Al-An'am

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Hindi: Suhel Farooq Khan and Saifur Rahman Nadwi

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# Translation Ayah
1 सब तारीफ ख़ुदा ही को (सज़ावार) है जिसने बहुतेरे आसमान और ज़मीन को पैदा किया और उसमें मुख्तलिफ क़िस्मों की तारीकी रोशनी बनाई फिर (बावजूद उसके) कुफ्फार (औरों को) अपने परवरदिगार के बराबर करते हैं الْحَمْدُ لِلّهِ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضَ وَجَعَلَ الظُّلُمَاتِ وَالنُّورَ ثُمَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ بِرَبِّهِم يَعْدِلُونَ
2 वह तो वही ख़ुदा है जिसने तुमको मिट्टी से पैदा किया फिर (फिर तुम्हारे मरने का) एक वक्त मुक़र्रर कर दिया और (अगरचे तुमको मालूम नहीं मगर) उसके नज़दीक (क़यामत) का वक्त मुक़र्रर है هُوَ الَّذِي خَلَقَكُم مِّن طِينٍ ثُمَّ قَضَى أَجَلاً وَأَجَلٌ مُّسمًّى عِندَهُ ثُمَّ أَنتُمْ تَمْتَرُون
3 फिर (यही) तुम शक़ करते हो और वही तो आसमानों में (भी) और ज़मीन में (भी) ख़ुदा है वही तुम्हारे ज़ाहिर व बातिन से (भी) ख़बरदार है और वही जो कुछ भी तुम करते हो जानता है وَهُوَ اللّهُ فِي السَّمَاوَاتِ وَفِي الأَرْضِ يَعْلَمُ سِرَّكُمْ وَجَهرَكُمْ وَيَعْلَمُ مَا تَكْسِبُونَ
4 और उन (लोगों का) अजब हाल है कि उनके पास ख़ुदा की आयत में से जब कोई आयत आती तो बस ये लोग ज़रुर उससे मुंह फेर लेते थे وَمَا تَأْتِيهِم مِّنْ آيَةٍ مِّنْ آيَاتِ رَبِّهِمْ إِلاَّ كَانُواْ عَنْهَا مُعْرِضِينَ
5 चुनान्चे जब उनके पास (क़ुरान बरहक़) आया तो उसको भी झुठलाया तो ये लोग जिसके साथ मसख़रापन कर रहे है उनकी हक़ीक़त उन्हें अनक़रीब ही मालूम हो जाएगी فَقَدْ كَذَّبُواْ بِالْحَقِّ لَمَّا جَاءهُمْ فَسَوْفَ يَأْتِيهِمْ أَنبَاء مَا كَانُواْ بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ
6 क्या उन्हें सूझता नहीं कि हमने उनसे पहले कितने गिरोह (के गिरोह) हलाक कर डाले जिनको हमने रुए ज़मीन मे वह (कूवत) क़ुदरत अता की थी जो अभी तक तुमको नहीं दी और हमने आसमान तो उन पर मूसलाधार पानी बरसता छोड़ दिया था और उनके (मकानात के) नीचे बहती हुई नहरें बना दी थी (मगर) फिर भी उनके गुनाहों की वजह से उनको मार डाला और उनके बाद एक दूसरे गिरोह को पैदा कर दिया أَلَمْ يَرَوْاْ كَمْ أَهْلَكْنَا مِن قَبْلِهِم مِّن قَرْنٍ مَّكَّنَّاهُمْ فِي الأَرْضِ مَا لَمْ نُمَكِّن لَّكُمْ وَأَرْسَلْنَا السَّمَاء عَلَيْهِم مِّدْرَارًا وَجَعَلْنَا الأَنْهَارَ تَجْرِي مِن تَحْتِهِمْ فَأَهْلَكْنَاهُم بِذُنُوبِهِمْ وَأَنْشَأْنَا مِن بَعْدِهِمْ قَرْنًا آخَرِينَ
7 और (ऐ रसूल) अगर हम कागज़ पर (लिखी लिखाई) किताब (भी) तुम पर नाज़िल करते और ये लोग उसे अपने हाथों से छू भी लेते फिर भी कुफ्फार (न मानते और) कहते कि ये तो बस खुला हुआ जादू है وَلَوْ نَزَّلْنَا عَلَيْكَ كِتَابًا فِي قِرْطَاسٍ فَلَمَسُوهُ بِأَيْدِيهِمْ لَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُواْ إِنْ هَـذَا إِلاَّ سِحْرٌ مُّبِينٌ
8 और (ये भी) कहते कि उस (नबी) पर कोई फरिश्ता क्यों नहीं नाज़िल किया गया (जो साथ साथ रहता) हालॉकि अगर हम फरिश्ता भेज देते तो (उनका) काम ही तमाम हो जाता (और) फिर उन्हें मोहलत भी न दी जाती وَقَالُواْ لَوْلا أُنزِلَ عَلَيْهِ مَلَكٌ وَلَوْ أَنزَلْنَا مَلَكًا لَّقُضِيَ الأمْرُ ثُمَّ لاَ يُنظَرُونَ
9 और अगर हम फरिश्ते को नबी बनाते तो (आख़िर) उसको भी मर्द सूरत बनाते और जो शुबहे ये लोग कर रहे हैं वही शुबहे (गोया) हम ख़ुद उन पर (उस वक्त भी) उठा देते وَلَوْ جَعَلْنَاهُ مَلَكًا لَّجَعَلْنَاهُ رَجُلاً وَلَلَبَسْنَا عَلَيْهِم مَّا يَلْبِسُونَ
10 (ऐ रसूल तुम दिल तंग न हो) तुम से पहले (भी) पैग़म्बरों के साथ मसख़रापन किया गया है पस जो लोग मसख़रापन करते थे उनको उस अज़ाब ने जिसके ये लोग हॅसी उड़ाते थे घेर लिया وَلَقَدِ اسْتُهْزِئَ بِرُسُلٍ مِّن قَبْلِكَ فَحَاقَ بِالَّذِينَ سَخِرُواْ مِنْهُم مَّا كَانُواْ بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ
11 (ऐ रसूल उनसे) कहो कि ज़रुर रुए ज़मीन पर चल फिर कर देखो तो कि (अम्बिया के) झुठलाने वालो का क्या (बुरा) अन्जाम हुआ قُلْ سِيرُواْ فِي الأَرْضِ ثُمَّ انظُرُواْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُكَذِّبِين
12 (ऐ रसूल उनसे) पूछो तो कि (भला) जो कुछ आसमान और ज़मीन में है किसका है (वह जवाब देगें) तुम ख़ुद कह दो कि ख़ास ख़ुदा का है उसने अपनी ज़ात पर मेहरबानी लाज़िम कर ली है वह तुम सब के सब को क़यामत के दिन जिसके आने मे कुछ शक़ नहीं ज़रुर जमा करेगा (मगर) जिन लोगों ने अपना आप नुक़सान किया वह तो (क़यामत पर) ईमान न लाएंगें قُل لِّمَن مَّا فِي السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ قُل لِلّهِ كَتَبَ عَلَى نَفْسِهِ الرَّحْمَةَ لَيَجْمَعَنَّكُمْ إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ لاَ رَيْبَ فِيهِ الَّذِينَ خَسِرُواْ أَنفُسَهُمْ فَهُمْ لاَ يُؤْمِنُونَ
13 हालॉकि (ये नहीं समझते कि) जो कुछ रात को और दिन को (रुए ज़मीन पर) रहता (सहता) है (सब) ख़ास उसी का है और वही (सब की) सुनता (और सब कुछ) जानता है وَلَهُ مَا سَكَنَ فِي اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ وَهُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ
14 ऐ रसूल) तुम कह दो कि क्या ख़ुदा को जो सारे आसमान व ज़मीन का पैदा करने वाला है छोड़ कर दूसरे को (अपना) सरपरस्त बनाओ और वही (सब को) रोज़ी देता है और उसको कोई रोज़ी नहीं देता (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मुझे हुक्म दिया गया है कि सब से पहले इस्लाम लाने वाला मैं हूँ और (ये भी कि ख़बरदार) मुशरेकीन से न होना قُلْ أَغَيْرَ اللّهِ أَتَّخِذُ وَلِيًّا فَاطِرِ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَهُوَ يُطْعِمُ وَلاَ يُطْعَمُ قُلْ إِنِّيَ أُمِرْتُ أَنْ أَكُونَ أَوَّلَ مَنْ أَسْلَمَ وَلاَ تَكُونَنَّ مِنَ الْمُشْرِكَين
15 (ऐ रसूल) तुम कहो कि अगर मैं नाफरमानी करुँ तो बेशक एक बड़े (सख्त) दिल के अज़ाब से डरता हूँ قُلْ إِنِّيَ أَخَافُ إِنْ عَصَيْتُ رَبِّي عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍ
16 उस दिन जिस (के सर) से अज़ाब टल गया तो (समझो कि) ख़ुदा ने उस पर (बड़ा) रहम किया और यही तो सरीही कामयाबी है مَّن يُصْرَفْ عَنْهُ يَوْمَئِذٍ فَقَدْ رَحِمَهُ وَذَلِكَ الْفَوْزُ الْمُبِينُ
17 और अगर ख़ुदा तुम को किसी क़िस्म की तकलीफ पहुचाए तो उसके सिवा कोई उसका दफा करने वाला नहीं है और अगर तुम्हें कुछ फायदा) पहुंचाए तो भी (कोई रोक नहीं सकता क्योंकि) वह हर चीज़ पर क़ादिर है وَإِن يَمْسَسْكَ اللّهُ بِضُرٍّ فَلاَ كَاشِفَ لَهُ إِلاَّ هُوَ وَإِن يَمْسَسْكَ بِخَيْرٍ فَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدُيرٌ
18 वही अपने तमाम बन्दों पर ग़ालिब है और वह वाक़िफकार हकीम है وَهُوَ الْقَاهِرُ فَوْقَ عِبَادِهِ وَهُوَ الْحَكِيمُ الْخَبِيرُ
19 (ऐ रसूल) तुम पूछो कि गवाही में सबसे बढ़के कौन चीज़ है तुम खुद ही कह दो कि मेरे और तुम्हारे दरमियान ख़ुदा गवाह है और मेरे पास ये क़ुरान वही के तौर पर इसलिए नाज़िल किया गया ताकि मैं तुम्हें और जिसे (उसकी) ख़बर पहुँचे उसके ज़रिए से डराओ क्या तुम यक़ीनन यह गवाही दे सकते हो कि अल्लाह के साथ और दूसरे माबूद भी हैं (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मै तो उसकी गवाही नहीं देता (तुम दिया करो) तुम (उन लोगों से) कहो कि वह तो बस एक ही ख़ुदा है और जिन चीज़ों को तुम (ख़ुदा का) शरीक बनाते हो قُلْ أَيُّ شَيْءٍ أَكْبَرُ شَهَادةً قُلِ اللّهِ شَهِيدٌ بِيْنِي وَبَيْنَكُمْ وَأُوحِيَ إِلَيَّ هَذَا الْقُرْآنُ لأُنذِرَكُم بِهِ وَمَن بَلَغَ أَئِنَّكُمْ لَتَشْهَدُونَ أَنَّ مَعَ اللّهِ آلِهَةً أُخْرَى قُل لاَّ أَشْهَدُ قُلْ إِنَّمَا هُوَ إِلَـهٌ وَاحِدٌ وَإِنَّنِي بَرِيءٌ مِّمَّا تُشْرِكُونَ
20 मै तो उनसे बेज़र हूँ जिन लोगों को हमने किताब अता फरमाई है (यहूद व नसारा) वह तो जिस तरह अपने बाल बच्चों को पहचानते है उसी तरह उस नबी (मोहम्मद) को भी पहचानते हैं (मगर) जिन लोगों ने अपना आप नुक़सान किया वह तो (किसी तरह) ईमान न लाएंगें الَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ يَعْرِفُونَهُ كَمَا يَعْرِفُونَ أَبْنَاءهُمُ الَّذِينَ خَسِرُواْ أَنفُسَهُمْ فَهُمْ لاَ يُؤْمِنُونَ
21 और जो शख़्श ख़ुदा पर झूठ बोहतान बॉधे या उसकी आयतों को झुठलाए उससे बढ़के ज़ालिम कौन होगा और ज़ालिमों को हरगिज़ नजात न होगी وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنِ افْتَرَى عَلَى اللّهِ كَذِبًا أَوْ كَذَّبَ بِآيَاتِهِ إِنَّهُ لاَ يُفْلِحُ الظَّالِمُونَ
22 और (उस दिन को याद करो) जिस दिन हम उन सबको जमा करेंगे फिर जिन लोगों ने शिर्क किया उनसे पूछेगें कि जिनको तुम (ख़ुदा का) शरीक ख्याल करते थे कहाँ हैं وَيَوْمَ نَحْشُرُهُمْ جَمِيعًا ثُمَّ نَقُولُ لِلَّذِينَ أَشْرَكُواْ أَيْنَ شُرَكَآؤُكُمُ الَّذِينَ كُنتُمْ تَزْعُمُونَ
23 फिर उनकी कोई शरारत (बाक़ी) न रहेगी बल्कि वह तो ये कहेगें क़सम है उस ख़ुदा की जो हमारा पालने वाला है हम किसी को उसका शरीक नहीं बनाते थे ثُمَّ لَمْ تَكُن فِتْنَتُهُمْ إِلاَّ أَن قَالُواْ وَاللّهِ رَبِّنَا مَا كُنَّا مُشْرِكِينَ
24 (ऐ रसूल भला) देखो तो ये लोग अपने ही ऊपर आप किस तरह झूठ बोलने लगे और ये लोग (दुनिया में) जो कुछ इफ़तेरा परदाज़ी (झूठी बातें) करते थे انظُرْ كَيْفَ كَذَبُواْ عَلَى أَنفُسِهِمْ وَضَلَّ عَنْهُم مَّا كَانُواْ يَفْتَرُونَ
25 वह सब ग़ायब हो गयी और बाज़ उनमें के ऐसे भी हैं जो तुम्हारी (बातों की) तरफ कान लगाए रहते हैं और (उनकी हठ धर्मी इस हद को पहुँची है कि गोया हमने ख़ुद उनके दिलों पर परदे डाल दिए हैं और उनके कानों में बहरापन पैदा कर दिया है कि उसे समझ न सकें और अगर वह सारी (ख़ुदाई के) मौजिज़े भी देखे लें तब भी ईमान न लाएंगें यहाँ तक (हठ धर्मी पहुची) कि जब तुम्हारे पास तुम से उलझे हुए आ निकलते हैं तो कुफ्फ़ार (क़ुरान लेकर) कहा बैठे है (कि भला इसमें रखा ही क्या है) ये तो अगलों की कहानियों के सिवा कुछ भी नहीं وَمِنْهُم مَّن يَسْتَمِعُ إِلَيْكَ وَجَعَلْنَا عَلَى قُلُوبِهِمْ أَكِنَّةً أَن يَفْقَهُوهُ وَفِي آذَانِهِمْ وَقْرًا وَإِن يَرَوْاْ كُلَّ آيَةٍ لاَّ يُؤْمِنُواْ بِهَا حَتَّى إِذَا جَآؤُوكَ يُجَادِلُونَكَ يَقُولُ الَّذِينَ كَفَرُواْ إِنْ هَذَا إِلاَّ أَسَاطِيرُ الأَوَّلِينَ
