोहम्मद) पर फ़ैसले के दिन (जंग बदर में) नाज़िल की थी जिस दिन (मुसलमानों और काफिरों की) दो जमाअतें बाहम गुथ गयी थी और ख़ुदा तो हर चीज़ पर क़ादिर है وَاعْلَمُواْ أَنَّمَا غَنِمْتُم مِّن شَيْءٍ فَأَنَّ لِلّهِ خُمُسَهُ وَلِلرَّسُولِ وَلِذِي الْقُرْبَى وَالْيَتَامَى وَالْمَسَاكِينِ وَابْنِ السَّبِيلِ إِن كُنتُمْ آمَنتُمْ بِاللّهِ وَمَا أَنزَلْنَا عَلَى عَبْدِنَا يَوْمَ الْفُرْقَانِ يَوْمَ الْتَقَى الْجَمْعَانِ وَاللّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
42 (ये वह वक्त था) जब तुम (मैदाने जंग में मदीने के) क़रीब नाके पर थे और वह कुफ्फ़ार बईद (दूर के) के नाके पर और (काफ़िले के) सवार तुम से नशेब में थे और अगर तुम एक दूसरे से (वक्त क़ी तक़रीर का) वायदा कर लेते हो तो और वक्त पर गड़बड़ कर देते मगर (ख़ुदा ने अचानक तुम लोगों को इकट्ठा कर दिया ताकि जो बात यदनी (होनी) थी वह पूरी कर दिखाए ताकि जो शख़्स हलाक (गुमराह) हो वह (हक़ की) हुज्जत तमाम होने के बाद हलाक हो और जो ज़िन्दा रहे वह हिदायत की हुज्जत तमाम होने के बाद ज़िन्दा रहे और ख़ुदा यक़ीनी सुनने वाला ख़बरदार है إِذْ أَنتُم بِالْعُدْوَةِ الدُّنْيَا وَهُم بِالْعُدْوَةِ الْقُصْوَى وَالرَّكْبُ أَسْفَلَ مِنكُمْ وَلَوْ تَوَاعَدتَّمْ لاَخْتَلَفْتُمْ فِي الْمِيعَادِ وَلَـكِن لِّيَقْضِيَ اللّهُ أَمْراً كَانَ مَفْعُولاً لِّيَهْلِكَ مَنْ هَلَكَ عَن بَيِّنَةٍ وَيَحْيَى مَنْ حَيَّ عَن بَيِّنَةٍ وَإِنَّ اللّهَ لَسَمِيعٌ عَلِيمٌ
43 (ये वह वक्त था) जब ख़ुदा ने तुम्हें ख्वाब में कुफ्फ़ार को कम करके दिखलाया था और अगर उनको तुम्हें ज्यादा करते दिखलाता तुम यक़ीनन हिम्मत हार देते और लड़ाई के बारे में झगड़ने लगते मगर ख़ुदा ने इसे (बदनामी) से बचाया इसमें तो शक़ ही नहीं कि वह दिली ख्यालात से वाक़िफ़ है إِذْ يُرِيكَهُمُ اللّهُ فِي مَنَامِكَ قَلِيلاً وَلَوْ أَرَاكَهُمْ كَثِيراً لَّفَشِلْتُمْ وَلَتَنَازَعْتُمْ فِي الأَمْرِ وَلَـكِنَّ اللّهَ سَلَّمَ إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ
44 (ये वह वक्त था) जब तुम लोगों ने मुठभेड़ की तो ख़ुदा ने तुम्हारी ऑखों में कुफ्फ़ार को बहुत कम करके दिखलाया और उनकी ऑखों में तुमको थोड़ा कर दिया ताकि ख़ुदा को जो कुछ करना मंज़ूर था वह पूरा हो जाए और कुल बातों का दारोमदार तो ख़ुदा ही पर है وَإِذْ يُرِيكُمُوهُمْ إِذِ الْتَقَيْتُمْ فِي أَعْيُنِكُمْ قَلِيلاً وَيُقَلِّلُكُمْ فِي أَعْيُنِهِمْ لِيَقْضِيَ اللّهُ أَمْرًا كَانَ مَفْعُولاً وَإِلَى اللّهِ تُرْجَعُ الأمُورُ
45 ऐ ईमानदारों जब तुम किसी फौज से मुठभेड़ करो तो ख़बरदार अपने क़दम जमाए रहो और ख़ुदा को बहुंत याद करते रहो ताकि तुम फलाह पाओ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ إِذَا لَقِيتُمْ فِئَةً فَاثْبُتُواْ وَاذْكُرُواْ اللّهَ كَثِيراً لَّعَلَّكُمْ تُفْلَحُونَ
