1 |
प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है जिसका वह सब कुछ है जो आकाशों और धरती में है। और आख़िरत में भी उसी के लिए प्रशंसा है। और वही तत्वदर्शी, ख़बर रखनेवाला है |
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الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ وَلَهُ الْحَمْدُ فِي الْآخِرَةِ وَهُوَ الْحَكِيمُ الْخَبِيرُ |
2 |
वह जानता है जो कुछ धरती में प्रविष्ट होता है और जो कुथ उससे निकलता है और जो कुछ आकाश से उतरता है और जो कुछ उसमें चढ़ता है। और वही अत्यन्त दयावान, क्षमाशील है |
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يَعْلَمُ مَا يَلِجُ فِي الْأَرْضِ وَمَا يَخْرُجُ مِنْهَا وَمَا يَنزِلُ مِنَ السَّمَاء وَمَا يَعْرُجُ فِيهَا وَهُوَ الرَّحِيمُ الْغَفُورُ |
3 |
जिन लोगों ने इनकार किया उनका कहना है कि "हमपर क़ियामत की घड़ी नहीं आएगी।" कह दो, "क्यों नहीं, मेरे परोक्ष ज्ञाता रब की क़सम! वह तो तुमपर आकर रहेगी - उससे कणभर भी कोई चीज़ न तो आकाशों में ओझल है और न धरती में, और न इससे छोटी कोई चीज़ और न बड़ी। किन्तु वह एक स्पष्ट किताब में अंकित है। - |
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وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لَا تَأْتِينَا السَّاعَةُ قُلْ بَلَى وَرَبِّي لَتَأْتِيَنَّكُمْ عَالِمِ الْغَيْبِ لَا يَعْزُبُ عَنْهُ مِثْقَالُ ذَرَّةٍ فِي السَّمَاوَاتِ وَلَا فِي الْأَرْضِ وَلَا أَصْغَرُ مِن ذَلِكَ وَلَا أَكْبَرُ إِلَّا فِي كِتَابٍ مُّبِينٍ |
4 |
"ताकि वह उन लोगों को बदला दे, जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए। वहीं है जिनके लिए क्षमा और प्रतिष्ठामय आजीविका है |
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لِيَجْزِيَ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ أُوْلَئِكَ لَهُم مَّغْفِرَةٌ وَرِزْقٌ كَرِيمٌ |
5 |
"रहे वे लोग जिन्होंने हमारी आयतों को मात करने का प्रयास किया, वह है जिनके लिए बहुत ही बुरे प्रकार की दुखद यातना है।" |
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وَالَّذِينَ سَعَوْا فِي آيَاتِنَا مُعَاجِزِينَ أُوْلَئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ مِّن رِّجْزٍ أَلِيمٌ |
6 |
जिन लोगों को ज्ञान प्राप्त हुआ है वे स्वयं देखते है कि जो कुछ तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर अवतरित हुआ है वही सत्य है, और वह उसका मार्ग दिखाता है जो प्रभुत्वशाली, प्रशंसा का अधिकारी है |
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وَيَرَى الَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ الَّذِي أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ هُوَ الْحَقَّ وَيَهْدِي إِلَى صِرَاطِ الْعَزِيزِ الْحَمِيدِ |
7 |
जिन लोगों ने इनकार किया वे कहते है कि "क्या हम तुम्हें एक ऐसा आदमी बताएँ जो तुम्हें ख़बर देता है कि जब तुम बिलकुल चूर्ण-विचूर्ण हो जाओगे तो तुम नवीन काय में जीवित होगे?" |
