1 |
हा मीम |
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حم |
2 |
ऐन सीन काफ़ |
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عسق |
3 |
(ऐ रसूल) ग़ालिब व दाना ख़ुदा तुम्हारी तरफ़ और जो (पैग़म्बर) तुमसे पहले गुज़रे उनकी तरफ यूँ ही वही भेजता रहता है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है ग़रज़ सब कुछ उसी का है |
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كَذَلِكَ يُوحِي إِلَيْكَ وَإِلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِكَ اللَّهُ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ |
4 |
और वह तो (बड़ा) आलीशान (और) बुर्ज़ुग है |
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لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيمُ |
5 |
(उनकी बातों से) क़रीब है कि सारे आसमान (उसकी हैबत के मारे) अपने ऊपर वार से फट पड़े और फ़रिश्ते तो अपने परवरदिगार की तारीफ़ के साथ तसबीह करते हैं और जो लोग ज़मीन में हैं उनके लिए (गुनाहों की) माफी माँगा करते हैं सुन रखो कि ख़ुदा ही यक़ीनन बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है |
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تَكَادُ السَّمَاوَاتُ يَتَفَطَّرْنَ مِن فَوْقِهِنَّ وَالْمَلَائِكَةُ يُسَبِّحُونَ بِحَمْدِ رَبِّهِمْ وَيَسْتَغْفِرُونَ لِمَن فِي الْأَرْضِ أَلَا إِنَّ اللَّهَ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ |
6 |
और जिन लोगों ने ख़ुदा को छोड़ कर (और) अपने सरपरस्त बना रखे हैं ख़ुदा उनकी निगरानी कर रहा है (ऐ रसूल) तुम उनके निगेहबान नहीं हो |
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وَالَّذِينَ اتَّخَذُوا مِن دُونِهِ أَولِيَاء اللَّهُ حَفِيظٌ عَلَيْهِمْ وَمَا أَنتَ عَلَيْهِم بِوَكِيلٍ |
7 |
और हमने तुम्हारे पास अरबी क़ुरान यूँ भेजा ताकि तुम मक्का वालों को और जो लोग इसके इर्द गिर्द रहते हैं उनको डराओ और (उनको) क़यामत के दिन से भी डराओ जिस (के आने) में कुछ भी शक़ नहीं (उस दिन) एक फरीक़ (मानने वाला) जन्नत में होगा और फरीक़ (सानी) दोज़ख़ में |
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وَكَذَلِكَ أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ قُرْآنًا عَرَبِيًّا لِّتُنذِرَ أُمَّ الْقُرَى وَمَنْ حَوْلَهَا وَتُنذِرَ يَوْمَ الْجَمْعِ لَا رَيْبَ فِيهِ فَرِيقٌ فِي الْجَنَّةِ وَفَرِيقٌ فِي السَّعِير |
8 |
और अगर ख़ुदा चाहता तो इन सबको एक ही गिरोह बना देता मगर वह तो जिसको चाहता है (हिदायत करके) अपनी रहमत में दाख़िल कर लेता है और ज़ालिमों का तो (उस दिन) न कोई यार है और न मददगार |
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وَلَوْ شَاء اللَّهُ لَجَعَلَهُمْ أُمَّةً وَاحِدَةً وَلَكِن يُدْخِلُ مَن يَشَاء فِي رَحْمَتِهِ وَالظَّالِمُونَ مَا لَهُم مِّن وَلِيٍّ وَلَا نَصِيرٍ |
9 |
क्या उन लोगों ने ख़ुदा के सिवा (दूसरे) कारसाज़ बनाए हैं तो कारसाज़ बस ख़ुदा ही है और वही मुर्दों को ज़िन्दा करेगा और वही हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है |
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أَمِ اتَّخَذُوا مِن دُونِهِ أَوْلِيَاء فَاللَّهُ هُوَ الْوَلِيُّ وَهُوَ يُحْيِي المَوْتَى وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ |
10 |
और तुम लोग जिस चीज़ में बाहम एख्तेलाफ़ात रखते हो उसका फैसला ख़ुदा ही के हवाले है वही ख़ुदा तो मेरा परवरदिगार है मैं उसी पर भरोसा रखता हूँ और उसी की तरफ रूजू करता हूँ |
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وَمَا اخْتَلَفْتُمْ فِيهِ مِن شَيْءٍ فَحُكْمُهُ إِلَى اللَّهِ ذَلِكُمُ اللَّهُ رَبِّي عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ وَإِلَيْهِ أُنِيبُ |
11 |
सारे आसमान व ज़मीन का पैदा करने वाला (वही) है उसी ने तुम्हारे लिए तुम्हारी ही जिन्स के जोड़े बनाए और चारपायों के जोड़े भी (उसी ने बनाए) उस (तरफ) में तुमको फैलाता रहता है कोई चीज़ उसकी मिसल नहीं और वह हर चीज़ को सुनता देखता है |
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فَاطِرُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ جَعَلَ لَكُم مِّنْ أَنفُسِكُمْ أَزْوَاجًا وَمِنَ الْأَنْعَامِ أَزْوَاجًا يَذْرَؤُكُمْ فِيهِ لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَيْءٌ وَهُوَ السَّمِيعُ البَصِيرُ |
12 |
सारे आसमान व ज़मीन की कुन्जियाँ उसके पास हैं जिसके लिए चाहता है रोज़ी को फराख़ कर देता है (जिसके लिए) चाहता है तंग कर देता है बेशक वह हर चीज़ से ख़ूब वाक़िफ़ है |
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لَهُ مَقَالِيدُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَن يَشَاء وَيَقْدِرُ إِنَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ |
13 |
उसने तुम्हारे लिए दीन का वही रास्ता मुक़र्रर किया जिस (पर चलने का) नूह को हुक्म दिया था और (ऐ रसूल) उसी की हमने तुम्हारे पास वही भेजी है और उसी का इब्राहीम और मूसा और ईसा को भी हुक्म दिया था (वह) ये (है कि) दीन को क़ायम रखना और उसमें तफ़रक़ा न डालना जिस दीन की तरफ तुम मुशरेकीन को बुलाते हो वह उन पर बहुत शाक़ ग़ुज़रता है ख़ुदा जिसको चाहता है अपनी बारगाह का बरगुज़ीदा कर लेता है और जो उसकी तरफ रूजू करे (अपनी तरफ़ (पहुँचने) का रास्ता दिखा देता है |
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شَرَعَ لَكُم مِّنَ الدِّينِ مَا وَصَّى بِهِ نُوحًا وَالَّذِي أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ وَمَا وَصَّيْنَا بِهِ إِبْرَاهِيمَ وَمُوسَى وَعِيسَى أَنْ أَقِيمُوا الدِّينَ وَلَا تَتَفَرَّقُوا فِيهِ كَبُرَ عَلَى الْمُشْرِكِينَ مَا تَدْعُوهُمْ إِلَيْهِ اللَّهُ يَجْتَبِي إِلَيْهِ مَن يَشَاء وَيَهْدِي إِلَيْهِ مَن يُنِيبُ |
14 |
और ये लोग मुतफ़र्रिक़ हुए भी तो इल्म (हक़) आ चुकने के बाद और (वह भी) महज़ आपस की ज़िद से और अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से एक वक्ते मुक़र्रर तक के लिए (क़यामत का) वायदा न हो चुका होता तो उनमें कबका फैसला हो चुका होता और जो लोग उनके बाद (ख़ुदा की) किताब के वारिस हुए वह उसकी तरफ से बहुत सख्त शुबहे में (पड़े हुए) हैं |
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وَمَا تَفَرَّقُوا إِلَّا مِن بَعْدِ مَا جَاءهُمُ الْعِلْمُ بَغْيًا بَيْنَهُمْ وَلَوْلَا كَلِمَةٌ سَبَقَتْ مِن رَّبِّكَ إِلَى أَجَلٍ مُّسَمًّى لَّقُضِيَ بَيْنَهُمْ وَإِنَّ الَّذِينَ أُورِثُوا الْكِتَابَ مِن بَعْدِهِمْ لَفِي شَكٍّ مِّنْهُ مُرِيبٍ |
