1 |
हमने नूह को उसकी क़ौम के पास (पैग़म्बर बनाकर) भेजा कि क़ब्ल उसके कि उनकी क़ौम पर दर्दनाक अज़ाब आए उनको उससे डराओ |
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إِنَّا أَرْسَلْنَا نُوحًا إِلَى قَوْمِهِ أَنْ أَنذِرْ قَوْمَكَ مِن قَبْلِ أَن يَأْتِيَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ |
2 |
तो नूह (अपनी क़ौम से) कहने लगे ऐ मेरी क़ौम मैं तो तुम्हें साफ़ साफ़ डराता (और समझाता) हूँ |
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قَالَ يَا قَوْمِ إِنِّي لَكُمْ نَذِيرٌ مُّبِينٌ |
3 |
कि तुम लोग ख़ुदा की इबादत करो और उसी से डरो और मेरी इताअत करो |
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أَنِ اعْبُدُوا اللَّهَ وَاتَّقُوهُ وَأَطِيعُونِ |
4 |
ख़ुदा तुम्हारे गुनाह बख्श देगा और तुम्हें (मौत के) मुक़र्रर वक्त तक बाक़ी रखेगा, बेशक जब ख़ुदा का मुक़र्रर किया हुआ वक्त अा जाता है तो पीछे हटाया नहीं जा सकता अगर तुम समझते होते |
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يَغْفِرْ لَكُم مِّن ذُنُوبِكُمْ وَيُؤَخِّرْكُمْ إِلَى أَجَلٍ مُّسَمًّى إِنَّ أَجَلَ اللَّهِ إِذَا جَاء لَا يُؤَخَّرُ لَوْ كُنتُمْ تَعْلَمُونَ |
5 |
(जब लोगों ने न माना तो) अर्ज़ की परवरदिगार मैं अपनी क़ौम को (ईमान की तरफ) बुलाता रहा |
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قَالَ رَبِّ إِنِّي دَعَوْتُ قَوْمِي لَيْلًا وَنَهَارًا |
6 |
लेकिन वह मेरे बुलाने से और ज्यादा गुरेज़ ही करते रहे |
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فَلَمْ يَزِدْهُمْ دُعَائِي إِلَّا فِرَارًا |
7 |
और मैने जब उनको बुलाया कि (ये तौबा करें और) तू उन्हें माफ कर दे तो उन्होने अपने कानों में उंगलियां दे लीं और मुझसे छिपने को कपड़े ओढ़ लिए और अड़ गए और बहुत शिद्दत से अकड़ बैठे |
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وَإِنِّي كُلَّمَا دَعَوْتُهُمْ لِتَغْفِرَ لَهُمْ جَعَلُوا أَصَابِعَهُمْ فِي آذَانِهِمْ وَاسْتَغْشَوْا ثِيَابَهُمْ وَأَصَرُّوا وَاسْتَكْبَرُوا اسْتِكْبَارًا |
8 |
फिर मैंने उनको बिल एलान बुलाया फिर उनको ज़ाहिर ब ज़ाहिर समझाया |
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ثُمَّ إِنِّي دَعَوْتُهُمْ جِهَارًا |
9 |
और उनकी पोशीदा भी फ़हमाईश की कि मैंने उनसे कहा |
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ثُمَّ إِنِّي أَعْلَنتُ لَهُمْ وَأَسْرَرْتُ لَهُمْ إِسْرَارًا |
10 |
अपने परवरदिगार से मग़फेरत की दुआ माँगो बेशक वह बड़ा बख्शने वाला है |
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فَقُلْتُ اسْتَغْفِرُوا رَبَّكُمْ إِنَّهُ كَانَ غَفَّارًا |
11 |
(और) तुम पर आसमान से मूसलाधार पानी बरसाएगा |
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يُرْسِلِ السَّمَاء عَلَيْكُم مِّدْرَارًا |
12 |
और माल और औलाद में तरक्क़ी देगा, और तुम्हारे लिए बाग़ बनाएगा, और तुम्हारे लिए नहरें जारी करेगा |
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وَيُمْدِدْكُمْ بِأَمْوَالٍ وَبَنِينَ وَيَجْعَل لَّكُمْ جَنَّاتٍ وَيَجْعَل لَّكُمْ أَنْهَارًا |
13 |
तुम्हें क्या हो गया है कि तुम ख़ुदा की अज़मत का ज़रा भी ख्याल नहीं करते |
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مَّا لَكُمْ لَا تَرْجُونَ لِلَّهِ وَقَارًا |
14 |
हालॉकि उसी ने तुमको तरह तरह का पैदा किया |
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وَقَدْ خَلَقَكُمْ أَطْوَارًا |
15 |
क्या तुमने ग़ौर नहीं किया कि ख़ुदा ने सात आसमान ऊपर तलें क्यों कर बनाए |
