1 |
ऐ लोगों! अपने रब का डर रखों, जिसने तुमको एक जीव से पैदा किया और उसी जाति का उसके लिए जोड़ा पैदा किया और उन दोनों से बहुत-से पुरुष और स्त्रियाँ फैला दी। अल्लाह का डर रखो, जिसका वास्ता देकर तुम एक-दूसरे के सामने माँगें रखते हो। और नाते-रिश्तों का भी तुम्हें ख़याल रखना हैं। निश्चय ही अल्लाह तुम्हारी निगरानी कर रहा हैं |
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يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُواْ رَبَّكُمُ الَّذِي خَلَقَكُم مِّن نَّفْسٍ وَاحِدَةٍ وَخَلَقَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَبَثَّ مِنْهُمَا رِجَالاً كَثِيراً وَنِسَاء وَاتَّقُواْ اللّهَ الَّذِي تَسَاءلُونَ بِهِ وَالأَرْحَامَ إِنَّ اللّهَ كَانَ عَلَيْكُمْ رَقِيبًا |
2 |
और अनाथों को उनका माल दे दो और बुरी चीज़ को अच्छी चीज़ से न बदलो, और न उनके माल को अपने माल के साथ मिलाकर खा जाओ। यह बहुत बड़ा गुनाह हैं |
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وَآتُواْ الْيَتَامَى أَمْوَالَهُمْ وَلاَ تَتَبَدَّلُواْ الْخَبِيثَ بِالطَّيِّبِ وَلاَ تَأْكُلُواْ أَمْوَالَهُمْ إِلَى أَمْوَالِكُمْ إِنَّهُ كَانَ حُوبًا كَبِيرًا |
3 |
और यदि तुम्हें आशंका हो कि तुम अनाथों (अनाथ लड़कियों) के प्रति न्याय न कर सकोगे तो उनमें से, जो तुम्हें पसन्द हों, दो-दो या तीन-तीन या चार-चार से विवाह कर लो। किन्तु यदि तुम्हें आशंका हो कि तुम उनके साथ एक जैसा व्यवहार न कर सकोंगे, तो फिर एक ही पर बस करो, या उस स्त्री (लौंड़ी) पर जो तुम्हारे क़ब्ज़े में आई हो, उसी पर बस करो। इसमें तुम्हारे न्याय से न हटने की अधिक सम्भावना है |
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وَإِنْ خِفْتُمْ أَلاَّ تُقْسِطُواْ فِي الْيَتَامَى فَانكِحُواْ مَا طَابَ لَكُم مِّنَ النِّسَاء مَثْنَى وَثُلاَثَ وَرُبَاعَ فَإِنْ خِفْتُمْ أَلاَّ تَعْدِلُواْ فَوَاحِدَةً أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ ذَلِكَ أَدْنَى أَلاَّ تَعُولُواْ |
4 |
और स्त्रियों को उनके मह्रा ख़ुशी से अदा करो। हाँ, यदि वे अपनी ख़ुशी से उसमें से तुम्हारे लिए छोड़ दे तो उसे तुम अच्छा और पाक समझकर खाओ |
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وَآتُواْ النَّسَاء صَدُقَاتِهِنَّ نِحْلَةً فَإِن طِبْنَ لَكُمْ عَن شَيْءٍ مِّنْهُ نَفْسًا فَكُلُوهُ هَنِيئًا مَّرِيئًا |
5 |
और अपने माल, जिसे अल्लाह ने तुम्हारे लिए जीवन-यापन का साधन बनाया है, बेसमझ लोगों को न दो। उन्हें उसमें से खिलाते और पहनाते रहो और उनसे भली बात कहो |
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وَلاَ تُؤْتُواْ السُّفَهَاء أَمْوَالَكُمُ الَّتِي جَعَلَ اللّهُ لَكُمْ قِيَاماً وَارْزُقُوهُمْ فِيهَا وَاكْسُوهُمْ وَقُولُواْ لَهُمْ قَوْلاً مَّعْرُوفًا |
6 |
और अनाथों को जाँचते रहो, यहाँ तक कि जब वे विवाह की अवस्था को पहुँच जाएँ, तो फिर यदि तुम देखो कि उनमें सूझ-बूझ आ गई है, तो उनके माल उन्हें सौंप दो, और इस भय से कि कहीं वे बड़े न हो जाएँ तुम उनके माल अनुचित रूप से उड़ाकर और जल्दी करके न खाओ। और जो धनवान हो, उसे तो (इस माल से) से बचना ही चाहिए। हाँ, जो निर्धन हो, वह उचित रीति से कुछ खा सकता है। फिर जब उनके माल उन्हें सौंपने लगो, तो उनकी मौजूदगी में गवाह बना लो। हिसाब लेने के लिए अल्लाह काफ़ी है |
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وَابْتَلُواْ الْيَتَامَى حَتَّىَ إِذَا بَلَغُواْ النِّكَاحَ فَإِنْ آنَسْتُم مِّنْهُمْ رُشْدًا فَادْفَعُواْ إِلَيْهِمْ أَمْوَالَهُمْ وَلاَ تَأْكُلُوهَا إِسْرَافًا وَبِدَارًا أَن يَكْبَرُواْ وَمَن كَانَ غَنِيًّا فَلْيَسْتَعْفِفْ وَمَن كَانَ فَقِيرًا فَلْيَأْكُلْ بِالْمَعْرُوفِ فَإِذَا دَفَعْتُمْ إِلَيْهِمْ أَمْوَالَهُمْ فَأَشْهِدُواْ عَلَيْهِمْ وَكَفَى بِاللّهِ حَسِيبًا |
7 |
पुरुषों का उस माल में एक हिस्सा है जो माँ-बाप और नातेदारों ने छोड़ा हो; और स्त्रियों का भी उस माल में एक हिस्सा है जो माल माँ-बाप और नातेदारों ने छोड़ा हो - चाह वह थोड़ा हो या अधिक हो - यह हिस्सा निश्चित किया हुआ है |
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لِّلرِّجَالِ نَصيِبٌ مِّمَّا تَرَكَ الْوَالِدَانِ وَالأَقْرَبُونَ وَلِلنِّسَاء نَصِيبٌ مِّمَّا تَرَكَ الْوَالِدَانِ وَالأَقْرَبُونَ مِمَّا قَلَّ مِنْهُ أَوْ كَثُرَ نَصِيبًا مَّفْرُوضًا |
8 |
और जब बाँटने के समय नातेदार और अनाथ और मुहताज उपस्थित हो तो उन्हें भी उसमें से (उनका हिस्सा) दे दो और उनसे भली बात करो |
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وَإِذَا حَضَرَ الْقِسْمَةَ أُوْلُواْ الْقُرْبَى وَالْيَتَامَى وَالْمَسَاكِينُ فَارْزُقُوهُم مِّنْهُ وَقُولُواْ لَهُمْ قَوْلاً مَّعْرُوفًا |
9 |
और लोगों को डरना चाहिए कि यदि वे स्वयं अपने पीछे अपने निर्बल बच्चे छोड़ते तो उन्हें उन बच्चों के विषय में कितना भय होता। तो फिर उन्हें अल्लाह से डरना चाहिए और ठीक सीधी बात कहनी चाहिए |
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وَلْيَخْشَ الَّذِينَ لَوْ تَرَكُواْ مِنْ خَلْفِهِمْ ذُرِّيَّةً ضِعَافًا خَافُواْ عَلَيْهِمْ فَلْيَتَّقُوا اللّهَ وَلْيَقُولُواْ قَوْلاً سَدِيدًا |
10 |
जो लोग अनाथों के माल अन्याय के साथ खाते है, वास्तव में वे अपने पेट आग से भरते है, और वे अवश्य भड़कती हुई आग में पड़ेगे |
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إِنَّ الَّذِينَ يَأْكُلُونَ أَمْوَالَ الْيَتَامَى ظُلْمًا إِنَّمَا يَأْكُلُونَ فِي بُطُونِهِمْ نَارًا وَسَيَصْلَوْنَ سَعِيرًا |
11 |
अल्लाह तुम्हारी सन्तान के विषय में तुम्हें आदेश देता है कि दो बेटियों के हिस्से के बराबर एक बेटे का हिस्सा होगा; और यदि दो से अधिक बेटियाँ ही हो तो उनका हिस्सा छोड़ी हुई सम्पत्ति का दो तिहाई है। और यदि वह अकेली हो तो उसके लिए आधा है। और यदि मरनेवाले की सन्तान हो जो उसके माँ-बाप में से प्रत्येक का उसके छोड़े हुए माल का छठा हिस्सा है। और यदि वह निस्संतान हो और उसके माँ-बाप ही उसके वारिस हों, तो उसकी माँ का हिस्सा तिहाई होगा। और यदि उसके भाई भी हो, तो उसका माँ का छठा हिस्सा होगा। ये हिस्से, वसीयत जो वह कर जाए पूरी करने या ऋण चुका देने के पश्चात है। तुम्हारे बाप भी है और तुम्हारे बेटे भी। तुम नहीं जानते कि उनमें से लाभ पहुँचाने की दृष्टि से कौन तुमसे अधिक निकट है। यह हिस्सा अल्लाह का निश्चित किया हुआ है। अल्लाह सब कुछ जानता, समझता है |
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يُوصِيكُمُ اللّهُ فِي أَوْلاَدِكُمْ لِلذَّكَرِ مِثْلُ حَظِّ الأُنثَيَيْنِ فَإِن كُنَّ نِسَاء فَوْقَ اثْنَتَيْنِ فَلَهُنَّ ثُلُثَا مَا تَرَكَ وَإِن كَانَتْ وَاحِدَةً فَلَهَا النِّصْفُ وَلأَبَوَيْهِ لِكُلِّ وَاحِدٍ مِّنْهُمَا السُّدُسُ مِمَّا تَرَكَ إِن كَانَ لَهُ وَلَدٌ فَإِن لَّمْ يَكُن لَّهُ وَلَدٌ وَوَرِثَهُ أَبَوَاهُ فَلأُمِّهِ الثُّلُثُ فَإِن كَانَ لَهُ إِخْوَةٌ فَلأُمِّهِ السُّدُسُ مِن بَعْدِ وَصِيَّةٍ يُوصِي بِهَا أَوْ دَيْنٍ آبَآؤُكُمْ وَأَبناؤُكُمْ لاَ تَدْرُونَ أَيُّهُمْ أَقْرَبُ لَكُمْ نَفْعاً فَرِيضَةً مِّنَ اللّهِ إِنَّ اللّهَ كَانَ عَلِيما حَكِيمًا |
12 |
और तुम्हारी पत्नि यों ने जो कुछ छोड़ा हो, उसमें तुम्हारा आधा है, यदि उनकी सन्तान न हो। लेकिन यदि उनकी सन्तान हो तो वे छोड़े, उसमें तुम्हारा चौथाई होगा, इसके पश्चात कि जो वसीयत वे कर जाएँ वह पूरी कर दी जाए, या जो ऋण (उनपर) हो वह चुका दिया जाए। और जो कुछ तुम छोड़ जाओ, उसमें उनका (पत्ऩियों का) चौथाई हिस्सा होगा, यदि तुम्हारी कोई सन्तान न हो। लेकिन यदि तुम्हारी सन्तान है, तो जो कुछ तुम छोड़ोगे, उसमें से उनका (पत्नियों का) आठवाँ हिस्सा होगा, इसके पश्चात कि जो वसीयत तुमने की हो वह पूरी कर दी जाए, या जो ऋण हो उसे चुका दिया जाए, और यदि किसी पुरुष या स्त्री के न तो कोई सन्तान हो और न उसके माँ-बाप ही जीवित हो और उसके एक भाई या बहन हो तो उन दोनों में से प्रत्येक को छठा हिस्सा होगा। लेकिन यदि वे इससे अधिक हों तो फिर एक तिहाई में वे सब शरीक होंगे, इसके पश्चात कि जो वसीयत उसने की वह पूरी कर दी जाए या जो ऋण (उसपर) हो वह चुका दिया जाए, शर्त यह है कि वह हानिकर न हो। यह अल्लाह की ओर से ताकीदी आदेश है और अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, अत्यन्त सहनशील है |
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وَلَكُمْ نِصْفُ مَا تَرَكَ أَزْوَاجُكُمْ إِن لَّمْ يَكُن لَّهُنَّ وَلَدٌ فَإِن كَانَ لَهُنَّ وَلَدٌ فَلَكُمُ الرُّبُعُ مِمَّا تَرَكْنَ مِن بَعْدِ وَصِيَّةٍ ُوصِينَ بِهَا أَوْ دَيْنٍ وَلَهُنَّ الرُّبُعُ مِمَّا تَرَكْتُمْ إِن لَّمْ يَكُن لَّكُمْ وَلَدٌ فَإِن كَانَ لَكُمْ وَلَدٌ فَلَهُنَّ الثُّمُنُ مِمَّا تَرَكْتُم مِّن بَعْدِ وَصِيَّةٍ تُوصُونَ بِهَا أَوْ دَيْنٍ وَإِن كَانَ رَجُلٌ يُورَثُ كَلاَلَةً أَو امْرَأَةٌ وَلَهُ أَخٌ أَوْ أُخْتٌ فَلِكُلِّ وَاحِدٍ مِّنْهُمَا السُّدُسُ فَإِن كَانُوَاْ أَكْثَرَ مِن ذَلِكَ فَهُمْ شُرَكَاء فِي الثُّلُثِ مِن بَعْدِ وَصِيَّةٍ يُوصَى بِهَا أَوْ دَيْنٍ غَيْرَ مُضَآرٍّ وَصِيَّةً مِّنَ اللّهِ وَاللّهُ عَلِيمٌ حَلِيمٌ |
13 |
ये अल्लाह की निश्चित की हुई सीमाएँ है। जो कोई अल्लाह और उसके रसूल के आदेशों का पालन करेगा, उसे अल्लाह ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेगा जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। उनमें वह सदैव रहेगा और यही बड़ी सफलता है |
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تِلْكَ حُدُودُ اللّهِ وَمَن يُطِعِ اللّهَ وَرَسُولَهُ يُدْخِلْهُ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا وَذَلِكَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ |
14 |
परन्तु जो अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करेगा और उसकी सीमाओं का उल्लंघन करेगा उसे अल्लाह आग में डालेगा, जिसमें वह सदैव रहेगा। और उसके लिए अपमानजनक यातना है |
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وَمَن يَعْصِ اللّهَ وَرَسُولَهُ وَيَتَعَدَّ حُدُودَهُ يُدْخِلْهُ نَارًا خَالِدًا فِيهَا وَلَهُ عَذَابٌ مُّهِينٌ |
15 |
और तुम्हारी स्त्रियों में से जो व्यभिचार कर बैठे, उनपर अपने में से चार आदमियों की गवाही लो, फिर यदि वे गवाही दे दें तो उन्हें घरों में बन्द रखो, यहाँ तक कि उनकी मृत्यु आ जाए या अल्लाह उनके लिए कोई रास्ता निकाल दे |
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وَاللاَّتِي يَأْتِينَ الْفَاحِشَةَ مِن نِّسَآئِكُمْ فَاسْتَشْهِدُواْ عَلَيْهِنَّ أَرْبَعةً مِّنكُمْ فَإِن شَهِدُواْ فَأَمْسِكُوهُنَّ فِي الْبُيُوتِ حَتَّىَ َتَوَفَّاهُنَّ الْمَوْتُ أَوْ يَجْعَلَ اللّهُ لَهُنَّ سَبِيلاً |
16 |
और तुममें से जो दो पुरुष यह कर्म करें, उन्हें प्रताड़ित करो, फिर यदि वे तौबा कर ले और अपने आपको सुधार लें, तो उन्हें छोड़ दो। अल्लाह तौबा क़बूल करनेवाला, दयावान है |
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وَاللَّذَانَ يَأْتِيَانِهَا مِنكُمْ فَآذُوهُمَا فَإِن تَابَا وَأَصْلَحَا فَأَعْرِضُواْ عَنْهُمَا إِنَّ اللّهَ كَانَ تَوَّابًا رَّحِيمًا |
17 |
उन्ही लोगों की तौबा क़बूल करना अल्लाह के ज़िम्मे है जो भावनाओं में बह कर नादानी से कोई बुराई कर बैठे, फिर जल्द ही तौबा कर लें, ऐसे ही लोग है जिनकी तौबा अल्लाह क़बूल करता है। अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है |
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إِنَّمَا التَّوْبَةُ عَلَى اللّهِ لِلَّذِينَ يَعْمَلُونَ السُّوَءَ بِجَهَالَةٍ ثُمَّ يَتُوبُونَ مِن قَرِيبٍ فَأُوْلَـئِكَ يَتُوبُ اللّهُ عَلَيْهِمْ وَكَانَاللّهُ عَلِيماً حَكِيماً |
18 |
और ऐसे लोगों की तौबा नहीं जो बुरे काम किए चले जाते है, यहाँ तक कि जब उनमें से किसी की मृत्यु का समय आ जाता है तो कहने लगता है, "अब मैं तौबा करता हूँ।" और इसी प्रकार तौबा उनकी भी नहीं है, जो मरते दम तक इनकार करनेवाले ही रहे। ऐसे लोगों के लिए हमने दुखद यातना तैयार कर रखी है |
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وَلَيْسَتِ التَّوْبَةُ لِلَّذِينَ يَعْمَلُونَ السَّيِّئَاتِ حَتَّى إِذَا حَضَرَ أَحَدَهُمُ الْمَوْتُ قَالَ إِنِّي تُبْتُ الآنَ وَلاَ الَّذِينَ يَمُوتُونَ وَهُمْ كُفَّارٌ أُوْلَـئِكَ أَعْتَدْنَا لَهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا |
19 |
ऐ ईमान लानेवालो! तुम्हारे लिए वैध नहीं कि स्त्रियों के माल के ज़बरदस्ती वारिस बन बैठो, और न यह वैध है कि उन्हें इसलिए रोको और तंग करो कि जो कुछ तुमने उन्हें दिया है, उसमें से कुछ ले उड़ो। परन्तु यदि वे खुले रूप में अशिष्ट कर्म कर बैठे तो दूसरी बात है। और उनके साथ भले तरीक़े से रहो-सहो। फिर यदि वे तुम्हें पसन्द न हों, तो सम्भव है कि एक चीज़ तुम्हें पसन्द न हो और अल्लाह उसमें बहुत कुछ भलाई रख दे |
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يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ يَحِلُّ لَكُمْ أَن تَرِثُواْ النِّسَاء كَرْهًا وَلاَ تَعْضُلُوهُنَّ لِتَذْهَبُواْ بِبَعْضِ مَا آتَيْتُمُوهُنَّ إِلاَّ أَن يَأْتِينَ بِفَاحِشَةٍ مُّبَيِّنَةٍ وَعَاشِرُوهُنَّ بِالْمَعْرُوفِ فَإِن كَرِهْتُمُوهُنَّ فَعَسَى أَن تَكْرَهُواْ شَيْئًا وَيَجْعَلَ اللّهُ فِيهِ خَيْرًا كَثِيراً |