15 |
तो (ऐ रसूल) तुम (लोगों को) उसी (दीन) की तरफ बुलाते रहे जो और जैसा तुमको हुक्म हुआ है (उसी पर क़ायम रहो और उनकी नफ़सियानी ख्वाहिशों की पैरवी न करो और साफ़ साफ़ कह दो कि जो किताब ख़ुदा ने नाज़िल की है उस पर मैं ईमान रखता हूँ और मुझे हुक्म हुआ है कि मैं तुम्हारे एख्तेलाफात के (दरमेयान) इन्साफ़ (से फ़ैसला) करूँ ख़ुदा ही हमारा भी परवरदिगार है और वही तुम्हारा भी परवरदिगार है हमारी कारगुज़ारियाँ हमारे ही लिए हैं और तुम्हारी कारस्तानियाँ तुम्हारे वास्ते हममें और तुममें तो कुछ हुज्जत (व तक़रार की ज़रूरत) नहीं ख़ुदा ही हम (क़यामत में) सबको इकट्ठा करेगा |
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فَلِذَلِكَ فَادْعُ وَاسْتَقِمْ كَمَا أُمِرْتَ وَلَا تَتَّبِعْ أَهْوَاءهُمْ وَقُلْ آمَنتُ بِمَا أَنزَلَ اللَّهُ مِن كِتَابٍ وَأُمِرْتُ لِأَعْدِلَ بَيْنَكُمُ اللَّهُ رَبُّنَا وَرَبُّكُمْ لَنَا أَعْمَالُنَا وَلَكُمْ أَعْمَالُكُمْ لَا حُجَّةَ بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمُ اللَّهُ يَجْمَعُ بَيْنَنَا وَإِلَيْهِ الْمَصِيرُ |
16 |
और उसी की तरफ लौट कर जाना है और जो लोग उसके मान लिए जाने के बाद ख़ुदा के बारे में (ख्वाहमख्वाह) झगड़ा करते हैं उनके परवरदिगार के नज़दीक उनकी दलील लग़ो बातिल है और उन पर (ख़ुदा का) ग़ज़ब और उनके लिए सख्त अज़ाब है |
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وَالَّذِينَ يُحَاجُّونَ فِي اللَّهِ مِن بَعْدِ مَا اسْتُجِيبَ لَهُ حُجَّتُهُمْ دَاحِضَةٌ عِندَ رَبِّهِمْ وَعَلَيْهِمْ غَضَبٌ وَلَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ |
17 |
ख़ुदा ही तो है जिसने सच्चाई के साथ किताब नाज़िल की और अदल (व इन्साफ़ भी नाज़िल किया) और तुमको क्या मालूम यायद क़यामत क़रीब ही हो |
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اللَّهُ الَّذِي أَنزَلَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ وَالْمِيزَانَ وَمَا يُدْرِيكَ لَعَلَّ السَّاعَةَ قَرِيبٌ |
18 |
(फिर ये ग़फ़लत कैसी) जो लोग इस पर ईमान नहीं रखते वह तो इसके लिए जल्दी कर रहे हैं और जो मोमिन हैं वह उससे डरते हैं और जानते हैं कि क़यामत यक़ीनी बरहक़ है आगाह रहो कि जो लोग क़यामत के बारे में शक़ किया करते हैं वह बड़े परले दर्जे की गुमराही में हैं |
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يَسْتَعْجِلُ بِهَا الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِهَا وَالَّذِينَ آمَنُوا مُشْفِقُونَ مِنْهَا وَيَعْلَمُونَ أَنَّهَا الْحَقُّ أَلَا إِنَّ الَّذِينَ يُمَارُونَ فِي السَّاعَةِ لَفِي ضَلَالٍ بَعِيدٍ |
19 |
और ख़ुदा अपने बन्दों (के हाल) पर बड़ा मेहरबान है जिसको (जितनी) रोज़ी चाहता है देता है वह ज़ोर वाला ज़बरदस्त है |
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اللَّهُ لَطِيفٌ بِعِبَادِهِ يَرْزُقُ مَن يَشَاء وَهُوَ الْقَوِيُّ العَزِيزُ |
20 |
जो शख़्श आखेरत की खेती का तालिब हो हम उसके लिए उसकी खेती में अफ़ज़ाइश करेंगे और दुनिया की खेती का ख़ास्तगार हो तो हम उसको उसी में से देंगे मगर आखेरत में फिर उसका कुछ हिस्सा न होगा |