46 और ख़ुदा की और उसके रसूल की इताअत करो और आपस में झगड़ा न करो वरना तुम हिम्मत हारोगे और तुम्हारी हवा उखड़ जाएगी और (जंग की तकलीफ़ को) झेल जाओ (क्योंकि) ख़ुदा तो यक़ीनन सब्र करने वालों का साथी है وَأَطِيعُواْ اللّهَ وَرَسُولَهُ وَلاَ تَنَازَعُواْ فَتَفْشَلُواْ وَتَذْهَبَ رِيحُكُمْ وَاصْبِرُواْ إِنَّ اللّهَ مَعَ الصَّابِرِينَ
47 और उन लोगों के ऐसे न हो जाओ जो इतराते हुए और लोगों के दिखलाने के वास्ते अपने घरों से निकल खड़े हुए और लोगों को ख़ुदा की राह से रोकते हैं और जो कुछ भी वह लोग करते हैं ख़ुदा उस पर (हर तरह से) अहाता किए हुए है وَلاَ تَكُونُواْ كَالَّذِينَ خَرَجُواْ مِن دِيَارِهِم بَطَرًا وَرِئَاء النَّاسِ وَيَصُدُّونَ عَن سَبِيلِ اللّهِ وَاللّهُ بِمَا يَعْمَلُونَ مُحِيطٌ
48 और जब शैतान ने उनकी कारस्तानियों को उम्दा कर दिखाया और उनके कान में फूंक दिया कि लोगों में आज कोई ऐसा नहीं जो तुम पर ग़ालिब आ सके और मै तुम्हारा मददगार हूं फिर जब दोनों लश्कर मुकाबिल हुए तो अपने उलटे पॉव भाग निकला और कहने लगा कि मै तो तुम से अलग हूं मै वह चीजें देख रहा हूं जो तुम्हें नहीं सूझती मैं तो ख़ुदा से डरता हूं और ख़ुदा बहुत सख्त अज़ाब वाला है وَإِذْ زَيَّنَ لَهُمُ الشَّيْطَانُ أَعْمَالَهُمْ وَقَالَ لاَ غَالِبَ لَكُمُ الْيَوْمَ مِنَ النَّاسِ وَإِنِّي جَارٌ لَّكُمْ فَلَمَّا تَرَاءتِ الْفِئَتَانِ نَكَصَ عَلَى عَقِبَيْهِ وَقَالَ إِنِّي بَرِيءٌ مِّنكُمْ إِنِّي أَرَى مَا لاَ تَرَوْنَ إِنِّيَ أَخَافُ اللّهَ وَاللّهُ شَدِيدُ الْعِقَابِ
49 (ये वक्त था) जब मुनाफिक़ीन और जिन लोगों के दिल में (कुफ्र का) मर्ज़ है कह रहे थे कि उन मुसलमानों को उनके दीन ने धोके में डाल रखा है (कि इतराते फिरते हैं हालॉकि जो शख़्स ख़ुदा पर भरोसा करता है (वह ग़ालिब रहता है क्योंकि) ख़ुदा तो यक़ीनन ग़ालिब और हिकमत वाला है إِذْ يَقُولُ الْمُنَافِقُونَ وَالَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٌ غَرَّ هَـؤُلاء دِينُهُمْ وَمَن يَتَوَكَّلْ عَلَى اللّهِ فَإِنَّ اللّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ
50 और काश (ऐ रसूल) तुम देखते जब फ़रिश्ते काफ़िरों की जान निकाल लेते थे और रूख़ और पुश्त (पीठ) पर कोड़े मारते थे और (कहते थे कि) अज़ाब जहन्नुम के मज़े चखों وَلَوْ تَرَى إِذْ يَتَوَفَّى الَّذِينَ كَفَرُواْ الْمَلآئِكَةُ يَضْرِبُونَ وُجُوهَهُمْ وَأَدْبَارَهُمْ وَذُوقُواْ عَذَابَ الْحَرِيقِ
51 ये सज़ा उसकी है जो तुम्हारे हाथों ने पहले किया कराया है और ख़ुदा बन्दों पर हरगिज़ ज़ुल्म नहीं किया करता है ذَلِكَ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيكُمْ وَأَنَّ اللّهَ لَيْسَ بِظَلاَّمٍ لِّلْعَبِيدِ