26 और ये लोग (दूसरों को भी) उस के (सुनने से) से रोकते हैं और ख़ुद तो अलग थलग रहते ही हैं और (इन बातों से) बस आप ही अपने को हलाक करते हैं और (अफसोस) समझते नहीं وَهُمْ يَنْهَوْنَ عَنْهُ وَيَنْأَوْنَ عَنْهُ وَإِن يُهْلِكُونَ إِلاَّ أَنفُسَهُمْ وَمَا يَشْعُرُونَ
27 (ऐ रसूल) अगर तुम उन लोगों को उस वक्त देखते (तो ताज्जुब करते) जब जहन्नुम (के किनारे) पर लाकर खड़े किए जाओगे तो (उसे देखकर) कहेगें ऐ काश हम (दुनिया में) फिर (दुबारा) लौटा भी दिए जाते और अपने परवरदिगार की आयतों को न झुठलाते और हम मोमिनीन से होते (मगर उनकी आरज़ू पूरी न होगी) وَلَوْ تَرَىَ إِذْ وُقِفُواْ عَلَى النَّارِ فَقَالُواْ يَا لَيْتَنَا نُرَدُّ وَلاَ نُكَذِّبَ بِآيَاتِ رَبِّنَا وَنَكُونَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ
28 बल्कि जो (बेईमानी) पहले से छिपाते थे आज (उसकी हक़ीक़त) उन पर खुल गयी और (हम जानते हैं कि) अगर ये लोग (दुनिया में) लौटा भी दिए जाएं तो भी जिस चीज़ की मनाही की गयी है उसे करें और ज़रुर करें और इसमें शक़ नहीं कि ये लोग ज़रुर झूठे हैं بَلْ بَدَا لَهُم مَّا كَانُواْ يُخْفُونَ مِن قَبْلُ وَلَوْ رُدُّواْ لَعَادُواْ لِمَا نُهُواْ عَنْهُ وَإِنَّهُمْ لَكَاذِبُونَ
29 और कुफ्फार ये भी तो कहते हैं कि हमारी इस दुनिया ज़िन्दगी के सिवा कुछ भी नहीं और (क़यामत वग़ैरह सब ढकोसला है) हम (मरने के बाद) भी उठाए ही न जायेंगे وَقَالُواْ إِنْ هِيَ إِلاَّ حَيَاتُنَا الدُّنْيَا وَمَا نَحْنُ بِمَبْعُوثِينَ
30 और (ऐ रसूल) अगर तुम उनको उस वक्त देखते (तो ताज्जुब करते) जब वे लोग ख़ुदा के सामने खड़े किए जाएंगें और ख़ुदा उनसे पूछेगा कि क्या ये (क़यामत का दिन) अब भी सही नहीं है वह (जवाब में) कहेगें कि (दुनिया में) इससे इन्कार करते थे وَلَوْ تَرَى إِذْ وُقِفُواْ عَلَى رَبِّهِمْ قَالَ أَلَيْسَ هَذَا بِالْحَقِّ قَالُواْ بَلَى وَرَبِّنَا قَالَ فَذُوقُواْ العَذَابَ بِمَا كُنتُمْ تَكْفُرُونَ
31 उसकी सज़ा में अज़ाब (के मजे) चखो बेशक जिन लोगों ने क़यामत के दिन ख़ुदा की हुज़ूरी को झुठलाया वह बड़े घाटे में हैं यहाँ तक कि जब उनके सर पर क़यामत नागहा (एक दम आ) पहँचेगी तो कहने लगेगें ऐ है अफसोस हम ने तो इसमें बड़ी कोताही की (ये कहते जाएगे) और अपने गुनाहों का पुश्तारा अपनी अपनी पीठ पर लादते जाएंगे देखो तो (ये) क्या बुरा बोझ है जिसको ये लादे (लादे फिर रहे) हैं قَدْ خَسِرَ الَّذِينَ كَذَّبُواْ بِلِقَاء اللّهِ حَتَّى إِذَا جَاءتْهُمُ السَّاعَةُ بَغْتَةً قَالُواْ يَا حَسْرَتَنَا عَلَى مَا فَرَّطْنَا فِيهَا وَهُمْ يَحْمِلُونَ أَوْزَارَهُمْ عَلَى ظُهُورِهِمْ أَلاَ سَاء مَا يَزِرُونَ
32 और (ये) दुनियावी ज़िन्दगी तो खेल तमाशे के सिवा कुछ भी नहीं और ये तो ज़ाहिर है कि आख़िरत का घर (बेहिश्त) परहेज़गारो के लिए उसके बदर वहॉ (कई गुना) बेहतर है तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते وَمَا الْحَيَاةُ الدُّنْيَا إِلاَّ لَعِبٌ وَلَهْوٌ وَلَلدَّارُ الآخِرَةُ خَيْرٌ لِّلَّذِينَ يَتَّقُونَ أَفَلاَ تَعْقِلُونَ
33 हम खूब जानते हैं कि उन लोगों की बकबक तुम को सदमा पहुँचाती है तो (तुम को समझना चाहिए कि) ये लोग तुम को नहीं झुठलाते बल्कि (ये) ज़ालिम (हक़ीक़तन) ख़ुदा की आयतों से इन्कार करते हैं قَدْ نَعْلَمُ إِنَّهُ لَيَحْزُنُكَ الَّذِي يَقُولُونَ فَإِنَّهُمْ لاَ يُكَذِّبُونَكَ وَلَكِنَّ الظَّالِمِينَ بِآيَاتِ اللّهِ يَجْحَدُونَ
34 और (कुछ तुम ही पर नहीं) तुमसे पहले भी बहुतेरे रसूल झुठलाए जा चुके हैं तो उन्होनें अपने झुठलाए जाने और अज़ीयत (व तकलीफ) पर सब्र किया यहाँ तक कि हमारी मदद उनके पास आयी और (क्यों न आती) ख़ुदा की बातों का कोई बदलने वाला नहीं है और पैग़म्बर के हालात तो तुम्हारे पास पहुँच ही चुके हैं وَلَقَدْ كُذِّبَتْ رُسُلٌ مِّن قَبْلِكَ فَصَبَرُواْ عَلَى مَا كُذِّبُواْ وَأُوذُواْ حَتَّى أَتَاهُمْ نَصْرُنَا وَلاَ مُبَدِّلَ لِكَلِمَاتِ اللّهِ وَلَقدْ جَاءكَ مِن نَّبَإِ الْمُرْسَلِينَ
35 अगरचे उन लोगों की रदगिरदानी (मुँह फेरना) तुम पर शाक़ ज़रुर है (लेकिन) अगर तुम्हारा बस चले तो ज़मीन के अन्दर कोई सुरगं ढँढ निकालो या आसमान में सीढ़ी लगाओ और उन्हें कोई मौजिज़ा ला दिखाओ (तो ये भी कर देखो) अगर ख़ुदा चाहता तो उन सब को राहे रास्त पर इकट्ठा कर देता (मगर वह तो इम्तिहान करता है) बस (देखो) तुम हरगिज़ ज़ालिमों में (शामिल) न होना وَإِن كَانَ كَبُرَ عَلَيْكَ إِعْرَاضُهُمْ فَإِنِ اسْتَطَعْتَ أَن تَبْتَغِيَ نَفَقًا فِي الأَرْضِ أَوْ سُلَّمًا فِي السَّمَاء فَتَأْتِيَهُم بِآيَةٍ وَلَوْ شَاء اللّهُ لَجَمَعَهُمْ عَلَى الْهُدَى فَلاَ تَكُونَنَّ مِنَ الْجَاهِلِينَ
36 (तुम्हारा कहना तो) सिर्फ वही लोग मानते हैं जो (दिल से) सुनते हैं और मुर्दो को तो ख़ुदा क़यामत ही में उठाएगा फिर उसी की तरफ लौटाए जाएंगें إِنَّمَا يَسْتَجِيبُ الَّذِينَ يَسْمَعُونَ وَالْمَوْتَى يَبْعَثُهُمُ اللّهُ ثُمَّ إِلَيْهِ يُرْجَعُونَ
37 और कुफ्फ़ार कहते हैं कि (आख़िर) उस नबी पर उसके परवरदिगार की तरफ से कोई मौजिज़ा क्यों नहीं नाज़िल होता तो तुम (उनसे) कह दो कि ख़ुदा मौजिज़े के नाज़िल करने पर ज़रुर क़ादिर है मगर उनमें के अक्सर लोग (ख़ुदा की मसलहतों को) नहीं जानते وَقَالُواْ لَوْلاَ نُزِّلَ عَلَيْهِ آيَةٌ مِّن رَّبِّهِ قُلْ إِنَّ اللّهَ قَادِرٌ عَلَى أَن يُنَزِّلٍ آيَةً وَلَـكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لاَ يَعْلَمُونَ
38 ज़मीन में जो चलने फिरने वाला (हैवान) या अपने दोनों परों से उड़ने वाला परिन्दा है उनकी भी तुम्हारी तरह जमाअतें हैं और सब के सब लौह महफूज़ में मौजूद (हैं) हमने किताब (क़ुरान) में कोई बात नहीं छोड़ी है फिर सब के सब (चरिन्द हों या परिन्द) अपने परवरदिगार के हुज़ूर में लाए जायेंगे। وَمَا مِن دَآبَّةٍ فِي الأَرْضِ وَلاَ طَائِرٍ يَطِيرُ بِجَنَاحَيْهِ إِلاَّ أُمَمٌ أَمْثَالُكُم مَّا فَرَّطْنَا فِي الكِتَابِ مِن شَيْءٍ ثُمَّ إِلَى رَبِّهِمْ يُحْشَرُونَ
39 और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठला दिया गोया वह (कुफ्र के घटाटोप) ऍधेरों में गूंगें बहरे (पड़े हैं) ख़ुदा जिसे चाहे उसे गुमराही में छोड़ दे और जिसे चाहे उसे सीधे ढर्रे पर लगा दे وَالَّذِينَ كَذَّبُواْ بِآيَاتِنَا صُمٌّ وَبُكْمٌ فِي الظُّلُمَاتِ مَن يَشَإِ اللّهُ يُضْلِلْهُ وَمَن يَشَأْ يَجْعَلْهُ عَلَى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ
40 (ऐ रसूल उनसे) पूछो तो कि क्या तुम यह समझते हो कि अगर तुम्हारे सामने ख़ुदा का अज़ाब आ जाए या तुम्हारे सामने क़यामत ही आ खड़ी मौजूद हो तो तुम अगर (अपने दावे में) सच्चे हो तो (बताओ कि मदद के वास्ते) क्या ख़ुदा को छोड़कर दूसरे को पुकारोगे قُلْ أَرَأَيْتُكُم إِنْ أَتَاكُمْ عَذَابُ اللّهِ أَوْ أَتَتْكُمُ السَّاعَةُ أَغَيْرَ اللّهِ تَدْعُونَ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ
41 (दूसरों को तो क्या) बल्कि उसी को पुकारोगे फिर अगर वह चाहेगा तो जिस के वास्ते तुमने उसको पुकारा है उसे दफा कर देगा और (उस वक्त) तुम दूसरे माबूदों को जिन्हे तुम (ख़ुदा का) शरीक समझते थे भूल जाओगे بَلْ إِيَّاهُ تَدْعُونَ فَيَكْشِفُ مَا تَدْعُونَ إِلَيْهِ إِنْ شَاء وَتَنسَوْنَ مَا تُشْرِكُونَ
42 और (ऐ रसूल) जो उम्मतें तुमसे पहले गुज़र चुकी हैं हम उनके पास भी बहुतेरे रसूल भेज चुके हैं फिर (जब नाफ़रमानी की) तो हमने उनको सख्ती وَلَقَدْ أَرْسَلنَا إِلَى أُمَمٍ مِّن قَبْلِكَ فَأَخَذْنَاهُمْ بِالْبَأْسَاء وَالضَّرَّاء لَعَلَّهُمْ يَتَضَرَّعُونَ
43 और तकलीफ़ में गिरफ्तार किया ताकि वह लोग (हमारी बारगाह में) गिड़गिड़ाए तो जब उन (के सर) पर हमारा अज़ाब आ खड़ा हुआ तो वह लोग क्यों नहीं गिड़गिड़ाए (कि हम अज़ाब दफा कर देते) मगर उनके दिल तो सख्त हो गए थे ओर उनकी कारस्तानियों को शैतान ने आरास्ता कर दिखाया था (फिर क्योंकर गिड़गिड़ाते) فَلَوْلا إِذْ جَاءهُمْ بَأْسُنَا تَضَرَّعُواْ وَلَـكِن قَسَتْ قُلُوبُهُمْ وَزَيَّنَ لَهُمُ الشَّيْطَانُ مَا كَانُواْ يَعْمَلُونَ
44 फिर जिसकी उन्हें नसीहत की गयी थी जब उसको भूल गए तो हमने उन पर (ढील देने के लिए) हर तरह की (दुनियावी) नेअमतों के दरवाज़े खोल दिए यहाँ तक कि जो नेअमतें उनको दी गयी थी जब उनको पाकर ख़ुश हुए तो हमने उन्हें नागाहाँ (एक दम) ले डाला तो उस वक्त वह नाउम्मीद होकर रह गए فَلَمَّا نَسُواْ مَا ذُكِّرُواْ بِهِ فَتَحْنَا عَلَيْهِمْ أَبْوَابَ كُلِّ شَيْءٍ حَتَّى إِذَا فَرِحُواْ بِمَا أُوتُواْ أَخَذْنَاهُم بَغْتَةً فَإِذَا هُم مُّبْلِسُونَ
45 फिर ज़ालिम लोगों की जड़ काट दी गयी और सारे जहाँन के मालिक ख़ुदा का शुक्र है فَقُطِعَ دَابِرُ الْقَوْمِ الَّذِينَ ظَلَمُواْ وَالْحَمْدُ لِلّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ
46 (कि क़िस्सा पाक हुआ) (ऐ रसूल) उनसे पूछो तो कि क्या तुम ये समझते हो कि अगर ख़ुदा तुम्हारे कान और तुम्हारी ऑंखे लें ले और तुम्हारे दिलों पर मोहर कर दे तो ख़ुदा के सिवा और कौन मौजूद है जो (फिर) तुम्हें ये नेअमतें (वापस) दे (ऐ रसूल) देखो तो हम किस किस तरह अपनी दलीले बयान करते हैं इस पर भी वह लोग मुँह मोडे ज़ाते हैं قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ أَخَذَ اللّهُ سَمْعَكُمْ وَأَبْصَارَكُمْ وَخَتَمَ عَلَى قُلُوبِكُم مَّنْ إِلَـهٌ غَيْرُ اللّهِ يَأْتِيكُم بِهِ انظُرْ كَيْفَ نُصَرِّفُ الآيَاتِ ثُمَّ هُمْ يَصْدِفُونَ
47 (ऐ रसूल) उनसे पूछो कि क्या तुम ये समझते हो कि अगर तुम्हारे सर पर ख़ुदा का अज़ाब बेख़बरी में या जानकारी में आ जाए तो क्या गुनाहगारों के सिवा और लोग भी हलाक़ किए जाएंगें (हरगिज़ नहीं) قُلْ أَرَأَيْتَكُمْ إِنْ أَتَاكُمْ عَذَابُ اللّهِ بَغْتَةً أَوْ جَهْرَةً هَلْ يُهْلَكُ إِلاَّ الْقَوْمُ الظَّالِمُونَ
48 और हम तो रसूलों को सिर्फ इस ग़रज़ से भेजते हैं कि (नेको को जन्नत की) खुशख़बरी दें और (बदो को अज़ाब जहन्नुम से) डराएं फिर जिसने ईमान कुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए तो ऐसे लोगों पर (क़यामत में) न कोई ख़ौफ होगा और न वह ग़मग़ीन होगें وَمَا نُرْسِلُ الْمُرْسَلِينَ إِلاَّ مُبَشِّرِينَ وَمُنذِرِينَ فَمَنْ آمَنَ وَأَصْلَحَ فَلاَ خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلاَ هُمْ يَحْزَنُونَ
