Ad-Dukhan

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Hindi: Suhel Farooq Khan and Saifur Rahman Nadwi

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# Translation Ayah
1 हा मीम حم
2 वाज़ेए व रौशन किताब (कुरान) की क़सम وَالْكِتَابِ الْمُبِينِ
3 हमने इसको मुबारक रात (शबे क़द्र) में नाज़िल किया बेशक हम (अज़ाब से) डराने वाले थे إِنَّا أَنزَلْنَاهُ فِي لَيْلَةٍ مُّبَارَكَةٍ إِنَّا كُنَّا مُنذِرِينَ
4 इसी रात को तमाम दुनिया के हिक़मत व मसलेहत के (साल भर के) काम फ़ैसले किये जाते हैं فِيهَا يُفْرَقُ كُلُّ أَمْرٍ حَكِيمٍ
5 यानि हमारे यहाँ से हुक्म होकर (बेशक) हम ही (पैग़म्बरों के) भेजने वाले हैं أَمْرًا مِّنْ عِندِنَا إِنَّا كُنَّا مُرْسِلِينَ
6 ये तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी है, वह बेशक बड़ा सुनने वाला वाक़िफ़कार है رَحْمَةً مِّن رَّبِّكَ إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ
7 सारे आसमान व ज़मीन और जो कुछ इन दोनों के दरमियान है सबका मालिक رَبِّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا إِن كُنتُم مُّوقِنِينَ
8 अगर तुममें यक़ीन करने की सलाहियत है (तो करो) उसके सिवा कोई माबूद नहीं - वही जिलाता है वही मारता है तुम्हारा मालिक और तुम्हारे (अगले) बाप दादाओं का भी मालिक है لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ يُحْيِي وَيُمِيتُ رَبُّكُمْ وَرَبُّ آبَائِكُمُ الْأَوَّلِينَ
9 लेकिन ये लोग तो शक़ में पड़े खेल रहे हैं بَلْ هُمْ فِي شَكٍّ يَلْعَبُونَ
10 तो तुम उस दिन का इन्तेज़ार करो कि आसमान से ज़ाहिर ब ज़ाहिर धुऑं निकलेगा فَارْتَقِبْ يَوْمَ تَأْتِي السَّمَاء بِدُخَانٍ مُّبِينٍ
11 (और) लोगों को ढाँक लेगा ये दर्दनाक अज़ाब है يَغْشَى النَّاسَ هَذَا عَذَابٌ أَلِيمٌ
12 कुफ्फ़ार भी घबराकर कहेंगे कि परवरदिगार हमसे अज़ाब को दूर दफ़ा कर दे हम भी ईमान लाते हैं رَبَّنَا اكْشِفْ عَنَّا الْعَذَابَ إِنَّا مُؤْمِنُونَ
13 (उस वक्त) भला क्या उनको नसीहत होगी जब उनके पास पैग़म्बर आ चुके जो साफ़ साफ़ बयान कर देते थे أَنَّى لَهُمُ الذِّكْرَى وَقَدْ جَاءهُمْ رَسُولٌ مُّبِينٌ
14 इस पर भी उन लोगों ने उससे मुँह फेरा और कहने लगे ये तो (सिखाया) पढ़ाया हुआ दीवाना है ثُمَّ تَوَلَّوْا عَنْهُ وَقَالُوا مُعَلَّمٌ مَّجْنُونٌ
15 (अच्छा ख़ैर) हम थोड़े दिन के लिए अज़ाब को टाल देते हैं मगर हम जानते हैं तुम ज़रूर फिर कुफ्र करोगे إِنَّا كَاشِفُو الْعَذَابِ قَلِيلًا إِنَّكُمْ عَائِدُونَ
16 हम बेशक (उनसे) पूरा बदला तो बस उस दिन लेगें जिस दिन सख्त पकड़ पकड़ेंगे يَوْمَ نَبْطِشُ الْبَطْشَةَ الْكُبْرَى إِنَّا مُنتَقِمُونَ
17 और उनसे पहले हमने क़ौमे फिरऔन की आज़माइश की और उनके पास एक आली क़दर पैग़म्बर (मूसा) आए وَلَقَدْ فَتَنَّا قَبْلَهُمْ قَوْمَ فِرْعَوْنَ وَجَاءهُمْ رَسُولٌ كَرِيمٌ
18 (और कहा) कि ख़ुदा के बन्दों (बनी इसराईल) को मेरे हवाले कर दो मैं (ख़ुदा की तरफ से) तुम्हारा एक अमानतदार पैग़म्बर हूँ أَنْ أَدُّوا إِلَيَّ عِبَادَ اللَّهِ إِنِّي لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌ
19 और ख़ुदा के सामने सरकशी न करो मैं तुम्हारे पास वाज़ेए व रौशन दलीलें ले कर आया हूँ وَأَنْ لَّا تَعْلُوا عَلَى اللَّهِ إِنِّي آتِيكُم بِسُلْطَانٍ مُّبِينٍ
20 और इस बात से कि तुम मुझे संगसार करो मैं अपने और तुम्हारे परवरदिगार (ख़ुदा) की पनाह मांगता हूँ وَإِنِّي عُذْتُ بِرَبِّي وَرَبِّكُمْ أَن تَرْجُمُونِ
21 और अगर तुम मुझ पर ईमान नहीं लाए तो तुम मुझसे अलग हो जाओ وَإِنْ لَّمْ تُؤْمِنُوا لِي فَاعْتَزِلُونِ
22 (मगर वह सुनाने लगे) तब मूसा ने अपने परवरदिगार से दुआ की कि ये बड़े शरीर लोग हैं فَدَعَا رَبَّهُ أَنَّ هَؤُلَاء قَوْمٌ مُّجْرِمُونَ
23 तो ख़ुदा ने हुक्म दिया कि तुम मेरे बन्दों (बनी इसराईल) को रातों रात लेकर चले जाओ और तुम्हारा पीछा भी ज़रूर किया जाएगा فَأَسْرِ بِعِبَادِي لَيْلًا إِنَّكُم مُّتَّبَعُونَ
24 और दरिया को अपनी हालत पर ठहरा हुआ छोड़ कर (पार हो) जाओ (तुम्हारे बाद) उनका सारा लशकर डुबो दिया जाएगा وَاتْرُكْ الْبَحْرَ رَهْوًا إِنَّهُمْ جُندٌ مُّغْرَقُونَ
25 वह लोग (ख़ुदा जाने) कितने बाग़ और चश्में और खेतियाँ كَمْ تَرَكُوا مِن جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ
26 और नफीस मकानात और आराम की चीज़ें وَزُرُوعٍ وَمَقَامٍ كَرِيمٍ
27 जिनमें वह ऐश और चैन किया करते थे छोड़ गये यूँ ही हुआ وَنَعْمَةٍ كَانُوا فِيهَا فَاكِهِينَ
28 और उन तमाम चीज़ों का दूसरे लोगों को मालिक बना दिया كَذَلِكَ وَأَوْرَثْنَاهَا قَوْمًا آخَرِينَ
29 तो उन लोगों पर आसमान व ज़मीन को भी रोना न आया और न उन्हें मोहलत ही दी गयी فَمَا بَكَتْ عَلَيْهِمُ السَّمَاء وَالْأَرْضُ وَمَا كَانُوا مُنظَرِينَ
30 और हमने बनी इसराईल को ज़िल्लत के अज़ाब से फिरऔन (के पन्जे) से नजात दी وَلَقَدْ نَجَّيْنَا بَنِي إِسْرَائِيلَ مِنَ الْعَذَابِ الْمُهِينِ
31 वह बेशक सरकश और हद से बाहर निकल गया था مِن فِرْعَوْنَ إِنَّهُ كَانَ عَالِيًا مِّنَ الْمُسْرِفِينَ
32 और हमने बनी इसराईल को समझ बूझ कर सारे जहॉन से बरगुज़ीदा किया था وَلَقَدِ اخْتَرْنَاهُمْ عَلَى عِلْمٍ عَلَى الْعَالَمِينَ
33 और हमने उनको ऐसी निशानियाँ दी थीं जिनमें (उनकी) सरीही आज़माइश थी وَآتَيْنَاهُم مِّنَ الْآيَاتِ مَا فِيهِ بَلَاء مُّبِينٌ
34 ये (कुफ्फ़ारे मक्का) (मुसलमानों से) कहते हैं إِنَّ هَؤُلَاء لَيَقُولُونَ
35 कि हमें तो सिर्फ एक बार मरना है और फिर हम दोबारा (ज़िन्दा करके) उठाए न जाएँगे إِنْ هِيَ إِلَّا مَوْتَتُنَا الْأُولَى وَمَا نَحْنُ بِمُنشَرِينَ
36 तो अगर तुम सच्चे हो तो हमारे बाप दादाओं को (ज़िन्दा करके) ले आओ فَأْتُوا بِآبَائِنَا إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ
37 भला ये लोग (क़ूवत में) अच्छे हैं या तुब्बा की क़ौम और वह लोग जो उनसे पहले हो चुके हमने उन सबको हलाक कर दिया (क्योंकि) वह ज़रूर गुनाहगार थे أَهُمْ خَيْرٌ أَمْ قَوْمُ تُبَّعٍ وَالَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ أَهْلَكْنَاهُمْ إِنَّهُمْ كَانُوا مُجْرِمِينَ
