1 |
अलीफ़॰ लाम॰ मीम॰ |
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الم |
2 |
अल्लाह ही पूज्य हैं, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वह जीवन्त हैं, सबको सँम्भालने और क़ायम रखनेवाला |
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اللّهُ لا إِلَـهَ إِلاَّ هُوَ الْحَيُّ الْقَيُّومُ |
3 |
उसने तुमपर हक़ के साथ किताब उतारी जो पहले की (किताबों की) पुष्टि करती हैं, और उसने तौरात और इंजील उतारी |
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نَزَّلَ عَلَيْكَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ مُصَدِّقاً لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ وَأَنزَلَ التَّوْرَاةَ وَالإِنجِيلَ |
4 |
इससे पहले लोगों के मार्गदर्शन के लिए और उसने कसौटी भी उतारी। निस्संदेह जिन लोगों ने अल्लाह की आयतों का इनकार किया उनके लिए कठोर यातना हैं और अल्लाह प्रभुत्वशाली भी हैं और (बुराई का) बदला लेनेवाला भी |
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مِن قَبْلُ هُدًى لِّلنَّاسِ وَأَنزَلَ الْفُرْقَانَ إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ بِآيَاتِ اللّهِ لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ وَاللّهُ عَزِيزٌ ذُو انتِقَامٍ |
5 |
निस्संदेह अल्लाह से कोई चीज़ न धरती में छिपी हैं और न आकाश में |
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إِنَّ اللّهَ لاَ يَخْفَىَ عَلَيْهِ شَيْءٌ فِي الأَرْضِ وَلاَ فِي السَّمَاء |
6 |
वही हैं जो गर्भाशयों में, जैसा चाहता हैं, तुम्हारा रूप देता हैं। उस प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी के अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं |
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هُوَ الَّذِي يُصَوِّرُكُمْ فِي الأَرْحَامِ كَيْفَ يَشَاء لاَ إِلَـهَ إِلاَّ هُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ |
7 |
वही हैं जिसने तुमपर अपनी ओर से किताब उतारी, वे सुदृढ़ आयतें हैं जो किताब का मूल और सारगर्भित रूप हैं और दूसरी उपलक्षित, तो जिन लोगों के दिलों में टेढ़ हैं वे फ़ितना (गुमराही) का तलाश और उसके आशय और परिणाम की चाह में उसका अनुसरण करते हैं जो उपलक्षित हैं। जबकि उनका परिणाम बस अल्लाह ही जानता हैं, और वे जो ज्ञान में पक्के हैं, वे कहते हैं, "हम उसपर ईमान लाए, जो हर एक हमारे रब ही की ओर से हैं।" और चेतते तो केवल वही हैं जो बुद्धि और समझ रखते हैं |
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هُوَ الَّذِيَ أَنزَلَ عَلَيْكَ الْكِتَابَ مِنْهُ آيَاتٌ مُّحْكَمَاتٌ هُنَّ أُمُّ الْكِتَابِ وَأُخَرُ مُتَشَابِهَاتٌ فَأَمَّا الَّذِينَ في قُلُوبِهِمْ زَيْغٌ فَيَتَّبِعُونَ مَا تَشَابَهَ مِنْهُ ابْتِغَاء الْفِتْنَةِ وَابْتِغَاء تَأْوِيلِهِ وَمَا يَعْلَمُ تَأْوِيلَهُ إِلاَّ اللّهُ وَالرَّاسِخُونَ فِي الْعِلْمِ يَقُولُونَ آمَنَّا بِهِ كُلٌّ مِّنْ عِندِ رَبِّنَا وَمَا يَذَّكَّرُ إِلاَّ أُوْلُواْ الألْبَابِ |
8 |
हमारे रब! जब तू हमें सीधे मार्ग पर लगा चुका है तो इसके पश्चात हमारे दिलों में टेढ़ न पैदा कर और हमें अपने पास से दयालुता प्रदान कर। निश्चय ही तू बड़ा दाता है |
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رَبَّنَا لاَ تُزِغْ قُلُوبَنَا بَعْدَ إِذْ هَدَيْتَنَا وَهَبْ لَنَا مِن لَّدُنكَ رَحْمَةً إِنَّكَ أَنتَ الْوَهَّابُ |
9 |
हमारे रब! तू लोगों को एक दिन इकट्ठा करने वाला है, जिसमें कोई संदेह नही। निस्सन्देह अल्लाह अपने वचन के विरुद्ध जाने वाला नही है |
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رَبَّنَا إِنَّكَ جَامِعُ النَّاسِ لِيَوْمٍ لاَّ رَيْبَ فِيهِ إِنَّ اللّهَ لاَ يُخْلِفُ الْمِيعَادَ |
10 |
जिन लोगों ने इनकार की नीति अपनाई है अल्लाह के मुकाबले में तो न उसके माल उनके कुछ काम आएँगे और न उनकी संतान ही। और वही हैं जो आग (जहन्नम) का ईधन बनकर रहेंगे |