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وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا هَلْ نَدُلُّكُمْ عَلَى رَجُلٍ يُنَبِّئُكُمْ إِذَا مُزِّقْتُمْ كُلَّ مُمَزَّقٍ إِنَّكُمْ لَفِي خَلْقٍ جَدِيدٍ |
8 |
क्या उसने अल्लाह पर झूठ घड़कर थोपा है, या उसे कुछ उन्माद है? नहीं, बल्कि जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते वे यातना और परले दरजे की गुमराही में हैं |
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أَفْتَرَى عَلَى اللَّهِ كَذِبًا أَم بِهِ جِنَّةٌ بَلِ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ فِي الْعَذَابِ وَالضَّلَالِ الْبَعِيدِ |
9 |
क्या उन्होंने आकाश और धरती को नहीं देखा, जो उनके आगे भी है और उनके पीछे भी? यदि हम चाहें तो उन्हें धरती में धँसा दें या उनपर आकाश से कुछ टुकड़े गिरा दें। निश्चय ही इसमें एक निशानी है हर उस बन्दे के लिए जो रुजू करनेवाला हो |
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أَفَلَمْ يَرَوْا إِلَى مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُم مِّنَ السَّمَاء وَالْأَرْضِ إِن نَّشَأْ نَخْسِفْ بِهِمُ الْأَرْضَ أَوْ نُسْقِطْ عَلَيْهِمْ كِسَفًا مِّنَ السَّمَاء إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَةً لِّكُلِّ عَبْدٍ مُّنِيبٍ |
10 |
हमने दाऊद को अपनी ओर से श्रेष्ठ ता प्रदान की, "ऐ पर्वतों! उसके साथ तसबीह को प्रतिध्वनित करो, और पक्षियों तुम भी!" और हमने उसके लिए लोहे को नर्म कर दिया |
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وَلَقَدْ آتَيْنَا دَاوُودَ مِنَّا فَضْلًا يَا جِبَالُ أَوِّبِي مَعَهُ وَالطَّيْرَ وَأَلَنَّا لَهُ الْحَدِيدَ |
11 |
कि "पूरी कवचें बना और कड़ियों को ठीक अंदाज़ें से जोड।" - और तुम अच्छा कर्म करो। निस्संदेह जो कुछ तुम करते हो उसे मैं देखता हूँ |
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أَنِ اعْمَلْ سَابِغَاتٍ وَقَدِّرْ فِي السَّرْدِ وَاعْمَلُوا صَالِحًا إِنِّي بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ |
12 |
और सुलैमान के लिए वायु को वशीभुत कर दिया था। प्रातः समय उसका चलना एक महीने की राह तक और सायंकाल को उसका चलना एक महीने की राह तक - और हमने उसके लिए पिघले हुए ताँबे का स्रोत बहा दिया - और जिन्नों में से भी कुछ को (उसके वशीभूत कर दिया था,) जो अपने रब की अनुज्ञा से उसके आगे काम करते थे। (हमारा आदेशा था,) "उनमें से जो हमारे हुक्म से फिरेगा उसे हम भडकती आग का मज़ा चखाएँगे।" |
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وَلِسُلَيْمَانَ الرِّيحَ غُدُوُّهَا شَهْرٌ وَرَوَاحُهَا شَهْرٌ وَأَسَلْنَا لَهُ عَيْنَ الْقِطْرِ وَمِنَ الْجِنِّ مَن يَعْمَلُ بَيْنَ يَدَيْهِ بِإِذْنِ رَبِّهِ وَمَن يَزِغْ مِنْهُمْ عَنْ أَمْرِنَا نُذِقْهُ مِنْ عَذَابِ السَّعِيرِ |
13 |
वे उसके लिए बनाते, जो कुछ वह चाहता - बड़े-बड़े भवन, प्रतिमाएँ, बड़े हौज़ जैसे थाल और जमी रहनेवाली देगें - "ऐ दाऊद के लोगों! कर्म करो, कृतज्ञता दिखाने रूप में। मेरे बन्दों में कृतज्ञ थोड़े ही हैं।" |
