Al-i'Imran

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Hindi: Suhel Farooq Khan and Saifur Rahman Nadwi

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# Translation Ayah
1 अलिफ़ लाम मीम الم
2 अल्लाह ही वह (ख़ुदा) है जिसके सिवा कोई क़ाबिले परस्तिश नहीं है वही ज़िन्दा (और) सारे जहान का सॅभालने वाला है اللّهُ لا إِلَـهَ إِلاَّ هُوَ الْحَيُّ الْقَيُّومُ
3 (ऐ रसूल) उसी ने तुम पर बरहक़ किताब नाज़िल की जो (आसमानी किताबें पहले से) उसके सामने मौजूद हैं उनकी तसदीक़ करती है और उसी ने उससे पहले लोगों की हिदायत के वास्ते तौरेत व इन्जील नाज़िल की نَزَّلَ عَلَيْكَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ مُصَدِّقاً لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ وَأَنزَلَ التَّوْرَاةَ وَالإِنجِيلَ
4 और हक़ व बातिल में तमीज़ देने वाली किताब (कुरान) नाज़िल की बेशक जिन लोगों ने ख़ुदा की आयतों को न माना उनके लिए सख्त अज़ाब है और ख़ुदा हर चीज़ पर ग़ालिब बदला लेने वाला है مِن قَبْلُ هُدًى لِّلنَّاسِ وَأَنزَلَ الْفُرْقَانَ إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ بِآيَاتِ اللّهِ لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ وَاللّهُ عَزِيزٌ ذُو انتِقَامٍ
5 बेशक ख़ुदा पर कोई चीज़ पोशीदा नहीं है (न) ज़मीन में न आसमान में إِنَّ اللّهَ لاَ يَخْفَىَ عَلَيْهِ شَيْءٌ فِي الأَرْضِ وَلاَ فِي السَّمَاء
6 वही तो वह ख़ुदा है जो माँ के पेट में तुम्हारी सूरत जैसी चाहता है बनाता हे उसके सिवा कोई माबूद नहीं هُوَ الَّذِي يُصَوِّرُكُمْ فِي الأَرْحَامِ كَيْفَ يَشَاء لاَ إِلَـهَ إِلاَّ هُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ
7 वही (हर चीज़ पर) ग़ालिब और दाना है (ए रसूल) वही (वह ख़ुदा) है जिसने तुमपर किताब नाज़िल की उसमें की बाज़ आयतें तो मोहकम (बहुत सरीह) हैं वही (अमल करने के लिए) असल (व बुनियाद) किताब है और कुछ (आयतें) मुतशाबेह (मिलती जुलती) (गोल गोल जिसके मायने में से पहलू निकल सकते हैं) पस जिन लोगों के दिलों में कज़ी है वह उन्हीं आयतों के पीछे पड़े रहते हैं जो मुतशाबेह हैं ताकि फ़साद बरपा करें और इस ख्याल से कि उन्हें मतलब पर ढाले लें हालाँकि ख़ुदा और उन लोगों के सिवा जो इल्म से बड़े पाए पर फ़ायज़ हैं उनका असली मतलब कोई नहीं जानता वह लोग (ये भी) कहते हैं कि हम उस पर ईमान लाए (यह) सब (मोहकम हो या मुतशाबेह) हमारे परवरदिगार की तरफ़ से है और अक्ल वाले ही समझते हैं هُوَ الَّذِيَ أَنزَلَ عَلَيْكَ الْكِتَابَ مِنْهُ آيَاتٌ مُّحْكَمَاتٌ هُنَّ أُمُّ الْكِتَابِ وَأُخَرُ مُتَشَابِهَاتٌ فَأَمَّا الَّذِينَ في قُلُوبِهِمْ زَيْغٌ فَيَتَّبِعُونَ مَا تَشَابَهَ مِنْهُ ابْتِغَاء الْفِتْنَةِ وَابْتِغَاء تَأْوِيلِهِ وَمَا يَعْلَمُ تَأْوِيلَهُ إِلاَّ اللّهُ وَالرَّاسِخُونَ فِي الْعِلْمِ يَقُولُونَ آمَنَّا بِهِ كُلٌّ مِّنْ عِندِ رَبِّنَا وَمَا يَذَّكَّرُ إِلاَّ أُوْلُواْ الألْبَابِ
8 (और दुआ करते हैं) ऐ हमारे पालने वाले हमारे दिल को हिदायत करने के बाद डॉवाडोल न कर और अपनी बारगाह से हमें रहमत अता फ़रमा इसमें तो शक ही नहीं कि तू बड़ा देने वाला है رَبَّنَا لاَ تُزِغْ قُلُوبَنَا بَعْدَ إِذْ هَدَيْتَنَا وَهَبْ لَنَا مِن لَّدُنكَ رَحْمَةً إِنَّكَ أَنتَ الْوَهَّابُ
9 ऐ हमारे परवरदिगार बेशक तू एक न एक दिन जिसके आने में शुबह नहीं लोगों को इक्ट्ठा करेगा (तो हम पर नज़रे इनायत रहे) बेशक ख़ुदा अपने वायदे के ख़िलाफ़ नहीं करता رَبَّنَا إِنَّكَ جَامِعُ النَّاسِ لِيَوْمٍ لاَّ رَيْبَ فِيهِ إِنَّ اللّهَ لاَ يُخْلِفُ الْمِيعَادَ
10 बेशक जिन लोगों ने कुफ्र किया इख्तेयार किया उनको ख़ुदा (के अज़ाब) से न उनके माल ही कुछ बचाएंगे, न उनकी औलाद (कुछ काम आएगी) और यही लोग जहन्नुम के ईधन होंगे إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ لَن تُغْنِيَ عَنْهُمْ أَمْوَالُهُمْ وَلاَ أَوْلاَدُهُم مِّنَ اللّهِ شَيْئًا وَأُولَـئِكَ هُمْ وَقُودُ النَّارِ
11 (उनकी भी) क़ौमे फ़िरऔन और उनसे पहले वालों की सी हालत है कि उन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया तो खुदा ने उन्हें उनके गुनाहों की पादाश (सज़ा) में ले डाला और ख़ुदा सख्त सज़ा देने वाला है كَدَأْبِ آلِ فِرْعَوْنَ وَالَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ كَذَّبُواْ بِآيَاتِنَا فَأَخَذَهُمُ اللّهُ بِذُنُوبِهِمْ وَاللّهُ شَدِيدُ الْعِقَابِ
12 (ऐ रसूल) जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तेयार किया उनसे कह दो कि बहुत जल्द तुम (मुसलमानो के मुक़ाबले में) मग़लूब (हारे हुए) होंगे और जहन्नुम में इकट्ठे किये जाओगे और वह (क्या) बुरा ठिकाना है قُل لِّلَّذِينَ كَفَرُواْ سَتُغْلَبُونَ وَتُحْشَرُونَ إِلَى جَهَنَّمَ وَبِئْسَ الْمِهَادُ
13 बेशक तुम्हारे (समझाने के) वास्ते उन दो (मुख़ालिफ़ गिरोहों में जो (बद्र की लड़ाई में) एक दूसरे के साथ गुथ गए (रसूल की सच्चाई की) बड़ी भारी निशानी है कि एक गिरोह ख़ुदा की राह में जेहाद करता था और दूसरा काफ़िरों का जिनको मुसलमान अपनी ऑख से दुगना देख रहे थे (मगर ख़ुदा ने क़लील ही को फ़तह दी) और ख़ुदा अपनी मदद से जिस की चाहता है ताईद करता है बेशक ऑख वालों के वास्ते इस वाक़ये में बड़ी इबरत है قَدْ كَانَ لَكُمْ آيَةٌ فِي فِئَتَيْنِ الْتَقَتَا فِئَةٌ تُقَاتِلُ فِي سَبِيلِ اللّهِ وَأُخْرَى كَافِرَةٌ يَرَوْنَهُم مِّثْلَيْهِمْ رَأْيَ الْعَيْنِ وَاللّهُ يُؤَيِّدُ بِنَصْرِهِ مَن يَشَاء إِنَّ فِي ذَلِكَ لَعِبْرَةً لَّأُوْلِي الأَبْصَارِ
14 दुनिया में लोगों को उनकी मरग़ूब चीज़े (मसलन) बीवियों और बेटों और सोने चॉदी के बड़े बड़े लगे हुए ढेरों और उम्दा उम्दा घोड़ों और मवेशियों ओर खेती के साथ उलफ़त भली करके दिखा दी गई है ये सब दुनयावी ज़िन्दगी के (चन्द रोज़ा) फ़ायदे हैं और (हमेशा का) अच्छा ठिकाना तो ख़ुदा ही के यहॉ है زُيِّنَ لِلنَّاسِ حُبُّ الشَّهَوَاتِ مِنَ النِّسَاء وَالْبَنِينَ وَالْقَنَاطِيرِ الْمُقَنطَرَةِ مِنَ الذَّهَبِ وَالْفِضَّةِ وَالْخَيْلِ الْمُسَوَّمَةِ وَالأَنْعَامِ وَالْحَرْثِ ذَلِكَ مَتَاعُ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَاللّهُ عِندَهُ حُسْنُ الْمَآبِ
15 (ऐ रसूल) उन लोगों से कह दो कि क्या मैं तुमको उन सब चीज़ों से बेहतर चीज़ बता दूं (अच्छा सुनो) जिन लोगों ने परहेज़गारी इख्तेयार की उनके लिए उनके परवरदिगार के यहॉ (बेहिश्त) के वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं (और वह) हमेशा उसमें रहेंगे और उसके अलावा उनके लिए साफ सुथरी बीवियॉ हैं और (सबसे बढ़कर) ख़ुदा की ख़ुशनूदी है और ख़ुदा (अपने) उन बन्दों को खूब देख रहा हे जो दुआऐं मॉगा करते हैं قُلْ أَؤُنَبِّئُكُم بِخَيْرٍ مِّن ذَلِكُمْ لِلَّذِينَ اتَّقَوْا عِندَ رَبِّهِمْ جَنَّاتٌ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا وَأَزْوَاجٌ مُّطَهَّرَةٌ وَرِضْوَانٌ مِّنَ اللّهِ وَاللّهُ بَصِيرٌ بِالْعِبَادِ
16 कि हमारे पालने वाले हम तो (बेताम्मुल) ईमान लाए हैं पस तू भी हमारे गुनाहों को बख्श दे और हमको दोज़ख़ के अज़ाब से बचा الَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا إِنَّنَا آمَنَّا فَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ
17 (यही लोग हैं) सब्र करने वाले और सच बोलने वाले और (ख़ुदा के) फ़रमाबरदार और (ख़ुदा की राह में) ख़र्च करने वाले और पिछली रातों में (ख़ुदा से तौबा) इस्तग़फ़ार करने वाले الصَّابِرِينَ وَالصَّادِقِينَ وَالْقَانِتِينَ وَالْمُنفِقِينَ وَالْمُسْتَغْفِرِينَ بِالأَسْحَارِ
18 ज़रूर ख़ुदा और फ़रिश्तों और इल्म वालों ने गवाही दी है कि उसके सिवा कोई माबूद क़ाबिले परसतिश नहीं है और वह ख़ुदा अद्ल व इन्साफ़ के साथ (कारख़ानाए आलम का) सॅभालने वाला है उसके सिवा कोई माबूद नहीं (वही हर चीज़ पर) ग़ालिब और दाना है (सच्चा) दीन तो ख़ुदा के नज़दीक यक़ीनन (बस यही) इस्लाम है شَهِدَ اللّهُ أَنَّهُ لاَ إِلَـهَ إِلاَّ هُوَ وَالْمَلاَئِكَةُ وَأُوْلُواْ الْعِلْمِ قَآئِمَاً بِالْقِسْطِ لاَ إِلَـهَ إِلاَّ هُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ
19 और अहले किताब ने जो उस दीने हक़ से इख्तेलाफ़ किया तो महज़ आपस की शरारत और असली (अम्र) मालूम हो जाने के बाद (ही क्या है) और जिस शख्स ने ख़ुदा की निशानियों से इन्कार किया तो (वह समझ ले कि यक़ीनन ख़ुदा (उससे) बहुत जल्दी हिसाब लेने वाला है إِنَّ الدِّينَ عِندَ اللّهِ الإِسْلاَمُ وَمَا اخْتَلَفَ الَّذِينَ أُوْتُواْ الْكِتَابَ إِلاَّ مِن بَعْدِ مَا جَاءهُمُ الْعِلْمُ بَغْيًا بَيْنَهُمْ وَمَن يَكْفُرْ بِآيَاتِ اللّهِ فَإِنَّ اللّهِ سَرِيعُ الْحِسَابِ
20 (ऐ रसूल) पस अगर ये लोग तुमसे (ख्वाह मा ख्वाह) हुज्जत करे तो कह दो मैंने ख़ुदा के आगे अपना सरे तस्लीम ख़म कर दिया है और जो मेरे ताबे है (उन्होंने) भी) और ऐ रसूल तुम अहले किताब और जाहिलों से पूंछो कि क्या तुम भी इस्लाम लाए हो (या नही) पस अगर इस्लाम लाए हैं तो बेख़टके राहे रास्त पर आ गए और अगर मुंह फेरे तो (ऐ रसूल) तुम पर सिर्फ़ पैग़ाम (इस्लाम) पहुंचा देना फ़र्ज़ है (बस) और ख़ुदा (अपने बन्दों) को देख रहा है فَإنْ حَآجُّوكَ فَقُلْ أَسْلَمْتُ وَجْهِيَ لِلّهِ وَمَنِ اتَّبَعَنِ وَقُل لِّلَّذِينَ أُوْتُواْ الْكِتَابَ وَالأُمِّيِّينَ أَأَسْلَمْتُمْ فَإِنْ أَسْلَمُواْ فَقَدِ اهْتَدَواْ وَّإِن تَوَلَّوْاْ فَإِنَّمَا عَلَيْكَ الْبَلاَغُ وَاللّهُ بَصِيرٌ بِالْعِبَادِ
21 बेशक जो लोग ख़ुदा की आयतों से इन्कार करते हैं और नाहक़ पैग़म्बरों को क़त्ल करते हैं और उन लोगों को (भी) क़त्ल करते हैं जो (उन्हें) इन्साफ़ करने का हुक्म करते हैं तो (ऐ रसूल) तुम उन लोगों को दर्दनाक अज़ाब की ख़ुशख़बरी दे दो إِنَّ الَّذِينَ يَكْفُرُونَ بِآيَاتِ اللّهِ وَيَقْتُلُونَ النَّبِيِّينَ بِغَيْرِ حَقٍّ وَيَقْتُلُونَ الِّذِينَ يَأْمُرُونَ بِالْقِسْطِ مِنَ النَّاسِ فَبَشِّرْهُم بِعَذَابٍ أَلِيمٍ
22 यही वह (बदनसीब) लोग हैं जिनका सारा किया कराया दुनिया और आख़ेरत (दोनों) में अकारत गया और कोई उनका मददगार नहीं أُولَـئِكَ الَّذِينَ حَبِطَتْ أَعْمَالُهُمْ فِي الدُّنْيَا وَالآخِرَةِ وَمَا لَهُم مِّن نَّاصِرِينَ
23 (ऐ रसूल) क्या तुमने (उलमाए यहूद) के हाल पर नज़र नहीं की जिनको किताब (तौरेत) का एक हिस्सा दिया गया था (अब) उनको किताबे ख़ुदा की तरफ़ बुलाया जाता है ताकि वही (किताब) उनके झगड़ें का फैसला कर दे इस पर भी उनमें का एक गिरोह मुंह फेर लेता है और यही लोग रूगरदानी (मुँह फेरने) करने वाले हैं أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ أُوْتُواْ نَصِيبًا مِّنَ الْكِتَابِ يُدْعَوْنَ إِلَى كِتَابِ اللّهِ لِيَحْكُمَ بَيْنَهُمْ ثُمَّ يَتَوَلَّى فَرِيقٌ مِّنْهُمْ وَهُم مُّعْرِضُونَ
24 ये इस वजह से है कि वह लोग कहते हैं कि हमें गिनती के चन्द दिनों के सिवा जहन्नुम की आग हरगिज़ छुएगी भी तो नहीं जो इफ़तेरा परदाज़ी ये लोग बराबर करते आए हैं उसी ने उन्हें उनके दीन में भी धोखा दिया है ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ قَالُواْ لَن تَمَسَّنَا النَّارُ إِلاَّ أَيَّامًا مَّعْدُودَاتٍ وَغَرَّهُمْ فِي دِينِهِم مَّا كَانُواْ يَفْتَرُونَ
25 फ़िर उनकी क्या गत होगी जब हम उनको एक दिन (क़यामत) जिसके आने में कोई शुबहा नहीं इक्ट्ठा करेंगे और हर शख्स को उसके किए का पूरा पूरा बदला दिया जाएगा और उनकी किसी तरह हक़तल्फ़ी नहीं की जाएगी فَكَيْفَ إِذَا جَمَعْنَاهُمْ لِيَوْمٍ لاَّ رَيْبَ فِيهِ وَوُفِّيَتْ كُلُّ نَفْسٍ مَّا كَسَبَتْ وَهُمْ لاَ يُظْلَمُونَ