/content/ayah/audio/hudhaify/042020.mp3
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مَن كَانَ يُرِيدُ حَرْثَ الْآخِرَةِ نَزِدْ لَهُ فِي حَرْثِهِ وَمَن كَانَ يُرِيدُ حَرْثَ الدُّنْيَا نُؤتِهِ مِنْهَا وَمَا لَهُ فِي الْآخِرَةِ مِن نَّصِيبٍ |
21 |
क्या उन लोगों के (बनाए हुए) ऐसे शरीक हैं जिन्होंने उनके लिए ऐसा दीन मुक़र्रर किया है जिसकी ख़ुदा ने इजाज़त नहीं दी और अगर फ़ैसले (के दिन) का वायदा न होता तो उनमें यक़ीनी अब तक फैसला हो चुका होता और ज़ालिमों के वास्ते ज़रूर दर्दनाक अज़ाब है |
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أَمْ لَهُمْ شُرَكَاء شَرَعُوا لَهُم مِّنَ الدِّينِ مَا لَمْ يَأْذَن بِهِ اللَّهُ وَلَوْلَا كَلِمَةُ الْفَصْلِ لَقُضِيَ بَيْنَهُمْ وَإِنَّ الظَّالِمِينَ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ |
22 |
(क़यामत के दिन) देखोगे कि ज़ालिम लोग अपने आमाल (के वबाल) से डर रहे होंगे और वह उन पर पड़ कर रहेगा और जिन्होने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे काम किए वह बेहिश्त के बाग़ों में होंगे वह जो कुछ चाहेंगे उनके लिए उनके परवरदिगार की बारगाह में (मौजूद) है यही तो (ख़ुदा का) बड़ा फज़ल है |
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تَرَى الظَّالِمِينَ مُشْفِقِينَ مِمَّا كَسَبُوا وَهُوَ وَاقِعٌ بِهِمْ وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ فِي رَوْضَاتِ الْجَنَّاتِ لَهُم مَّا يَشَاؤُونَ عِندَ رَبِّهِمْ ذَلِكَ هُوَ الْفَضْلُ الكَبِيرُ |
23 |
यही (ईनाम) है जिसकी ख़ुदा अपने उन बन्दों को ख़ुशख़बरी देता है जो ईमान लाए और नेक काम करते रहे (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं इस (तबलीग़े रिसालत) का अपने क़रातबदारों (अहले बैत) की मोहब्बत के सिवा तुमसे कोई सिला नहीं मांगता और जो शख़्श नेकी हासिल करेगा हम उसके लिए उसकी ख़ूबी में इज़ाफा कर देंगे बेशक वह बड़ा बख्शने वाला क़दरदान है |
/content/ayah/audio/hudhaify/042023.mp3
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ذَلِكَ الَّذِي يُبَشِّرُ اللَّهُ عِبَادَهُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ قُل لَّا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ أَجْرًا إِلَّا الْمَوَدَّةَ فِي الْقُرْبَى وَمَن يَقْتَرِفْ حَسَنَةً نَّزِدْ لَهُ فِيهَا حُسْنًا إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ شَكُورٌ |
24 |
क्या ये लोग (तुम्हारी निस्बत कहते हैं कि इस (रसूल) ने ख़ुदा पर झूठा बोहतान बाँधा है तो अगर (ऐसा) होता तो) ख़ुदा चाहता तो तुम्हारे दिल पर मोहर लगा देता (कि तुम बात ही न कर सकते) और ख़ुदा तो झूठ को नेस्तनाबूद और अपनी बातों से हक़ को साबित करता है वह यक़ीनी दिलों के राज़ से ख़ूब वाक़िफ है |
/content/ayah/audio/hudhaify/042024.mp3
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أَمْ يَقُولُونَ افْتَرَى عَلَى اللَّهِ كَذِبًا فَإِن يَشَأِ اللَّهُ يَخْتِمْ عَلَى قَلْبِكَ وَيَمْحُ اللَّهُ الْبَاطِلَ وَيُحِقُّ الْحَقَّ بِكَلِمَاتِهِ إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ |
25 |