20 |
और यदि तुम एक पत्ऩी की जगह दूसरी पत्ऩी लाना चाहो तो, चाहे तुमने उनमें किसी को ढेरों माल दे दिया हो, उसमें से कुछ मत लेना। क्या तुम उसपर झूठा आरोप लगाकर और खुले रूप में हक़ मारकर उसे लोगे? |
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وَإِنْ أَرَدتُّمُ اسْتِبْدَالَ زَوْجٍ مَّكَانَ زَوْجٍ وَآتَيْتُمْ إِحْدَاهُنَّ قِنطَارًا فَلاَ تَأْخُذُواْ مِنْهُ شَيْئًا أَتَأْخُذُونَهُ بُهْتَاناً وَإِثْماً مُّبِيناً |
21 |
और तुम उसे किस तरह ले सकते हो, जबकि तुम एक-दूसरे से मिल चुके हो और वे तुमसे दृढ़ प्रतिज्ञा भी ले चुकी है? |
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وَكَيْفَ تَأْخُذُونَهُ وَقَدْ أَفْضَى بَعْضُكُمْ إِلَى بَعْضٍ وَأَخَذْنَ مِنكُم مِّيثَاقًا غَلِيظًا |
22 |
और उन स्त्रियों से विवाह न करो, जिनसे तुम्हारे बाप विवाह कर चुके हों, परन्तु जो पहले हो चुका सो हो चुका। निस्संदेह यह एक अश्लील और अत्यन्त अप्रिय कर्म है, और बुरी रीति है |
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وَلاَ تَنكِحُواْ مَا نَكَحَ آبَاؤُكُم مِّنَ النِّسَاء إِلاَّ مَا قَدْ سَلَفَ إِنَّهُ كَانَ فَاحِشَةً وَمَقْتًا وَسَاء سَبِيلاً |
23 |
तुम्हारे लिए हराम है तुम्हारी माएँ, बेटियाँ, बहनें, फूफियाँ, मौसियाँ, भतीतियाँ, भाँजिया, और तुम्हारी वे माएँ जिन्होंने तुम्हें दूध पिलाया हो और दूध के रिश्ते से तुम्हारी बहनें और तुम्हारी सासें और तुम्हारी पत्ऩियों की बेटियाँ जिनसे तुम सम्भोग कर चुक हो। परन्तु यदि सम्भोग नहीं किया है तो इसमें तुमपर कोई गुनाह नहीं - और तुम्हारे उन बेटों की पत्ऩियाँ जो तुमसे पैदा हों और यह भी कि तुम दो बहनों को इकट्ठा करो; जो पहले जो हो चुका सो हो चुका। निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है |
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حُرِّمَتْ عَلَيْكُمْ أُمَّهَاتُكُمْ وَبَنَاتُكُمْ وَأَخَوَاتُكُمْ وَعَمَّاتُكُمْ وَخَالاَتُكُمْ وَبَنَاتُ الأَخِ وَبَنَاتُ الأُخْتِ وَأُمَّهَاتُكُمُ اللاَّتِي أَرْضَعْنَكُمْ وَأَخَوَاتُكُم مِّنَ الرَّضَاعَةِ وَأُمَّهَاتُ نِسَآئِكُمْ وَرَبَائِبُكُمُ اللاَّتِي فِي حُجُورِكُم مِّن نِّسَآئِكُمُ
اللاَّتِي دَخَلْتُم بِهِنَّ فَإِن لَّمْ تَكُونُواْ دَخَلْتُم بِهِنَّ فَلاَ جُنَاحَ عَلَيْكُمْ وَحَلاَئِلُ أَبْنَائِكُمُ الَّذِينَ مِنْ أَصْلاَبِكُمْ وَأَن تَجْمَعُواْ بَيْنَ الأُخْتَيْنِ إَلاَّ مَا قَدْ سَلَفَ إِنَّ اللّهَ كَانَ غَفُورًا رَّحِيمًا |
24 |
और विवाहित स्त्रियाँ भी वर्जित है, सिवाय उनके जो तुम्हारी लौंडी हों। यह अल्लाह ने तुम्हारे लिए अनिवार्य कर दिया है। इनके अतिरिक्त शेष स्त्रियाँ तुम्हारे लिए वैध है कि तुम अपने माल के द्वारा उन्हें प्राप्त करो उनकी पाकदामनी की सुरक्षा के लिए, न कि यह काम स्वच्छन्द काम-तृप्ति के लिए हो। फिर उनसे दाम्पत्य जीवन का आनन्द लो तो उसके बदले उनका निश्चित किया हुए हक़ (मह्रि) अदा करो और यदि हक़ निश्चित हो जाने के पश्चात तुम आपम में अपनी प्रसन्नता से कोई समझौता कर लो, तो इसमें तुम्हारे लिए कोई दोष नहीं। निस्संदेह अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है |
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وَالْمُحْصَنَاتُ مِنَ النِّسَاء إِلاَّ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ كِتَابَ اللّهِ عَلَيْكُمْ وَأُحِلَّ لَكُم مَّا وَرَاء ذَلِكُمْ أَن تَبْتَغُواْ بِأَمْوَالِكُم مُّحْصِنِينَ غَيْرَ مُسَافِحِينَ فَمَا اسْتَمْتَعْتُم بِهِ مِنْهُنَّ فَآتُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ فَرِيضَةً وَلاَ جُنَاحَ عَلَيْكُمْ فِيمَا تَرَاضَيْتُم بِهِ مِن بَعْدِ الْفَرِيضَةِ إِنَّ اللّهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمًا |
25 |
और तुममें से जिस किसी की इतनी सामर्थ्य न हो कि पाकदामन, स्वतंत्र, ईमानवाली स्त्रियों से विवाह कर सके, तो तुम्हारी वे ईमानवाली जवान लौडियाँ ही सही जो तुम्हारे क़ब्ज़े में हो। और अल्लाह तुम्हारे ईमान को भली-भाँति जानता है। तुम सब आपस में एक ही हो, तो उनके मालिकों की अनुमति से तुम उनसे विवाह कर लो और सामान्य नियम के अनुसार उन्हें उनका हक़ भी दो। वे पाकदामनी की सुरक्षा करनेवाली हों, स्वच्छन्द काम-तृप्ति न करनेवाली हों और न वे चोरी-छिपे ग़ैरो से प्रेम करनेवाली हों। फिर जब वे विवाहिता बना ली जाएँ और उसके पश्चात कोई अश्लील कर्म कर बैठें, तो जो दंड सम्मानित स्त्रियों के लिए है, उसका आधा उनके लिए होगा। यह तुममें से उस व्यक्ति के लिए है, जिसे ख़राबी में पड़ जाने का भय हो, और यह कि तुम धैर्य से काम लो तो यह तुम्हारे लिए अधिक अच्छा है। निस्संदेह अल्लाह बहुत क्षमाशील, दयावान है |
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وَمَن لَّمْ يَسْتَطِعْ مِنكُمْ طَوْلاً أَن يَنكِحَ الْمُحْصَنَاتِ الْمُؤْمِنَاتِ فَمِن مِّا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُم مِّن فَتَيَاتِكُمُ الْمُؤْمِنَاتِ وَاللّهُ أَعْلَمُ بِإِيمَانِكُمْ بَعْضُكُم مِّن بَعْضٍ فَانكِحُوهُنَّ بِإِذْنِ أَهْلِهِنَّ وَآتُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ بِالْمَعْرُوفِ مُحْصَنَاتٍ غَيْرَ مُسَافِحَاتٍ وَلاَ مُتَّخِذَاتِ أَخْدَانٍ فَإِذَا أُحْصِنَّ فَإِنْ أَتَيْنَ بِفَاحِشَةٍ فَعَلَيْهِنَّ نِصْفُ مَا عَلَى الْمُحْصَنَاتِ مِنَ الْعَذَابِ ذَلِكَ لِمَنْ خَشِيَ الْعَنَتَ مِنْكُمْ وَأَن تَصْبِرُواْ خَيْرٌ لَّكُمْ وَاللّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ |
26 |
अल्लाह चाहता है कि तुमपर स्पष्ट कर दे और तुम्हें उन लोगों के तरीक़ों पर चलाए, जो तुमसे पहले हुए है और तुमपर दयादृष्टि करे। अल्लाह तो सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है |
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يُرِيدُ اللّهُ لِيُبَيِّنَ لَكُمْ وَيَهْدِيَكُمْ سُنَنَ الَّذِينَ مِن قَبْلِكُمْ وَيَتُوبَ عَلَيْكُمْ وَاللّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ |
27 |
और अल्लाह चाहता है कि जो तुमपर दयादृष्टि करे, किन्तु जो लोग अपनी तुच्छ इच्छाओं का पालन करते है, वे चाहते है कि तुम राह से हटकर बहुत दूर जा पड़ो |
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وَاللّهُ يُرِيدُ أَن يَتُوبَ عَلَيْكُمْ وَيُرِيدُ الَّذِينَ يَتَّبِعُونَ الشَّهَوَاتِ أَن تَمِيلُواْ مَيْلاً عَظ ِيمًا |
28 |
अल्लाह चाहता है कि तुमपर से बोझ हलका कर दे, क्योंकि इनसान निर्बल पैदा किया गया है |
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يُرِيدُ اللّهُ أَن يُخَفِّفَ عَنكُمْ وَخُلِقَ الإِنسَانُ ضَعِيفًا |
29 |
ऐ ईमान लानेवालो! आपस में एक-दूसरे के माल ग़लत तरीक़े से न खाओ - यह और बात है कि तुम्हारी आपस में रज़ामन्दी से कोई सौदा हो - और न अपनों की हत्या करो। निस्संदेह अल्लाह तुमपर बहुत दयावान है |
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يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تَأْكُلُواْ أَمْوَالَكُمْ بَيْنَكُمْ بِالْبَاطِلِ إِلاَّ أَن تَكُونَ تِجَارَةً عَن تَرَاضٍ مِّنكُمْ وَلاَ تَقْتُلُواْ أَنفُسَكُمْ إِنَّ اللّهَ كَانَ بِكُمْ رَحِيمًا |
30 |
और जो कोई ज़ुल्म और ज़्यादती से ऐसा करेगा, तो उसे हम जल्द ही आग में झोंक देंगे, और यह अल्लाह के लिए सरल है |
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وَمَن يَفْعَلْ ذَلِكَ عُدْوَانًا وَظُلْمًا فَسَوْفَ نُصْلِيهِ نَارًا وَكَانَ ذَلِكَ عَلَى اللّهِ يَسِيرًا |
31 |
यदि तुम उन बड़े गुनाहों से बचते रहो, जिनसे तुम्हे रोका जा रहा है, तो हम तुम्हारी बुराइयों को तुमसे दूर कर देंगे और तुम्हें प्रतिष्ठित स्थान में प्रवेश कराएँगे |
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إِن تَجْتَنِبُواْ كَبَآئِرَ مَا تُنْهَوْنَ عَنْهُ نُكَفِّرْ عَنكُمْ سَيِّئَاتِكُمْ وَنُدْخِلْكُم مُّدْخَلاً كَرِيمًا |
32 |
और उसकी कामना न करो जिसमें अल्लाह ने तुमसे किसी को किसी से उच्च रखा है। पुरुषों ने जो कुछ कमाया है, उसके अनुसार उनका हिस्सा है और स्त्रियों ने जो कुछ कमाया है, उसके अनुसार उनका हिस्सा है। अल्लाह से उसका उदार दान चाहो। निस्संदेह अल्लाह को हर चीज़ का ज्ञान है |
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وَلاَ تَتَمَنَّوْاْ مَا فَضَّلَ اللّهُ بِهِ بَعْضَكُمْ عَلَى بَعْضٍ لِّلرِّجَالِ نَصِيبٌ مِّمَّا اكْتَسَبُواْ وَلِلنِّسَاء نَصِيبٌ مِّمَّا اكْتَسَبْنَ وَاسْأَلُواْ اللّهَ مِن فَضْلِهِ إِنَّ اللّهَ كَانَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمًا |
33 |
और प्रत्येक माल के लिए, जो माँ-बाप और नातेदार छोड़ जाएँ, हमने वासिस ठहरा दिए है और जिन लोगों से अपनी क़समों के द्वारा तुम्हारा पक्का मामला हुआ हो, तो उन्हें भी उनका हिस्सा दो। निस्संदेह हर चीज़ अल्लाह के समक्ष है |
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وَلِكُلٍّ جَعَلْنَا مَوَالِيَ مِمَّا تَرَكَ الْوَالِدَانِ وَالأَقْرَبُونَ وَالَّذِينَ عَقَدَتْ أَيْمَانُكُمْ فَآتُوهُمْ نَصِيبَهُمْ إِنَّ اللّهَ كَانَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدًا |
34 |
पति पत्नियों संरक्षक और निगराँ है, क्योंकि अल्लाह ने उनमें से कुछ को कुछ के मुक़ाबले में आगे रहा है, और इसलिए भी कि पतियों ने अपने माल ख़र्च किए है, तो नेक पत्ऩियाँ तो आज्ञापालन करनेवाली होती है और गुप्त बातों की रक्षा करती है, क्योंकि अल्लाह ने उनकी रक्षा की है। और जो पत्नियों ऐसी हो जिनकी सरकशी का तुम्हें भय हो, उन्हें समझाओ और बिस्तरों में उन्हें अकेली छोड़ दो और (अति आवश्यक हो तो) उन्हें मारो भी। फिर यदि वे तुम्हारी बात मानने लगे, तो उनके विरुद्ध कोई रास्ता न ढूढ़ो। अल्लाह सबसे उच्च, सबसे बड़ा है |
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الرِّجَالُ قَوَّامُونَ عَلَى النِّسَاء بِمَا فَضَّلَ اللّهُ بَعْضَهُمْ عَلَى بَعْضٍ وَبِمَا أَنفَقُواْ مِنْ أَمْوَالِهِمْ فَالصَّالِحَاتُ قَانِتَاتٌ حَافِظَاتٌ لِّلْغَيْبِ بِمَا حَفِظَ اللّهُ وَاللاَّتِي تَخَافُونَ نُشُوزَهُنَّ فَعِظُوهُنَّ وَاهْجُرُوهُنَّ فِي الْمَضَاجِعِ وَاضْرِبُوهُنَّ فَإِنْ أَطَعْنَكُمْ فَلاَ تَبْغُواْ عَلَيْهِنَّ سَبِيلاً إِنَّ اللّهَ كَانَ عَلِيًّا كَبِيرًا |
35 |
और यदि तुम्हें पति-पत्नी के बीच बिगाड़ का भय हो, तो एक फ़ैसला करनेवाला पुरुष के लोगों में से और एक फ़ैसला करनेवाला स्त्री के लोगों में से नियुक्त करो, यदि वे दोनों सुधार करना चाहेंगे, तो अल्लाह उनके बीच अनुकूलता पैदा कर देगा। निस्संदेह, अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, ख़बर रखनेवाला है |
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وَإِنْ خِفْتُمْ شِقَاقَ بَيْنِهِمَا فَابْعَثُواْ حَكَمًا مِّنْ أَهْلِهِ وَحَكَمًا مِّنْ أَهْلِهَا إِن يُرِيدَا إِصْلاَحًا يُوَفِّقِ اللّهُ بَيْنَهُمَا إِنَّ اللّهَ كَانَ عَلِيمًا خَبِيرًا |
36 |
अल्लाह की बन्दगी करो और उसके साथ किसी को साझी न बनाओ और अच्छा व्यवहार करो माँ-बाप के साथ, नातेदारों, अनाथों और मुहताजों के साथ, नातेदार पड़ोसियों के साथ और अपरिचित पड़ोसियों के साथ और साथ रहनेवाले व्यक्ति के साथ और मुसाफ़िर के साथ और उनके साथ भी जो तुम्हारे क़ब्ज़े में हों। अल्लाह ऐसे व्यक्ति को पसन्द नहीं करता, जो इतराता और डींगें मारता हो |
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وَاعْبُدُواْ اللّهَ وَلاَ تُشْرِكُواْ بِهِ شَيْئًا وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا وَبِذِي الْقُرْبَى وَالْيَتَامَى وَالْمَسَاكِينِ وَالْجَارِ ذِي الْقُرْبَى وَالْجَارِ الْجُنُبِ وَالصَّاحِبِ بِالجَنبِ وَابْنِ السَّبِيلِ وَمَا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ إِنَّ اللّهَ لاَ يُحِبُّ مَن كَانَ مُخْتَالاً فَخُورًا |
37 |
वे जो स्वयं कंजूसी करते है और लोगों को भी कंजूसी पर उभारते है और अल्लाह ने अपने उदार दान से जो कुछ उन्हें दे रखा होता है, उसे छिपाते है, जो हमने अकृतज्ञ लोगों के लिए अपमानजनक यातना तैयार कर रखी है |
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الَّذِينَ يَبْخَلُونَ وَيَأْمُرُونَ النَّاسَ بِالْبُخْلِ وَيَكْتُمُونَ مَا آتَاهُمُ اللّهُ مِن فَضْلِهِ وَأَعْتَدْنَا لِلْكَافِرِينَ عَذَابًا مُّهِينًا |
38 |
वे जो अपने माल लोगों को दिखाने के लिए ख़र्च करते है, न अल्लाह पर ईमान रखते है, न अन्तिम दिन पर, और जिस किसी का साथी शैतान हुआ, तो वह बहुत ही बुरा साथी है |
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وَالَّذِينَ يُنفِقُونَ أَمْوَالَهُمْ رِئَـاء النَّاسِ وَلاَ يُؤْمِنُونَ بِاللّهِ وَلاَ بِالْيَوْمِ الآخِرِ وَمَن يَكُنِ الشَّيْطَانُ لَهُ قَرِينًا فَسَاء قِرِينًا |
39 |
उनका बिगड़ जाता, यदि वे अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाते और जो कुछ अल्लाह ने उन्हें दिया है, उसमें से ख़र्च करते है? अल्लाह उन्हें भली-भाँति जानता है |