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إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ لَن تُغْنِيَ عَنْهُمْ أَمْوَالُهُمْ وَلاَ أَوْلاَدُهُم مِّنَ اللّهِ شَيْئًا وَأُولَـئِكَ هُمْ وَقُودُ النَّارِ |
11 |
जैसे फ़िरऔन के लोगों और उनसे पहले के लोगों का हाल हुआ। उन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया तो अल्लाह ने उन्हें उनके गुनाहों पर पकड़ लिया। और अल्लाह कठोर दंड देनेवाला है |
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كَدَأْبِ آلِ فِرْعَوْنَ وَالَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ كَذَّبُواْ بِآيَاتِنَا فَأَخَذَهُمُ اللّهُ بِذُنُوبِهِمْ وَاللّهُ شَدِيدُ الْعِقَابِ |
12 |
इनकार करनेवालों से कह दो, "शीघ्र ही तुम पराभूत होगे और जहन्नम की ओर हाँके जाओगं। और वह क्या ही बुरा ठिकाना है।" |
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قُل لِّلَّذِينَ كَفَرُواْ سَتُغْلَبُونَ وَتُحْشَرُونَ إِلَى جَهَنَّمَ وَبِئْسَ الْمِهَادُ |
13 |
तुम्हारे लिए उन दोनों गिरोहों में एक निशानी है जो (बद्र की) लड़ाई में एक-दूसरे के मुक़ाबिल हुए। एक गिरोह अल्लाह के मार्ग में लड़ रहा था, जबकि दूसरा विधर्मी था। ये अपनी आँखों देख रहे थे कि वे उनसे दुगने है। अल्लाह अपनी सहायता से जिसे चाहता है, शक्ति प्रदान करता है। दृष्टिवान लोगों के लिए इसमें बड़ी शिक्षा-सामग्री है |
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قَدْ كَانَ لَكُمْ آيَةٌ فِي فِئَتَيْنِ الْتَقَتَا فِئَةٌ تُقَاتِلُ فِي سَبِيلِ اللّهِ وَأُخْرَى كَافِرَةٌ يَرَوْنَهُم مِّثْلَيْهِمْ رَأْيَ الْعَيْنِ وَاللّهُ
يُؤَيِّدُ بِنَصْرِهِ مَن يَشَاء إِنَّ فِي ذَلِكَ لَعِبْرَةً لَّأُوْلِي الأَبْصَارِ |
14 |
मनुष्यों को चाहत की चीजों से प्रेम शोभायमान प्रतीत होता है कि वे स्त्रिमयाँ, बेटे, सोने-चाँदी के ढेर और निशान लगे (चुने हुए) घोड़े हैं और चौपाए और खेती। यह सब सांसारिक जीवन की सामग्री है और अल्लाह के पास ही अच्छा ठिकाना है |
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زُيِّنَ لِلنَّاسِ حُبُّ الشَّهَوَاتِ مِنَ النِّسَاء وَالْبَنِينَ وَالْقَنَاطِيرِ الْمُقَنطَرَةِ مِنَ الذَّهَبِ وَالْفِضَّةِ وَالْخَيْلِ الْمُسَوَّمَةِ وَالأَنْعَامِ وَالْحَرْثِ ذَلِكَ مَتَاعُ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَاللّهُ عِندَهُ حُسْنُ الْمَآبِ |
15 |
कहो, "क्या मैं तुम्हें इनसे उत्तम चीज का पता दूँ?" जो लोग अल्लाह का डर रखेंगे उनके लिए उनके रब के पास बाग़ है, जिनके नीचे नहरें बह रहीं होगी। उनमें वे सदैव रहेंगे। वहाँ पाक-साफ़ जोड़े होंगे और अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त होगी। और अल्लाह अपने बन्दों पर नज़र रखता है |
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قُلْ أَؤُنَبِّئُكُم بِخَيْرٍ مِّن ذَلِكُمْ لِلَّذِينَ اتَّقَوْا عِندَ رَبِّهِمْ جَنَّاتٌ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا وَأَزْوَاجٌ مُّطَهَّرَةٌ وَرِضْوَانٌ مِّنَ اللّهِ وَاللّهُ بَصِيرٌ بِالْعِبَادِ |
16 |
ये वे लोग है जो कहते है, "हमारे रब हम ईमान लाए है। अतः हमारे गुनाहों को क्षमा कर दे और हमें आग (जहन्नम) की यातना से बचा ले।" |
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الَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا إِنَّنَا آمَنَّا فَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ |
17 |
ये लोग धैर्य से काम लेनेवाले, सत्यवान और अत्यन्त आज्ञाकारी है, ये ((अल्लाह के मार्ग में) खर्च करते और रात की अंतिम घड़ियों में क्षमा की प्रार्थनाएँ करते हैं |
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الصَّابِرِينَ وَالصَّادِقِينَ وَالْقَانِتِينَ وَالْمُنفِقِينَ وَالْمُسْتَغْفِرِينَ بِالأَسْحَارِ |
18 |