और वही तो है जो अपने बन्दों की तौबा क़ुबूल करता है और गुनाहों को माफ़ करता है और तुम लोग जो कुछ भी करते हो वह जानता है |
/content/ayah/audio/hudhaify/042025.mp3
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وَهُوَ الَّذِي يَقْبَلُ التَّوْبَةَ عَنْ عِبَادِهِ وَيَعْفُو عَنِ السَّيِّئَاتِ وَيَعْلَمُ مَا تَفْعَلُونَ |
26 |
और जो लोग ईमान लाए और अच्छे अच्छे काम करते रहे उनकी (दुआ) क़ुबूल करता है फज़ल व क़रम से उनको बढ़ कर देता है और काफिरों के लिए सख्त अज़ाब है |
/content/ayah/audio/hudhaify/042026.mp3
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وَيَسْتَجِيبُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ وَيَزِيدُهُم مِّن فَضْلِهِ وَالْكَافِرُونَ لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ |
27 |
और अगर ख़ुदा ने अपने बन्दों की रोज़ी में फराख़ी कर दे तो वह लोग ज़रूर (रूए) ज़मीन से सरकशी करने लगें मगर वह तो बाक़दरे मुनासिब जिसकी रोज़ी (जितनी) चाहता है नाज़िल करता है वह बेशक अपने बन्दों से ख़बरदार (और उनको) देखता है |
/content/ayah/audio/hudhaify/042027.mp3
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وَلَوْ بَسَطَ اللَّهُ الرِّزْقَ لِعِبَادِهِ لَبَغَوْا فِي الْأَرْضِ وَلَكِن يُنَزِّلُ بِقَدَرٍ مَّا يَشَاء إِنَّهُ بِعِبَادِهِ خَبِيرٌ بَصِيرٌ |
28 |
और वही तो है जो लोगों के नाउम्मीद हो जाने के बाद मेंह बरसाता है और अपनी रहमत (बारिश की बरकतों) को फैला देता है और वही कारसाज़ (और) हम्द व सना के लायक़ है |
/content/ayah/audio/hudhaify/042028.mp3
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وَهُوَ الَّذِي يُنَزِّلُ الْغَيْثَ مِن بَعْدِ مَا قَنَطُوا وَيَنشُرُ رَحْمَتَهُ وَهُوَ الْوَلِيُّ الْحَمِيدُ |
29 |
और उसी की (क़ुदरत की) निशानियों में से सारे आसमान व ज़मीन का पैदा करना और उन जानदारों का भी जो उसने आसमान व ज़मीन में फैला रखे हैं और जब चाहे उनके जमा कर लेने पर (भी) क़ादिर है |
/content/ayah/audio/hudhaify/042029.mp3
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وَمِنْ آيَاتِهِ خَلْقُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَثَّ فِيهِمَا مِن دَابَّةٍ وَهُوَ عَلَى جَمْعِهِمْ إِذَا يَشَاء قَدِيرٌ |
30 |
और जो मुसीबत तुम पर पड़ती है वह तुम्हारे अपने ही हाथों की करतूत से और (उस पर भी) वह बहुत कुछ माफ कर देता है |
/content/ayah/audio/hudhaify/042030.mp3
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وَمَا أَصَابَكُم مِّن مُّصِيبَةٍ فَبِمَا كَسَبَتْ أَيْدِيكُمْ وَيَعْفُو عَن كَثِيرٍ |
31 |
और तुम लोग ज़मीन में (रह कर) तो ख़ुदा को किसी तरह हरा नहीं सकते और ख़ुदा के सिवा तुम्हारा न कोई दोस्त है और न मददगार |
/content/ayah/audio/hudhaify/042031.mp3
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وَمَا أَنتُم بِمُعْجِزِينَ فِي الْأَرْضِ وَمَا لَكُم مِّن دُونِ اللَّهِ مِن وَلِيٍّ وَلَا نَصِيرٍ |
32 |
और उसी की (क़ुदरत) की निशानियों में से समन्दर में (चलने वाले) (बादबानी जहाज़) है जो गोया पहाड़ हैं |
/content/ayah/audio/hudhaify/042032.mp3
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وَمِنْ آيَاتِهِ الْجَوَارِ فِي الْبَحْرِ كَالْأَعْلَامِ |