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وَمَاذَا عَلَيْهِمْ لَوْ آمَنُواْ بِاللّهِ وَالْيَوْمِ الآخِرِ وَأَنفَقُواْ مِمَّا رَزَقَهُمُ اللّهُ وَكَانَ اللّهُ بِهِم عَلِيمًا |
40 |
निस्संदेह अल्लाह रत्ती-भर भी ज़ुल्म नहीं करता और यदि कोई एक नेकी हो तो वह उसे कई गुना बढ़ा देगा और अपनी ओर से बड़ा बदला देगा |
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إِنَّ اللّهَ لاَ يَظْلِمُ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ وَإِن تَكُ حَسَنَةً يُضَاعِفْهَا وَيُؤْتِ مِن لَّدُنْهُ أَجْرًا عَظِيمًا |
41 |
फिर क्या हाल होगा जब हम प्रत्येक समुदाय में से एक गवाह लाएँगे और स्वयं तुम्हें इन लोगों के मुक़ाबले में गवाह बनाकर पेश करेंगे? |
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فَكَيْفَ إِذَا جِئْنَا مِن كُلِّ أمَّةٍ بِشَهِيدٍ وَجِئْنَا بِكَ عَلَى هَـؤُلاء شَهِيدًا |
42 |
उस दिन वे लोग जिन्होंने इनकार किया होगा और रसूल की अवज्ञा की होगी, यही चाहेंगे कि किसी तरह धरती में समोकर उसे बराबर कर दिया जाए। वे अल्लाह से कोई बात भी न छिपा सकेंगे |
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يَوْمَئِذٍ يَوَدُّ الَّذِينَ كَفَرُواْ وَعَصَوُاْ الرَّسُولَ لَوْ تُسَوَّى بِهِمُ الأَرْضُ وَلاَ يَكْتُمُونَ اللّهَ حَدِيثًا |
43 |
ऐ ईमान लानेवालो! नशे की दशा में नमाज़ में व्यस्त न हो, जब तक कि तुम यह न जानने लगो कि तुम क्या कह रहे हो। और इसी प्रकार नापाकी की दशा में भी (नमाज़ में व्यस्त न हो), जब तक कि तुम स्नान न कर लो, सिवाय इसके कि तुम सफ़र में हो। और यदि तुम बीमार हो या सफ़र में हो, या तुममें से कोई शौच करके आए या तुमने स्त्रियों को हाथ लगाया हो, फिर तुम्हें पानी न मिले, तो पाक मिट्टी से काम लो और उसपर हाथ मारकर अपने चहरे और हाथों पर मलो। निस्संदेह अल्लाह नर्मी से काम लेनेवाला, अत्यन्त क्षमाशील है |
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يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تَقْرَبُواْ الصَّلاَةَ وَأَنتُمْ سُكَارَى حَتَّىَ تَعْلَمُواْ مَا تَقُولُونَ وَلاَ جُنُبًا إِلاَّ عَابِرِي سَبِيلٍ حَتَّىَ تَغْتَسِلُواْ وَإِن كُنتُم مَّرْضَى أَوْ عَلَى سَفَرٍ أَوْ جَاء أَحَدٌ مِّنكُم مِّن الْغَآئِطِ أَوْ لاَمَسْتُمُ النِّسَاء فَلَمْ تَجِدُواْ مَاء فَتَيَمَّمُواْ صَعِيدًا طَيِّبًا فَامْسَحُواْ بِوُجُوهِكُمْ وَأَيْدِيكُمْ إِنَّ اللّهَ كَانَ عَفُوًّا غَفُورًا |
44 |
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा, जिन्हें सौभाग्य प्रदान हुआ था अर्थात किताब दी गई थी? वे पथभ्रष्टता के खरीदार बने हुए है और चाहते है कि तुम भी रास्ते से भटक जाओ |
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أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ أُوتُواْ نَصِيبًا مِّنَ الْكِتَابِ يَشْتَرُونَ الضَّلاَلَةَ وَيُرِيدُونَ أَن تَضِلُّواْ السَّبِيلَ |
45 |
अल्लाह तुम्हारे शत्रुओं को भली-भाँति जानता है। अल्लाह एक संरक्षक के रूप में काफ़ी है और अल्लाह एक सहायक के रूप में भी काफ़ी है |
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وَاللّهُ أَعْلَمُ بِأَعْدَائِكُمْ وَكَفَى بِاللّهِ وَلِيًّا وَكَفَى بِاللّهِ نَصِيرًا |
46 |
वे लोग जो यहूदी बन गए, वे शब्दों को उनके स्थानों से दूसरी ओर फेर देते है और कहते हैं, "समि'अना व 'असैना" (हमने सुना, लेकिन हम मानते नही); और "इसम'अ ग़ै-र मुसम'इन" (सुनो हालाँकि तुम सुनने के योग्य नहीं हो और "राइना" (हमारी ओर ध्यान दो) - यह वे अपनी ज़बानों को तोड़-मरोड़कर और दीन पर चोटें करते हुए कहते है। और यदि वे कहते, "समिअ'ना व अ-त'अना" (हमने सुना और माना) और "इसम'अ" (सुनो) और "उनज़ुरना" (हमारी ओर निगाह करो) तो यह उनके लिए अच्छा और अधिक ठीक होता। किन्तु उनपर तो उनके इनकार के कारण अल्लाह की फिटकार पड़ी हुई है। फिर वे ईमान थोड़े ही लाते है |
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مِّنَ الَّذِينَ هَادُواْ يُحَرِّفُونَ الْكَلِمَ عَن مَّوَاضِعِهِ وَيَقُولُونَ سَمِعْنَا وَعَصَيْنَا وَاسْمَعْ غَيْرَ مُسْمَعٍ وَرَاعِنَا لَيًّا بِأَلْسِنَتِهِمْ وَطَعْنًا فِي الدِّينِ وَلَوْ أَنَّهُمْ قَالُواْ سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا وَاسْمَعْ وَانظُرْنَا لَكَانَ خَيْرًا لَّهُمْ وَأَقْوَمَ وَلَكِن لَّعَنَهُمُ اللّهُ بِكُفْرِهِمْ فَلاَ يُؤْمِنُونَ إِلاَّ قَلِيلا |
47 |
ऐ लोगों! जिन्हें किताब दी गई, उस चीज को मानो जो हमने उतारी है, जो उसकी पुष्टि में है, जो स्वयं तुम्हारे पास है, इससे पहले कि हम चेहरों की रूपरेखा को मिटाकर रख दें और उन्हें उनके पीछ की ओर फेर दें या उनपर लानत करें, जिस प्रकार हमने सब्तवालों पर लानत की थी। और अल्लाह का आदेश तो लागू होकर ही रहता है |
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يَا أَيُّهَا الَّذِينَ أُوتُواْ الْكِتَابَ آمِنُواْ بِمَا نَزَّلْنَا مُصَدِّقًا لِّمَا مَعَكُم مِّن قَبْلِ أَن نَّطْمِسَ وُجُوهًا فَنَرُدَّهَا عَلَى أَدْبَارِهَا أَوْ نَلْعَنَهُمْ كَمَا لَعَنَّا أَصْحَابَ السَّبْتِ وَكَانَ أَمْرُ اللّهِ مَفْعُولاً |
48 |
अल्लाह इसके क्षमा नहीं करेगा कि उसका साझी ठहराया जाए। किन्तु उससे नीचे दर्जे के अपराध को जिसके लिए चाहेगा, क्षमा कर देगा और जिस किसी ने अल्लाह का साझी ठहराया, तो उसने एक बड़ा झूठ घड़ लिया |
/content/ayah/audio/hudhaify/004048.mp3
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إِنَّ اللّهَ لاَ يَغْفِرُ أَن يُشْرَكَ بِهِ وَيَغْفِرُ مَا دُونَ ذَلِكَ لِمَن يَشَاء وَمَن يُشْرِكْ بِاللّهِ فَقَدِ افْتَرَى إِثْمًا عَظِيمًا |
49 |
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो अपने को पूर्ण एवं शिष्ट होने का दावा करते हैं? (कोई यूँ ही शिष्ट नहीं हुआ करता) बल्कि अल्लाह ही जिसे चाहता है, पूर्णता एवं शिष्टता प्रदान करता है। और उनके साथ तनिक भी अत्याचार नहीं किया जाता |
/content/ayah/audio/hudhaify/004049.mp3
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أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ يُزَكُّونَ أَنفُسَهُمْ بَلِ اللّهُ يُزَكِّي مَن يَشَاء وَلاَ يُظْلَمُونَ فَتِيلاً |
50 |
देखो तो सही, वे अल्लाह पर कैसा झूठ मढ़ते हैं? खुले गुनाह के लिए तो यही पर्याप्त है |
/content/ayah/audio/hudhaify/004050.mp3
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انظُرْ كَيفَ يَفْتَرُونَ عَلَى اللّهِ الكَذِبَ وَكَفَى بِهِ إِثْمًا مُّبِينًا |
51 |
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा, जिन्हें किताब का एक हिस्सा दिय् गया? वे अवास्तविक चीज़ो और ताग़ूत (बढ़ हुए सरकश) को मानते है। और अधर्मियों के विषय में कहते है, "ये ईमानवालों से बढ़कर मार्ग पर है।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/004051.mp3
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أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ أُوتُواْ نَصِيبًا مِّنَ الْكِتَابِ يُؤْمِنُونَ بِالْجِبْتِ وَالطَّاغُوتِ وَيَقُولُونَ لِلَّذِينَ كَفَرُواْ هَؤُلاء أَهْدَى مِنَ الَّذِينَ آمَنُواْ سَبِيلاً |
52 |
वही है जिनपर अल्लाह ने लातन की है, और जिसपर अल्लाह लानत कर दे, उसका तुम कोई सहायक कदापि न पाओगे |
/content/ayah/audio/hudhaify/004052.mp3
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أُوْلَـئِكَ الَّذِينَ لَعَنَهُمُ اللّهُ وَمَن يَلْعَنِ اللّهُ فَلَن تَجِدَ لَهُ نَصِيرًا |
53 |
या बादशाही में इनका कोई हिस्सा है? फिर तो ये लोगों को फूटी कौड़ी तक भी न देते |
/content/ayah/audio/hudhaify/004053.mp3
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أَمْ لَهُمْ نَصِيبٌ مِّنَ الْمُلْكِ فَإِذًا لاَّ يُؤْتُونَ النَّاسَ نَقِيرًا |
54 |
या ये लोगों से इसलिए ईर्ष्या करते है कि अल्लाह ने उन्हें अपने उदार दान से अनुग्रहित कर दिया? हमने तो इबराहीम के लोगों को किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) दी और उन्हें बड़ा राज्य प्रदान किया |
/content/ayah/audio/hudhaify/004054.mp3
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أَمْ يَحْسُدُونَ النَّاسَ عَلَى مَا آتَاهُمُ اللّهُ مِن فَضْلِهِ فَقَدْ آتَيْنَا آلَ إِبْرَاهِيمَ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَآتَيْنَاهُم مُّلْكًا عَظِيمًا |
55 |
फिर उनमें से कोई उसपर ईमान लाया और उसमें से किसी ने किनारा खीच लिया। और (ऐसे लोगों के लिए) जहन्नम की भड़कती आग ही काफ़ी है |
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فَمِنْهُم مَّنْ آمَنَ بِهِ وَمِنْهُم مَّن صَدَّ عَنْهُ وَكَفَى بِجَهَنَّمَ سَعِيرًا |
56 |
जिन लोगों ने हमारी आयतों का इनकार किया, उन्हें हम जल्द ही आग में झोंकेंगे। जब भी उनकी खालें पक जाएँगी, तो हम उन्हें दूसरी खालों में बदल दिया करेंगे, ताकि वे यातना का मज़ा चखते ही रहें। निस्संदेह अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है |
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إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ بِآيَاتِنَا سَوْفَ نُصْلِيهِمْ نَارًا كُلَّمَا نَضِجَتْ جُلُودُهُمْ بَدَّلْنَاهُمْ جُلُودًا غَيْرَهَا لِيَذُوقُواْ الْعَذَابَ إِنَّ اللّهَ كَانَ عَزِيزًا حَكِيمًا |
57 |
और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, उन्हें हम ऐसे बाग़ो में दाखिल करेंगे, जिनके नीचे नहरें बह रहीं होगी, जहाँ वे सदैव रहेंगे। उनके लिए वहाँ पाक जोड़े होंगे और हम उन्हें घनी छाँव में दाखिल करेंगे |
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وَالَّذِينَ آمَنُواْ وَعَمِلُواْ الصَّالِحَاتِ سَنُدْخِلُهُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا لَّهُمْ فِيهَا أَزْوَاجٌ مُّطَهَّرَةٌ وَنُدْخِلُهُمْ ظِـلاًّ ظَلِيلاً |
58 |
अल्लाह तुम्हें आदेश देता है कि अमानतों को उनके हक़दारों तक पहुँचा दिया करो। और जब लोगों के बीच फ़ैसला करो, तो न्यायपूर्वक फ़ैसला करो। अल्लाह तुम्हें कितनी अच्छी नसीहत करता है। निस्सदेह, अल्लाह सब कुछ सुनता, देखता है |
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إِنَّ اللّهَ يَأْمُرُكُمْ أَن تُؤدُّواْ الأَمَانَاتِ إِلَى أَهْلِهَا وَإِذَا حَكَمْتُم بَيْنَ النَّاسِ أَن تَحْكُمُواْ بِالْعَدْلِ إِنَّ اللّهَ نِعِمَّا يَعِظُكُم بِهِ إِنَّ اللّهَ كَانَ سَمِيعًا بَصِيرًا |
59 |
ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह की आज्ञा का पालन करो और रसूल का कहना मानो और उनका भी कहना मानो जो तुममें अधिकारी लोग है। फिर यदि तुम्हारे बीच किसी मामले में झगड़ा हो जाए, तो उसे तुम अल्लाह और रसूल की ओर लौटाओ, यदि तुम अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखते हो। यदि उत्तम है और परिणाम की स्पष्ट से भी अच्छा है |
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يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ أَطِيعُواْ اللّهَ وَأَطِيعُواْ الرَّسُولَ وَأُوْلِي الأَمْرِ مِنكُمْ فَإِن تَنَازَعْتُمْ فِي شَيْءٍ فَرُدُّوهُ إِلَى اللّهِ وَالرَّسُولِ إِن كُنتُمْ تُؤْمِنُونَ بِاللّهِ وَالْيَوْمِ الآخِرِ ذَلِكَ خَيْرٌ وَأَحْسَنُ تَأْوِيلاً |
60 |
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा, जो दावा तो करते है कि वे उस चीज़ पर ईमान रखते हैं, जो तुम्हारी ओर उतारी गई है और तुमसे पहले उतारी गई है। और चाहते है कि अपना मामला ताग़ूत के पास ले जाकर फ़ैसला कराएँ, जबकि उन्हें हुक्म दिया गया है कि वे उसका इनकार करें? परन्तु शैतान तो उन्हें भटकाकर बहुत दूर डाल देना चाहता है |
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أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ يَزْعُمُونَ أَنَّهُمْ آمَنُواْ بِمَا أُنزِلَ إِلَيْكَ وَمَا أُنزِلَ مِن قَبْلِكَ يُرِيدُونَ أَن يَتَحَاكَمُواْ إِلَى الطَّاغُوتِ
وَقَدْ أُمِرُواْ أَن يَكْفُرُواْ بِهِ وَيُرِيدُ الشَّيْطَانُ أَن يُضِلَّهُمْ ضَلاَلاً بَعِيدًا |
61 |
और जब उनसे कहा जाता है कि आओ उस चीज़ की ओर जो अल्लाह ने उतारी है और आओ रसूल की ओरस तो तुम मुनाफ़िको (कपटाचारियों) को देखते हो कि वे तुमसे कतराकर रह जाते है |
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وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ تَعَالَوْاْ إِلَى مَا أَنزَلَ اللّهُ وَإِلَى الرَّسُولِ رَأَيْتَ الْمُنَافِقِينَ يَصُدُّونَ عَنكَ صُدُودًا |
62 |
फिर कैसी बात होगी कि जब उनकी अपनी करतूतों के कारण उनपर बड़ी मुसीबत आ पडेगी। फिर वे तुम्हारे पास अल्लाह की क़समें खाते हुए आते है कि हम तो केवल भलाई और बनाव चाहते थे? |
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فَكَيْفَ إِذَا أَصَابَتْهُم مُّصِيبَةٌ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ ثُمَّ جَآؤُوكَ يَحْلِفُونَ بِاللّهِ إِنْ أَرَدْنَا إِلاَّ إِحْسَانًا وَتَوْفِيقًا |
63 |
ये वे लोग है जिनके दिलों की बात अल्लाह भली-भाँति जानता है; तो तुम उन्हें जाने दो और उन्हें समझओ और उनसे उनके विषय में वह बात कहो जो प्रभावकारी हो |