अल्लाह ने गवाही दी कि उसके सिवा कोई पूज्य नहीं; और फ़रिश्तों ने और उन लोगों ने भी जो न्याय और संतुलन स्थापित करनेवाली एक सत्ता को जानते है। उस प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी के सिवा कोई पूज्य नहीं |
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شَهِدَ اللّهُ أَنَّهُ لاَ إِلَـهَ إِلاَّ هُوَ وَالْمَلاَئِكَةُ وَأُوْلُواْ الْعِلْمِ قَآئِمَاً بِالْقِسْطِ لاَ إِلَـهَ إِلاَّ هُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ |
19 |
दीन (धर्म) तो अल्लाह की स्पष्ट में इस्लाम ही है। जिन्हें किताब दी गई थी, उन्होंने तो इसमें इसके पश्चात विभेद किया कि ज्ञान उनके पास आ चुका था। ऐसा उन्होंने परस्पर दुराग्रह के कारण किया। जो अल्लाह की आयतों का इनकार करेगा तो अल्लाह भी जल्द हिसाब लेनेवाला है |
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إِنَّ الدِّينَ عِندَ اللّهِ الإِسْلاَمُ وَمَا اخْتَلَفَ الَّذِينَ أُوْتُواْ الْكِتَابَ إِلاَّ مِن بَعْدِ مَا جَاءهُمُ الْعِلْمُ بَغْيًا بَيْنَهُمْ وَمَن يَكْفُرْ بِآيَاتِ اللّهِ فَإِنَّ اللّهِ سَرِيعُ الْحِسَابِ |
20 |
अब यदि वे तुमसे झगड़े तो कह दो, "मैंने और मेरे अनुयायियों ने तो अपने आपको अल्लाह के हवाले कर दिया हैं।" और जिन्हें किताब मिली थी और जिनके पास किताब नहीं है, उनसे कहो, "क्या तुम भी इस्लाम को अपनाते हो?" यदि वे इस्लाम को अंगीकार कर लें तो सीधा मार्ग पर गए। और यदि मुँह मोड़े तो तुमपर केवल (संदेश) पहुँचा देने की ज़िम्मेदारी है। और अल्लाह स्वयं बन्दों को देख रहा है |
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فَإنْ حَآجُّوكَ فَقُلْ أَسْلَمْتُ وَجْهِيَ لِلّهِ وَمَنِ اتَّبَعَنِ وَقُل لِّلَّذِينَ أُوْتُواْ الْكِتَابَ وَالأُمِّيِّينَ أَأَسْلَمْتُمْ فَإِنْ أَسْلَمُواْ فَقَدِ اهْتَدَواْ وَّإِن تَوَلَّوْاْ فَإِنَّمَا عَلَيْكَ الْبَلاَغُ وَاللّهُ بَصِيرٌ بِالْعِبَادِ |
21 |
जो लोग अल्लाह की आयतों का इनकार करें और नबियों को नाहक क़त्ल करे और उन लोगों का क़ल्त करें जो न्याय के पालन करने को कहें, उनको दुखद यातना की मंगल सूचना दे दो |
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إِنَّ الَّذِينَ يَكْفُرُونَ بِآيَاتِ اللّهِ وَيَقْتُلُونَ النَّبِيِّينَ بِغَيْرِ حَقٍّ وَيَقْتُلُونَ الِّذِينَ يَأْمُرُونَ بِالْقِسْطِ مِنَ النَّاسِ فَبَشِّرْهُم بِعَذَابٍ أَلِيمٍ |
22 |
यही लोग हैं, जिनके कर्म दुनिया और आख़िरत में अकारथ गए और उनका सहायक कोई भी नहीं |
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أُولَـئِكَ الَّذِينَ حَبِطَتْ أَعْمَالُهُمْ فِي الدُّنْيَا وَالآخِرَةِ وَمَا لَهُم مِّن نَّاصِرِينَ |
23 |
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिन्हें ईश-ग्रंथ का एक हिस्सा प्रदान हुआ। उन्हें अल्लाह की किताब की ओर बुलाया जाता है कि वह उनके बीच निर्णय करे, फिर भी उनका एक गिरोह (उसकी) उपेक्षा करते हुए मुँह फेर लेता है? |
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أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ أُوْتُواْ نَصِيبًا مِّنَ الْكِتَابِ يُدْعَوْنَ إِلَى كِتَابِ اللّهِ لِيَحْكُمَ بَيْنَهُمْ ثُمَّ يَتَوَلَّى فَرِيقٌ مِّنْهُمْ وَهُم مُّعْرِضُونَ |
24 |
यह इसलिए कि वे कहते, "आग हमें नहीं छू सकती। हाँ, कुछ गिने-चुने दिनों (के कष्टों) की बात और है।" उनकी मनघड़ंत बातों ने, जो वे घड़ते रहे हैं, उन्हें धोखे में डाल रखा है |
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ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ قَالُواْ لَن تَمَسَّنَا النَّارُ إِلاَّ أَيَّامًا مَّعْدُودَاتٍ وَغَرَّهُمْ فِي دِينِهِم مَّا كَانُواْ يَفْتَرُونَ |
25 |
फिर क्या हाल होगा, जब हम उन्हें उस दिन इकट्ठा करेंगे, जिसके आने में कोई संदेह नहीं और प्रत्येक व्यक्ति को, जो कुछ उसने कमाया होगा, पूरा-पूरा मिल जाएगा; और उनके साथ अन्याय न होगा |
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فَكَيْفَ إِذَا جَمَعْنَاهُمْ لِيَوْمٍ لاَّ رَيْبَ فِيهِ وَوُفِّيَتْ كُلُّ نَفْسٍ مَّا كَسَبَتْ وَهُمْ لاَ يُظْلَمُونَ |
