Al-Maidah

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Hindi: Muhammad Farooq Khan and Muhammad Ahmed

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# Translation Ayah
1 ऐ ईमान लानेवालो! प्रतिबन्धों (प्रतिज्ञाओं, समझौतों आदि) का पूर्ण रूप से पालन करो। तुम्हारे लिए चौपायों की जाति के जानवर हलाल हैं सिवाय उनके जो तुम्हें बताए जा रहें हैं; लेकिन जब तुम इहराम की दशा में हो तो शिकार को हलाल न समझना। निस्संदेह अल्लाह जो चाहते है, आदेश देता है يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ أَوْفُواْ بِالْعُقُودِ أُحِلَّتْ لَكُم بَهِيمَةُ الأَنْعَامِ إِلاَّ مَا يُتْلَى عَلَيْكُمْ غَيْرَ مُحِلِّي الصَّيْدِ وَأَنتُمْ حُرُمٌ إِنَّ اللّهَ يَحْكُمُ مَا يُرِيد
2 ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह की निशानियों का अनादर न करो; न आदर के महीनों का, न क़ुरबानी के जानवरों का और न जानवरों का जिनका गरदनों में पट्टे पड़े हो और न उन लोगों का जो अपने रब के अनुग्रह और उसकी प्रसन्नता की चाह में प्रतिष्ठित गृह (काबा) को जाते हो। और जब इहराम की दशा से बाहर हो जाओ तो शिकार करो। और ऐसा न हो कि एक गिरोह की शत्रुता, जिसने तुम्हारे लिए प्रतिष्ठित घर का रास्ता बन्द कर दिया था, तुम्हें इस बात पर उभार दे कि तुम ज़्यादती करने लगो। हक़ अदा करने और ईश-भय के काम में तुम एक-दूसरे का सहयोग करो और हक़ मारने और ज़्यादती के काम में एक-दूसरे का सहयोग न करो। अल्लाह का डर रखो; निश्चय ही अल्लाह बड़ा कठोर दंड देनेवाला है يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تُحِلُّواْ شَعَآئِرَ اللّهِ وَلاَ الشَّهْرَ الْحَرَامَ وَلاَ الْهَدْيَ وَلاَ الْقَلآئِدَ وَلا آمِّينَ الْبَيْتَ الْحَرَامَ يَبْتَغُونَ فَضْلاً مِّن رَّبِّهِمْ وَرِضْوَانًا وَإِذَا حَلَلْتُمْ فَاصْطَادُواْ وَلاَ يَجْرِمَنَّكُمْ شَنَآنُ قَوْمٍ أَن صَدُّوكُمْ عَنِ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ أَن تَعْتَدُواْ وَتَعَاوَنُواْ عَلَى الْبرِّ وَالتَّقْوَى وَلاَ تَعَاوَنُواْ عَلَى الإِثْمِ وَالْعُدْوَانِ وَاتَّقُواْ اللّهَ إِنَّ اللّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ
3 तुम्हारे लिए हराम हुआ मुर्दार रक्त, सूअर का मांस और वह जानवर जिसपर अल्लाह के अतिरिक्त किसी और का नाम लिया गया हो और वह जो घुटकर या चोट खाकर या ऊँचाई से गिरकर या सींग लगने से मरा हो या जिसे किसी हिंसक पशु ने फाड़ खाया हो - सिवाय उसके जिसे तुमने ज़बह कर लिया हो - और वह किसी थान पर ज़बह कियी गया हो। और यह भी (तुम्हारे लिए हराम हैं) कि तीरो के द्वारा किस्मत मालूम करो। यह आज्ञा का उल्लंघन है - आज इनकार करनेवाले तुम्हारे धर्म की ओर से निराश हो चुके हैं तो तुम उनसे न डरो, बल्कि मुझसे डरो। आज मैंने तुम्हारे धर्म को पूर्ण कर दिया और तुमपर अपनी नेमत पूरी कर दी और मैंने तुम्हारे धर्म के रूप में इस्लाम को पसन्द किया - तो जो कोई भूख से विवश हो जाए, परन्तु गुनाह की ओर उसका झुकाव न हो, तो निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है حُرِّمَتْ عَلَيْكُمُ الْمَيْتَةُ وَالْدَّمُ وَلَحْمُ الْخِنْزِيرِ وَمَا أُهِلَّ لِغَيْرِ اللّهِ بِهِ وَالْمُنْخَنِقَةُ وَالْمَوْقُوذَةُ وَالْمُتَرَدِّيَةُ وَالنَّطِيحَةُ وَمَا أَكَلَ السَّبُعُ إِلاَّ مَا ذَكَّيْتُمْ وَمَا ذُبِحَ عَلَى النُّصُبِ وَأَن تَسْتَقْسِمُواْ بِالأَزْلاَمِ ذَلِكُمْ فِسْقٌ الْيَوْمَ يَئِسَ الَّذِينَ كَفَرُواْ مِن دِينِكُمْ فَلاَ تَخْشَوْهُمْ وَاخْشَوْنِ الْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُمْ دِينَكُمْ وَأَتْمَمْتُ عَلَيْكُمْ نِعْمَتِي وَرَضِيتُ لَكُمُ الإِسْلاَمَ دِينًا فَمَنِ اضْطُرَّ فِي مَخْمَصَةٍ غَيْرَ مُتَجَانِفٍ لِّإِثْمٍ فَإِنَّ اللّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
4 वे तुमसे पूछते है कि "उनके लिए क्या हलाल है?" कह दो, "तुम्हारे लिए सारी अच्छी स्वच्छ चीज़ें हलाल है और जिन शिकारी जानवरों को तुमने सधे हुए शिकारी जानवर के रूप में सधा रखा हो - जिनको जैस अल्लाह ने तुम्हें सिखाया हैं, सिखाते हो - वे जिस शिकार को तुम्हारे लिए पकड़े रखे, उसको खाओ और उसपर अल्लाह का नाम लो। और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह जल्द हिसाब लेनेवाला है।" يَسْأَلُونَكَ مَاذَا أُحِلَّ لَهُمْ قُلْ أُحِلَّ لَكُمُ الطَّيِّبَاتُ وَمَا عَلَّمْتُم مِّنَ الْجَوَارِحِ مُكَلِّبِينَ تُعَلِّمُونَهُنَّ مِمَّا عَلَّمَكُمُ اللّهُ فَكُلُواْ مِمَّا أَمْسَكْنَ عَلَيْكُمْ وَاذْكُرُواْ اسْمَ اللّهِ عَلَيْهِ وَاتَّقُواْ اللّهَ إِنَّ اللّهَ سَرِيعُ الْحِسَابِ
5 आज तुम्हारे लिए अच्छी स्वच्छ चीज़ें हलाल कर दी गई और जिन्हें किताब दी गई उनका भोजन भी तुम्हारे लिए हलाल है और तुम्हारा भोजन उनके लिए हलाल है और शरीफ़ और स्वतंत्र ईमानवाली स्त्रियाँ भी जो तुमसे पहले के किताबवालों में से हो, जबकि तुम उनका हक़ (मेहर) देकर उन्हें निकाह में लाओ। न तो यह काम स्वछन्द कामतृप्ति के लिए हो और न चोरी-छिपे याराना करने को। और जिस किसी ने ईमान से इनकार किया, उसका सारा किया-धरा अकारथ गया और वह आख़िरत में भी घाटे में रहेगा الْيَوْمَ أُحِلَّ لَكُمُ الطَّيِّبَاتُ وَطَعَامُ الَّذِينَ أُوتُواْ الْكِتَابَ حِلٌّ لَّكُمْ وَطَعَامُكُمْ حِلُّ لَّهُمْ وَالْمُحْصَنَاتُ مِنَ الْمُؤْمِنَاتِ وَالْمُحْصَنَاتُ مِنَ الَّذِينَ أُوتُواْ الْكِتَابَ مِن قَبْلِكُمْ إِذَا آتَيْتُمُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ مُحْصِنِينَ غَيْرَ مُسَافِحِينَ وَلاَ مُتَّخِذِي أَخْدَانٍ وَمَن يَكْفُرْ بِالإِيمَانِ فَقَدْ حَبِطَ عَمَلُهُ وَهُوَ فِي الآخِرَةِ مِنَ الْخَاسِرِينَ
6 ऐ ईमान लेनेवालो! जब तुम नमाज़ के लिए उठो तो अपने चहरों को और हाथों को कुहनियों तक धो लिया करो और अपने सिरों पर हाथ फेर लो और अपने पैरों को भी टखनों तक धो लो। और यदि नापाक हो तो अच्छी तरह पाक हो जाओ। परन्तु यदि बीमार हो या सफ़र में हो या तुममें से कोई शौच करके आया हो या तुमने स्त्रियों को हाथ लगया हो, फिर पानी न मिले तो पाक मिट्टी से काम लो। उसपर हाथ मारकर अपने मुँह और हाथों पर फेर लो। अल्लाह तुम्हें किसी तंगी में नहीं डालना चाहता। अपितु वह चाहता हैं कि तुम्हें पवित्र करे और अपनी नेमत तुमपर पूरी कर दे, ताकि तुम कृतज्ञ बनो يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ إِذَا قُمْتُمْ إِلَى الصَّلاةِ فاغْسِلُواْ وُجُوهَكُمْ وَأَيْدِيَكُمْ إِلَى الْمَرَافِقِ وَامْسَحُواْ بِرُؤُوسِكُمْ وَأَرْجُلَكُمْ إِلَى الْكَعْبَينِ وَإِن كُنتُمْ جُنُبًا فَاطَّهَّرُواْ وَإِن كُنتُم مَّرْضَى أَوْ عَلَى سَفَرٍ أَوْ جَاء أَحَدٌ مَّنكُم مِّنَ الْغَائِطِ أَوْ لاَمَسْتُمُ النِّسَاء فَلَمْ تَجِدُواْ مَاء فَتَيَمَّمُواْ صَعِيدًا طَيِّبًا فَامْسَحُواْ بِوُجُوهِكُمْ وَأَيْدِيكُم مِّنْهُ مَا يُرِيدُ اللّهُ لِيَجْعَلَ عَلَيْكُم مِّنْ حَرَجٍ وَلَـكِن يُرِيدُ لِيُطَهَّرَكُمْ وَلِيُتِمَّ نِعْمَتَهُ عَلَيْكُمْ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
7 और अल्लाह के उस अनुग्रह को याद करो जो उसने तुमपर किया हैं और उस प्रतिज्ञा को भी जो उसने तुमसे की है, जबकि तुमने कहा था - "हमने सुना और माना।" अल्लाह जो कुछ सीनों (दिलों) में है, उसे भी जानता हैं وَاذْكُرُواْ نِعْمَةَ اللّهِ عَلَيْكُمْ وَمِيثَاقَهُ الَّذِي وَاثَقَكُم بِهِ إِذْ قُلْتُمْ سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا وَاتَّقُواْ اللّهَ إِنَّ اللّهَ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ
8 ऐ ईमान लेनेवालो! अल्लाह के लिए खूब उठनेवाले, इनसाफ़ की निगरानी करनेवाले बनो और ऐसा न हो कि किसी गिरोह की शत्रुता तुम्हें इस बात पर उभार दे कि तुम इनसाफ़ करना छोड़ दो। इनसाफ़ करो, यही धर्मपरायणता से अधिक निकट है। अल्लाह का डर रखो, निश्चय ही जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह को उसकी ख़बर हैं يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ كُونُواْ قَوَّامِينَ لِلّهِ شُهَدَاء بِالْقِسْطِ وَلاَ يَجْرِمَنَّكُمْ شَنَآنُ قَوْمٍ عَلَى أَلاَّ تَعْدِلُواْ اعْدِلُواْ هُوَ أَقْرَبُ لِلتَّقْوَى وَاتَّقُواْ اللّهَ إِنَّ اللّهَ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُون
9 जो लोग ईमान लाए और उन्होंन अच्छे कर्म किए उनसे अल्लाह का वादा है कि उनके लिए क्षमा और बड़ा प्रतिदान है وَعَدَ اللّهُ الَّذِينَ آمَنُواْ وَعَمِلُواْ الصَّالِحَاتِ لَهُم مَّغْفِرَةٌ وَأَجْرٌ عَظِيمٌ