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أُولَـئِكَ الَّذِينَ يَعْلَمُ اللّهُ مَا فِي قُلُوبِهِمْ فَأَعْرِضْ عَنْهُمْ وَعِظْهُمْ وَقُل لَّهُمْ فِي أَنفُسِهِمْ قَوْلاً بَلِيغًا |
64 |
हमने जो रसूल भी भेजा, इसलिए भेजा कि अल्लाह की अनुमति से उसकी आज्ञा का पालन किया जाए। और यदि यह उस समय, जबकि इन्होंने स्वयं अपने ऊपर ज़ुल्म किया था, तुम्हारे पास आ जाते और अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना करता तो निश्चय ही वे अल्लाह को अत्यन्त क्षमाशील और दयावान पाते |
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وَمَا أَرْسَلْنَا مِن رَّسُولٍ إِلاَّ لِيُطَاعَ بِإِذْنِ اللّهِ وَلَوْ أَنَّهُمْ إِذ ظَّلَمُواْ أَنفُسَهُمْ جَآؤُوكَ فَاسْتَغْفَرُواْ اللّهَ وَاسْتَغْفَرَ لَهُمُ الرَّسُولُ لَوَجَدُواْ اللّهَ تَوَّابًا رَّحِيمًا |
65 |
तो तुम्हें तुम्हारे रब की कसम! ये ईमानवाले नहीं हो सकते जब तक कि अपने आपस के झगड़ो में ये तुमसे फ़ैसला न कराएँ। फिर जो फ़ैसला तुम कर दो, उसपर ये अपने दिलों में कोई तंगी न पाएँ और पूरी तरह मान ले |
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فَلاَ وَرَبِّكَ لاَ يُؤْمِنُونَ حَتَّىَ يُحَكِّمُوكَ فِيمَا شَجَرَ بَيْنَهُمْ ثُمَّ لاَ يَجِدُواْ فِي أَنفُسِهِمْ حَرَجًا مِّمَّا قَضَيْتَ وَيُسَلِّمُواْ تَسْلِيمًا |
66 |
और यदि कहीं हमने उन्हें आदेश दिया होता कि "अपनों को क़त्ल करो या अपने घरों से निकल जाओ।" तो उनमें से थोड़े ही ऐसा करते। हालाँकि जो नसीहत उन्हें दी जाती है, अगर वे उसे व्यवहार में लाते तो यह बात उनके लिए अच्छी होती और ज़्यादा ज़माव पैदा करनेवाली होती |
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وَلَوْ أَنَّا كَتَبْنَا عَلَيْهِمْ أَنِ اقْتُلُواْ أَنفُسَكُمْ أَوِ اخْرُجُواْ مِن دِيَارِكُم مَّا فَعَلُوهُ إِلاَّ قَلِيلٌ مِّنْهُمْ وَلَوْ أَنَّهُمْ فَعَلُواْ مَا يُوعَظُونَ بِهِ لَكَانَ خَيْرًا لَّهُمْ وَأَشَدَّ تَثْبِيتًا |
67 |
और उस समय हम उन्हें अपनी ओर से निश्चय ही बड़ा बदला प्रदान करते |
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وَإِذاً لَّآتَيْنَاهُم مِّن لَّدُنَّـا أَجْراً عَظِيمًا |
68 |
और उन्हें सीधे मार्ग पर लगा देते |
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وَلَهَدَيْنَاهُمْ صِرَاطًا مُّسْتَقِيمًا |
69 |
जो अल्लाह और रसूल की आज्ञा का पालन करता है, तो ऐसे ही लोग उन लोगों के साथ है जिनपर अल्लाह की कृपा स्पष्ट रही है - वे नबी, सिद्दीक़, शहीद और अच्छे लोग है। और वे कितने अच्छे साथी है |
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وَمَن يُطِعِ اللّهَ وَالرَّسُولَ فَأُوْلَـئِكَ مَعَ الَّذِينَ أَنْعَمَ اللّهُ عَلَيْهِم مِّنَ النَّبِيِّينَ وَالصِّدِّيقِينَ وَالشُّهَدَاء وَالصَّالِحِينَ وَحَسُنَ أُولَـئِكَ رَفِيقًا |
70 |
यह अल्लाह का उदार अनुग्रह है। और काफ़ी है अल्लाह, इस हाल में कि वह भली-भाँति जानता है |
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ذَلِكَ الْفَضْلُ مِنَ اللّهِ وَكَفَى بِاللّهِ عَلِيمًا |
71 |
ऐ ईमान लानेवालो! अपने बचाव की साम्रगी (हथियार आदि) सँभालो। फिर या तो अलग-अलग टुकड़ियों में निकलो या इकट्ठे होकर निकलो |
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يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ خُذُواْ حِذْرَكُمْ فَانفِرُواْ ثُبَاتٍ أَوِ انفِرُواْ جَمِيعًا |
72 |
तुमसे से कोई ऐसा भी है जो ढीला पड़ जाता है, फिर यदि तुमपर कोई मुसीबत आए तो कहने लगता है कि अल्लाह ने मुझपर कृपा की कि मैं इन लोगों के साथ न गया |
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وَإِنَّ مِنكُمْ لَمَن لَّيُبَطِّئَنَّ فَإِنْ أَصَابَتْكُم مُّصِيبَةٌ قَالَ قَدْ أَنْعَمَ اللّهُ عَلَيَّ إِذْ لَمْ أَكُن مَّعَهُمْ شَهِيدًا |
73 |
परन्तु यदि अल्लाह की ओर से तुमपर कोई उदार अनुग्रह हो तो वह इस प्रकार से जैसे तुम्हारे और उनके बीच प्रेम का कोई सम्बन्ध ही नहीं, कहता है, "क्या ही अच्छा होता कि मैं भी उनके साथ होता, तो बड़ी सफलता प्राप्त करता।" |
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وَلَئِنْ أَصَابَكُمْ فَضْلٌ مِّنَ الله لَيَقُولَنَّ كَأَن لَّمْ تَكُن بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُ مَوَدَّةٌ يَا لَيتَنِي كُنتُ مَعَهُمْ فَأَفُوزَ فَوْزًا عَظِيمًا |
74 |
तो जो लोग आख़िरत (परलोक) के बदले सांसारिक जीवन का सौदा करें, तो उन्हें चाहिए कि अल्लाह के मार्ग में लड़े। जो अल्लाह के मार्ग में लड़ेगी, चाहे वह मारा जाए या विजयी रहे, उसे हम शीघ्र ही बड़ा बदला प्रदान करेंगे |
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فَلْيُقَاتِلْ فِي سَبِيلِ اللّهِ الَّذِينَ يَشْرُونَ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا بِالآخِرَةِ وَمَن يُقَاتِلْ فِي سَبِيلِ اللّهِ فَيُقْتَلْ أَو يَغْلِبْ فَسَوْفَ نُؤْتِيهِ أَجْرًا عَظِيمًا |
75 |
तुम्हें क्या हुआ है कि अल्लाह के मार्ग में और उन कमज़ोर पुरुषों, औरतों और बच्चों के लिए युद्ध न करो, जो प्रार्थनाएँ करते है कि "हमारे रब! तू हमें इस बस्ती से निकाल, जिसके लोग अत्याचारी है। और हमारे लिए अपनी ओर से तू कोई समर्थक नियुक्त कर और हमारे लिए अपनी ओर से तू कोई सहायक नियुक्त कर।" |
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وَمَا لَكُمْ لاَ تُقَاتِلُونَ فِي سَبِيلِ اللّهِ وَالْمُسْتَضْعَفِينَ مِنَ الرِّجَالِ وَالنِّسَاء وَالْوِلْدَانِ الَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا أَخْرِجْنَا مِنْ هَـذِهِ الْقَرْيَةِ الظَّالِمِ أَهْلُهَا وَاجْعَل لَّنَا مِن لَّدُنكَ وَلِيًّا وَاجْعَل لَّنَا مِن لَّدُنكَ نَصِيرًا |
76 |
ईमान लानेवाले तो अल्लाह के मार्ग में युद्ध करते है और अधर्मी लोग ताग़ूत (बढ़े हुए सरकश) के मार्ग में युद्ध करते है। अतः तुम शैतान के मित्रों से लड़ो। निश्चय ही, शैतान की चाल बहुत कमज़ोर होती है |
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الَّذِينَ آمَنُواْ يُقَاتِلُونَ فِي سَبِيلِ اللّهِ وَالَّذِينَ كَفَرُواْ يُقَاتِلُونَ فِي سَبِيلِ الطَّاغُوتِ فَقَاتِلُواْ أَوْلِيَاء الشَّيْطَانِ إِنَّ كَيْدَ
الشَّيْطَانِ كَانَ ضَعِيفًا |
77 |
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिनसे कहा गया था कि अपने हाथ रोके रखो और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो? फिर जब उन्हें युद्ध का आदेश दिया गया तो क्या देखते है कि उनमें से कुछ लोगों का हाल यह है कि वे लोगों से ऐसा डरने लगे जैसे अल्लाह का डर हो या यह डर उससे भी बढ़कर हो। कहने लगे, "हमारे रब! तूने हमपर युद्ध क्यों अनिवार्य कर दिया? क्यों न थोड़ी मुहलत हमें और दी?" कह दो, "दुनिया की पूँजी बहुत थोड़ी है, जबकि आख़िरत उस व्यक्ति के अधिक अच्छी है जो अल्लाह का डर रखता हो और तुम्हारे साथ तनिक भी अन्याय न किया जाएगा। |
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أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ قِيلَ لَهُمْ كُفُّواْ أَيْدِيَكُمْ وَأَقِيمُواْ الصَّلاَةَ وَآتُواْ الزَّكَاةَ فَلَمَّا كُتِبَ عَلَيْهِمُ الْقِتَالُ إِذَا فَرِيقٌ مِّنْهُمْ يَخْشَوْنَ النَّاسَ كَخَشْيَةِ اللّهِ أَوْ أَشَدَّ خَشْيَةً وَقَالُواْ رَبَّنَا لِمَ كَتَبْتَ عَلَيْنَا الْقِتَالَ لَوْلا أَخَّرْتَنَا إِلَى أَجَلٍ قَرِيبٍ قُلْ مَتَاعُ الدَّنْيَا قَلِيلٌ وَالآخِرَةُ خَيْرٌ لِّمَنِ اتَّقَى وَلاَ تُظْلَمُونَ فَتِيلاً |
78 |
"तुम जहाँ कहीं भी होंगे, मृत्यु तो तुम्हें आकर रहेगी; चाहे तुम मज़बूत बुर्जों (क़िलों) में ही (क्यों न) हो।" यदि उन्हें कोई अच्छी हालत पेश आती है तो कहते है, "यह तो अल्लाह के पास से है।" परन्तु यदि उन्हें कोई बुरी हालत पेश आती है तो कहते है, "यह तुम्हारे कारण है।" कह दो, "हरेक चीज़ अल्लाह के पास से है।" आख़िर इन लोगों को क्या हो गया कि ये ऐसे नहीं लगते कि कोई बात समझ सकें? |
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أَيْنَمَا تَكُونُواْ يُدْرِككُّمُ الْمَوْتُ وَلَوْ كُنتُمْ فِي بُرُوجٍ مُّشَيَّدَةٍ وَإِن تُصِبْهُمْ حَسَنَةٌ يَقُولُواْ هَـذِهِ مِنْ عِندِ اللّهِ َإِن تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌ يَقُولُواْ هَـذِهِ مِنْ عِندِكَ قُلْ كُلًّ مِّنْ عِندِ اللّهِ فَمَا لِهَـؤُلاء الْقَوْمِ لاَ يَكَادُونَ يَفْقَهُونَ حَدِيثًا |
79 |
तुम्हें जो भी भलाई प्राप्त" होती है, वह अल्लाह को ओर से है और जो बुरी हालत तुम्हें पेश आ जाती है तो वह तुम्हारे अपने ही कारण पेश आती है। हमने तुम्हें लोगों के लिए रसूल बनाकर भेजा है और (इसपर) अल्लाह का गवाह होना काफ़ी है |
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مَّا أَصَابَكَ مِنْ حَسَنَةٍ فَمِنَ اللّهِ وَمَا أَصَابَكَ مِن سَيِّئَةٍ فَمِن نَّفْسِكَ وَأَرْسَلْنَاكَ لِلنَّاسِ رَسُولاً وَكَفَى بِاللّهِ شَهِيدًا |
80 |
जिसने रसूल की आज्ञा का पालन किया, उसने अल्लाह की आज्ञा का पालन किया और जिसने मुँह मोड़ा तो हमने तुम्हें ऐसे लोगों पर कोई रखवाला बनाकर तो नहीं भेजा है |
/content/ayah/audio/hudhaify/004080.mp3
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مَّنْ يُطِعِ الرَّسُولَ فَقَدْ أَطَاعَ اللّهَ وَمَن تَوَلَّى فَمَا أَرْسَلْنَاكَ عَلَيْهِمْ حَفِيظًا |
81 |
और वे दावा तो आज्ञापालन का करते है, परन्तु जब तुम्हारे पास से हटते है तो उनमें एक गिरोह अपने कथन के विपरीत रात में षड्यंत्र करता है । जो कुछ वे षड्यंत्र करते है, अल्लाह उसे लिख रहा है। तो तुम उनसे रुख़ फेर लो और अल्लाह पर भरोसा रखो, और अल्लाह का कार्यसाधक होना काफ़ी है! |
/content/ayah/audio/hudhaify/004081.mp3
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وَيَقُولُونَ طَاعَةٌ فَإِذَا بَرَزُواْ مِنْ عِندِكَ بَيَّتَ طَآئِفَةٌ مِّنْهُمْ غَيْرَ الَّذِي تَقُولُ وَاللّهُ يَكْتُبُ مَا يُبَيِّتُونَ فَأَعْرِضْ عَنْهُمْ وَتَوَكَّلْ عَلَى اللّهِ وَكَفَى بِاللّهِ وَكِيلاً |
82 |
क्या वे क़ुरआन में सोच-विचार नहीं करते? यदि यह अल्लाह के अतिरिक्त किसी और की ओर से होता, तो निश्चय ही वे इसमें बहुत-सी बेमेल बातें पाते |
/content/ayah/audio/hudhaify/004082.mp3
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أَفَلاَ يَتَدَبَّرُونَ الْقُرْآنَ وَلَوْ كَانَ مِنْ عِندِ غَيْرِ اللّهِ لَوَجَدُواْ فِيهِ اخْتِلاَفًا كَثِيراً |
83 |
जब उनके पास निश्चिन्तता या भय की कोई बात पहुचती है तो उसे फैला देते है, हालाँकि अगर वे उसे रसूल और अपने समुदाय के उतरदायी व्यक्तियों तक पहुँचाते तो उसे वे लोग जान लेते जो उनमें उसकी जाँच कर सकते है। और यदि तुमपर अल्लाह का उदार अनुग्रह और उसकी दयालुता न होती, तो थोड़े लोगों के सिवा तुम सब शैतान के पीछे चलने लग जाते |
/content/ayah/audio/hudhaify/004083.mp3
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وَإِذَا جَاءهُمْ أَمْرٌ مِّنَ الأَمْنِ أَوِ الْخَوْفِ أَذَاعُواْ بِهِ وَلَوْ رَدُّوهُ إِلَى الرَّسُولِ وَإِلَى أُوْلِي الأَمْرِ مِنْهُمْ لَعَلِمَهُ الَّذِينَ يَسْتَنبِطُونَهُ مِنْهُمْ وَلَوْلاَ فَضْلُ اللّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ لاَتَّبَعْتُمُ الشَّيْطَانَ إِلاَّ قَلِيلاً |
84 |
अतः अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो - तुमपर तो बस तुम्हारी अपनी ही ज़िम्मेदारी है - और ईमानवालों की कमज़ोरियो को दूर करो और उन्हें (युद्ध के लिए) उभारो। इसकी बहुत सम्भावना है कि अल्लाह इनकार करनेवालों के ज़ोर को रोक लगा दे। अल्लाह बड़ा ज़ोरवाला और कठोर दंड देनेवाला है |
/content/ayah/audio/hudhaify/004084.mp3
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فَقَاتِلْ فِي سَبِيلِ اللّهِ لاَ تُكَلَّفُ إِلاَّ نَفْسَكَ وَحَرِّضِ الْمُؤْمِنِينَ عَسَى اللّهُ أَن يَكُفَّ بَأْسَ الَّذِينَ كَفَرُواْ وَاللّهُ أَشَدُّ بَأْسًا وَأَشَدُّ تَنكِيلاً |
85 |
जो कोई अच्छी सिफ़ारिश करेगा, उसे उसके कारण उसका प्रतिदान मिलेगा और जो बुरी सिफ़ारिश करेगा, तो उसके कारँ उसका बोझ उसपर पड़कर रहेगा। अल्लाह को तो हर चीज़ पर क़ाबू हासिल है |
/content/ayah/audio/hudhaify/004085.mp3
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مَّن يَشْفَعْ شَفَاعَةً حَسَنَةً يَكُن لَّهُ نَصِيبٌ مِّنْهَا وَمَن يَشْفَعْ شَفَاعَةً سَيِّئَةً يَكُن لَّهُ كِفْلٌ مِّنْهَا وَكَانَ اللّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ مُّقِيتًا |
86 |
और तुम्हें जब सलामती की कोई दुआ दी जाए, तो तुम सलामती की उससे अच्छी दुआ दो या उसी को लौटा दो। निश्चय ही, अल्लाह हर चीज़ का हिसाब रखता है |
/content/ayah/audio/hudhaify/004086.mp3
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وَإِذَا حُيِّيْتُم بِتَحِيَّةٍ فَحَيُّواْ بِأَحْسَنَ مِنْهَا أَوْ رُدُّوهَا إِنَّ اللّهَ كَانَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ حَسِيبًا |
87 |
अल्लाह के सिवा कोई इष्ट -पूज्य नहीं। वह तुम्हें क़ियामत के दिन की ओर ले जाकर इकट्ठा करके रहेगा, जिसके आने में कोई संदेह नहीं, और अल्लाह से बढ़कर सच्ची बात और किसकी हो सकती है |