33 |
अगर ख़ुदा चाहे तो हवा को ठहरा दे तो जहाज़ भी समन्दर की सतह पर (खड़े के खड़े) रह जाएँ बेशक तमाम सब्र और शुक्र करने वालों के वास्ते इन बातों में (ख़ुदा की क़ुदरत की) बहुत सी निशानियाँ हैं |
/content/ayah/audio/hudhaify/042033.mp3
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إِن يَشَأْ يُسْكِنِ الرِّيحَ فَيَظْلَلْنَ رَوَاكِدَ عَلَى ظَهْرِهِ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِّكُلِّ صَبَّارٍ شَكُورٍ |
34 |
(या वह चाहे तो) उनको उनके आमाल (बद) के सबब तबाह कर दे |
/content/ayah/audio/hudhaify/042034.mp3
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أَوْ يُوبِقْهُنَّ بِمَا كَسَبُوا وَيَعْفُ عَن كَثِيرٍ |
35 |
और वह बहुत कुछ माफ़ करता है और जो लोग हमारी निशानियों में (ख्वाहमाख्वाह) झगड़ा करते हैं वह अच्छी तरह समझ लें कि उनको किसी तरह (अज़ाब से) छुटकारा नहीं |
/content/ayah/audio/hudhaify/042035.mp3
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وَيَعْلَمَ الَّذِينَ يُجَادِلُونَ فِي آيَاتِنَا مَا لَهُم مِّن مَّحِيصٍ |
36 |
(लोगों) तुमको जो कुछ (माल) दिया गया है वह दुनिया की ज़िन्दगी का (चन्द रोज़) साज़ोसामान है और जो कुछ ख़ुदा के यहाँ है वह कहीं बेहतर और पायदार है (मगर ये) ख़ास उन ही लोगों के लिए है जो ईमान लाए और अपने परवरदिगार पर भरोसा रखते हैं |
/content/ayah/audio/hudhaify/042036.mp3
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فَمَا أُوتِيتُم مِّن شَيْءٍ فَمَتَاعُ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَمَا عِندَ اللَّهِ خَيْرٌ وَأَبْقَى لِلَّذِينَ آمَنُوا وَعَلَى رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُونَ |
37 |
और जो लोग बड़े बड़े गुनाहों और बेहयाई की बातों से बचे रहते हैं और ग़ुस्सा आ जाता है तो माफ कर देते हैं |
/content/ayah/audio/hudhaify/042037.mp3
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وَالَّذِينَ يَجْتَنِبُونَ كَبَائِرَ الْإِثْمِ وَالْفَوَاحِشَ وَإِذَا مَا غَضِبُوا هُمْ يَغْفِرُونَ |
38 |
और जो अपने परवरदिगार का हुक्म मानते हैं और नमाज़ पढ़ते हैं और उनके कुल काम आपस के मशवरे से होते हैं और जो कुछ हमने उन्हें अता किया है उसमें से (राहे ख़ुदा में) ख़र्च करते हैं |
/content/ayah/audio/hudhaify/042038.mp3
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وَالَّذِينَ اسْتَجَابُوا لِرَبِّهِمْ وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ وَأَمْرُهُمْ شُورَى بَيْنَهُمْ وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنفِقُونَ |
39 |
और (वह ऐसे हैं) कि जब उन पर किसी किस्म की ज्यादती की जाती है तो बस वाजिबी बदला ले लेते हैं |
/content/ayah/audio/hudhaify/042039.mp3
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وَالَّذِينَ إِذَا أَصَابَهُمُ الْبَغْيُ هُمْ يَنتَصِرُونَ |
40 |
और बुराई का बदला तो वैसी ही बुराई है उस पर भी जो शख्स माफ कर दे और (मामले की) इसलाह कर दें तो इसका सवाब ख़ुदा के ज़िम्मे है बेशक वह ज़ुल्म करने वालों को पसन्द नहीं करता |
/content/ayah/audio/hudhaify/042040.mp3