10 रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वही भड़कती आग में पड़नेवाले है وَالَّذِينَ كَفَرُواْ وَكَذَّبُواْ بِآيَاتِنَا أُوْلَـئِكَ أَصْحَابُ الْجَحِيم
11 ऐ ईमान लेनेवालो! अल्लाह के उस अनुग्रह को याद करो जो उसने तुमपर किया है, जबकि कुछ लोगों ने तुम्हारी ओर हाथ बढ़ाने का निश्चय कर लिया था तो उसने उनके हाथ तुमसे रोक दिए। अल्लाह का डर रखो, और ईमानवालों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اذْكُرُواْ نِعْمَتَ اللّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ هَمَّ قَوْمٌ أَن يَبْسُطُواْ إِلَيْكُمْ أَيْدِيَهُمْ فَكَفَّ أَيْدِيَهُمْ عَنكُمْ وَاتَّقُواْ اللّهَ وَعَلَى اللّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُونَ
12 अल्लाह ने इसराईल की सन्तान से वचन लिया था और हमने उनमें से बारह सरदार नियुक्त किए थे। और अल्लाह ने कहा, "मैं तुम्हारे साथ हूँ, यदि तुमने नमाज़ क़ायम रखी, ज़कात देते रहे, मेरे रसूलों पर ईमान लाए और उनकी सहायता की और अल्लाह को अच्छा ऋण दिया तो मैं अवश्य तुम्हारी बुराइयाँ तुमसे दूर कर दूँगा और तुम्हें निश्चय ही ऐसे बाग़ों में दाख़िल करूँगा, जिनके नीचे नहरें बह रही होगी। फिर इसके पश्चात तुमनें से जिनसे इनकार किया, तो वास्तव में वह ठीक और सही रास्ते से भटक गया।" وَلَقَدْ أَخَذَ اللّهُ مِيثَاقَ بَنِي إِسْرَائِيلَ وَبَعَثْنَا مِنهُمُ اثْنَيْ عَشَرَ نَقِيبًا وَقَالَ اللّهُ إِنِّي مَعَكُمْ لَئِنْ أَقَمْتُمُ الصَّلاَةَ وَآتَيْتُمُ الزَّكَاةَ وَآمَنتُم بِرُسُلِي وَعَزَّرْتُمُوهُمْ وَأَقْرَضْتُمُ اللّهَ قَرْضًا حَسَنًا لَّأُكَفِّرَنَّ عَنكُمْ سَيِّئَاتِكُمْ وَلأُدْخِلَنَّكُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الأَنْهَارُ فَمَن كَفَرَ بَعْدَ ذَلِكَ مِنكُمْ فَقَدْ ضَلَّ سَوَاء السَّبِيلِ
13 फिर उनके बार-बार अपने वचन को भंग कर देने के कारण हमने उनपर लानत की और उनके हृदय कठोर कर दिए। वे शब्दों को उनके स्थान से फेरकर कुछ का कुछ कर देते है और जिनके द्वारा उन्हें याद दिलाया गया था, उसका एक बड़ा भाग वे भुला बैठे। और तुम्हें उनके किसी न किसी विश्वासघात का बराबर पता चलता रहेगा। उनमें ऐसा न करनेवाले थोड़े लोग है, तो तुम उन्हें क्षमा कर दो और उन्हें छोड़ो। निश्चय ही अल्लाह को वे लोग प्रिय है जो उत्तमकर्मी है فَبِمَا نَقْضِهِم مِّيثَاقَهُمْ لَعنَّاهُمْ وَجَعَلْنَا قُلُوبَهُمْ قَاسِيَةً يُحَرِّفُونَ الْكَلِمَ عَن مَّوَاضِعِهِ وَنَسُواْ حَظًّا مِّمَّا ذُكِّرُواْ بِهِ وَلاَ تَزَالُ تَطَّلِعُ عَلَىَ خَآئِنَةٍ مِّنْهُمْ إِلاَّ قَلِيلاً مِّنْهُمُ فَاعْفُ عَنْهُمْ وَاصْفَحْ إِنَّ اللّهَ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ
14 और हमने उन लोगों से भी दृढ़ वचन लिया था, जिन्होंने कहा था कि हम नसारा (ईसाई) हैं, किन्तु जो कुछ उन्हें जिसके द्वारा याद कराया गया था उसका एक बड़ा भाग भुला बैठे। फिर हमने उनके बीच क़ियामत तक के लिए शत्रुता और द्वेष की आग भड़का दी, और अल्लाह जल्द उन्हें बता देगा, जो कुछ वे बनाते रहे थे وَمِنَ الَّذِينَ قَالُواْ إِنَّا نَصَارَى أَخَذْنَا مِيثَاقَهُمْ فَنَسُواْ حَظًّا مِّمَّا ذُكِّرُواْ بِهِ فَأَغْرَيْنَا بَيْنَهُمُ الْعَدَاوَةَ وَالْبَغْضَاء إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ وَسَوْفَ يُنَبِّئُهُمُ اللّهُ بِمَا كَانُواْ يَصْنَعُون
15 ऐ किताबवालों! हमारा रसूल तुम्हारे पास आ गया है। किताब की जो बातें तुम छिपाते थे, उसमें से बहुत-सी बातें वह तुम्हारे सामने खोल रहा है और बहुत-सी बातों को छोड़ देता है। तुम्हारे पास अल्लाह की ओर से प्रकाश और एक स्पष्ट किताब आ गई है, يَا أَهْلَ الْكِتَابِ قَدْ جَاءكُمْ رَسُولُنَا يُبَيِّنُ لَكُمْ كَثِيراً مِّمَّا كُنتُمْ تُخْفُونَ مِنَ الْكِتَابِ وَيَعْفُو عَن كَثِيرٍ قَدْ جَاءكُم مِّنَ اللّهِ نُورٌ وَكِتَابٌ مُّبِين
16 जिसके द्वारा अल्लाह उस व्यक्ति को जो उसकी प्रसन्नता का अनुगामी है, सलामती की राहें दिखा रहा है और अपनी अनुज्ञा से ऐसे लोगों को अँधेरों से निकालकर उजाले की ओर ला रहा है और उन्हें सीधे मार्ग पर चला रहा है يَهْدِي بِهِ اللّهُ مَنِ اتَّبَعَ رِضْوَانَهُ سُبُلَ السَّلاَمِ وَيُخْرِجُهُم مِّنِ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ بِإِذْنِهِ وَيَهْدِيهِمْ إِلَى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ
17 निश्चय ही उन लोगों ने इनकार किया, जिन्होंने कहा, "अल्लाह तो वही मरयम का बेटा मसीह है।" कहो, "अल्लाह के आगे किसका कुछ बस चल सकता है, यदि वह मरयम का पुत्र मसीह को और उसकी माँ (मरयम) को और समस्त धरतीवालो को विनष्ट करना चाहे? और अल्लाह ही के लिए है बादशाही आकाशों और धरती की ओर जो कुछ उनके मध्य है उसकी भी। वह जो चाहता है पैदा करता है। और अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।" لَّقَدْ كَفَرَ الَّذِينَ قَآلُواْ إِنَّ اللّهَ هُوَ الْمَسِيحُ ابْنُ مَرْيَمَ قُلْ فَمَن يَمْلِكُ مِنَ اللّهِ شَيْئًا إِنْ أَرَادَ أَن يُهْلِكَ الْمَسِيحَ ابْنَ مَرْيَمَ وَأُمَّهُ وَمَن فِي الأَرْضِ جَمِيعًا وَلِلّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا يَخْلُقُ مَا يَشَاء وَاللّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
18 यहूदी और ईसाई कहते है, "हम तो अल्लाह के बेटे और उसके चहेते है।" कहो, "फिर वह तुम्हें तुम्हारे गुनाहों पर दंड क्यों देता है? बात यह नहीं है, बल्कि तुम भी उसके पैदा किए हुए प्राणियों में से एक मनुष्य हो। वह जिसे चाहे क्षमा करे और जिसे चाहे दंड दे।" और अल्लाह ही के लिए है बादशाही आकाशों और धरती को और जो कुछ उनके बीच है वह भी, और जाना भी उसी की ओर है وَقَالَتِ الْيَهُودُ وَالنَّصَارَى نَحْنُ أَبْنَاء اللّهِ وَأَحِبَّاؤُهُ قُلْ فَلِمَ يُعَذِّبُكُم بِذُنُوبِكُم بَلْ أَنتُم بَشَرٌ مِّمَّنْ خَلَقَ يَغْفِرُ لِمَن يَشَاء وَيُعَذِّبُ مَن يَشَاء وَلِلّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا وَإِلَيْهِ الْمَصِيرُ
19 ऐ किताबवालो! हमारा रसूल ऐसे समय तुम्हारे पास आया है और तुम्हारे लिए (हमारा आदेश) खोल-खोलकर बयान करता है, जबकि रसूलों के आने का सिलसिला एक मुद्दत से बन्द था, ताकि तुम यह न कह सको कि "हमारे पास कोई शुभ-समाचार देनेवाला और सचेत करनेवाला नहीं आया।" तो देखो! अब तुम्हारे पास शुभ-समाचार देनेवाला और सचेत करनेवाला आ गया है। अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है يَا أَهْلَ الْكِتَابِ قَدْ جَاءكُمْ رَسُولُنَا يُبَيِّنُ لَكُمْ عَلَى فَتْرَةٍ مِّنَ الرُّسُلِ أَن تَقُولُواْ مَا جَاءنَا مِن بَشِيرٍ وَلاَ نَذِيرٍ فَقَدْ جَاءكُم بَشِيرٌ وَنَذِيرٌ وَاللّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
20 और याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम के लोगों से कहा था, "ऐ लोगों! अल्लाह की उस नेमत को याद करो जो उसने तुम्हें प्रदान की है। उसनें तुममें नबी पैदा किए और तुम्हें शासक बनाया और तुमको वह कुछ दिया जो संसार में किसी को नहीं दिया था وَإِذْ قَالَ مُوسَى لِقَوْمِهِ يَا قَوْمِ اذْكُرُواْ نِعْمَةَ اللّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ جَعَلَ فِيكُمْ أَنبِيَاء وَجَعَلَكُم مُّلُوكًا وَآتَاكُم مَّا لَمْ يُؤْتِ أَحَدًا مِّن الْعَالَمِينَ
21 "ऐ मेरे लोगो! इस पवित्र भूमि में प्रवेश करो, जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दी है। और पीछे न हटो, अन्यथा, घाटे में पड़ जाओगे।" يَا قَوْمِ ادْخُلُوا الأَرْضَ المُقَدَّسَةَ الَّتِي كَتَبَ اللّهُ لَكُمْ وَلاَ تَرْتَدُّوا عَلَى أَدْبَارِكُمْ فَتَنقَلِبُوا خَاسِرِينَ
22 उन्होंने कहा, "ऐ मूसा! उसमें तो बड़े शक्तिशाली लोग रहते है। हम तो वहाँ कदापि नहीं जा सकते, जब तक कि वे वहाँ से निकल नहीं जाते। हाँ, यदि वे वहाँ से निकल जाएँ, तो हम अवश्य प्रविष्ट हो जाएँगे।" قَالُوا يَا مُوسَى إِنَّ فِيهَا قَوْمًا جَبَّارِينَ وَإِنَّا لَن نَّدْخُلَهَا حَتَّىَ يَخْرُجُواْ مِنْهَا فَإِن يَخْرُجُواْ مِنْهَا فَإِنَّا دَاخِلُونَ
23 उन डरनेवालों में से ही दो व्यक्ति ऐसे भी थे जिनपर अल्लाह का अनुग्रह था। उन्होंने कहा, "उन लोगों के मुक़ाबले में दरवाज़े से प्रविष्ट हो जाओ। जब तुम उसमें प्रविष्टि हो जाओगे, तो तुम ही प्रभावी होगे। अल्लाह पर भरोसा रखो, यदि तुम ईमानवाले हो।" قَالَ رَجُلاَنِ مِنَ الَّذِينَ يَخَافُونَ أَنْعَمَ اللّهُ عَلَيْهِمَا ادْخُلُواْ عَلَيْهِمُ الْبَابَ فَإِذَا دَخَلْتُمُوهُ فَإِنَّكُمْ غَالِبُونَ وَعَلَى اللّهِ فَتَوَكَّلُواْ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