26 |
कहो, "ऐ अल्लाह, राज्य के स्वामी! तू जिसे चाहे राज्य दे और जिससे चाहे राज्य छीन ले, और जिसे चाहे इज़्ज़त (प्रभुत्व) प्रदान करे और जिसको चाहे अपमानित कर दे। तेरे ही हाथ में भलाई है। निस्संदेह तुझे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है |
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قُلِ اللَّهُمَّ مَالِكَ الْمُلْكِ تُؤْتِي الْمُلْكَ مَن تَشَاء وَتَنزِعُ الْمُلْكَ مِمَّن تَشَاء وَتُعِزُّ مَن تَشَاء وَتُذِلُّ مَن تَشَاء بِيَدِكَ الْخَيْرُ إِنَّكَ عَلَىَ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ |
27 |
"तू रात को दिन में पिरोता है और दिन को रात में पिरोता है। तू निर्जीव से सजीव को निकालता है और सजीव से निर्जीव को निकालता है, बेहिसाब देता है।" |
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تُولِجُ اللَّيْلَ فِي الْنَّهَارِ وَتُولِجُ النَّهَارَ فِي اللَّيْلِ وَتُخْرِجُ الْحَيَّ مِنَ الْمَيِّتِ وَتُخْرِجُ الَمَيَّتَ مِنَ الْحَيِّ وَتَرْزُقُ مَن تَشَاء بِغَيْرِ حِسَابٍ |
28 |
ईमानवालों को चाहिए कि वे ईमानवालों से हटकर इनकारवालों को अपना मित्र (राज़दार) न बनाएँ, और जो ऐसा करेगा, उसका अल्लाह से कोई सम्बन्ध नहीं, क्योंकि उससे सम्बद्ध यही बात है कि तुम उनसे बचो, जिस प्रकार वे तुमसे बचते है। और अल्लाह तुम्हें अपने आपसे डराता है, और अल्लाह ही की ओर लौटना है |
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لاَّ يَتَّخِذِ الْمُؤْمِنُونَ الْكَافِرِينَ أَوْلِيَاء مِن دُوْنِ الْمُؤْمِنِينَ وَمَن يَفْعَلْ ذَلِكَ فَلَيْسَ مِنَ اللّهِ فِي شَيْءٍ إِلاَّ أَن تَتَّقُواْ مِنْهُمْ تُقَاةً وَيُحَذِّرُكُمُ اللّهُ نَفْسَهُ وَإِلَى اللّهِ الْمَصِيرُ |
29 |
कह दो, "यदि तुम अपने दिलों की बात छिपाओ या उसे प्रकट करो, प्रत्येक दशा में अल्लाह उसे जान लेगा। और वह उसे भी जानता है, जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। और अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।" |
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قُلْ إِن تُخْفُواْ مَا فِي صُدُورِكُمْ أَوْ تُبْدُوهُ يَعْلَمْهُ اللّهُ وَيَعْلَمُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأرْضِ وَاللّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ |
30 |
जिस दिन प्रत्येक व्यक्ति अपनी की हुई भलाई और अपनी की हुई बुराई को सामने मौजूद पाएगा, वह कामना करेगा कि काश! उसके और उस दिन के बीच बहुत दूर का फ़ासला होता। और अल्लाह तुम्हें अपना भय दिलाता है, और वह अपने बन्दों के लिए अत्यन्त करुणामय है |
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يَوْمَ تَجِدُ كُلُّ نَفْسٍ مَّا عَمِلَتْ مِنْ خَيْرٍ مُّحْضَرًا وَمَا عَمِلَتْ مِن سُوَءٍ تَوَدُّ لَوْ أَنَّ بَيْنَهَا وَبَيْنَهُ أَمَدًا بَعِيدًا وَيُحَذِّرُكُمُ اللّهُ نَفْسَهُ وَاللّهُ رَؤُوفُ بِالْعِبَادِ |
31 |
कह दो, "यदि तुम अल्लाह से प्रेम करते हो तो मेरा अनुसरण करो, अल्लाह भी तुमसे प्रेम करेगा और तुम्हारे गुनाहों को क्षमा कर देगा। अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।" |
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قُلْ إِن كُنتُمْ تُحِبُّونَ اللّهَ فَاتَّبِعُونِي يُحْبِبْكُمُ اللّهُ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ وَاللّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ |
32 |
कह दो, "अल्लाह और रसूल का आज्ञापालन करो।" फिर यदि वे मुँह मोड़े तो अल्लाह भी इनकार करनेवालों से प्रेम नहीं करता |
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قُلْ أَطِيعُواْ اللّهَ وَالرَّسُولَ فإِن تَوَلَّوْاْ فَإِنَّ اللّهَ لاَ يُحِبُّ الْكَافِرِينَ |
33 |
अल्लाह ने आदम, नूह, इबराहीम की सन्तान और इमरान की सन्तान को सारे संसार की अपेक्षा प्राथमिकता देकर चुना |