49 और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया तो चूंकि बदकारी करते थे (हमारा) अज़ाब उनको पलट जाएगा وَالَّذِينَ كَذَّبُواْ بِآيَاتِنَا يَمَسُّهُمُ الْعَذَابُ بِمَا كَانُواْ يَفْسُقُونَ
50 (ऐ रसूल) उनसे कह दो कि मै तो ये नहीं कहता कि मेरे पास ख़ुदा के ख़ज़ाने हैं (कि ईमान लाने पर दे दूंगा) और न मै गैब के (कुल हालात) जानता हूँ और न मै तुमसे ये कहता हूँ कि मै फरिश्ता हूँ मै तो बस जो (ख़ुदा की तरफ से) मेरे पास वही की जाती है उसी का पाबन्द हूँ (उनसे पूछो तो) कि अन्धा और ऑंख वाला बराबर हो सकता है तो क्या तुम (इतना भी) नहीं सोचते قُل لاَّ أَقُولُ لَكُمْ عِندِي خَزَآئِنُ اللّهِ وَلا أَعْلَمُ الْغَيْبَ وَلا أَقُولُ لَكُمْ إِنِّي مَلَكٌ إِنْ أَتَّبِعُ إِلاَّ مَا يُوحَى إِلَيَّ قُلْ هَلْ يَسْتَوِي الأَعْمَى وَالْبَصِيرُ أَفَلاَ تَتَفَكَّرُونَ
51 और इस क़ुरान के ज़रिए से तुम उन लोगों को डराओ जो इस बात का ख़ौफ रखते हैं कि वह (मरने के बाद) अपने ख़ुदा के सामने जमा किये जायेंगे (और यह समझते है कि) उनका ख़ुदा के सिवा न कोई सरपरस्त हे और न कोई सिफारिश करने वाला ताकि ये लोग परहेज़गार बन जाएं وَأَنذِرْ بِهِ الَّذِينَ يَخَافُونَ أَن يُحْشَرُواْ إِلَى رَبِّهِمْ لَيْسَ لَهُم مِّن دُونِهِ وَلِيٌّ وَلاَ شَفِيعٌ لَّعَلَّهُمْ يَتَّقُونَ
52 और (ऐ रसूल) जो लोग सुबह व शाम अपने परवरदिगार से उसकी ख़ुशनूदी की तमन्ना में दुऑए मॉगा करते हैं- उनको अपने पास से न धुत्कारो-न उनके (हिसाब किताब की) जवाब देही कुछ उनके ज़िम्मे है ताकि तुम उन्हें (इस ख्याल से) धुत्कार बताओ तो तुम ज़ालिम (के शुमार) में हो जाओगे وَلاَ تَطْرُدِ الَّذِينَ يَدْعُونَ رَبَّهُم بِالْغَدَاةِ وَالْعَشِيِّ يُرِيدُونَ وَجْهَهُ مَا عَلَيْكَ مِنْ حِسَابِهِم مِّن شَيْءٍ وَمَا مِنْ حِسَابِكَ عَلَيْهِم مِّن شَيْءٍ فَتَطْرُدَهُمْ فَتَكُونَ مِنَ الظَّالِمِينَ
53 और इसी तरह हमने बाज़ आदमियों को बाज़ से आज़माया ताकि वह लोग कहें कि हाएं क्या ये लोग हममें से हैं जिन पर ख़ुदा ने अपना फ़जल व करम किया है (यह तो समझते की) क्या ख़ुदा शुक्र गुज़ारों को भी नही जानता وَكَذَلِكَ فَتَنَّا بَعْضَهُم بِبَعْضٍ لِّيَقُولواْ أَهَـؤُلاء مَنَّ اللّهُ عَلَيْهِم مِّن بَيْنِنَا أَلَيْسَ اللّهُ بِأَعْلَمَ بِالشَّاكِرِينَ
54 और जो लोग हमारी आयतों पर ईमान लाए हैं तुम्हारे पास ऑंए तो तुम सलामुन अलैकुम (तुम पर ख़ुदा की सलामती हो) कहो तुम्हारे परवरदिगार ने अपने ऊपर रहमत लाज़िम कर ली है बेशक तुम में से जो शख़्श नादानी से कोई गुनाह कर बैठे उसके बाद फिर तौबा करे और अपनी हालत की (असलाह करे ख़ुदा उसका गुनाह बख्श देगा क्योंकि) वह यक़ीनी बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है وَإِذَا جَاءكَ الَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِآيَاتِنَا فَقُلْ سَلاَمٌ عَلَيْكُمْ كَتَبَ رَبُّكُمْ عَلَى نَفْسِهِ الرَّحْمَةَ أَنَّهُ مَن عَمِلَ مِنكُمْ سُوءًا بِجَهَالَةٍ ثُمَّ تَابَ مِن بَعْدِهِ وَأَصْلَحَ فَأَنَّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
55 और हम (अपनी) आयतों को यूं तफ़सील से बयान करते हैं ताकि गुनाहगारों की राह (सब पर) खुल जाए और वह इस पर न चले وَكَذَلِكَ نفَصِّلُ الآيَاتِ وَلِتَسْتَبِينَ سَبِيلُ الْمُجْرِمِينَ
56 (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मुझसे उसकी मनाही की गई है कि मैं ख़ुदा को छोड़कर उन माबूदों की इबादत करुं जिन को तुम पूजा करते हो (ये भी) कह दो कि मै तो तुम्हारी (नाफसानी) ख्वाहिश पर चलने का नहीं (वरना) फिर तो मै गुमराह हो जाऊॅगा और हिदायत याफता लोगों में न रहूँगा قُلْ إِنِّي نُهِيتُ أَنْ أَعْبُدَ الَّذِينَ تَدْعُونَ مِن دُونِ اللّهِ قُل لاَّ أَتَّبِعُ أَهْوَاءكُمْ قَدْ ضَلَلْتُ إِذًا وَمَا أَنَاْ مِنَ الْمُهْتَدِينَ
57 तुम कह दो कि मै तो अपने परवरदिगार की तरफ से एक रौशन दलील पर हूं और तुमने उसे झुठला दिया (तो) तुम जिस की जल्दी करते हो (अज़ाब) वह कुछ मेरे पास (एख्तियार में) तो है नहीं हुकूमत तो बस ज़रुर ख़ुदा ही के लिए है वह तो (हक़) बयान करता है और वह तमाम फैसला करने वालों से बेहतर है قُلْ إِنِّي عَلَى بَيِّنَةٍ مِّن رَّبِّي وَكَذَّبْتُم بِهِ مَا عِندِي مَا تَسْتَعْجِلُونَ بِهِ إِنِ الْحُكْمُ إِلاَّ لِلّهِ يَقُصُّ الْحَقَّ وَهُوَ خَيْرُ الْفَاصِلِينَ
58 (उन लोगों से) कह दो कि जिस (अज़ाब) की तुम जल्दी करते हो अगर वह मेरे पास (एख्तियार में) होता तो मेरे और तुम्हारे दरमियान का फैसला कब का चुक गया होता और ख़ुदा तो ज़ालिमों से खूब वाक़िफ है قُل لَّوْ أَنَّ عِندِي مَا تَسْتَعْجِلُونَ بِهِ لَقُضِيَ الأَمْرُ بَيْنِي وَبَيْنَكُمْ وَاللّهُ أَعْلَمُ بِالظَّالِمِينَ
59 और उसके पास ग़ैब की कुन्जियॉ हैं जिनको उसके सिवा कोई नही जानता और जो कुछ ख़ुशकी और तरी में है उसको (भी) वही जानता है और कोई पत्ता भी नहीं खटकता मगर वह उसे ज़रुर जानता है और ज़मीन की तारिक़ियों में कोई दाना और न कोई ख़ुश्क चीज़ है मगर वह नूरानी किताब (लौहे महफूज़) में मौजूद है وَعِندَهُ مَفَاتِحُ الْغَيْبِ لاَ يَعْلَمُهَا إِلاَّ هُوَ وَيَعْلَمُ مَا فِي الْبَرِّ وَالْبَحْرِ وَمَا تَسْقُطُ مِن وَرَقَةٍ إِلاَّ يَعْلَمُهَا وَلاَ حَبَّةٍ فِي ظُلُمَاتِ الأَرْضِ وَلاَ رَطْبٍ وَلاَ يَابِسٍ إِلاَّ فِي كِتَابٍ مُّبِينٍ
60 वह वही (ख़ुदा) है जो तुम्हें रात को (नींद में एक तरह पर दुनिया से) उठा लेता हे और जो कुछ तूने दिन को किया है जानता है फिर तुम्हें दिन को उठा कर खड़ा करता है ताकि (ज़िन्दगी की) (वह) मियाद जो (उसके इल्म में) मुअय्युन है पूरी की जाए फिर (तो आख़िर) तुम सबको उसी की तरफ लौटना है फिर जो कुछ तुम (दुनिया में भला बुरा) करते हो तुम्हें बता देगा وَهُوَ الَّذِي يَتَوَفَّاكُم بِاللَّيْلِ وَيَعْلَمُ مَا جَرَحْتُم بِالنَّهَارِ ثُمَّ يَبْعَثُكُمْ فِيهِ لِيُقْضَى أَجَلٌ مُّسَمًّى ثُمَّ إِلَيْهِ مَرْجِعُكُمْ ثُمَّ يُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ
61 वह अपने बन्दों पर ग़ालिब है वह तुम लोगों पर निगेहबान (फ़रिश्ततें तैनात करके) भेजता है-यहाँ तक कि जब तुम में से किसी की मौत आए तो हमारे भेजे हुये फ़रिश्ते उसको (दुनिया से) उठा लेते हैं और वह (हमारे तामीले हुक्म में ज़रा भी) कोताही नहीं करते وَهُوَ الْقَاهِرُ فَوْقَ عِبَادِهِ وَيُرْسِلُ عَلَيْكُم حَفَظَةً حَتَّىَ إِذَا جَاء أَحَدَكُمُ الْمَوْتُ تَوَفَّتْهُ رُسُلُنَا وَهُمْ لاَ يُفَرِّطُونَ
62 फिर ये लोग अपने सच्चे मालिक ख़ुदा के पास वापस बुलाए गए-आगाह रहो कि हुक़ूमत ख़ास उसी के लिए है और वह सबसे ज्यादा हिसाब लेने वाला है ثُمَّ رُدُّواْ إِلَى اللّهِ مَوْلاَهُمُ الْحَقِّ أَلاَ لَهُ الْحُكْمُ وَهُوَ أَسْرَعُ الْحَاسِبِينَ
63 (ऐ रसूल) उनसे पूछो कि तुम ख़ुश्की और तरी के (घटाटोप) ऍधेरों से कौन छुटकारा देता है जिससे तुम गिड़ गिड़ाकर और (चुपके) दुआएं मॉगते हो कि अगर वह हमें (अब की दफ़ा) उस (बला) से छुटकारा दे तो हम ज़रुर उसके शुक्र गुज़ार (बन्दे होकर) रहेगें قُلْ مَن يُنَجِّيكُم مِّن ظُلُمَاتِ الْبَرِّ وَالْبَحْرِ تَدْعُونَهُ تَضَرُّعاً وَخُفْيَةً لَّئِنْ أَنجَانَا مِنْ هَـذِهِ لَنَكُونَنَّ مِنَ الشَّاكِرِينَ
64 तुम कहो उन (मुसीबतों) से और हर बला में ख़ुदा तुम्हें नजात देता है (मगर अफसोस) उस पर भी तुम शिर्क करते ही जाते हो قُلِ اللّهُ يُنَجِّيكُم مِّنْهَا وَمِن كُلِّ كَرْبٍ ثُمَّ أَنتُمْ تُشْرِكُونَ
65 (ऐ रसूल) तुम कह दो कि वही उस पर अच्छी तरह क़ाबू रखता है कि अगर (चाहे तो) तुम पर अज़ाब तुम्हारे (सर के) ऊपर से नाज़िल करे या तुम्हारे पॉव के नीचे से (उठाकर खड़ा कर दे) या एक गिरोह को दूसरे से भिड़ा दे और तुम में से कुछ लोगों को बाज़ आदमियों की लड़ाई का मज़ा चखा दे ज़रा ग़ौर तो करो हम किस किस तरह अपनी आयतों को उलट पुलट के बयान करते हैं ताकि लोग समझे قُلْ هُوَ الْقَادِرُ عَلَى أَن يَبْعَثَ عَلَيْكُمْ عَذَابًا مِّن فَوْقِكُمْ أَوْ مِن تَحْتِ أَرْجُلِكُمْ أَوْ يَلْبِسَكُمْ شِيَعاً وَيُذِيقَ بَعْضَكُم بَأْسَ بَعْضٍ انظُرْ كَيْفَ نُصَرِّفُ الآيَاتِ لَعَلَّهُمْ يَفْقَهُونَ
66 और उसी (क़ुरान) को तुम्हारी क़ौम ने झुठला दिया हालॉकि वह बरहक़ है (ऐ रसूल) तुम उनसे कहो कि मैं तुम पर कुछ निगेहबान तो हूं नहीं हर ख़बर (के पूरा होने) का एक ख़ास वक्त मुक़र्रर है और अनक़रीब (जल्दी) ही तुम जान लोगे وَكَذَّبَ بِهِ قَوْمُكَ وَهُوَ الْحَقُّ قُل لَّسْتُ عَلَيْكُم بِوَكِيلٍ
67 और जब तुम उन लोगों को देखो जो हमारी आयतों में बेहूदा बहस कर रहे हैं तो उन (के पास) से टल जाओ यहाँ तक कि वह लोग उसके सिवा किसी और बात में बहस करने लगें और अगर (हमारा ये हुक्म) तुम्हें शैतान भुला दे तो याद आने के बाद ज़ालिम लोगों के साथ हरगिज़ न बैठना لِّكُلِّ نَبَإٍ مُّسْتَقَرٌّ وَسَوْفَ تَعْلَمُونَ
68 और ऐसे लोगों (के हिसाब किताब) का जवाब देही कुछ परहेज़गारो पर तो है नहीं मगर (सिर्फ नसीहतन) याद दिलाना (चाहिए) ताकि ये लोग भी परहेज़गार बनें وَإِذَا رَأَيْتَ الَّذِينَ يَخُوضُونَ فِي آيَاتِنَا فَأَعْرِضْ عَنْهُمْ حَتَّى يَخُوضُواْ فِي حَدِيثٍ غَيْرِهِ وَإِمَّا يُنسِيَنَّكَ الشَّيْطَانُ فَلاَ تَقْعُدْ بَعْدَ الذِّكْرَى مَعَ الْقَوْمِ الظَّالِمِينَ
69 और जिन लोगों ने अपने दीन को खेल और तमाशा बना रखा है और दुनिया की ज़िन्दगी ने उन को धोके में डाल रखा है ऐसे लोगों को छोड़ो और क़ुरान के ज़रिए से उनको नसीहत करते रहो (ऐसा न हो कि कोई) शख़्श अपने करतूत की बदौलत मुब्तिलाए बला हो जाए (क्योंकि उस वक्त) तो ख़ुदा के सिवा उसका न कोई सरपरस्त होगा न सिफारिशी और अगर वह अपने गुनाह के ऐवज़ सारे (जहाँन का) बदला भी दे तो भी उनमें से एक न लिया जाएगा जो लोग अपनी करनी की बदौलत मुब्तिलाए बला हुए है उनको पीने के लिए खौलता हुआ गर्म पानी (मिलेगा) और (उन पर) दर्दनाक अज़ाब होगा क्योंकर वह कुफ़्र किया करते थे وَمَا عَلَى الَّذِينَ يَتَّقُونَ مِنْ حِسَابِهِم مِّن شَيْءٍ وَلَـكِن ذِكْرَى لَعَلَّهُمْ يَتَّقُونَ