24 उन्होंने कहा, "ऐ मूसा! जब तक वे लोग वहाँ है, हम तो कदापि नहीं जाएँगे। ऐसा ही है तो जाओ तुम और तुम्हारा रब, और दोनों लड़ो। हम तो यहीं बैठे रहेंगे।" قَالُواْ يَا مُوسَى إِنَّا لَن نَّدْخُلَهَا أَبَدًا مَّا دَامُواْ فِيهَا فَاذْهَبْ أَنتَ وَرَبُّكَ فَقَاتِلا إِنَّا هَاهُنَا قَاعِدُونَ
25 उसने कहा, "मेरे रब! मेरा स्वयं अपने और अपने भाई के अतिरिक्त किसी पर अधिकार नहीं है। अतः तू हमारे और इन अवज्ञाकारी लोगों के बीच अलगाव पैदा कर दे।" قَالَ رَبِّ إِنِّي لا أَمْلِكُ إِلاَّ نَفْسِي وَأَخِي فَافْرُقْ بَيْنَنَا وَبَيْنَ الْقَوْمِ الْفَاسِقِينَ
26 कहा, "अच्छा तो अब यह भूमि चालीस वर्ष कर इनके लिए वर्जित है। ये धरती में मारे-मारे फिरेंगे तो तुम इन अवज्ञाकारी लोगों के प्रति शोक न करो" قَالَ فَإِنَّهَا مُحَرَّمَةٌ عَلَيْهِمْ أَرْبَعِينَ سَنَةً يَتِيهُونَ فِي الأَرْضِ فَلاَ تَأْسَ عَلَى الْقَوْمِ الْفَاسِقِينَ
27 और इन्हें आदम के दो बेटों का सच्चा वृतान्त सुना दो। जब दोनों ने क़ुरबानी की, तो उनमें से एक की क़ुरबानी स्वीकृत हुई और दूसरे की स्वीकृत न हुई। उसने कहा, "मै तुझे अवश्य मार डालूँगा।" दूसरे न कहा, "अल्लाह तो उन्हीं की (क़ुरबानी) स्वीकृत करता है, जो डर रखनेवाले है। وَاتْلُ عَلَيْهِمْ نَبَأَ ابْنَيْ آدَمَ بِالْحَقِّ إِذْ قَرَّبَا قُرْبَانًا فَتُقُبِّلَ مِن أَحَدِهِمَا وَلَمْ يُتَقَبَّلْ مِنَ الآخَرِ قَالَ لَأَقْتُلَنَّكَ قَالَ إِنَّمَا يَتَقَبَّلُ اللّهُ مِنَ الْمُتَّقِينَ
28 "यदि तू मेरी हत्या करने के लिए मेरी ओर हाथ बढ़ाएगा तो मैं तेरी हत्या करने के लिए तेरी ओर अपना हाथ नहीं बढ़ाऊँगा। मैं तो अल्लाह से डरता हूँ, जो सारे संसार का रब है لَئِن بَسَطتَ إِلَيَّ يَدَكَ لِتَقْتُلَنِي مَا أَنَاْ بِبَاسِطٍ يَدِيَ إِلَيْكَ لَأَقْتُلَكَ إِنِّي أَخَافُ اللّهَ رَبَّ الْعَالَمِينَ
29 "मैं तो चाहता हूँ कि मेरा गुनाह और अपना गुनाह तू ही अपने सिर ले ले, फिर आग (जहन्नम) में पड़नेवालों में से एक हो जाए, और वही अत्याचारियों का बदला है।" إِنِّي أُرِيدُ أَن تَبُوءَ بِإِثْمِي وَإِثْمِكَ فَتَكُونَ مِنْ أَصْحَابِ النَّارِ وَذَلِكَ جَزَاء الظَّالِمِينَ
30 अन्ततः उसके जी ने उस अपने भाई की हत्या के लिए उद्यत कर दिया, तो उसने उसकी हत्या कर डाली और घाटे में पड़ गया فَطَوَّعَتْ لَهُ نَفْسُهُ قَتْلَ أَخِيهِ فَقَتَلَهُ فَأَصْبَحَ مِنَ الْخَاسِرِينَ
31 तब अल्लाह ने एक कौआ भेजा जो भूमि कुरेदने लगा, ताकि उसे दिखा दे कि वह अपने भाई के शव को कैसे छिपाए। कहने लगा, "अफ़सोस मुझ पर! क्या मैं इस कौए जैसा भी न हो सका कि अपने भाई का शव छिपा देता?" फिर वह लज्जित हुआ فَبَعَثَ اللّهُ غُرَابًا يَبْحَثُ فِي الأَرْضِ لِيُرِيَهُ كَيْفَ يُوَارِي سَوْءةَ أَخِيهِ قَالَ يَا وَيْلَتَا أَعَجَزْتُ أَنْ أَكُونَ مِثْلَ هَـذَا الْغُرَابِ فَأُوَارِيَ سَوْءةَ أَخِي فَأَصْبَحَ مِنَ النَّادِمِينَ
32 इसी कारण हमने इसराईल का सन्तान के लिए लिख दिया था कि जिसने किसी व्यक्ति को किसी के ख़ून का बदला लेने या धरती में फ़साद फैलाने के अतिरिक्त किसी और कारण से मार डाला तो मानो उसने सारे ही इनसानों की हत्या कर डाली। और जिसने उसे जीवन प्रदान किया, उसने मानो सारे इनसानों को जीवन दान किया। उसने पास हमारे रसूल स्पष्टि प्रमाण ला चुके हैं, फिर भी उनमें बहुत-से लोग धरती में ज़्यादतियाँ करनेवाले ही हैं مِنْ أَجْلِ ذَلِكَ كَتَبْنَا عَلَى بَنِي إِسْرَائِيلَ أَنَّهُ مَن قَتَلَ نَفْسًا بِغَيْرِ نَفْسٍ أَوْ فَسَادٍ فِي الأَرْضِ فَكَأَنَّمَا قَتَلَ النَّاسَ جَمِيعًا وَمَنْ أَحْيَاهَا فَكَأَنَّمَا أَحْيَا النَّاسَو جَمِيعًا وَلَقَدْ جَاءتْهُمْ رُسُلُنَا بِالبَيِّنَاتِ ثُمَّ إِنَّ كَثِيراً مِّنْهُم بَعْدَ ذَلِكَ فِي الأَرْضِ لَمُسْرِفُونَ
33 जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से लड़ते है और धरती के लिए बिगाड़ पैदा करने के लिए दौड़-धूप करते है, उनका बदला तो बस यही है कि बुरी तरह से क़त्ल किए जाए या सूली पर चढ़ाए जाएँ या उनके हाथ-पाँव विपरीत दिशाओं में काट डाले जाएँ या उन्हें देश से निष्कासित कर दिया जाए। यह अपमान और तिरस्कार उनके लिए दुनिया में है और आख़िरत में उनके लिए बड़ी यातना है إِنَّمَا جَزَاء الَّذِينَ يُحَارِبُونَ اللّهَ وَرَسُولَهُ وَيَسْعَوْنَ فِي الأَرْضِ فَسَادًا أَن يُقَتَّلُواْ أَوْ يُصَلَّبُواْ أَوْ تُقَطَّعَ أَيْدِيهِمْ وَأَرْجُلُهُم مِّنْ خِلافٍ أَوْ يُنفَوْاْ مِنَ الأَرْضِ ذَلِكَ لَهُمْ خِزْيٌ فِي الدُّنْيَا وَلَهُمْ فِي الآخِرَةِ عَذَابٌ عَظِيمٌ
34 किन्तु जो लोग, इससे पहले कि तुम्हें उनपर अधिकार प्राप्त हो, पलट आएँ (अर्थात तौबा कर लें) तो ऐसी दशा में तुम्हें मालूम होना चाहिए कि अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है إِلاَّ الَّذِينَ تَابُواْ مِن قَبْلِ أَن تَقْدِرُواْ عَلَيْهِمْ فَاعْلَمُواْ أَنَّ اللّهَ غَفُورٌ رَّحِيم
35 ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह का डर रखो और उसका सामीप्य प्राप्त करो और उसके मार्ग में जी-तोड़ संघर्ष करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اتَّقُواْ اللّهَ وَابْتَغُواْ إِلَيهِ الْوَسِيلَةَ وَجَاهِدُواْ فِي سَبِيلِهِ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ
36 जिन लोगों ने इनकार किया यदि उनके पास वह सब कुछ हो जो सारी धरती में है और उतना ही उसके साथ भी हो कि वह उसे देकर क़ियामत के दिन की यातना से बच जाएँ; तब भी उनकी ओर से यह सब दी जानेवाली वस्तुएँ स्वीकार न की जाएँगी। उनके लिए दुखद यातना ही है إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ لَوْ أَنَّ لَهُم مَّا فِي الأَرْضِ جَمِيعًا وَمِثْلَهُ مَعَهُ لِيَفْتَدُواْ بِهِ مِنْ عَذَابِ يَوْمِ الْقِيَامَةِ مَا تُقُبِّلَ مِنْهُمْ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
37 वे चाहेंगे कि आग (जहन्नम) से निकल जाएँ, परन्तु वे उससे न निकल सकेंगे। उनके लिए चिरस्थायी यातना है يُرِيدُونَ أَن يَخْرُجُواْ مِنَ النَّارِ وَمَا هُم بِخَارِجِينَ مِنْهَا وَلَهُمْ عَذَابٌ مُّقِيمٌ
38 और चोर चाहे स्त्री हो या पुरुष दोनों के हाथ काट दो। यह उनकी कमाई का बदला है और अल्लाह की ओर से शिक्षाप्रद दंड। अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है وَالسَّارِقُ وَالسَّارِقَةُ فَاقْطَعُواْ أَيْدِيَهُمَا جَزَاء بِمَا كَسَبَا نَكَالاً مِّنَ اللّهِ وَاللّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ
39 फिर जो व्यक्ति अत्याचार करने के बाद पलट आए और अपने को सुधार ले, तो निश्चय ही वह अल्लाह की कृपा का पात्र होगा। निस्संदेह, अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है فَمَن تَابَ مِن بَعْدِ ظُلْمِهِ وَأَصْلَحَ فَإِنَّ اللّهَ يَتُوبُ عَلَيْهِ إِنَّ اللّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
40 क्या तुम नहीं जानते कि अल्लाह ही आकाशों और धरती के राज्य का अधिकारी है? वह जिसे चाहे यातना दे और जिसे चाहे क्षमा कर दे। अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है أَلَمْ تَعْلَمْ أَنَّ اللّهَ لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ يُعَذِّبُ مَن يَشَاء وَيَغْفِرُ لِمَن يَشَاء وَاللّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
41 ऐ रसूल! जो लोग अधर्म के मार्ग में दौड़ते है, उनके कारण तुम दुखी न होना; वे जिन्होंने अपने मुँह से कहा कि "हम ईमान ले आए," किन्तु उनके दिल ईमान नहीं लाए; और वे जो यहूदी हैं, वे झूठ के लिए कान लगाते हैं और उन दूसरे लोगों की भली-भाँति सुनते है, जो तुम्हारे पास नहीं आए, शब्दों को उनका स्थान निश्चित होने के बाद भी उनके स्थान से हटा देते है। कहते है, "यदि तुम्हें यह (आदेश) मिले, तो इसे स्वीकार करना और यदि न मिले तो बचना।" जिसे अल्लाह ही आपदा में डालना चाहे उसके लिए अल्लाह के यहाँ तुम्हारी कुछ भी नहीं चल सकती। ये वही लोग है जिनके दिलों को अल्लाह ने स्वच्छ करना नहीं चाहा। उनके लिए संसार में भी अपमान और तिरस्कार है और आख़िरत में भी बड़ी यातना है يَا أَيُّهَا الرَّسُولُ لاَ يَحْزُنكَ الَّذِينَ يُسَارِعُونَ فِي الْكُفْرِ مِنَ الَّذِينَ قَالُواْ آمَنَّا بِأَفْوَاهِهِمْ وَلَمْ تُؤْمِن قُلُوبُهُمْ وَمِنَ الَّذِينَ هِادُواْ سَمَّاعُونَ لِلْكَذِبِ سَمَّاعُونَ لِقَوْمٍ آخَرِينَ لَمْ يَأْتُوكَ يُحَرِّفُونَ الْكَلِمَ مِن بَعْدِ مَوَاضِعِهِ يَقُولُونَ إِنْ أُوتِيتُمْ هَـذَا فَخُذُوهُ وَإِن لَّمْ تُؤْتَوْهُ فَاحْذَرُواْ وَمَن يُرِدِ اللّهُ فِتْنَتَهُ فَلَن تَمْلِكَ لَهُ مِنَ اللّهِ شَيْئًا أُوْلَـئِكَ الَّذِينَ لَمْ يُرِدِ اللّهُ أَن يُطَهِّرَ قُلُوبَهُمْ لَهُمْ فِي الدُّنْيَا خِزْيٌ وَلَهُمْ فِي الآخِرَةِ عَذَابٌ عَظِيمٌ