26 (ऐ रसूल) तुम तो यह दुआ मॉगों कि ऐ ख़ुदा तमाम आलम के मालिक तू ही जिसको चाहे सल्तनत दे और जिससे चाहे सल्तनत छीन ले और तू ही जिसको चाहे इज्ज़त दे और जिसे चाहे ज़िल्लत दे हर तरह की भलाई तेरे ही हाथ में है बेशक तू ही हर चीज़ पर क़ादिर है قُلِ اللَّهُمَّ مَالِكَ الْمُلْكِ تُؤْتِي الْمُلْكَ مَن تَشَاء وَتَنزِعُ الْمُلْكَ مِمَّن تَشَاء وَتُعِزُّ مَن تَشَاء وَتُذِلُّ مَن تَشَاء بِيَدِكَ الْخَيْرُ إِنَّكَ عَلَىَ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
27 तू ही रात को (बढ़ा के) दिन में दाख़िल कर देता है (तो) रात बढ़ जाती है और तू ही दिन को (बढ़ा के) रात में दाख़िल करता है (तो दिन बढ़ जाता है) तू ही बेजान (अन्डा नुत्फ़ा वगैरह) से जानदार को पैदा करता है और तू ही जानदार से बेजान नुत्फ़ा (वगैरहा) निकालता है और तू ही जिसको चाहता है बेहिसाब रोज़ी देता है تُولِجُ اللَّيْلَ فِي الْنَّهَارِ وَتُولِجُ النَّهَارَ فِي اللَّيْلِ وَتُخْرِجُ الْحَيَّ مِنَ الْمَيِّتِ وَتُخْرِجُ الَمَيَّتَ مِنَ الْحَيِّ وَتَرْزُقُ مَن تَشَاء بِغَيْرِ حِسَابٍ
28 मोमिनीन मोमिनीन को छोड़ के काफ़िरों को अपना सरपरस्त न बनाऐं और जो ऐसा करेगा तो उससे ख़ुदा से कुछ सरोकार नहीं मगर (इस क़िस्म की तदबीरों से) किसी तरह उन (के शर) से बचना चाहो तो (ख़ैर) और ख़ुदा तुमको अपने ही से डराता है और ख़ुदा ही की तरफ़ लौट कर जाना है لاَّ يَتَّخِذِ الْمُؤْمِنُونَ الْكَافِرِينَ أَوْلِيَاء مِن دُوْنِ الْمُؤْمِنِينَ وَمَن يَفْعَلْ ذَلِكَ فَلَيْسَ مِنَ اللّهِ فِي شَيْءٍ إِلاَّ أَن تَتَّقُواْ مِنْهُمْ تُقَاةً وَيُحَذِّرُكُمُ اللّهُ نَفْسَهُ وَإِلَى اللّهِ الْمَصِيرُ
29 ऐ रसूल तुम उन (लोगों से) कह दो किजो कुछ तुम्हारे दिलों में है तो ख्वाह उसे छिपाओ या ज़ाहिर करो (बहरहाल) ख़ुदा तो उसे जानता है और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में वह (सब कुछ) जानता है और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है قُلْ إِن تُخْفُواْ مَا فِي صُدُورِكُمْ أَوْ تُبْدُوهُ يَعْلَمْهُ اللّهُ وَيَعْلَمُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأرْضِ وَاللّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
30 (और उस दिन को याद रखो) जिस दिन हर शख्स जो कुछ उसने (दुनिया में) नेकी की है और जो कुछ बुराई की है उसको मौजूद पाएगा (और) आरज़ू करेगा कि काश उस की बदी और उसके दरमियान में ज़मानए दराज़ (हाएल) हो जाता और ख़ुदा तुमको अपने ही से डराता है और ख़ुदा अपने बन्दों पर बड़ा शफ़ीक़ और (मेहरबान भी) है يَوْمَ تَجِدُ كُلُّ نَفْسٍ مَّا عَمِلَتْ مِنْ خَيْرٍ مُّحْضَرًا وَمَا عَمِلَتْ مِن سُوَءٍ تَوَدُّ لَوْ أَنَّ بَيْنَهَا وَبَيْنَهُ أَمَدًا بَعِيدًا وَيُحَذِّرُكُمُ اللّهُ نَفْسَهُ وَاللّهُ رَؤُوفُ بِالْعِبَادِ
31 (ऐ रसूल) उन लोगों से कह दो कि अगर तुम ख़ुदा को दोस्त रखते हो तो मेरी पैरवी करो कि ख़ुदा (भी) तुमको दोस्त रखेगा और तुमको तुम्हारे गुनाह बख्श देगा और खुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है قُلْ إِن كُنتُمْ تُحِبُّونَ اللّهَ فَاتَّبِعُونِي يُحْبِبْكُمُ اللّهُ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ وَاللّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
32 (ऐ रसूल) कह दो कि ख़ुदा और रसूल की फ़रमाबरदारी करो फिर अगर यह लोग उससे सरताबी करें तो (समझ लें कि) ख़ुदा काफ़िरों को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता قُلْ أَطِيعُواْ اللّهَ وَالرَّسُولَ فإِن تَوَلَّوْاْ فَإِنَّ اللّهَ لاَ يُحِبُّ الْكَافِرِينَ
33 बेशक ख़ुदा ने आदम और नूह और ख़ानदाने इबराहीम और खानदाने इमरान को सारे जहान से बरगुज़ीदा किया है إِنَّ اللّهَ اصْطَفَى آدَمَ وَنُوحًا وَآلَ إِبْرَاهِيمَ وَآلَ عِمْرَانَ عَلَى الْعَالَمِينَ
34 बाज़ की औलाद को बाज़ से और ख़ुदा (सबकी) सुनता (और सब कुछ) जानता है ذُرِّيَّةً بَعْضُهَا مِن بَعْضٍ وَاللّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
35 (ऐ रसूल वह वक्त याद करो) जब इमरान की बीवी ने (ख़ुदा से) अर्ज़ की कि ऐ मेरे पालने वाले मेरे पेट में जो बच्चा है (उसको मैं दुनिया के काम से) आज़ाद करके तेरी नज़्र करती हूं तू मेरी तरफ़ से (ये नज़्र कुबूल फ़रमा तू बेशक बड़ा सुनने वाला और जानने वाला है إِذْ قَالَتِ امْرَأَةُ عِمْرَانَ رَبِّ إِنِّي نَذَرْتُ لَكَ مَا فِي بَطْنِي مُحَرَّرًا فَتَقَبَّلْ مِنِّي إِنَّكَ أَنتَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ
36 फिर जब वह बेटी जन चुकी तो (हैरत से) कहने लगी ऐ मेरे परवरदिगार (मैं क्या करूं) मैं तो ये लड़की जनी हूँ और लड़का लड़की के ऐसा (गया गुज़रा) नहीं होता हालॉकि उसे कहने की ज़रूरत क्या थी जो वे जनी थी ख़ुदा उस (की शान व मरतबा) से खूब वाक़िफ़ था और मैंने उसका नाम मरियम रखा है और मैं उसको और उसकी औलाद को शैतान मरदूद (के फ़रेब) से तेरी पनाह में देती हूं فَلَمَّا وَضَعَتْهَا قَالَتْ رَبِّ إِنِّي وَضَعْتُهَا أُنثَى وَاللّهُ أَعْلَمُ بِمَا وَضَعَتْ وَلَيْسَ الذَّكَرُ كَالأُنثَى وَإِنِّي سَمَّيْتُهَا مَرْيَمَ وِإِنِّي أُعِيذُهَا بِكَ وَذُرِّيَّتَهَا مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ
37 तो उसके परवरदिगार ने (उनकी नज़्र) मरियम को ख़ुशी से कुबूल फ़रमाया और उसकी नशो व नुमा (परवरिश) अच्छी तरह की और ज़करिया को उनका कफ़ील बनाया जब किसी वक्त ज़क़रिया उनके पास (उनके) इबादत के हुजरे में जाते तो मरियम के पास कुछ न कुछ खाने को मौजूद पाते तो पूंछते कि ऐ मरियम ये (खाना) तुम्हारे पास कहॉ से आया है तो मरियम ये कह देती थी कि यह खुदा के यहॉ से (आया) है बेशक ख़ुदा जिसको चाहता है बेहिसाब रोज़ी देता है فَتَقَبَّلَهَا رَبُّهَا بِقَبُولٍ حَسَنٍ وَأَنبَتَهَا نَبَاتًا حَسَنًا وَكَفَّلَهَا زَكَرِيَّا كُلَّمَا دَخَلَ عَلَيْهَا زَكَرِيَّا الْمِحْرَابَ وَجَدَ عِندَهَا رِزْقاً قَالَ يَا مَرْيَمُ أَنَّى لَكِ هَـذَا قَالَتْ هُوَ مِنْ عِندِ اللّهِ إنَّ اللّهَ يَرْزُقُ مَن يَشَاء بِغَيْرِ حِسَابٍ
38 (ये माजरा देखते ही) उसी वक्त ज़करिया ने अपने परवरदिगार से दुआ कि और अर्ज क़ी ऐ मेरे पालने वाले तू मुझको (भी) अपनी बारगाह से पाकीज़ा औलाद अता फ़रमा बेशक तू ही दुआ का सुनने वाला है هُنَالِكَ دَعَا زَكَرِيَّا رَبَّهُ قَالَ رَبِّ هَبْ لِي مِن لَّدُنْكَ ذُرِّيَّةً طَيِّبَةً إِنَّكَ سَمِيعُ الدُّعَاء
39 अभी ज़करिया हुजरे में खड़े (ये) दुआ कर ही रहे थे कि फ़रिश्तों ने उनको आवाज़ दी कि ख़ुदा तुमको यहया (के पैदा होने) की खुशख़बरी देता है जो जो कलेमतुल्लाह (ईसा) की तस्दीक़ करेगा और (लोगों का) सरदार होगा और औरतों की तरफ़ रग़बत न करेगा और नेको कार नबी होगा فَنَادَتْهُ الْمَلآئِكَةُ وَهُوَ قَائِمٌ يُصَلِّي فِي الْمِحْرَابِ أَنَّ اللّهَ يُبَشِّرُكَ بِيَحْيَـى مُصَدِّقًا بِكَلِمَةٍ مِّنَ اللّهِ وَسَيِّدًا وَحَصُورًا وَنَبِيًّا مِّنَ الصَّالِحِينَ
40 ज़करिया ने अर्ज़ की परवरदिगार मुझे लड़का क्योंकर हो सकता है हालॉकि मेरा बुढ़ापा आ पहुंचा और (उसपर) मेरी बीवी बॉझ है (ख़ुदा ने) फ़रमाया इसी तरह ख़ुदा जो चाहता है करता है قَالَ رَبِّ أَنَّىَ يَكُونُ لِي غُلاَمٌ وَقَدْ بَلَغَنِيَ الْكِبَرُ وَامْرَأَتِي عَاقِرٌ قَالَ كَذَلِكَ اللّهُ يَفْعَلُ مَا يَشَاء
41 ज़करिया ने अर्ज़ की परवरदिगार मेरे इत्मेनान के लिए कोई निशानी मुक़र्रर फ़रमा इरशाद हुआ तुम्हारी निशानी ये है तुम तीन दिन तक लोगों से बात न कर सकोगे मगर इशारे से और (उसके शुक्रिये में) अपने परवरदिगार की अक्सर याद करो और रात को और सुबह तड़के (हमारी) तसबीह किया करो قَالَ رَبِّ اجْعَل لِّيَ آيَةً قَالَ آيَتُكَ أَلاَّ تُكَلِّمَ النَّاسَ ثَلاَثَةَ أَيَّامٍ إِلاَّ رَمْزًا وَاذْكُر رَّبَّكَ كَثِيراً وَسَبِّحْ بِالْعَشِيِّ وَالإِبْكَارِ
42 और वह वाक़िया भी याद करो जब फ़रिश्तों ने मरियम से कहा, ऐ मरियम तुमको ख़ुदा ने बरगुज़ीदा किया और (तमाम) गुनाहों और बुराइयों से पाक साफ़ रखा और सारे दुनिया जहॉन की औरतों में से तुमको मुन्तख़िब किया है وَإِذْ قَالَتِ الْمَلاَئِكَةُ يَا مَرْيَمُ إِنَّ اللّهَ اصْطَفَاكِ وَطَهَّرَكِ وَاصْطَفَاكِ عَلَى نِسَاء الْعَالَمِينَ
43 (तो) ऐ मरियम इसके शुक्र से मैं अपने परवरदिगार की फ़रमाबदारी करूं सजदा और रूकूउ करने वालों के साथ रूकूउ करती रहूं يَا مَرْيَمُ اقْنُتِي لِرَبِّكِ وَاسْجُدِي وَارْكَعِي مَعَ الرَّاكِعِينَ
44 (ऐ रसूल) ये ख़बर गैब की ख़बरों में से है जो हम तुम्हारे पास 'वही' के ज़रिए से भेजते हैं (ऐ रसूल) तुम तो उन सरपरस्ताने मरियम के पास मौजूद न थे जब वह लोग अपना अपना क़लम दरिया में बतौर क़ुरआ के डाल रहे थे (देखें) कौन मरियम का कफ़ील बनता है और न तुम उस वक्त उनके पास मौजूद थे जब वह लोग आपस में झगड़ रहे थे ذَلِكَ مِنْ أَنبَاء الْغَيْبِ نُوحِيهِ إِلَيكَ وَمَا كُنتَ لَدَيْهِمْ إِذْ يُلْقُون أَقْلاَمَهُمْ أَيُّهُمْ يَكْفُلُ مَرْيَمَ وَمَا كُنتَ لَدَيْهِمْ إِذْ يَخْتَصِمُونَ
45 (वह वाक़िया भी याद करो) जब फ़रिश्तों ने (मरियम) से कहा ऐ मरियम ख़ुदा तुमको सिर्फ़ अपने हुक्म से एक लड़के के पैदा होने की खुशख़बरी देता है जिसका नाम ईसा मसीह इब्ने मरियम होगा (और) दुनिया और आखेरत (दोनों) में बाइज्ज़त (आबरू) और ख़ुदा के मुक़र्रब बन्दों में होगा إِذْ قَالَتِ الْمَلآئِكَةُ يَا مَرْيَمُ إِنَّ اللّهَ يُبَشِّرُكِ بِكَلِمَةٍ مِّنْهُ اسْمُهُ الْمَسِيحُ عِيسَى ابْنُ مَرْيَمَ وَجِيهًا فِي الدُّنْيَا وَالآخِرَةِ وَمِنَ الْمُقَرَّبِينَ
46 और (बचपन में) जब झूले में पड़ा होगा और बड़ी उम्र का होकर (दोनों हालतों में यकसॉ) लोगों से बाते करेगा और नेको कारों में से होगा وَيُكَلِّمُ النَّاسَ فِي الْمَهْدِ وَكَهْلاً وَمِنَ الصَّالِحِينَ
47 (ये सुनकर मरियम ताज्जुब से) कहने लगी परवरदिगार मुझे लड़का क्योंकर होगा हालॉकि मुझे किसी मर्द ने छुआ तक नहीं इरशाद हुआ इसी तरह ख़ुदा जो चाहता है करता है जब वह किसी काम का करना ठान लेता है तो बस कह देता है 'हो जा' तो वह हो जाता है قَالَتْ رَبِّ أَنَّى يَكُونُ لِي وَلَدٌ وَلَمْ يَمْسَسْنِي بَشَرٌ قَالَ كَذَلِكِ اللّهُ يَخْلُقُ مَا يَشَاء إِذَا قَضَى أَمْرًا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُ كُن فَيَكُونُ
48 और (ऐ मरयिम) ख़ुदा उसको (तमाम) किताबे आसमानी और अक्ल की बातें और (ख़ासकर) तौरेत व इन्जील सिखा देगा وَيُعَلِّمُهُ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَالتَّوْرَاةَ وَالإِنجِيلَ
49 और बनी इसराइल का रसूल (क़रार देगा और वह उनसे यूं कहेगा कि) मैं तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (अपनी नबूवत की) यह निशानी लेकर आया हूं कि मैं गुंधीं हुई मिट्टी से एक परिन्दे की सूरत बनाऊॅगा फ़िर उस पर (कुछ) दम करूंगा तो वो ख़ुदा के हुक्म से उड़ने लगेगा और मैं ख़ुदा ही के हुक्म से मादरज़ाद (पैदायशी) अंधे और कोढ़ी को अच्छा करूंगा और मुर्दो को ज़िन्दा करूंगा और जो कुछ तुम खाते हो और अपने घरों में जमा करते हो मैं (सब) तुमको बता दूंगा अगर तुम ईमानदार हो तो बेशक तुम्हारे लिये इन बातों में (मेरी नबूवत की) बड़ी निशानी है وَرَسُولاً إِلَى بَنِي إِسْرَائِيلَ أَنِّي قَدْ جِئْتُكُم بِآيَةٍ مِّن رَّبِّكُمْ أَنِّي أَخْلُقُ لَكُم مِّنَ الطِّينِ كَهَيْئَةِ الطَّيْرِ فَأَنفُخُ فِيهِ فَيَكُونُ طَيْرًا بِإِذْنِ اللّهِ وَأُبْرِئُ الأكْمَهَ والأَبْرَصَ وَأُحْيِـي الْمَوْتَى بِإِذْنِ اللّهِ وَأُنَبِّئُكُم بِمَا تَأْكُلُونَ وَمَا تَدَّخِرُونَ فِي بُيُوتِكُمْ إِنَّ فِي ذَلِكَ لآيَةً لَّكُمْ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