52 (उन लोगों की हालत) क़ौमे फिरऔन और उनके लोगों की सी है जो उन से पहले थे और ख़ुदा की आयतों से इन्कार करते थे तो ख़ुदा ने भी उनके गुनाहों की वजह से उन्हें ले डाला बेशक ख़ुदा ज़बरदस्त और बहुत सख्त अज़ाब देने वाला है كَدَأْبِ آلِ فِرْعَوْنَ وَالَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ كَفَرُواْ بِآيَاتِ اللّهِ فَأَخَذَهُمُ اللّهُ بِذُنُوبِهِمْ إِنَّ اللّهَ قَوِيٌّ شَدِيدُ الْعِقَابِ
53 ये सज़ा इस वजह से (दी गई) कि जब कोई नेअमत ख़ुदा किसी क़ौम को देता है तो जब तक कि वह लोग ख़ुद अपनी कलबी हालत (न) बदलें ख़ुदा भी उसे नहीं बदलेगा और ख़ुदा तो यक़ीनी (सब की सुनता) और सब कुछ जानता है ذَلِكَ بِأَنَّ اللّهَ لَمْ يَكُ مُغَيِّرًا نِّعْمَةً أَنْعَمَهَا عَلَى قَوْمٍ حَتَّى يُغَيِّرُواْ مَا بِأَنفُسِهِمْ وَأَنَّ اللّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
54 (उन लोगों की हालत) क़ौम फिरऔन और उन लोगों की सी है जो उनसे पहले थे और अपने परवरदिगार की आयतों को झुठलाते थे तो हमने भी उनके गुनाहों की वजह से उनको हलाक़ कर डाला और फिरऔन की क़ौम को डुबा मारा और (ये) सब के सब ज़ालिम थे كَدَأْبِ آلِ فِرْعَوْنَ وَالَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ كَذَّبُواْ بآيَاتِ رَبِّهِمْ فَأَهْلَكْنَاهُم بِذُنُوبِهِمْ وَأَغْرَقْنَا آلَ فِرْعَونَ وَكُلٌّ كَانُواْ ظَالِمِينَ
55 इसमें शक़ नहीं कि ख़ुदा के नज़दीक जानवरों में कुफ्फ़ार सबसे बदतरीन तो (बावजूद इसके) फिर ईमान नहीं लाते إِنَّ شَرَّ الدَّوَابِّ عِندَ اللّهِ الَّذِينَ كَفَرُواْ فَهُمْ لاَ يُؤْمِنُونَ
56 ऐ रसूल जिन लोगों से तुम ने एहद व पैमान किया था फिर वह लोग अपने एहद को हर बार तोड़ डालते है और (फिर ख़ुदा से) नहीं डरते الَّذِينَ عَاهَدتَّ مِنْهُمْ ثُمَّ يَنقُضُونَ عَهْدَهُمْ فِي كُلِّ مَرَّةٍ وَهُمْ لاَ يَتَّقُونَ
57 तो अगर वह लड़ाई में तुम्हारे हाथे चढ़ जाएँ तो (ऐसी सख्त गोश्माली दो कि) उनके साथ साथ उन लोगों का तो अगर वह लड़ाई में तुम्हारे हत्थे चढ़ जाएं तो (ऐसी सजा दो की) उनके साथ उन लोगों को भी तितिर बितिर कर दो जो उन के पुश्त पर हो ताकि ये इबरत हासिल करें فَإِمَّا تَثْقَفَنَّهُمْ فِي الْحَرْبِ فَشَرِّدْ بِهِم مَّنْ خَلْفَهُمْ لَعَلَّهُمْ يَذَّكَّرُونَ
58 और अगर तुम्हें किसी क़ौम की ख्यानत (एहद शिकनी(वादा ख़िलाफी)) का ख़ौफ हो तो तुम भी बराबर उनका एहद उन्हीं की तरफ से फेंक मारो (एहदो शिकन के साथ एहद शिकनी करो ख़ुदा हरगिज़ दग़ाबाजों को दोस्त नहीं रखता وَإِمَّا تَخَافَنَّ مِن قَوْمٍ خِيَانَةً فَانبِذْ إِلَيْهِمْ عَلَى سَوَاء إِنَّ اللّهَ لاَ يُحِبُّ الخَائِنِينَ
59 और कुफ्फ़ार ये न ख्याल करें कि वह (मुसलमानों से) आगे बढ़ निकले (क्योंकि) वह हरगिज़ (मुसलमानों को) हरा नहीं सकते وَلاَ يَحْسَبَنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ سَبَقُواْ إِنَّهُمْ لاَ يُعْجِزُونَ