42 वे झूठ के लिए कान लगाते रहनेवाले और बड़े हराम खानेवाले है। अतः यदि वे तुम्हारे पास आएँ, तो या तुम उनके बीच फ़ैसला कर दो या उन्हें टाल जाओ। यदि तुम उन्हें टाल गए तो वे तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। परन्तु यदि फ़ैसला करो तो उनके बीच इनसाफ़ के साथ फ़ैसला करो। निश्चय ही अल्लाह इनसाफ़ करनेवालों से प्रेम करता है سَمَّاعُونَ لِلْكَذِبِ أَكَّالُونَ لِلسُّحْتِ فَإِن جَآؤُوكَ فَاحْكُم بَيْنَهُم أَوْ أَعْرِضْ عَنْهُمْ وَإِن تُعْرِضْ عَنْهُمْ فَلَن يَضُرُّوكَ شَيْئًا وَإِنْ حَكَمْتَ فَاحْكُم بَيْنَهُمْ بِالْقِسْطِ إِنَّ اللّهَ يُحِبُّ الْمُقْسِطِينَ
43 वे तुमसे फ़ैसला कराएँगे भी कैसे, जबकि उनके पास तौरात है, जिसमें अल्लाह का हुक्म मौजूद है! फिर इसके पश्चात भी वे मुँह मोड़ते है। वे तो ईमान नहीं रखते وَكَيْفَ يُحَكِّمُونَكَ وَعِندَهُمُ التَّوْرَاةُ فِيهَا حُكْمُ اللّهِ ثُمَّ يَتَوَلَّوْنَ مِن بَعْدِ ذَلِكَ وَمَا أُوْلَـئِكَ بِالْمُؤْمِنِينَ
44 निस्संदेह हमने तौरात उतारी, जिसमें मार्गदर्शन और प्रकाश था। नबी जो आज्ञाकारी थे, उसको यहूदियों के लिए अनिवार्य ठहराते थे कि वे उसका पालन करें और इसी प्रकार अल्लाहवाले और शास्त्रवेत्ता भी। क्योंकि उन्हें अल्लाह की किताब की सुरक्षा का आदेश दिया गया था और वे उसके संरक्षक थे। तो तुम लोगों से न डरो, बल्कि मुझ ही से डरो और मेरी आयतों के बदले थोड़ा मूल्य प्राप्त न करना। जो लोग उस विधान के अनुसार फ़ैसला न करें, जिसे अल्लाह ने उतारा है, तो ऐसे ही लोग विधर्मी है إِنَّا أَنزَلْنَا التَّوْرَاةَ فِيهَا هُدًى وَنُورٌ يَحْكُمُ بِهَا النَّبِيُّونَ الَّذِينَ أَسْلَمُواْ لِلَّذِينَ هَادُواْ وَالرَّبَّانِيُّونَ وَالأَحْبَارُ بِمَا اسْتُحْفِظُواْ مِن كِتَابِ اللّهِ وَكَانُواْ عَلَيْهِ شُهَدَاء فَلاَ تَخْشَوُاْ النَّاسَ وَاخْشَوْنِ وَلاَ تَشْتَرُواْ بِآيَاتِي ثَمَنًا قَلِيلاً وَمَن لَّمْ يَحْكُم بِمَا أَنزَلَ اللّهُ فَأُوْلَـئِكَ هُمُ الْكَافِرُونَ
45 और हमने उस (तौरात) में उनके लिए लिख दिया था कि जान जान के बराबर है, आँख आँख के बराहर है, नाक नाक के बराबर है, कान कान के बराबर, दाँत दाँत के बराबर और सब आघातों के लिए इसी तरह बराबर का बदला है। तो जो कोई उसे क्षमा कर दे तो यह उसके लिए प्रायश्चित होगा और जो लोग उस विधान के अनुसार फ़ैसला न करें, जिसे अल्लाह ने उतारा है जो ऐसे लोग अत्याचारी है وَكَتَبْنَا عَلَيْهِمْ فِيهَا أَنَّ النَّفْسَ بِالنَّفْسِ وَالْعَيْنَ بِالْعَيْنِ وَالأَنفَ بِالأَنفِ وَالأُذُنَ بِالأُذُنِ وَالسِّنَّ بِالسِّنِّ وَالْجُرُوحَ قِصَاصٌ فَمَن تَصَدَّقَ بِهِ فَهُوَ كَفَّارَةٌ لَّهُ وَمَن لَّمْ يَحْكُم بِمَا أنزَلَ اللّهُ فَأُوْلَـئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ
46 और उनके पीछ उन्हीं के पद-चिन्हों पर हमने मरयम के बेटे ईसा को भेजा जो पहले से उसके सामने मौजूद किताब 'तौरात' की पुष्टि करनेवाला था। और हमने उसे इनजील प्रदान की, जिसमें मार्गदर्शन और प्रकाश था। और वह अपनी पूर्ववर्ती किताब तौरात की पुष्टि करनेवाली थी, और वह डर रखनेवालों के लिए मार्गदर्शन और नसीहत थी وَقَفَّيْنَا عَلَى آثَارِهِم بِعَيسَى ابْنِ مَرْيَمَ مُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ التَّوْرَاةِ وَآتَيْنَاهُ الإِنجِيلَ فِيهِ هُدًى وَنُورٌ وَمُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ التَّوْرَاةِ وَهُدًى وَمَوْعِظَةً لِّلْمُتَّقِينَ
47 अतः इनजील वालों को चाहिए कि उस विधान के अनुसार फ़ैसला करें, जो अल्लाह ने उस इनजील में उतारा है। और जो उसके अनुसार फ़ैसला न करें, जो अल्लाह ने उतारा है, तो ऐसे ही लोग उल्लंघनकारी है وَلْيَحْكُمْ أَهْلُ الإِنجِيلِ بِمَا أَنزَلَ اللّهُ فِيهِ وَمَن لَّمْ يَحْكُم بِمَا أَنزَلَ اللّهُ فَأُوْلَـئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَ
48 और हमने तुम्हारी ओर यह किताब हक़ के साथ उतारी है, जो उस किताब की पुष्टि करती है जो उसके पहले से मौजूद है और उसकी संरक्षक है। अतः लोगों के बीच तुम मामलों में वही फ़ैसला करना जो अल्लाह ने उतारा है और जो सत्य तुम्हारे पास आ चुका है उसे छोड़कर उनकी इच्छाओं का पालन न करना। हमने तुममें से प्रत्येक के लिए एक ही घाट (शरीअत) और एक ही मार्ग निश्चित किया है। यदि अल्लाह चाहता तो तुम सबको एक समुदाय बना देता। परन्तु जो कुछ उसने तुम्हें दिया है, उसमें वह तुम्हारी परीक्षा करना चाहता है। अतः भलाई के कामों में एक-दूसरे से आगे बढ़ो। तुम सबको अल्लाह ही की ओर लौटना है। फिर वह तुम्हें बता देगा, जिसमें तुम विभेद करते रहे हो وَأَنزَلْنَا إِلَيْكَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ مُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ الْكِتَابِ وَمُهَيْمِنًا عَلَيْهِ فَاحْكُم بَيْنَهُم بِمَا أَنزَلَ اللّهُ وَلاَ تَتَّبِعْ أَهْوَاءهُمْ عَمَّا جَاءكَ مِنَ الْحَقِّ لِكُلٍّ جَعَلْنَا مِنكُمْ شِرْعَةً وَمِنْهَاجًا وَلَوْ شَاء اللّهُ لَجَعَلَكُمْ أُمَّةً وَاحِدَةً وَلَـكِن لِّيَبْلُوَكُمْ فِي مَا آتَاكُم فَاسْتَبِقُوا الخَيْرَاتِ إِلَى الله مَرْجِعُكُمْ جَمِيعًا فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ فِيهِ تَخْتَلِفُونَ
49 और यह कि तुम उनके बीच वही फ़ैसला करो जो अल्लाह ने उतारा है और उनकी इच्छाओं का पालन न करो और उनसे बचते रहो कि कहीं ऐसा न हो कि वे तुम्हें फ़रेब में डालकर जो कुछ अल्लाह ने तुम्हारी ओर उतारा है उसके किसी भाग से वे तुम्हें हटा दें। फिर यदि वे मुँह मोड़े तो जान लो कि अल्लाह ही उनके गुनाहों के कारण उन्हें संकट में डालना चाहता है। निश्चय ही अधिकांश लोग उल्लंघनकारी है وَأَنِ احْكُم بَيْنَهُم بِمَا أَنزَلَ اللّهُ وَلاَ تَتَّبِعْ أَهْوَاءهُمْ وَاحْذَرْهُمْ أَن يَفْتِنُوكَ عَن بَعْضِ مَا أَنزَلَ اللّهُ إِلَيْكَ فَإِن تَوَلَّوْاْ فَاعْلَمْ أَنَّمَا يُرِيدُ اللّهُ أَن يُصِيبَهُم بِبَعْضِ ذُنُوبِهِمْ وَإِنَّ كَثِيراً مِّنَ النَّاسِ لَفَاسِقُونَ
50 अब क्या वे अज्ञान का फ़ैसला चाहते है? तो विश्वास करनेवाले लोगों के लिए अल्लाह से अच्छा फ़ैसला करनेवाला कौन हो सकता है? أَفَحُكْمَ الْجَاهِلِيَّةِ يَبْغُونَ وَمَنْ أَحْسَنُ مِنَ اللّهِ حُكْمًا لِّقَوْمٍ يُوقِنُونَ
51 ऐ ईमान लानेवालो! तुम यहूदियों और ईसाइयों को अपना मित्र (राज़दार) न बनाओ। वे (तुम्हारे विरुद्ध) परस्पर एक-दूसरे के मित्र है। तुममें से जो कोई उनको अपना मित्र बनाएगा, वह उन्हीं लोगों में से होगा। निस्संदेह अल्लाह अत्याचारियों को मार्ग नहीं दिखाता يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تَتَّخِذُواْ الْيَهُودَ وَالنَّصَارَى أَوْلِيَاء بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاء بَعْضٍ وَمَن يَتَوَلَّهُم مِّنكُمْ فَإِنَّهُ مِنْهُمْ إِنَّ اللّهَ لاَ يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ
52 तो तुम देखते हो कि जिन लोगों के दिलों में रोग है, वे उनके यहाँ जाकर उनके बीच दौड़-धूप कर रहे है। वे कहते है, "हमें भय है कि कहीं हम किसी संकट में न ग्रस्त हो जाएँ।" तो सम्भव है कि जल्द ही अल्लाह (तुम्हे) विजय प्रदान करे या उसकी ओर से कोई और बात प्रकट हो। फिर तो ये लोग जो कुछ अपने जी में छिपाए हुए है, उसपर लज्जित होंगे فَتَرَى الَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٌ يُسَارِعُونَ فِيهِمْ يَقُولُونَ نَخْشَى أَن تُصِيبَنَا دَآئِرَةٌ فَعَسَى اللّهُ أَن يَأْتِيَ بِالْفَتْحِ أَوْ أَمْرٍ مِّنْ عِندِهِ فَيُصْبِحُواْ عَلَى مَا أَسَرُّواْ فِي أَنْفُسِهِمْ نَادِمِينَ
53 उस समय ईमानवाले कहेंगे, "क्या ये वही लोग है जो अल्लाह की कड़ी-कड़ी क़समें खाकर विश्वास दिलाते थे कि हम तुम्हारे साथ है?" इनका किया-धरा सब अकारथ गया और ये घाटे में पड़कर रहे وَيَقُولُ الَّذِينَ آمَنُواْ أَهَـؤُلاء الَّذِينَ أَقْسَمُواْ بِاللّهِ جَهْدَ أَيْمَانِهِمْ إِنَّهُمْ لَمَعَكُمْ حَبِطَتْ أَعْمَالُهُمْ فَأَصْبَحُواْ خَاسِرِينَ