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إِنَّ اللّهَ اصْطَفَى آدَمَ وَنُوحًا وَآلَ إِبْرَاهِيمَ وَآلَ عِمْرَانَ عَلَى الْعَالَمِينَ |
34 |
एक नस्त के रूप में, उसमें से एक पीढ़ी, दूसरी पीढ़ी से पैदा हुई। अल्लाह सब कुछ सुनता, जानता है |
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ذُرِّيَّةً بَعْضُهَا مِن بَعْضٍ وَاللّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ |
35 |
याद करो जब इमरान की स्त्री ने कहा, "मेरे रब! जो बच्चा मेरे पेट में है उसे मैंने हर चीज़ से छुड़ाकर भेट स्वरूप तुझे अर्पित किया। अतः तू उसे मेरी ओर से स्वीकार कर। निस्संदेह तू सब कुछ सुनता, जानता है।" |
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إِذْ قَالَتِ امْرَأَةُ عِمْرَانَ رَبِّ إِنِّي نَذَرْتُ لَكَ مَا فِي بَطْنِي مُحَرَّرًا فَتَقَبَّلْ مِنِّي إِنَّكَ أَنتَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ |
36 |
फिर जब उसके यहाँ बच्ची पैदा हुई तो उसने कहा, "मेरे रब! मेरे यहाँ तो लड़की पैदा हुई है।" - अल्लाह तो जानता ही था जो कुछ उसके यहाँ पैदा हुआ था। और वह लड़का उस लडकी की तरह नहीं हो सकता - "और मैंने उसका नाम मरयम रखा है और मैं उसे और उसकी सन्तान को तिरस्कृत शैतान (के उपद्रव) से सुरक्षित रखने के लिए तेरी शरण में देती हूँ।" |
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فَلَمَّا وَضَعَتْهَا قَالَتْ رَبِّ إِنِّي وَضَعْتُهَا أُنثَى وَاللّهُ أَعْلَمُ بِمَا وَضَعَتْ وَلَيْسَ الذَّكَرُ كَالأُنثَى وَإِنِّي سَمَّيْتُهَا مَرْيَمَ وِإِنِّي أُعِيذُهَا بِكَ وَذُرِّيَّتَهَا مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ |
37 |
अतः उसके रब ने उसका अच्छी स्वीकृति के साथ स्वागत किया और उत्तम रूप में उसे परवान चढ़ाया; और ज़करिया को उसका संरक्षक बनाया। जब कभी ज़करिया उसके पास मेहराब (इबादतगाह) में जाता, तो उसके पास कुछ रोज़ी पाता। उसने कहा, "ऐ मरयम! ये चीज़े तुझे कहाँ से मिलती है?" उसने कहा, "यह अल्लाह के पास से है।" निस्संदेह अल्लाह जिसे चाहता है, बेहिसाब देता है |
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فَتَقَبَّلَهَا رَبُّهَا بِقَبُولٍ حَسَنٍ وَأَنبَتَهَا نَبَاتًا حَسَنًا وَكَفَّلَهَا زَكَرِيَّا كُلَّمَا دَخَلَ عَلَيْهَا زَكَرِيَّا الْمِحْرَابَ وَجَدَ عِندَهَا رِزْقاً قَالَ يَا مَرْيَمُ أَنَّى لَكِ هَـذَا قَالَتْ هُوَ مِنْ عِندِ اللّهِ إنَّ اللّهَ يَرْزُقُ مَن يَشَاء بِغَيْرِ حِسَابٍ |
38 |
वही ज़करिया ने अपने रब को पुकारा, कहा, "मेरे रब! मुझे तू अपने पास से अच्छी सन्तान (अनुयायी) प्रदान कर। तू ही प्रार्थना का सुननेवाला है।" |
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هُنَالِكَ دَعَا زَكَرِيَّا رَبَّهُ قَالَ رَبِّ هَبْ لِي مِن لَّدُنْكَ ذُرِّيَّةً طَيِّبَةً إِنَّكَ سَمِيعُ الدُّعَاء |
39 |
तो फ़रिश्तों ने उसे आवाज़ दी, जबकि वह मेहराब में खड़ा नमाज़ पढ़ रहा था, "अल्लाह, तुझे यह्याि की शुभ-सूचना देता है, जो अल्लाह के एक कलिमें की पुष्टि करनेवाला, सरदार, अत्यन्त संयमी और अच्छे लोगो में से एक नबी होगा।" |
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فَنَادَتْهُ الْمَلآئِكَةُ وَهُوَ قَائِمٌ يُصَلِّي فِي الْمِحْرَابِ أَنَّ اللّهَ يُبَشِّرُكَ بِيَحْيَـى مُصَدِّقًا بِكَلِمَةٍ مِّنَ اللّهِ وَسَيِّدًا وَحَصُورًا وَنَبِيًّا مِّنَ الصَّالِحِينَ |
40 |
उसने कहा, "मेरे रब! मेरे यहाँ लड़का कैसे पैदा होगा, जबकि मुझे बुढापा आ गया है और मेरी पत्ऩी बाँझ है?" कहा, "इसी प्रकार अल्लाह जो चाहता है, करता है।" |
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قَالَ رَبِّ أَنَّىَ يَكُونُ لِي غُلاَمٌ وَقَدْ بَلَغَنِيَ الْكِبَرُ وَامْرَأَتِي عَاقِرٌ قَالَ كَذَلِكَ اللّهُ يَفْعَلُ مَا يَشَاء |
41 |
उसने कहा, "मेरे रब! मेरे लिए कोई आदेश निश्चित कर दे।" कहा, "तुम्हारे लिए आदेश यह है कि तुम लोगों से तीन दिन तक संकेत के सिवा कोई बातचीत न करो। अपने रब को बहुत अधिक याद करो और सायंकाल और प्रातः समय उसकी तसबीह (महिमागान) करते रहो।" |