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أَلَمْ تَرَوْا كَيْفَ خَلَقَ اللَّهُ سَبْعَ سَمَاوَاتٍ طِبَاقًا |
16 |
और उसी ने उसमें चाँद को नूर बनाया और सूरज को रौशन चिराग़ बना दिया |
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وَجَعَلَ الْقَمَرَ فِيهِنَّ نُورًا وَجَعَلَ الشَّمْسَ سِرَاجًا |
17 |
और ख़ुदा ही तुमको ज़मीन से पैदा किया |
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وَاللَّهُ أَنبَتَكُم مِّنَ الْأَرْضِ نَبَاتًا |
18 |
फिर तुमको उसी में दोबारा ले जाएगा और (क़यामत में उसी से) निकाल कर खड़ा करेगा |
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ثُمَّ يُعِيدُكُمْ فِيهَا وَيُخْرِجُكُمْ إِخْرَاجًا |
19 |
और ख़ुदा ही ने ज़मीन को तुम्हारे लिए फ़र्श बनाया |
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وَاللَّهُ جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ بِسَاطًا |
20 |
ताकि तुम उसके बड़े बड़े कुशादा रास्तों में चलो फिरो |
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لِتَسْلُكُوا مِنْهَا سُبُلًا فِجَاجًا |
21 |
(फिर) नूह ने अर्ज़ की परवरदिगार इन लोगों ने मेरी नाफ़रमानी की उस शख़्श के ताबेदार बन के जिसने उनके माल और औलाद में नुक़सान के सिवा फ़ायदा न पहुँचाया |
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قَالَ نُوحٌ رَّبِّ إِنَّهُمْ عَصَوْنِي وَاتَّبَعُوا مَن لَّمْ يَزِدْهُ مَالُهُ وَوَلَدُهُ إِلَّا خَسَارًا |
22 |
और उन्होंने (मेरे साथ) बड़ी मक्कारियाँ की |
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وَمَكَرُوا مَكْرًا كُبَّارًا |
23 |
और (उलटे) कहने लगे कि आपने माबूदों को हरगिज़ न छोड़ना और न वद को और सुआ को और न यगूस और यऊक़ व नस्र को छोड़ना |
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وَقَالُوا لَا تَذَرُنَّ آلِهَتَكُمْ وَلَا تَذَرُنَّ وَدًّا وَلَا سُوَاعًا وَلَا يَغُوثَ وَيَعُوقَ وَنَسْرًا |
24 |
और उन्होंने बहुतेरों को गुमराह कर छोड़ा और तू (उन) ज़ालिमों की गुमराही को और बढ़ा दे |
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وَقَدْ أَضَلُّوا كَثِيراً وَلَا تَزِدِ الظَّالِمِينَ إِلَّا ضَلَالًا |
25 |
(आख़िर) वह अपने गुनाहों की बदौलत (पहले तो) डुबाए गए फिर जहन्नुम में झोंके गए तो उन लोगों ने ख़ुदा के सिवा किसी को अपना मददगार न पाया |
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مِمَّا خَطِيئَاتِهِمْ أُغْرِقُوا فَأُدْخِلُوا نَارًا فَلَمْ يَجِدُوا لَهُم مِّن دُونِ اللَّهِ أَنصَارًا |
26 |
और नूह ने अर्ज़ की परवरदिगार (इन) काफ़िरों में रूए ज़मीन पर किसी को बसा हुआ न रहने दे |
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وَقَالَ نُوحٌ رَّبِّ لَا تَذَرْ عَلَى الْأَرْضِ مِنَ الْكَافِرِينَ دَيَّارًا |
27 |
क्योंकि अगर तू उनको छोड़ देगा तो ये (फिर) तेरे बन्दों को गुमराह करेंगे और उनकी औलाद भी गुनाहगार और कट्टी काफिर ही होगी |
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إِنَّكَ إِن تَذَرْهُمْ يُضِلُّوا عِبَادَكَ وَلَا يَلِدُوا إِلَّا فَاجِرًا كَفَّارًا |
28 |
परवरदिगार मुझको और मेरे माँ बाप को और जो मोमिन मेरे घर में आए उनको और तमाम ईमानदार मर्दों और मोमिन औरतों को बख्श दे और (इन) ज़ालिमों की बस तबाही को और ज्यादा कर |
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رَبِّ اغْفِرْ لِي وَلِوَالِدَيَّ وَلِمَن دَخَلَ بَيْتِيَ مُؤْمِنًا وَلِلْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ وَلَا تَزِدِ الظَّالِمِينَ إِلَّا تَبَارًا |