60 और (मुसलमानों तुम कुफ्फार के मुकाबले के) वास्ते जहाँ तक तुमसे हो सके (अपने बाज़ू के) ज़ोर से और बॅधे हुए घोड़े से लड़ाई का सामान मुहय्या करो इससे ख़ुदा के दुश्मन और अपने दुश्मन और उसके सिवा दूसरे लोगों पर भी अपनी धाक बढ़ा लेगें जिन्हें तुम नहीं जानते हो मगर ख़ुदा तो उनको जानता है और ख़ुदा की राह में तुम जो कुछ भी ख़र्च करोगें वह तुम पूरा पूरा भर पाओगें और तुम पर किसी तरह ज़ुल्म नहीं किया जाएगा وَأَعِدُّواْ لَهُم مَّا اسْتَطَعْتُم مِّن قُوَّةٍ وَمِن رِّبَاطِ الْخَيْلِ تُرْهِبُونَ بِهِ عَدْوَّ اللّهِ وَعَدُوَّكُمْ وَآخَرِينَ مِن دُونِهِمْ لاَ تَعْلَمُونَهُمُ اللّهُ يَعْلَمُهُمْ وَمَا تُنفِقُواْ مِن شَيْءٍ فِي سَبِيلِ اللّهِ يُوَفَّ إِلَيْكُمْ وَأَنتُمْ لاَ تُظْلَمُونَ
61 और अगर ये कुफ्फार सुलह की तरफ माएल हो तो तुम भी उसकी तरफ माएल हो और ख़ुदा पर भरोसा रखो (क्योंकि) वह बेशक (सब कुछ) सुनता जानता है وَإِن جَنَحُواْ لِلسَّلْمِ فَاجْنَحْ لَهَا وَتَوَكَّلْ عَلَى اللّهِ إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ
62 और अगर वह लोग तुम्हें फरेब देना चाहे तो (कुछ परवा नहीं) ख़ुदा तुम्हारे वास्ते यक़ीनी काफी है-(ऐ रसूल) वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने अपनी ख़ास मदद और मोमिनीन से तुम्हारी ताईद की وَإِن يُرِيدُواْ أَن يَخْدَعُوكَ فَإِنَّ حَسْبَكَ اللّهُ هُوَ الَّذِيَ أَيَّدَكَ بِنَصْرِهِ وَبِالْمُؤْمِنِينَ
63 और उसी ने उन मुसलमानों के दिलों में बाहम ऐसी उलफ़त पैदा कर दी कि अगर तुम जो कुछ ज़मीन में है सब का सब खर्च कर डालते तो भी उनके दिलो में ऐसी उलफ़त पैदा न कर सकते मगर ख़ुदा ही था जिसने बाहम उलफत पैदा की बेशक वह ज़बरदस्त हिक़मत वाला है وَأَلَّفَ بَيْنَ قُلُوبِهِمْ لَوْ أَنفَقْتَ مَا فِي الأَرْضِ جَمِيعاً مَّا أَلَّفَتْ بَيْنَ قُلُوبِهِمْ وَلَـكِنَّ اللّهَ أَلَّفَ بَيْنَهُمْ إِنَّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ
64 ऐ रसूल तुमको बस ख़ुदा और जो मोमिनीन तुम्हारे ताबेए फरमान (फरमाबरदार) है काफी है يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ حَسْبُكَ اللّهُ وَمَنِ اتَّبَعَكَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ
65 ऐ रसूल तुम मोमिनीन को जिहाद के वास्ते आमादा करो (वह घबराए नहीं ख़ुदा उनसे वायदा करता है कि) अगर तुम लोगों में के साबित क़दम रहने वाले बीस भी होगें तो वह दो सौ (काफिरों) पर ग़ालिब आ जायेगे और अगर तुम लोगों में से साबित कदम रहने वालों सौ होगें तो हज़ार (काफिरों) पर ग़ालिब आ जाएँगें इस सबब से कि ये लोग ना समझ हैं يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ حَرِّضِ الْمُؤْمِنِينَ عَلَى الْقِتَالِ إِن يَكُن مِّنكُمْ عِشْرُونَ صَابِرُونَ يَغْلِبُواْ مِئَتَيْنِ وَإِن يَكُن مِّنكُم مِّئَةٌ يَغْلِبُواْ أَلْفًا مِّنَ الَّذِينَ كَفَرُواْ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لاَّ يَفْقَهُونَ