54 ऐ ईमान लानेवालो! तुममें से जो कोई अपने धर्म से फिरेगा तो अल्लाह जल्द ही ऐसे लोगों को लाएगा जिनसे उसे प्रेम होगा और जो उससे प्रेम करेंगे। वे ईमानवालों के प्रति नरम और अविश्वासियों के प्रति कठोर होंगे। अल्लाह की राह में जी-तोड़ कोशिश करेंगे और किसी भर्त्सना करनेवाले की भर्त्सना से न डरेंगे। यह अल्लाह का उदार अनुग्रह है, जिसे चाहता है प्रदान करता है। अल्लाह बड़ी समाईवाला, सर्वज्ञ है يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ مَن يَرْتَدَّ مِنكُمْ عَن دِينِهِ فَسَوْفَ يَأْتِي اللّهُ بِقَوْمٍ يُحِبُّهُمْ وَيُحِبُّونَهُ أَذِلَّةٍ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ أَعِزَّةٍ عَلَى الْكَافِرِينَ يُجَاهِدُونَ فِي سَبِيلِ اللّهِ وَلاَ يَخَافُونَ لَوْمَةَ لآئِمٍ ذَلِكَ فَضْلُ اللّهِ يُؤْتِيهِ مَن يَشَاء وَاللّهُ وَاسِعٌ عَلِيمٌ
55 तुम्हारे मित्र को केवल अल्लाह और उसका रसूल और वे ईमानवाले है; जो विनम्रता के साथ नमाज़ क़ायम करते है और ज़कात देते है إِنَّمَا وَلِيُّكُمُ اللّهُ وَرَسُولُهُ وَالَّذِينَ آمَنُواْ الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلاَةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُمْ رَاكِعُونَ
56 अब जो कोई अल्लाह और उसके रसूल और ईमानवालों को अपना मित्र बनाए, तो निश्चय ही अल्लाह का गिरोह प्रभावी होकर रहेगा وَمَن يَتَوَلَّ اللّهَ وَرَسُولَهُ وَالَّذِينَ آمَنُواْ فَإِنَّ حِزْبَ اللّهِ هُمُ الْغَالِبُونَ
57 ऐ ईमान लानेवालो! तुमसे पहले जिनको किताब दी गई थी, जिन्होंने तुम्हारे धर्म को हँसी-खेल बना लिया है, उन्हें और इनकार करनेवालों को अपना मित्र न बनाओ। और अल्लाह का डर रखों यदि तुम ईमानवाले हो يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تَتَّخِذُواْ الَّذِينَ اتَّخَذُواْ دِينَكُمْ هُزُوًا وَلَعِبًا مِّنَ الَّذِينَ أُوتُواْ الْكِتَابَ مِن قَبْلِكُمْ وَالْكُفَّارَ أَوْلِيَاء وَاتَّقُواْ اللّهَ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
58 जब तुम नमाज़ के लिए पुकारते हो तो वे उसे हँसी और खेल बना लेते है। इसका कारण यह है कि वे बुद्धिहीन लोग है وَإِذَا نَادَيْتُمْ إِلَى الصَّلاَةِ اتَّخَذُوهَا هُزُوًا وَلَعِبًا ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لاَّ يَعْقِلُونَ
59 कहो, "ऐ किताबवालों! क्या इसके सिवा हमारी कोई और बात तुम्हें बुरी लगती है कि हम अल्लाह और उस चीज़ पर ईमान लाए, जो हमारी ओर उतारी गई, और जो पहले उतारी जा चुकी है? और यह कि तुममें से अधिकांश लोग अवज्ञाकारी है।" قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ هَلْ تَنقِمُونَ مِنَّا إِلاَّ أَنْ آمَنَّا بِاللّهِ وَمَا أُنزِلَ إِلَيْنَا وَمَا أُنزِلَ مِن قَبْلُ وَأَنَّ أَكْثَرَكُمْ فَاسِقُونَ
60 कहो, "क्या मैं तुम्हें बताऊँ कि अल्लाह के यहाँ परिणाम की स्पष्ट से इससे भी बुरी नीति क्या है? कौन गिरोह है जिसपर अल्लाह की फिटकार पड़ी और जिसपर अल्लाह का प्रकोप हुआ और जिसमें से उसने बन्दर और सूअर बनाए और जिसने बढ़े हुए फ़सादी (ताग़ूत) की बन्दगी की, वे लोग (तुमसे भी) निकृष्ट दर्जे के थे। और वे (तुमसे भी अधिक) सीधे मार्ग से भटके हुए थे।" قُلْ هَلْ أُنَبِّئُكُم بِشَرٍّ مِّن ذَلِكَ مَثُوبَةً عِندَ اللّهِ مَن لَّعَنَهُ اللّهُ وَغَضِبَ عَلَيْهِ وَجَعَلَ مِنْهُمُ الْقِرَدَةَ وَالْخَنَازِيرَ وَعَبَدَ الطَّاغُوتَ أُوْلَـئِكَ شَرٌّ مَّكَاناً وَأَضَلُّ عَن سَوَاء السَّبِيلِ
61 जब वे (यहूदी) तुम लोगों के पास आते है तो कहते है, "हम ईमान ले आए।" हालाँकि वे इनकार के साथ आए थे और उसी के साथ चले गए। अल्लाह भली-भाँति जानता है जो कुछ वे छिपाते है وَإِذَا جَآؤُوكُمْ قَالُوَاْ آمَنَّا وَقَد دَّخَلُواْ بِالْكُفْرِ وَهُمْ قَدْ خَرَجُواْ بِهِ وَاللّهُ أَعْلَمُ بِمَا كَانُواْ يَكْتُمُونَ
62 तुम देखते हो कि उनमें से बहुतेरे लोग हक़ मारने, ज़्यादती करने और हरामख़ोरी में बड़ी तेज़ी दिखाते है। निश्चय ही बहुत ही बुरा है, जो वे कर रहे है وَتَرَى كَثِيراً مِّنْهُمْ يُسَارِعُونَ فِي الإِثْمِ وَالْعُدْوَانِ وَأَكْلِهِمُ السُّحْتَ لَبِئْسَ مَا كَانُواْ يَعْمَلُونَ
63 उनके सन्त और धर्मज्ञाता उन्हें गुनाह की बात बकने और हराम खाने से क्यों नहीं रोकते? निश्चय ही बहुत बुरा है जो काम वे कर रहे है لَوْلاَ يَنْهَاهُمُ الرَّبَّانِيُّونَ وَالأَحْبَارُ عَن قَوْلِهِمُ الإِثْمَ وَأَكْلِهِمُ السُّحْتَ لَبِئْسَ مَا كَانُواْ يَصْنَعُونَ
64 और यहूदी कहते है, "अल्लाह का हाथ बँध गया है।" उन्हीं के हाथ-बँधे है, और फिटकार है उनपर, उस बकबास के कारण जो वे करते है, बल्कि उसके दोनो हाथ तो खुले हुए है। वह जिस तरह चाहता है, ख़र्च करता है। जो कुछ तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर उतारा गया है, उससे अवश्य ही उनके अधिकतर लोगों की सरकशी और इनकार ही में अभिवृद्धि होगी। और हमने उनके बीच क़ियामत तक के लिए शत्रुता और द्वेष डाल दिया है। वे जब भी युद्ध की आग भड़काते है, अल्लाह उसे बुझा देता है। वे धरती में बिगाड़ फैलाने के लिए प्रयास कर रहे है, हालाँकि अल्लाह बिगाड़ फैलानेवालों को पसन्द नहीं करता وَقَالَتِ الْيَهُودُ يَدُ اللّهِ مَغْلُولَةٌ غُلَّتْ أَيْدِيهِمْ وَلُعِنُواْ بِمَا قَالُواْ بَلْ يَدَاهُ مَبْسُوطَتَانِ يُنفِقُ كَيْفَ يَشَاء وَلَيَزِيدَنَّ كَثِيراً مِّنْهُم مَّا أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ طُغْيَانًا وَكُفْرًا وَأَلْقَيْنَا بَيْنَهُمُ الْعَدَاوَةَ وَالْبَغْضَاء إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ كُلَّمَا أَوْقَدُواْ نَارًا لِّلْحَرْبِ أَطْفَأَهَا اللّهُ وَيَسْعَوْنَ فِي الأَرْضِ فَسَادًا وَاللّهُ لاَ يُحِبُّ الْمُفْسِدِينَ
65 और यदि किताबवाले ईमान लाते और (अल्लाह का) डर रखते तो हम उनकी बुराइयाँ उनसे दूर कर देते और उन्हें नेमत भरी जन्नतों में दाख़िल कर देते وَلَوْ أَنَّ أَهْلَ الْكِتَابِ آمَنُواْ وَاتَّقَوْاْ لَكَفَّرْنَا عَنْهُمْ سَيِّئَاتِهِمْ وَلأدْخَلْنَاهُمْ جَنَّاتِ النَّعِيمِ
66 और यदि वे तौरात और इनजील को और जो कुछ उनके रब की ओर से उनकी ओर उतारा गया है, उसे क़ायम रखते, तो उन्हें अपने ऊपर से भी खाने को मिलता और अपने पाँव के नीचे से भी। उनमें से एक गिरोह सीधे मार्ग पर चलनेवाला भी है, किन्तु उनमें से अधिकतर ऐसे है कि जो भी करते है बुरा होता है وَلَوْ أَنَّهُمْ أَقَامُواْ التَّوْرَاةَ وَالإِنجِيلَ وَمَا أُنزِلَ إِلَيهِم مِّن رَّبِّهِمْ لأكَلُواْ مِن فَوْقِهِمْ وَمِن تَحْتِ أَرْجُلِهِم مِّنْهُمْ أُمَّةٌ مُّقْتَصِدَةٌ وَكَثِيرٌ مِّنْهُمْ سَاء مَا يَعْمَلُونَ
67 ऐ रसूल! तुम्हारे रब की ओर से तुम पर जो कुछ उतारा गया है, उसे पहुँचा दो। यदि ऐसा न किया तो तुमने उसका सन्देश नहीं पहुँचाया। अल्लाह तुम्हें लोगों (की बुराइयों) से बचाएगा। निश्चय ही अल्लाह इनकार करनेवाले लोगों को मार्ग नहीं दिखाता يَا أَيُّهَا الرَّسُولُ بَلِّغْ مَا أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ وَإِن لَّمْ تَفْعَلْ فَمَا بَلَّغْتَ رِسَالَتَهُ وَاللّهُ يَعْصِمُكَ مِنَ النَّاسِ إِنَّ اللّهَ لاَ يَهْدِي الْقَوْمَ الْكَافِرِينَ
68 कह दो, ॅ"ऐ किताबवालो! तुम किसी भी चीज़ पर नहीं हो, जब तक कि तौरात और इनजील को और जो कुछ तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर अवतरित हुआ है, उसे क़ायम न रखो।" किन्तु (ऐ नबी!) तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर जो कुछ अवतरित हुआ है, वह अवश्य ही उनमें से बहुतों की सरकशी और इनकार में अभिवृद्धि करनेवाला है। अतः तुम इनकार करनेवाले लोगों की दशा पर दुखी न होना قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لَسْتُمْ عَلَى شَيْءٍ حَتَّىَ تُقِيمُواْ التَّوْرَاةَ وَالإِنجِيلَ وَمَا أُنزِلَ إِلَيْكُم مِّن رَّبِّكُمْ وَلَيَزِيدَنَّ كَثِيراً مِّنْهُم مَّا أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ طُغْيَانًا وَكُفْرًا فَلاَ تَأْسَ عَلَى الْقَوْمِ الْكَافِرِينَ
69 निस्संदेह वे लोग जो ईमान लाए है और जो यहूदी हुए है और साबई और ईसाई, उनमें से जो कोई भी अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाए और अच्छा कर्म करे तो ऐसे लोगों को न तो कोई डर होगा और न वे शोकाकुल होंगे إِنَّ الَّذِينَ آمَنُواْ وَالَّذِينَ هَادُواْ وَالصَّابِؤُونَ وَالنَّصَارَى مَنْ آمَنَ بِاللّهِ وَالْيَوْمِ الآخِرِ وعَمِلَ صَالِحًا فَلاَ خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلاَ هُمْ يَحْزَنُونَ
70 हमने इसराईल की सन्तान से दृढ़ वचन लिया और उनकी ओर रसूल भेजे। उनके पास जब भी कोई रसूल वह कुछ लेकर आया जो उन्हें पसन्द न था, तो कितनों को तो उन्होंने झुठलाया और कितनों की हत्या करने लगे لَقَدْ أَخَذْنَا مِيثَاقَ بَنِي إِسْرَائِيلَ وَأَرْسَلْنَا إِلَيْهِمْ رُسُلاً كُلَّمَا جَاءهُمْ رَسُولٌ بِمَا لاَ تَهْوَى أَنْفُسُهُمْ فَرِيقًا كَذَّبُواْ وَفَرِيقًا يَقْتُلُونَ
