Al-Qamar

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Hindi: Suhel Farooq Khan and Saifur Rahman Nadwi

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# Translation Ayah
1 क़यामत क़रीब आ गयी और चाँद दो टुकड़े हो गया اقْتَرَبَتِ السَّاعَةُ وَانشَقَّ الْقَمَرُ
2 और अगर ये कुफ्फ़ार कोई मौजिज़ा देखते हैं, तो मुँह फेर लेते हैं, और कहते हैं कि ये तो बड़ा ज़बरदस्त जादू है وَإِن يَرَوْا آيَةً يُعْرِضُوا وَيَقُولُوا سِحْرٌ مُّسْتَمِرٌّ
3 और उन लोगों ने झुठलाया और अपनी नफ़सियानी ख्वाहिशों की पैरवी की, और हर काम का वक्त मुक़र्रर है وَكَذَّبُوا وَاتَّبَعُوا أَهْوَاءهُمْ وَكُلُّ أَمْرٍ مُّسْتَقِرٌّ
4 और उनके पास तो वह हालात पहुँच चुके हैं जिनमें काफी तम्बीह थीं وَلَقَدْ جَاءهُم مِّنَ الْأَنبَاء مَا فِيهِ مُزْدَجَرٌ
5 और इन्तेहा दर्जे की दानाई मगर (उनको तो) डराना कुछ फ़ायदा नहीं देता حِكْمَةٌ بَالِغَةٌ فَمَا تُغْنِ النُّذُرُ
6 तो (ऐ रसूल) तुम भी उनसे किनाराकश रहो, जिस दिन एक बुलाने वाला (इसराफ़ील) एक अजनबी और नागवार चीज़ की तरफ़ बुलाएगा فَتَوَلَّ عَنْهُمْ يَوْمَ يَدْعُ الدَّاعِ إِلَى شَيْءٍ نُّكُرٍ
7 तो (निदामत से) ऑंखें नीचे किए हुए कब्रों से निकल पड़ेंगे गोया वह फैली हुई टिड्डियाँ हैं خُشَّعًا أَبْصَارُهُمْ يَخْرُجُونَ مِنَ الْأَجْدَاثِ كَأَنَّهُمْ جَرَادٌ مُّنتَشِرٌ
8 (और) बुलाने वाले की तरफ गर्दनें बढ़ाए दौड़ते जाते होंगे, कुफ्फ़ार कहेंगे ये तो बड़ा सख्त दिन है مُّهْطِعِينَ إِلَى الدَّاعِ يَقُولُ الْكَافِرُونَ هَذَا يَوْمٌ عَسِرٌ
9 इनसे पहले नूह की क़ौम ने भी झुठलाया था, तो उन्होने हमारे (ख़ास) बन्दे (नूह) को झुठलाया, और कहने लगे ये तो दीवाना है كَذَّبَتْ قَبْلَهُمْ قَوْمُ نُوحٍ فَكَذَّبُوا عَبْدَنَا وَقَالُوا مَجْنُونٌ وَازْدُجِرَ
10 और उनको झिड़कियाँ भी दी गयीं, तो उन्होंने अपने परवरदिगार से दुआ की कि (बारे इलाहा मैं) इनके मुक़ाबले में कमज़ोर हूँ فَدَعَا رَبَّهُ أَنِّي مَغْلُوبٌ فَانتَصِرْ
11 तो अब तू ही (इनसे) बदला ले तो हमने मूसलाधार पानी से आसमान के दरवाज़े खोल दिए فَفَتَحْنَا أَبْوَابَ السَّمَاء بِمَاء مُّنْهَمِرٍ
12 और ज़मीन से चश्में जारी कर दिए, तो एक काम के लिए जो मुक़र्रर हो चुका था (दोनों) पानी मिलकर एक हो गया وَفَجَّرْنَا الْأَرْضَ عُيُونًا فَالْتَقَى الْمَاء عَلَى أَمْرٍ قَدْ قُدِرَ
13 और हमने एक कश्ती पर जो तख्तों और कीलों से तैयार की गयी थी सवार किया وَحَمَلْنَاهُ عَلَى ذَاتِ أَلْوَاحٍ وَدُسُرٍ
14 और वह हमारी निगरानी में चल रही थी (ये) उस शख़्श (नूह) का बदला लेने के लिए जिसको लोग न मानते थे تَجْرِي بِأَعْيُنِنَا جَزَاء لِّمَن كَانَ كُفِرَ
15 और हमने उसको एक इबरत बना कर छोड़ा तो कोई है जो इबरत हासिल करे وَلَقَد تَّرَكْنَاهَا آيَةً فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ
16 तो (उनको) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ
17 और हमने तो क़ुरान को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया है तो कोई है जो नसीहत हासिल करे وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ
18 आद (की क़ौम ने) (अपने पैग़म्बर) को झुठलाया तो (उनका) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था, كَذَّبَتْ عَادٌ فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ
19 हमने उन पर बहुत सख्त मनहूस दिन में बड़े ज़न्नाटे की ऑंधी चलायी إِنَّا أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ رِيحًا صَرْصَرًا فِي يَوْمِ نَحْسٍ مُّسْتَمِرٍّ
20 जो लोगों को (अपनी जगह से) इस तरह उखाड़ फेकती थी गोया वह उखड़े हुए खजूर के तने हैं تَنزِعُ النَّاسَ كَأَنَّهُمْ أَعْجَازُ نَخْلٍ مُّنقَعِرٍ
21 तो (उनको) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ
22 और हमने तो क़ुरान को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया, तो कोई है जो नसीहत हासिल करे وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ
23 (क़ौम) समूद ने डराने वाले (पैग़म्बरों) को झुठलाया كَذَّبَتْ ثَمُودُ بِالنُّذُرِ
24 तो कहने लगे कि भला एक आदमी की जो हम ही में से हो उसकी पैरवीं करें ऐसा करें तो गुमराही और दीवानगी में पड़ गए فَقَالُوا أَبَشَرًا مِّنَّا وَاحِدًا نَّتَّبِعُهُ إِنَّا إِذًا لَّفِي ضَلَالٍ وَسُعُرٍ
25 क्या हम सबमें बस उसी पर वही नाज़िल हुई है (नहीं) बल्कि ये तो बड़ा झूठा तअल्ली करने वाला है أَأُلْقِيَ الذِّكْرُ عَلَيْهِ مِن بَيْنِنَا بَلْ هُوَ كَذَّابٌ أَشِرٌ
26 उनको अनक़रीब कल ही मालूम हो जाएगा कि कौन बड़ा झूठा तकब्बुर करने वाला है سَيَعْلَمُونَ غَدًا مَّنِ الْكَذَّابُ الْأَشِرُ
27 (ऐ सालेह) हम उनकी आज़माइश के लिए ऊँटनी भेजने वाले हैं तो तुम उनको देखते रहो और (थोड़ा) सब्र करो إِنَّا مُرْسِلُو النَّاقَةِ فِتْنَةً لَّهُمْ فَارْتَقِبْهُمْ وَاصْطَبِرْ
28 और उनको ख़बर कर दो कि उनमें पानी की बारी मुक़र्रर कर दी गयी है हर (बारी वाले को अपनी) बारी पर हाज़िर होना चाहिए وَنَبِّئْهُمْ أَنَّ الْمَاء قِسْمَةٌ بَيْنَهُمْ كُلُّ شِرْبٍ مُّحْتَضَرٌ
29 तो उन लोगों ने अपने रफीक़ (क़ेदार) को बुलाया तो उसने पकड़ कर (ऊँटनी की) कूंचे काट डालीं فَنَادَوْا صَاحِبَهُمْ فَتَعَاطَى فَعَقَرَ
30 तो (देखो) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ
31 हमने उन पर एक सख्त चिंघाड़ (का अज़ाब) भेज दिया तो वह बाड़े वालो के सूखे हुए चूर चूर भूसे की तरह हो गए إِنَّا أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ صَيْحَةً وَاحِدَةً فَكَانُوا كَهَشِيمِ الْمُحْتَظِرِ
32 और हमने क़ुरान को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया है तो कोई है जो नसीहत हासिल करे وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ
33 लूत की क़ौम ने भी डराने वाले (पैग़म्बरों) को झुठलाया كَذَّبَتْ قَوْمُ لُوطٍ بِالنُّذُرِ
34 तो हमने उन पर कंकर भरी हवा चलाई मगर लूत के लड़के बाले को हमने उनको अपने फज़ल व करम से पिछले ही को बचा लिया إِنَّا أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ حَاصِبًا إِلَّا آلَ لُوطٍ نَّجَّيْنَاهُم بِسَحَرٍ
35 हम शुक्र करने वालों को ऐसा ही बदला दिया करते हैं نِعْمَةً مِّنْ عِندِنَا كَذَلِكَ نَجْزِي مَن شَكَرَ