50 और तौरेत जो मेरे सामने मौजूद है मैं उसकी तसदीक़ करता हूं और (मेरे आने की) एक ग़रज़ यह (भी) है कि जो चीजे तुम पर हराम है उनमें से बाज़ को (हुक्मे ख़ुदा से) हलाल कर दूं और मैं तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (अपनी नबूवत की) निशानी लेकर तुम्हारे पास आया हूं وَمُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيَّ مِنَ التَّوْرَاةِ وَلِأُحِلَّ لَكُم بَعْضَ الَّذِي حُرِّمَ عَلَيْكُمْ وَجِئْتُكُم بِآيَةٍ مِّن رَّبِّكُمْ فَاتَّقُواْ اللّهَ وَأَطِيعُونِ
51 पस तुम ख़ुदा से डरो और मेरी इताअत करो बेशक ख़ुदा ही मेरा और तुम्हारा परवरदिगार है إِنَّ اللّهَ رَبِّي وَرَبُّكُمْ فَاعْبُدُوهُ هَـذَا صِرَاطٌ مُّسْتَقِيمٌ
52 पस उसकी इबादत करो (क्योंकि) यही नजात का सीधा रास्ता है फिर जब ईसा ने (इतनी बातों के बाद भी) उनका कुफ़्र (पर अड़े रहना) देखा तो (आख़िर) कहने लगे कौन ऐसा है जो ख़ुदा की तरफ़ होकर मेरा मददगार बने (ये सुनकर) हवारियों ने कहा हम ख़ुदा के तरफ़दार हैं और हम ख़ुदा पर ईमान लाए فَلَمَّا أَحَسَّ عِيسَى مِنْهُمُ الْكُفْرَ قَالَ مَنْ أَنصَارِي إِلَى اللّهِ قَالَ الْحَوَارِيُّونَ نَحْنُ أَنصَارُ اللّهِ آمَنَّا بِاللّهِ وَاشْهَدْ بِأَنَّا مُسْلِمُونَ
53 और (ईसा से कहा) आप गवाह रहिए कि हम फ़रमाबरदार हैं رَبَّنَا آمَنَّا بِمَا أَنزَلَتْ وَاتَّبَعْنَا الرَّسُولَ فَاكْتُبْنَا مَعَ الشَّاهِدِينَ
54 और ख़ुदा की बारगाह में अर्ज़ की कि ऐ हमारे पालने वाले जो कुछ तूने नाज़िल किया हम उसपर ईमान लाए और हमने तेरे रसूल (ईसा) की पैरवी इख्तेयार की पस तू हमें (अपने रसूल के) गवाहों के दफ्तर में लिख ले وَمَكَرُواْ وَمَكَرَ اللّهُ وَاللّهُ خَيْرُ الْمَاكِرِينَ
55 और यहूदियों (ने ईसा से) मक्कारी की और ख़ुदा ने उसके दफ़ईया की तदबीर की और ख़ुदा सब से बेहतर तदबीर करने वाला है (वह वक्त भी याद करो) जब ईसा से ख़ुदा ने फ़रमाया ऐ ईसा मैं ज़रूर तुम्हारी ज़िन्दगी की मुद्दत पूरी करके तुमको अपनी तरफ़ उठा लूंगा और काफ़िरों (की ज़िन्दगी) से तुमको पाक व पाकीज़ा रखूंगा और जिन लोगों ने तुम्हारी पैरवी की उनको क़यामत तक काफ़िरों पर ग़ालिब रखूंगा फिर तुम सबको मेरी तरफ़ लौटकर आना है إِذْ قَالَ اللّهُ يَا عِيسَى إِنِّي مُتَوَفِّيكَ وَرَافِعُكَ إِلَيَّ وَمُطَهِّرُكَ مِنَ الَّذِينَ كَفَرُواْ وَجَاعِلُ الَّذِينَ اتَّبَعُوكَ فَوْقَ الَّذِينَ كَفَرُواْ إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ ثُمَّ إِلَيَّ مَرْجِعُكُمْ فَأَحْكُمُ بَيْنَكُمْ فِيمَا كُنتُمْ فِيهِ تَخْتَلِفُونَ
56 तब (उस दिन) जिन बातों में तुम (दुनिया) में झगड़े करते थे (उनका) तुम्हारे दरमियान फ़ैसला कर दूंगा पस जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तेयार किया उनपर दुनिया और आख़िरत (दोनों में) सख्त अज़ाब करूंगा और उनका कोई मददगार न होगा فَأَمَّا الَّذِينَ كَفَرُواْ فَأُعَذِّبُهُمْ عَذَابًا شَدِيدًا فِي الدُّنْيَا وَالآخِرَةِ وَمَا لَهُم مِّن نَّاصِرِينَ
57 और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किए तो ख़ुदा उनको उनका पूरा अज्र व सवाब देगा और ख़ुदा ज़ालिमों को दोस्त नहीं रखता وَأَمَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُواْ الصَّالِحَاتِ فَيُوَفِّيهِمْ أُجُورَهُمْ وَاللّهُ لاَ يُحِبُّ الظَّالِمِينَ
58 (ऐ रसूल) ये जो हम तुम्हारे सामने बयान कर रहे हैं कुदरते ख़ुदा की निशानियॉ और हिकमत से भरे हुये तज़किरे हैं ذَلِكَ نَتْلُوهُ عَلَيْكَ مِنَ الآيَاتِ وَالذِّكْرِ الْحَكِيمِ
59 ख़ुदा के नज़दीक तो जैसे ईसा की हालत वैसी ही आदम की हालत कि उनको को मिट्टी का पुतला बनाकर कहा कि 'हो जा' पस (फ़ौरन ही) वह (इन्सान) हो गया إِنَّ مَثَلَ عِيسَى عِندَ اللّهِ كَمَثَلِ آدَمَ خَلَقَهُ مِن تُرَابٍ ثِمَّ قَالَ لَهُ كُن فَيَكُونُ
60 (ऐ रसूल ये है) हक़ बात (जो) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (बताई जाती है) तो तुम शक करने वालों में से न हो जाना الْحَقُّ مِن رَّبِّكَ فَلاَ تَكُن مِّن الْمُمْتَرِينَ
61 फिर जब तुम्हारे पास इल्म (कुरान) आ चुका उसके बाद भी अगर तुम से कोई (नसरानी) ईसा के बारे में हुज्जत करें तो कहो कि (अच्छा मैदान में) आओ हम अपने बेटों को बुलाएं तुम अपने बेटों को और हम अपनी औरतों को (बुलाएं) और तुम अपनी औरतों को और हम अपनी जानों को बुलाएं ओर तुम अपनी जानों को فَمَنْ حَآجَّكَ فِيهِ مِن بَعْدِ مَا جَاءكَ مِنَ الْعِلْمِ فَقُلْ تَعَالَوْاْ نَدْعُ أَبْنَاءنَا وَأَبْنَاءكُمْ وَنِسَاءنَا وَنِسَاءكُمْ وَأَنفُسَنَا وأَنفُسَكُمْ ثُمَّ نَبْتَهِلْ فَنَجْعَل لَّعْنَةُ اللّهِ عَلَى الْكَاذِبِينَ
62 उसके बाद हम सब मिलकर (खुदा की बारगाह में) गिड़गिड़ाएं और झूठों पर ख़ुदा की लानत करें (ऐ रसूल) ये सब यक़ीनी सच्चे वाक़यात हैं और ख़ुदा के सिवा कोई माबूद (क़ाबिले परसतिश) नहीं है إِنَّ هَـذَا لَهُوَ الْقَصَصُ الْحَقُّ وَمَا مِنْ إِلَـهٍ إِلاَّ اللّهُ وَإِنَّ اللّهَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ
63 और बेशक ख़ुदा ही सब पर ग़ालिब और हिकमत वाला है فَإِن تَوَلَّوْاْ فَإِنَّ اللّهَ عَلِيمٌ بِالْمُفْسِدِينَ
64 फिर अगर इससे भी मुंह फेरें तो (कुछ) परवाह (नहीं) ख़ुदा फ़सादी लोगों को खूब जानता है (ऐ रसूल) तुम (उनसे) कहो कि ऐ अहले किताब तुम ऐसी (ठिकाने की) बात पर तो आओ जो हमारे और तुम्हारे दरमियान यकसॉ है कि खुदा के सिवा किसी की इबादत न करें और किसी चीज़ को उसका शरीक न बनाएं और ख़ुदा के सिवा हममें से कोई किसी को अपना परवरदिगार न बनाए अगर इससे भी मुंह मोडें तो तुम गवाह रहना हम (ख़ुदा के) फ़रमाबरदार हैं قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ تَعَالَوْاْ إِلَى كَلَمَةٍ سَوَاء بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمْ أَلاَّ نَعْبُدَ إِلاَّ اللّهَ وَلاَ نُشْرِكَ بِهِ شَيْئًا وَلاَ يَتَّخِذَ بَعْضُنَا بَعْضاً أَرْبَابًا مِّن دُونِ اللّهِ فَإِن تَوَلَّوْاْ فَقُولُواْ اشْهَدُواْ بِأَنَّا مُسْلِمُونَ
65 ऐ अहले किताब तुम इबराहीम के बारे में (ख्वाह मा ख्वाह) क्यों झगड़ते हो कि कोई उनको नसरानी कहता है कोई यहूदी हालॉकि तौरेत व इन्जील (जिनसे यहूद व नसारा की इब्तेदा है वह) तो उनके बाद ही नाज़िल हुई يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لِمَ تُحَآجُّونَ فِي إِبْرَاهِيمَ وَمَا أُنزِلَتِ التَّورَاةُ وَالإنجِيلُ إِلاَّ مِن بَعْدِهِ أَفَلاَ تَعْقِلُونَ
66 तो क्या तुम इतना भी नहीं समझते? (ऐ लो अरे) तुम वही एहमक़ लोग हो कि जिस का तुम्हें कुछ इल्म था उसमें तो झगड़ा कर चुके (खैर) फिर तब उसमें क्या (ख्वाह मा ख्वाह) झगड़ने बैठे हो जिसकी (सिरे से) तुम्हें कुछ ख़बर नहीं और (हकॣक़ते हाल तो) खुदा जानता है और तुम नहीं जानते هَاأَنتُمْ هَؤُلاء حَاجَجْتُمْ فِيمَا لَكُم بِهِ عِلمٌ فَلِمَ تُحَآجُّونَ فِيمَا لَيْسَ لَكُم بِهِ عِلْمٌ وَاللّهُ يَعْلَمُ وَأَنتُمْ لاَ تَعْلَمُونَ
67 इबराहीम न तो यहूदी थे और न नसरानी बल्कि निरे खरे हक़ पर थे (और) फ़रमाबरदार (बन्दे) थे और मुशरिकों से भी न थे مَا كَانَ إِبْرَاهِيمُ يَهُودِيًّا وَلاَ نَصْرَانِيًّا وَلَكِن كَانَ حَنِيفًا مُّسْلِمًا وَمَا كَانَ مِنَ الْمُشْرِكِينَ
68 इबराहीम से ज्यादा ख़ुसूसियत तो उन लोगों को थी जो ख़ास उनकी पैरवी करते थे और उस पैग़म्बर और ईमानदारों को (भी) है और मोमिनीन का ख़ुदा मालिक है إِنَّ أَوْلَى النَّاسِ بِإِبْرَاهِيمَ لَلَّذِينَ اتَّبَعُوهُ وَهَـذَا النَّبِيُّ وَالَّذِينَ آمَنُواْ وَاللّهُ وَلِيُّ الْمُؤْمِنِينَ
69 (मुसलमानो) अहले किताब से एक गिरोह ने बहुत चाहा कि किसी तरह तुमको राहेरास्त से भटका दे हालॉकि वह (अपनी तदबीरों से तुमको तो नहीं मगर) अपने ही को भटकाते हैं وَدَّت طَّآئِفَةٌ مِّنْ أَهْلِ الْكِتَابِ لَوْ يُضِلُّونَكُمْ وَمَا يُضِلُّونَ إِلاَّ أَنفُسَهُمْ وَمَا يَشْعُرُونَ
70 और उसको समझते (भी) नहीं ऐ अहले किताब तुम ख़ुदा की आयतों से क्यों इन्कार करते हो, हालॉकि तुम ख़ुद गवाह बन सकते हो يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لِمَ تَكْفُرُونَ بِآيَاتِ اللّهِ وَأَنتُمْ تَشْهَدُونَ
71 ऐ अहले किताब तुम क्यो हक़ व बातिल को गड़बड़ करते और हक़ को छुपाते हो हालॉकि तुम जानते हो يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لِمَ تَلْبِسُونَ الْحَقَّ بِالْبَاطِلِ وَتَكْتُمُونَ الْحَقَّ وَأَنتُمْ تَعْلَمُونَ
72 और अहले किताब से एक गिरोह ने (अपने लोगों से) कहा कि मुसलमानों पर जो किताब नाज़िल हुईहै उसपर सुबह सवेरे ईमान लाओ और आख़िर वक्त ऌन्कार कर दिया करो शायद मुसलमान (इसी तदबीर से अपने दीन से) फिर जाए وَقَالَت طَّآئِفَةٌ مِّنْ أَهْلِ الْكِتَابِ آمِنُواْ بِالَّذِيَ أُنزِلَ عَلَى الَّذِينَ آمَنُواْ وَجْهَ النَّهَارِ وَاكْفُرُواْ آخِرَهُ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ
73 और तुम्हारे दीन की पैरवरी करे उसके सिवा किसी दूसरे की बात का ऐतबार न करो (ऐ रसूल) तुम कह दो कि बस ख़ुदा ही की हिदायत तो हिदायत है (यहूदी बाहम ये भी कहते हैं कि) उसको भी न (मानना) कि जैसा (उम्दा दीन) तुमको दिया गया है, वैसा किसी और को दिया जाय या तुमसे कोई शख्स ख़ुदा के यहॉ झगड़ा करे (ऐ रसूल तुम उनसे) कह दो कि (ये क्या ग़लत ख्याल है) फ़ज़ल (व करम) ख़ुदा के हाथ में है वह जिसको चाहे दे और ख़ुदा बड़ी गुन्जाईश वाला है (और हर शै को)े जानता है وَلاَ تُؤْمِنُواْ إِلاَّ لِمَن تَبِعَ دِينَكُمْ قُلْ إِنَّ الْهُدَى هُدَى اللّهِ أَن يُؤْتَى أَحَدٌ مِّثْلَ مَا أُوتِيتُمْ أَوْ يُحَآجُّوكُمْ عِندَ رَبِّكُمْ قُلْ إِنَّ الْفَضْلَ بِيَدِ اللّهِ يُؤْتِيهِ مَن يَشَاء وَاللّهُ وَاسِعٌ عَلِيمٌ
74 जिसको चाहे अपनी रहमत के लिये ख़ास कर लेता है और ख़ुदा बड़ा फ़ज़लों करम वाला हे يَخْتَصُّ بِرَحْمَتِهِ مَن يَشَاء وَاللّهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيمِ
75 और अहले किताब कुछ ऐसे भी हैं कि अगर उनके पास रूपए की ढेर अमानत रख दो तो भी उसे (जब चाहो) वैसे ही तुम्हारे हवाले कर देंगे और बाज़ ऐसे हें कि अगर एक अशर्फ़ी भी अमानत रखो तो जब तक तुम बराबर (उनके सर) पर खड़े न रहोगे तुम्हें वापस न देंगे ये (बदमुआम लगी) इस वजह से है कि उन का तो ये क़ौल है कि (अरब के) जाहिलो (का हक़ मार लेने) में हम पर कोई इल्ज़ाम की राह ही नहीं और जान बूझ कर खुदा पर झूठ (तूफ़ान) जोड़ते हैं وَمِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ مَنْ إِن تَأْمَنْهُ بِقِنطَارٍ يُؤَدِّهِ إِلَيْكَ وَمِنْهُم مَّنْ إِن تَأْمَنْهُ بِدِينَارٍ لاَّ يُؤَدِّهِ إِلَيْكَ إِلاَّ مَا دُمْتَ عَلَيْهِ قَآئِمًا ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ قَالُواْ لَيْسَ عَلَيْنَا فِي الأُمِّيِّينَ سَبِيلٌ وَيَقُولُونَ عَلَى اللّهِ الْكَذِبَ وَهُمْ يَعْلَمُونَ
76 हाँ (अलबत्ता) जो शख्स अपने एहद को पूरा करे और परहेज़गारी इख्तेयार करे तो बेशक ख़ुदा परहेज़गारों को दोस्त रखता है بَلَى مَنْ أَوْفَى بِعَهْدِهِ وَاتَّقَى فَإِنَّ اللّهَ يُحِبُّ الْمُتَّقِينَ
77 बेशक जो लोग अपने एहद और (क़समे) जो ख़ुदा (से किया था उसके) बदले थोड़ा (दुनयावी) मुआवेज़ा ले लेते हैं उन ही लोगों के वास्ते आख़िरत में कुछ हिस्सा नहीं और क़यामत के दिन ख़ुदा उनसे बात तक तो करेगा नहीं ओर उनकी तरफ़ नज़र (रहमत) ही करेगा और न उनको (गुनाहों की गन्दगी से) पाक करेगा और उनके लिये दर्दनाम अज़ाब है إِنَّ الَّذِينَ يَشْتَرُونَ بِعَهْدِ اللّهِ وَأَيْمَانِهِمْ ثَمَنًا قَلِيلاً أُوْلَـئِكَ لاَ خَلاَقَ لَهُمْ فِي الآخِرَةِ وَلاَ يُكَلِّمُهُمُ اللّهُ وَلاَ يَنظُرُ إِلَيْهِمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَلاَ يُزَكِّيهِمْ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