71 और उन्होंने समझा कि कोई आपदा न आएगी; इसलिए वे अंधे और बहरे बन गए। फिर अल्लाह ने उनपर दयादृष्टि की, फिर भी उनमें से बहुत-से अंधे और बहरे हो गए। अल्लाह देख रहा है, जो कुछ वे करते है وَحَسِبُواْ أَلاَّ تَكُونَ فِتْنَةٌ فَعَمُواْ وَصَمُّواْ ثُمَّ تَابَ اللّهُ عَلَيْهِمْ ثُمَّ عَمُواْ وَصَمُّواْ كَثِيرٌ مِّنْهُمْ وَاللّهُ بَصِيرٌ بِمَا يَعْمَلُونَ
72 निश्चय ही उन्होंने (सत्य का) इनकार किया, जिन्होंने कहा, "अल्लाह मरयम का बेटा मसीह ही है।" जब मसीह ने कहा था, "ऐ इसराईल की सन्तान! अल्लाह की बन्दगी करो, जो मेरा भी रब है और तुम्हारा भी रब है। जो कोई अल्लाह का साझी ठहराएगा, उसपर तो अल्लाह ने जन्नत हराम कर दी है और उसका ठिकाना आग है। अत्याचारियों को कोई सहायक नहीं।" لَقَدْ كَفَرَ الَّذِينَ قَالُواْ إِنَّ اللّهَ هُوَ الْمَسِيحُ ابْنُ مَرْيَمَ وَقَالَ الْمَسِيحُ يَا بَنِي إِسْرَائِيلَ اعْبُدُواْ اللّهَ رَبِّي وَرَبَّكُمْ إِنَّهُ مَن يُشْرِكْ بِاللّهِ فَقَدْ حَرَّمَ اللّهُ عَلَيهِ الْجَنَّةَ وَمَأْوَاهُ النَّارُ وَمَا لِلظَّالِمِينَ مِنْ أَنصَارٍ
73 निश्चय ही उन्होंने इनकार किया, जिन्होंने कहा, "अल्लाह तीन में का एक है।" हालाँकि अकेले पूज्य के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं। जो कुछ वे कहते है यदि इससे बाज़ न आएँ तो उनमें से जिन्होंने इनकार किया है, उन्हें दुखद यातना पहुँचकर रहेगी لَّقَدْ كَفَرَ الَّذِينَ قَالُواْ إِنَّ اللّهَ ثَالِثُ ثَلاَثَةٍ وَمَا مِنْ إِلَـهٍ إِلاَّ إِلَـهٌ وَاحِدٌ وَإِن لَّمْ يَنتَهُواْ عَمَّا يَقُولُونَ لَيَمَسَّنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ مِنْهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
74 फिर क्या वे लोग अल्लाह की ओर नहीं पलटेंगे और उससे क्षमा याचना नहीं करेंगे, जबकि अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है أَفَلاَ يَتُوبُونَ إِلَى اللّهِ وَيَسْتَغْفِرُونَهُ وَاللّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
75 मरयम का बेटा मसीह एक रसूल के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं। उससे पहले भी बहुत-से रसूल गुज़र चुके हैं। उसकी माण अत्यन्त सत्यवती थी। दोनों ही भोजन करते थे। देखो, हम किस प्रकार उनके सामने निशानियाँ स्पष्ट करते है; फिर देखो, ये किस प्रकार उलटे फिरे जा रहे है! مَّا الْمَسِيحُ ابْنُ مَرْيَمَ إِلاَّ رَسُولٌ قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِهِ الرُّسُلُ وَأُمُّهُ صِدِّيقَةٌ كَانَا يَأْكُلاَنِ الطَّعَامَ انظُرْ كَيْفَ نُبَيِّنُ لَهُمُ الآيَاتِ ثُمَّ انظُرْ أَنَّى يُؤْفَكُونَ
76 कह दो, "क्या तुम अल्लाह से हटकर उसकी बन्दगी करते हो जो न तुम्हारी हानि का अधिकारी है, न लाभ का? हालाँकि सुननेवाला, जाननेवाला अल्लाह ही है।" قُلْ أَتَعْبُدُونَ مِن دُونِ اللّهِ مَا لاَ يَمْلِكُ لَكُمْ ضَرًّا وَلاَ نَفْعًا وَاللّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ
77 कह दो, "ऐ किताबवालो! अपने धर्म में नाहक़ हद से आगे न बढ़ो और उन लोगों की इच्छाओं का पालन न करो, जो इससे पहले स्वयं पथभ्रष्ट हुए और बहुतो को पथभ्रष्ट किया और सीधे मार्ग से भटक गए قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لاَ تَغْلُواْ فِي دِينِكُمْ غَيْرَ الْحَقِّ وَلاَ تَتَّبِعُواْ أَهْوَاء قَوْمٍ قَدْ ضَلُّواْ مِن قَبْلُ وَأَضَلُّواْ كَثِيراً وَضَلُّواْ عَن سَوَاء السَّبِيلِ
78 इसराईल की सन्तान में से जिन लोगों ने इनकार किया, उनपर दाऊद और मरयम के बेटे ईसा की ज़बान से फिटकार पड़ी, क्योंकि उन्होंने अवज्ञा की और वे हद से आगे बढ़े जा रहे थे لُعِنَ الَّذِينَ كَفَرُواْ مِن بَنِي إِسْرَائِيلَ عَلَى لِسَانِ دَاوُودَ وَعِيسَى ابْنِ مَرْيَمَ ذَلِكَ بِمَا عَصَوا وَّكَانُواْ يَعْتَدُونَ
79 जो बुरा काम वे करते थे, उससे वे एक-दूसरे को रोकते न थे। निश्चय ही बहुत ही बुरा था, जो वे कर रहे थे كَانُواْ لاَ يَتَنَاهَوْنَ عَن مُّنكَرٍ فَعَلُوهُ لَبِئْسَ مَا كَانُواْ يَفْعَلُونَ
80 तुम उनमें से बहुतेरे लोगों को देखते हो जो इनकार करनेवालो से मित्रता रखते है। निश्चय ही बहुत बुरा है, जो उन्होंने अपने आगे रखा है। अल्लाह का उनपर प्रकोप हुआ और यातना में वे सदैव ग्रस्त रहेंगे تَرَى كَثِيراً مِّنْهُمْ يَتَوَلَّوْنَ الَّذِينَ كَفَرُواْ لَبِئْسَ مَا قَدَّمَتْ لَهُمْ أَنفُسُهُمْ أَن سَخِطَ اللّهُ عَلَيْهِمْ وَفِي الْعَذَابِ هُمْ خَالِدُونَ
81 और यदि वे अल्लाह और नबी पर और उस चीज़ पर ईमान लाते, जो उसकी ओर अवतरित हुईस तो वे उनको मित्र न बनाते। किन्तु उनमें अधिकतर अवज्ञाकारी है وَلَوْ كَانُوا يُؤْمِنُونَ بِالله والنَّبِيِّ وَمَا أُنزِلَ إِلَيْهِ مَا اتَّخَذُوهُمْ أَوْلِيَاء وَلَـكِنَّ كَثِيراً مِّنْهُمْ فَاسِقُونَ
82 तुम ईमानवालों का शत्रु सब लोगों से बढ़कर यहूदियों और बहुदेववादियों को पाओगे। और ईमान लानेवालो के लिए मित्रता में सबसे निकट उन लोगों को पाओगे, जिन्होंने कहा कि 'हम नसारा हैं।' यह इस कारण है कि उनमें बहुत-से धर्मज्ञाता और संसार-त्यागी सन्त पाए जाते हैं। और इस कारण कि वे अहंकार नहीं करते لَتَجِدَنَّ أَشَدَّ النَّاسِ عَدَاوَةً لِّلَّذِينَ آمَنُواْ الْيَهُودَ وَالَّذِينَ أَشْرَكُواْ وَلَتَجِدَنَّ أَقْرَبَهُمْ مَّوَدَّةً لِّلَّذِينَ آمَنُواْ الَّذِينَ قَالُوَاْ إِنَّا نَصَارَى ذَلِكَ بِأَنَّ مِنْهُمْ قِسِّيسِينَ وَرُهْبَانًا وَأَنَّهُمْ لاَ يَسْتَكْبِرُونَ
83 जब वे उसे सुनते है जो रसूल पर अवतरित हुआ तो तुम देखते हो कि उनकी आँखे आँसुओ से छलकने लगती है। इसका कारण यह है कि उन्होंने सत्य को पहचान लिया। वे कहते हैं, "हमारे रब! हम ईमान ले आए। अतएव तू हमारा नाम गवाही देनेवालों में लिख ले وَإِذَا سَمِعُواْ مَا أُنزِلَ إِلَى الرَّسُولِ تَرَى أَعْيُنَهُمْ تَفِيضُ مِنَ الدَّمْعِ مِمَّا عَرَفُواْ مِنَ الْحَقِّ يَقُولُونَ رَبَّنَا آمَنَّا فَاكْتُبْنَا مَعَ الشَّاهِدِين
84 "और हम अल्लाह पर और जो सत्य हमारे पास पहुँचा है उसपर ईमान क्यों न लाएँ, जबकि हमें आशा है कि हमारा रब हमें अच्छे लोगों के साथ (जन्नत में) प्रविष्ट, करेगा।" وَمَا لَنَا لاَ نُؤْمِنُ بِاللّهِ وَمَا جَاءنَا مِنَ الْحَقِّ وَنَطْمَعُ أَن يُدْخِلَنَا رَبَّنَا مَعَ الْقَوْمِ الصَّالِحِينَ
85 फिर अल्लाह ने उनके इस कथन के कारण उन्हें ऐसे बाग़ प्रदान किए, जिनके नीचे नहरें बहती है, जिनमें वे सदैव रहेंगे। और यही सत्कर्मी लोगो का बदला है فَأَثَابَهُمُ اللّهُ بِمَا قَالُواْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا وَذَلِكَ جَزَاء الْمُحْسِنِينَ
86 रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वे भड़कती आग (में पड़ने) वाले है وَالَّذِينَ كَفَرُواْ وَكَذَّبُواْ بِآيَاتِنَا أُوْلَـئِكَ أَصْحَابُ الْجَحِيمِ
87 ऐ ईमान लानेवालो! जो अच्छी पाक चीज़े अल्लाह ने तुम्हारे लिए हलाल की है, उन्हें हराम न कर लो और हद से आगे न बढ़ो। निश्चय ही अल्लाह को वे लोग प्रिय नहीं है, जो हद से आगे बढ़ते है يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تُحَرِّمُواْ طَيِّبَاتِ مَا أَحَلَّ اللّهُ لَكُمْ وَلاَ تَعْتَدُواْ إِنَّ اللّهَ لاَ يُحِبُّ الْمُعْتَدِينَ
88 जो कुछ अल्लाह ने हलाल और पाक रोज़ी तुम्हें ही है, उसे खाओ और अल्लाह का डर रखो, जिसपर तुम ईमान लाए हो وَكُلُواْ مِمَّا رَزَقَكُمُ اللّهُ حَلاَلاً طَيِّبًا وَاتَّقُواْ اللّهَ الَّذِيَ أَنتُم بِهِ مُؤْمِنُونَ
89 तुम्हारी उन क़समों पर अल्लाह तुम्हें नहीं पकड़ता जो यूँ ही असावधानी से ज़बान से निकल जाती है। परन्तु जो तुमने पक्की क़समें खाई हों, उनपर वह तुम्हें पकड़ेगा। तो इसका प्रायश्चित दस मुहताजों को औसत दर्जें का खाना खिला देना है, जो तुम अपने बाल-बच्चों को खिलाते हो या फिर उन्हें कपड़े पहनाना या एक ग़ुलाम आज़ाद करना होगा। और जिसे इसकी सामर्थ्य न हो, तो उसे तीन दिन के रोज़े रखने होंगे। यह तुम्हारी क़समों का प्रायश्चित है, जबकि तुम क़सम खा बैठो। तुम अपनी क़समों की हिफ़ाजत किया करो। इस प्रकार अल्लाह अपनी आयतें तुम्हारे सामने खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ لاَ يُؤَاخِذُكُمُ اللّهُ بِاللَّغْوِ فِي أَيْمَانِكُمْ وَلَـكِن يُؤَاخِذُكُم بِمَا عَقَّدتُّمُ الأَيْمَانَ فَكَفَّارَتُهُ إِطْعَامُ عَشَرَةِ مَسَاكِينَ مِنْ أَوْسَطِ مَا تُطْعِمُونَ أَهْلِيكُمْ أَوْ كِسْوَتُهُمْ أَوْ تَحْرِيرُ رَقَبَةٍ فَمَن لَّمْ يَجِدْ فَصِيَامُ ثَلاَثَةِ أَيَّامٍ ذَلِكَ كَفَّارَةُ أَيْمَانِكُمْ إِذَا حَلَفْتُمْ وَاحْفَظُواْ أَيْمَانَكُمْ كَذَلِكَ يُبَيِّنُ اللّهُ لَكُمْ آيَاتِهِ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