70 (ऐ रसूल) उनसे पूछो तो कि क्या हम लोग ख़ुदा को छोड़कर उन (माबूदों) से मुनाज़ात (दुआ) करे जो न तो हमें नफ़ा पहुंचा सकते हैं न हमारा कुछ बिगाड़ ही सकते हैं- और जब ख़ुदा हमारी हिदायत कर चुका) उसके बाद उल्टे पावँ कुफ्र की तरफ उस शख़्श की तरह फिर जाएं जिसे शैतानों ने जंगल में भटका दिया हो और वह हैरान (परेशान) हो (कि कहा जाए क्या करें) और उसके कुछ रफीक़ हो कि उसे राहे रास्त (सीधे रास्ते) की तरफ पुकारते रह जाएं कि (उधर) हमारे पास आओ और वह एक न सुने (ऐ रसूल) तुम कह दो कि हिदायत तो बस ख़ुदा की हिदायत है और हमें तो हुक्म ही दिया गया है कि हम सारे जहॉन के परवरदिगार ख़ुदा के फरमाबरदार हैं وَذَرِ الَّذِينَ اتَّخَذُواْ دِينَهُمْ لَعِبًا وَلَهْوًا وَغَرَّتْهُمُ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا وَذَكِّرْ بِهِ أَن تُبْسَلَ نَفْسٌ بِمَا كَسَبَتْ لَيْسَ لَهَا مِن دُونِ اللّهِ وَلِيٌّ وَلاَ شَفِيعٌ وَإِن تَعْدِلْ كُلَّ عَدْلٍ لاَّ يُؤْخَذْ مِنْهَا أُوْلَـئِكَ الَّذِينَ أُبْسِلُواْ بِمَا كَسَبُواْ لَهُمْ شَرَابٌ مِّنْ حَمِيمٍ وَعَذَابٌ أَلِيمٌ بِمَا كَانُواْ يَكْفُرُونَ
71 और ये (भी हुक्म हुआ है) कि पाबन्दी से नमाज़ पढ़ा करो और उसी से डरते रहो और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसके हुज़ूर में तुम सब के सब हाज़िर किए जाओगे قُلْ أَنَدْعُو مِن دُونِ اللّهِ مَا لاَ يَنفَعُنَا وَلاَ يَضُرُّنَا وَنُرَدُّ عَلَى أَعْقَابِنَا بَعْدَ إِذْ هَدَانَا اللّهُ كَالَّذِي اسْتَهْوَتْهُ الشَّيَاطِينُ فِي الأَرْضِ حَيْرَانَ لَهُ أَصْحَابٌ يَدْعُونَهُ إِلَى الْهُدَى ائْتِنَا قُلْ إِنَّ هُدَى اللّهِ هُوَ الْهُدَىَ وَأُمِرْنَا لِنُسْلِمَ لِرَبِّ الْعَالَمِينَ
72 वह तो वह (ख़ुदा है) जिसने ठीक ठीक बहुतेरे आसमान व ज़मीन पैदा किए और जिस दिन (किसी चीज़ को) कहता है कि हो जा तो (फौरन) हो जाती है وَأَنْ أَقِيمُواْ الصَّلاةَ وَاتَّقُوهُ وَهُوَ الَّذِيَ إِلَيْهِ تُحْشَرُونَ
73 उसका क़ौल सच्चा है और जिस दिन सूर फूंका जाएगा (उस दिन) ख़ास उसी की बादशाहत होगी (वही) ग़ायब हाज़िर (सब) का जानने वाला है और वही दाना वाक़िफकार है وَهُوَ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضَ بِالْحَقِّ وَيَوْمَ يَقُولُ كُن فَيَكُونُ قَوْلُهُ الْحَقُّ وَلَهُ الْمُلْكُ يَوْمَ يُنفَخُ فِي الصُّوَرِ عَالِمُ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ وَهُوَ الْحَكِيمُ الْخَبِيرُ
74 (ऐ रसूल) उस वक्त क़ा याद करो) जब इबराहीम ने अपने (मुंह बोले) बाप आज़र से कहा क्या तुम बुतों को ख़ुदा मानते हो-मै तो तुमको और तुम्हारी क़ौम को खुली गुमराही में देखता हूँ وَإِذْ قَالَ إِبْرَاهِيمُ لأَبِيهِ آزَرَ أَتَتَّخِذُ أَصْنَامًا آلِهَةً إِنِّي أَرَاكَ وَقَوْمَكَ فِي ضَلاَلٍ مُّبِينٍ
75 और (जिस तरह हमने इबराहीम को दिखाया था कि बुत क़ाबिले परसतिश (पूजने के क़ाबिल) नहीं) उसी तरह हम इबराहीम को सारे आसमान और ज़मीन की सल्तनत का (इन्तज़ाम) दिखाते रहे ताकि वह (हमारी वहदानियत का) यक़ीन करने वालों से हो जाएं وَكَذَلِكَ نُرِي إِبْرَاهِيمَ مَلَكُوتَ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَلِيَكُونَ مِنَ الْمُوقِنِينَ
76 तो जब उन पर रात की तारीक़ी (अंधेरा) छा गयी तो एक सितारे को देखा तो दफअतन बोल उठे (हाए क्या) यही मेरा ख़ुदा है फिर जब वह डूब गया तो कहने लगे ग़ुरुब (डूब) हो जाने वाली चीज़ को तो मै (ख़ुदा बनाना) पसन्द नहीं करता فَلَمَّا جَنَّ عَلَيْهِ اللَّيْلُ رَأَى كَوْكَبًا قَالَ هَـذَا رَبِّي فَلَمَّا أَفَلَ قَالَ لا أُحِبُّ الآفِلِينَ
77 फिर जब चाँद को जगमगाता हुआ देखा तो बोल उठे (क्या) यही मेरा ख़ुदा है फिर जब वह भी ग़ुरुब हो गया तो कहने लगे कि अगर (कहीं) मेरा (असली) परवरदिगार मेरी हिदायत न करता तो मैं ज़रुर गुमराह लोगों में हो जाता فَلَمَّا رَأَى الْقَمَرَ بَازِغًا قَالَ هَـذَا رَبِّي فَلَمَّا أَفَلَ قَالَ لَئِن لَّمْ يَهْدِنِي رَبِّي لأكُونَنَّ مِنَ الْقَوْمِ الضَّالِّينَ
78 फिर जब आफताब को दमकता हुआ देखा तो कहने लगे (क्या) यही मेरा ख़ुदा है ये तो सबसे बड़ा (भी) है फिर जब ये भी ग़ुरुब हो गया तो कहने लगे ऐ मेरी क़ौम जिन जिन चीज़ों को तुम लोग (ख़ुदा का) शरीक बनाते हो उनसे मैं बेज़ार हूँ فَلَمَّا رَأَى الشَّمْسَ بَازِغَةً قَالَ هَـذَا رَبِّي هَـذَا أَكْبَرُ فَلَمَّا أَفَلَتْ قَالَ يَا قَوْمِ إِنِّي بَرِيءٌ مِّمَّا تُشْرِكُونَ
79 (ये हरगिज़ नहीं हो सकते) मैने तो बातिल से कतराकर उसकी तरफ से मुँह कर लिया है जिसने बहुतेरे आसमान और ज़मीन पैदा किए और मैं मुशरेकीन से नहीं हूँ إِنِّي وَجَّهْتُ وَجْهِيَ لِلَّذِي فَطَرَ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضَ حَنِيفًا وَمَا أَنَاْ مِنَ الْمُشْرِكِينَ
80 और उनकी क़ौम के लोग उनसे हुज्जत करने लगे तो इबराहीम ने कहा था क्या तुम मुझसे ख़ुदा के बारे में हुज्जत करते हो हालॉकि वह यक़ीनी मेरी हिदायत कर चुका और तुम मे जिन बुतों को उसका शरीक मानते हो मै उनसे डरता (वरता) नहीं (वह मेरा कुछ नहीं कर सकते) मगर हॉ मेरा ख़ुदा खुद (करना) चाहे तो अलबत्ता कर सकता है मेरा परवरदिगार तो बाएतबार इल्म के सब पर हावी है तो क्या उस पर भी तुम नसीहत नहीं मानते وَحَآجَّهُ قَوْمُهُ قَالَ أَتُحَاجُّونِّي فِي اللّهِ وَقَدْ هَدَانِ وَلاَ أَخَافُ مَا تُشْرِكُونَ بِهِ إِلاَّ أَن يَشَاء رَبِّي شَيْئًا وَسِعَ رَبِّي كُلَّ شَيْءٍ عِلْمًا أَفَلاَ تَتَذَكَّرُونَ
81 और जिन्हें तुम ख़ुदा का शरीक बताते हो मै उन से क्यों डरुँ जब तुम इस बात से नहीं डरते कि तुमने ख़ुदा का शरीक ऐसी चीज़ों को बनाया है जिनकी ख़ुदा ने कोई सनद तुम पर नहीं नाज़िल की फिर अगर तुम जानते हो तो (भला बताओ तो सही कि) हम दोनों फरीक़ (गिरोह) में अमन क़ायम रखने का ज्यादा हक़दार कौन है وَكَيْفَ أَخَافُ مَا أَشْرَكْتُمْ وَلاَ تَخَافُونَ أَنَّكُمْ أَشْرَكْتُم بِاللّهِ مَا لَمْ يُنَزِّلْ بِهِ عَلَيْكُمْ سُلْطَانًا فَأَيُّ الْفَرِيقَيْنِ أَحَقُّ بِالأَمْنِ إِن كُنتُمْ تَعْلَمُونَ
82 जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अपने ईमान को ज़ुल्म (शिर्क) से आलूदा नहीं किया उन्हीं लोगों के लिए अमन (व इतमिनान) है और यही लोग हिदायत याफ़ता हैं الَّذِينَ آمَنُواْ وَلَمْ يَلْبِسُواْ إِيمَانَهُم بِظُلْمٍ أُوْلَـئِكَ لَهُمُ الأَمْنُ وَهُم مُّهْتَدُونَ
83 और ये हमारी (समझाई बुझाई) दलीलें हैं जो हमने इबराहीम को अपनी क़ौम पर (ग़ालिब आने के लिए) अता की थी हम जिसके मरतबे चाहते हैं बुलन्द करते हैं बेशक तुम्हारा परवरदिगार हिक़मत वाला बाख़बर है وَتِلْكَ حُجَّتُنَا آتَيْنَاهَا إِبْرَاهِيمَ عَلَى قَوْمِهِ نَرْفَعُ دَرَجَاتٍ مَّن نَّشَاء إِنَّ رَبَّكَ حَكِيمٌ عَلِيمٌ
84 और हमने इबराहीम को इसहाक़ वा याक़ूब (सा बेटा पोता) अता किया हमने सबकी हिदायत की और उनसे पहले नूह को (भी) हम ही ने हिदायत की और उन्हीं (इबराहीम) को औलाद से दाऊद व सुलेमान व अय्यूब व यूसुफ व मूसा व हारुन (सब की हमने हिदायत की) और नेकों कारों को हम ऐसा ही इल्म अता फरमाते हैं وَوَهَبْنَا لَهُ إِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ كُلاًّ هَدَيْنَا وَنُوحًا هَدَيْنَا مِن قَبْلُ وَمِن ذُرِّيَّتِهِ دَاوُودَ وَسُلَيْمَانَ وَأَيُّوبَ وَيُوسُفَ وَمُوسَى وَهَارُونَ وَكَذَلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ
85 और ज़करिया व यहया व ईसा व इलियास (सब की हिदायत की (और ये) सब (ख़ुदा के) नेक बन्दों से हैं وَزَكَرِيَّا وَيَحْيَى وَعِيسَى وَإِلْيَاسَ كُلٌّ مِّنَ الصَّالِحِينَ
86 और इसमाइल व इलियास व युनूस व लूत (की भी हिदायत की) और सब को सारे जहाँन पर फज़ीलत अता की وَإِسْمَاعِيلَ وَالْيَسَعَ وَيُونُسَ وَلُوطًا وَكُلاًّ فضَّلْنَا عَلَى الْعَالَمِينَ
87 और (सिर्फ उन्हीं को नहीं बल्कि) उनके बाप दादाओं और उनकी औलाद और उनके भाई बन्दों में से (बहुतेरों को) और उनके मुन्तख़िब किया और उन्हें सीधी राह की हिदायत की وَمِنْ آبَائِهِمْ وَذُرِّيَّاتِهِمْ وَإِخْوَانِهِمْ وَاجْتَبَيْنَاهُمْ وَهَدَيْنَاهُمْ إِلَى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ
88 (देखो) ये ख़ुदा की हिदायत है अपने बन्दों से जिसको चाहे उसीकी वजह से राह पर लाए और अगर उन लोगों ने शिर्क किया होता तो उनका किया (धरा) सब अकारत हो जाता ذَلِكَ هُدَى اللّهِ يَهْدِي بِهِ مَن يَشَاء مِنْ عِبَادِهِ وَلَوْ أَشْرَكُواْ لَحَبِطَ عَنْهُم مَّا كَانُواْ يَعْمَلُونَ
89 (पैग़म्बर) वह लोग थे जिनको हमने (आसमानी) किताब और हुकूमत और नुबूवत अता फरमाई पस अगर ये लोग उसे भी न माने तो (कुछ परवाह नहीं) हमने तो उस पर ऐसे लोगों को मुक़र्रर कर दिया हे जो (उनकी तरह) इन्कार करने वाले नहीं أُوْلَـئِكَ الَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ وَالْحُكْمَ وَالنُّبُوَّةَ فَإِن يَكْفُرْ بِهَا هَـؤُلاء فَقَدْ وَكَّلْنَا بِهَا قَوْمًا لَّيْسُواْ بِهَا بِكَافِرِينَ
90 (ये अगले पैग़म्बर) वह लोग थे जिनकी ख़ुदा ने हिदायत की पस तुम भी उनकी हिदायत की पैरवी करो (ऐ रसूल उन से) कहो कि मै तुम से इस (रिसालत) की मज़दूरी कुछ नहीं चाहता सारे जहाँन के लिए सिर्फ नसीहत है أُوْلَـئِكَ الَّذِينَ هَدَى اللّهُ فَبِهُدَاهُمُ اقْتَدِهْ قُل لاَّ أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ أَجْرًا إِنْ هُوَ إِلاَّ ذِكْرَى لِلْعَالَمِينَ
91 और बस और उन लोगों (यहूद) ने ख़ुदा की जैसी क़दर करनी चाहिए न की इसलिए कि उन लोगों ने (बेहूदे पन से) ये कह दिया कि ख़ुदा ने किसी बशर (इनसान) पर कुछ नाज़िल नहीं किया (ऐ रसूल) तुम पूछो तो कि फिर वह किताब जिसे मूसा लेकर आए थे किसने नाज़िल की जो लोगों के लिए रौशनी और (अज़सरतापा(सर से पैर तक)) हिदायत (थी जिसे तुम लोगों ने अलग-अलग करके काग़जी औराक़ (कागज़ के पन्ने) बना डाला और इसमें को कुछ हिस्सा (जो तुम्हारे मतलब का है वह) तो ज़ाहिर करते हो और बहुतेरे को (जो ख़िलाफ मदआ है) छिपाते हो हालॉकि उसी किताब के ज़रिए से तुम्हें वो बातें सिखायी गयी जिन्हें न तुम जानते थे और न तुम्हारे बाप दादा (ऐ रसूल वह तो जवाब देगें नहीं) तुम ही कह दो कि ख़ुदा ने (नाज़िल फरमाई) وَمَا قَدَرُواْ اللّهَ حَقَّ قَدْرِهِ إِذْ قَالُواْ مَا أَنزَلَ اللّهُ عَلَى بَشَرٍ مِّن شَيْءٍ قُلْ مَنْ أَنزَلَ الْكِتَابَ الَّذِي جَاء بِهِ مُوسَى نُورًا وَهُدًى لِّلنَّاسِ تَجْعَلُونَهُ قَرَاطِيسَ تُبْدُونَهَا وَتُخْفُونَ كَثِيراً وَعُلِّمْتُم مَّا لَمْ تَعْلَمُواْ أَنتُمْ وَلاَ آبَاؤُكُمْ قُلِ اللّهُ ثُمَّ ذَرْهُمْ فِي خَوْضِهِمْ يَلْعَبُونَ