78 और अहले किताब से बाज़ ऐसे ज़रूर हैं कि किताब (तौरेत) में अपनी ज़बाने मरोड़ मरोड़ के (कुछ का कुछ) पढ़ जाते हैं ताकि तुम ये समझो कि ये किताब का जुज़ है हालॉकि वह किताब का जुज़ नहीं और कहते हैं कि ये (जो हम पढ़ते हैं) ख़ुदा के यहॉ से (उतरा) है हालॉकि वह ख़ुदा के यहॉ से नहीं (उतरा) और जानबूझ कर ख़ुदा पर झूठ (तूफ़ान) जोड़ते हैं وَإِنَّ مِنْهُمْ لَفَرِيقًا يَلْوُونَ أَلْسِنَتَهُم بِالْكِتَابِ لِتَحْسَبُوهُ مِنَ الْكِتَابِ وَمَا هُوَ مِنَ الْكِتَابِ وَيَقُولُونَ هُوَ مِنْ عِندِ اللّهِ وَمَا هُوَ مِنْ عِندِ اللّهِ وَيَقُولُونَ عَلَى اللّهِ الْكَذِبَ وَهُمْ يَعْلَمُونَ
79 किसी आदमी को ये ज़ेबा न था कि ख़ुदा तो उसे (अपनी) किताब और हिकमत और नबूवत अता फ़रमाए और वह लोगों से कहता फिरे कि ख़ुदा को छोड़कर मेरे बन्दे बन जाओ बल्कि (वह तो यही कहेगा कि) तुम अल्लाह वाले बन जाओ क्योंकि तुम तो (हमेशा) किताबे ख़ुदा (दूसरो) को पढ़ाते रहते हो और तुम ख़ुद भी सदा पढ़ते रहे हो مَا كَانَ لِبَشَرٍ أَن يُؤْتِيَهُ اللّهُ الْكِتَابَ وَالْحُكْمَ وَالنُّبُوَّةَ ثُمَّ يَقُولَ لِلنَّاسِ كُونُواْ عِبَادًا لِّي مِن دُونِ اللّهِ وَلَـكِن كُونُواْ رَبَّانِيِّينَ بِمَا كُنتُمْ تُعَلِّمُونَ الْكِتَابَ وَبِمَا كُنتُمْ تَدْرُسُونَ
80 और वह तुमसे ये तो (कभी) न कहेगा कि फ़रिश्तों और पैग़म्बरों को ख़ुदा बना लो भला (कहीं ऐसा हो सकता है कि) तुम्हारे मुसलमान हो जाने के बाद तुम्हें कुफ़्र का हुक्म करेगा وَلاَ يَأْمُرَكُمْ أَن تَتَّخِذُواْ الْمَلاَئِكَةَ وَالنِّبِيِّيْنَ أَرْبَابًا أَيَأْمُرُكُم بِالْكُفْرِ بَعْدَ إِذْ أَنتُم مُّسْلِمُونَ
81 (और ऐ रसूल वह वक्त भी याद दिलाओ) जब ख़ुदा ने पैग़म्बरों से इक़रार लिया कि हम तुमको जो कुछ किताब और हिकमत (वगैरह) दे उसके बाद तुम्हारे पास कोई रसूल आए और जो किताब तुम्हारे पास उसकी तसदीक़ करे तो (देखो) तुम ज़रूर उस पर ईमान लाना, और ज़रूर उसकी मदद करना (और) ख़ुदा ने फ़रमाया क्या तुमने इक़रार लिया तुमने मेरे (एहद का) बोझ उठा लिया सबने अर्ज़ की हमने इक़रार किया इरशाद हुआ (अच्छा) तो आज के क़ौल व (क़रार के) आपस में एक दूसरे के गवाह रहना وَإِذْ أَخَذَ اللّهُ مِيثَاقَ النَّبِيِّيْنَ لَمَا آتَيْتُكُم مِّن كِتَابٍ وَحِكْمَةٍ ثُمَّ جَاءكُمْ رَسُولٌ مُّصَدِّقٌ لِّمَا مَعَكُمْ لَتُؤْمِنُنَّ بِهِ وَلَتَنصُرُنَّهُ قَالَ أَأَقْرَرْتُمْ وَأَخَذْتُمْ عَلَى ذَلِكُمْ إِصْرِي قَالُواْ أَقْرَرْنَا قَالَ فَاشْهَدُواْ وَأَنَاْ مَعَكُم مِّنَ الشَّاهِدِينَ
82 और तुम्हारे साथ मैं भी एक गवाह हूं फिर उसके बाद जो शख्स (अपने क़ौल से) मुंह फेरे तो वही लोग बदचलन हैं فَمَن تَوَلَّى بَعْدَ ذَلِكَ فَأُوْلَـئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَ
83 तो क्या ये लोग ख़ुदा के दीन के सिवा (कोई और दीन) ढूंढते हैं हालॉकि जो (फ़रिश्ते) आसमानों में हैं और जो (लोग) ज़मीन में हैं सबने ख़ुशी ख़ुशी या ज़बरदस्ती उसके सामने अपनी गर्दन डाल दी है और (आख़िर सब) उसकी तरफ़ लौट कर जाएंगे أَفَغَيْرَ دِينِ اللّهِ يَبْغُونَ وَلَهُ أَسْلَمَ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ طَوْعًا وَكَرْهًا وَإِلَيْهِ يُرْجَعُونَ
84 (ऐ रसूल उन लोगों से) कह दो कि हम तो ख़ुदा पर ईमान लाए और जो किताब हम पर नाज़िल हुई और जो (सहीफ़े) इबराहीम और इस्माईल और इसहाक़ और याकूब और औलादे याकूब पर नाज़िल हुये और मूसा और ईसा और दूसरे पैग़म्बरों को जो (जो किताब) उनके परवरदिगार की तरफ़ से इनायत हुई(सब पर ईमान लाए) हम तो उनमें से किसी एक में भी फ़र्क़ नहीं करते قُلْ آمَنَّا بِاللّهِ وَمَا أُنزِلَ عَلَيْنَا وَمَا أُنزِلَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ وَالأَسْبَاطِ وَمَا أُوتِيَ مُوسَى وَعِيسَى وَالنَّبِيُّونَ مِن رَّبِّهِمْ لاَ نُفَرِّقُ بَيْنَ أَحَدٍ مِّنْهُمْ وَنَحْنُ لَهُ مُسْلِمُونَ
85 और हम तो उसी (यकता ख़ुदा) के फ़रमाबरदार हैं और जो शख्स इस्लाम के सिवा किसी और दीन की ख्वाहिश करे तो उसका वह दीन हरगिज़ कुबूल ही न किया जाएगा और वह आख़िरत में सख्त घाटे में रहेगा وَمَن يَبْتَغِ غَيْرَ الإِسْلاَمِ دِينًا فَلَن يُقْبَلَ مِنْهُ وَهُوَ فِي الآخِرَةِ مِنَ الْخَاسِرِينَ
86 भला ख़ुदा ऐसे लोगों की क्योंकर हिदायत करेगा जो इमाने लाने के बाद फिर काफ़िर हो गए हालॉकि वह इक़रार कर चुके थे कि पैग़म्बर (आख़िरूज़ज़मा) बरहक़ हैं और उनके पास वाजेए व रौशन मौजिज़े भी आ चुके थे और ख़ुदा ऐसी हठधर्मी करने वाले लोगों की हिदायत नहीं करता كَيْفَ يَهْدِي اللّهُ قَوْمًا كَفَرُواْ بَعْدَ إِيمَانِهِمْ وَشَهِدُواْ أَنَّ الرَّسُولَ حَقٌّ وَجَاءهُمُ الْبَيِّنَاتُ وَاللّهُ لاَ يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ
87 ऐसे लोगों की सज़ा यह है कि उनपर ख़ुदा और फ़रिश्तों और (दुनिया जहॉन के) सब लोगों की फिटकार हैं أُوْلَـئِكَ جَزَآؤُهُمْ أَنَّ عَلَيْهِمْ لَعْنَةَ اللّهِ وَالْمَلآئِكَةِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ
88 और वह हमेशा उसी फिटकार में रहेंगे न तो उनके अज़ाब ही में तख्फ़ीफ़ की जाएगी और न उनको मोहलत दी जाएगी خَالِدِينَ فِيهَا لاَ يُخَفَّفُ عَنْهُمُ الْعَذَابُ وَلاَ هُمْ يُنظَرُونَ
89 मगर (हॉ) जिन लोगों ने इसके बाद तौबा कर ली और अपनी (ख़राबी की) इस्लाह कर ली तो अलबत्ता ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है إِلاَّ الَّذِينَ تَابُواْ مِن بَعْدِ ذَلِكَ وَأَصْلَحُواْ فَإِنَّ الله غَفُورٌ رَّحِيمٌ
90 जो अपने ईमान के बाद काफ़िर हो बैठे फ़िर (रोज़ बरोज़ अपना) कुफ़्र बढ़ाते चले गये तो उनकी तौबा हरगिज़ न कुबूल की जाएगी और यही लोग (पल्ले दरजे के) गुमराह हैं إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ بَعْدَ إِيمَانِهِمْ ثُمَّ ازْدَادُواْ كُفْرًا لَّن تُقْبَلَ تَوْبَتُهُمْ وَأُوْلَـئِكَ هُمُ الضَّآلُّونَ
91 बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तियार किया और कुफ़्र की हालत में मर गये तो अगरचे इतना सोना भी किसी की गुलू ख़लासी (छुटकारा पाने) में दिया जाए कि ज़मीन भर जाए तो भी हरगिज़ न कुबूल किया जाएगा यही लोग हैं जिनके लिए दर्दनाक अज़ाब होगा और उनका कोई मददगार भी न होगा إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ وَمَاتُواْ وَهُمْ كُفَّارٌ فَلَن يُقْبَلَ مِنْ أَحَدِهِم مِّلْءُ الأرْضِ ذَهَبًا وَلَوِ افْتَدَى بِهِ أُوْلَـئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ وَمَا لَهُم مِّن نَّاصِرِينَ
92 (लोगों) जब तक तुम अपनी पसन्दीदा चीज़ों में से कुछ राहे ख़ुदा में ख़र्च न करोगे हरगिज़ नेकी के दरजे पर फ़ायज़ नहीं हो सकते और तुम कोई لَن تَنَالُواْ الْبِرَّ حَتَّى تُنفِقُواْ مِمَّا تُحِبُّونَ وَمَا تُنفِقُواْ مِن شَيْءٍ فَإِنَّ اللّهَ بِهِ عَلِيمٌ
93 सी चीज़ भी ख़र्च करो ख़ुदा तो उसको ज़रूर जानता है तौरैत के नाज़िल होने के क़ब्ल याकूब ने जो जो चीज़े अपने ऊपर हराम कर ली थीं उनके सिवा बनी इसराइल के लिए सब खाने हलाल थे (ऐ रसूल उन यहूद से) कह दो कि अगर तुम (अपने दावे में सच्चे हो तो तौरेत ले आओ كُلُّ الطَّعَامِ كَانَ حِـلاًّ لِّبَنِي إِسْرَائِيلَ إِلاَّ مَا حَرَّمَ إِسْرَائِيلُ عَلَى نَفْسِهِ مِن قَبْلِ أَن تُنَزَّلَ التَّوْرَاةُ قُلْ فَأْتُواْ بِالتَّوْرَاةِ فَاتْلُوهَا إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ
94 और उसको (हमारे सामने) पढ़ो फिर उसके बाद भी जो कोई ख़ुदा पर झूठ तूफ़ान जोड़े तो (समझ लो) कि यही लोग ज़ालिम (हठधर्म) हैं فَمَنِ افْتَرَىَ عَلَى اللّهِ الْكَذِبَ مِن بَعْدِ ذَلِكَ فَأُوْلَـئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ
95 (ऐ रसूल) कह दो कि ख़ुदा ने सच फ़रमाया तो अब तुम मिल्लते इबराहीम (इस्लाम) की पैरवी करो जो बातिल से कतरा के चलते थे और मुशरेकीन से न थे قُلْ صَدَقَ اللّهُ فَاتَّبِعُواْ مِلَّةَ إِبْرَاهِيمَ حَنِيفًا وَمَا كَانَ مِنَ الْمُشْرِكِينَ
96 लोगों (की इबादत) के वास्ते जो घर सबसे पहले बनाया गया वह तो यक़ीनन यही (काबा) है जो मक्के में है बड़ी (खैर व बरकत) वाला और सारे जहॉन के लोगों का रहनुमा إِنَّ أَوَّلَ بَيْتٍ وُضِعَ لِلنَّاسِ لَلَّذِي بِبَكَّةَ مُبَارَكًا وَهُدًى لِّلْعَالَمِينَ
97 इसमें (हुरमत की) बहुत सी वाज़े और रौशन निशानियॉ हैं (उनमें से) मुक़ाम इबराहीम है (जहॉ आपके क़दमों का पत्थर पर निशान है) और जो इस घर में दाख़िल हुआ अमन में आ गया और लोगों पर वाजिब है कि महज़ ख़ुदा के लिए ख़ानाए काबा का हज करें जिन्हे वहां तक पहुँचने की इस्तेताअत है और जिसने बावजूद कुदरत हज से इन्कार किया तो (याद रखे) कि ख़ुदा सारे जहॉन से बेपरवा है فِيهِ آيَاتٌ بَيِّـنَاتٌ مَّقَامُ إِبْرَاهِيمَ وَمَن دَخَلَهُ كَانَ آمِنًا وَلِلّهِ عَلَى النَّاسِ حِجُّ الْبَيْتِ مَنِ اسْتَطَاعَ إِلَيْهِ سَبِيلاً وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ الله غَنِيٌّ عَنِ الْعَالَمِينَ
98 (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ अहले किताब खुदा की आयतो से क्यो मुन्किर हुए जाते हो हालॉकि जो काम काज तुम करते हो खुदा को उसकी (पूरी) पूरी इत्तिला है قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لِمَ تَكْفُرُونَ بِآيَاتِ اللّهِ وَاللّهُ شَهِيدٌ عَلَى مَا تَعْمَلُونَ
99 (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ अहले किताब दीदए दानिस्ता खुदा की (सीधी) राह में (नाहक़ की) कज़ी ढूंढो (ढूंढ) के ईमान लाने वालों को उससे क्यों रोकते हो ओर जो कुछ तुम करते हो खुदा उससे बेख़बर नहीं है قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لِمَ تَصُدُّونَ عَن سَبِيلِ اللّهِ مَنْ آمَنَ تَبْغُونَهَا عِوَجًا وَأَنتُمْ شُهَدَاء وَمَا اللّهُ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ
100 ऐ ईमान वालों अगर तुमने अहले किताब के किसी फ़िरके क़ा भी कहना माना तो (याद रखो कि) वह तुमको ईमान लाने के बाद (भी) फिर दुबारा काफ़िर बना छोडेंग़े يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوَاْ إِن تُطِيعُواْ فَرِيقًا مِّنَ الَّذِينَ أُوتُواْ الْكِتَابَ يَرُدُّوكُم بَعْدَ إِيمَانِكُمْ كَافِرِينَ
101 और (भला) तुम क्योंकर काफ़िर बन जाओगे हालॉकि तुम्हारे सामने ख़ुदा की आयतें (बराबर) पढ़ी जाती हैं और उसके रसूल (मोहम्मद) भी तुममें (मौजूद) हैं और जो शख्स ख़ुदा से वाबस्ता हो वह (तो) जरूर सीधी राह पर लगा दिया गया وَكَيْفَ تَكْفُرُونَ وَأَنتُمْ تُتْلَى عَلَيْكُمْ آيَاتُ اللّهِ وَفِيكُمْ رَسُولُهُ وَمَن يَعْتَصِم بِاللّهِ فَقَدْ هُدِيَ إِلَى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ
102 ऐ ईमान वालों ख़ुदा से डरो जितना उससे डरने का हक़ है और तुम (दीन) इस्लाम के सिवा किसी और दीन पर हरगिज़ न मरना يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اتَّقُواْ اللّهَ حَقَّ تُقَاتِهِ وَلاَ تَمُوتُنَّ إِلاَّ وَأَنتُم مُّسْلِمُونَ
103 और तुम सब के सब (मिलकर) ख़ुदा की रस्सी मज़बूती से थामे रहो और आपस में (एक दूसरे) के फूट न डालो और अपने हाल (ज़ार) पर ख़ुदा के एहसान को तो याद करो जब तुम आपस में (एक दूसरे के) दुश्मन थे तो ख़ुदा ने तुम्हारे दिलों में (एक दूसरे की) उलफ़त पैदा कर दी तो तुम उसके फ़ज़ल से आपस में भाई भाई हो गए और तुम गोया सुलगती हुईआग की भट्टी (दोज़ख) के लब पर (खडे) थे गिरना ही चाहते थे कि ख़ुदा ने तुमको उससे बचा लिया तो ख़ुदा अपने एहकाम यूं वाजेए करके बयान करता है ताकि तुम राहे रास्त पर आ जाओ وَاعْتَصِمُواْ بِحَبْلِ اللّهِ جَمِيعًا وَلاَ تَفَرَّقُواْ وَاذْكُرُواْ نِعْمَتَ اللّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ كُنتُمْ أَعْدَاء فَأَلَّفَ بَيْنَ قُلُوبِكُمْ فَأَصْبَحْتُم بِنِعْمَتِهِ إِخْوَانًا وَكُنتُمْ عَلَىَ شَفَا حُفْرَةٍ مِّنَ النَّارِ فَأَنقَذَكُم مِّنْهَا كَذَلِكَ يُبَيِّنُ اللّهُ لَكُمْ آيَاتِهِ لَعَلَّكُمْ تَهْتَدُونَ