66 अब ख़ुदा ने तुम से (अपने हुक्म की सख्ती में) तख्फ़ीफ (कमी) कर दी और देख लिया कि तुम में यक़ीनन कमज़ोरी है तो अगर तुम लोगों में से साबित क़दम रहने वाले सौ होगें तो दो सौ (काफ़िरों) पर ग़ालिब रहेंगें और अगर तुम लोगों में से (ऐसे) एक हज़ार होगें तो ख़ुदा के हुक्म से दो हज़ार (काफ़िरों) पर ग़ालिब रहेंगे और (जंग की तकलीफों को) झेल जाने वालों का ख़ुदा साथी है الآنَ خَفَّفَ اللّهُ عَنكُمْ وَعَلِمَ أَنَّ فِيكُمْ ضَعْفًا فَإِن يَكُن مِّنكُم مِّئَةٌ صَابِرَةٌ يَغْلِبُواْ مِئَتَيْنِ وَإِن يَكُن مِّنكُمْ أَلْفٌ يَغْلِبُواْ أَلْفَيْنِ بِإِذْنِ اللّهِ وَاللّهُ مَعَ الصَّابِرِينَ
67 कोई नबी जब कि रूए ज़मीन पर (काफिरों का) खून न बहाए उसके यहाँ कैदियों का रहना मुनासिब नहीं तुम लोग तो दुनिया के साज़ो सामान के ख्वाहॉ (चाहने वाले) हो औॅर ख़ुदा (तुम्हारे लिए) आख़िरत की (भलाई) का ख्वाहॉ है और ख़ुदा ज़बरदस्त हिकमत वाला है مَا كَانَ لِنَبِيٍّ أَن يَكُونَ لَهُ أَسْرَى حَتَّى يُثْخِنَ فِي الأَرْضِ تُرِيدُونَ عَرَضَ الدُّنْيَا وَاللّهُ يُرِيدُ الآخِرَةَ وَاللّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ
68 और अगर ख़ुदा की तरफ से पहले ही (उसकी) माफी का हुक्म आ चुका होता तो तुमने जो (बदर के क़ैदियों के छोड़ देने के बदले) फिदिया लिया था لَّوْلاَ كِتَابٌ مِّنَ اللّهِ سَبَقَ لَمَسَّكُمْ فِيمَا أَخَذْتُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ
69 उसकी सज़ा में तुम पर बड़ा अज़ाब नाज़िल होकर रहता तो (ख़ैर जो हुआ सो हुआ) अब तुमने जो माल ग़नीमत हासिल किया है उसे खाओ (और तुम्हारे लिए) हलाल तय्यब है और ख़ुदा से डरते रहो बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है فَكُلُواْ مِمَّا غَنِمْتُمْ حَلاَلاً طَيِّبًا وَاتَّقُواْ اللّهَ إِنَّ اللّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
70 ऐ रसूल जो कैदी तुम्हारे कब्जे में है उनसे कह दो कि अगर तुम्हारे दिलों में नेकी देखेगा तो जो (माल) तुम से छीन लिया गया है उससे कहीं बेहतर तुम्हें अता फरमाएगा और तुम्हें बख्श भी देगा और ख़ुदा तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ قُل لِّمَن فِي أَيْدِيكُم مِّنَ الأَسْرَى إِن يَعْلَمِ اللّهُ فِي قُلُوبِكُمْ خَيْرًا يُؤْتِكُمْ خَيْرًا مِّمَّا أُخِذَ مِنكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ وَاللّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
71 और अगर ये लोग तुमसे फरेब करना चाहते है तो ख़ुदा से पहले ही फरेब कर चुके हैं तो (उसकी सज़ा में) ख़ुदा ने उन पर तुम्हें क़ाबू दे दिया और ख़ुदा तो बड़ा वाक़िफकार हिकमत वाला है وَإِن يُرِيدُواْ خِيَانَتَكَ فَقَدْ خَانُواْ اللّهَ مِن قَبْلُ فَأَمْكَنَ مِنْهُمْ وَاللّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