36 और लूत ने उनको हमारी पकड़ से भी डराया था मगर उन लोगों ने डराते ही में शक़ किया وَلَقَدْ أَنذَرَهُم بَطْشَتَنَا فَتَمَارَوْا بِالنُّذُرِ
37 और उनसे उनके मेहमान (फ़रिश्ते) के बारे में नाजायज़ मतलब की ख्वाहिश की तो हमने उनकी ऑंखें अन्धी कर दीं तो मेरे अज़ाब और डराने का मज़ा चखो وَلَقَدْ رَاوَدُوهُ عَن ضَيْفِهِ فَطَمَسْنَا أَعْيُنَهُمْ فَذُوقُوا عَذَابِي وَنُذُرِ
38 और सुबह सवेरे ही उन पर अज़ाब आ गया जो किसी तरह टल ही नहीं सकता था وَلَقَدْ صَبَّحَهُم بُكْرَةً عَذَابٌ مُّسْتَقِرٌّ
39 तो मेरे अज़ाब और डराने के (पड़े) मज़े चखो فَذُوقُوا عَذَابِي وَنُذُرِ
40 और हमने तो क़ुरान को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया तो कोई है जो नसीहत हासिल करे وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ
41 और फिरऔन के पास भी डराने वाले (पैग़म्बर) आए وَلَقَدْ جَاء آلَ فِرْعَوْنَ النُّذُرُ
42 तो उन लोगों ने हमारी कुल निशानियों को झुठलाया तो हमने उनको इस तरह सख्त पकड़ा जिस तरह एक ज़बरदस्त साहिबे क़ुदरत पकड़ा करता है كَذَّبُوا بِآيَاتِنَا كُلِّهَا فَأَخَذْنَاهُمْ أَخْذَ عَزِيزٍ مُّقْتَدِرٍ
43 (ऐ अहले मक्का) क्या उन लोगों से भी तुम्हारे कुफ्फार बढ़ कर हैं या तुम्हारे वास्ते (पहली) किताबों में माफी (लिखी हुई) है أَكُفَّارُكُمْ خَيْرٌ مِّنْ أُوْلَئِكُمْ أَمْ لَكُم بَرَاءةٌ فِي الزُّبُرِ
44 क्या ये लोग कहते हैं कि हम बहुत क़वी जमाअत हैं أَمْ يَقُولُونَ نَحْنُ جَمِيعٌ مُّنتَصِرٌ
45 अनक़रीब ही ये जमाअत शिकस्त खाएगी और ये लोग पीठ फेर कर भाग जाएँगे سَيُهْزَمُ الْجَمْعُ وَيُوَلُّونَ الدُّبُرَ
46 बात ये है कि इनके वायदे का वक्त क़यामत है और क़यामत बड़ी सख्त और बड़ी तल्ख़ (चीज़) है بَلِ السَّاعَةُ مَوْعِدُهُمْ وَالسَّاعَةُ أَدْهَى وَأَمَرُّ
47 बेशक गुनाहगार लोग गुमराही और दीवानगी में (मुब्तिला) हैं إِنَّ الْمُجْرِمِينَ فِي ضَلَالٍ وَسُعُرٍ
48 उस रोज़ ये लोग अपने अपने मुँह के बल (जहन्नुम की) आग में घसीटे जाएँगे (और उनसे कहा जाएगा) अब जहन्नुम की आग का मज़ा चखो يَوْمَ يُسْحَبُونَ فِي النَّارِ عَلَى وُجُوهِهِمْ ذُوقُوا مَسَّ سَقَرَ
49 बेशक हमने हर चीज़ एक मुक़र्रर अन्दाज़ से पैदा की है إِنَّا كُلَّ شَيْءٍ خَلَقْنَاهُ بِقَدَرٍ
50 और हमारा हुक्म तो बस ऑंख के झपकने की तरह एक बात होती है وَمَا أَمْرُنَا إِلَّا وَاحِدَةٌ كَلَمْحٍ بِالْبَصَرِ
51 और हम तुम्हारे हम मशरबो को हलाक कर चुके हैं तो कोई है जो नसीहत हासिल करे وَلَقَدْ أَهْلَكْنَا أَشْيَاعَكُمْ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ
52 और अगर चे ये लोग जो कुछ कर चुके हैं (इनके) आमाल नामों में (दर्ज) है وَكُلُّ شَيْءٍ فَعَلُوهُ فِي الزُّبُرِ
53 (यानि) हर छोटा और बड़ा काम लिख दिया गया है وَكُلُّ صَغِيرٍ وَكَبِيرٍ مُسْتَطَرٌ
54 बेशक परहेज़गार लोग (बेहिश्त के) बाग़ों और नहरों में إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي جَنَّاتٍ وَنَهَرٍ
55 (यानि) पसन्दीदा मक़ाम में हर तरह की कुदरत रखने वाले बादशाह की बारगाह में (मुक़र्रिब) होंगे فِي مَقْعَدِ صِدْقٍ عِندَ مَلِيكٍ مُّقْتَدِرٍ
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