1 |
(कोहे) तूर की क़सम |
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وَالطُّورِ |
2 |
और उसकी किताब (लौहे महफूज़) की |
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وَكِتَابٍ مَّسْطُورٍ |
3 |
जो क़ुशादा औराक़ में लिखी हुई है |
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فِي رَقٍّ مَّنشُورٍ |
4 |
और बैतुल मामूर की (जो काबा के सामने फरिश्तों का क़िब्ला है) |
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وَالْبَيْتِ الْمَعْمُورِ |
5 |
और ऊँची छत (आसमान) की |
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وَالسَّقْفِ الْمَرْفُوعِ |
6 |
और जोश व ख़रोश वाले समन्दर की |
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وَالْبَحْرِ الْمَسْجُورِ |
7 |
कि तुम्हारे परवरदिगार का अज़ाब बेशक वाकेए होकर रहेगा |
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إِنَّ عَذَابَ رَبِّكَ لَوَاقِعٌ |
8 |
(और) इसका कोई रोकने वाला नहीं |
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مَا لَهُ مِن دَافِعٍ |
9 |
जिस दिन आसमान चक्कर खाने लगेगा |
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يَوْمَ تَمُورُ السَّمَاء مَوْرًا |
10 |
और पहाड़ उड़ने लगेंगे |
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وَتَسِيرُ الْجِبَالُ سَيْرًا |
11 |
तो उस दिन झुठलाने वालों की ख़राबी है |
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فَوَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ |
12 |
जो लोग बातिल में पड़े खेल रहे हैं |
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الَّذِينَ هُمْ فِي خَوْضٍ يَلْعَبُونَ |
13 |
जिस दिन जहन्नुम की आग की तरफ उनको ढकेल ढकेल ले जाएँगे |
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يَوْمَ يُدَعُّونَ إِلَى نَارِ جَهَنَّمَ دَعًّا |
14 |
(और उनसे कहा जाएगा) यही वह जहन्नुम है जिसे तुम झुठलाया करते थे |
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هَذِهِ النَّارُ الَّتِي كُنتُم بِهَا تُكَذِّبُونَ |
15 |
तो क्या ये जादू है या तुमको नज़र ही नहीं आता |
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أَفَسِحْرٌ هَذَا أَمْ أَنتُمْ لَا تُبْصِرُونَ |
16 |
इसी में घुसो फिर सब्र करो या बेसब्री करो (दोनों) तुम्हारे लिए यकसाँ हैं तुम्हें तो बस उन्हीं कामों का बदला मिलेगा जो तुम किया करते थे |
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اصْلَوْهَا فَاصْبِرُوا أَوْ لَا تَصْبِرُوا سَوَاء عَلَيْكُمْ إِنَّمَا تُجْزَوْنَ مَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ |
17 |
बेशक परहेज़गार लोग बाग़ों और नेअमतों में होंगे |
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إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي جَنَّاتٍ وَنَعِيمٍ |
18 |
जो (जो नेअमतें) उनके परवरदिगार ने उन्हें दी हैं उनके मज़े ले रहे हैं और उनका परवरदिगार उन्हें दोज़ख़ के अज़ाब से बचाएगा |
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فَاكِهِينَ بِمَا آتَاهُمْ رَبُّهُمْ وَوَقَاهُمْ رَبُّهُمْ عَذَابَ الْجَحِيمِ |
19 |
जो जो कारगुज़ारियाँ तुम कर चुके हो उनके सिले में (आराम से) तख्तों पर जो बराबर बिछे हुए हैं |
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كُلُوا وَاشْرَبُوا هَنِيئًا بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ |
20 |
तकिए लगाकर ख़ूब मज़े से खाओ पियो और हम बड़ी बड़ी ऑंखों वाली हूर से उनका ब्याह रचाएँगे |
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مُتَّكِئِينَ عَلَى سُرُرٍ مَّصْفُوفَةٍ وَزَوَّجْنَاهُم بِحُورٍ عِينٍ |
21 |
और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और उनकी औलाद ने भी ईमान में उनका साथ दिया तो हम उनकी औलाद को भी उनके दर्जे पहुँचा देंगे और हम उनकी कारगुज़ारियों में से कुछ भी कम न करेंगे हर शख़्श अपने आमाल के बदले में गिरवी है |
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وَالَّذِينَ آمَنُوا وَاتَّبَعَتْهُمْ ذُرِّيَّتُهُم بِإِيمَانٍ أَلْحَقْنَا بِهِمْ ذُرِّيَّتَهُمْ وَمَا أَلَتْنَاهُم مِّنْ عَمَلِهِم مِّن شَيْءٍ كُلُّ امْرِئٍ بِمَا كَسَبَ رَهِينٌ |
22 |
और जिस क़िस्म के मेवे और गोश्त को उनका जी चाहेगा हम उन्हें बढ़ाकर अता करेंगे |
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وَأَمْدَدْنَاهُم بِفَاكِهَةٍ وَلَحْمٍ مِّمَّا يَشْتَهُونَ |
23 |
वहाँ एक दूसरे से शराब का जाम ले लिया करेंगे जिसमें न कोई बेहूदगी है और न गुनाह |
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يَتَنَازَعُونَ فِيهَا كَأْسًا لَّا لَغْوٌ فِيهَا وَلَا تَأْثِيمٌ |
24 |
(और ख़िदमत के लिए) नौजवान लड़के उनके आस पास चक्कर लगाया करेंगे वह (हुस्न व जमाल में) गोया एहतियात से रखे हुए मोती हैं |
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وَيَطُوفُ عَلَيْهِمْ غِلْمَانٌ لَّهُمْ كَأَنَّهُمْ لُؤْلُؤٌ مَّكْنُونٌ |
25 |
और एक दूसरे की तरफ रूख़ करके (लुत्फ की) बातें करेंगे |
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وَأَقْبَلَ بَعْضُهُمْ عَلَى بَعْضٍ يَتَسَاءلُونَ |
26 |
(उनमें से कुछ) कहेंगे कि हम इससे पहले अपने घर में (ख़ुदा से बहुत) डरा करते थे |
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قَالُوا إِنَّا كُنَّا قَبْلُ فِي أَهْلِنَا مُشْفِقِينَ |
27 |
तो ख़ुदा ने हम पर बड़ा एहसान किया और हमको (जहन्नुम की) लौ के अज़ाब से बचा लिया |
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فَمَنَّ اللَّهُ عَلَيْنَا وَوَقَانَا عَذَابَ السَّمُومِ |
28 |
इससे क़ब्ल हम उनसे दुआएँ किया करते थे बेशक वह एहसान करने वाला मेहरबान है |
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إِنَّا كُنَّا مِن قَبْلُ نَدْعُوهُ إِنَّهُ هُوَ الْبَرُّ الرَّحِيمُ |
29 |
तो (ऐ रसूल) तुम नसीहत किए जाओ तो तुम अपने परवरदिगार के फज़ल से न काहिन हो और न मजनून किया |
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فَذَكِّرْ فَمَا أَنتَ بِنِعْمَتِ رَبِّكَ بِكَاهِنٍ وَلَا مَجْنُونٍ |
30 |
क्या (तुमको) ये लोग कहते हैं कि (ये) शायर हैं (और) हम तो उसके बारे में ज़माने के हवादिस का इन्तेज़ार कर रहे हैं |
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أَمْ يَقُولُونَ شَاعِرٌ نَّتَرَبَّصُ بِهِ رَيْبَ الْمَنُونِ |
31 |
तुम कह दो कि (अच्छा) तुम भी इन्तेज़ार करो मैं भी इन्तेज़ार करता हूँ |
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قُلْ تَرَبَّصُوا فَإِنِّي مَعَكُم مِّنَ الْمُتَرَبِّصِينَ |
32 |
क्या उनकी अक्लें उन्हें ये (बातें) बताती हैं या ये लोग हैं ही सरकश |
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أَمْ تَأْمُرُهُمْ أَحْلَامُهُم بِهَذَا أَمْ هُمْ قَوْمٌ طَاغُونَ |
33 |
क्या ये लोग कहते हैं कि इसने क़ुरान ख़ुद गढ़ लिया है बात ये है कि ये लोग ईमान ही नहीं रखते |
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أَمْ يَقُولُونَ تَقَوَّلَهُ بَل لَّا يُؤْمِنُونَ |
34 |
तो अगर ये लोग सच्चे हैं तो ऐसा ही कलाम बना तो लाएँ |
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فَلْيَأْتُوا بِحَدِيثٍ مِّثْلِهِ إِن كَانُوا صَادِقِينَ |
35 |
क्या ये लोग किसी के (पैदा किये) बग़ैर ही पैदा हो गए हैं या यही लोग (मख़लूक़ात के) पैदा करने वाले हैं |
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أَمْ خُلِقُوا مِنْ غَيْرِ شَيْءٍ أَمْ هُمُ الْخَالِقُونَ |
36 |
या इन्होने ही ने सारे आसमान व ज़मीन पैदा किए हैं (नहीं) बल्कि ये लोग यक़ीन ही नहीं रखते |
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أَمْ خَلَقُوا السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بَل لَّا يُوقِنُونَ |
37 |
क्या तुम्हारे परवरदिगार के ख़ज़ाने इन्हीं के पास हैं या यही लोग हाकिम हैं |
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أَمْ عِندَهُمْ خَزَائِنُ رَبِّكَ أَمْ هُمُ الْمُصَيْطِرُونَ |
38 |
या उनके पास कोई सीढ़ी है जिस पर (चढ़ कर आसमान से) सुन आते हैं जो सुन आया करता हो तो वह कोई सरीही दलील पेश करे |
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أَمْ لَهُمْ سُلَّمٌ يَسْتَمِعُونَ فِيهِ فَلْيَأْتِ مُسْتَمِعُهُم بِسُلْطَانٍ مُّبِينٍ |
39 |
क्या ख़ुदा के लिए बेटियाँ हैं और तुम लोगों के लिए बेटे |
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أَمْ لَهُ الْبَنَاتُ وَلَكُمُ الْبَنُونَ |
40 |
या तुम उनसे (तबलीग़े रिसालत की) उजरत माँगते हो कि ये लोग कर्ज़ के बोझ से दबे जाते हैं |
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أَمْ تَسْأَلُهُمْ أَجْرًا فَهُم مِّن مَّغْرَمٍ مُّثْقَلُونَ |
41 |
या इन लोगों के पास ग़ैब (का इल्म) है कि वह लिख लेते हैं |
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أَمْ عِندَهُمُ الْغَيْبُ فَهُمْ يَكْتُبُونَ |
42 |
या ये लोग कुछ दाँव चलाना चाहते हैं तो जो लोग काफ़िर हैं वह ख़ुद अपने दांव में फँसे हैं |
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أَمْ يُرِيدُونَ كَيْدًا فَالَّذِينَ كَفَرُوا هُمُ الْمَكِيدُونَ |
43 |
या ख़ुदा के सिवा इनका कोई (दूसरा) माबूद है जिन चीज़ों को ये लोग (ख़ुदा का) शरीक बनाते हैं वह उससे पाक और पाक़ीज़ा है |
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أَمْ لَهُمْ إِلَهٌ غَيْرُ اللَّهِ سُبْحَانَ اللَّهِ عَمَّا يُشْرِكُونَ |
44 |
और अगर ये लोग आसमान से कोई अज़ाब (अज़ाब का) टुकड़ा गिरते हुए देखें तो बोल उठेंगे ये तो दलदार बादल है |
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وَإِن يَرَوْا كِسْفًا مِّنَ السَّمَاء سَاقِطًا يَقُولُوا سَحَابٌ مَّرْكُومٌ |
45 |
तो (ऐ रसूल) तुम इनको इनकी हालत पर छोड़ दो यहाँ तक कि वह जिसमें ये बेहोश हो जाएँगे |
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فَذَرْهُمْ حَتَّى يُلَاقُوا يَوْمَهُمُ الَّذِي فِيهِ يُصْعَقُونَ |
46 |
इनके सामने आ जाए जिस दिन न इनकी मक्कारी ही कुछ काम आएगी और न इनकी मदद ही की जाएगी |
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يَوْمَ لَا يُغْنِي عَنْهُمْ كَيْدُهُمْ شَيْئًا وَلَا هُمْ يُنصَرُونَ |
47 |
और इसमें शक़ नहीं कि ज़ालिमों के लिए इसके अलावा और भी अज़ाब है मगर उनमें बहुतेरे नहीं जानते हैं |
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وَإِنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُوا عَذَابًا دُونَ ذَلِكَ وَلَكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ |
48 |
और (ऐ रसूल) तुम अपने परवरदिगार के हुक्म से इन्तेज़ार में सब्र किए रहो तो तुम बिल्कुल हमारी निगेहदाश्त में हो तो जब तुम उठा करो तो अपने परवरदिगार की हम्द की तस्बीह किया करो |
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وَاصْبِرْ لِحُكْمِ رَبِّكَ فَإِنَّكَ بِأَعْيُنِنَا وَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ حِينَ تَقُومُ |
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और कुछ रात को भी और सितारों के ग़ुरूब होने के बाद तस्बीह किया करो |
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وَمِنَ اللَّيْلِ فَسَبِّحْهُ وَإِدْبَارَ النُّجُومِ |