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يَعْمَلُونَ لَهُ مَا يَشَاء مِن مَّحَارِيبَ وَتَمَاثِيلَ وَجِفَانٍ كَالْجَوَابِ وَقُدُورٍ رَّاسِيَاتٍ اعْمَلُوا آلَ دَاوُودَ شُكْرًا وَقَلِيلٌ مِّنْ عِبَادِيَ الشَّكُورُ |
14 |
फिर जब हमने उसके लिए मौत का फ़ैसला लागू किया तो फिर उन जिन्नों को उसकी मौत का पता बस भूमि के उस कीड़े ने दिया जो उसकी लाठी को खा रहा था। फिर जब वह गिर पड़ा, तब जिन्नों पर प्रकट हुआ कि यदि वे परोक्ष के जाननेवाले होते तो इस अपमानजनक यातना में पड़े न रहते |
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فَلَمَّا قَضَيْنَا عَلَيْهِ الْمَوْتَ مَا دَلَّهُمْ عَلَى مَوْتِهِ إِلَّا دَابَّةُ الْأَرْضِ تَأْكُلُ مِنسَأَتَهُ فَلَمَّا خَرَّ تَبَيَّنَتِ الْجِنُّ أَن لَّوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ الْغَيْبَ مَا لَبِثُوا فِي الْعَذَابِ الْمُهِينِ |
15 |
सबा के लिए उनके निवास-स्थान ही में एक निशानी थी - दाएँ और बाएँ दो बाग, "खाओ अपने रब की रोज़ी, और उसके प्रति आभार प्रकट करो। भूमि भी अच्छी-सी और रब भी क्षमाशील।" |
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لَقَدْ كَانَ لِسَبَإٍ فِي مَسْكَنِهِمْ آيَةٌ جَنَّتَانِ عَن يَمِينٍ وَشِمَالٍ كُلُوا مِن رِّزْقِ رَبِّكُمْ وَاشْكُرُوا لَهُ بَلْدَةٌ طَيِّبَةٌ وَرَبٌّ غَفُورٌ |
16 |
किन्तु वे ध्यान में न लाए तो हमने उनपर बँध-तोड़ बाढ़ भेज दी और उनके दोनों बाग़ों के बदले में उन्हें दो दूसरे बाग़ दिए, जिनमें कड़वे-कसैले फल और झाड़ थे, और कुछ थोड़ी-सी झड़-बेरियाँ |
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فَأَعْرَضُوا فَأَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ سَيْلَ الْعَرِمِ وَبَدَّلْنَاهُم بِجَنَّتَيْهِمْ جَنَّتَيْنِ ذَوَاتَى أُكُلٍ خَمْطٍ وَأَثْلٍ وَشَيْءٍ مِّن سِدْرٍ قَلِيلٍ |
17 |
यह बदला हमने उन्हें इसलिए दिया कि उन्होंने कृतध्नता दिखाई। ऐसा बदला तो हम कृतध्न लोगों को ही देते है |
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ذَلِكَ جَزَيْنَاهُم بِمَا كَفَرُوا وَهَلْ نُجَازِي إِلَّا الْكَفُورَ |
18 |
और हमने उनके और उन बस्तियों के बीच जिनमें हमने बरकत रखी थी प्रत्यक्ष बस्तियाँ बसाई और उनमें सफ़र की मंज़िलें ख़ास अंदाज़े पर रखीं, "उनमें रात-दिन निश्चिन्त होकर चलो फिरो!" |
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وَجَعَلْنَا بَيْنَهُمْ وَبَيْنَ الْقُرَى الَّتِي بَارَكْنَا فِيهَا قُرًى ظَاهِرَةً وَقَدَّرْنَا فِيهَا السَّيْرَ سِيرُوا فِيهَا لَيَالِيَ وَأَيَّامًا آمِنِينَ |
19 |
किन्तु उन्होंने कहा, "ऐ हमारे रब! हमारी यात्राओं में दूरी कर दे।" उन्होंने स्वयं अपने ही ऊपर ज़ुल्म किया। अन्ततः हम उन्हें (अतीत की) कहानियाँ बनाकर रहे, औऱ उन्हें बिल्कुल छिन्न-भिन्न कर डाला। निश्चय ही इसमें निशानियाँ है प्रत्येक बड़े धैर्यवान, कृतज्ञ के लिए |