/content/ayah/audio/hudhaify/004087.mp3
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اللّهُ لا إِلَـهَ إِلاَّ هُوَ لَيَجْمَعَنَّكُمْ إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ لاَ رَيْبَ فِيهِ وَمَنْ أَصْدَقُ مِنَ اللّهِ حَدِيثًا |
88 |
फिर तुम्हें क्या हो गया है कि कपटाचारियों (मुनाफ़िक़ो) के विषय में तुम दो गिरोह हो रहे हो, यद्यपि अल्लाह ने तो उनकी करतूतों के कारण उन्हें उल्टा फेर दिया है? क्या तुम उसे मार्ग पर लाना चाहते हो जिसे अल्लाह ने गुमराह छोड़ दिया है? हालाँकि जिसे अल्लाह मार्ग न दिखाए, उसके लिए तुम कदापि कोई मार्ग नहीं पा सकते |
/content/ayah/audio/hudhaify/004088.mp3
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فَمَا لَكُمْ فِي الْمُنَافِقِينَ فِئَتَيْنِ وَاللّهُ أَرْكَسَهُم بِمَا كَسَبُواْ أَتُرِيدُونَ أَن تَهْدُواْ مَنْ أَضَلَّ اللّهُ وَمَن يُضْلِلِ اللّهُ فَلَن تَجِدَ لَهُ سَبِيلاً |
89 |
वे तो चाहते है कि जिस प्रकार वे स्वयं अधर्मी है, उसी प्रकार तुम भी अधर्मी बनकर उन जैसे हो जाओ; तो तुम उनमें से अपने मित्र न बनाओ, जब तक कि वे अल्लाह के मार्ग में घरबार न छोड़े। फिर यदि वे इससे पीठ फेरें तो उन्हें पकड़ो, और उन्हें क़त्ल करो जहाँ कही भी उन्हें पाओ - तो उनमें से किसी को न अपना मित्र बनाना और न सहायक - |
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وَدُّواْ لَوْ تَكْفُرُونَ كَمَا كَفَرُواْ فَتَكُونُونَ سَوَاء فَلاَ تَتَّخِذُواْ مِنْهُمْ أَوْلِيَاء حَتَّىَ يُهَاجِرُواْ فِي سَبِيلِ اللّهِ فَإِن تَوَلَّوْاْ فَخُذُوهُمْ وَاقْتُلُوهُمْ حَيْثُ وَجَدتَّمُوهُمْ وَلاَ تَتَّخِذُواْ مِنْهُمْ وَلِيًّا وَلاَ نَصِيرًا |
90 |
सिवाय उन लोगों के जो ऐसे लोगों से सम्बन्ध रखते हों, जिनसे तुम्हारे और उनकी बीच कोई समझौता हो या वे तुम्हारे पास इस दशा में आएँ कि उनके दिल इससे तंग हो रहे हों कि वे तुमसे लड़े या अपने लोगों से लड़ाई करें। यदि अल्लाह चाहता तो उन्हें तुमपर क़ाबू दे देता। फिर तो वे तुमसे अवश्य लड़ते; तो यदि वे तुमसे अलग रहें और तुमसे न लड़ें और संधि के लिए तुम्हारी ओर हाथ बढ़ाएँ तो उनके विरुद्ध अल्लाह ने तुम्हारे लिए कोई रास्ता नहीं रखा है |
/content/ayah/audio/hudhaify/004090.mp3
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إِلاَّ الَّذِينَ يَصِلُونَ إِلَىَ قَوْمٍ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُم مِّيثَاقٌ أَوْ جَآؤُوكُمْ حَصِرَتْ صُدُورُهُمْ أَن يُقَاتِلُوكُمْ أَوْ يُقَاتِلُواْ قَوْمَهُمْ وَلَوْ شَاء اللّهُ لَسَلَّطَهُمْ عَلَيْكُمْ فَلَقَاتَلُوكُمْ فَإِنِ اعْتَزَلُوكُمْ فَلَمْ يُقَاتِلُوكُمْ وَأَلْقَوْاْ إِلَيْكُمُ السَّلَمَ فَمَا جَعَلَ اللّهُ لَكُمْ عَلَيْهِمْ سَبِيلاً |
91 |
अब तुम कुछ ऐसे लोगों को भी पाओगे, जो चाहते है कि तुम्हारी ओर से निश्चिन्त होकर रहें और अपने लोगों की ओर से भी निश्चिन्त होकर रहे। परन्तु जब भी वे फ़साद और उपद्रव की ओर फेरे गए तो वे उसी में औधे जो गिरे। तो यदि वे तुमसे अलग-थलग न रहें और तुम्हारी ओर सुलह का हाथ न बढ़ाएँ, और अपने हाथ न रोकें, तो तुम उन्हें पकड़ो और क़त्ल करो, जहाँ कहीं भी तुम उन्हें पाओ। उनके विरुद्ध हमने तुम्हें खुला अधिकार दे रखा है |
/content/ayah/audio/hudhaify/004091.mp3
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سَتَجِدُونَ آخَرِينَ يُرِيدُونَ أَن يَأْمَنُوكُمْ وَيَأْمَنُواْ قَوْمَهُمْ كُلَّ مَا رُدُّوَاْ إِلَى الْفِتْنِةِ أُرْكِسُواْ فِيِهَا فَإِن لَّمْ يَعْتَزِلُوكُمْ وَيُلْقُواْ إِلَيْكُمُ السَّلَمَ وَيَكُفُّوَاْ أَيْدِيَهُمْ فَخُذُوهُمْ وَاقْتُلُوهُمْ حَيْثُ ثِقِفْتُمُوهُمْ وَأُوْلَـئِكُمْ جَعَلْنَا لَكُمْ عَلَيْهِمْ سُلْطَانًا مُّبِينًا |
92 |
किसी ईमानवाले का यह काम नहीं कि वह किसी ईमानवाले का हत्या करे, भूल-चूक की बात और है। और यदि कोई क्यक्ति यदि ग़लती से किसी ईमानवाले की हत्या कर दे, तो एक मोमिन ग़ुलाम को आज़ाद करना होगा और अर्थदंड उस (मारे गए क्यक्ति) के घरवालों को सौंपा जाए। यह और बात है कि वे अपनी ख़ुशी से छोड़ दें। और यदि वह उन लोगों में से हो, जो तुम्हारे शत्रु हों और वह (मारा जानेवाला) स्वयं मोमिन रहा तो एक मोमिन को ग़ुलामी से आज़ाद करना होगा। और यदि वह उन लोगों में से हो कि तुम्हारे और उनके बीच कोई संधि और समझौता हो, तो अर्थदंड उसके घरवालों को सौंपा जाए और एक मोमिन को ग़ुलामी से आज़ाद करना होगा। लेकिन जो (ग़ुलाम) न पाए तो वह निरन्तर दो मास के रोज़े रखे। यह अल्लाह की ओर से निश्चित किया हुआ उसकी तरफ़ पलट आने का तरीक़ा है। अल्लाह तो सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है |
/content/ayah/audio/hudhaify/004092.mp3
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وَمَا كَانَ لِمُؤْمِنٍ أَن يَقْتُلَ مُؤْمِنًا إِلاَّ خَطَئًا وَمَن قَتَلَ مُؤْمِنًا خَطَئًا فَتَحْرِيرُ رَقَبَةٍ مُّؤْمِنَةٍ وَدِيَةٌ مُّسَلَّمَةٌ إِلَى أَهْلِهِ إِلاَّ أَن يَصَّدَّقُواْ فَإِن كَانَ مِن قَوْمٍ عَدُوٍّ لَّكُمْ وَهُوَ مْؤْمِنٌ فَتَحْرِيرُ رَقَبَةٍ مُّؤْمِنَةٍ وَإِن كَانَ مِن قَوْمٍ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُمْ مِّيثَاقٌ فَدِيَةٌ مُّسَلَّمَةٌ إِلَى أَهْلِهِ وَتَحْرِيرُ رَقَبَةٍ مُّؤْمِنَةً فَمَن لَّمْ يَجِدْ فَصِيَامُ شَهْرَيْنِ مُتَتَابِعَيْنِ تَوْبَةً مِّنَ اللّهِ وَكَانَ اللّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا |
93 |
और जो व्यक्ति जान-बूझकर किसी मोमिन की हत्या करे, तो उसका बदला जहन्नम है, जिसमें वह सदा रहेगा; उसपर अल्लाह का प्रकोप और उसकी फिटकार है और उसके लिए अल्लाह ने बड़ी यातना तैयार कर रखी है |
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وَمَن يَقْتُلْ مُؤْمِنًا مُّتَعَمِّدًا فَجَزَآؤُهُ جَهَنَّمُ خَالِدًا فِيهَا وَغَضِبَ اللّهُ عَلَيْهِ وَلَعَنَهُ وَأَعَدَّ لَهُ عَذَابًا عَظِيمًا |
94 |
ऐ ईमान लानेवालो! जब तुम अल्लाह के मार्ग से निकलो तो अच्छी तरह पता लगा लो और जो तुम्हें सलाम करे, उससे यह न कहो कि तुम ईमान नहीं रखते, और इससे तुम्हारा ध्येय यह हो कि सांसारिक जीवन का माल प्राप्त करो। अल्लाह ने तुमपर उपकार किया, जो अच्छी तरह पता लगा लिया करो। जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उसकी पूरी ख़बर रखता है |
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يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ إِذَا ضَرَبْتُمْ فِي سَبِيلِ اللّهِ فَتَبَيَّنُواْ وَلاَ تَقُولُواْ لِمَنْ أَلْقَى إِلَيْكُمُ السَّلاَمَ لَسْتَ مُؤْمِنًا تَبْتَغُونَ
عَرَضَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا فَعِندَ اللّهِ مَغَانِمُ كَثِيرَةٌ كَذَلِكَ كُنتُم مِّن قَبْلُ فَمَنَّ اللّهُ عَلَيْكُمْ فَتَبَيَّنُواْ إِنَّ اللّهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًا |
95 |
ईमानवालों में से वे लोग जो बिना किसी कारण के बैठे रहते है और जो अल्लाह के मार्ग में अपने धन और प्राणों के साथ जी-तोड़ कोशिश करते है, दोनों समान नहीं हो सकते। अल्लाह ने बैठे रहनेवालों की अपेक्षा अपने धन और प्राणों से जी-तोड़ कोशिश करनेवालों का दर्जा बढ़ा रखा है। यद्यपि प्रत्यके के लिए अल्लाह ने अच्छे बदले का वचन दिया है। परन्तु अल्लाह ने जी-तोड़ कोशिश करनेवालों का बड़ा बदला रखा है |
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لاَّ يَسْتَوِي الْقَاعِدُونَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ غَيْرُ أُوْلِي الضَّرَرِ وَالْمُجَاهِدُونَ فِي سَبِيلِ اللّهِ بِأَمْوَالِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ فَضَّلَ اللّهُ الْمُجَاهِدِينَ بِأَمْوَالِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ عَلَى الْقَاعِدِينَ دَرَجَةً وَكُـلاًّ وَعَدَ اللّهُ الْحُسْنَى وَفَضَّلَ اللّهُ الْمُجَاهِدِينَ عَلَى الْقَاعِدِينَ أَجْرًا عَظِيمًا |
96 |
उसकी ओर से दर्जे है और क्षमा और दयालुता है। और अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है |
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دَرَجَاتٍ مِّنْهُ وَمَغْفِرَةً وَرَحْمَةً وَكَانَ اللّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا |
97 |
जो लोग अपने-आप पर अत्याचार करते है, जब फ़रिश्ते उस दशा में उनके प्राण ग्रस्त कर लेते है, तो कहते है, "तुम किस दशा में पड़े रहे?" वे कहते है, "हम धरती में निर्बल और बेबस थे।" फ़रिश्ते कहते है, "क्या अल्लाह की धरती विस्तृत न थी कि तुम उसमें घर-बार छोड़कर कहीं ओर चले जाते?" तो ये वही लोग है जिनका ठिकाना जहन्नम है। - और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है |
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إِنَّ الَّذِينَ تَوَفَّاهُمُ الْمَلآئِكَةُ ظَالِمِي أَنْفُسِهِمْ قَالُواْ فِيمَ كُنتُمْ قَالُواْ كُنَّا مُسْتَضْعَفِينَ فِي الأَرْضِ قَالْوَاْ أَلَمْ تَكُنْ أَرْضُ اللّهِ وَاسِعَةً فَتُهَاجِرُواْ فِيهَا فَأُوْلَـئِكَ مَأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ وَسَاءتْ مَصِيرًا |
98 |
सिवाय उन बेबस पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों के जिनके बस में कोई उपाय नहीं और न कोई राह पा रहे है; |
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إِلاَّ الْمُسْتَضْعَفِينَ مِنَ الرِّجَالِ وَالنِّسَاء وَالْوِلْدَانِ لاَ يَسْتَطِيعُونَ حِيلَةً وَلاَ يَهْتَدُونَ سَبِيلاً |
99 |
तो सम्भव है कि अल्लाह ऐसे लोगों को छोड़ दे; क्योंकि अल्लाह छोड़ देनेवाला और बड़ा क्षमाशील है |
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فَأُوْلَـئِكَ عَسَى اللّهُ أَن يَعْفُوَ عَنْهُمْ وَكَانَ اللّهُ عَفُوًّا غَفُورًا |
100 |
जो कोई अल्लाह के मार्ग में घरबार छोड़कर निकलेगा, वह धरती में शरण लेने की बहुत जगह और समाई पाएगा, और जो कोई अपने घर में सब कुछ छोड़कर अल्लाह और उसके रसूल की ओर निकले और उसकी मृत्यु हो जाए, तो उसका प्रतिदान अल्लाह के ज़िम्मे हो गया। अल्लाह बहुत क्षमाशील, दयावान है |
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وَمَن يُهَاجِرْ فِي سَبِيلِ اللّهِ يَجِدْ فِي الأَرْضِ مُرَاغَمًا كَثِيراً وَسَعَةً وَمَن يَخْرُجْ مِن بَيْتِهِ مُهَاجِرًا إِلَى اللّهِ وَرَسُولِهِ ثُمَّ يُدْرِكْهُ الْمَوْتُ فَقَدْ وَقَعَ أَجْرُهُ عَلى اللّهِ وَكَانَ اللّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا |
101 |
और जब तुम धरती में यात्रा करो, तो इसमें तुमपर कोई गुनाह नहीं कि नमाज़ को कुछ संक्षिप्त कर दो; यदि तुम्हें इस बात का भय हो कि विधर्मी लोग तुम्हें सताएँगे और कष्ट पहुँचाएँगे। निश्चय ही विधर्मी लोग तुम्हारे खुले शत्रु है |
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وَإِذَا ضَرَبْتُمْ فِي الأَرْضِ فَلَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَن تَقْصُرُواْ مِنَ الصَّلاَةِ إِنْ خِفْتُمْ أَن يَفْتِنَكُمُ الَّذِينَ كَفَرُواْ إِنَّ الْكَافِرِينَ كَانُواْ لَكُمْ عَدُوًّا مُّبِينًا |
102 |
और जब तुम उनके बीच हो और (लड़ाई की दशा में) उन्हें नमाज़ पढ़ाने के लिए खड़े हो, जो चाहिए कि उनमें से एक गिरोह के लोग तुम्हारे साथ खड़े हो जाएँ और अपने हथियार साथ लिए रहें, और फिर जब वे सजदा कर लें तो उन्हें चाहिए कि वे हटकर तुम्हारे पीछे हो जाएँ और दूसरे गिरोंह के लोग, जिन्होंने अभी नमाज़ नही पढ़ी, आएँ और तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़े, और उन्हें भी चाहिए कि वे भी अपने बचाव के सामान और हथियार लिए रहें। विधर्मी चाहते ही है कि वे भी अपने हथियारों और सामान से असावधान हो जाओ तो वे तुम पर एक साथ टूट पड़े। यदि वर्षा के कारण तुम्हें तकलीफ़ होती हो या तुम बीमार हो, तो तुम्हारे लिए कोई गुनाह नहीं कि अपने हथियार रख दो, फिर भी अपनी सुरक्षा का सामान लिए रहो। अल्लाह ने विधर्मियों के लिए अपमानजनक यातना तैयार कर रखी है |
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وَإِذَا كُنتَ فِيهِمْ فَأَقَمْتَ لَهُمُ الصَّلاَةَ فَلْتَقُمْ طَآئِفَةٌ مِّنْهُم مَّعَكَ وَلْيَأْخُذُواْ أَسْلِحَتَهُمْ فَإِذَا سَجَدُواْ فَلْيَكُونُواْ مِن وَرَآئِكُمْ وَلْتَأْتِ طَآئِفَةٌ أُخْرَى لَمْ يُصَلُّواْ فَلْيُصَلُّواْ مَعَكَ وَلْيَأْخُذُواْ حِذْرَهُمْ وَأَسْلِحَتَهُمْ وَدَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ لَوْ تَغْفُلُونَ عَنْ أَسْلِحَتِكُمْ وَأَمْتِعَتِكُمْ فَيَمِيلُونَ عَلَيْكُم مَّيْلَةً وَاحِدَةً وَلاَ جُنَاحَ عَلَيْكُمْ إِن كَانَ بِكُمْ أَذًى مِّن مَّطَرٍ أَوْ كُنتُم مَّرْضَى أَن تَضَعُواْ أَسْلِحَتَكُمْ وَخُذُواْ حِذْرَكُمْ إِنَّ اللّهَ أَعَدَّ لِلْكَافِرِينَ عَذَابًا مُّهِينًا |
103 |
फिर जब तुम नमाज़ अदा कर चुको तो खड़े, बैठे या लेटे अल्लाह को याद करते रहो। फिर जब तुम्हें इतमीनान हो जाए तो विधिवत रूप से नमाज़ पढ़ो। निस्संदेह ईमानवालों पर समय की पाबन्दी के साथ नमाज़ पढना अनिवार्य है |
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فَإِذَا قَضَيْتُمُ الصَّلاَةَ فَاذْكُرُواْ اللّهَ قِيَامًا وَقُعُودًا وَعَلَى جُنُوبِكُمْ فَإِذَا اطْمَأْنَنتُمْ فَأَقِيمُواْ الصَّلاَةَ إِنَّ الصَّلاَةَ كَانَتْ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ كِتَابًا مَّوْقُوتًا |