90 ऐ ईमान लानेवालो! ये शराब और जुआ और देवस्थान और पाँसे तो गन्दे शैतानी काम है। अतः तुम इनसे अलग रहो, ताकि तुम सफल हो يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ إِنَّمَا الْخَمْرُ وَالْمَيْسِرُ وَالأَنصَابُ وَالأَزْلاَمُ رِجْسٌ مِّنْ عَمَلِ الشَّيْطَانِ فَاجْتَنِبُوهُ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ
91 शैतान तो बस यही चाहता है कि शराब और जुए के द्वारा तुम्हारे बीच शत्रुता और द्वेष पैदा कर दे और तुम्हें अल्लाह की याद से और नमाज़ से रोक दे, तो क्या तुम बाज़ न आओगे? إِنَّمَا يُرِيدُ الشَّيْطَانُ أَن يُوقِعَ بَيْنَكُمُ الْعَدَاوَةَ وَالْبَغْضَاء فِي الْخَمْرِ وَالْمَيْسِرِ وَيَصُدَّكُمْ عَن ذِكْرِ اللّهِ وَعَنِ الصَّلاَةِ فَهَلْ أَنتُم مُّنتَهُونَ
92 अल्लाह की आज्ञा का पालन करो और रसूल की आज्ञा का पालन करो और बचते रहो, किन्तु यदि तुमने मुँह मोड़ा तो जान लो कि हमारे रसूल पर केवल स्पष्ट रूप से (संदेश) पहुँचा देने की ज़िम्मेदारी है وَأَطِيعُواْ اللّهَ وَأَطِيعُواْ الرَّسُولَ وَاحْذَرُواْ فَإِن تَوَلَّيْتُمْ فَاعْلَمُواْ أَنَّمَا عَلَى رَسُولِنَا الْبَلاَغُ الْمُبِينُ
93 जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, वे पहले जो कुछ खा-पी चुके उसके लिए उनपर कोई गुनाह नहीं; जबकि वे डर रखें और ईमान पर क़ायम रहें और अच्छे कर्म करें। फिर डर रखें और ईमान लाए, फिर डर रखे और अच्छे से अच्छा कर्म करें। अल्लाह सत्कर्मियों से प्रेम करता है لَيْسَ عَلَى الَّذِينَ آمَنُواْ وَعَمِلُواْ الصَّالِحَاتِ جُنَاحٌ فِيمَا طَعِمُواْ إِذَا مَا اتَّقَواْ وَّآمَنُواْ وَعَمِلُواْ الصَّالِحَاتِ ثُمَّ اتَّقَواْ وَّآمَنُواْ ثُمَّ اتَّقَواْ وَّأَحْسَنُواْ وَاللّهُ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ
94 ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह उस शिकार के द्वारा तुम्हारी अवश्य परीक्षा लेगा जिस तक तुम्हारे हाथ और नेज़े पहुँच सकें, ताकि अल्लाह यह जान ले कि उससे बिन देखे कौन डरता है। फिर इसके पश्चात जिसने ज़्यादती की, उसके लिए दुखद यातना है يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لَيَبْلُوَنَّكُمُ اللّهُ بِشَيْءٍ مِّنَ الصَّيْدِ تَنَالُهُ أَيْدِيكُمْ وَرِمَاحُكُمْ لِيَعْلَمَ اللّهُ مَن يَخَافُهُ بِالْغَيْبِ فَمَنِ اعْتَدَى بَعْدَ ذَلِكَ فَلَهُ عَذَابٌ أَلِيمٌ
95 ऐ ईमान लानेवालो! इहराम की हालत में तुम शिकार न मारो। तुम में जो कोई जान-बूझकर उसे मारे, तो उसने जो जानवर मारा हो, चौपायों में से उसी जैसा एक जानवर - जिसका फ़ैसला तुम्हारे दो न्यायप्रिय व्यक्ति कर दें - काबा पहुँचाकर क़ुरबान किया जाए, या प्रायश्चित के रूप में मुहताजों को भोजन कराना होगा या उसके बराबर रोज़े रखने होंगे, ताकि वह अपने किए का मज़ा चख ले। जो पहले हो चुका उसे अल्लाह ने क्षमा कर दिया; परन्तु जिस किसी ने फिर ऐसा किया तो अल्लाह उससे बदला लेगा। अल्लाह प्रभुत्वशाली, बदला लेनेवाला है يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تَقْتُلُواْ الصَّيْدَ وَأَنتُمْ حُرُمٌ وَمَن قَتَلَهُ مِنكُم مُّتَعَمِّدًا فَجَزَاء مِّثْلُ مَا قَتَلَ مِنَ النَّعَمِ يَحْكُمُ بِهِ ذَوَا عَدْلٍ مِّنكُمْ هَدْيًا بَالِغَ الْكَعْبَةِ أَوْ كَفَّارَةٌ طَعَامُ مَسَاكِينَ أَو عَدْلُ ذَلِكَ صِيَامًا لِّيَذُوقَ وَبَالَ أَمْرِهِ عَفَا اللّهُ عَمَّا سَلَف وَمَنْ عَادَ فَيَنتَقِمُ اللّهُ مِنْهُ وَاللّهُ عَزِيزٌ ذُو انْتِقَامٍ
96 तुम्हारे लिए जल की शिकार और उसका खाना हलाल है कि तुम उससे फ़ायदा उठाओ और मुसाफ़िर भी। किन्तु थलीय शिकार जब तक तुम इहराम में हो, तुमपर हराम है। और अल्लाह से डरते रहो, जिसकी ओर तुम इकट्ठा होगे أُحِلَّ لَكُمْ صَيْدُ الْبَحْرِ وَطَعَامُهُ مَتَاعًا لَّكُمْ وَلِلسَّيَّارَةِ وَحُرِّمَ عَلَيْكُمْ صَيْدُ الْبَرِّ مَا دُمْتُمْ حُرُمًا وَاتَّقُواْ اللّهَ الَّذِيَ إِلَيْهِ تُحْشَرُونَ
97 अल्लाह ने आदरणीय घर काबा को लोगों के लिए क़ायम रहने का साधन बनाया और आदरणीय महीनों और क़ुरबानी के जानबरों और उन जानवरों को भी जिनके गले में पट्टे बँधे हो, यह इसलिए कि तुम जान लो कि अल्लाह जानता है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। और यह कि अल्लाह हर चीज़ से अवगत है جَعَلَ اللّهُ الْكَعْبَةَ الْبَيْتَ الْحَرَامَ قِيَامًا لِّلنَّاسِ وَالشَّهْرَ الْحَرَامَ وَالْهَدْيَ وَالْقَلاَئِدَ ذَلِكَ لِتَعْلَمُواْ أَنَّ اللّهَ يَعْلَمُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأَرْضِ وَأَنَّ اللّهَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ
98 जान लो अल्लाह कठोर दड देनेवाला है और यह कि अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है اعْلَمُواْ أَنَّ اللّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ وَأَنَّ اللّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
99 रसूल पर (सन्देश) पहुँचा देने के अतिरिक्त और कोई ज़िम्मेदारी नहीं। अल्लाह तो जानता है, जो कुछ तुम प्रकट करते हो और जो कुछ तुम छिपाते हो مَّا عَلَى الرَّسُولِ إِلاَّ الْبَلاَغُ وَاللّهُ يَعْلَمُ مَا تُبْدُونَ وَمَا تَكْتُمُونَ
100 कह दो, "बुरी चीज़ और अच्छी चीज़ समान नहीं होती, चाहे बुरी चीज़ों की बहुतायत तुम्हें प्रिय ही क्यों न लगे।" अतः ऐ बुद्धि और समझवालों! अल्लाह का डर रखो, ताकि तुम सफल हो सको قُل لاَّ يَسْتَوِي الْخَبِيثُ وَالطَّيِّبُ وَلَوْ أَعْجَبَكَ كَثْرَةُ الْخَبِيثِ فَاتَّقُواْ اللّهَ يَا أُوْلِي الأَلْبَابِ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ
101 ऐ ईमान लानेवालो! ऐसी चीज़ों के विषय में न पूछो कि वे यदि तुम पर स्पष्ट कर दी जाएँ, तो तुम्हें बूरी लगें। यदि तुम उन्हें ऐसे समय में पूछोगे, जबकि क़ुरआन अवतरित हो रहा है, तो वे तुमपर स्पष्ट कर दी जाएँगी। अल्लाह ने उसे क्षमा कर दिया। अल्लाह बहुत क्षमा करनेवाला, सहनशील है يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تَسْأَلُواْ عَنْ أَشْيَاء إِن تُبْدَ لَكُمْ تَسُؤْكُمْ وَإِن تَسْأَلُواْ عَنْهَا حِينَ يُنَزَّلُ الْقُرْآنُ تُبْدَ لَكُمْ عَفَا اللّهُ عَنْهَا وَاللّهُ غَفُورٌ حَلِيمٌ
102 तुमसे पहले कुछ लोग इस तरह के प्रश्न कर चुके हैं, फिर वे उसके कारण इनकार करनेवाले हो गए قَدْ سَأَلَهَا قَوْمٌ مِّن قَبْلِكُمْ ثُمَّ أَصْبَحُواْ بِهَا كَافِرِينَ
103 अल्लाह ने न कोई 'बहीरा' ठहराया है और न 'सायबा' और न 'वसीला' और न 'हाम', परन्तु इनकार करनेवाले अल्लाह पर झूठ का आरोपण करते है और उनमें अधिकतर बुद्धि से काम नहीं लेते مَا جَعَلَ اللّهُ مِن بَحِيرَةٍ وَلاَ سَآئِبَةٍ وَلاَ وَصِيلَةٍ وَلاَ حَامٍ وَلَـكِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ يَفْتَرُونَ عَلَى اللّهِ الْكَذِبَ وَأَكْثَرُهُمْ لاَ يَعْقِلُونَ
104 और जब उनसे कहा जाता है कि उस चीज़ की ओर आओ जो अल्लाह ने अवतरित की है और रसूल की ओर, तो वे कहते है, "हमारे लिए तो वही काफ़ी है, जिस पर हमने अपने बाप-दादा को पाया है।" क्या यद्यपि उनके बापृ-दादा कुछ भी न जानते रहे हों और न सीधे मार्ग पर रहे हो? وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ تَعَالَوْاْ إِلَى مَا أَنزَلَ اللّهُ وَإِلَى الرَّسُولِ قَالُواْ حَسْبُنَا مَا وَجَدْنَا عَلَيْهِ آبَاءنَا أَوَلَوْ كَانَ آبَاؤُهُمْ لاَ يَعْلَمُونَ شَيْئًا وَلاَ يَهْتَدُونَ
105 ऐ ईमान लानेवालो! तुमपर अपनी चिन्ता अनिवार्य है, जब तुम रास्ते पर हो, तो जो कोई भटक जाए वह तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। अल्लाह की ओर तुम सबको लौटकर जाना है। फिर वह तुम्हें बता देगा, जो कुछ तुम करते रहे होगे يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ عَلَيْكُمْ أَنفُسَكُمْ لاَ يَضُرُّكُم مَّن ضَلَّ إِذَا اهْتَدَيْتُمْ إِلَى اللّهِ مَرْجِعُكُمْ جَمِيعًا فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ
106 ऐ ईमान लानेवालों! जब तुममें से किसी की मृत्यु का समय आ जाए तो वसीयत के समय तुममें से दो न्यायप्रिय व्यक्ति गवाह हों, या तुम्हारे ग़ैर लोगों में से दूसरे दो व्यक्ति गवाह बन जाएँ, यह उस समय कि यदि तुम कहीं सफ़र में गए हो और मृत्यु तुमपर आ पहुँचे। यदि तुम्हें कोई सन्देह हो तो नमाज़ के पश्चात उन दोनों को रोक लो, फिर वे दोनों अल्लाह की क़समें खाएँ कि "हम इसके बदले कोई मूल्य स्वीकार करनेवाले नहीं हैं चाहे कोई नातेदार ही क्यों न हो और न हम अल्लाह की गवाही छिपाते है। निस्सन्देह ऐसा किया तो हम गुनाहगार ठहरेंगे।" يِا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ شَهَادَةُ بَيْنِكُمْ إِذَا حَضَرَ أَحَدَكُمُ الْمَوْتُ حِينَ الْوَصِيَّةِ اثْنَانِ ذَوَا عَدْلٍ مِّنكُمْ أَوْ آخَرَانِ مِنْ غَيْرِكُمْ إِنْ أَنتُمْ ضَرَبْتُمْ فِي الأَرْضِ فَأَصَابَتْكُم مُّصِيبَةُ الْمَوْتِ تَحْبِسُونَهُمَا مِن بَعْدِ الصَّلاَةِ فَيُقْسِمَانِ بِاللّهِ إِنِ ارْتَبْتُمْ لاَ نَشْتَرِي بِهِ ثَمَنًا وَلَوْ كَانَ ذَا قُرْبَى وَلاَ نَكْتُمُ شَهَادَةَ اللّهِ إِنَّا إِذًا لَّمِنَ الآثِمِينَ
107 फिर यदि पता चल जाए कि उन दोनों ने हक़ मारकर अपने को गुनाह में डाल लिया है, तो उनकी जगह दूसरे दो व्यक्ति उन लोगों में से खड़े हो जाएँ, जिनका हक़ पिछले दोनों ने मारना चाहा था, फिर वे दोनों अल्लाह की क़समें खाएँ कि "हम दोनों की गवाही उन दोनों की गवाही से अधिक सच्ची है और हमने कोई ज़्यादती नहीं की है। निस्सन्देह हमने ऐसा किया तो अत्याचारियों में से होंगे।" فَإِنْ عُثِرَ عَلَى أَنَّهُمَا اسْتَحَقَّا إِثْمًا فَآخَرَانِ يِقُومَانُ مَقَامَهُمَا مِنَ الَّذِينَ اسْتَحَقَّ عَلَيْهِمُ الأَوْلَيَانِ فَيُقْسِمَانِ بِاللّهِ لَشَهَادَتُنَا أَحَقُّ مِن شَهَادَتِهِمَا وَمَا اعْتَدَيْنَا إِنَّا إِذًا لَّمِنَ الظَّالِمِينَ
108 इसमें इसकी सम्भावना है कि वे ठीक-ठीक गवाही देंगे या डरेंगे कि उनकी क़समों के पश्चात क़समें ली जाएँगी। अल्लाह का डर रखो और सुनो। अल्लाह अवज्ञाकारी लोगों को मार्ग नहीं दिखाता ذَلِكَ أَدْنَى أَن يَأْتُواْ بِالشَّهَادَةِ عَلَى وَجْهِهَا أَوْ يَخَافُواْ أَن تُرَدَّ أَيْمَانٌ بَعْدَ أَيْمَانِهِمْ وَاتَّقُوا اللّهَ وَاسْمَعُواْ وَاللّهُ لاَ يَهْدِي الْقَوْمَ الْفَاسِقِينَ
109 जिस दिन अल्लाह रसूलों को इकट्ठा करेगा, फिर कहेगा, "तुम्हें क्या जवाब मिला?" वे कहेंगे, "हमें कुछ नहीं मालूम। तू ही छिपी बातों को जानता है।" يَوْمَ يَجْمَعُ اللّهُ الرُّسُلَ فَيَقُولُ مَاذَا أُجِبْتُمْ قَالُواْ لاَ عِلْمَ لَنَا إِنَّكَ أَنتَ عَلاَّمُ الْغُيُوبِ
110 जब अल्लाह कहेगा, "ऐ मरयम के बेटे ईसा! मेरे उस अनुग्रह को याद करो जो तुमपर और तुम्हारी माँ पर हुआ है। जब मैंने पवित्र आत्मा से तुम्हें शक्ति प्रदान की; तुम पालने में भी लोगों से बात करते थे और बड़ी अवस्था को पहुँचकर भी। और याद करो, जबकि मैंने तुम्हें किताब और हिकमत और तौरात और इनजील की शिक्षा दी थी। और याद करो जब तुम मेरे आदेश से मिट्टी से पक्षी का प्रारूपण करते थे; फिर उसमें फूँक मारते थे, तो वह मेरे आदेश से उड़नेवाली बन जाती थी। और तुम मेरे आदेश से मुर्दों को जीवित निकाल खड़ा करते थे। और याद करो जबकि मैंने तुमसे इसराइलियों को रोके रखा, जबकि तुम उनके पास खुली-खुली निशानियाँ लेकर पहुँचे थे, तो उनमें से जो इनकार करनेवाले थे, उन्होंने कहा, यह तो बस खुला जादू है।" إِذْ قَالَ اللّهُ يَا عِيسى ابْنَ مَرْيَمَ اذْكُرْ نِعْمَتِي عَلَيْكَ وَعَلَى وَالِدَتِكَ إِذْ أَيَّدتُّكَ بِرُوحِ الْقُدُسِ تُكَلِّمُ النَّاسَ فِي الْمَهْدِ وَكَهْلاً وَإِذْ عَلَّمْتُكَ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَالتَّوْرَاةَ وَالإِنجِيلَ وَإِذْ تَخْلُقُ مِنَ الطِّينِ كَهَيْئَةِ الطَّيْرِ بِإِذْنِي فَتَنفُخُ فِيهَا فَتَكُونُ طَيْرًا بِإِذْنِي وَتُبْرِئُ الأَكْمَهَ وَالأَبْرَصَ بِإِذْنِي وَإِذْ تُخْرِجُ الْمَوتَى بِإِذْنِي وَإِذْ كَفَفْتُ بَنِي إِسْرَائِيلَ عَنكَ إِذْ جِئْتَهُمْ بِالْبَيِّنَاتِ فَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُواْ مِنْهُمْ إِنْ هَـذَا إِلاَّ سِحْرٌ مُّبِينٌ
111 और याद करो, जब मैंने हबारियों (साथियों और शागिर्दों) के दिल में डाला कि "मुझपर और मेरे रसूल पर ईमान लाओ," तो उन्होंने कहा, "हम ईमान लाए और तुम गवाह रहो कि हम मुस्लिम है।" وَإِذْ أَوْحَيْتُ إِلَى الْحَوَارِيِّينَ أَنْ آمِنُواْ بِي وَبِرَسُولِي قَالُوَاْ آمَنَّا وَاشْهَدْ بِأَنَّنَا مُسْلِمُونَ
112 और याद करो जब हवारियों ने कहा, "ऐ मरयम के बेटे ईसा! क्या तुम्हारा रब आकाश से खाने से भरा भाल उतार सकता है?" कहा, "अल्लाह से डरो, यदि तुम ईमानवाले हो।" إِذْ قَالَ الْحَوَارِيُّونَ يَا عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ هَلْ يَسْتَطِيعُ رَبُّكَ أَن يُنَزِّلَ عَلَيْنَا مَآئِدَةً مِّنَ السَّمَاء قَالَ اتَّقُواْ اللّهَ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
113 वे बोले, "हम चाहते हैं कि उनमें से खाएँ और हमारे हृदय सन्तुष्ट हो और हमें मालूम हो जाए कि तूने हमने सच कहा और हम उसपर गवाह रहें।" قَالُواْ نُرِيدُ أَن نَّأْكُلَ مِنْهَا وَتَطْمَئِنَّ قُلُوبُنَا وَنَعْلَمَ أَن قَدْ صَدَقْتَنَا وَنَكُونَ عَلَيْهَا مِنَ الشَّاهِدِينَ
114 मरयम के बेटे ईसा ने कहा, "ऐ अल्लाह, हमारे रब! हमपर आकाश से खाने से भरा खाल उतार, जो हमारे लिए और हमारे अंगलों और हमारे पिछलों के लिए ख़ुशी का कारण बने और तेरी ओर से एक निशानी हो, और हमें आहार प्रदान कर। तू सबसे अच्छा प्रदान करनेवाला है।" قَالَ عِيسَى ابْنُ مَرْيَمَ اللَّهُمَّ رَبَّنَا أَنزِلْ عَلَيْنَا مَآئِدَةً مِّنَ السَّمَاء تَكُونُ لَنَا عِيداً لِّأَوَّلِنَا وَآخِرِنَا وَآيَةً مِّنكَ وَارْزُقْنَا وَأَنتَ خَيْرُ الرَّازِقِينَ
115 अल्लाह ने कहा, "मैं उसे तुमपर उतारूँगा, फिर उसके पश्चात तुममें से जो कोई इनकार करेगा तो मैं अवश्य उसे ऐसी यातना दूँगा जो सम्पूर्ण संसार में किसी को न दूँगा।" قَالَ اللّهُ إِنِّي مُنَزِّلُهَا عَلَيْكُمْ فَمَن يَكْفُرْ بَعْدُ مِنكُمْ فَإِنِّي أُعَذِّبُهُ عَذَابًا لاَّ أُعَذِّبُهُ أَحَدًا مِّنَ الْعَالَمِينَ
116 और याद करो जब अल्लाह कहेगा, "ऐ मरयम के बेटे ईसा! क्या तुमने लोगों से कहा था कि अल्लाह के अतिरिक्त दो और पूज्य मुझ और मेरी माँ को बना लो?" वह कहेगा, "महिमावान है तू! मुझसे यह नहीं हो सकता कि मैं यह बात कहूँ, जिसका मुझे कोई हक़ नहीं है। यदि मैंने यह कहा होता तो तुझे मालूम होता। तू जानता है, जो कुछ मेरे मन में है। परन्तु मैं नहीं जानता जो कुछ तेरे मन में है। निश्चय ही, तू छिपी बातों का भली-भाँति जाननेवाला है وَإِذْ قَالَ اللّهُ يَا عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ أَأَنتَ قُلتَ لِلنَّاسِ اتَّخِذُونِي وَأُمِّيَ إِلَـهَيْنِ مِن دُونِ اللّهِ قَالَ سُبْحَانَكَ مَا يَكُونُ لِي أَنْ أَقُولَ مَا لَيْسَ لِي بِحَقٍّ إِن كُنتُ قُلْتُهُ فَقَدْ عَلِمْتَهُ تَعْلَمُ مَا فِي نَفْسِي وَلاَ أَعْلَمُ مَا فِي نَفْسِكَ إِنَّكَ أَنتَ عَلاَّمُ الْغُيُوبِ
117 "मैंने उनसे उसके सिवा और कुछ नहीं कहा, जिसका तूने मुझे आदेश दिया था, यह कि अल्लाह की बन्दगी करो, जो मेरा भी रब है और तुम्हारा भी रब है। और जब तक मैं उनमें रहा उनकी ख़बर रखता था, फिर जब तूने मुझे उठा लिया तो फिर तू ही उनका निरीक्षक था। और तू ही हर चीज़ का साक्षी है مَا قُلْتُ لَهُمْ إِلاَّ مَا أَمَرْتَنِي بِهِ أَنِ اعْبُدُواْ اللّهَ رَبِّي وَرَبَّكُمْ وَكُنتُ عَلَيْهِمْ شَهِيدًا مَّا دُمْتُ فِيهِمْ فَلَمَّا تَوَفَّيْتَنِي كُنتَ أَنتَ الرَّقِيبَ عَلَيْهِمْ وَأَنتَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ
118 "यदि तू उन्हें यातना दे तो वे तो तेरे ही बन्दे ही है और यदि तू उन्हें क्षमा कर दे, तो निस्सन्देह तू अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।" إِن تُعَذِّبْهُمْ فَإِنَّهُمْ عِبَادُكَ وَإِن تَغْفِرْ لَهُمْ فَإِنَّكَ أَنتَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ
119 अल्लाह कहेगा, "यह वह दिन है कि सच्चों को उनकी सच्चाई लाभ पहुँचाएगी। उनके लिए ऐसे बाग़ है, जिनके नीचे नहेर बह रही होंगी, उनमें वे सदैव रहेंगे। अल्लाह उनसे राज़ी हुआ और वे उससे राज़ी हुए। यही सबसे बड़ी सफलता है।" قَالَ اللّهُ هَذَا يَوْمُ يَنفَعُ الصَّادِقِينَ صِدْقُهُمْ لَهُمْ جَنَّاتٌ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا رَّضِيَ اللّهُ عَنْهُمْ وَرَضُواْ عَنْهُ ذَلِكَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ
120 आकाशों और धरती और जो कुछ उनके बीच है, सबपर अल्लाह ही की बादशाही है और उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है لِلّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَمَا فِيهِنَّ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
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