92 उसके बाद उन्हें छोड़ के (पडे झक मारा करें (और) अपनी तू तू मै मै में खेलते फिरें और (क़ुरान) भी वह किताब है जिसे हमने बाबरकत नाज़िल किया और उस किताब की तसदीक़ करती है जो उसके सामने (पहले से) मौजूद है और (इस वास्ते नाज़िल किया है) ताकि तुम उसके ज़रिए से अहले मक्का और उसके एतराफ़ के रहने वालों को (ख़ौफ ख़ुदा से) डराओ और जो लोग आख़िरत पर ईमान रखते हैं वह तो उस पर (बे ताम्मुल) ईमान लाते है और वही अपनी अपनी नमाज़ में भी पाबन्दी करते हैं وَهَـذَا كِتَابٌ أَنزَلْنَاهُ مُبَارَكٌ مُّصَدِّقُ الَّذِي بَيْنَ يَدَيْهِ وَلِتُنذِرَ أُمَّ الْقُرَى وَمَنْ حَوْلَهَا وَالَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِالآخِرَةِ يُؤْمِنُونَ بِهِ وَهُمْ عَلَى صَلاَتِهِمْ يُحَافِظُونَ
93 और उससे बढ़ कर ज़ालिम कौन होगा जो ख़ुदा पर झूठ (मूठ) इफ़तेरा करके कहे कि हमारे पास वही आयी है हालॉकि उसके पास वही वगैरह कुछ भी नही आयी या वह शख़्श दावा करे कि जैसा क़ुरान ख़ुदा ने नाज़िल किया है वैसा मै भी (अभी) अनक़रीब (जल्दी) नाज़िल किए देता हूँ और (ऐ रसूल) काश तुम देखते कि ये ज़ालिम मौत की सख्तियों में पड़ें हैं और फरिश्ते उनकी तरफ (जान निकाल लेने के वास्ते) हाथ लपका रहे हैं और कहते जाते हैं कि अपनी जानें निकालो आज ही तो तुम को रुसवाई के अज़ाब की सज़ा दी जाएगी क्योंकि तुम ख़ुदा पर नाहक़ (नाहक़) झूठ छोड़ा करते थे और उसकी आयतों को (सुनकर उन) से अकड़ा करते थे وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنِ افْتَرَى عَلَى اللّهِ كَذِبًا أَوْ قَالَ أُوْحِيَ إِلَيَّ وَلَمْ يُوحَ إِلَيْهِ شَيْءٌ وَمَن قَالَ سَأُنزِلُ مِثْلَ مَا أَنَزلَ اللّهُ وَلَوْ تَرَى إِذِ الظَّالِمُونَ فِي غَمَرَاتِ الْمَوْتِ وَالْمَلآئِكَةُ بَاسِطُواْ أَيْدِيهِمْ أَخْرِجُواْ أَنفُسَكُمُ الْيَوْمَ تُجْزَوْنَ عَذَابَ الْهُونِ بِمَا كُنتُمْ تَقُولُونَ عَلَى اللّهِ غَيْرَ الْحَقِّ وَكُنتُمْ عَنْ آيَاتِهِ تَسْتَكْبِرُونَ
94 और आख़िर तुम हमारे पास इसी तरह तन्हा आए (ना) जिस तरह हमने तुम को पहली बार पैदा किया था और जो (माल व औलाद) हमने तुमको दिया था वह सब अपने पस्त पुश्त (पीछे) छोड़ आए और तुम्हारे साथ तुम्हारे उन सिफारिश करने वालों को भी नहीं देखते जिन को तुम ख्याल करते थे कि वह तुम्हारी (परवरिश वगैरह) मै (हमारे) साझेदार है अब तो तुम्हारे बाहरी ताल्लुक़ात मनक़तआ (ख़त्म) हो गए और जो कुछ ख्याल करते थे वह सब तुम से ग़ायब हो गए وَلَقَدْ جِئْتُمُونَا فُرَادَى كَمَا خَلَقْنَاكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍ وَتَرَكْتُم مَّا خَوَّلْنَاكُمْ وَرَاء ظُهُورِكُمْ وَمَا نَرَى مَعَكُمْ شُفَعَاءكُمُ الَّذِينَ زَعَمْتُمْ أَنَّهُمْ فِيكُمْ شُرَكَاء لَقَد تَّقَطَّعَ بَيْنَكُمْ وَضَلَّ عَنكُم مَّا كُنتُمْ تَزْعُمُونَ
95 ख़ुदा ही तो गुठली और दाने को चीर (करके दरख्त ऊगाता) है वही मुर्दे में से ज़िन्दे को निकालता है और वही ज़िन्दा से मुर्दे को निकालने वाला है (लोगों) वही तुम्हारा ख़ुदा है फिर तुम किधर बहके जा रहे हो إِنَّ اللّهَ فَالِقُ الْحَبِّ وَالنَّوَى يُخْرِجُ الْحَيَّ مِنَ الْمَيِّتِ وَمُخْرِجُ الْمَيِّتِ مِنَ الْحَيِّ ذَلِكُمُ اللّهُ فَأَنَّى تُؤْفَكُونَ
96 उसी के लिए सुबह की पौ फटी और उसी ने आराम के लिए रात और हिसाब के लिए सूरज और चाँद बनाए ये ख़ुदाए ग़ालिब व दाना के मुक़र्रर किए हुए किरदा (उसूल) हैं فَالِقُ الإِصْبَاحِ وَجَعَلَ اللَّيْلَ سَكَنًا وَالشَّمْسَ وَالْقَمَرَ حُسْبَانًا ذَلِكَ تَقْدِيرُ الْعَزِيزِ الْعَلِيمِ
97 और वह वही (ख़ुदा) है जिसने तुम्हारे (नफे के) वास्ते सितारे पैदा किए ताकि तुम जॅगलों और दरियाओं की तारिक़ियों (अंधेरों) में उनसे राह मालूम करो जो लोग वाक़िफकार हैं उनके लिए हमने (अपनी क़ुदरत की) निशानियाँ ख़ूब तफ़सील से बयान कर दी हैं وَهُوَ الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ النُّجُومَ لِتَهْتَدُواْ بِهَا فِي ظُلُمَاتِ الْبَرِّ وَالْبَحْرِ قَدْ فَصَّلْنَا الآيَاتِ لِقَوْمٍ يَعْلَمُونَ
98 और वह वही ख़ुदा है जिसने तुम लोगों को एक शख़्श से पैदा किया फिर (हर शख़्श के) क़रार की जगह (बाप की पुश्त (पीठ)) और सौंपने की जगह (माँ का पेट) मुक़र्रर है हमने समझदार लोगों के वास्ते (अपनी कुदरत की) निशानियाँ ख़ूब तफसील से बयान कर दी हैं وَهُوَ الَّذِيَ أَنشَأَكُم مِّن نَّفْسٍ وَاحِدَةٍ فَمُسْتَقَرٌّ وَمُسْتَوْدَعٌ قَدْ فَصَّلْنَا الآيَاتِ لِقَوْمٍ يَفْقَهُونَ
99 और वह वही (क़ादिर तवाना है) जिसने आसमान से पानी बरसाया फिर हम ही ने उसके ज़रिए से हर चीज़ के कोए निकालें फिर हम ही ने उससे हरी भरी टहनियाँ निकालीं कि उससे हम बाहम गुत्थे दाने निकालते हैं और छुहारे के बोर (मुन्जिर) से लटके हुए गुच्छे पैदा किए और अंगूर और ज़ैतून और अनार के बाग़ात जो बाहम सूरत में एक दूसरे से मिलते जुलते और (मजे में) जुदा जुदा जब ये पिघले और पक्के तो उसके फल की तरफ ग़ौर तो करो बेशक अमन में ईमानदार लोगों के लिए बहुत सी (ख़ुदा की) निशानियाँ हैं وَهُوَ الَّذِيَ أَنزَلَ مِنَ السَّمَاء مَاء فَأَخْرَجْنَا بِهِ نَبَاتَ كُلِّ شَيْءٍ فَأَخْرَجْنَا مِنْهُ خَضِرًا نُّخْرِجُ مِنْهُ حَبًّا مُّتَرَاكِبًا وَمِنَ النَّخْلِ مِن طَلْعِهَا قِنْوَانٌ دَانِيَةٌ وَجَنَّاتٍ مِّنْ أَعْنَابٍ وَالزَّيْتُونَ وَالرُّمَّانَ مُشْتَبِهًا وَغَيْرَ مُتَشَابِهٍ انظُرُواْ إِلِى ثَمَرِهِ إِذَا أَثْمَرَ وَيَنْعِهِ إِنَّ فِي ذَلِكُمْ لآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ
100 और उन (कम्बख्तों) ने जिन्नात को ख़ुदा का शरीक बनाया हालॉकि जिन्नात को भी ख़ुदा ही ने पैदा किया उस पर भी उन लोगों ने बे समझे बूझे ख़ुदा के लिए बेटे बेटियाँ गढ़ डालीं जो बातों में लोग (उसकी शान में) बयान करते हैं उससे वह पाक व पाकीज़ा और बरतर है وَجَعَلُواْ لِلّهِ شُرَكَاء الْجِنَّ وَخَلَقَهُمْ وَخَرَقُواْ لَهُ بَنِينَ وَبَنَاتٍ بِغَيْرِ عِلْمٍ سُبْحَانَهُ وَتَعَالَى عَمَّا يَصِفُونَ
101 सारे आसमान और ज़मीन का मवविद (बनाने वाला) है उसके कोई लड़का क्योंकर हो सकता है जब उसकी कोई बीबी ही नहीं है और उसी ने हर चीज़ को पैदा किया और वही हर चीज़ से खूब वाक़िफ है بَدِيعُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ أَنَّى يَكُونُ لَهُ وَلَدٌ وَلَمْ تَكُن لَّهُ صَاحِبَةٌ وَخَلَقَ كُلَّ شَيْءٍ وهُوَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ
102 (लोगों) वही अल्लाह तुम्हारा परवरदिगार है उसके सिवा कोई माबूद नहीं वही हर चीज़ का पैदा करने वाला है तो उसी की इबादत करो और वही हर चीज़ का निगेह बान है ذَلِكُمُ اللّهُ رَبُّكُمْ لا إِلَـهَ إِلاَّ هُوَ خَالِقُ كُلِّ شَيْءٍ فَاعْبُدُوهُ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ وَكِيلٌ
103 उसको ऑंखें देख नहीं सकती (न दुनिया में न आख़िरत में) और वह (लोगों की) नज़रों को खूब देखता है और वह बड़ा बारीक बीन (देख़ने वाला) ख़बरदार है لاَّ تُدْرِكُهُ الأَبْصَارُ وَهُوَ يُدْرِكُ الأَبْصَارَ وَهُوَ اللَّطِيفُ الْخَبِيرُ
104 तुम्हारे पास तो सुझाने वाली चीज़े आ ही चुकीं फिर जो देखे (समझे) तो अपने दम के लिए और जो अन्धा बने तो (उसका ज़रर (नुकसान) भी) ख़ुद उस पर है और (ऐ रसूल उन से कह दो) कि मै तुम लोगों का कुछ निगेहबान तो हूँ नहीं قَدْ جَاءكُم بَصَآئِرُ مِن رَّبِّكُمْ فَمَنْ أَبْصَرَ فَلِنَفْسِهِ وَمَنْ عَمِيَ فَعَلَيْهَا وَمَا أَنَاْ عَلَيْكُم بِحَفِيظٍ
105 और हम (अपनी) आयतें यूं उलट फेरकर बयान करते है (ताकि हुज्जत तमाम हो) और ताकि वह लोग ज़बानी भी इक़रार कर लें कि तुमने (क़ुरान उनके सामने) पढ़ दिया और ताकि जो लोग जानते है उनके लिए (क़ुरान का) खूब वाजेए करके बयान कर दें وَكَذَلِكَ نُصَرِّفُ الآيَاتِ وَلِيَقُولُواْ دَرَسْتَ وَلِنُبَيِّنَهُ لِقَوْمٍ يَعْلَمُونَ
106 जो कुछ तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से 'वही' की जाए बस उसी पर चलो अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और मुशरिको से किनारा कश रहो اتَّبِعْ مَا أُوحِيَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ لا إِلَـهَ إِلاَّ هُوَ وَأَعْرِضْ عَنِ الْمُشْرِكِينَ
107 और अगर ख़ुदा चाहता तो ये लोग शिर्क ही न करते और हमने तुमको उन लोगों का निगेहबान तो बनाया नहीं है और न तुम उनके ज़िम्मेदार हो وَلَوْ شَاء اللّهُ مَا أَشْرَكُواْ وَمَا جَعَلْنَاكَ عَلَيْهِمْ حَفِيظًا وَمَا أَنتَ عَلَيْهِم بِوَكِيلٍ
108 और ये (मुशरेकीन) जिन की अल्लाह के सिवा (ख़ुदा समझ कर) इबादत करते हैं उन्हें तुम बुरा न कहा करो वरना ये लोग भी ख़ुदा को बिना समझें अदावत से बुरा (भला) कह बैठें (और लोग उनकी ख्वाहिश नफसानी के) इस तरह पाबन्द हुए कि गोया हमने ख़ुद हर गिरोह के आमाल उनको सॅवाकर अच्छे कर दिखाए फिर उन्हें तो (आख़िरकार) अपने परवरदिगार की तरफ लौट कर जाना है तब जो कुछ दुनिया में कर रहे थे ख़ुदा उन्हें बता देगा وَلاَ تَسُبُّواْ الَّذِينَ يَدْعُونَ مِن دُونِ اللّهِ فَيَسُبُّواْ اللّهَ عَدْوًا بِغَيْرِ عِلْمٍ كَذَلِكَ زَيَّنَّا لِكُلِّ أُمَّةٍ عَمَلَهُمْ ثُمَّ إِلَى رَبِّهِم مَّرْجِعُهُمْ فَيُنَبِّئُهُم بِمَا كَانُواْ يَعْمَلُونَ
109 और उन लोगों ने ख़ुदा की सख्त सख्त क़समें खायीं कि अगर उनके पास कोई मौजिजा आए तो वह ज़रूर उस पर ईमान लाएँगे (ऐ रसूल) तुम कहो कि मौजिज़े तो बस ख़ुदा ही के पास हैं और तुम्हें क्या मालूम ये यक़ीनी बात है कि जब मौजिज़ा भी आएगा तो भी ये ईमान न लाएँगे وَأَقْسَمُواْ بِاللّهِ جَهْدَ أَيْمَانِهِمْ لَئِن جَاءتْهُمْ آيَةٌ لَّيُؤْمِنُنَّ بِهَا قُلْ إِنَّمَا الآيَاتُ عِندَ اللّهِ وَمَا يُشْعِرُكُمْ أَنَّهَا إِذَا جَاءتْ لاَ يُؤْمِنُونَ
110 और हम उनके दिल और उनकी ऑंखें उलट पलट कर देंगे जिस तरह ये लोग कुरान पर पहली मरतबा ईमान न लाए और हम उन्हें उनकी सरकशी की हालत में छोड़ देंगे कि सरगिरदाँ (परेशान) रहें وَنُقَلِّبُ أَفْئِدَتَهُمْ وَأَبْصَارَهُمْ كَمَا لَمْ يُؤْمِنُواْ بِهِ أَوَّلَ مَرَّةٍ وَنَذَرُهُمْ فِي طُغْيَانِهِمْ يَعْمَهُونَ