104 |
और उन लोगों का पीछा करने में सुस्ती न दिखाओ। यदि तुम्हें दुख पहुँचता है; तो उन्हें भी दुख पहुँचता है, जिस तरह तुमको दुख पहुँचता है। और तुम अल्लाह से उस चीज़ की आशा करते हो, जिस चीज़ की वे आशा नहीं करते। अल्लाह तो सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है |
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وَلاَ تَهِنُواْ فِي ابْتِغَاء الْقَوْمِ إِن تَكُونُواْ تَأْلَمُونَ فَإِنَّهُمْ يَأْلَمُونَ كَمَا تَأْلَمونَ وَتَرْجُونَ مِنَ اللّهِ مَا لاَ يَرْجُونَ وَكَانَ اللّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا |
105 |
निस्संदेह हमने यह किताब हक़ के साथ उतारी है, ताकि अल्लाह ने जो कुछ तुम्हें दिखाया है उसके अनुसार लोगों के बीच फ़ैसला करो। और तुम विश्वासघाती लोगों को ओर से झगड़नेवाले न बनो |
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إِنَّا أَنزَلْنَا إِلَيْكَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ لِتَحْكُمَ بَيْنَ النَّاسِ بِمَا أَرَاكَ اللّهُ وَلاَ تَكُن لِّلْخَآئِنِينَ خَصِيمًا |
106 |
अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना करो। निस्संदेह अल्लाह बहुत क्षमाशील, दयावान है |
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وَاسْتَغْفِرِ اللّهِ إِنَّ اللّهَ كَانَ غَفُورًا رَّحِيمًا |
107 |
और तुम उन लोगों की ओर से न झगड़ो जो स्वयं अपनों के साथ विश्वासघात करते है। अल्लाह को ऐसा व्यक्ति प्रिय नहीं है जो विश्वासघाती, हक़ मारनेवाला हो |
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وَلاَ تُجَادِلْ عَنِ الَّذِينَ يَخْتَانُونَ أَنفُسَهُمْ إِنَّ اللّهَ لاَ يُحِبُّ مَن كَانَ خَوَّانًا أَثِيمًا |
108 |
वे लोगों से तो छिपते है, परन्तु अल्लाह से नहीं छिपते। वह तो (उस समय भी) उनके साथ होता है, जब वे रातों में उस बात की गुप्त-मंत्रणा करते है जो उनकी इच्छा के विरुद्ध होती है। जो कुछ वे करते है, वह अल्लाह (के ज्ञान) से आच्छदित है |
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يَسْتَخْفُونَ مِنَ النَّاسِ وَلاَ يَسْتَخْفُونَ مِنَ اللّهِ وَهُوَ مَعَهُمْ إِذْ يُبَيِّتُونَ مَا لاَ يَرْضَى مِنَ الْقَوْلِ وَكَانَ اللّهُ بِمَا يَعْمَلُونَ مُحِيطًا |
109 |
हाँ, ये तुम ही हो, जिन्होंने सांसारिक जीवन में उनको ओर से झगड़ लिया, परन्तु क़ियामत के दिन उनकी ओर से अल्लाह से कौन झगड़ेगा या कौन उनका वकील होगा? |
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هَاأَنتُمْ هَـؤُلاء جَادَلْتُمْ عَنْهُمْ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا فَمَن يُجَادِلُ اللّهَ عَنْهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ أَم مَّن يَكُونُ عَلَيْهِمْ وَكِيلاً |
110 |
और जो कोई बुरा कर्म कर बैठे या अपने-आप पर अत्याचार करे, फिर अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना करे, तो अल्लाह को बड़ा क्षमाशील, दयावान पाएगा |
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وَمَن يَعْمَلْ سُوءًا أَوْ يَظْلِمْ نَفْسَهُ ثُمَّ يَسْتَغْفِرِ اللّهَ يَجِدِ اللّهَ غَفُورًا رَّحِيمًا |
111 |
और जो व्यक्ति गुनाह कमाए, तो वह अपने ही लिए कमाता है। अल्लाह तो सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है |
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وَمَن يَكْسِبْ إِثْمًا فَإِنَّمَا يَكْسِبُهُ عَلَى نَفْسِهِ وَكَانَ اللّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا |
112 |
और जो व्यक्ति कोई ग़लती या गुनाह की कमाई करे, फिर उसे किसी निर्दोष पर थोप दे, तो उसने एक बड़े लांछन और खुले गुनाह का बोझ अपने ऊपर ले लिया |
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وَمَن يَكْسِبْ خَطِيئَةً أَوْ إِثْمًا ثُمَّ يَرْمِ بِهِ بَرِيئًا فَقَدِ احْتَمَلَ بُهْتَانًا وَإِثْمًا مُّبِينًا |
113 |
यदि तुमपर अल्लाह का उदार अनुग्रह और उसकी दयालुता न होती तो उनमें से कुछ लोग तो यह निश्चय कर ही चुके थे कि तुम्हें राह से भटका दें, हालाँकि वे अपने आप ही को पथभ्रष्टि कर रहे है, और तुम्हें वे कोई हानि नहीं पहुँचा सकते। अल्लाह ने तुमपर किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) उतारी है और उसने तुम्हें वह कुछ सिखाया है जो तुम जानते न थे। अल्लाह का तुमपर बहुत बड़ा अनुग्रह है |
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وَلَوْلاَ فَضْلُ اللّهِ عَلَيْكَ وَرَحْمَتُهُ لَهَمَّت طَّآئِفَةٌ مُّنْهُمْ أَن يُضِلُّوكَ وَمَا يُضِلُّونَ إِلاُّ أَنفُسَهُمْ وَمَا يَضُرُّونَكَ مِن شَيْءٍ وَأَنزَلَ اللّهُ عَلَيْكَ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَعَلَّمَكَ مَا لَمْ تَكُنْ تَعْلَمُ وَكَانَ فَضْلُ اللّهِ عَلَيْكَ عَظِيمًا |
114 |
उनकी अधिकतर काना-फूसियों में कोई भलाई नहीं होती। हाँ, जो व्यक्ति सदक़ा देने या भलाई करने या लोगों के बीच सुधार के लिए कुछ कहे, तो उसकी बात और है। और जो कोई यह काम अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए करेगा, उसे हम निश्चय ही बड़ा प्रतिदान प्रदान करेंगे |
/content/ayah/audio/hudhaify/004114.mp3
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لاَّ خَيْرَ فِي كَثِيرٍ مِّن نَّجْوَاهُمْ إِلاَّ مَنْ أَمَرَ بِصَدَقَةٍ أَوْ مَعْرُوفٍ أَوْ إِصْلاَحٍ بَيْنَ النَّاسِ وَمَن يَفْعَلْ ذَلِكَ ابْتَغَاء مَرْضَاتِ اللّهِ فَسَوْفَ نُؤْتِيهِ أَجْرًا عَظِيمًا |
115 |
और जो क्यक्ति, इसके पश्चात भी मार्गदर्शन खुलकर उसके सामने आ गया है, रसूल का विरोध करेगा और ईमानवालों के मार्ग के अतिरिक्त किसी और मार्ग पर चलेगा तो उसे हम उसी पर चलने देंगे, जिसको उसने अपनाया होगा और उसे जहन्नम में झोंक देंगे, और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है |
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وَمَن يُشَاقِقِ الرَّسُولَ مِن بَعْدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُ الْهُدَى وَيَتَّبِعْ غَيْرَ سَبِيلِ الْمُؤْمِنِينَ نُوَلِّهِ مَا تَوَلَّى وَنُصْلِهِ جَهَنَّمَ وَسَاءتْ
مَصِيرًا |
116 |
निस्संदेह अल्लाह इस चीज़ को क्षमा नहीं करेगा कि उसके साथ किसी को शामिल किया जाए। हाँ, इससे नीचे दर्जे के अपराध को, जिसके लिए चाहेगा, क्षमा कर देगा। जो अल्लाह के साथ किसी को साझी ठहराता है, तो वह भटककर बहुत दूर जा पड़ा |
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إِنَّ اللّهَ لاَ يَغْفِرُ أَن يُشْرَكَ بِهِ وَيَغْفِرُ مَا دُونَ ذَلِكَ لِمَن يَشَاء وَمَن يُشْرِكْ بِاللّهِ فَقَدْ ضَلَّ ضَلاَلاً بَعِيدًا |
117 |
वे अल्लाह से हटकर बस कुछ देवियों को पुकारते है। और वे तो बस सरकश शैतान को पुकारते है; |
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إِن يَدْعُونَ مِن دُونِهِ إِلاَّ إِنَاثًا وَإِن يَدْعُونَ إِلاَّ شَيْطَانًا مَّرِيدًا |
118 |
जिसपर अल्लाह की फिटकार है। उसने कहा था, "मैं तेरे बन्दों में से एख निश्चित हिस्सा लेकर रहूँगा |
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لَّعَنَهُ اللّهُ وَقَالَ لَأَتَّخِذَنَّ مِنْ عِبَادِكَ نَصِيبًا مَّفْرُوضًا |
119 |
"और उन्हें अवश्य ही भटकाऊँगा और उन्हें कामनाओं में उलझाऊँगा, और उन्हें हुक्म दूँगा तो वे चौपायों के कान फाड़ेगे, और उन्हें मैं सुझाव दूँगा तो वे अल्लाह की संरचना में परिवर्तन करेंगे।" और जिसने अल्लाह से हटकर शैतान को अपना संरक्षक और मित्र बनाया, वह खुले घाटे में पड़ गया |
/content/ayah/audio/hudhaify/004119.mp3
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وَلأُضِلَّنَّهُمْ وَلأُمَنِّيَنَّهُمْ وَلآمُرَنَّهُمْ فَلَيُبَتِّكُنَّ آذَانَ الأَنْعَامِ وَلآمُرَنَّهُمْ فَلَيُغَيِّرُنَّ خَلْقَ اللّهِ وَمَن يَتَّخِذِ الشَّيْطَانَ وَلِيًّا مِّن دُونِ اللّهِ فَقَدْ خَسِرَ خُسْرَانًا مُّبِينًا |
120 |
वह उनसे वादा करता है और उन्हें कामनाओं में उलझाए रखता है, हालाँकि शैतान उनसे जो कुछ वादा करता है वह एक धोके के सिवा कुछ भी नहीं होता |
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يَعِدُهُمْ وَيُمَنِّيهِمْ وَمَا يَعِدُهُمُ الشَّيْطَانُ إِلاَّ غُرُورًا |
121 |
वही लोग है जिनका ठिकाना जहन्नम है और वे उससे अलग होने की कोई जगह न पाएँगे |
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أُوْلَـئِكَ مَأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ وَلاَ يَجِدُونَ عَنْهَا مَحِيصًا |
122 |
रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, उन्हें हम जल्द ही ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेंगे, जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी, जहाँ वे सदैव रहेंगे। अल्लाह का वादा सच्चा है, और अल्लाह से बढ़कर बात का सच्चा कौन हो सकता है? |
/content/ayah/audio/hudhaify/004122.mp3
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وَالَّذِينَ آمَنُواْ وَعَمِلُواْ الصَّالِحَاتِ سَنُدْخِلُهُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا وَعْدَ اللّهِ حَقًّا وَمَنْ أَصْدَقُ مِنَ اللّهِ قِيلاً |
123 |
बात न तुम्हारी कामनाओं की है और न किताबवालों की कामनाओं की। जो भी बुराई करेगा उसे उसका फल मिलेगा और वह अल्लाह से हटकर न तो कोई मित्र पाएगा और न ही सहायक |
/content/ayah/audio/hudhaify/004123.mp3
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لَّيْسَ بِأَمَانِيِّكُمْ وَلا أَمَانِيِّ أَهْلِ الْكِتَابِ مَن يَعْمَلْ سُوءًا يُجْزَ بِهِ وَلاَ يَجِدْ لَهُ مِن دُونِ اللّهِ وَلِيًّا وَلاَ نَصِيرًا |
124 |
किन्तु जो अच्छे कर्म करेगा, चाहे पुरुष हो या स्त्री, यदि वह ईमानवाला है तो ऐसे लोग जन्नत में दाख़िल होंगे। और उनका हक़ रत्ती भर भी मारा नहीं जाएगा |
/content/ayah/audio/hudhaify/004124.mp3
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وَمَن يَعْمَلْ مِنَ الصَّالِحَاتَ مِن ذَكَرٍ أَوْ أُنثَى وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَأُوْلَـئِكَ يَدْخُلُونَ الْجَنَّةَ وَلاَ يُظْلَمُونَ نَقِيرًا |
125 |
और दीन (धर्म) की स्पष्ट से उस व्यक्ति से अच्छा कौन हो सकता है, जिसने अपने आपको अल्लाह के आगे झुका दिया और इबराहीम के तरीक़े का अनुसरण करे, जो सबसे कटकर एक का हो गया था? अल्लाह ने इबराहीम को अपना घनिष्ठ मित्र बनाया था |
/content/ayah/audio/hudhaify/004125.mp3
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وَمَنْ أَحْسَنُ دِينًا مِّمَّنْ أَسْلَمَ وَجْهَهُ لله وَهُوَ مُحْسِنٌ واتَّبَعَ مِلَّةَ إِبْرَاهِيمَ حَنِيفًا وَاتَّخَذَ اللّهُ إِبْرَاهِيمَ خَلِيلاً |
126 |
जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है, वह अल्लाह ही का है और अल्लाह हर चीज़ को घेरे हुए है |
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وَللّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأَرْضِ وَكَانَ اللّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ مُّحِيطًا |
127 |
लोग तुमसे स्त्रियों के विषय में पूछते है, कहो, "अल्लाह तुम्हें उनके विषय में हुक्म देता है और जो आयतें तुमको इस किताब में पढ़कर सुनाई जाती है, वे उन स्त्रियों के, अनाथों के विषय में भी है, जिनके हक़ तुम अदा नहीं करते। और चाहते हो कि तुम उनके साथ विवाह कर लो और कमज़ोर यतीम बच्चों के बारे में भी यही आदेश है। और इस विषय में भी कि तुम अनाथों के विषय में इनसाफ़ पर क़ायम रहो। जो भलाई भी तुम करोगे तो निश्चय ही, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता होगा।" |
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وَيَسْتَفْتُونَكَ فِي النِّسَاء قُلِ اللّهُ يُفْتِيكُمْ فِيهِنَّ وَمَا يُتْلَى عَلَيْكُمْ فِي الْكِتَابِ فِي يَتَامَى النِّسَاء الَّلاتِي لاَ تُؤْتُونَهُنَّ مَا كُتِبَ لَهُنَّ وَتَرْغَبُونَ أَن تَنكِحُوهُنَّ وَالْمُسْتَضْعَفِينَ مِنَ الْوِلْدَانِ وَأَن تَقُومُواْ لِلْيَتَامَى بِالْقِسْطِ وَمَا تَفْعَلُواْ مِنْ خَيْرٍ فَإِنَّ اللّهَ كَانَ بِهِ عَلِيمًا |
128 |
यदि किसी स्त्री को अपने पति की और से दुर्व्यवहार या बेरुख़ी का भय हो, तो इसमें उनके लिए कोई दोष नहीं कि वे दोनों आपस में मेल-मिलाप की कोई राह निकाल ले। और मेल-मिलाव अच्छी चीज़ है। और मन तो लोभ एवं कृपणता के लिए उद्यत रहता है। परन्तु यदि तुम अच्छा व्यवहार करो और (अल्लाह का) भय रखो, तो अल्लाह को निश्चय ही जो कुछ तुम करोगे उसकी खबर रहेगी |
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وَإِنِ امْرَأَةٌ خَافَتْ مِن بَعْلِهَا نُشُوزًا أَوْ إِعْرَاضًا فَلاَ جُنَاْحَ عَلَيْهِمَا أَن يُصْلِحَا بَيْنَهُمَا صُلْحًا وَالصُّلْحُ خَيْرٌ وَأُحْضِرَتِ الأَنفُسُ الشُّحَّ وَإِن تُحْسِنُواْ وَتَتَّقُواْ فَإِنَّ اللّهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًا |
129 |