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قَالَ رَبِّ اجْعَل لِّيَ آيَةً قَالَ آيَتُكَ أَلاَّ تُكَلِّمَ النَّاسَ ثَلاَثَةَ أَيَّامٍ إِلاَّ رَمْزًا وَاذْكُر رَّبَّكَ كَثِيراً وَسَبِّحْ بِالْعَشِيِّ وَالإِبْكَارِ |
42 |
और जब फ़रिश्तों ने कहा, "ऐ मरयम! अल्लाह ने तुझे चुन लिया और तुझे पवित्रता प्रदान की और तुझे संसार की स्त्रियों के मुक़ाबले मं चुन लिया |
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وَإِذْ قَالَتِ الْمَلاَئِكَةُ يَا مَرْيَمُ إِنَّ اللّهَ اصْطَفَاكِ وَطَهَّرَكِ وَاصْطَفَاكِ عَلَى نِسَاء الْعَالَمِينَ |
43 |
"ऐ मरयम! पूरी निष्ठा के साथ अपने रब की आज्ञा का पालन करती रह, और सजदा कर और झुकनेवालों के साथ तू भी झूकती रह।" |
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يَا مَرْيَمُ اقْنُتِي لِرَبِّكِ وَاسْجُدِي وَارْكَعِي مَعَ الرَّاكِعِينَ |
44 |
यह परोक्ष की सूचनाओं में से है, जिसकी वह्य हम तुम्हारी ओर कर रहे है। तुम तो उस समय उनके पास नहीं थे, जब वे अपनी क़लमों को फेंक रहे थ कि उनमें कौन मरयम का संरक्षक बने और न उनके समय थे, जब वे आपस में झगड़ रहे थे |
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ذَلِكَ مِنْ أَنبَاء الْغَيْبِ نُوحِيهِ إِلَيكَ وَمَا كُنتَ لَدَيْهِمْ إِذْ يُلْقُون أَقْلاَمَهُمْ أَيُّهُمْ يَكْفُلُ مَرْيَمَ وَمَا كُنتَ لَدَيْهِمْ إِذْ يَخْتَصِمُونَ |
45 |
ओर याद करो जब फ़रिश्तों ने कहा, "ऐ मरयम! अल्लाह तुझे अपने एक कलिमे (बात) की शुभ-सूचना देता है, जिसका नाम मसीह, मरयम का बेटा, ईसा होगा। वह दुनिया और आख़िरत मे आबरूवाला होगा और अल्लाह के निकटवर्ती लोगों में से होगा |
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إِذْ قَالَتِ الْمَلآئِكَةُ يَا مَرْيَمُ إِنَّ اللّهَ يُبَشِّرُكِ بِكَلِمَةٍ مِّنْهُ اسْمُهُ الْمَسِيحُ عِيسَى ابْنُ مَرْيَمَ وَجِيهًا فِي الدُّنْيَا وَالآخِرَةِ وَمِنَ الْمُقَرَّبِينَ |
46 |
वह लोगों से पालने में भी बात करेगा और बड़ी आयु को पहुँचकर भी। और वह नेक व्यक्ति होगा। - |
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وَيُكَلِّمُ النَّاسَ فِي الْمَهْدِ وَكَهْلاً وَمِنَ الصَّالِحِينَ |
47 |
वह बोली, "मेरे रब! मेरे यहाँ लड़का कहाँ से होगा, जबकि मुझे किसी आदमी ने छुआ तक नहीं?" कहा, "ऐसा ही होगा, अल्लाह जो चाहता है, पैदा करता है। जब वह किसी कार्य का निर्णय करता है तो उसको बस यही कहता है 'हो जा' तो वह हो जाता है |
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قَالَتْ رَبِّ أَنَّى يَكُونُ لِي وَلَدٌ وَلَمْ يَمْسَسْنِي بَشَرٌ قَالَ كَذَلِكِ اللّهُ يَخْلُقُ مَا يَشَاء إِذَا قَضَى أَمْرًا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُ كُن فَيَكُونُ |
48 |
"और उसको किताब, हिकमत, तौरात और इंजील का भी ज्ञान देगा |
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وَيُعَلِّمُهُ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَالتَّوْرَاةَ وَالإِنجِيلَ |
49 |
"और उसे इसराईल की संतान की ओर रसूल बनाकर भेजेगा। (वह कहेगा) कि मैं तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से एक निशाली लेकर आया हूँ कि मैं तुम्हारे लिए मिट्टी से पक्षी के रूप जैसी आकृति बनाता हूँ, फिर उसमें फूँक मारता हूँ, तो वह अल्लाह के आदेश से उड़ने लगती है। और मैं अल्लाह के आदेश से अंधे और कोढ़ी को अच्छा कर देता हूँ और मुर्दे को जीवित कर देता हूँ। और मैं तुम्हें बता देता हूँ जो कुछ तुम खाते हो और जो कुछ अपने घरों में इकट्ठा करके रखते हो। निस्संदेह इसमें तुम्हारे लिए एक निशानी है, यदि तुम माननेवाले हो |
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وَرَسُولاً إِلَى بَنِي إِسْرَائِيلَ أَنِّي قَدْ جِئْتُكُم بِآيَةٍ مِّن رَّبِّكُمْ أَنِّي أَخْلُقُ لَكُم مِّنَ الطِّينِ كَهَيْئَةِ الطَّيْرِ فَأَنفُخُ فِيهِ