111 और (ऐ रसूल सच तो ये है कि) हम अगर उनके पास फरिश्ते भी नाज़िल करते और उनसे मुर्दे भी बातें करने लगते और तमाम (मख़फ़ी(छुपी)) चीज़ें (जैसे जन्नत व नार वग़ैरह) अगर वह गिरोह उनके सामने ला खड़े करते तो भी ये ईमान लाने वाले न थे मगर जब अल्लाह चाहे लेकिन उनमें के अक्सर नहीं जानते وَلَوْ أَنَّنَا نَزَّلْنَا إِلَيْهِمُ الْمَلآئِكَةَ وَكَلَّمَهُمُ الْمَوْتَى وَحَشَرْنَا عَلَيْهِمْ كُلَّ شَيْءٍ قُبُلاً مَّا كَانُواْ لِيُؤْمِنُواْ إِلاَّ أَن يَشَاء اللّهُ وَلَـكِنَّ أَكْثَرَهُمْ يَجْهَلُونَ
112 कि और (ऐ रसूल जिस तरह ये कुफ्फ़ार तुम्हारे दुश्मन हैं) उसी तरह (गोया हमने ख़ुद आज़माइश के लिए शरीर आदमियों और जिनों को हर नबी का दुश्मन बनाया वह लोग एक दूसरे को फरेब देने की ग़रज़ से चिकनी चुपड़ी बातों की सरग़ोशी करते हैं और अगर तुम्हारा परवरदिगार चाहता तो ये लोग) ऐसी हरकत करने न पाते وَكَذَلِكَ جَعَلْنَا لِكُلِّ نِبِيٍّ عَدُوًّا شَيَاطِينَ الإِنسِ وَالْجِنِّ يُوحِي بَعْضُهُمْ إِلَى بَعْضٍ زُخْرُفَ الْقَوْلِ غُرُورًا وَلَوْ شَاء رَبُّكَ مَا فَعَلُوهُ فَذَرْهُمْ وَمَا يَفْتَرُونَ
113 तो उनको और उनकी इफ़तेरा परदाज़ियों को छोड़ दो और ये (ये सरग़ोशियाँ इसलिए थीं) ताकि जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं लाए उनके दिल उन (की शरारत) की तरफ मायल (ख्ािंच) हो जाएँ और उन्हें पसन्द करें وَلِتَصْغَى إِلَيْهِ أَفْئِدَةُ الَّذِينَ لاَ يُؤْمِنُونَ بِالآخِرَةِ وَلِيَرْضَوْهُ وَلِيَقْتَرِفُواْ مَا هُم مُّقْتَرِفُونَ
114 और ताकि जो लोग इफ़तेरा परदाज़ियाँ ये लोग ख़ुद करते हैं वह भी करने लगें (क्या तुम ये चाहते हो कि) मैं ख़ुदा को छोड़ कर किसी और को सालिस तलाश करुँ हालॉकि वह वही ख़ुदा है जिसने तुम्हारे पास वाज़ेए किताब नाज़िल की और जिन लोगों को हमने किताब अता फरमाई है वह यक़ीनी तौर पर जानते हैं कि ये (कुरान भी) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से बरहक़ नाज़िल किया गया है أَفَغَيْرَ اللّهِ أَبْتَغِي حَكَمًا وَهُوَ الَّذِي أَنَزَلَ إِلَيْكُمُ الْكِتَابَ مُفَصَّلاً وَالَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ يَعْلَمُونَ أَنَّهُ مُنَزَّلٌ مِّن رَّبِّكَ بِالْحَقِّ فَلاَ تَكُونَنَّ مِنَ الْمُمْتَرِينَ
115 तो तुम (कहीं) शक़ करने वालों से न हो जाना और सच्चाई और इन्साफ में तो तुम्हारे परवरदिगार की बात पूरी हो गई कोई उसकी बातों का बदलने वाला नहीं और वही बड़ा सुनने वाला वाक़िफकार है وَتَمَّتْ كَلِمَتُ رَبِّكَ صِدْقًا وَعَدْلاً لاَّ مُبَدِّلِ لِكَلِمَاتِهِ وَهُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ
116 और (ऐ रसूल) दुनिया में तो बहुतेरे लोग ऐसे हैं कि तुम उनके कहने पर चलो तो तुमको ख़ुदा की राह से बहका दें ये लोग तो सिर्फ अपने ख्यालात की पैरवी करते हैं और ये लोग तो बस अटकल पच्चू बातें किया करते हैं وَإِن تُطِعْ أَكْثَرَ مَن فِي الأَرْضِ يُضِلُّوكَ عَن سَبِيلِ اللّهِ إِن يَتَّبِعُونَ إِلاَّ الظَّنَّ وَإِنْ هُمْ إِلاَّ يَخْرُصُونَ
117 (तो तुम क्या जानों) जो लोग उसकी राह से बहके हुए हैं उनको (कुछ) ख़ुदा ही ख़ूब जानता है और वह तो हिदायत याफ्ता लोगों से भी ख़ूब वाक़िफ है إِنَّ رَبَّكَ هُوَ أَعْلَمُ مَن يَضِلُّ عَن سَبِيلِهِ وَهُوَ أَعْلَمُ بِالْمُهْتَدِينَ
118 तो अगर तुम उसकी आयतों पर ईमान रखते हो तो जिस ज़ीबह पर (वक्ते ़ज़िबाह) ख़ुदा का नाम लिया गया हो उसी को खाओ فَكُلُواْ مِمَّا ذُكِرَ اسْمُ اللّهِ عَلَيْهِ إِن كُنتُمْ بِآيَاتِهِ مُؤْمِنِينَ
119 और तुम्हें क्या हो गया है कि जिस पर ख़ुदा का नाम लिया गया हो उसमें नहीं खाते हो हालॉकि जो चीज़ें उसने तुम पर हराम कर दीं हैं वह तुमसे तफसीलन बयान कर दीं हैं मगर (हाँ) जब तुम मजबूर हो तो अलबत्ता (हराम भी खा सकते हो) और बहुतेरे तो (ख्वाहमख्वाह) अपनी नफसानी ख्वाहिशों से बे समझे बूझे (लोगों को) बहका देते हैं और तुम्हारा परवरदिगार तो हक़ से तजाविज़ करने वालों से ख़ूब वाक़िफ है وَمَا لَكُمْ أَلاَّ تَأْكُلُواْ مِمَّا ذُكِرَ اسْمُ اللّهِ عَلَيْهِ وَقَدْ فَصَّلَ لَكُم مَّا حَرَّمَ عَلَيْكُمْ إِلاَّ مَا اضْطُرِرْتُمْ إِلَيْهِ وَإِنَّ كَثِيراً لَّيُضِلُّونَ بِأَهْوَائِهِم بِغَيْرِ عِلْمٍ إِنَّ رَبَّكَ هُوَ أَعْلَمُ بِالْمُعْتَدِينَ
120 (ऐ लोगों) ज़ाहिरी और बातिनी गुनाह (दोनों) को (बिल्कुल) छोड़ दो जो लोग गुनाह करते हैं उन्हें अपने आमाल का अनक़रीब ही बदला दिया जाएगा وَذَرُواْ ظَاهِرَ الإِثْمِ وَبَاطِنَهُ إِنَّ الَّذِينَ يَكْسِبُونَ الإِثْمَ سَيُجْزَوْنَ بِمَا كَانُواْ يَقْتَرِفُونَ
121 और जिस (ज़बीहे) पर ख़ुदा का नाम न लिया गया उसमें से मत खाओ (क्योंकि) ये बेशक बदचलनी है और शयातीन तो अपने हवा ख़वाहों के दिल में वसवसा डाला ही करते हैं ताकि वह तुमसे (बेकार) झगड़े किया करें और अगर (कहीं) तुमने उनका कहना मान लिया तो (समझ रखो कि) बेशुबहा तुम भी मुशरिक हो وَلاَ تَأْكُلُواْ مِمَّا لَمْ يُذْكَرِ اسْمُ اللّهِ عَلَيْهِ وَإِنَّهُ لَفِسْقٌ وَإِنَّ الشَّيَاطِينَ لَيُوحُونَ إِلَى أَوْلِيَآئِهِمْ لِيُجَادِلُوكُمْ وَإِنْ أَطَعْتُمُوهُمْ إِنَّكُمْ لَمُشْرِكُونَ
122 क्या जो शख़्श (पहले) मुर्दा था फिर हमने उसको ज़िन्दा किया और उसके लिए एक नूर बनाया जिसके ज़रिए वह लोगों में (बेतकल्लुफ़) चलता फिरता है उस शख़्श का सामना हो सकता है जिसकी ये हालत है कि (हर तरफ से) अंधेरे में (फँसा हुआ है) कि वहाँ से किसी तरह निकल नहीं सकता (जिस तरह मोमिनों के वास्ते ईमान आरास्ता किया गया) उसी तरह काफिरों के वास्ते उनके आमाल (बद) आरास्ता कर दिए गए हैं أَوَ مَن كَانَ مَيْتًا فَأَحْيَيْنَاهُ وَجَعَلْنَا لَهُ نُورًا يَمْشِي بِهِ فِي النَّاسِ كَمَن مَّثَلُهُ فِي الظُّلُمَاتِ لَيْسَ بِخَارِجٍ مِّنْهَا كَذَلِكَ زُيِّنَ لِلْكَافِرِينَ مَا كَانُواْ يَعْمَلُونَ
123 (कि भला ही भला नज़र आता है) और जिस तरह मक्के में है उसी तरह हमने हर बस्ती में उनके कुसूरवारों को सरदार बनाया ताकि उनमें मक्कारी किया करें और वह लोग जो कुछ करते हैं अपने ही हक़ में (बुरा) करते हैं और समझते (तक) नहीं وَكَذَلِكَ جَعَلْنَا فِي كُلِّ قَرْيَةٍ أَكَابِرَ مُجَرِمِيهَا لِيَمْكُرُواْ فِيهَا وَمَا يَمْكُرُونَ إِلاَّ بِأَنفُسِهِمْ وَمَا يَشْعُرُونَ
124 और जब उनके पास कोई निशानी (नबी की तसदीक़ के लिए) आई है तो कहते हैं जब तक हमको ख़ुद वैसी चीज़ (वही वग़ैरह) न दी जाएगी जो पैग़म्बराने ख़ुदा को दी गई है उस वक्त तक तो हम ईमान न लाएँगे और ख़ुदा जहाँ (जिस दिल में) अपनी पैग़म्बरी क़रार देता है उसकी (काबलियत व सलाहियत) को ख़ूब जानता है जो लोग (उस जुर्म के) मुजरिम हैं उनको अनक़रीब उनकी मक्कारी की सज़ा में ख़ुदा के यहाँ बड़ी ज़िल्लत और सख्त अज़ाब होगा وَإِذَا جَاءتْهُمْ آيَةٌ قَالُواْ لَن نُّؤْمِنَ حَتَّى نُؤْتَى مِثْلَ مَا أُوتِيَ رُسُلُ اللّهِ اللّهُ أَعْلَمُ حَيْثُ يَجْعَلُ رِسَالَتَهُ سَيُصِيبُ الَّذِينَ أَجْرَمُواْ صَغَارٌ عِندَ اللّهِ وَعَذَابٌ شَدِيدٌ بِمَا كَانُواْ يَمْكُرُونَ
125 तो ख़ुदा जिस शख़्श को राह रास्त दिखाना चाहता है उसके सीने को इस्लाम (की दौलियत) के वास्ते (साफ़ और) कुशादा (चौड़ा) कर देता है और जिसको गुमराही की हालत में छोड़ना चाहता है उनके सीने को तंग दुश्वार ग़ुबार कर देता है गोया (कुबूल ईमान) उसके लिए आसमान पर चढ़ना है जो लोग ईमान नहीं लाते ख़ुदा उन पर बुराई को उसी तरह मुसल्लत कर देता है فَمَن يُرِدِ اللّهُ أَن يَهْدِيَهُ يَشْرَحْ صَدْرَهُ لِلإِسْلاَمِ وَمَن يُرِدْ أَن يُضِلَّهُ يَجْعَلْ صَدْرَهُ ضَيِّقًا حَرَجًا كَأَنَّمَا يَصَّعَّدُ فِي السَّمَاء كَذَلِكَ يَجْعَلُ اللّهُ الرِّجْسَ عَلَى الَّذِينَ لاَ يُؤْمِنُونَ
126 और (ऐ रसूल) ये (इस्लाम) तुम्हारे परवरदिगार का (बनाया हुआ) सीधा रास्ता है इबरत हासिल करने वालों के वास्ते हमने अपने आयात तफसीलन बयान कर दिए हैं وَهَـذَا صِرَاطُ رَبِّكَ مُسْتَقِيمًا قَدْ فَصَّلْنَا الآيَاتِ لِقَوْمٍ يَذَّكَّرُونَ
127 उनके वास्ते उनके परवरदिगार के यहाँ अमन व चैन का घर (बेहश्त) है और दुनिया में जो कारगुज़ारियाँ उन्होने की थीं उसके ऐवज़ ख़ुदा उन का सरपरस्त होगा لَهُمْ دَارُ السَّلاَمِ عِندَ رَبِّهِمْ وَهُوَ وَلِيُّهُمْ بِمَا كَانُواْ يَعْمَلُونَ
128 और (ऐ रसूल वह दिन याद दिलाओ) जिस दिन ख़ुदा सब लोगों को जमा करेगा और शयातीन से फरमाएगा, ऐ गिरोह जिन्नात तुमने तो बहुतेरे आदमियों को (बहका बहका कर) अपनी जमाअत बड़ी कर ली (और) आदमियों से जो लोग (उन शयातीन के दुनिया में) दोस्त थे कहेंगे ऐ हमारे पालने वाले (दुनिया में) हमने एक दूसरे से फायदा हासिल किया और अपने किए की सज़ा पाने को, जो वक्त तू ने हमारे लिए मुअय्युन किया था अब हम अपने उस वक्त (क़यामत) में पहुँच गए ख़ुदा उसके जवाब में, फरमाएगा तुम सब का ठिकाना जहन्नुम है और उसमें हमेशा रहोगे मगर जिसे ख़ुदा चाहे (नजात दे) बेशक तेरा परवरदिगार हिकमत वाला वाक़िफकार है وَيَوْمَ يِحْشُرُهُمْ جَمِيعًا يَا مَعْشَرَ الْجِنِّ قَدِ اسْتَكْثَرْتُم مِّنَ الإِنسِ وَقَالَ أَوْلِيَآؤُهُم مِّنَ الإِنسِ رَبَّنَا اسْتَمْتَعَ بَعْضُنَا بِبَعْضٍ وَبَلَغْنَا أَجَلَنَا الَّذِيَ أَجَّلْتَ لَنَا قَالَ النَّارُ مَثْوَاكُمْ خَالِدِينَ فِيهَا إِلاَّ مَا شَاء اللّهُ إِنَّ رَبَّكَ حَكِيمٌ عَليمٌ
129 और इसी तरह हम बाज़ ज़ालिमों को बाज़ का उनके करतूतों की बदौलत सरपरस्त बनाएँगे وَكَذَلِكَ نُوَلِّي بَعْضَ الظَّالِمِينَ بَعْضًا بِمَا كَانُواْ يَكْسِبُونَ
130 (फिर हम पूछेंगे कि क्यों) ऐ गिरोह जिन व इन्स क्या तुम्हारे पास तुम ही में के पैग़म्बर नहीं आए जो तुम तुमसे हमारी आयतें बयान करें और तुम्हें तुम्हारे उस रोज़ (क़यामत) के पेश आने से डराएँ वह सब अर्ज करेंगे (बेशक आए थे) हम ख़ुद अपने ऊपर आप अपने (ख़िलाफ) गवाही देते हैं (वाकई) उनको दुनिया की (चन्द रोज़) ज़िन्दगी ने उन्हें अंधेरे में डाल रखा और उन लोगों ने अपने ख़िलाफ आप गवाही दीं يَا مَعْشَرَ الْجِنِّ وَالإِنسِ أَلَمْ يَأْتِكُمْ رُسُلٌ مِّنكُمْ يَقُصُّونَ عَلَيْكُمْ آيَاتِي وَيُنذِرُونَكُمْ لِقَاء يَوْمِكُمْ هَـذَا قَالُواْ شَهِدْنَا عَلَى أَنفُسِنَا وَغَرَّتْهُمُ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا وَشَهِدُواْ عَلَى أَنفُسِهِمْ أَنَّهُمْ كَانُواْ كَافِرِينَ