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فَقَالُوا رَبَّنَا بَاعِدْ بَيْنَ أَسْفَارِنَا وَظَلَمُوا أَنفُسَهُمْ فَجَعَلْنَاهُمْ أَحَادِيثَ وَمَزَّقْنَاهُمْ كُلَّ مُمَزَّقٍ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِّكُلِّ صَبَّارٍ شَكُورٍ |
20 |
इबलीस ने उनके विषय में अपना गुमान सत्य पाया और ईमानवालो के एक गिरोह के सिवा उन्होंने उसी का अनुसरण किया |
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وَلَقَدْ صَدَّقَ عَلَيْهِمْ إِبْلِيسُ ظَنَّهُ فَاتَّبَعُوهُ إِلَّا فَرِيقًا مِّنَ الْمُؤْمِنِينَ |
21 |
यद्यपि उसको उनपर कोई ज़ोर और अधिकार प्राप्त न था, किन्तु यह इसलिए कि हम उन लोगों को जो आख़िरत पर ईमान रखते है उन लोगों से अलग जान ले जो उसकी ओर से किसी सन्देह में पड़े हुए है। तुम्हारा रब हर चीज़ का अभिरक्षक है |
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وَمَا كَانَ لَهُ عَلَيْهِم مِّن سُلْطَانٍ إِلَّا لِنَعْلَمَ مَن يُؤْمِنُ بِالْآخِرَةِ مِمَّنْ هُوَ مِنْهَا فِي شَكٍّ وَرَبُّكَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ حَفِيظٌ |
22 |
कह दो, "अल्लाह को छोड़कर जिनका तुम्हें (उपास्य होने का) दावा है, उन्हें पुकार कर देखो। वे न अल्लाह में कणभर चीज़ के मालिक है और न धरती में और न उन दोनों में उनका कोई साझी है और न उनमें से कोई उसका सहायक है।" |
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قُلِ ادْعُوا الَّذِينَ زَعَمْتُم مِّن دُونِ اللَّهِ لَا يَمْلِكُونَ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ فِي السَّمَاوَاتِ وَلَا فِي الْأَرْضِ وَمَا لَهُمْ فِيهِمَا مِن شِرْكٍ وَمَا لَهُ مِنْهُم مِّن ظَهِيرٍ |
23 |
और उसके यहाँ कोई सिफ़ारिश काम नहीं आएगी, किन्तु उसी की जिसे उसने (सिफ़ारिश करने की) अनुमति दी हो। यहाँ तक कि जब उनके दिलों से घबराहट दूर हो जाएगी, तो वे कहेंगे, "तुम्हारे रब ने क्या कहा?" वे कहेंगे, "सर्वथा सत्य। और वह अत्यन्त उच्च, महान है।" |
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وَلَا تَنفَعُ الشَّفَاعَةُ عِندَهُ إِلَّا لِمَنْ أَذِنَ لَهُ حَتَّى إِذَا فُزِّعَ عَن قُلُوبِهِمْ قَالُوا مَاذَا قَالَ رَبُّكُمْ قَالُوا الْحَقَّ وَهُوَ الْعَلِيُّ الْكَبِيرُ |
24 |
कहो, "कौन तुम्हें आकाशों और धरती में रोज़ी देता है?" कहो, "अल्लाह!" अब अवश्य ही हम है या तुम ही हो मार्ग पर, या खुली गुमराही में |
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قُلْ مَن يَرْزُقُكُم مِّنَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ قُلِ اللَّهُ وَإِنَّا أَوْ إِيَّاكُمْ لَعَلَى هُدًى أَوْ فِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ |
25 |
कहो, "जो अपराध हमने किए, उसकी पूछ तुमसे न होगी और न उसकी पूछ हमसे होगी जो तुम कर रहे हो।" |
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قُل لَّا تُسْأَلُونَ عَمَّا أَجْرَمْنَا وَلَا نُسْأَلُ عَمَّا تَعْمَلُونَ |
26 |