और चाहे तुम कितना ही चाहो, तुममें इसकी सामर्थ्य नहीं हो सकती कि औरतों के बीच पूर्ण रूप से न्याय कर सको। तो ऐसा भी न करो कि किसी से पूर्णरूप से फिर जाओ, जिसके परिणामस्वरूप वह ऐसी हो जाए, जैसे उसका पति खो गया हो। परन्तु यदि तुम अपना व्यवहार ठीक रखो और (अल्लाह से) डरते रहो, तो निस्संदेह अल्लाह भी बड़ा क्षमाशील, दयावान है |
/content/ayah/audio/hudhaify/004129.mp3
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وَلَن تَسْتَطِيعُواْ أَن تَعْدِلُواْ بَيْنَ النِّسَاء وَلَوْ حَرَصْتُمْ فَلاَ تَمِيلُواْ كُلَّ الْمَيْلِ فَتَذَرُوهَا كَالْمُعَلَّقَةِ وَإِن تُصْلِحُواْ وَتَتَّقُواْ فَإِنَّ اللّهَ كَانَ غَفُورًا رَّحِيمًا |
130 |
और यदि दोनों अलग ही हो जाएँ तो अल्लाह अपनी समाई से एक को दूसरे से बेपररवाह कर देगा। अल्लाह बड़ी समाईवाला, तत्वदर्शी है |
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وَإِن يَتَفَرَّقَا يُغْنِ اللّهُ كُلاًّ مِّن سَعَتِهِ وَكَانَ اللّهُ وَاسِعًا حَكِيمًا |
131 |
आकाशों और धरती में जो कुछ है, सब अल्लाह ही का है। तुमसे पहले जिन्हें किताब दी गई थी, उन्हें और तुम्हें भी हमने ताकीद की है कि "अल्लाह का डर रखो।" यदि तुम इनकार करते हो, तो इससे क्या होने का? आकाशों और धरती में जो कुछ है, सब अल्लाह ही का रहेगा। अल्लाह तो निस्पृह, प्रशंसनीय है |
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وَللّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأَرْضِ وَلَقَدْ وَصَّيْنَا الَّذِينَ أُوتُواْ الْكِتَابَ مِن قَبْلِكُمْ وَإِيَّاكُمْ أَنِ اتَّقُواْ اللّهَ وَإِن تَكْفُرُواْ فَإِنَّ لِلّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأَرْضِ وَكَانَ اللّهُ غَنِيًّا حَمِيدًا |
132 |
हाँ, आकाशों और धरती में जो कुछ है, अल्लाह ही का है और अल्लाह कार्यसाधक की हैसियत से काफ़ी है |
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وَلِلّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأَرْضِ وَكَفَى بِاللّهِ وَكِيلاً |
133 |
ऐ लोगों! यदि वह चाहे तो तुम्हें हटा दे और तुम्हारी जगह दूसरों को ले आए। अल्लाह को इसकी पूरी सामर्थ्य है |
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إِن يَشَأْ يُذْهِبْكُمْ أَيُّهَا النَّاسُ وَيَأْتِ بِآخَرِينَ وَكَانَ اللّهُ عَلَى ذَلِكَ قَدِيرًا |
134 |
जो कोई दुनिया का बदला चाहता है, तो अल्लाह के पास दुनिया का बदला भी है और आख़िरत का भी। अल्लाह सब कुछ सुनता, देखता है |
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مَّن كَانَ يُرِيدُ ثَوَابَ الدُّنْيَا فَعِندَ اللّهِ ثَوَابُ الدُّنْيَا وَالآخِرَةِ وَكَانَ اللّهُ سَمِيعًا بَصِيرًا |
135 |
ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह के लिए गवाही देते हुए इनसाफ़ पर मज़बूती के साथ जमे रहो, चाहे वह स्वयं तुम्हारे अपने या माँ-बाप और नातेदारों के विरुद्ध ही क्यों न हो। कोई धनवान हो या निर्धन (जिसके विरुद्ध तुम्हें गवाही देनी पड़े) अल्लाह को उनसे (तुमसे कहीं बढ़कर) निकटता का सम्बन्ध है, तो तुम अपनी इच्छा के अनुपालन में न्याय से न हटो, क्योंकि यदि तुम हेर-फेर करोगे या कतराओगे, तो जो कुछ तुम करते हो अल्लाह को उसकी ख़बर रहेगी |
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يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ كُونُواْ قَوَّامِينَ بِالْقِسْطِ شُهَدَاء لِلّهِ وَلَوْ عَلَى أَنفُسِكُمْ أَوِ الْوَالِدَيْنِ وَالأَقْرَبِينَ إِن يَكُنْ غَنِيًّا
أَوْ فَقَيرًا فَاللّهُ أَوْلَى بِهِمَا فَلاَ تَتَّبِعُواْ الْهَوَى أَن تَعْدِلُواْ وَإِن تَلْوُواْ أَوْ تُعْرِضُواْ فَإِنَّ اللّهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًا |
136 |
ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह पर ईमान लाओ और उसके रसूल पर और उस किताब पर जो उसने अपने रसूल पर उतारी है और उस किताब पर भी, जिसको वह इसके पहले उतार चुका है। और जिस किसी ने भी अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों और अन्तिम दिन का इनकार किया, तो वह भटककर बहुत दूर जा पड़ा |
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يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ آمِنُواْ بِاللّهِ وَرَسُولِهِ وَالْكِتَابِ الَّذِي نَزَّلَ عَلَى رَسُولِهِ وَالْكِتَابِ الَّذِيَ أَنزَلَ مِن قَبْلُ وَمَن يَكْفُرْ بِاللّهِ وَمَلاَئِكَتِهِ وَكُتُبِهِ وَرُسُلِهِ وَالْيَوْمِ الآخِرِ فَقَدْ ضَلَّ ضَلاَلاً بَعِيدًا |
137 |
रहे वे लोग जो ईमान लाए, फिर इनकार किया; फिर ईमान लाए, फिर इनकार किया; फिर इनकार की दशा में बढते चले गए तो अल्लाह उन्हें कदापि क्षमा नहीं करेगा और न उन्हें राह दिखाएगा |
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إِنَّ الَّذِينَ آمَنُواْ ثُمَّ كَفَرُواْ ثُمَّ آمَنُواْ ثُمَّ كَفَرُواْ ثُمَّ ازْدَادُواْ كُفْرًا لَّمْ يَكُنِ اللّهُ لِيَغْفِرَ لَهُمْ وَلاَ لِيَهْدِيَهُمْ سَبِيلاً |
138 |
मुनाफ़िको (कपटाचारियों) को मंगल-सूचना दे दो कि उनके लिए दुखद यातना है; |
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بَشِّرِ الْمُنَافِقِينَ بِأَنَّ لَهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا |
139 |
जो ईमानवालों को छोड़कर इनकार करनेवालों को अपना मित्र बनाते है। क्या उन्हें उनके पास प्रतिष्ठा की तलाश है? प्रतिष्ठा तो सारी की सारी अल्लाह ही के लिए है |
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الَّذِينَ يَتَّخِذُونَ الْكَافِرِينَ أَوْلِيَاء مِن دُونِ الْمُؤْمِنِينَ أَيَبْتَغُونَ عِندَهُمُ الْعِزَّةَ فَإِنَّ العِزَّةَ لِلّهِ جَمِيعًا |
140 |
वह 'किताब' में तुमपर यह हुक्म उतार चुका है कि जब तुम सुनो कि अल्लाह की आयतों का इनकार किया जा रहा है और उसका उपहास किया जा रहा है, तो जब तब वे किसी दूसरी बात में न लगा जाएँ, उनके साथ न बैठो, अन्यथा तुम भी उन्हीं के जैसे होगे; निश्चय ही अल्लाह कपटाचारियों और इनकार करनेवालों - सबको जहन्नम में एकत्र करनेवाला है |
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وَقَدْ نَزَّلَ عَلَيْكُمْ فِي الْكِتَابِ أَنْ إِذَا سَمِعْتُمْ آيَاتِ اللّهِ يُكَفَرُ بِهَا وَيُسْتَهْزَأُ بِهَا فَلاَ تَقْعُدُواْ مَعَهُمْ حَتَّى يَخُوضُواْ فِي حَدِيثٍ غَيْرِهِ إِنَّكُمْ إِذًا مِّثْلُهُمْ إِنَّ اللّهَ جَامِعُ الْمُنَافِقِينَ وَالْكَافِرِينَ فِي جَهَنَّمَ جَمِيعًا |
141 |
जो तुम्हारे मामले में प्रतीक्षा करते है, यदि अल्लाह की ओर से तुम्हारी विजय़ हुई तो कहते है, "क्या हम तुम्हार साथ न थे?" और यदि विधर्मियों के हाथ कुछ लगा तो कहते है, "क्या हमने तुम्हें घेर नहीं लिया था और ईमानवालों से बचाया नहीं?" अतः अल्लाह क़ियामत के दिन तुम्हारे बीच फ़ैसला कर देगा, और अल्लाह विधर्मियों को ईमानवालों के मुक़ाबले में कोई राह नहीं देगा |
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الَّذِينَ يَتَرَبَّصُونَ بِكُمْ فَإِن كَانَ لَكُمْ فَتْحٌ مِّنَ اللّهِ قَالُواْ أَلَمْ نَكُن مَّعَكُمْ وَإِن كَانَ لِلْكَافِرِينَ نَصِيبٌ قَالُواْ أَلَمْ نَسْتَحْوِذْ عَلَيْكُمْ وَنَمْنَعْكُم مِّنَ الْمُؤْمِنِينَ فَاللّهُ يَحْكُمُ بَيْنَكُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَلَن يَجْعَلَ اللّهُ لِلْكَافِرِينَ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ سَبِيلاً |
142 |
कपटाचारी अल्लाह के साथ धोखबाज़ी कर रहे है, हालाँकि उसी ने उन्हें धोखे में डाल रखा है। जब वे नमाज़ के लिए खड़े होते है तो कसमसाते हुए, लोगों को दिखाने के लिए खड़े होते है। और अल्लाह को थोड़े ही याद करते है |
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إِنَّ الْمُنَافِقِينَ يُخَادِعُونَ اللّهَ وَهُوَ خَادِعُهُمْ وَإِذَا قَامُواْ إِلَى الصَّلاَةِ قَامُواْ كُسَالَى يُرَآؤُونَ النَّاسَ وَلاَ يَذْكُرُونَ اللّهَ إِلاَّ قَلِيلاً |
143 |
इसी के बीच डाँवाडोल हो रहे है, न इन (ईमानवालों) की तरफ़ के है, न इन (इनकार करनेवालों) की तरफ़ के। जिसे अल्लाह भटका दे, उसके लिए तो तुम कोई राह नहीं पा सकते |
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مُّذَبْذَبِينَ بَيْنَ ذَلِكَ لاَ إِلَى هَـؤُلاء وَلاَ إِلَى هَـؤُلاء وَمَن يُضْلِلِ اللّهُ فَلَن تَجِدَ لَهُ سَبِيلاً |
144 |
ऐ ईमान लानेवालो! ईमानवालों से हटकर इनकार करनेवालों को अपना मित्र न बनाओ। क्या तुम चाहते हो कि अल्लाह का स्पष्टा तर्क अपने विरुद्ध जुटाओ? |
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يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تَتَّخِذُواْ الْكَافِرِينَ أَوْلِيَاء مِن دُونِ الْمُؤْمِنِينَ أَتُرِيدُونَ أَن تَجْعَلُواْ لِلّهِ عَلَيْكُمْ سُلْطَانًا مُّبِينًا |
145 |
निस्संदेह कपटाचारी आग (जहन्नम) के सबसे निचले खंड में होंगे, और तुम कदापि उनका कोई सहायक न पाओगे |
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إِنَّ الْمُنَافِقِينَ فِي الدَّرْكِ الأَسْفَلِ مِنَ النَّارِ وَلَن تَجِدَ لَهُمْ نَصِيرًا |
146 |
उन लोगों की बात और है जिन्होंने तौबा कर ली और अपने को सुधार लिया और अल्लाह को मज़बूती से पकड़ लिया और अपने दीन (धर्म) में अल्लाह ही के हो रहे। ऐसे लोग ईमानवालों के साथ है और अल्लाह ईमानवालों को शीघ्र ही बड़ा प्रतिदान प्रदान करेगा |
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إِلاَّ الَّذِينَ تَابُواْ وَأَصْلَحُواْ وَاعْتَصَمُواْ بِاللّهِ وَأَخْلَصُواْ دِينَهُمْ لِلّهِ فَأُوْلَـئِكَ مَعَ الْمُؤْمِنِينَ وَسَوْفَ يُؤْتِ اللّهُ الْمُؤْمِنِينَ أَجْرًا عَظِيمًا |
147 |
अल्लाह को तुम्हें यातना देकर क्या करना है, यदि तुम कृतज्ञता दिखलाओ और ईमान लाओ? अल्लाह गुणग्राहक, सब कुछ जाननेवाला है |
/content/ayah/audio/hudhaify/004147.mp3
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مَّا يَفْعَلُ اللّهُ بِعَذَابِكُمْ إِن شَكَرْتُمْ وَآمَنتُمْ وَكَانَ اللّهُ شَاكِرًا عَلِيمًا |
148 |
अल्लाह बुरी बात खुल्लम-खुल्ला कहने को पसन्द नहीं करता, मगर उसकी बात और है जिसपर ज़ुल्म किया गया हो। अल्लाह सब कुछ सुनता, जानता है |
/content/ayah/audio/hudhaify/004148.mp3
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لاَّ يُحِبُّ اللّهُ الْجَهْرَ بِالسُّوَءِ مِنَ الْقَوْلِ إِلاَّ مَن ظُلِمَ وَكَانَ اللّهُ سَمِيعًا عَلِيمًا |
149 |
यदि तुम खुले रूप में नेकी और भलाई करो या उसे छिपाओ या किसी बुराई को क्षमा कर दो, तो अल्लाह भी क्षमा करनेवाला, सामर्थ्यवान है |
/content/ayah/audio/hudhaify/004149.mp3
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إِن تُبْدُواْ خَيْرًا أَوْ تُخْفُوهُ أَوْ تَعْفُواْ عَن سُوَءٍ فَإِنَّ اللّهَ كَانَ عَفُوًّا قَدِيرًا |
150 |
जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों का इनकार करते है और चाहते है कि अल्लाह और उसके रसूलों के बीच विच्छेद करें, और कहते है कि "हम कुछ को मानते है और कुछ को नहीं मानते" और इस तरह वे चाहते है कि बीच की कोई राह अपनाएँ; |
/content/ayah/audio/hudhaify/004150.mp3
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إِنَّ الَّذِينَ يَكْفُرُونَ بِاللّهِ وَرُسُلِهِ وَيُرِيدُونَ أَن يُفَرِّقُواْ بَيْنَ اللّهِ وَرُسُلِهِ وَيقُولُونَ نُؤْمِنُ بِبَعْضٍ وَنَكْفُرُ بِبَعْضٍ وَيُرِيدُونَ أَن يَتَّخِذُواْ بَيْنَ ذَلِكَ سَبِيلاً |
151 |
वही लोग पक्के इनकार करनेवाले है और हमने इनकार करनेवालों के लिए अपमानजनक यातना तैयार कर रखी है |
/content/ayah/audio/hudhaify/004151.mp3
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أُوْلَـئِكَ هُمُ الْكَافِرُونَ حَقًّا وَأَعْتَدْنَا لِلْكَافِرِينَ عَذَابًا مُّهِينًا |
152 |
रहे वे लोग जो अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान रखते है और उनमें से किसी को उस सम्बन्ध में पृथक नहीं करते जो उनके बीच पाया जाता है, ऐसे लोगों को अल्लाह शीघ्र ही उनके प्रतिदान प्रदान करेगा। अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है |
/content/ayah/audio/hudhaify/004152.mp3
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وَالَّذِينَ آمَنُواْ بِاللّهِ وَرُسُلِهِ وَلَمْ يُفَرِّقُواْ بَيْنَ أَحَدٍ مِّنْهُمْ أُوْلَـئِكَ سَوْفَ يُؤْتِيهِمْ أُجُورَهُمْ وَكَانَ اللّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا |
153 |
किताबवालों की तुमसे माँग है कि तुम उनपर आकाश से कोई किताब उतार लाओ, तो वे तो मूसा से इससे भी बड़ी माँग कर चुके है। उन्होंने कहा था, "हमें अल्लाह को प्रत्यक्ष दिखा दो," तो उनके इस अपराध पर बिजली की कड़क ने उन्हें आ दबोचा। फिर वे बछड़े को अपना उपास्य बना बैठे, हालाँकि उनके पास खुली-खुली निशानियाँ आ चुकी थी। फिर हमने उसे भी क्षमा कर दिया और मूसा का स्पष्टा बल एवं प्रभाव प्रदान किया |
/content/ayah/audio/hudhaify/004153.mp3
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يَسْأَلُكَ أَهْلُ الْكِتَابِ أَن تُنَزِّلَ عَلَيْهِمْ كِتَابًا مِّنَ السَّمَاء فَقَدْ سَأَلُواْ مُوسَى أَكْبَرَ مِن ذَلِكَ فَقَالُواْ أَرِنَا اللّهِ جَهْرَةً فَأَخَذَتْهُمُ الصَّاعِقَةُ بِظُلْمِهِمْ ثُمَّ اتَّخَذُواْ الْعِجْلَ مِن بَعْدِ مَا جَاءتْهُمُ الْبَيِّنَاتُ فَعَفَوْنَا عَن ذَلِكَ وَآتَيْنَا مُوسَى سُلْطَانًا مُّبِينًا |
154 |