38 और हमने सारे आसमान व ज़मीन और जो चीज़े उन दोनों के दरमियान में हैं उनको खेलते हुए नहीं बनाया وَمَا خَلَقْنَا السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا لَاعِبِينَ
39 इन दोनों को हमने बस ठीक (मसलहत से) पैदा किया मगर उनमें के बहुतेरे लोग नहीं जानते مَا خَلَقْنَاهُمَا إِلَّا بِالْحَقِّ وَلَكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ
40 बेशक फ़ैसला (क़यामत) का दिन उन सब (के दोबार ज़िन्दा होने) का मुक़र्रर वक्त है إِنَّ يَوْمَ الْفَصْلِ مِيقَاتُهُمْ أَجْمَعِينَ
41 जिस दिन कोई दोस्त किसी दोस्त के कुछ काम न आएगा और न उन की मदद की जाएगी يَوْمَ لَا يُغْنِي مَوْلًى عَن مَّوْلًى شَيْئًا وَلَا هُمْ يُنصَرُونَ
42 मगर जिन पर ख़ुदा रहम फरमाए बेशक वह (ख़ुदा) सब पर ग़ालिब बड़ा रहम करने वाला है إِلَّا مَن رَّحِمَ اللَّهُ إِنَّهُ هُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ
43 (आख़ेरत में) थोहड़ का दरख्त إِنَّ شَجَرَةَ الزَّقُّومِ
44 ज़रूर गुनेहगार का खाना होगा طَعَامُ الْأَثِيمِ
45 जैसे पिघला हुआ तांबा वह पेटों में इस तरह उबाल खाएगा كَالْمُهْلِ يَغْلِي فِي الْبُطُونِ
46 जैसे खौलता हुआ पानी उबाल खाता है كَغَلْيِ الْحَمِيمِ
47 (फरिश्तों को हुक्म होगा) इसको पकड़ो और घसीटते हुए दोज़ख़ के बीचों बीच में ले जाओ خُذُوهُ فَاعْتِلُوهُ إِلَى سَوَاء الْجَحِيمِ
48 फिर उसके सर पर खौलते हुए पानी का अज़ाब डालो फिर उससे ताआनन कहा जाएगा अब मज़ा चखो ثُمَّ صُبُّوا فَوْقَ رَأْسِهِ مِنْ عَذَابِ الْحَمِيمِ
49 बेशक तू तो बड़ा इज्ज़त वाला सरदार है ذُقْ إِنَّكَ أَنتَ الْعَزِيزُ الْكَرِيمُ
50 ये वही दोज़ख़ तो है जिसमें तुम लोग शक़ किया करते थे إِنَّ هَذَا مَا كُنتُم بِهِ تَمْتَرُونَ
51 बेशक परहेज़गार लोग अमन की जगह إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي مَقَامٍ أَمِينٍ
52 (यानि) बाग़ों और चश्मों में होंगे فِي جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ
53 रेशम की कभी बारीक़ और कभी दबीज़ पोशाकें पहने हुए एक दूसरे के आमने सामने बैठे होंगे يَلْبَسُونَ مِن سُندُسٍ وَإِسْتَبْرَقٍ مُّتَقَابِلِينَ
54 ऐसा ही होगा और हम बड़ी बड़ी ऑंखों वाली हूरों से उनके जोड़े लगा देंगे كَذَلِكَ وَزَوَّجْنَاهُم بِحُورٍ عِينٍ
55 वहाँ इत्मेनान से हर किस्म के मेवे मंगवा कर खायेंगे يَدْعُونَ فِيهَا بِكُلِّ فَاكِهَةٍ آمِنِينَ
56 वहाँ पहली दफ़ा की मौत के सिवा उनको मौत की तलख़ी चख़नी ही न पड़ेगी और ख़ुदा उनको दोज़ख़ के अज़ाब से महफूज़ रखेगा لَا يَذُوقُونَ فِيهَا الْمَوْتَ إِلَّا الْمَوْتَةَ الْأُولَى وَوَقَاهُمْ عَذَابَ الْجَحِيمِ
57 (ये) तुम्हारे परवरदिगार का फज़ल है यही तो बड़ी कामयाबी है فَضْلًا مِّن رَّبِّكَ ذَلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ
58 तो हमने इस क़ुरान को तुम्हारी ज़बान में (इसलिए) आसान कर दिया है ताकि ये लोग नसीहत पकड़ें तो فَإِنَّمَا يَسَّرْنَاهُ بِلِسَانِكَ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ
59 (नतीजे के) तुम भी मुन्तज़िर रहो ये लोग भी मुन्तज़िर हैं فَارْتَقِبْ إِنَّهُم مُّرْتَقِبُونَ
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