فَيَكُونُ طَيْرًا بِإِذْنِ اللّهِ وَأُبْرِئُ الأكْمَهَ والأَبْرَصَ وَأُحْيِـي الْمَوْتَى بِإِذْنِ اللّهِ وَأُنَبِّئُكُم بِمَا تَأْكُلُونَ وَمَا تَدَّخِرُونَ
فِي بُيُوتِكُمْ إِنَّ فِي ذَلِكَ لآيَةً لَّكُمْ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ |
50 |
"और मैं तौरात की, जो मेरे आगे है, पुष्टि करता हूँ और इसलिए आया हूँ कि तुम्हारे लिए कुछ उन चीज़ों को हलाल कर दूँ जो तुम्हारे लिए हराम थी। और मैं तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से एक निशानी लेकर आया हूँ। अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो |
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وَمُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيَّ مِنَ التَّوْرَاةِ وَلِأُحِلَّ لَكُم بَعْضَ الَّذِي حُرِّمَ عَلَيْكُمْ وَجِئْتُكُم بِآيَةٍ مِّن رَّبِّكُمْ فَاتَّقُواْ اللّهَ وَأَطِيعُونِ |
51 |
"निस्संदेह अल्लाह मेरी भी रब है और तुम्हारा रब भी, अतः तुम उसी की बन्दगी करो। यही सीधा मार्ग है।" |
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إِنَّ اللّهَ رَبِّي وَرَبُّكُمْ فَاعْبُدُوهُ هَـذَا صِرَاطٌ مُّسْتَقِيمٌ |
52 |
फिर जब ईसा को उनके अविश्वास और इनकार का आभास हुआ तो उसने कहा, "कौन अल्लाह की ओर बढ़ने में मेरा सहायक होता है?" हवारियों (साथियों) ने कहा, "हम अल्लाह के सहायक हैं। हम अल्लाह पर ईमान लाए और गवाह रहिए कि हम मुस्लिम है |
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فَلَمَّا أَحَسَّ عِيسَى مِنْهُمُ الْكُفْرَ قَالَ مَنْ أَنصَارِي إِلَى اللّهِ قَالَ الْحَوَارِيُّونَ نَحْنُ أَنصَارُ اللّهِ آمَنَّا بِاللّهِ وَاشْهَدْ بِأَنَّا مُسْلِمُونَ |
53 |
"हमारे रब! तूने जो कुछ उतारा है, हम उसपर ईमान लाए और इस रसूल का अनुसरण स्वीकार किया। अतः तू हमें गवाही देनेवालों में लिख ले।" |
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رَبَّنَا آمَنَّا بِمَا أَنزَلَتْ وَاتَّبَعْنَا الرَّسُولَ فَاكْتُبْنَا مَعَ الشَّاهِدِينَ |
54 |
और वे चाल चले तो अल्लाह ने भी उसका तोड़ किया और अल्लाह उत्तम तोड़ करनेवाला है |
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وَمَكَرُواْ وَمَكَرَ اللّهُ وَاللّهُ خَيْرُ الْمَاكِرِينَ |
55 |
जब अल्लाह ने कहा, "ऐ ईसा! मैं तुझे अपने क़ब्जे में ले लूँगा और तुझे अपनी ओर उठा लूँगा और अविश्वासियों (की कुचेष्टाओं) से तुझे पाक कर दूँगा और तेरे अनुयायियों को क़ियामत के दिन तक लोगों के ऊपर रखूँगा, जिन्होंने इनकार किया। फिर मेरी ओर तुम्हें लौटना है। फिर मैं तुम्हारे बीच उन चीज़ों का फ़ैसला कर दूँगा, जिनके विषय में तुम विभेद करते रहे हो |
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إِذْ قَالَ اللّهُ يَا عِيسَى إِنِّي مُتَوَفِّيكَ وَرَافِعُكَ إِلَيَّ وَمُطَهِّرُكَ مِنَ الَّذِينَ كَفَرُواْ وَجَاعِلُ الَّذِينَ اتَّبَعُوكَ فَوْقَ الَّذِينَ كَفَرُواْ إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ ثُمَّ إِلَيَّ مَرْجِعُكُمْ فَأَحْكُمُ بَيْنَكُمْ فِيمَا كُنتُمْ فِيهِ تَخْتَلِفُونَ |
56 |
"तो जिन लोगों ने इनकार की नीति अपनाई, उन्हें दुनिया और आख़िरत में कड़ी यातना दूँगा। उनका कोई सहायक न होगा।" |
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فَأَمَّا الَّذِينَ كَفَرُواْ فَأُعَذِّبُهُمْ عَذَابًا شَدِيدًا فِي الدُّنْيَا وَالآخِرَةِ وَمَا لَهُم مِّن نَّاصِرِينَ |
57 |
रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उन्हें वह उनका पूरा-पूरा बदला देगा। अल्लाह अत्याचारियों से प्रेम नहीं करता |
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وَأَمَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُواْ الصَّالِحَاتِ فَيُوَفِّيهِمْ أُجُورَهُمْ وَاللّهُ لاَ يُحِبُّ الظَّالِمِينَ |
58 |
ये आयतें है और हिकमत (तत्वज्ञान) से परिपूर्ण अनुस्मारक, जो हम तुम्हें सुना रहे हैं |