और उन लोगों से वचन लेने के साथ (तूर) पहाड़ को उनपर उठा दिया और उनसे कहा, "दरवाज़े में सजदा करते हुए प्रवेश करो।" और उनसे कहा, "सब्त (सामूहिक इबादत का दिन) के विषय में ज़्यादती न करना।" और हमने उनसे बहुत-ही दृढ़ वचन लिया था |
/content/ayah/audio/hudhaify/004154.mp3
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وَرَفَعْنَا فَوْقَهُمُ الطُّورَ بِمِيثَاقِهِمْ وَقُلْنَا لَهُمُ ادْخُلُواْ الْبَابَ سُجَّدًا وَقُلْنَا لَهُمْ لاَ تَعْدُواْ فِي السَّبْتِ وَأَخَذْنَا مِنْهُم مِّيثَاقًا غَلِيظًا |
155 |
फिर उनके अपने वचन भंग करने और अल्लाह की आयतों का इनकार करने के कारण और नबियों को नाहक़ क़त्ल करने और उनके यह कहने के कारण कि "हमारे हृदय आवरणों में सुरक्षित है" - नहीं, बल्कि वास्तव में उनके इनकार के कारण अल्लाह ने उनके दिलों पर ठप्पा लगा दिया है। तो ये ईमान थोड़े ही लाते है |
/content/ayah/audio/hudhaify/004155.mp3
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فَبِمَا نَقْضِهِم مِّيثَاقَهُمْ وَكُفْرِهِم بَآيَاتِ اللّهِ وَقَتْلِهِمُ الأَنْبِيَاء بِغَيْرِ حَقًّ وَقَوْلِهِمْ قُلُوبُنَا غُلْفٌ بَلْ طَبَعَ اللّهُ عَلَيْهَا بِكُفْرِهِمْ فَلاَ يُؤْمِنُونَ إِلاَّ قَلِيلاً |
156 |
और उनके इनकार के कारण और मरयम के ख़िलाफ ऐसी बात करने पर जो एक बड़ा लांछन था - |
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وَبِكُفْرِهِمْ وَقَوْلِهِمْ عَلَى مَرْيَمَ بُهْتَانًا عَظِيمًا |
157 |
और उनके इस कथन के कारण कि हमने मरयम के बेटे ईसा मसीह, अल्लाह के रसूल, को क़त्ल कर डाला - हालाँकि न तो इन्होंने उसे क़त्ल किया और न उसे सूली पर चढाया, बल्कि मामला उनके लिए संदिग्ध हो गया। और जो लोग इसमें विभेद कर रहे है, निश्चय ही वे इस मामले में सन्देह में थे। अटकल पर चलने के अतिरिक्त उनके पास कोई ज्ञान न था। निश्चय ही उन्होंने उसे (ईसा को) क़त्ल नहीं किया, |
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وَقَوْلِهِمْ إِنَّا قَتَلْنَا الْمَسِيحَ عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ رَسُولَ اللّهِ وَمَا قَتَلُوهُ وَمَا صَلَبُوهُ وَلَـكِن شُبِّهَ لَهُمْ وَإِنَّ الَّذِينَ اخْتَلَفُواْ فِيهِ لَفِي شَكٍّ مِّنْهُ مَا لَهُم بِهِ مِنْ عِلْمٍ إِلاَّ اتِّبَاعَ الظَّنِّ وَمَا قَتَلُوهُ يَقِينًا |
158 |
बल्कि उसे अल्लाह ने अपनी ओर उठा लिया। और अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है |
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بَل رَّفَعَهُ اللّهُ إِلَيْهِ وَكَانَ اللّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا |
159 |
किताबवालों में से कोई ऐसा न होगा, जो उसकी मृत्यु से पहले उसपर ईमान न ले आए। वह क़ियामत के दिन उनपर गवाह होगा |
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وَإِن مِّنْ أَهْلِ الْكِتَابِ إِلاَّ لَيُؤْمِنَنَّ بِهِ قَبْلَ مَوْتِهِ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ يَكُونُ عَلَيْهِمْ شَهِيدًا |
160 |
सारांश यह कि यहूदियों के अत्याचार के कारण हमने बहुत-सी अच्छी पाक चीज़े उनपर हराम कर दी, जो उनके लिए हलाल थी और उनके प्रायः अल्लाह के मार्ग से रोकने के कारण; |
/content/ayah/audio/hudhaify/004160.mp3
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فَبِظُلْمٍ مِّنَ الَّذِينَ هَادُواْ حَرَّمْنَا عَلَيْهِمْ طَيِّبَاتٍ أُحِلَّتْ لَهُمْ وَبِصَدِّهِمْ عَن سَبِيلِ اللّهِ كَثِيراً |
161 |
और उनके ब्याज लेने के कारण, जबकि उन्हें इससे रोका गया था। और उनके अवैध रूप से लोगों के माल खाने के कारण ऐसा किया गया और हमने उनमें से जिन लोगों ने इनकार किया उनके लिए दुखद यातना तैयार कर रखी है |
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وَأَخْذِهِمُ الرِّبَا وَقَدْ نُهُواْ عَنْهُ وَأَكْلِهِمْ أَمْوَالَ النَّاسِ بِالْبَاطِلِ وَأَعْتَدْنَا لِلْكَافِرِينَ مِنْهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا |
162 |
परन्तु उनमें से जो लोग ज्ञान में पक्के है और ईमानवाले हैं, वे उस पर ईमान रखते है जो तुम्हारी ओर उतारा गया है और जो तुमसे पहले उतारा गया था, और जो विशेष रूप से नमाज़ क़ायम करते है, ज़कात देते और अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखते है। यही लोग है जिन्हें हम शीघ्र ही बड़ी प्रतिदान प्रदान करेंगे |
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لَّـكِنِ الرَّاسِخُونَ فِي الْعِلْمِ مِنْهُمْ وَالْمُؤْمِنُونَ يُؤْمِنُونَ بِمَا أُنزِلَ إِلَيكَ وَمَا أُنزِلَ مِن قَبْلِكَ وَالْمُقِيمِينَ الصَّلاَةَ وَالْمُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَالْمُؤْمِنُونَ بِاللّهِ وَالْيَوْمِ الآخِرِ أُوْلَـئِكَ سَنُؤْتِيهِمْ أَجْرًا عَظِيمًا |
163 |
हमने तुम्हारी ओर उसी प्रकार वह्यड की है जिस प्रकार नूह और उसके बाद के नबियों की ओर वह्यु की। और हमने इबराहीम, इसमाईल, इसहाक़ और याक़ूब और उसकी सन्तान और ईसा और अय्यूब और यूनुस और हारून और सुलैमान की ओर भी वह्यक की। और हमने दाउद को ज़बूर प्रदान किया |
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إِنَّا أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ كَمَا أَوْحَيْنَا إِلَى نُوحٍ وَالنَّبِيِّينَ مِن بَعْدِهِ وَأَوْحَيْنَا إِلَى إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ
وَالأَسْبَاطِ وَعِيسَى وَأَيُّوبَ وَيُونُسَ وَهَارُونَ وَسُلَيْمَانَ وَآتَيْنَا دَاوُودَ زَبُورًا |
164 |
और कितने ही रसूल हुए जिनका वृतान्त पहले हम तुमसे बयान कर चुके है और कितने ही ऐसे रसूल हुए जिनका वृतान्त हमने तुमसे बयान नहीं किया। और मूसा से अल्लाह ने बातचीत की, जिस प्रकार बातचीत की जाती है |
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وَرُسُلاً قَدْ قَصَصْنَاهُمْ عَلَيْكَ مِن قَبْلُ وَرُسُلاً لَّمْ نَقْصُصْهُمْ عَلَيْكَ وَكَلَّمَ اللّهُ مُوسَى تَكْلِيمًا |
165 |
रसूल शुभ समाचार देनेवाले और सचेत करनेवाले बनाकर भेजे गए है, ताकि रसूलों के पश्चात लोगों के पास अल्लाह के मुक़ाबले में (अपने निर्दोष होने का) कोई तर्क न रहे। अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है |
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رُّسُلاً مُّبَشِّرِينَ وَمُنذِرِينَ لِئَلاَّ يَكُونَ لِلنَّاسِ عَلَى اللّهِ حُجَّةٌ بَعْدَ الرُّسُلِ وَكَانَ اللّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا |
166 |
परन्तु अल्लाह गवाही देता है कि उसके द्वारा जो उसने तुम्हारी ओर उतारा है कि उसे उसने अपने ज्ञान के साथ उतारा है और फ़रिश्ते भी गवाही देते है, यद्यपि अल्लाह का गवाह होना ही काफ़ी है |
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لَّـكِنِ اللّهُ يَشْهَدُ بِمَا أَنزَلَ إِلَيْكَ أَنزَلَهُ بِعِلْمِهِ وَالْمَلآئِكَةُ يَشْهَدُونَ وَكَفَى بِاللّهِ شَهِيدًا |
167 |
निश्चय ही, जिन लोगों ने इनकार किया और अल्लाह के मार्ग से रोका, वे भटककर बहुत दूर जा पड़े |
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إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ وَصَدُّواْ عَن سَبِيلِ اللّهِ قَدْ ضَلُّواْ ضَلاَلاً بَعِيدًا |
168 |
जिन लोगों ने इनकार किया और ज़ुल्म पर उतर आए, उन्हें अल्लाह कदापि क्षमा नहीं करेगा और न उन्हें कोई मार्ग दिखाएगा |
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إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ وَظَلَمُواْ لَمْ يَكُنِ اللّهُ لِيَغْفِرَ لَهُمْ وَلاَ لِيَهْدِيَهُمْ طَرِيقاً |
169 |
सिवाय जहन्नम के मार्ग के, जिसमें वे सदैव पड़े रहेंगे। और यह अल्लाह के लिए बहुत-ही सहज बात है |
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إِلاَّ طَرِيقَ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا وَكَانَ ذَلِكَ عَلَى اللّهِ يَسِيرًا |
170 |
ऐ लोगों! रसूल तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से सत्य लेकर आ गया है। अतः तुम उस भलाई को मानो जो तुम्हारे लिए जुटाई गई। और यदि तुम इनकार करते हो तो आकाशों और धरती में जो कुछ है, वह अल्लाह ही का है। और अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है |
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يَا أَيُّهَا النَّاسُ قَدْ جَاءكُمُ الرَّسُولُ بِالْحَقِّ مِن رَّبِّكُمْ فَآمِنُواْ خَيْرًا لَّكُمْ وَإِن تَكْفُرُواْ فَإِنَّ لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَكَانَ اللّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا |
171 |
ऐ किताबवालों! अपने धर्म में हद से आगे न बढ़ो और अल्लाह से जोड़कर सत्य के अतिरिक्त कोई बात न कहो। मरयम का बेटा मसीह-ईसा इसके अतिरिक्त कुछ नहीं कि अल्लाह का रसूल है और उसका एक 'कलिमा' है, जिसे उसने मरमय की ओर भेजा था। और उसकी ओर से एक रूह है। तो तुम अल्लाह पर और उसके रसूलों पर ईमान लाओ और "तीन" न कहो - बाज़ आ जाओ! यह तुम्हारे लिए अच्छा है - अल्लाह तो केवल अकेला पूज्य है। यह उसकी महानता के प्रतिकूल है कि उसका कोई बेटा हो। आकाशों और धरती में जो कुछ है, उसी का है। और अल्लाह कार्यसाधक की हैसियत से काफ़ी है |
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يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لاَ تَغْلُواْ فِي دِينِكُمْ وَلاَ تَقُولُواْ عَلَى اللّهِ إِلاَّ الْحَقِّ إِنَّمَا الْمَسِيحُ عِيسَى ابْنُ مَرْيَمَ رَسُولُ اللّهِ وَكَلِمَتُهُ أَلْقَاهَا إِلَى مَرْيَمَ وَرُوحٌ مِّنْهُ فَآمِنُواْ بِاللّهِ وَرُسُلِهِ وَلاَ تَقُولُواْ ثَلاَثَةٌ انتَهُواْ خَيْرًا لَّكُمْ إِنَّمَا اللّهُ إِلَـهٌ وَاحِدٌ سُبْحَانَهُ أَن يَكُونَ لَهُ وَلَدٌ لَّهُ مَا فِي السَّمَاوَات وَمَا فِي الأَرْضِ وَكَفَى بِاللّهِ وَكِيلاً |
172 |
मसीह ने कदापि अपने लिए बुरा नहीं समझा कि वह अल्लाह का बन्दा हो और न निकटवर्ती फ़रिश्तों ने ही (इसे बुरा समझा) । और जो कोई अल्लाह की बन्दगी को अपने लिए बुरा समझेगा और घमंड करेगा, तो वह (अल्लाह) उन सभी लोगों को अपने पास इकट्ठा करके रहेगा |
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لَّن يَسْتَنكِفَ الْمَسِيحُ أَن يَكُونَ عَبْداً لِّلّهِ وَلاَ الْمَلآئِكَةُ الْمُقَرَّبُونَ وَمَن يَسْتَنكِفْ عَنْ عِبَادَتِهِ وَيَسْتَكْبِرْ فَسَيَحْشُرُهُمْ إِلَيهِ جَمِيعًا |
173 |
अतः जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, जो अल्लाह उन्हें उनका पूरा-पूरा बदला देगा और अपने उदार अनुग्रह से उन्हें और अधिक प्रदान करेगा। और जिन लोगों ने बन्दगी को बुरा समझा और घमंड किया, तो उन्हें वह दुखद यातना देगा। और वे अल्लाह से बच सकने के लिए न अपना कोई निकट का समर्थक पाएँगे और न ही कोई सहायक |
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فَأَمَّا الَّذِينَ آمَنُواْ وَعَمِلُواْ الصَّالِحَاتِ فَيُوَفِّيهِمْ أُجُورَهُمْ وَيَزيدُهُم مِّن فَضْلِهِ وَأَمَّا الَّذِينَ اسْتَنكَفُواْ وَاسْتَكْبَرُواْ فَيُعَذِّبُهُمْ عَذَابًا أَلُيمًا وَلاَ يَجِدُونَ لَهُم مِّن دُونِ اللّهِ وَلِيًّا وَلاَ نَصِيرًا |
174 |
ऐ लोगों! तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से खुला प्रमाण आ चुका है और हमने तुम्हारी ओर एक स्पष्ट प्रकाश उतारा है |
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يَا أَيُّهَا النَّاسُ قَدْ جَاءكُم بُرْهَانٌ مِّن رَّبِّكُمْ وَأَنزَلْنَا إِلَيْكُمْ نُورًا مُّبِينًا |
175 |
तो रहे वे लोग जो अल्लाह पर ईमान लाए और उसे मज़बूती के साथ पकड़े रहे, उन्हें तो शीघ्र ही अपनी दयालुता और अपने उदार अनुग्रह के क्षेत्र में दाख़िल करेगा और उन्हें अपनी ओर का सीधा मार्ग दिया देगा |
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فَأَمَّا الَّذِينَ آمَنُواْ بِاللّهِ وَاعْتَصَمُواْ بِهِ فَسَيُدْخِلُهُمْ فِي رَحْمَةٍ مِّنْهُ وَفَضْلٍ وَيَهْدِيهِمْ إِلَيْهِ صِرَاطًا مُّسْتَقِيمًا |
176 |
वे तुमसे आदेश मालूम करना चाहते है। कह दो, "अल्लाह तुम्हें ऐसे व्यक्ति के विषय में, जिसका कोई वारिस न हो, आदेश देता है - यदि किसी पुरुष की मृत्यु हो जाए जिसकी कोई सन्तान न हो, परन्तु उसकी एक बहन हो, तो जो कुछ उसने छोड़ा है उसका आधा हिस्सा उस बहन का होगा। और भाई बहन का वारिस होगा, यदि उस (बहन) की कोई सन्तान न हो। और यदि (वारिस) दो बहनें हो, तो जो कुछ उसने छोड़ा है, उसमें से उनके लिए दो-तिहाई होगा। और यदि कई भाई-बहन (वारिस) हो तो एक पुरुष को हिस्सा दो स्त्रियों के बराबर होगा।" अल्लाह तुम्हारे लिए आदेशों को स्पष्ट करता है, ताकि तुम न भटको। और अल्लाह को हर चीज का पूरा ज्ञान है |
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يَسْتَفْتُونَكَ قُلِ اللّهُ يُفْتِيكُمْ فِي الْكَلاَلَةِ إِنِ امْرُؤٌ هَلَكَ لَيْسَ لَهُ وَلَدٌ وَلَهُ أُخْتٌ فَلَهَا نِصْفُ مَا تَرَكَ وَهُوَ يَرِثُهَا
إِن لَّمْ يَكُن لَّهَا وَلَدٌ فَإِن كَانَتَا اثْنَتَيْنِ فَلَهُمَا الثُّلُثَانِ مِمَّا تَرَكَ وَإِن كَانُواْ إِخْوَةً رِّجَالاً وَنِسَاء فَلِلذَّكَرِ مِثْلُ حَظِّ الأُنثَيَيْنِ يُبَيِّنُ اللّهُ لَكُمْ أَن تَضِلُّواْ وَاللّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ |