Al-Qalam

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Hindi: Suhel Farooq Khan and Saifur Rahman Nadwi

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# Translation Ayah
1 नून क़लम की और उस चीज़ की जो लिखती हैं (उसकी) क़सम है ن وَالْقَلَمِ وَمَا يَسْطُرُونَ
2 कि तुम अपने परवरदिगार के फ़ज़ल (व करम) से दीवाने नहीं हो مَا أَنتَ بِنِعْمَةِ رَبِّكَ بِمَجْنُونٍ
3 और तुम्हारे वास्ते यक़ीनन वह अज्र है जो कभी ख़त्म ही न होगा وَإِنَّ لَكَ لَأَجْرًا غَيْرَ مَمْنُونٍ
4 और बेशक तुम्हारे एख़लाक़ बड़े आला दर्जे के हैं وَإِنَّكَ لَعَلى خُلُقٍ عَظِيمٍ
5 तो अनक़रीब ही तुम भी देखोगे और ये कुफ्फ़ार भी देख लेंगे فَسَتُبْصِرُ وَيُبْصِرُونَ
6 कि तुममें दीवाना कौन है بِأَييِّكُمُ الْمَفْتُونُ
7 बेशक तुम्हारा परवरदिगार इनसे ख़ूब वाक़िफ़ है जो उसकी राह से भटके हुए हैं और वही हिदायत याफ्ता लोगों को भी ख़ूब जानता है إِنَّ رَبَّكَ هُوَ أَعْلَمُ بِمَن ضَلَّ عَن سَبِيلِهِ وَهُوَ أَعْلَمُ بِالْمُهْتَدِينَ
8 तो तुम झुठलाने वालों का कहना न मानना فَلَا تُطِعِ الْمُكَذِّبِينَ
9 वह लोग ये चाहते हैं कि अगर तुम नरमी एख्तेयार करो तो वह भी नरम हो जाएँ وَدُّوا لَوْ تُدْهِنُ فَيُدْهِنُونَ
10 और तुम (कहीं) ऐसे के कहने में न आना जो बहुत क़समें खाता ज़लील औक़ात ऐबजू وَلَا تُطِعْ كُلَّ حَلَّافٍ مَّهِينٍ
11 जो आला दर्जे का चुग़लख़ोर माल का बहुत बख़ील هَمَّازٍ مَّشَّاء بِنَمِيمٍ
12 हद से बढ़ने वाला गुनेहगार तुन्द मिजाज़ مَنَّاعٍ لِّلْخَيْرِ مُعْتَدٍ أَثِيمٍ
13 और उसके अलावा बदज़ात (हरमज़ादा) भी है عُتُلٍّ بَعْدَ ذَلِكَ زَنِيمٍ
14 चूँकि माल बहुत से बेटे रखता है أَن كَانَ ذَا مَالٍ وَبَنِينَ
15 जब उसके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो बोल उठता है कि ये तो अगलों के अफ़साने हैं إِذَا تُتْلَى عَلَيْهِ آيَاتُنَا قَالَ أَسَاطِيرُ الْأَوَّلِينَ
16 हम अनक़रीब इसकी नाक पर दाग़ लगाएँगे سَنَسِمُهُ عَلَى الْخُرْطُومِ
17 जिस तरह हमने एक बाग़ वालों का इम्तेहान लिया था उसी तरह उनका इम्तेहान लिया जब उन्होने क़समें खा खाकर कहा कि सुबह होते हम उसका मेवा ज़रूर तोड़ डालेंगे إِنَّا بَلَوْنَاهُمْ كَمَا بَلَوْنَا أَصْحَابَ الْجَنَّةِ إِذْ أَقْسَمُوا لَيَصْرِمُنَّهَا مُصْبِحِينَ
18 और इन्शाअल्लाह न कहा وَلَا يَسْتَثْنُونَ
19 तो ये लोग पड़े सो ही रहे थे कि तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से (रातों रात) एक बला चक्कर लगा गयी فَطَافَ عَلَيْهَا طَائِفٌ مِّن رَّبِّكَ وَهُمْ نَائِمُونَ
20 तो वह (सारा बाग़ जलकर) ऐसा हो गया जैसे बहुत काली रात فَأَصْبَحَتْ كَالصَّرِيمِ
21 फिर ये लोग नूर के तड़के लगे बाहम गुल मचाने فَتَنَادَوا مُصْبِحِينَ
22 कि अगर तुमको फल तोड़ना है तो अपने बाग़ में सवेरे से चलो أَنِ اغْدُوا عَلَى حَرْثِكُمْ إِن كُنتُمْ صَارِمِينَ
23 ग़रज़ वह लोग चले और आपस में चुपके चुपके कहते जाते थे فَانطَلَقُوا وَهُمْ يَتَخَافَتُونَ
24 कि आज यहाँ तुम्हारे पास कोई फ़क़ीर न आने पाए أَن لَّا يَدْخُلَنَّهَا الْيَوْمَ عَلَيْكُم مِّسْكِينٌ
25 तो वह लोग रोक थाम के एहतमाम के साथ फल तोड़ने की ठाने हुए सवेरे ही जा पहुँचे وَغَدَوْا عَلَى حَرْدٍ قَادِرِينَ
26 फिर जब उसे (जला हुआ सियाह) देखा तो कहने लगे हम लोग भटक गए فَلَمَّا رَأَوْهَا قَالُوا إِنَّا لَضَالُّونَ
27 (ये हमारा बाग़ नहीं फिर ये सोचकर बोले) बात ये है कि हम लोग बड़े बदनसीब हैं بَلْ نَحْنُ مَحْرُومُونَ
28 जो उनमें से मुनसिफ़ मिजाज़ था कहने लगा क्यों मैंने तुमसे नहीं कहा था कि तुम लोग (ख़ुदा की) तसबीह क्यों नहीं करते قَالَ أَوْسَطُهُمْ أَلَمْ أَقُل لَّكُمْ لَوْلَا تُسَبِّحُونَ
29 वह बोले हमारा परवरदिगार पाक है बेशक हमीं ही कुसूरवार हैं قَالُوا سُبْحَانَ رَبِّنَا إِنَّا كُنَّا ظَالِمِينَ
30 फिर लगे एक दूसरे के मुँह दर मुँह मलामत करने فَأَقْبَلَ بَعْضُهُمْ عَلَى بَعْضٍ يَتَلَاوَمُونَ
31 (आख़िर) सबने इक़रार किया कि हाए अफसोस बेशक हम ही ख़ुद सरकश थे قَالُوا يَا وَيْلَنَا إِنَّا كُنَّا طَاغِينَ
32 उम्मीद है कि हमारा परवरदिगार हमें इससे बेहतर बाग़ इनायत फ़रमाए हम अपने परवरदिगार की तरफ रूजू करते हैं عَسَى رَبُّنَا أَن يُبْدِلَنَا خَيْرًا مِّنْهَا إِنَّا إِلَى رَبِّنَا رَاغِبُونَ
33 (देखो) यूँ अज़ाब होता है और आख़ेरत का अज़ाब तो इससे कहीं बढ़ कर है अगर ये लोग समझते हों كَذَلِكَ الْعَذَابُ وَلَعَذَابُ الْآخِرَةِ أَكْبَرُ لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ
34 बेशक परहेज़गार लोग अपने परवरदिगार के यहाँ ऐशो आराम के बाग़ों में होंगे إِنَّ لِلْمُتَّقِينَ عِندَ رَبِّهِمْ جَنَّاتِ النَّعِيمِ
35 तो क्या हम फरमाबरदारों को नाफ़रमानो के बराबर कर देंगे أَفَنَجْعَلُ الْمُسْلِمِينَ كَالْمُجْرِمِينَ
36 (हरगिज़ नहीं) तुम्हें क्या हो गया है तुम तुम कैसा हुक्म लगाते हो مَا لَكُمْ كَيْفَ تَحْكُمُونَ
37 या तुम्हारे पास कोई ईमानी किताब है जिसमें तुम पढ़ लेते हो أَمْ لَكُمْ كِتَابٌ فِيهِ تَدْرُسُونَ
38 कि जो चीज़ पसन्द करोगे तुम को वहाँ ज़रूर मिलेगी إِنَّ لَكُمْ فِيهِ لَمَا تَخَيَّرُونَ
39 या तुमने हमसे क़समें ले रखी हैं जो रोज़े क़यामत तक चली जाएगी कि जो कुछ तुम हुक्म दोगे वही तुम्हारे लिए ज़रूर हाज़िर होगा أَمْ لَكُمْ أَيْمَانٌ عَلَيْنَا بَالِغَةٌ إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ إِنَّ لَكُمْ لَمَا تَحْكُمُونَ