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وَجَزَاء سَيِّئَةٍ سَيِّئَةٌ مِّثْلُهَا فَمَنْ عَفَا وَأَصْلَحَ فَأَجْرُهُ عَلَى اللَّهِ إِنَّهُ لَا يُحِبُّ الظَّالِمِينَ |
41 |
और जिस पर ज़ुल्म हुआ हो अगर वह उसके बाद इन्तेक़ाम ले तो ऐसे लोगों पर कोई इल्ज़ाम नहीं |
/content/ayah/audio/hudhaify/042041.mp3
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وَلَمَنِ انتَصَرَ بَعْدَ ظُلْمِهِ فَأُوْلَئِكَ مَا عَلَيْهِم مِّن سَبِيلٍ |
42 |
इल्ज़ाम तो बस उन्हीं लोगों पर होगा जो लोगों पर ज़ुल्म करते हैं और रूए ज़मीन में नाहक़ ज्यादतियाँ करते फिरते हैं उन्हीं लोगों के लिए दर्दनाक अज़ाब है |
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إِنَّمَا السَّبِيلُ عَلَى الَّذِينَ يَظْلِمُونَ النَّاسَ وَيَبْغُونَ فِي الْأَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ أُوْلَئِكَ لَهُم عَذَابٌ أَلِيمٌ |
43 |
और जो सब्र करे और कुसूर माफ़ कर दे तो बेशक ये बड़े हौसले के काम हैं |
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وَلَمَن صَبَرَ وَغَفَرَ إِنَّ ذَلِكَ لَمِنْ عَزْمِ الْأُمُورِ |
44 |
और जिसको ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे तो उसके बाद उसका कोई सरपरस्त नहीं और तुम ज़ालिमों को देखोगे कि जब (दोज़ख़) का अज़ाब देखेंगे तो कहेंगे कि भला (दुनिया में) फिर लौट कर जाने की कोई सबील है |
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وَمَن يُضْلِلِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِن وَلِيٍّ مِّن بَعْدِهِ وَتَرَى الظَّالِمِينَ لَمَّا رَأَوُا الْعَذَابَ يَقُولُونَ هَلْ إِلَى مَرَدٍّ مِّن سَبِيلٍ |
45 |
और तुम उनको देखोगे कि दोज़ख़ के सामने लाए गये हैं (और) ज़िल्लत के मारे कटे जाते हैं (और) कनक्खियों से देखे जाते हैं और मोमिनीन कहेंगे कि हकीक़त में वही बड़े घाटे में हैं जिन्होने क़यामत के दिन अपने आप को और अपने घर वालों को ख़सारे में डाला देखो ज़ुल्म करने वाले दाएमी अज़ाब में रहेंगे |
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وَتَرَاهُمْ يُعْرَضُونَ عَلَيْهَا خَاشِعِينَ مِنَ الذُّلِّ يَنظُرُونَ مِن طَرْفٍ خَفِيٍّ وَقَالَ الَّذِينَ آمَنُوا إِنَّ الْخَاسِرِينَ الَّذِينَ خَسِرُوا أَنفُسَهُمْ وَأَهْلِيهِمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ أَلَا إِنَّ الظَّالِمِينَ فِي عَذَابٍ مُّقِيمٍ |
46 |
और ख़ुदा के सिवा न उनके सरपरस्त ही होंगे जो उनकी मदद को आएँ और जिसको ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे तो उसके लिए (हिदायत की) कोई राह नहीं |
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وَمَا كَانَ لَهُم مِّنْ أَوْلِيَاء يَنصُرُونَهُم مِّن دُونِ اللَّهِ وَمَن يُضْلِلِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِن سَبِيلٍ |
47 |
(लोगों) उस दिन के पहले जो ख़ुदा की तरफ से आयेगा और किसी तरह (टाले न टलेगा) अपने परवरदिगार का हुक्म मान लो (क्यों कि) उस दिन न तो तुमको कहीं पनाह की जगह मिलेगी और न तुमसे (गुनाह का) इन्कार ही बन पड़ेगा |
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اسْتَجِيبُوا لِرَبِّكُم مِّن قَبْلِ أَن يَأْتِيَ يَوْمٌ لَّا مَرَدَّ لَهُ مِنَ اللَّهِ مَا لَكُم مِّن مَّلْجَأٍ يَوْمَئِذٍ وَمَا لَكُم مِّن نَّكِيرٍ |