131 बेशक ये सब के सब काफिर थे और ये (पैग़म्बरों का भेजना सिर्फ) उस वजह से है कि तुम्हारा परवरदिगार कभी बस्तियों को ज़ुल्म ज़बरदस्ती से वहाँ के बाशिन्दों के ग़फलत की हालत में हलाक नहीं किया करता ذَلِكَ أَن لَّمْ يَكُن رَّبُّكَ مُهْلِكَ الْقُرَى بِظُلْمٍ وَأَهْلُهَا غَافِلُونَ
132 और जिसने जैसा (भला या बुरा) किया है उसी के मुवाफ़िक हर एक के दरजात हैं وَلِكُلٍّ دَرَجَاتٌ مِّمَّا عَمِلُواْ وَمَا رَبُّكَ بِغَافِلٍ عَمَّا يَعْمَلُونَ
133 और जो कुछ वह लोग करते हैं तुम्हारा परवरदिगार उससे बेख़बर नहीं और तुम्हारा परवरदिगार बे परवाह रहम वाला है - अगर चाहे तो तुम सबके सबको (दुनिया से उड़ा) ले लाए और तुम्हारे बाद जिसको चाहे तुम्हार जानशीन बनाए जिस तरह आख़िर तुम्हें दूसरे लोगों की औलाद से पैदा किया है وَرَبُّكَ الْغَنِيُّ ذُو الرَّحْمَةِ إِن يَشَأْ يُذْهِبْكُمْ وَيَسْتَخْلِفْ مِن بَعْدِكُم مَّا يَشَاء كَمَا أَنشَأَكُم مِّن ذُرِّيَّةِ قَوْمٍ آخَرِينَ
134 बेशक जिस चीज़ का तुमसे वायदा किया जाता है वह ज़रूर (एक न एक दिन) आने वाली है إِنَّ مَا تُوعَدُونَ لآتٍ وَمَا أَنتُم بِمُعْجِزِينَ
135 और तुम उसके लाने में (ख़ुदा को) आजिज़ नहीं कर सकते (ऐ रसूल तुम उनसे) कहो कि ऐ मेरी क़ौम तुम बजाए ख़ुद जो चाहो करो मैं (बजाए ख़ुद) अमल कर रहा हूँ फिर अनक़रीब तुम्हें मालूम हो जाएगा कि आख़ेरत (बेहश्त) किसके लिए है (तुम्हारे लिए या हमारे लिए) ज़ालिम लोग तो हरगिज़ कामयाब न होंगे قُلْ يَا قَوْمِ اعْمَلُواْ عَلَى مَكَانَتِكُمْ إِنِّي عَامِلٌ فَسَوْفَ تَعْلَمُونَ مَن تَكُونُ لَهُ عَاقِبَةُ الدِّارِ إِنَّهُ لاَ يُفْلِحُ الظَّالِمُونَ
136 और ये लोग ख़ुदा की पैदा की हुई खेती और चौपायों में से हिस्सा क़रार देते हैं और अपने ख्याल के मुवाफिक कहते हैं कि ये तो ख़ुदा का (हिस्सा) है और ये हमारे शरीकों का (यानि जिनको हमने ख़ुदा का शरीक बनाया) फिर जो ख़ास उनके शरीकों का है वह तो ख़ुदा तक नहीं पहुँचने का और जो हिस्सा ख़ुदा का है वो उसके शरीकों तक पहुँच जाएगा ये क्या ही बुरा हुक्म लगाते हैं और उसी तरह बहुतेरे मुशरकीन को उनके शरीकों ने अपने बच्चों को मार डालने को अच्छा कर दिखाया है وَجَعَلُواْ لِلّهِ مِمِّا ذَرَأَ مِنَ الْحَرْثِ وَالأَنْعَامِ نَصِيبًا فَقَالُواْ هَـذَا لِلّهِ بِزَعْمِهِمْ وَهَـذَا لِشُرَكَآئِنَا فَمَا كَانَ لِشُرَكَآئِهِمْ فَلاَ يَصِلُ إِلَى اللّهِ وَمَا كَانَ لِلّهِ فَهُوَ يَصِلُ إِلَى شُرَكَآئِهِمْ سَاء مَا يَحْكُمُونَ
137 ताकि उन्हें (बदी) हलाकत में डाल दें और उनके सच्चे दीन को उन पर मिला जुला दें और अगर ख़ुदा चाहता तो लोग ऐसा काम न करते तो तुम (ऐ रसूल) और उनकी इफ़तेरा परदाज़ियों को (ख़ुदा पर) छोड़ दो और ये लोग अपने ख्याल के मुवाफिक कहने लगे कि ये चौपाए और ये खेती अछूती है وَكَذَلِكَ زَيَّنَ لِكَثِيرٍ مِّنَ الْمُشْرِكِينَ قَتْلَ أَوْلاَدِهِمْ شُرَكَآؤُهُمْ لِيُرْدُوهُمْ وَلِيَلْبِسُواْ عَلَيْهِمْ دِينَهُمْ وَلَوْ شَاء اللّهُ مَا فَعَلُوهُ فَذَرْهُمْ وَمَا يَفْتَرُونَ
138 उनको सिवा उसके जिसे हम चाहें कोई नहीं खा सकता और (उनका ये भी ख्याल है) कि कुछ चारपाए ऐसे हैं जिनकी पीठ पर सवारी लादना हराम किया गया और कुछ चारपाए ऐसे है जिन पर (ज़िबह के वक्त) ख़ुदा का नाम तक नहीं लेते और फिर यह ढकोसले (ख़ुदा की तरफ मनसूब करते) हैं ये सब ख़ुदा पर इफ़तेरा व बोहतान है ख़ुदा उनके इफ़तेरा परदाज़ियों को बहुत जल्द सज़ा देगा وَقَالُواْ هَـذِهِ أَنْعَامٌ وَحَرْثٌ حِجْرٌ لاَّ يَطْعَمُهَا إِلاَّ مَن نّشَاء بِزَعْمِهِمْ وَأَنْعَامٌ حُرِّمَتْ ظُهُورُهَا وَأَنْعَامٌ لاَّ يَذْكُرُونَ اسْمَ اللّهِ عَلَيْهَا افْتِرَاء عَلَيْهِ سَيَجْزِيهِم بِمَا كَانُواْ يَفْتَرُونَ
139 और कुफ्फ़ार ये भी कहते हैं कि जो बच्चा (वक्त ़ज़बाह) उन जानवरों के पेट में है (जिन्हें हमने बुतों के नाम कर छोड़ा और ज़िन्दा पैदा होता तो) सिर्फ हमारे मर्दों के लिए हलाल है और हमारी औरतों पर हराम है और अगर वह मरा हुआ हो तो सब के सब उसमें शरीक हैं ख़ुदा अनक़रीब उनको बातें बनाने की सज़ा देगा बेशक वह हिकमत वाला बड़ा वाक़िफकार है وَقَالُواْ مَا فِي بُطُونِ هَـذِهِ الأَنْعَامِ خَالِصَةٌ لِّذُكُورِنَا وَمُحَرَّمٌ عَلَى أَزْوَاجِنَا وَإِن يَكُن مَّيْتَةً فَهُمْ فِيهِ شُرَكَاء سَيَجْزِيهِمْ وَصْفَهُمْ إِنَّهُ حِكِيمٌ عَلِيمٌ
140 बेशक जिन लोगों ने अपनी औलाद को बे समझे बूझे बेवकूफी से मार डाला और जो रोज़ी ख़ुदा ने उन्हें दी थी उसे ख़ुदा पर इफ़तेरा (बोहतान) बाँध कर अपने ऊपर हराम कर डाला और वह सख्त घाटे में है ये यक़ीनन राहे हक़ से भटक गऐ और ये हिदायत पाने वाले थे भी नहीं قَدْ خَسِرَ الَّذِينَ قَتَلُواْ أَوْلاَدَهُمْ سَفَهًا بِغَيْرِ عِلْمٍ وَحَرَّمُواْ مَا رَزَقَهُمُ اللّهُ افْتِرَاء عَلَى اللّهِ قَدْ ضَلُّواْ وَمَا كَانُواْ مُهْتَدِينَ
141 और वह तो वही ख़ुदा है जिसने बहुतेरे बाग़ पैदा किए (जिनमें मुख्तलिफ दरख्त हैं - कुछ तो अंगूर की तरह टट्टियों पर) चढ़ाए हुए और (कुछ) बे चढ़ाए हुए और खजूर के दरख्त और खेती जिसमें फल मुख्तलिफ़ किस्म के हैं और ज़ैतून और अनार बाज़ तो सूरत रंग मज़े में, मिलते जुलते और (बाज़) बेमेल (लोगों) जब ये चीज़े फलें तो उनका फल खाओ और उन चीज़ों के काटने के दिन ख़ुदा का हक़ (ज़कात) दे दो और ख़बरदार फज़ूल ख़र्ची न करो - क्यों कि वह (ख़ुदा) फुज़ूल ख़र्चे से हरगिज़ उलफत नहीं रखता وَهُوَ الَّذِي أَنشَأَ جَنَّاتٍ مَّعْرُوشَاتٍ وَغَيْرَ مَعْرُوشَاتٍ وَالنَّخْلَ وَالزَّرْعَ مُخْتَلِفًا أُكُلُهُ وَالزَّيْتُونَ وَالرُّمَّانَ مُتَشَابِهًا وَغَيْرَ مُتَشَابِهٍ كُلُواْ مِن ثَمَرِهِ إِذَا أَثْمَرَ وَآتُواْ حَقَّهُ يَوْمَ حَصَادِهِ وَلاَ تُسْرِفُواْ إِنَّهُ لاَ يُحِبُّ الْمُسْرِفِينَ
142 और चारपायों में से कुछ तो बोझ उठाने वाले (बड़े बड़े) और कुछ ज़मीन से लगे हुए (छोटे छोटे) पैदा किए ख़ुदा ने जो तुम्हें रोज़ी दी है उस में से खाओ और शैतान के क़दम ब क़दम न चलो وَمِنَ الأَنْعَامِ حَمُولَةً وَفَرْشًا كُلُواْ مِمَّا رَزَقَكُمُ اللّهُ وَلاَ تَتَّبِعُواْ خُطُوَاتِ الشَّيْطَانِ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُّبِينٌ
143 (क्यों कि) वह तो यक़ीनन तुम्हारा खुला हुआ दुश्मन है (ख़ुदा ने नर मादा मिलाकर) आठ (क़िस्म के) जोड़े पैदा किए हैं - भेड़ से (नर मादा) दो और बकरी से (नर मादा) दो (ऐ रसूल उन काफिरों से) पूछो तो कि ख़ुदा ने (उन दोनों भेड़ बकरी के) दोनों नरों को हराम कर दिया है या उन दोनों मादनियों को या उस बच्चे को जो उन दोनों मादनियों के पेट से अन्दर लिए हुए हैं ثَمَانِيَةَ أَزْوَاجٍ مِّنَ الضَّأْنِ اثْنَيْنِ وَمِنَ الْمَعْزِ اثْنَيْنِ قُلْ آلذَّكَرَيْنِ حَرَّمَ أَمِ الأُنثَيَيْنِ أَمَّا اشْتَمَلَتْ عَلَيْهِ أَرْحَامُ الأُنثَيَيْنِ نَبِّؤُونِي بِعِلْمٍ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ
144 अगर तुम सच्चे हो तो ज़रा समझ के मुझे बताओ और ऊँट के (नर मादा) दो और गाय के (नर मादा) दो (ऐ रसूल तुम उनसे) पूछो कि ख़ुदा ने उन दोनों (ऊँट गाय के) नरों को हराम किया या दोनों मादनियोंको या उस बच्चे को जो दोनों मादनियों के पेट अपने अन्दर लिये हुए है क्या जिस वक्त ख़ुदा ने तुमको उसका हुक्म दिया था तुम उस वक्त मौजूद थे फिर जो ख़ुदा पर झूठ बोताहन बॉधे उससे ज्यादा ज़ालिम कौन होगा ताकि लोगों के वे समझे बूझे गुमराह करें ख़ुदा हरगिज़ ज़ालिम क़ौम में मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुचाता وَمِنَ الإِبْلِ اثْنَيْنِ وَمِنَ الْبَقَرِ اثْنَيْنِ قُلْ آلذَّكَرَيْنِ حَرَّمَ أَمِ الأُنثَيَيْنِ أَمَّا اشْتَمَلَتْ عَلَيْهِ أَرْحَامُ الأُنثَيَيْنِ أَمْ كُنتُمْ شُهَدَاء إِذْ وَصَّاكُمُ اللّهُ بِهَـذَا فَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنِ افْتَرَى عَلَى اللّهِ كَذِبًا لِيُضِلَّ النَّاسَ بِغَيْرِ عِلْمٍ إِنَّ اللّهَ لاَ يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ
145 (ऐ रसूल) तुम कहो कि मै तो जो (क़ुरान) मेरे पास वही के तौर पर आया है उसमें कोई चीज़ किसी खाने वाले पर जो उसको खाए हराम नहीं पाता मगर जबकि वह मुर्दा या बहता हुआ ख़़ून या सूअर का गोश्त हो तो बेशक ये (चीजे) नापाक और हराम हैं या (वह जानवर) नाफरमानी का बाएस हो कि (वक्ते ़ज़िबहा) ख़ुदा के सिवा किसी और का नाम लिया गया हो फिर जो शख्स (हर तरह) बेबस हो जाए (और) नाफरमान व सरकश न हो और इस हालत में खाए तो अलबत्ता तुम्हारा परवरदिगार बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है قُل لاَّ أَجِدُ فِي مَا أُوْحِيَ إِلَيَّ مُحَرَّمًا عَلَى طَاعِمٍ يَطْعَمُهُ إِلاَّ أَن يَكُونَ مَيْتَةً أَوْ دَمًا مَّسْفُوحًا أَوْ لَحْمَ خِنزِيرٍ فَإِنَّهُ رِجْسٌ أَوْ فِسْقًا أُهِلَّ لِغَيْرِ اللّهِ بِهِ فَمَنِ اضْطُرَّ غَيْرَ بَاغٍ وَلاَ عَادٍ فَإِنَّ رَبَّكَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
146 और हमने यहूदियों पर तमाम नाख़ूनदार जानवर हराम कर दिये थे और गाय और बकरी दोनों की चरबियां भी उन पर हराम कर दी थी मगर जो चरबी उनकी दोनों पीठ या आतों पर लगी हो या हडड्ी से मिली हुई हो (वह हलाल थी) ये हमने उन्हें उनकी सरक़शी की सज़ा दी थी और उसमें तो शक ही नहीं कि हम ज़रूर सच्चे हैं وَعَلَى الَّذِينَ هَادُواْ حَرَّمْنَا كُلَّ ذِي ظُفُرٍ وَمِنَ الْبَقَرِ وَالْغَنَمِ حَرَّمْنَا عَلَيْهِمْ شُحُومَهُمَا إِلاَّ مَا حَمَلَتْ ظُهُورُهُمَا أَوِ الْحَوَايَا أَوْ مَا اخْتَلَطَ بِعَظْمٍ ذَلِكَ جَزَيْنَاهُم بِبَغْيِهِمْ وِإِنَّا لَصَادِقُونَ
147 (ऐ रसूल) पर अगर वह तुम्हें झुठलाएं तो तुम (जवाब) में कहो कि (अगरचे) तुम्हारा परवरदिगार बड़ी वसीह रहमत वाला है मगर उसका अज़ाब गुनाहगार लोगों से टलता भी नहीं فَإِن كَذَّبُوكَ فَقُل رَّبُّكُمْ ذُو رَحْمَةٍ وَاسِعَةٍ وَلاَ يُرَدُّ بَأْسُهُ عَنِ الْقَوْمِ الْمُجْرِمِينَ
148 अनक़रीब मुशरेकीन कहेंगें कि अगर ख़ुदा चाहता तो न हम लोग शिर्क करते और न हमारे बाप दादा और न हम कोई चीज़ अपने ऊपर हराम करते उसी तरह (बातें बना बना के) जो लोग उनसे पहले हो गुज़रे हैं (पैग़म्बरों को) झुठलाते रहे यहाँ तक कि उन लोगों ने हमारे अज़ाब (के मज़े)े को चख़ा (ऐ रसूल) तुम कहो कि तुम्हारे पास कोई दलील है (अगर है) तो हमारे (दिखाने के) वास्ते उसको निकालो (दलील तो क्या) पेश करोगे तुम लोग तो सिर्फ अपने ख्याल ख़ाम की पैरवी करते हो और सिर्फ अटकल पच्चू बातें करते हो سَيَقُولُ الَّذِينَ أَشْرَكُواْ لَوْ شَاء اللّهُ مَا أَشْرَكْنَا وَلاَ آبَاؤُنَا وَلاَ حَرَّمْنَا مِن شَيْءٍ كَذَلِكَ كَذَّبَ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِم حَتَّى ذَاقُواْ بَأْسَنَا قُلْ هَلْ عِندَكُم مِّنْ عِلْمٍ فَتُخْرِجُوهُ لَنَا إِن تَتَّبِعُونَ إِلاَّ الظَّنَّ وَإِنْ أَنتُمْ إَلاَّ تَخْرُصُونَ
149 (ऐ रसूल) तुम कहो कि (अब तुम्हारे पास कोई दलील नहीं है) ख़ुदा तक पहुंचाने वाली दलील ख़ुदा ही के लिए ख़ास है قُلْ فَلِلّهِ الْحُجَّةُ الْبَالِغَةُ فَلَوْ شَاء لَهَدَاكُمْ أَجْمَعِينَ
150 फिर अगर वही चाहता तो तुम सबकी हिदायत करता (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ( अच्छा) अपने गवाहों को लाकर हाज़िर करो जो ये गवाही दें कि ये चीज़े (जिन्हें तुम हराम मानते हो) खुदा ही ने हराम कर दी हैं फिर अगर (बिलग़रज़) वह गवाही दे भी दे तो (ऐ रसूल) कहीं तुम उनके साथ गवाही न देना और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया और आख़िरत पर ईमान नहीं लाते और दूसरों को अपने परवरदिगार का हम सर बनाते है उनकी नफ़सियानी ख्वाहिशों पर न चलना قُلْ هَلُمَّ شُهَدَاءكُمُ الَّذِينَ يَشْهَدُونَ أَنَّ اللّهَ حَرَّمَ هَـذَا فَإِن شَهِدُواْ فَلاَ تَشْهَدْ مَعَهُمْ وَلاَ تَتَّبِعْ أَهْوَاء الَّذِينَ كَذَّبُواْ بِآيَاتِنَا وَالَّذِينَ لاَ يُؤْمِنُونَ بِالآخِرَةِ وَهُم بِرَبِّهِمْ يَعْدِلُونَ
151 (ऐ रसूल) तुम उनसे कहो कि (बेबस) आओ जो चीज़ें ख़ुदा ने तुम पर हराम की हैं वह मैं तुम्हें पढ़ कर सुनाऊँ (वह) यह कि किसी चीज़ को ख़ुदा का शरीक़ न बनाओ और माँ बाप के साथ नेक सुलूक़ करो और मुफ़लिसी के ख़ौफ से अपनी औलाद को मार न डालना (क्योंकि) उनको और तुमको रिज़क देने वाले तो हम हैं और बदकारियों के क़रीब भी न जाओ ख्वाह (चाहे) वह ज़ाहिर हो या पोशीदा और किसी जान वाले को जिस के क़त्ल को ख़ुदा ने हराम किया है न मार डालना मगर (किसी) हक़ के ऐवज़ में वह बातें हैं जिनका ख़ुदा ने तुम्हें हुक्म दिया है ताकि तुम लोग समझो और यतीम के माल के करीब भी न जाओ قُلْ تَعَالَوْاْ أَتْلُ مَا حَرَّمَ رَبُّكُمْ عَلَيْكُمْ أَلاَّ تُشْرِكُواْ بِهِ شَيْئًا وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا وَلاَ تَقْتُلُواْ أَوْلاَدَكُم مِّنْ إمْلاَقٍ نَّحْنُ نَرْزُقُكُمْ وَإِيَّاهُمْ وَلاَ تَقْرَبُواْ الْفَوَاحِشَ مَا ظَهَرَ مِنْهَا وَمَا بَطَنَ وَلاَ تَقْتُلُواْ النَّفْسَ الَّتِي حَرَّمَ اللّهُ إِلاَّ بِالْحَقِّ ذَلِكُمْ وَصَّاكُمْ بِهِ لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ
152 लेकिन इस तरीके पर कि (उसके हक़ में) बेहतर हो यहाँ तक कि वह अपनी जवानी की हद को पहुंच जाए और इन्साफ के साथ नाप और तौल पूरी किया करो हम किसी शख्स को उसकी ताक़त से बढ़कर तकलीफ नहीं देते और (चाहे कुछ हो मगर) जब बात कहो तो इन्साफ़ से अगरचे वह (जिसके तुम ख़िलाफ न हो) तुम्हारा अज़ीज़ ही (क्यों न) हो और ख़ुदा के एहद व पैग़ाम को पूरा करो यह वह बातें हैं जिनका ख़ुदा ने तुम्हे हुक्म दिया है कि तुम इबरत हासिल करो और ये भी (समझ लो) कि यही मेरा सीधा रास्ता है وَلاَ تَقْرَبُواْ مَالَ الْيَتِيمِ إِلاَّ بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ حَتَّى يَبْلُغَ أَشُدَّهُ وَأَوْفُواْ الْكَيْلَ وَالْمِيزَانَ بِالْقِسْطِ لاَ نُكَلِّفُ نَفْسًا إِلاَّ وُسْعَهَا وَإِذَا قُلْتُمْ فَاعْدِلُواْ وَلَوْ كَانَ ذَا قُرْبَى وَبِعَهْدِ اللّهِ أَوْفُواْ ذَلِكُمْ وَصَّاكُم بِهِ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ
153 तो उसी पर चले जाओ और दूसरे रास्ते पर न चलो कि वह तुमको ख़ुदा के रास्ते से (भटकाकर) तितिर बितिर कर देगें यह वह बातें हैं जिनका ख़ुदा ने तुमको हक्म दिया है ताकि तुम परहेज़गार बनो وَأَنَّ هَـذَا صِرَاطِي مُسْتَقِيمًا فَاتَّبِعُوهُ وَلاَ تَتَّبِعُواْ السُّبُلَ فَتَفَرَّقَ بِكُمْ عَن سَبِيلِهِ ذَلِكُمْ وَصَّاكُم بِهِ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ
154 फिर हमनें जो नेक़ी करें उस पर अपनी नेअमत पूरी करने के वास्ते मूसा को क़िताब (तौरौत) अता फरमाई और उसमें हर चीज़ की तफ़सील (बयान कर दी ) थी और (लोगों के लिए अज़सरतापा(सर से पैर तक)) हिदायत व रहमत है ताकि वह लोग अपनें परवरदिगार के सामने हाज़िर होने का यक़ीन करें ثُمَّ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ تَمَامًا عَلَى الَّذِيَ أَحْسَنَ وَتَفْصِيلاً لِّكُلِّ شَيْءٍ وَهُدًى وَرَحْمَةً لَّعَلَّهُم بِلِقَاء رَبِّهِمْ يُؤْمِنُونَ
155 और ये किताब (क़ुरान) जिसको हमने (अब नाज़िल किया है क्या है-बरक़त वाली किताब) है तो तुम लोग उसी की पैरवी करो (और ख़ुदा से) डरते रहो ताकि तुम पर रहम किया जाए وَهَـذَا كِتَابٌ أَنزَلْنَاهُ مُبَارَكٌ فَاتَّبِعُوهُ وَاتَّقُواْ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ
156 (और ऐ मुशरेकीन ये किताब हमने इसलिए नाज़िल की कि तुम कहीं) यह कह बैठो कि हमसे पहले किताब ख़ुदा तो बस सिर्फ दो ही गिरोहों (यहूद व नसारा) पर नाज़िल हुई थी अगरचे हम तो उनके पढ़ने (पढ़ाने) से बेखबर थे أَن تَقُولُواْ إِنَّمَا أُنزِلَ الْكِتَابُ عَلَى طَآئِفَتَيْنِ مِن قَبْلِنَا وَإِن كُنَّا عَن دِرَاسَتِهِمْ لَغَافِلِينَ
157 या ये कहने लगो कि अगर हम पर किताबे (ख़ुदा नाज़िल होती तो हम उन लोगों से कहीं बढ़कर राहे रास्त पर होते तो (देखो) अब तो यक़ीनन तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम्हारे पास एक रौशन दलील है (किताबे ख़ुदा) और हिदायत और रहमत आ चुकी तो जो शख्स ख़ुदा के आयात को झुठलाए और उससे मुँह फेरे उनसे बढ़ कर ज़ालिम कौन है जो लोग हमारी आयतों से मुँह फेरते हैं हम उनके मुँह फेरने के बदले में अनक़रीब ही बुरे अज़ाब की सज़ा देगें (ऐ रसूल) क्या ये लोग सिर्फ उसके मुन्तिज़र है कि उनके पास फरिश्ते आएं أَوْ تَقُولُواْ لَوْ أَنَّا أُنزِلَ عَلَيْنَا الْكِتَابُ لَكُنَّا أَهْدَى مِنْهُمْ فَقَدْ جَاءكُم بَيِّنَةٌ مِّن رَّبِّكُمْ وَهُدًى وَرَحْمَةٌ فَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّن كَذَّبَ بِآيَاتِ اللّهِ وَصَدَفَ عَنْهَا سَنَجْزِي الَّذِينَ يَصْدِفُونَ عَنْ آيَاتِنَا سُوءَ الْعَذَابِ بِمَا كَانُواْ يَصْدِفُونَ
158 या तुम्हारा परवरदिगार खुद (तुम्हारे पास) आये या तुम्हारे परवरदिगार की कुछ निशानियाँ आ जाएं (आख़िरकार क्योकर समझाया जाए) हालांकि जिस दिन तुम्हारे परवरदिगार की बाज़ निशानियाँ आ जाएंगी तो जो शख्स पहले से ईमान नहीं लाया होगा या अपने मोमिन होने की हालत में कोई नेक काम नहीं किया होगा तो अब उसका ईमान लाना उसको कुछ भी मुफ़ीद न होगा - (ऐ रसूल) तुम (उनसे) कह दो कि (अच्छा यही सही) तुम (भी) इन्तिज़ार करो हम भी इन्तिज़ार करते हैं هَلْ يَنظُرُونَ إِلاَّ أَن تَأْتِيهُمُ الْمَلآئِكَةُ أَوْ يَأْتِيَ رَبُّكَ أَوْ يَأْتِيَ بَعْضُ آيَاتِ رَبِّكَ يَوْمَ يَأْتِي بَعْضُ آيَاتِ رَبِّكَ لاَ يَنفَعُ نَفْسًا إِيمَانُهَا لَمْ تَكُنْ آمَنَتْ مِن قَبْلُ أَوْ كَسَبَتْ فِي إِيمَانِهَا خَيْرًا قُلِ انتَظِرُواْ إِنَّا مُنتَظِرُونَ
159 बेशक जिन लोगों ने आपने दीन में तफरक़ा डाला और कई फरीक़ बन गए थे उनसे कुछ सरोकार नहीं उनका मामला तो सिर्फ ख़ुदा के हवाले है फिर जो कुछ वह दुनिया में नेक या बद किया करते थे वह उन्हें बता देगा (उसकी रहमत तो देखो) إِنَّ الَّذِينَ فَرَّقُواْ دِينَهُمْ وَكَانُواْ شِيَعًا لَّسْتَ مِنْهُمْ فِي شَيْءٍ إِنَّمَا أَمْرُهُمْ إِلَى اللّهِ ثُمَّ يُنَبِّئُهُم بِمَا كَانُواْ يَفْعَلُونَ
160 जो शख्स नेकी करेगा तो उसको दस गुना सवाब अता होगा और जो शख्स बदी करेगा तो उसकी सज़ा उसको बस उतनी ही दी जाएगी और वह लोग (किसी तरह) सताए न जाएगें مَن جَاء بِالْحَسَنَةِ فَلَهُ عَشْرُ أَمْثَالِهَا وَمَن جَاء بِالسَّيِّئَةِ فَلاَ يُجْزَى إِلاَّ مِثْلَهَا وَهُمْ لاَ يُظْلَمُونَ
161 (ऐ रसूल) तुम उनसे कहो कि मुझे तो मेरे परवरदिगार ने सीधी राह यानि एक मज़बूत दीन इबराहीम के मज़हब की हिदायत फरमाई है बातिल से कतरा के चलते थे और मुशरेकीन से न थे قُلْ إِنَّنِي هَدَانِي رَبِّي إِلَى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ دِينًا قِيَمًا مِّلَّةَ إِبْرَاهِيمَ حَنِيفًا وَمَا كَانَ مِنَ الْمُشْرِكِين
162 (ऐ रसूल) तुम उन लोगों से कह दो कि मेरी नमाज़ मेरी इबादत मेरा जीना मेरा मरना सब ख़ुदा ही के वास्ते है जो सारे जहाँ का परवरदिगार है قُلْ إِنَّ صَلاَتِي وَنُسُكِي وَمَحْيَايَ وَمَمَاتِي لِلّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ
163 और उसका कोई शरीक़ नहीं और मुझे इसी का हुक्म दिया गया है और मैं सबसे पहले इस्लाम लाने वाला हूँ لاَ شَرِيكَ لَهُ وَبِذَلِكَ أُمِرْتُ وَأَنَاْ أَوَّلُ الْمُسْلِمِينَ
164 (ऐ रसूल) तुम पूछो तो कि क्या मैं ख़ुदा के सिवा किसी और को परवरदिगार तलाश करुँ हालॉकि वह तमाम चीज़ो का मालिक है और जो शख्स कोई बुरा काम करता है उसका (वबाल) उसी पर है और कोई शख्स किसी दूसरे के गुनाह का बोझ नहीं उठाने का फिर तुम सबको अपने परवरदिगार के हुज़ूर में लौट कर जाना है तब तुम लोग जिन बातों में बाहम झगड़ते थे वह सब तुम्हें बता देगा قُلْ أَغَيْرَ اللّهِ أَبْغِي رَبًّا وَهُوَ رَبُّ كُلِّ شَيْءٍ وَلاَ تَكْسِبُ كُلُّ نَفْسٍ إِلاَّ عَلَيْهَا وَلاَ تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَى ثُمَّ إِلَى رَبِّكُم مَّرْجِعُكُمْ فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ فِيهِ تَخْتَلِفُونَ
165 और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने तुम्हें ज़मीन में (अपना) नायब बनाया और तुममें से बाज़ के बाज़ पर दर्जे बुलन्द किये ताकि वो (नेअमत) तुम्हें दी है उसी पर तुम्हारा इमतेहान करे उसमें तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार बहुत जल्द अज़ाब करने वाला है और इसमें भी शक नहीं कि वह बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है وَهُوَ الَّذِي جَعَلَكُمْ خَلاَئِفَ الأَرْضِ وَرَفَعَ بَعْضَكُمْ فَوْقَ بَعْضٍ دَرَجَاتٍ لِّيَبْلُوَكُمْ فِي مَا آتَاكُمْ إِنَّ رَبَّكَ سَرِيعُ الْعِقَابِ وَإِنَّهُ لَغَفُورٌ رَّحِيمٌ
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