40 उनसे पूछो तो कि उनमें इसका कौन ज़िम्मेदार है سَلْهُم أَيُّهُم بِذَلِكَ زَعِيمٌ
41 या (इस बाब में) उनके और लोग भी शरीक हैं तो अगर ये लोग सच्चे हैं तो अपने शरीकों को सामने लाएँ أَمْ لَهُمْ شُرَكَاء فَلْيَأْتُوا بِشُرَكَائِهِمْ إِن كَانُوا صَادِقِينَ
42 जिस दिन पिंडली खोल दी जाए और (काफ़िर) लोग सजदे के लिए बुलाए जाएँगे तो (सजदा) न कर सकेंगे يَوْمَ يُكْشَفُ عَن سَاقٍ وَيُدْعَوْنَ إِلَى السُّجُودِ فَلَا يَسْتَطِيعُونَ
43 उनकी ऑंखें झुकी हुई होंगी रूसवाई उन पर छाई होगी और (दुनिया में) ये लोग सजदे के लिए बुलाए जाते और हटटे कटटे तन्दरूस्त थे خَاشِعَةً أَبْصَارُهُمْ تَرْهَقُهُمْ ذِلَّةٌ وَقَدْ كَانُوا يُدْعَوْنَ إِلَى السُّجُودِ وَهُمْ سَالِمُونَ
44 तो मुझे उस कलाम के झुठलाने वाले से समझ लेने दो हम उनको आहिस्ता आहिस्ता इस तरह पकड़ लेंगे कि उनको ख़बर भी न होगी فَذَرْنِي وَمَن يُكَذِّبُ بِهَذَا الْحَدِيثِ سَنَسْتَدْرِجُهُم مِّنْ حَيْثُ لَا يَعْلَمُونَ
45 और मैं उनको मोहलत दिये जाता हूँ बेशक मेरी तदबीर मज़बूत है وَأُمْلِي لَهُمْ إِنَّ كَيْدِي مَتِينٌ
46 (ऐ रसूल) क्या तुम उनसे (तबलीग़े रिसालत का) कुछ सिला माँगते हो कि उन पर तावान का बोझ पड़ रहा है أَمْ تَسْأَلُهُمْ أَجْرًا فَهُم مِّن مَّغْرَمٍ مُّثْقَلُونَ
47 या उनके इस ग़ैब (की ख़बर) है कि ये लोग लिख लिया करते हैं أَمْ عِندَهُمُ الْغَيْبُ فَهُمْ يَكْتُبُونَ
48 तो तुम अपने परवरदिगार के हुक्म के इन्तेज़ार में सब्र करो और मछली (का निवाला होने) वाले (यूनुस) के ऐसे न हो जाओ कि जब वह ग़ुस्से में भरे हुए थे और अपने परवरदिगार को पुकारा فَاصْبِرْ لِحُكْمِ رَبِّكَ وَلَا تَكُن كَصَاحِبِ الْحُوتِ إِذْ نَادَى وَهُوَ مَكْظُومٌ
49 अगर तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी उनकी यावरी न करती तो चटियल मैदान में डाल दिए जाते और उनका बुरा हाल होता لَوْلَا أَن تَدَارَكَهُ نِعْمَةٌ مِّن رَّبِّهِ لَنُبِذَ بِالْعَرَاء وَهُوَ مَذْمُومٌ
50 तो उनके परवरदिगार ने उनको बरगुज़ीदा करके नेकोकारों से बना दिया فَاجْتَبَاهُ رَبُّهُ فَجَعَلَهُ مِنَ الصَّالِحِينَ
51 और कुफ्फ़ार जब क़ुरान को सुनते हैं तो मालूम होता है कि ये लोग तुम्हें घूर घूर कर (राह रास्त से) ज़रूर फिसला देंगे وَإِن يَكَادُ الَّذِينَ كَفَرُوا لَيُزْلِقُونَكَ بِأَبْصَارِهِمْ لَمَّا سَمِعُوا الذِّكْرَ وَيَقُولُونَ إِنَّهُ لَمَجْنُونٌ
52 और कहते हैं कि ये तो सिड़ी हैं और ये (क़ुरान) तो सारे जहाँन की नसीहत है وَمَا هُوَ إِلَّا ذِكْرٌ لِّلْعَالَمِينَ
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