104 और तुमसे एक गिरोह ऐसे (लोगों का भी) तो होना चाहिये जो (लोगों को) नेकी की तरफ़ बुलाए अच्छे काम का हुक्म दे और बुरे कामों से रोके और ऐसे ही लोग (आख़ेरत में) अपनी दिली मुरादें पायेंगे وَلْتَكُن مِّنكُمْ أُمَّةٌ يَدْعُونَ إِلَى الْخَيْرِ وَيَأْمُرُونَ بِالْمَعْرُوفِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنكَرِ وَأُوْلَـئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ
105 और तुम (कहीं) उन लोगों के ऐसे न हो जाना जो आपस में फूट डाल कर बैठ रहे और रौशन (दलील) आने के बाद भी एक मुंह एक ज़बान न रहे और ऐसे ही लोगों के वास्ते बड़ा (भारी) अज़ाब है وَلاَ تَكُونُواْ كَالَّذِينَ تَفَرَّقُواْ وَاخْتَلَفُواْ مِن بَعْدِ مَا جَاءهُمُ الْبَيِّنَاتُ وَأُوْلَـئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ
106 (उस दिन से डरो) जिस दिन कुछ लोगों के चेहरे तो सफैद नूरानी होंगे और कुछ (लोगो) के चेहरे सियाह जिन लोगों के मुहॅ में कालिक होगी (उनसे कहा जायेगा) हाए क्यों तुम तो ईमान लाने के बाद काफ़िर हो गए थे अच्छा तो (लो) (अब) अपने कुफ़्र की सज़ा में अज़ाब (के मजे) चखो يَوْمَ تَبْيَضُّ وُجُوهٌ وَتَسْوَدُّ وُجُوهٌ فَأَمَّا الَّذِينَ اسْوَدَّتْ وُجُوهُهُمْ أَكْفَرْتُم بَعْدَ إِيمَانِكُمْ فَذُوقُواْ الْعَذَابَ بِمَا كُنْتُمْ تَكْفُرُونَ
107 और जिनके चेहरे पर नूर बरसता होगा वह तो ख़ुदा की रहमत(बहिश्त) में होंगे (और) उसी में सदा रहेंगे وَأَمَّا الَّذِينَ ابْيَضَّتْ وُجُوهُهُمْ فَفِي رَحْمَةِ اللّهِ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ
108 (ऐ रसूल) ये ख़ुदा की आयतें हैं जो हम तुमको ठीक (ठीक) पढ़ के सुनाते हैं और ख़ुदा सारे जहॉन के लोगों (से किसी) पर जुल्म करना नहीं चाहता تِلْكَ آيَاتُ اللّهِ نَتْلُوهَا عَلَيْكَ بِالْحَقِّ وَمَا اللّهُ يُرِيدُ ظُلْمًا لِّلْعَالَمِينَ
109 और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (सब) ख़ुदा ही का है और (आख़िर) सब कामों की रूज़ु ख़ुदा ही की तरफ़ है وَلِلّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأَرْضِ وَإِلَى اللّهِ تُرْجَعُ الأُمُورُ
110 तुम क्या अच्छे गिरोह हो कि (लोगों की) हिदायत के वास्ते पैदा किये गए हो तुम (लोगों को) अच्छे काम का हुक्म करते हो और बुरे कामों से रोकते हो और ख़ुदा पर ईमान रखते हो और अगर अहले किताब भी (इसी तरह) ईमान लाते तो उनके हक़ में बहुत अच्छा होता उनमें से कुछ ही तो ईमानदार हैं और अक्सर बदकार كُنتُمْ خَيْرَ أُمَّةٍ أُخْرِجَتْ لِلنَّاسِ تَأْمُرُونَ بِالْمَعْرُوفِ وَتَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنكَرِ وَتُؤْمِنُونَ بِاللّهِ وَلَوْ آمَنَ أَهْلُ الْكِتَابِ لَكَانَ خَيْرًا لَّهُم مِّنْهُمُ الْمُؤْمِنُونَ وَأَكْثَرُهُمُ الْفَاسِقُونَ
111 (मुसलमानों) ये लोग मामूली अज़ीयत के सिवा तुम्हें हरगिज़ ज़रर नहीं पहुंचा सकते और अगर तुमसे लड़ेंगे तो उन्हें तुम्हारी तरफ़ पीठ ही करनी होगी और फिर उनकी कहीं से मदद भी नहीं पहुंचेगी لَن يَضُرُّوكُمْ إِلاَّ أَذًى وَإِن يُقَاتِلُوكُمْ يُوَلُّوكُمُ الأَدُبَارَ ثُمَّ لاَ يُنصَرُونَ
112 और जहॉ कहीं हत्ते चढ़े उनपर रूसवाई की मार पड़ी मगर ख़ुदा के एहद (या) और लोगों के एहद के ज़रिये से (उनको कहीं पनाह मिल गयी) और फिर हेरफेर के खुदा के गज़ब में पड़ गए और उनपर मोहताजी की मार (अलग) पड़ी ये (क्यों) इस सबब से कि वह ख़ुदा की आयतों से इन्कार करते थे और पैग़म्बरों को नाहक़ क़त्ल करते थे ये सज़ा उसकी है कि उन्होंने नाफ़रमानी की और हद से गुज़र गए थे ضُرِبَتْ عَلَيْهِمُ الذِّلَّةُ أَيْنَ مَا ثُقِفُواْ إِلاَّ بِحَبْلٍ مِّنْ اللّهِ وَحَبْلٍ مِّنَ النَّاسِ وَبَآؤُوا بِغَضَبٍ مِّنَ اللّهِ وَضُرِبَتْ عَلَيْهِمُ الْمَسْكَنَةُ ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ كَانُواْ يَكْفُرُونَ بِآيَاتِ اللّهِ وَيَقْتُلُونَ الأَنبِيَاء بِغَيْرِ حَقٍّ ذَلِكَ بِمَا عَصَوا وَّكَانُواْ يَعْتَدُونَ
113 और ये लोग भी सबके सब यकसॉ नहीं हैं (बल्कि) अहले किताब से कुछ लोग तो ऐसे हैं कि (ख़ुदा के दीन पर) इस तरह साबित क़दम हैं कि रातों को ख़ुदा की आयतें पढ़ा करते हैं और वह बराबर सजदे किया करते हैं لَيْسُواْ سَوَاء مِّنْ أَهْلِ الْكِتَابِ أُمَّةٌ قَآئِمَةٌ يَتْلُونَ آيَاتِ اللّهِ آنَاء اللَّيْلِ وَهُمْ يَسْجُدُونَ
114 खुदा और रोज़े आख़ेरत पर ईमान रखते हैं और अच्छे काम का तो हुक्म करते हैं और बुरे कामों से रोकते हैं और नेक कामों में दौड़ पड़ते हैं और यही लोग तो नेक बन्दों से हैं يُؤْمِنُونَ بِاللّهِ وَالْيَوْمِ الآخِرِ وَيَأْمُرُونَ بِالْمَعْرُوفِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنكَرِ وَيُسَارِعُونَ فِي الْخَيْرَاتِ وَأُوْلَـئِكَ مِنَ الصَّالِحِينَ
115 और वह जो कुछ नेकी करेंगे उसकी हरगिज़ नाक़द्री न की जाएगी और ख़ुदा परहेज़गारों से खूब वाक़िफ़ है وَمَا يَفْعَلُواْ مِنْ خَيْرٍ فَلَن يُكْفَرُوْهُ وَاللّهُ عَلِيمٌ بِالْمُتَّقِينَ
116 बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तेयार किया ख़ुदा (के अज़ाब) से बचाने में हरगिज़ न उनके माल ही कुछ काम आएंगे न उनकी औलाद और यही लोग जहन्नुमी हैं और हमेशा उसी में रहेंगे إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ لَن تُغْنِيَ عَنْهُمْ أَمْوَالُهُمْ وَلاَ أَوْلاَدُهُم مِّنَ اللّهِ شَيْئًا وَأُوْلَـئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ
117 दुनिया की चन्द रोज़ा ज़िन्दगी में ये लोग जो कुछ (ख़िलाफ़ शरा) ख़र्च करते हैं उसकी मिसाल अन्धड़ की मिसाल है जिसमें बहुत पाला हो और वह उन लोगों के खेत पर जा पड़े जिन्होंने (कुफ़्र की वजह से) अपनी जानों पर सितम ढाया हो और फिर पाला उसे मार के (नास कर दे) और ख़ुदा ने उनपर जुल्म कुछ नहीं किया बल्कि उन्होंने आप अपने ऊपर जुल्म किया مَثَلُ مَا يُنفِقُونَ فِي هِـذِهِ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا كَمَثَلِ رِيحٍ فِيهَا صِرٌّ أَصَابَتْ حَرْثَ قَوْمٍ ظَلَمُواْ أَنفُسَهُمْ فَأَهْلَكَتْهُ وَمَا ظَلَمَهُمُ اللّهُ وَلَـكِنْ أَنفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ
118 ऐ ईमानदारों अपने (मोमिनीन) के सिवा (गैरो को) अपना राज़दार न बनाओ (क्योंकि) ये गैर लोग तुम्हारी बरबादी में कुछ उठा नहीं रखेंगे (बल्कि जितना ज्यादा तकलीफ़) में पड़ोगे उतना ही ये लोग ख़ुश होंगे दुश्मनी तो उनके मुंह से टपकती है और जो (बुग़ज़ व हसद) उनके दिलों में भरा है वह कहीं उससे बढ़कर है हमने तुमसे (अपने) एहकाम साफ़ साफ़ बयान कर दिये अगर तुम समझ रखते हो يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تَتَّخِذُواْ بِطَانَةً مِّن دُونِكُمْ لاَ يَأْلُونَكُمْ خَبَالاً وَدُّواْ مَا عَنِتُّمْ قَدْ بَدَتِ الْبَغْضَاء مِنْ أَفْوَاهِهِمْ وَمَا تُخْفِي صُدُورُهُمْ أَكْبَرُ قَدْ بَيَّنَّا لَكُمُ الآيَاتِ إِن كُنتُمْ تَعْقِلُونَ
119 ऐ लोगों तुम ऐसे (सीधे) हो कि तुम उनसे उलफ़त रखतो हो और वह तुम्हें (ज़रा भी) नहीं चाहते और तुम तो पूरी किताब (ख़ुदा) पर ईमान रखते हो और वह ऐसे नहीं हैं (मगर) जब तुमसे मिलते हैं तो कहने लगते हैं कि हम भी ईमान लाए और जब अकेले में होते हैं तो तुम पर गुस्से के मारे उंगलियों काटते हैं (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (काटना क्या) तुम अपने गुस्से में जल मरो जो बातें तुम्हारे दिलों में हैं बेशक ख़ुदा ज़रूर जानता है هَاأَنتُمْ أُوْلاء تُحِبُّونَهُمْ وَلاَ يُحِبُّونَكُمْ وَتُؤْمِنُونَ بِالْكِتَابِ كُلِّهِ وَإِذَا لَقُوكُمْ قَالُواْ آمَنَّا وَإِذَا خَلَوْاْ عَضُّواْ عَلَيْكُمُ الأَنَامِلَ مِنَ الْغَيْظِ قُلْ مُوتُواْ بِغَيْظِكُمْ إِنَّ اللّهَ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ
120 (ऐ ईमानदारों) अगर तुमको भलाई छू भी गयी तो उनको बुरा मालूम होता है और जब तुमपर कोई भी मुसीबत पड़ती है तो वह ख़ुश हो जाते हैं और अगर तुम सब्र करो और परहेज़गारी इख्तेयार करो तो उनका फ़रेब तुम्हें कुछ भी ज़रर नहीं पहुंचाएगा (क्योंकि) ख़ुदा तो उनकी कारस्तानियों पर हावी है إِن تَمْسَسْكُمْ حَسَنَةٌ تَسُؤْهُمْ وَإِن تُصِبْكُمْ سَيِّئَةٌ يَفْرَحُواْ بِهَا وَإِن تَصْبِرُواْ وَتَتَّقُواْ لاَ يَضُرُّكُمْ كَيْدُهُمْ شَيْئًا إِنَّ اللّهَ بِمَا يَعْمَلُونَ مُحِيطٌ
121 और (ऐ रसूल) एक वक्त वो भी था जब तुम अपने बाल बच्चों से तड़के ही निकल खड़े हुए और मोमिनीन को लड़ाई के मोर्चों पर बिठा रहे थे और खुदा सब कुछ जानता और सुनता है وَإِذْ غَدَوْتَ مِنْ أَهْلِكَ تُبَوِّئُ الْمُؤْمِنِينَ مَقَاعِدَ لِلْقِتَالِ وَاللّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
122 ये उस वक्त क़ा वाक़या है जब तुममें से दो गिरोहों ने ठान लिया था कि पसपाई करें और फिर (सॅभल गए) क्योंकि ख़ुदा तो उनका सरपरस्त था और मोमिनीन को ख़ुदा ही पर भरोसा रखना चाहिये إِذْ هَمَّت طَّآئِفَتَانِ مِنكُمْ أَن تَفْشَلاَ وَاللّهُ وَلِيُّهُمَا وَعَلَى اللّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُونَ
123 यक़ीनन ख़ुदा ने जंगे बदर में तुम्हारी मदद की (बावजूद के) तुम (दुश्मन के मुक़ाबले में) बिल्कुल बे हक़ीक़त थे (फिर भी) ख़ुदा ने फतेह दी وَلَقَدْ نَصَرَكُمُ اللّهُ بِبَدْرٍ وَأَنتُمْ أَذِلَّةٌ فَاتَّقُواْ اللّهَ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
124 पस तुम ख़ुदा से डरते रहो ताकि (उनके) शुक्रगुज़ार बनो (ऐ रसूल) उस वक्त तुम मोमिनीन से कह रहे थे कि क्या तुम्हारे लिए काफ़ी नहीं है कि तुम्हारा परवरदिगार तीन हज़ार फ़रिश्ते आसमान से भेजकर तुम्हारी मदद करे हॉ (ज़रूर काफ़ी है) إِذْ تَقُولُ لِلْمُؤْمِنِينَ أَلَن يَكْفِيكُمْ أَن يُمِدَّكُمْ رَبُّكُم بِثَلاَثَةِ آلاَفٍ مِّنَ الْمَلآئِكَةِ مُنزَلِينَ
125 बल्कि अगर तुम साबित क़दम रहो और (रसूल की मुख़ालेफ़त से) बचो और कुफ्फ़ार अपने (जोश में) तुमपर चढ़ भी आये तो तुम्हारा परवरदिगार ऐसे पॉच हज़ार फ़रिश्तों से तुम्हारी मदद करेगा जो निशाने जंग लगाए हुए डटे होंगे और ख़ुदा ने ये मदद सिर्फ तुम्हारी ख़ुशी के लिए की है بَلَى إِن تَصْبِرُواْ وَتَتَّقُواْ وَيَأْتُوكُم مِّن فَوْرِهِمْ هَـذَا يُمْدِدْكُمْ رَبُّكُم بِخَمْسَةِ آلافٍ مِّنَ الْمَلآئِكَةِ مُسَوِّمِينَ
126 और ताकि इससे तुम्हारे दिल की ढारस हो और (ये तो ज़ाहिर है कि) मदद जब होती है तो ख़ुदा ही की तरफ़ से जो सब पर ग़ालिब (और) हिकमत वाला है وَمَا جَعَلَهُ اللّهُ إِلاَّ بُشْرَى لَكُمْ وَلِتَطْمَئِنَّ قُلُوبُكُم بِهِ وَمَا النَّصْرُ إِلاَّ مِنْ عِندِ اللّهِ الْعَزِيزِ الْحَكِيمِ
127 (और यह मदद की भी तो) इसलिए कि काफ़िरों के एक गिरोह को कम कर दे या ऐसा चौपट कर दे कि (अपना सा) मुंह लेकर नामुराद अपने घर वापस चले जायें لِيَقْطَعَ طَرَفًا مِّنَ الَّذِينَ كَفَرُواْ أَوْ يَكْبِتَهُمْ فَيَنقَلِبُواْ خَآئِبِينَ
128 (ऐ रसूल) तुम्हारा तो इसमें कुछ बस नहीं चाहे ख़ुदा उनकी तौबा कुबूल करे या उनको सज़ा दे क्योंकि वह ज़ालिम तो ज़रूर हैं لَيْسَ لَكَ مِنَ الأَمْرِ شَيْءٌ أَوْ يَتُوبَ عَلَيْهِمْ أَوْ يُعَذَّبَهُمْ فَإِنَّهُمْ ظَالِمُونَ
129 और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है सब ख़ुदा ही का है जिसको चाहे बख्शे और जिसको चाहे सज़ा करे और ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबार है وَلِلّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأَرْضِ يَغْفِرُ لِمَن يَشَاء وَيُعَذِّبُ مَن يَشَاء وَاللّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
130 ऐ ईमानदारों सूद दनादन खाते न चले जाओ और ख़ुदा से डरो कि तुम छुटकारा पाओ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تَأْكُلُواْ الرِّبَا أَضْعَافًا مُّضَاعَفَةً وَاتَّقُواْ اللّهَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ
131 और जहन्नुम की उस आग से डरो जो काफ़िरों के लिए तैयार की गयी है وَاتَّقُواْ النَّارَ الَّتِي أُعِدَّتْ لِلْكَافِرِينَ
132 और ख़ुदा और रसूल की फ़रमाबरदारी करो ताकि तुम पर रहम किया जाए وَأَطِيعُواْ اللّهَ وَالرَّسُولَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ
133 और अपने परवरदिगार के (सबब) बख्शिश और जन्नत की तरफ़ दौड़ पड़ो जिसकी (वुसअत सारे) आसमान और ज़मीन के बराबर है और जो परहेज़गारों के लिये मुहय्या की गयी है وَسَارِعُواْ إِلَى مَغْفِرَةٍ مِّن رَّبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا السَّمَاوَاتُ وَالأَرْضُ أُعِدَّتْ لِلْمُتَّقِينَ
134 जो ख़ुशहाली और कठिन वक्त में भी (ख़ुदा की राह पर) ख़र्च करते हैं और गुस्से को रोकते हैं और लोगों (की ख़ता) से दरगुज़र करते हैं और नेकी करने वालों से अल्लाह उलफ़त रखता है الَّذِينَ يُنفِقُونَ فِي السَّرَّاء وَالضَّرَّاء وَالْكَاظِمِينَ الْغَيْظَ وَالْعَافِينَ عَنِ النَّاسِ وَاللّهُ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ
135 और लोग इत्तिफ़ाक़ से कोई बदकारी कर बैठते हैं या आप अपने ऊपर जुल्म करते हैं तो ख़ुदा को याद करते हैं और अपने गुनाहों की माफ़ी मॉगते हैं और ख़ुदा के सिवा गुनाहों का बख्शने वाला और कौन है और जो (क़ूसूर) वह (नागहानी) कर बैठे तो जानबूझ कर उसपर हट नहीं करते وَالَّذِينَ إِذَا فَعَلُواْ فَاحِشَةً أَوْ ظَلَمُواْ أَنْفُسَهُمْ ذَكَرُواْ اللّهَ فَاسْتَغْفَرُواْ لِذُنُوبِهِمْ وَمَن يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إِلاَّ اللّهُ وَلَمْ يُصِرُّواْ عَلَى مَا فَعَلُواْ وَهُمْ يَعْلَمُونَ
136 ऐसे ही लोगों की जज़ा उनके परवरदिगार की तरफ़ से बख्शिश है और वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं कि वह उनमें हमेशा रहेंगे और (अच्छे) चलन वालों की (भी) ख़ूब खरी मज़दूरी है أُوْلَـئِكَ جَزَآؤُهُم مَّغْفِرَةٌ مِّن رَّبِّهِمْ وَجَنَّاتٌ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا وَنِعْمَ أَجْرُ الْعَامِلِينَ
137 तुमसे पहले बहुत से वाक़यात गुज़र चुके हैं पस ज़रा रूए ज़मीन पर चल फिर कर देखो तो कि (अपने अपने वक्त क़े पैग़म्बरों को) झुठलाने वालों का अन्जाम क्या हुआ قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِكُمْ سُنَنٌ فَسِيرُواْ فِي الأَرْضِ فَانْظُرُواْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُكَذَّبِينَ
138 ये (जो हमने कहा) आम लोगों के लिए तो सिर्फ़ बयान (वाक़या) है मगर और परहेज़गारों के लिए हिदायत व नसीहत है هَـذَا بَيَانٌ لِّلنَّاسِ وَهُدًى وَمَوْعِظَةٌ لِّلْمُتَّقِينَ
139 और मुसलमानों काहिली न करो और (इस) इत्तफ़ाक़ी शिकस्त (ओहद से) कुढ़ो नहीं (क्योंकि) अगर तुम सच्चे मोमिन हो तो तुम ही ग़ालिब और वर रहोगे وَلاَ تَهِنُوا وَلاَ تَحْزَنُوا وَأَنتُمُ الأَعْلَوْنَ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
140 अगर (जंगे ओहद में) तुमको ज़ख्म लगा है तो उसी तरह (बदर में) तुम्हारे फ़रीक़ (कुफ्फ़ार को) भी ज़ख्म लग चुका है (उस पर उनकी हिम्मत तो न टूटी) ये इत्तफ़ाक़ाते ज़माना हैं जो हम लोगों के दरमियान बारी बारी उलट फेर किया करते हैं और ये (इत्तफ़ाक़ी शिकस्त इसलिए थी) ताकि ख़ुदा सच्चे ईमानदारों को (ज़ाहिरी) मुसलमानों से अलग देख लें और तुममें से बाज़ को दरजाए शहादत पर फ़ायज़ करें और ख़ुदा (हुक्मे रसूल से) सरताबी करने वालों को दोस्त नहीं रखता إِن يَمْسَسْكُمْ قَرْحٌ فَقَدْ مَسَّ الْقَوْمَ قَرْحٌ مِّثْلُهُ وَتِلْكَ الأيَّامُ نُدَاوِلُهَا بَيْنَ النَّاسِ وَلِيَعْلَمَ اللّهُ الَّذِينَ آمَنُواْ وَيَتَّخِذَ مِنكُمْ شُهَدَاء وَاللّهُ لاَ يُحِبُّ الظَّالِمِينَ
141 और ये (भी मंजूर था) कि सच्चे ईमानदारों को (साबित क़दमी की वजह से) निरा खरा अलग कर ले और नाफ़रमानों (भागने वालों) का मटियामेट कर दे وَلِيُمَحِّصَ اللّهُ الَّذِينَ آمَنُواْ وَيَمْحَقَ الْكَافِرِينَ
142 (मुसलमानों) क्या तुम ये समझते हो कि सब के सब बहिश्त में चले ही जाओगे और क्या ख़ुदा ने अभी तक तुममें से उन लोगों को भी नहीं पहचाना जिन्होंने जेहाद किया और न साबित क़दम रहने वालों को ही पहचाना أَمْ حَسِبْتُمْ أَن تَدْخُلُواْ الْجَنَّةَ وَلَمَّا يَعْلَمِ اللّهُ الَّذِينَ جَاهَدُواْ مِنكُمْ وَيَعْلَمَ الصَّابِرِينَ
143 तुम तो मौत के आने से पहले (लड़ाई में) मरने की तमन्ना करते थे बस अब तुमने उसको अपनी ऑख से देख लिया और तुम अब भी देख रहे हो وَلَقَدْ كُنتُمْ تَمَنَّوْنَ الْمَوْتَ مِن قَبْلِ أَن تَلْقَوْهُ فَقَدْ رَأَيْتُمُوهُ وَأَنتُمْ تَنظُرُونَ
144 (फिर लड़ाई से जी क्यों चुराते हो) और मोहम्मद तो सिर्फ रसूल हैं (ख़ुदा नहीं) इनसे पहले बहुतेरे पैग़म्बर गुज़र चुके हैं फिर क्या अगर मोहम्मद अपनी मौत से मर जॉए या मार डाले जाएं तो तुम उलटे पॉव (अपने कुफ़्र की तरफ़) पलट जाओगे और जो उलटे पॉव फिरेगा (भी) तो (समझ लो) हरगिज़ ख़ुदा का कुछ भी नहीं बिगड़ेगा और अनक़रीब ख़ुदा का शुक्र करने वालों को अच्छा बदला देगा وَمَا مُحَمَّدٌ إِلاَّ رَسُولٌ قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِهِ الرُّسُلُ أَفَإِن مَّاتَ أَوْ قُتِلَ انقَلَبْتُمْ عَلَى أَعْقَابِكُمْ وَمَن يَنقَلِبْ عَلَىَ عَقِبَيْهِ فَلَن يَضُرَّ اللّهَ شَيْئًا وَسَيَجْزِي اللّهُ الشَّاكِرِينَ
145 और बगैर हुक्मे ख़ुदा के तो कोई शख्स मर ही नहीं सकता वक्ते मुअय्यन तक हर एक की मौत लिखी हुई है और जो शख्स (अपने किए का) बदला दुनिया में चाहे तो हम उसको इसमें से दे देते हैं और जो शख्स आख़ेरत का बदला चाहे उसे उसी में से देंगे और (नेअमत ईमान के) शुक्र करने वालों को बहुत जल्द हम जज़ाए खैर देंगे وَمَا كَانَ لِنَفْسٍ أَنْ تَمُوتَ إِلاَّ بِإِذْنِ الله كِتَابًا مُّؤَجَّلاً وَمَن يُرِدْ ثَوَابَ الدُّنْيَا نُؤْتِهِ مِنْهَا وَمَن يُرِدْ ثَوَابَ الآخِرَةِ نُؤْتِهِ مِنْهَا وَسَنَجْزِي الشَّاكِرِينَ
146 और (मुसलमानों तुम ही नहीं) ऐसे पैग़म्बर बहुत से गुज़र चुके हैं जिनके साथ बहुतेरे अल्लाह वालों ने (राहे खुदा में) जेहाद किया और फिर उनको ख़ुदा की राह में जो मुसीबत पड़ी है न तो उन्होंने हिम्मत हारी न बोदापन किया (और न दुशमन के सामने) गिड़गिड़ाने लगे और साबित क़दम रहने वालों से ख़ुदा उलफ़त रखता है وَكَأَيِّن مِّن نَّبِيٍّ قَاتَلَ مَعَهُ رِبِّيُّونَ كَثِيرٌ فَمَا وَهَنُواْ لِمَا أَصَابَهُمْ فِي سَبِيلِ اللّهِ وَمَا ضَعُفُواْ وَمَا اسْتَكَانُواْ وَاللّهُ يُحِبُّ الصَّابِرِينَ
147 और लुत्फ़ ये है कि उनका क़ौल इसके सिवा कुछ न था कि दुआएं मॉगने लगें कि ऐ हमारे पालने वाले हमारे गुनाह और अपने कामों में हमारी ज्यादतियॉ माफ़ कर और दुश्मनों के मुक़ाबले में हमको साबित क़दम रख और काफ़िरों के गिरोह पर हमको फ़तेह दे وَمَا كَانَ قَوْلَهُمْ إِلاَّ أَن قَالُواْ ربَّنَا اغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا وَإِسْرَافَنَا فِي أَمْرِنَا وَثَبِّتْ أَقْدَامَنَا وانصُرْنَا عَلَى الْقَوْمِ الْكَافِرِينَ
148 तो ख़ुदा ने उनको दुनिया में बदला (दिया) और आख़िरत में अच्छा बदला ईनायत फ़रमाया और ख़ुदा नेकी करने वालों को दोस्त रखता (ही) है فَآتَاهُمُ اللّهُ ثَوَابَ الدُّنْيَا وَحُسْنَ ثَوَابِ الآخِرَةِ وَاللّهُ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ
149 ऐ ईमानदारों अगर तुम लोगों ने काफ़िरों की पैरवी कर ली तो (याद रखो) वह तुमको उलटे पॉव (कुफ़्र की तरफ़) फेर कर ले जाऐंगे फिर उलटे तुम ही घाटे में आ जाओगे يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوَاْ إِن تُطِيعُواْ الَّذِينَ كَفَرُواْ يَرُدُّوكُمْ عَلَى أَعْقَابِكُمْ فَتَنقَلِبُواْ خَاسِرِينَ
150 (तुम किसी की मदद के मोहताज नहीं) बल्कि ख़ुदा तुम्हारा सरपरस्त है और वह सब मददगारों से बेहतर है بَلِ اللّهُ مَوْلاَكُمْ وَهُوَ خَيْرُ النَّاصِرِينَ
151 (तुम घबराओ नहीं) हम अनक़रीब तुम्हारा रोब काफ़िरों के दिलों में जमा देंगे इसलिए कि उन लोगों ने ख़ुदा का शरीक बनाया (भी तो) इस चीज़ बुत को जिसे ख़ुदा ने किसी क़िस्म की हुकूमत नहीं दी और (आख़िरकार) उनका ठिकाना दौज़ख़ है और ज़ालिमों का (भी क्या) बुरा ठिकाना है سَنُلْقِي فِي قُلُوبِ الَّذِينَ كَفَرُواْ الرُّعْبَ بِمَا أَشْرَكُواْ بِاللّهِ مَا لَمْ يُنَزِّلْ بِهِ سُلْطَانًا وَمَأْوَاهُمُ النَّارُ وَبِئْسَ مَثْوَى الظَّالِمِينَ
152 बेशक खुदा ने (जंगे औहद में भी) अपना (फतेह का) वायदा सच्चा कर दिखाया था जब तुम उसके हुक्म से (पहले ही हमले में) उन (कुफ्फ़ार) को खूब क़त्ल कर रहे थे यहॉ तक की तुम्हारे पसन्द की चीज़ (फ़तेह) तुम्हें दिखा दी उसके बाद भी तुमने (माले ग़नीमत देखकर) बुज़दिलापन किया और हुक्में रसूल (मोर्चे पर जमे रहने) झगड़ा किया और रसूल की नाफ़रमानी की तुममें से कुछ तो तालिबे दुनिया हैं (कि माले ग़नीमत की तरफ़) से झुक पड़े और कुछ तालिबे आख़िरत (कि रसूल पर अपनी जान फ़िदा कर दी) फिर (बुज़दिलेपन ने) तुम्हें उन (कुफ्फ़ार) की की तरफ से फेर दिया (और तुम भाग खड़े हुए) उससे ख़ुदा को तुम्हारा (ईमान अख़लासी) आज़माना मंज़ूर था और (उसपर भी) ख़ुदा ने तुमसे दरगुज़र की और खुदा मोमिनीन पर बड़ा फ़ज़ल करने वाला है وَلَقَدْ صَدَقَكُمُ اللّهُ وَعْدَهُ إِذْ تَحُسُّونَهُم بِإِذْنِهِ حَتَّى إِذَا فَشِلْتُمْ وَتَنَازَعْتُمْ فِي الأَمْرِ وَعَصَيْتُم مِّن بَعْدِ مَا أَرَاكُم مَّا تُحِبُّونَ مِنكُم مَّن يُرِيدُ الدُّنْيَا وَمِنكُم مَّن يُرِيدُ الآخِرَةَ ثُمَّ صَرَفَكُمْ عَنْهُمْ لِيَبْتَلِيَكُمْ وَلَقَدْ عَفَا عَنكُمْ وَاللّهُ ذُو فَضْلٍ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ
153 (मुसलमानों तुम) उस वक्त क़ो याद करके शर्माओ जब तुम (बदहवास) भागे पहाड़ पर चले जाते थे पस (चूंकि) रसूल को तुमने (आज़ारदा) किया ख़ुदा ने भी तुमको (इस) रंज की सज़ा में (शिकस्त का) रंज दिया ताकि जब कभी तुम्हारी कोई चीज़ हाथ से जाती रहे या कोई मुसीबत पड़े तो तुम रंज न करो और सब्र करना सीखो और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़बरदार है إِذْ تُصْعِدُونَ وَلاَ تَلْوُونَ عَلَى أحَدٍ وَالرَّسُولُ يَدْعُوكُمْ فِي أُخْرَاكُمْ فَأَثَابَكُمْ غُمَّاً بِغَمٍّ لِّكَيْلاَ تَحْزَنُواْ عَلَى مَا فَاتَكُمْ وَلاَ مَا أَصَابَكُمْ وَاللّهُ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ
154 फिर ख़ुदा ने इस रंज के बाद तुमपर इत्मिनान की हालत तारी की कि तुममें से एक गिरोह का (जो सच्चे ईमानदार थे) ख़ूब गहरी नींद आ गयी और एक गिरोह जिनको उस वक्त भी (भागने की शर्म से) जान के लाले पड़े थे ख़ुदा के साथ (ख्वाह मख्वाह) ज़मानाए जिहालत की ऐसी बदगुमानियॉ करने लगे और कहने लगे भला क्या ये अम्र (फ़तेह) कुछ भी हमारे इख्तियार में है (ऐ रसूल) कह दो कि हर अम्र का इख्तियार ख़ुदा ही को है (ज़बान से तो कहते ही है नहीं) ये अपने दिलों में ऐसी बातें छिपाए हुए हैं जो तुमसे ज़ाहिर नहीं करते (अब सुनो) कहते हैं कि इस अम्र (फ़तेह) में हमारा कुछ इख़्तियार होता तो हम यहॉ मारे न जाते (ऐ रसूल उनसे) कह दो कि तुम अपने घरों में रहते तो जिन जिन की तकदीर में लड़के मर जाना लिखा था वह अपने (घरो से) निकल निकल के अपने मरने की जगह ज़रूर आ जाते और (ये इस वास्ते किया गया) ताकि जो कुछ तुम्हारे दिल में है उसका इम्तिहान कर दे और ख़ुदा तो दिलों के राज़ खूब जानता है ثُمَّ أَنزَلَ عَلَيْكُم مِّن بَعْدِ الْغَمِّ أَمَنَةً نُّعَاسًا يَغْشَى طَآئِفَةً مِّنكُمْ وَطَآئِفَةٌ قَدْ أَهَمَّتْهُمْ أَنفُسُهُمْ يَظُنُّونَ بِاللّهِ غَيْرَ الْحَقِّ ظَنَّ الْجَاهِلِيَّةِ يَقُولُونَ هَل لَّنَا مِنَ الأَمْرِ مِن شَيْءٍ قُلْ إِنَّ الأَمْرَ كُلَّهُ لِلَّهِ يُخْفُونَ فِي أَنفُسِهِم مَّا لاَ يُبْدُونَ لَكَ يَقُولُونَ لَوْ كَانَ لَنَا مِنَ الأَمْرِ شَيْءٌ مَّا قُتِلْنَا هَاهُنَا قُل لَّوْ كُنتُمْ فِي بُيُوتِكُمْ لَبَرَزَ الَّذِينَ كُتِبَ عَلَيْهِمُ الْقَتْلُ إِلَى مَضَاجِعِهِمْ وَلِيَبْتَلِيَ اللّهُ مَا فِي صُدُورِكُمْ وَلِيُمَحَّصَ مَا فِي قُلُوبِكُمْ وَاللّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ
155 बेशक जिस दिन (जंगे औहद में) दो जमाअतें आपस में गुथ गयीं उस दिन जो लोग तुम (मुसलमानों) में से भाग खड़े हुए (उसकी वजह ये थी कि) उनके बाज़ गुनाहों (मुख़ालफ़ते रसूल) की वजह से शैतान ने बहका के उनके पॉव उखाड़ दिए और (उसी वक्त तो) ख़ुदा ने ज़रूर उनसे दरगुज़र की बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला बुर्दवार है إِنَّ الَّذِينَ تَوَلَّوْاْ مِنكُمْ يَوْمَ الْتَقَى الْجَمْعَانِ إِنَّمَا اسْتَزَلَّهُمُ الشَّيْطَانُ بِبَعْضِ مَا كَسَبُواْ وَلَقَدْ عَفَا اللّهُ عَنْهُمْ إِنَّ اللّهَ غَفُورٌ حَلِيمٌ
156 ऐ ईमानदारों उन लोगों के ऐसे न बनो जो काफ़िर हो गए भाई बन्द उनके परदेस में निकले हैं या जेहाद करने गए हैं (और वहॉ) मर (गए) तो उनके बारे में कहने लगे कि वह हमारे पास रहते तो न मरते ओर न मारे जाते (और ये इस वजह से कहते हैं) ताकि ख़ुदा (इस ख्याल को) उनके दिलों में (बाइसे) हसरत बना दे और (यूं तो) ख़ुदा ही जिलाता और मारता है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उसे देख रहा है يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تَكُونُواْ كَالَّذِينَ كَفَرُواْ وَقَالُواْ لإِخْوَانِهِمْ إِذَا ضَرَبُواْ فِي الأَرْضِ أَوْ كَانُواْ غُزًّى لَّوْ كَانُواْ عِندَنَا مَا مَاتُواْ وَمَا قُتِلُواْ لِيَجْعَلَ اللّهُ ذَلِكَ حَسْرَةً فِي قُلُوبِهِمْ وَاللّهُ يُحْيِـي وَيُمِيتُ وَاللّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ
157 और अगर तुम ख़ुदा की राह में मारे जाओ या (अपनी मौत से) मर जाओ तो बेशक ख़ुदा की बख्शिश और रहमत इस (माल व दौलत) से जिसको तुम जमा करते हो ज़रूर बेहतर है وَلَئِن قُتِلْتُمْ فِي سَبِيلِ اللّهِ أَوْ مُتُّمْ لَمَغْفِرَةٌ مِّنَ اللّهِ وَرَحْمَةٌ خَيْرٌ مِّمَّا يَجْمَعُونَ
158 और अगर तुम (अपनी मौत से) मरो या मारे जाओ (आख़िरकार) ख़ुदा ही की तरफ़ (क़ब्रों से) उठाए जाओगे وَلَئِن مُّتُّمْ أَوْ قُتِلْتُمْ لإِلَى الله تُحْشَرُونَ
159 (तो ऐ रसूल ये भी) ख़ुदा की एक मेहरबानी है कि तुम (सा) नरमदिल (सरदार) उनको मिला और तुम अगर बदमिज़ाज और सख्त दिल होते तब तो ये लोग (ख़ुदा जाने कब के) तुम्हारे गिर्द से तितर बितर हो गए होते पस (अब भी) तुम उनसे दरगुज़र करो और उनके लिए मग़फेरत की दुआ मॉगो और (साबिक़ दस्तूरे ज़ाहिरा) उनसे काम काज में मशवरा कर लिया करो (मगर) इस पर भी जब किसी काम को ठान लो तो ख़ुदा ही पर भरोसा रखो (क्योंकि जो लोग ख़ुदा पर भरोसा रखते हैं ख़ुदा उनको ज़रूर दोस्त रखता है فَبِمَا رَحْمَةٍ مِّنَ اللّهِ لِنتَ لَهُمْ وَلَوْ كُنتَ فَظًّا غَلِيظَ الْقَلْبِ لاَنفَضُّواْ مِنْ حَوْلِكَ فَاعْفُ عَنْهُمْ وَاسْتَغْفِرْ لَهُمْ وَشَاوِرْهُمْ فِي الأَمْرِ فَإِذَا عَزَمْتَ فَتَوَكَّلْ عَلَى اللّهِ إِنَّ اللّهَ يُحِبُّ الْمُتَوَكِّلِينَ
160 (मुसलमानों याद रखो) अगर ख़ुदा ने तुम्हारी मदद की तो फिर कोई तुमपर ग़ालिब नहीं आ सकता और अगर ख़ुदा तुमको छोड़ दे तो फिर कौन ऐसा है जो उसके बाद तुम्हारी मदद को खड़ा हो और मोमिनीन को चाहिये कि ख़ुदा ही पर भरोसा रखें إِن يَنصُرْكُمُ اللّهُ فَلاَ غَالِبَ لَكُمْ وَإِن يَخْذُلْكُمْ فَمَن ذَا الَّذِي يَنصُرُكُم مِّن بَعْدِهِ وَعَلَى اللّهِ فَلْيَتَوَكِّلِ الْمُؤْمِنُونَ
161 और (तुम्हारा गुमान बिल्कुल ग़लत है) किसी नबी की (हरगिज़) ये शान नहीं कि ख्यानत करे और ख्यानत करेगा तो जो चीज़ ख्यानत की है क़यामत के दिन वही चीज़ (बिलकुल वैसा ही) ख़ुदा के सामने लाना होगा फिर हर शख्स अपने किए का पूरा पूरा बदला पाएगा और उनकी किसी तरह हक़तल्फ़ी नहीं की जाएगी وَمَا كَانَ لِنَبِيٍّ أَن يَغُلَّ وَمَن يَغْلُلْ يَأْتِ بِمَا غَلَّ يَوْمَ الْقِيَامَةِ ثُمَّ تُوَفَّى كُلُّ نَفْسٍ مَّا كَسَبَتْ وَهُمْ لاَ يُظْلَمُونَ
162 भला जो शख्स ख़ुदा की ख़ुशनूदी का पाबन्द हो क्या वह उस शख्स के बराबर हो सकता है जो ख़ुदा के गज़ब में गिरफ्तार हो और जिसका ठिकाना जहन्नुम है और वह क्या बुरा ठिकाना है أَفَمَنِ اتَّبَعَ رِضْوَانَ اللّهِ كَمَن بَاء بِسَخْطٍ مِّنَ اللّهِ وَمَأْوَاهُ جَهَنَّمُ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ
163 वह लोग खुदा के यहॉ मुख्तलिफ़ दरजों के हैं और जो कुछ वह करते हैं ख़ुदा देख रहा है هُمْ دَرَجَاتٌ عِندَ اللّهِ واللّهُ بَصِيرٌ بِمَا يَعْمَلُونَ
164 ख़ुदा ने तो ईमानदारों पर बड़ा एहसान किया कि उनके वास्ते उन्हीं की क़ौम का एक रसूल भेजा जो उन्हें खुदा की आयतें पढ़ पढ़ के सुनाता है और उनकी तबीयत को पाकीज़ा करता है और उन्हें किताबे (ख़ुदा) और अक्ल की बातें सिखाता है अगरचे वह पहले खुली हुई गुमराही में पडे थे لَقَدْ مَنَّ اللّهُ عَلَى الْمُؤمِنِينَ إِذْ بَعَثَ فِيهِمْ رَسُولاً مِّنْ أَنفُسِهِمْ يَتْلُو عَلَيْهِمْ آيَاتِهِ وَيُزَكِّيهِمْ وَيُعَلِّمُهُمُ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَإِن كَانُواْ مِن قَبْلُ لَفِي ضَلالٍ مُّبِينٍ
165 मुसलमानों क्या जब तुमपर (जंगे ओहद) में वह मुसीबत पड़ी जिसकी दूनी मुसीबत तुम (कुफ्फ़ार पर) डाल चुके थे तो (घबरा के) कहने लगे ये (आफ़त) कहॉ से आ गयी (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ये तो खुद तुम्हारी ही तरफ़ से है (न रसूल की मुख़ालेफ़त करते न सज़ा होती) बेशक ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है أَوَلَمَّا أَصَابَتْكُم مُّصِيبَةٌ قَدْ أَصَبْتُم مِّثْلَيْهَا قُلْتُمْ أَنَّى هَـذَا قُلْ هُوَ مِنْ عِندِ أَنْفُسِكُمْ إِنَّ اللّهَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
166 और जिस दिन दो जमाअतें आपस में गुंथ गयीं उस दिन तुम पर जो मुसीबत पड़ी वह तुम्हारी शरारत की वजह से (ख़ुदा के इजाजत की वजह से आयी) और ताकि ख़ुदा सच्चे ईमान वालों को देख ले وَمَا أَصَابَكُمْ يَوْمَ الْتَقَى الْجَمْعَانِ فَبِإِذْنِ اللّهِ وَلِيَعْلَمَ الْمُؤْمِنِينَ
167 और मुनाफ़िक़ों को देख ले (कि कौन है) और मुनाफ़िक़ों से कहा गया कि आओ ख़ुदा की राह में जेहाद करो या (ये न सही अपने दुशमन को) हटा दो तो कहने लगे (हाए क्या कहीं) अगर हम लड़ना जानते तो ज़रूर तुम्हारा साथ देते ये लोग उस दिन बनिस्बते ईमान के कुफ़्र के ज्यादा क़रीब थे अपने मुंह से वह बातें कह देते हैं जो उनके दिल में (ख़ाक) नहीं होतीं और जिसे वह छिपाते हैं ख़ुदा उसे ख़ूब जानता है وَلْيَعْلَمَ الَّذِينَ نَافَقُواْ وَقِيلَ لَهُمْ تَعَالَوْاْ قَاتِلُواْ فِي سَبِيلِ اللّهِ أَوِ ادْفَعُواْ قَالُواْ لَوْ نَعْلَمُ قِتَالاً لاَّتَّبَعْنَاكُمْ هُمْ لِلْكُفْرِ يَوْمَئِذٍ أَقْرَبُ مِنْهُمْ لِلإِيمَانِ يَقُولُونَ بِأَفْوَاهِهِم مَّا لَيْسَ فِي قُلُوبِهِمْ وَاللّهُ أَعْلَمُ بِمَا يَكْتُمُونَ
168 (ये वही लोग हैं) जो (आप चैन से घरों में बैठे रहते है और अपने शहीद) भाईयों के बारे में कहने लगे काश हमारी पैरवी करते तो न मारे जाते (ऐ रसूल) उनसे कहो (अच्छा) अगर तुम सच्चे हो तो ज़रा अपनी जान से मौत को टाल दो الَّذِينَ قَالُواْ لإِخْوَانِهِمْ وَقَعَدُواْ لَوْ أَطَاعُونَا مَا قُتِلُوا قُلْ فَادْرَؤُوا عَنْ أَنفُسِكُمُ الْمَوْتَ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ
169 और जो लोग ख़ुदा की राह में शहीद किए गए उन्हें हरगिज़ मुर्दा न समझना बल्कि वह लोग जीते जागते मौजूद हैं अपने परवरदिगार की तरफ़ से वह (तरह तरह की) रोज़ी पाते हैं وَلاَ تَحْسَبَنَّ الَّذِينَ قُتِلُواْ فِي سَبِيلِ اللّهِ أَمْوَاتًا بَلْ أَحْيَاء عِندَ رَبِّهِمْ يُرْزَقُونَ
170 और ख़ुदा ने जो फ़ज़ल व करम उन पर किया है उसकी (ख़ुशी) से फूले नहीं समाते और जो लोग उनसे पीछे रह गए और उनमें आकर शामिल नहीं हुए उनकी निस्बत ये (ख्याल करके) ख़ुशियॉ मनाते हैं कि (ये भी शहीद हों तो) उनपर न किसी क़िस्म का ख़ौफ़ होगा और न आज़ुर्दा ख़ातिर होंगे فَرِحِينَ بِمَا آتَاهُمُ اللّهُ مِن فَضْلِهِ وَيَسْتَبْشِرُونَ بِالَّذِينَ لَمْ يَلْحَقُواْ بِهِم مِّنْ خَلْفِهِمْ أَلاَّ خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلاَ هُمْ َيحْزَنُونَ
171 ख़ुदा नेअमत और उसके फ़ज़ल (व करम) और इस बात की ख़ुशख़बरी पाकर कि ख़ुदा मोमिनीन के सवाब को बरबाद नहीं करता يَسْتَبْشِرُونَ بِنِعْمَةٍ مِّنَ اللّهِ وَفَضْلٍ وَأَنَّ اللّهَ لاَ يُضِيعُ أَجْرَ الْمُؤْمِنِينَ
172 निहाल हो रहे हैं (जंगे ओहद में) जिन लोगों ने जख्म खाने के बाद भी ख़ुदा और रसूल का कहना माना उनमें से जिन लोगों ने नेकी और परहेज़गारी की (सब के लिये नहीं सिर्फ) उनके लिये बड़ा सवाब है الَّذِينَ اسْتَجَابُواْ لِلّهِ وَالرَّسُولِ مِن بَعْدِ مَا أَصَابَهُمُ الْقَرْحُ لِلَّذِينَ أَحْسَنُواْ مِنْهُمْ وَاتَّقَواْ أَجْرٌ عَظِيمٌ
173 यह वह हैं कि जब उनसे लोगों ने आकर कहना शुरू किया कि (दुशमन) लोगों ने तुम्हारे (मुक़ाबले के) वास्ते (बड़ा लश्कर) जमा किया है पस उनसे डरते (तो बजाए ख़ौफ़ के) उनका ईमान और ज्यादा हो गया और कहने लगे (होगा भी) ख़ुदा हमारे वास्ते काफ़ी है الَّذِينَ قَالَ لَهُمُ النَّاسُ إِنَّ النَّاسَ قَدْ جَمَعُواْ لَكُمْ فَاخْشَوْهُمْ فَزَادَهُمْ إِيمَاناً وَقَالُواْ حَسْبُنَا اللّهُ وَنِعْمَ الْوَكِيلُ
174 और वह क्या अच्छा कारसाज़ है फिर (या तो हिम्मत करके गए मगर जब लड़ाई न हुई तो) ये लोग ख़ुदा की नेअमत और फ़ज़ल के साथ (अपने घर) वापस आए और उन्हें कोई बुराई छू भी नहीं गयी और ख़ुदा की ख़ुशनूदी के पाबन्द रहे और ख़ुदा बड़ा फ़ज़ल करने वाला है فَانقَلَبُواْ بِنِعْمَةٍ مِّنَ اللّهِ وَفَضْلٍ لَّمْ يَمْسَسْهُمْ سُوءٌ وَاتَّبَعُواْ رِضْوَانَ اللّهِ وَاللّهُ ذُو فَضْلٍ عَظِيمٍ
175 यह (मुख्बिर) बस शैतान था जो सिर्फ़ अपने दोस्तों को (रसूल का साथ देने से) डराता है पस तुम उनसे तो डरो नहीं अगर सच्चे मोमिन हो तो मुझ ही से डरते रहो إِنَّمَا ذَلِكُمُ الشَّيْطَانُ يُخَوِّفُ أَوْلِيَاءهُ فَلاَ تَخَافُوهُمْ وَخَافُونِ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
176 और (ऐ रसूल) जो लोग कुफ़्र की (मदद) में पेश क़दमी कर जाते हैं उनकी वजह से तुम रन्ज न करो क्योंकि ये लोग ख़ुदा को कुछ ज़रर नहीं पहुँचा सकते (बल्कि) ख़ुदा तो ये चाहता है कि आख़ेरत में उनका हिस्सा न क़रार दे और उनके लिए बड़ा (सख्त) अज़ाब है وَلاَ يَحْزُنكَ الَّذِينَ يُسَارِعُونَ فِي الْكُفْرِ إِنَّهُمْ لَن يَضُرُّواْ اللّهَ شَيْئاً يُرِيدُ اللّهُ أَلاَّ يَجْعَلَ لَهُمْ حَظًّا فِي الآخِرَةِ وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ
177 बेशक जिन लोगों ने ईमान के एवज़ कुफ़्र ख़रीद किया वह हरगिज़ खुदा का कुछ भी नहीं बिगाड़ेंगे (बल्कि आप अपना) और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है إِنَّ الَّذِينَ اشْتَرَوُاْ الْكُفْرَ بِالإِيمَانِ لَن يَضُرُّواْ اللّهَ شَيْئًا وَلهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
178 और जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तियार किया वह हरगिज़ ये न ख्याल करें कि हमने जो उनको मोहलत व बेफिक्री दे रखी है वह उनके हक़ में बेहतर है (हालॉकि) हमने मोहल्लत व बेफिक्री सिर्फ इस वजह से दी है ताकि वह और ख़ूब गुनाह कर लें और (आख़िर तो) उनके लिए रूसवा करने वाला अज़ाब है وَلاَ يَحْسَبَنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ أَنَّمَا نُمْلِي لَهُمْ خَيْرٌ لِّأَنفُسِهِمْ إِنَّمَا نُمْلِي لَهُمْ لِيَزْدَادُواْ إِثْمًا وَلَهْمُ عَذَابٌ مُّهِينٌ