48 |
फिर अगर मुँह फेर लें तो (ऐ रसूल) हमने तुमको उनका निगेहबान बनाकर नहीं भेजा तुम्हारा काम तो सिर्फ (एहकाम का) पहुँचा देना है और जब हम इन्सान को अपनी रहमत का मज़ा चखाते हैं तो वह उससे ख़ुश हो जाता है और अगर उनको उन्हीं के हाथों की पहली करतूतों की बदौलत कोई तकलीफ पहुँचती (सब एहसान भूल गए) बेशक इन्सान बड़ा नाशुक्रा है |
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فَإِنْ أَعْرَضُوا فَمَا أَرْسَلْنَاكَ عَلَيْهِمْ حَفِيظًا إِنْ عَلَيْكَ إِلَّا الْبَلَاغُ وَإِنَّا إِذَا أَذَقْنَا الْإِنسَانَ مِنَّا رَحْمَةً فَرِحَ بِهَا وَإِن تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ فَإِنَّ الْإِنسَانَ كَفُورٌ |
49 |
सारे आसमान व ज़मीन की हुकूमत ख़ास ख़ुदा ही की है जो चाहता है पैदा करता है (और) जिसे चाहता है (फ़क़त) बेटियाँ देता है और जिसे चाहता है (महज़) बेटा अता करता है |
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لِلَّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ يَخْلُقُ مَا يَشَاء يَهَبُ لِمَنْ يَشَاء إِنَاثًا وَيَهَبُ لِمَن يَشَاء الذُّكُورَ |
50 |
या उनको बेटे बेटियाँ (औलाद की) दोनों किस्में इनायत करता है और जिसको चाहता है बांझ बना देता है बेशक वह बड़ा वाकिफ़कार क़ादिर है |
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أَوْ يُزَوِّجُهُمْ ذُكْرَانًا وَإِنَاثًا وَيَجْعَلُ مَن يَشَاء عَقِيمًا إِنَّهُ عَلِيمٌ قَدِيرٌ |
51 |
और किसी आदमी के लिए ये मुमकिन नहीं कि ख़ुदा उससे बात करे मगर वही के ज़रिए से (जैसे) (दाऊद) परदे के पीछे से जैसे (मूसा) या कोई फ़रिश्ता भेज दे (जैसे मोहम्मद) ग़रज़ वह अपने एख्तेयार से जो चाहता है पैग़ाम भेज देता है बेशक वह आलीशान हिकमत वाला है |
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وَمَا كَانَ لِبَشَرٍ أَن يُكَلِّمَهُ اللَّهُ إِلَّا وَحْيًا أَوْ مِن وَرَاء حِجَابٍ أَوْ يُرْسِلَ رَسُولًا فَيُوحِيَ بِإِذْنِهِ مَا يَشَاء إِنَّهُ عَلِيٌّ حَكِيمٌ |
52 |
और इसी तरह हमने अपने हुक्म को रूह (क़ुरान) तुम्हारी तरफ 'वही' के ज़रिए से भेजे तो तुम न किताब ही को जानते थे कि क्या है और न ईमान को मगर इस (क़ुरान) को एक नूर बनाया है कि इससे हम अपने बन्दों में से जिसकी चाहते हैं हिदायत करते हैं और इसमें शक़ नहीं कि तुम (ऐ रसूल) सीधा ही रास्ता दिखाते हो |
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وَكَذَلِكَ أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ رُوحًا مِّنْ أَمْرِنَا مَا كُنتَ تَدْرِي مَا الْكِتَابُ وَلَا الْإِيمَانُ وَلَكِن جَعَلْنَاهُ نُورًا نَّهْدِي بِهِ مَنْ نَّشَاء مِنْ عِبَادِنَا وَإِنَّكَ لَتَهْدِي إِلَى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ |
53 |
(यानि) उसका रास्ता कि जो आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) उसी का है सुन रखो सब काम ख़ुदा ही की तरफ रूजू होंगे और वही फैसला करेगा |
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صِرَاطِ اللَّهِ الَّذِي لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ أَلَا إِلَى اللَّهِ تَصِيرُ الأمُورُ |