72 जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और हिजरत की और अपने अपने जान माल से ख़ुदा की राह में जिहाद किया और जिन लोगों ने (हिजरत करने वालों को जगह दी और हर (तरह) उनकी ख़बर गीरी (मदद) की यही लोग एक दूसरे के (बाहम) सरपरस्त दोस्त हैं और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और हिजरत नहीं की तो तुम लोगों को उनकी सरपरस्ती से कुछ सरोकार नहीं-यहाँ तक कि वह हिजरत एख्तियार करें और (हॉ) मगर दीनी अम्र में तुम से मदद के ख्वाहॉ हो तो तुम पर (उनकी मदद करना लाज़िम व वाजिब है मगर उन लोगों के मुक़ाबले में (नहीं) जिनमें और तुममें बाहम (सुलह का) एहदो पैमान है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा (सबको) देख रहा है إِنَّ الَّذِينَ آمَنُواْ وَهَاجَرُواْ وَجَاهَدُواْ بِأَمْوَالِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ فِي سَبِيلِ اللّهِ وَالَّذِينَ آوَواْ وَّنَصَرُواْ أُوْلَـئِكَ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاء بَعْضٍ وَالَّذِينَ آمَنُواْ وَلَمْ يُهَاجِرُواْ مَا لَكُم مِّن وَلاَيَتِهِم مِّن شَيْءٍ حَتَّى يُهَاجِرُواْ وَإِنِ اسْتَنصَرُوكُمْ فِي الدِّينِ فَعَلَيْكُمُ النَّصْرُ إِلاَّ عَلَى قَوْمٍ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُم مِّيثَاقٌ وَاللّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ
73 और जो लोग काफ़िर हैं वह भी (बाहम) एक दूसरे के सरपरस्त हैं अगर तुम (इस तरह) वायदा न करोगे तो रूए ज़मीन पर फ़ितना (फ़साद) बरपा हो जाएगा और बड़ा फ़साद होगा وَالَّذينَ كَفَرُواْ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاء بَعْضٍ إِلاَّ تَفْعَلُوهُ تَكُن فِتْنَةٌ فِي الأَرْضِ وَفَسَادٌ كَبِيرٌ
74 और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और हिजरत की और ख़ुदा की राह में लड़े भिड़े और जिन लोगों ने (ऐसे नाज़ुक वक्त में मुहाजिरीन को जगह ही और उनकी हर तरह ख़बरगीरी (मदद) की यही लोग सच्चे ईमानदार हैं उन्हीं के वास्ते मग़फिरत और इज्ज़त व आबरु वाली रोज़ी है وَالَّذِينَ آمَنُواْ وَهَاجَرُواْ وَجَاهَدُواْ فِي سَبِيلِ اللّهِ وَالَّذِينَ آوَواْ وَّنَصَرُواْ أُولَـئِكَ هُمُ الْمُؤْمِنُونَ حَقًّا لَّهُم مَّغْفِرَةٌ وَرِزْقٌ كَرِيمٌ
75 और जिन लोगों ने (सुलह हुदैबिया के) बाद ईमान क़ुबूल किया और हिजरत की और तुम्हारे साथ मिलकर जिहाद किया वह लोग भी तुम्हीं में से हैं और साहबाने क़राबत ख़ुदा की किताब में बाहम एक दूसरे के (बनिस्बत औरों के) ज्यादा हक़दार हैं बेशक ख़ुदा हर चीज़ से ख़ूब वाक़िफ हैं وَالَّذِينَ آمَنُواْ مِن بَعْدُ وَهَاجَرُواْ وَجَاهَدُواْ مَعَكُمْ فَأُوْلَـئِكَ مِنكُمْ وَأُوْلُواْ الأَرْحَامِ بَعْضُهُمْ أَوْلَى بِبَعْضٍ فِي كِتَابِ اللّهِ إِنَّ اللّهَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ
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