179 (मुनाफ़िक़ो) ख़ुदा ऐसा नहीं कि बुरे भले की तमीज़ किए बगैर जिस हालत पर तुम हो उसी हालत पर मोमिनों को भी छोड़ दे और ख़ुदा ऐसा भी नहीं है कि तुम्हें गैब की बातें बता दे मगर (हॉ) ख़ुदा अपने रसूलों में जिसे चाहता है (गैब बताने के वास्ते) चुन लेता है पस ख़ुदा और उसके रसूलों पर ईमान लाओ और अगर तुम ईमान लाओगे और परहेज़गारी करोगे तो तुम्हारे वास्ते बड़ी जज़ाए ख़ैर है مَّا كَانَ اللّهُ لِيَذَرَ الْمُؤْمِنِينَ عَلَى مَا أَنتُمْ عَلَيْهِ حَتَّىَ يَمِيزَ الْخَبِيثَ مِنَ الطَّيِّبِ وَمَا كَانَ اللّهُ لِيُطْلِعَكُمْ عَلَى الْغَيْبِ وَلَكِنَّ اللّهَ يَجْتَبِي مِن رُّسُلِهِ مَن يَشَاء فَآمِنُواْ بِاللّهِ وَرُسُلِهِ وَإِن تُؤْمِنُواْ وَتَتَّقُواْ فَلَكُمْ أَجْرٌ عَظِيمٌ
180 और जिन लोगों को ख़ुदा ने अपने फ़ज़ल (व करम) से कुछ दिया है (और फिर) बुख्ल करते हैं वह हरगिज़ इस ख्याल में न रहें कि ये उनके लिए (कुछ) बेहतर होगा बल्कि ये उनके हक़ में बदतर है क्योंकि जिस (माल) का बुख्ल करते हैं अनक़रीब ही क़यामत के दिन उसका तौक़ बनाकर उनके गले में पहनाया जाएगा और सारे आसमान व ज़मीन की मीरास ख़ुदा ही की है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़बरदार है وَلاَ يَحْسَبَنَّ الَّذِينَ يَبْخَلُونَ بِمَا آتَاهُمُ اللّهُ مِن فَضْلِهِ هُوَ خَيْرًا لَّهُمْ بَلْ هُوَ شَرٌّ لَّهُمْ سَيُطَوَّقُونَ مَا بَخِلُواْ بِهِ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَلِلّهِ مِيرَاثُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَاللّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌ
181 जो लोग (यहूद) ये कहते हैं कि ख़ुदा तो कंगाल है और हम बड़े मालदार हैं ख़ुदा ने उनकी ये बकवास सुनी उन लोगों ने जो कुछ किया उसको और उनका पैग़म्बरों को नाहक़ क़त्ल करना हम अभी से लिख लेते हैं और (आज तो जो जी में कहें मगर क़यामत के दिन) हम कहेंगे कि अच्छा तो लो (अपनी शरारत के एवज़ में) जलाने वाले अज़ाब का मज़ा चखो لَّقَدْ سَمِعَ اللّهُ قَوْلَ الَّذِينَ قَالُواْ إِنَّ اللّهَ فَقِيرٌ وَنَحْنُ أَغْنِيَاء سَنَكْتُبُ مَا قَالُواْ وَقَتْلَهُمُ الأَنبِيَاء بِغَيْرِ حَقٍّ وَنَقُولُ ذُوقُواْ عَذَابَ الْحَرِيقِ
182 ये उन्हीं कामों का बदला है जिनको तुम्हारे हाथों ने (ज़ादे आख़ेरत बना कर) पहले से भेजा है वरना ख़ुदा तो कभी अपने बन्दों पर ज़ुल्म करने वाला नहीं ذَلِكَ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيكُمْ وَأَنَّ اللّهَ لَيْسَ بِظَلاَّمٍ لِّلْعَبِيدِ
183 (यह वही लोग हैं) जो कहते हैं कि ख़ुदा ने तो हमसे वायदा किया है कि जब तक कोई रसूल हमें ये (मौजिज़ा) न दिखा दे कि वह कुरबानी करे और उसको (आसमानी) आग आकर चट कर जाए उस वक्त तक हम ईमान न लाएंगें (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (भला) ये तो बताओ बहुतेरे पैग़म्बर मुझसे क़ब्ल तुम्हारे पास वाजे व रौशन मौजिज़ात और जिस चीज़ की तुमने (उस वक्त) फ़रमाइश की है (वह भी) लेकर आए फिर तुम अगर (अपने दावे में) सच्चे तो तुमने क्यों क़त्ल किया الَّذِينَ قَالُواْ إِنَّ اللّهَ عَهِدَ إِلَيْنَا أَلاَّ نُؤْمِنَ لِرَسُولٍ حَتَّىَ يَأْتِيَنَا بِقُرْبَانٍ تَأْكُلُهُ النَّارُ قُلْ قَدْ جَاءكُمْ رُسُلٌ مِّن قَبْلِي بِالْبَيِّنَاتِ وَبِالَّذِي قُلْتُمْ فَلِمَ قَتَلْتُمُوهُمْ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ
184 (ऐ रसूल) अगर वह इस पर भी तुम्हें झुठलाएं तो (तुम आज़ुर्दा न हो क्योंकि) तुमसे पहले भी बहुत से पैग़म्बर रौशन मौजिज़े और सहीफे और नूरानी किताब लेकर आ चुके हैं (मगर) फिर भी लोगों ने आख़िर झुठला ही छोड़ा فَإِن كَذَّبُوكَ فَقَدْ كُذِّبَ رُسُلٌ مِّن قَبْلِكَ جَآؤُوا بِالْبَيِّنَاتِ وَالزُّبُرِ وَالْكِتَابِ الْمُنِيرِ
185 हर जान एक न एक (दिन) मौत का मज़ा चखेगी और तुम लोग क़यामत के दिन (अपने किए का) पूरा पूरा बदला भर पाओगे पस जो शख्स जहन्नुम से हटा दिया गया और बहिश्त में पहुंचा दिया गया पस वही कामयाब हुआ और दुनिया की (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी धोखे की टट्टी के सिवा कुछ नहीं كُلُّ نَفْسٍ ذَآئِقَةُ الْمَوْتِ وَإِنَّمَا تُوَفَّوْنَ أُجُورَكُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فَمَن زُحْزِحَ عَنِ النَّارِ وَأُدْخِلَ الْجَنَّةَ فَقَدْ فَازَ وَما الْحَيَاةُ الدُّنْيَا إِلاَّ مَتَاعُ الْغُرُورِ
186 (मुसलमानों) तुम्हारे मालों और जानों का तुमसे ज़रूर इम्तेहान लिया जाएगा और जिन लोगो को तुम से पहले किताबे ख़ुदा दी जा चुकी है (यहूद व नसारा) उनसे और मुशरेकीन से बहुत ही दुख दर्द की बातें तुम्हें ज़रूर सुननी पड़ेंगी और अगर तुम (उन मुसीबतों को) झेल जाओगे और परहेज़गारी करते रहोगे तो बेशक ये बड़ी हिम्मत का काम है لَتُبْلَوُنَّ فِي أَمْوَالِكُمْ وَأَنفُسِكُمْ وَلَتَسْمَعُنَّ مِنَ الَّذِينَ أُوتُواْ الْكِتَابَ مِن قَبْلِكُمْ وَمِنَ الَّذِينَ أَشْرَكُواْ أَذًى كَثِيراً وَإِن تَصْبِرُواْ وَتَتَّقُواْ فَإِنَّ ذَلِكَ مِنْ عَزْمِ الأُمُورِ
187 और (ऐ रसूल) इनको वह वक्त तो याद दिलाओ जब ख़ुदा ने अहले किताब से एहद व पैमान लिया था कि तुम किताबे ख़ुदा को साफ़ साफ़ बयान कर देना और (ख़बरदार) उसकी कोई बात छुपाना नहीं मगर इन लोगों ने (ज़रा भी ख्याल न किया) और उनको पसे पुश्त फेंक दिया और उसके बदले में (बस) थोड़ी सी क़ीमत हासिल कर ली पस ये क्या ही बुरा (सौदा) है जो ये लोग ख़रीद रहे हैं وَإِذَ أَخَذَ اللّهُ مِيثَاقَ الَّذِينَ أُوتُواْ الْكِتَابَ لَتُبَيِّنُنَّهُ لِلنَّاسِ وَلاَ تَكْتُمُونَهُ فَنَبَذُوهُ وَرَاء ظُهُورِهِمْ وَاشْتَرَوْاْ بِهِ ثَمَناً قَلِيلاً فَبِئْسَ مَا يَشْتَرُونَ
188 (ऐ रसूल) तुम उन्हें ख्याल में भी न लाना जो अपनी कारस्तानी पर इतराए जाते हैं और किया कराया ख़ाक नहीं (मगर) तारीफ़ के ख़ास्तगार (चाहते) हैं पस तुम हरगिज़ ये ख्याल न करना कि इनको अज़ाब से छुटकारा है बल्कि उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है لاَ تَحْسَبَنَّ الَّذِينَ يَفْرَحُونَ بِمَا أَتَواْ وَّيُحِبُّونَ أَن يُحْمَدُواْ بِمَا لَمْ يَفْعَلُواْ فَلاَ تَحْسَبَنَّهُمْ بِمَفَازَةٍ مِّنَ الْعَذَابِ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
189 और आसमान व ज़मीन सब ख़ुदा ही का मुल्क है और ख़ुदा ही हर चीज़ पर क़ादिर है وَلِلّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَاللّهُ عَلَىَ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
190 इसमें तो शक ही नहीं कि आसमानों और ज़मीन की पैदाइश और रात दिन के फेर बदल में अक्लमन्दों के लिए (क़ुदरत ख़ुदा की) बहुत सी निशानियॉ हैं إِنَّ فِي خَلْقِ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَاخْتِلاَفِ اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ لآيَاتٍ لِّأُوْلِي الألْبَابِ
191 जो लोग उठते बैठते करवट लेते (अलगरज़ हर हाल में) ख़ुदा का ज़िक्र करते हैं और आसमानों और ज़मीन की बनावट में ग़ौर व फ़िक्र करते हैं और (बेसाख्ता) कह उठते हैं कि ख़ुदावन्दा तूने इसको बेकार पैदा नहीं किया तू (फेले अबस से) पाक व पाकीज़ा है बस हमको दोज़क के अज़ाब से बचा الَّذِينَ يَذْكُرُونَ اللّهَ قِيَامًا وَقُعُودًا وَعَلَىَ جُنُوبِهِمْ وَيَتَفَكَّرُونَ فِي خَلْقِ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ رَبَّنَا مَا خَلَقْتَ هَذا بَاطِلاً سُبْحَانَكَ فَقِنَا عَذَابَ النَّارِ
192 ऐ हमारे पालने वाले जिसको तूने दोज़ख़ में डाला तो यक़ीनन उसे रूसवा कर डाला और जुल्म करने वाले का कोई मददगार नहीं رَبَّنَا إِنَّكَ مَن تُدْخِلِ النَّارَ فَقَدْ أَخْزَيْتَهُ وَمَا لِلظَّالِمِينَ مِنْ أَنصَار
193 ऐ हमारे पालने वाले (जब) हमने एक आवाज़ लगाने वाले (पैग़म्बर) को सुना कि वह (ईमान के वास्ते यूं पुकारता था) कि अपने परवरदिगार पर ईमान लाओ तो हम ईमान लाए पस ऐ हमारे पालने वाले हमें हमारे गुनाह बख्श दे और हमारी बुराईयों को हमसे दूर करे दे और हमें नेकों के साथ (दुनिया से) उठा ले رَّبَّنَا إِنَّنَا سَمِعْنَا مُنَادِيًا يُنَادِي لِلإِيمَانِ أَنْ آمِنُواْ بِرَبِّكُمْ فَآمَنَّا رَبَّنَا فَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا وَكَفِّرْ عَنَّا سَيِّئَاتِنَا وَتَوَفَّنَا مَعَ الأبْرَارِ
194 और ऐ पालने वाले अपने रसूलों की मार्फत जो कुछ हमसे वायदा किया है हमें दे और हमें क़यामत के दिन रूसवा न कर तू तो वायदा ख़िलाफ़ी करता ही नहीं رَبَّنَا وَآتِنَا مَا وَعَدتَّنَا عَلَى رُسُلِكَ وَلاَ تُخْزِنَا يَوْمَ الْقِيَامَةِ إِنَّكَ لاَ تُخْلِفُ الْمِيعَادَ
195 तो उनके परवरदिगार ने दुआ कुबूल कर ली और (फ़रमाया) कि हम तुममें से किसी काम करने वाले के काम को अकारत नहीं करते मर्द हो या औरत (उस में कुछ किसी की खुसूसियत नहीं क्योंकि) तुम एक दूसरे (की जिन्स) से हो जो लोग (हमारे लिए वतन आवारा हुए) और शहर बदर किए गए और उन्होंने हमारी राह में अज़ीयतें उठायीं और (कुफ्फ़र से) जंग की और शहीद हुए मैं उनकी बुराईयों से ज़रूर दरगुज़र करूंगा और उन्हें बेहिश्त के उन बाग़ों में ले जाऊॅगा जिनके नीचे नहरें जारी हैं ख़ुदा के यहॉ ये उनके किये का बदला है और ख़ुदा (ऐसा ही है कि उस) के यहॉ तो अच्छा ही बदला है فَاسْتَجَابَ لَهُمْ رَبُّهُمْ أَنِّي لاَ أُضِيعُ عَمَلَ عَامِلٍ مِّنكُم مِّن ذَكَرٍ أَوْ أُنثَى بَعْضُكُم مِّن بَعْضٍ فَالَّذِينَ هَاجَرُواْ َأُخْرِجُواْ مِن دِيَارِهِمْ وَأُوذُواْ فِي سَبِيلِي وَقَاتَلُواْ وَقُتِلُواْ لأُكَفِّرَنَّ عَنْهُمْ سَيِّئَاتِهِمْ وَلأُدْخِلَنَّهُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الأَنْهَارُ ثَوَابًا مِّن عِندِ اللّهِ وَاللّهُ عِندَهُ حُسْنُ الثَّوَابِ
196 (ऐ रसूल) काफ़िरों का शहरों शहरों चैन करते फिरना तुम्हे धोखे में न डाले لاَ يَغُرَّنَّكَ تَقَلُّبُ الَّذِينَ كَفَرُواْ فِي الْبِلاَدِ
197 ये चन्द रोज़ा फ़ायदा हैं फिर तो (आख़िरकार) उनका ठिकाना जहन्नुम ही है और क्या ही बुरा ठिकाना है مَتَاعٌ قَلِيلٌ ثُمَّ مَأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ وَبِئْسَ الْمِهَادُ
198 मगर जिन लोगों ने अपने परवरदिगार की परहेज़गारी (इख्तेयार की उनके लिए बेहिश्त के) वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरें जारीं हैं और वह हमेशा उसी में रहेंगे ये ख़ुदा की तरफ़ से उनकी (दावत है और जो साज़ो सामान) ख़ुदा के यहॉ है वह नेको कारों के वास्ते दुनिया से कहीं बेहतर है لَكِنِ الَّذِينَ اتَّقَوْاْ رَبَّهُمْ لَهُمْ جَنَّاتٌ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا نُزُلاً مِّنْ عِندِ اللّهِ وَمَا عِندَ اللّهِ خَيْرٌ لِّلأَبْرَارِ
199 और अहले किताब में से कुछ लोग तो ऐसे ज़रूर हैं जो ख़ुदा पर और जो (किताब) तुम पर नाज़िल हुई और जो (किताब) उनपर नाज़िल हुई (सब पर) ईमान रखते हैं ख़ुदा के आगे सर झुकाए हुए हैं और ख़ुदा की आयतों के बदले थोड़ी सी क़ीमत (दुनियावी फ़ायदे) नहीं लेते ऐसे ही लोगों के वास्ते उनके परवरदिगार के यहॉ अच्छा बदला है बेशक ख़ुदा बहुत जल्द हिसाब करने वाला है وَإِنَّ مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ لَمَن يُؤْمِنُ بِاللّهِ وَمَا أُنزِلَ إِلَيْكُمْ وَمَا أُنزِلَ إِلَيْهِمْ خَاشِعِينَ لِلّهِ لاَ يَشْتَرُونَ بِآيَاتِ اللّهِ ثَمَنًا قَلِيلاً أُوْلَـئِكَ لَهُمْ أَجْرُهُمْ عِندَ رَبِّهِمْ إِنَّ اللّهَ سَرِيعُ الْحِسَابِ
200 ऐ ईमानदारों (दीन की तकलीफ़ों को) और दूसरों को बर्दाश्त की तालीम दो और (जिहाद के लिए) कमरें कस लो और ख़ुदा ही से डरो ताकि तुम अपनी दिली मुराद पाओ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اصْبِرُواْ وَصَابِرُواْ وَرَابِطُواْ وَاتَّقُواْ اللّهَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ
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