कह दो, "हमारा रब हम सबको इकट्ठा करेगा। फिर हमारे बीच ठीक-ठीक फ़ैसला कर देगा। वही ख़ूब फ़ैसला करनेवाला, अत्यन्त ज्ञानवान है।" |
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قُلْ يَجْمَعُ بَيْنَنَا رَبُّنَا ثُمَّ يَفْتَحُ بَيْنَنَا بِالْحَقِّ وَهُوَ الْفَتَّاحُ الْعَلِيمُ |
27 |
कहो, "मुझे उनको दिखाओ तो, जिनको तुमने साझीदार बनाकर उसके साथ जोड रखा है। कुछ नहीं, बल्कि बही अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।" |
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قُلْ أَرُونِي الَّذِينَ أَلْحَقْتُم بِهِ شُرَكَاء كَلَّا بَلْ هُوَ اللَّهُ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ |
28 |
हमने तो तुम्हें सारे ही मनुष्यों को शुभ-सूचना देनेवाला और सावधान करनेवाला बनाकर भेजा, किन्तु अधिकतर लोग जानते नहीं |
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وَمَا أَرْسَلْنَاكَ إِلَّا كَافَّةً لِّلنَّاسِ بَشِيرًا وَنَذِيرًا وَلَكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ |
29 |
वे कहते है, "यह वादा कब पूरा होगा, यदि तुम सच्चे हो?" |
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وَيَقُولُونَ مَتَى هَذَا الْوَعْدُ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ |
30 |
कह दो, "तुम्हारे लिए एक विशेष दिन की अवधि नियत है, जिससे न एक घड़ी भर पीछे हटोगे और न आगे बढ़ोगे।" |
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قُل لَّكُم مِّيعَادُ يَوْمٍ لَّا تَسْتَأْخِرُونَ عَنْهُ سَاعَةً وَلَا تَسْتَقْدِمُونَ |
31 |
जिन लोगों ने इनकार किया वे कहते है, "हम इस क़ुरआन को कदापि न मानेंगे और न उसको जो इसके आगे है।" और यदि तुम देख पाते जब ज़ालिम अपने रब के सामने खड़े कर दिए जाएँगे। वे आपस में एक-दूसरे पर इल्ज़ाम डाल रहे होंगे। जो लोग कमज़ोर समझे गए वे उन लोगों से जो बड़े बनते थे कहेंगे, "यदि तुम न होते तो हम अवश्य ही ईमानवाले होते।" |
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وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لَن نُّؤْمِنَ بِهَذَا الْقُرْآنِ وَلَا بِالَّذِي بَيْنَ يَدَيْهِ وَلَوْ تَرَى إِذِ الظَّالِمُونَ مَوْقُوفُونَ عِندَ رَبِّهِمْ يَرْجِعُ بَعْضُهُمْ إِلَى بَعْضٍ الْقَوْلَ يَقُولُ الَّذِينَ اسْتُضْعِفُوا لِلَّذِينَ اسْتَكْبَرُوا لَوْلَا أَنتُمْ لَكُنَّا مُؤْمِنِينَ |
32 |
वे लोग जो बड़े बनते थे उन लोगों से जो कमज़ोर समझे गए थे, कहेंगे, "क्या हमने तुम्हे उस मार्गदर्शन से रोका था, वह तुम्हारे पास आया था? नहीं, बल्कि तुम स्वयं ही अपराधी हो।" |
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قَالَ الَّذِينَ اسْتَكْبَرُوا لِلَّذِينَ اسْتُضْعِفُوا أَنَحْنُ صَدَدْنَاكُمْ عَنِ الْهُدَى بَعْدَ إِذْ جَاءكُم بَلْ كُنتُم مُّجْرِمِينَ |
33 |
वे लोग कमज़ोर समझे गए थे बड़े बननेवालों से कहेंगे, "नहीं, बल्कि रात-दिन की मक्कारी थी जब तुम हमसे कहते थे कि हम अल्लाह के साथ कुफ़्र करें और दूसरों को उसका समकक्ष ठहराएँ।" जब वे यातना देखेंगे तो मन ही मन पछताएँगे और हम उन लोगों की गरदनों में जिन्होंने कुफ़्र की नीति अपनाई, तौक़ डाल देंगे। वे वही तो बदले में पाएँगे, जो वे करते रहे थे? |
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وَقَالَ الَّذِينَ اسْتُضْعِفُوا لِلَّذِينَ اسْتَكْبَرُوا بَلْ مَكْرُ اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ إِذْ تَأْمُرُونَنَا أَن نَّكْفُرَ بِاللَّهِ وَنَجْعَلَ لَهُ أَندَادًا وَأَسَرُّوا النَّدَامَةَ لَمَّا رَأَوُا الْعَذَابَ وَجَعَلْنَا الْأَغْلَالَ فِي أَعْنَاقِ الَّذِينَ كَفَرُوا هَلْ يُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ |
34 |
हमने जिस बस्ती में भी कोई सचेतकर्ता भेजा तो वहाँ के सम्पन्न लोगों ने यही कहा कि "जो कुछ देकर तुम्हें भेजा गया है, हम तो उसको नहीं मानते।" |
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وَمَا أَرْسَلْنَا فِي قَرْيَةٍ مِّن نَّذِيرٍ إِلَّا قَالَ مُتْرَفُوهَا إِنَّا بِمَا أُرْسِلْتُم بِهِ كَافِرُونَ |
35 |
उन्होंने यह भी कहा कि "हम तो धन और संतान में तुमसे बढ़कर है और हम यातनाग्रस्त होनेवाले नहीं।" |
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وَقَالُوا نَحْنُ أَكْثَرُ أَمْوَالًا وَأَوْلَادًا وَمَا نَحْنُ بِمُعَذَّبِينَ |
36 |
कहो, "निस्संदेह मेरा रब जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और जिसे चाहता है नपी-तुली देता है। किन्तु अधिकांश लोग जानते नहीं।" |
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قُلْ إِنَّ رَبِّي يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَن يَشَاء وَيَقْدِرُ وَلَكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ |
37 |
वह चीज़ न तुम्हारे धन है और न तुम्हारी सन्तान, जो तुम्हें हमसे निकट कर दे। अलबता, जो कोई ईमान लाया और उसने अच्छा कर्म किया, तो ऐसे ही लोग है जिनके लिए उसका कई गुना बदला है, जो उन्होंने किया। और वे ऊपरी मंजिल के कक्षों में निश्चिन्तता-पूर्वक रहेंगे |
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وَمَا أَمْوَالُكُمْ وَلَا أَوْلَادُكُم بِالَّتِي تُقَرِّبُكُمْ عِندَنَا زُلْفَى إِلَّا مَنْ آمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَأُوْلَئِكَ لَهُمْ جَزَاء الضِّعْفِ
بِمَا عَمِلُوا وَهُمْ فِي الْغُرُفَاتِ آمِنُونَ |
38 |
रहे वे लोग जो हमारी आयतों को मात करने के लिए प्रयासरत है, वे लाकर यातनाग्रस्त किए जाएँगे |
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وَالَّذِينَ يَسْعَوْنَ فِي آيَاتِنَا مُعَاجِزِينَ أُوْلَئِكَ فِي الْعَذَابِ مُحْضَرُونَ |
39 |
कह दो, "मेरा रब ही है जो अपने बन्दों में से जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और जिसके लिए चाहता है नपी-तुली कर देता है। और जो कुछ भी तुमने ख़र्च किया, उसकी जगह वह तुम्हें और देगा। वह सबसे अच्छा रोज़ी देनेवाला है।" |
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قُلْ إِنَّ رَبِّي يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَن يَشَاء مِنْ عِبَادِهِ وَيَقْدِرُ لَهُ وَمَا أَنفَقْتُم مِّن شَيْءٍ فَهُوَ يُخْلِفُهُ وَهُوَ خَيْرُ الرَّازِقِينَ |
40 |
याद करो जिस दिन वह उन सबको इकट्ठा करेगा, फिर फ़रिश्तों से कहेगा, "क्या तुम्ही को ये पूजते रहे है?" |
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وَيَوْمَ يَحْشُرُهُمْ جَمِيعًا ثُمَّ يَقُولُ لِلْمَلَائِكَةِ أَهَؤُلَاء إِيَّاكُمْ كَانُوا يَعْبُدُونَ |
41 |
वे कहेंगे, "महान है तू, हमारा निकटता का मधुर सम्बन्ध तो तुझी से है, उनसे नहीं; बल्कि बात यह है कि वे जिन्नों को पूजते थे। उनमें से अधिकतर उन्हीं पर ईमान रखते थे।" |
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قَالُوا سُبْحَانَكَ أَنتَ وَلِيُّنَا مِن دُونِهِم بَلْ كَانُوا يَعْبُدُونَ الْجِنَّ أَكْثَرُهُم بِهِم مُّؤْمِنُونَ |
42 |
"अतः आज न तो तुम परस्पर एक-दूसरे के लाभ का अधिकार रखते हो और न हानि का।" और हम उन ज़ालिमों से कहेंगे, "अब उस आग की यातना का मज़ा चखो, जिसे तुम झुठलाते रहे हो।" |
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فَالْيَوْمَ لَا يَمْلِكُ بَعْضُكُمْ لِبَعْضٍ نَّفْعًا وَلَا ضَرًّا وَنَقُولُ لِلَّذِينَ ظَلَمُوا ذُوقُوا عَذَابَ النَّارِ الَّتِي كُنتُم بِهَا تُكَذِّبُونَ |
43 |
उन्हें जब हमारी स्पष्ट़ आयतें पढ़कर सुनाई जाती है तो वे कहते है, "यह तो बस ऐसा व्यक्ति है जो चाहता है कि तुम्हें उनसे रोक दें जिनको तुम्हारे बाप-दादा पूजते रहे है।" और कहते है, "यह तो एक घड़ा हुआ झूठ है।" जिन लोगों ने इनकार किया उन्होंने सत्य के विषय में, जबकि वह उनके पास आया, कह दिया, "यह तो बस एक प्रत्यक्ष जादू है।" |
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وَإِذَا تُتْلَى عَلَيْهِمْ آيَاتُنَا بَيِّنَاتٍ قَالُوا مَا هَذَا إِلَّا رَجُلٌ يُرِيدُ أَن يَصُدَّكُمْ عَمَّا كَانَ يَعْبُدُ آبَاؤُكُمْ وَقَالُوا مَا هَذَا إِلَّا إِفْكٌ مُّفْتَرًى وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِلْحَقِّ لَمَّا جَاءهُمْ إِنْ هَذَا إِلَّا سِحْرٌ مُّبِينٌ |
44 |
हमने उन्हें न तो किताबे दी थीं, जिनको वे पढ़ते हों और न तुमसे पहले उनकी ओर कोई सावधान करनेवाला ही भेजा था |
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وَمَا آتَيْنَاهُم مِّن كُتُبٍ يَدْرُسُونَهَا وَمَا أَرْسَلْنَا إِلَيْهِمْ قَبْلَكَ مِن نَّذِيرٍ |
45 |
और झूठलाया उन लोगों ने भी जो उनसे पहले थे। और जो कुछ हमने उन्हें दिया था ये तो उसके दसवें भाग को भी नहीं पहुँचे है। तो उन्होंने मेरे रसूलों को झुठलाया। तो फिर कैसी रही मेरी यातना! |
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وَكَذَّبَ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ وَمَا بَلَغُوا مِعْشَارَ مَا آتَيْنَاهُمْ فَكَذَّبُوا رُسُلِي فَكَيْفَ كَانَ نَكِيرِ |
46 |
कहो, "मैं तुम्हें बस एक बात की नसीहत करता हूँ कि अल्लाह के लिए दो-दो औऱ एक-एक करके उठ रखे हो; फिर विचार करो। तुम्हारे साथी को कोई उन्माद नहीं है। वह तो एक कठोर यातना से पहले तुम्हें सचेत करनेवाला ही है।" |
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قُلْ إِنَّمَا أَعِظُكُم بِوَاحِدَةٍ أَن تَقُومُوا لِلَّهِ مَثْنَى وَفُرَادَى ثُمَّ تَتَفَكَّرُوا مَا بِصَاحِبِكُم مِّن جِنَّةٍ إِنْ هُوَ إِلَّا نَذِيرٌ لَّكُم بَيْنَ يَدَيْ عَذَابٍ شَدِيدٍ |
47 |
कहो, "मैं तुमसे कोई बदला नहीं माँगता वह तुम्हें ही मुबारक हो। मेरा बदला तो बस अल्लाह के ज़िम्मे है और वह हर चीज का साक्षी है।" |
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قُلْ مَا سَأَلْتُكُم مِّنْ أَجْرٍ فَهُوَ لَكُمْ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَى اللَّهِ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ |
48 |
कहो, "निश्चय ही मेरा रब सत्य को असत्य पर ग़ालिब करता है। वह परोक्ष की बातें भली-भाँथि जानता है।" |
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قُلْ إِنَّ رَبِّي يَقْذِفُ بِالْحَقِّ عَلَّامُ الْغُيُوبِ |
49 |
कह दो, "सत्य आ गया (असत्य मिट गया) और असत्य न तो आरम्भ करता है और न पुनरावृत्ति ही।" |
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قُلْ جَاء الْحَقُّ وَمَا يُبْدِئُ الْبَاطِلُ وَمَا يُعِيدُ |
50 |
कहो, "यदि मैं पथभ्रष्ट॥ हो जाऊँ तो पथभ्रष्ट होकर मैं अपना ही बुरा करूँगा, और यदि मैं सीधे मार्ग पर हूँ, तो इसका कारण वह प्रकाशना है जो मेरा रब मेरी ओर करता है। निस्संदेह वह सब कुछ सुनता है, निकट है।" |
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قُلْ إِن ضَلَلْتُ فَإِنَّمَا أَضِلُّ عَلَى نَفْسِي وَإِنِ اهْتَدَيْتُ فَبِمَا يُوحِي إِلَيَّ رَبِّي إِنَّهُ سَمِيعٌ قَرِيبٌ |
51 |
और यदि तुम देख लेते जब वे घबराए हुए होंगे; फिर बचकर भाग न सकेंगे और निकट स्थान ही से पकड़ लिए जाएँगे |
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وَلَوْ تَرَى إِذْ فَزِعُوا فَلَا فَوْتَ وَأُخِذُوا مِن مَّكَانٍ قَرِيبٍ |
52 |
और कहेंगे, "हम उसपर ईमान ले आए।" हालाँकि उनके लिए कहाँ सम्भव है कि इतने दूरस्थ स्थान से उसको पास सकें |
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وَقَالُوا آمَنَّا بِهِ وَأَنَّى لَهُمُ التَّنَاوُشُ مِن مَكَانٍ بَعِيدٍ |
53 |
इससे पहले तो उन्होंने उसका इनकार किया और दूरस्थ स्थान से बिन देखे तीर-तूक्के चलाते रहे |
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وَقَدْ كَفَرُوا بِهِ مِن قَبْلُ وَيَقْذِفُونَ بِالْغَيْبِ مِن مَّكَانٍ بَعِيدٍ |
54 |
उनके और उनकी चाहतों के बीच रोक लगा दी जाएगी; जिस प्रकार इससे पहले उनके सहमार्गी लोगों के साथ मामला किया गया। निश्चय ही वे डाँवाडोल कर देनेवाले संदेह में पड़े रहे हैं |
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وَحِيلَ بَيْنَهُمْ وَبَيْنَ مَا يَشْتَهُونَ كَمَا فُعِلَ بِأَشْيَاعِهِم مِّن قَبْلُ إِنَّهُمْ كَانُوا فِي شَكٍّ مُّرِيبٍ |