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ذَلِكَ نَتْلُوهُ عَلَيْكَ مِنَ الآيَاتِ وَالذِّكْرِ الْحَكِيمِ |
59 |
निस्संदेह अल्लाह की दृष्टि में ईसा की मिसाल आदम जैसी है कि उसे मिट्टी से बनाया, फिर उससे कहा, "हो जा", तो वह हो जाता है |
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إِنَّ مَثَلَ عِيسَى عِندَ اللّهِ كَمَثَلِ آدَمَ خَلَقَهُ مِن تُرَابٍ ثِمَّ قَالَ لَهُ كُن فَيَكُونُ |
60 |
यह हक़ तुम्हारे रब की ओर से हैं, तो तुम संदेह में न पड़ना |
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الْحَقُّ مِن رَّبِّكَ فَلاَ تَكُن مِّن الْمُمْتَرِينَ |
61 |
अब इसके पश्चात कि तुम्हारे पास ज्ञान आ चुका है, कोई तुमसे इस विषय में कुतर्क करे तो कह दो, "आओ, हम अपने बेटों को बुला लें और तुम भी अपने बेटों को बुला लो, और हम अपनी स्त्रियों को बुला लें और तुम भी अपनी स्त्रियों को बुला लो, और हम अपने को और तुम अपने को ले आओ, फिर मिलकर प्रार्थना करें और झूठों पर अल्लाह की लानत भेजे।" |
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فَمَنْ حَآجَّكَ فِيهِ مِن بَعْدِ مَا جَاءكَ مِنَ الْعِلْمِ فَقُلْ تَعَالَوْاْ نَدْعُ أَبْنَاءنَا وَأَبْنَاءكُمْ وَنِسَاءنَا وَنِسَاءكُمْ وَأَنفُسَنَا وأَنفُسَكُمْ ثُمَّ نَبْتَهِلْ فَنَجْعَل لَّعْنَةُ اللّهِ عَلَى الْكَاذِبِينَ |
62 |
निस्संदेह यही सच्चा बयान है और अल्लाह के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं। और अल्लाह ही प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है |
/content/ayah/audio/hudhaify/003062.mp3
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إِنَّ هَـذَا لَهُوَ الْقَصَصُ الْحَقُّ وَمَا مِنْ إِلَـهٍ إِلاَّ اللّهُ وَإِنَّ اللّهَ لَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ |
63 |
फिर यदि वे लोग मुँह मोड़े तो अल्लाह फ़सादियों को भली-भाँति जानता है |
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فَإِن تَوَلَّوْاْ فَإِنَّ اللّهَ عَلِيمٌ بِالْمُفْسِدِينَ |
64 |
कहो, "ऐ किताबवालो! आओ एक ऐसी बात की ओर जिसे हमारे और तुम्हारे बीच समान मान्यता प्राप्त है; यह कि हम अल्लाह के अतिरिक्त किसी की बन्दगी न करें और न उसके साथ किसी चीज़ को साझी ठहराएँ और न परस्पर हममें से कोई एक-दूसरे को अल्लाह से हटकर रब बनाए।" फिर यदि वे मुँह मोड़े तो कह दो, "गवाह रहो, हम तो मुस्लिम (आज्ञाकारी) है।" |
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قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ تَعَالَوْاْ إِلَى كَلَمَةٍ سَوَاء بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمْ أَلاَّ نَعْبُدَ إِلاَّ اللّهَ وَلاَ نُشْرِكَ بِهِ شَيْئًا وَلاَ يَتَّخِذَ بَعْضُنَا بَعْضاً أَرْبَابًا مِّن دُونِ اللّهِ فَإِن تَوَلَّوْاْ فَقُولُواْ اشْهَدُواْ بِأَنَّا مُسْلِمُونَ |
65 |
"ऐ किताबवालो! तुम इबराहीम के विषय में हमसे क्यों झगड़ते हो? जबकि तौरात और इंजील तो उसके पश्चात उतारी गई है, तो क्या तुम समझ से काम नहीं लेते? |
/content/ayah/audio/hudhaify/003065.mp3
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يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لِمَ تُحَآجُّونَ فِي إِبْرَاهِيمَ وَمَا أُنزِلَتِ التَّورَاةُ وَالإنجِيلُ إِلاَّ مِن بَعْدِهِ أَفَلاَ تَعْقِلُونَ |
66 |
"ये तुम लोग हो कि उसके विषय में वाद-विवाद कर चुके जिसका तुम्हें कुछ ज्ञान था। अब उसके विषय में क्यों वाद-विवाद करते हो, जिसके विषय में तुम्हें कुछ भी ज्ञान नहीं? अल्लाह जानता है, तुम नहीं जानते" |
/content/ayah/audio/hudhaify/003066.mp3
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هَاأَنتُمْ هَؤُلاء حَاجَجْتُمْ فِيمَا لَكُم بِهِ عِلمٌ فَلِمَ تُحَآجُّونَ فِيمَا لَيْسَ لَكُم بِهِ عِلْمٌ وَاللّهُ يَعْلَمُ وَأَنتُمْ لاَ تَعْلَمُونَ |
67 |
इबराहीम न यहूदी था और न ईसाई, बल्कि वह तो एक ओर को होकर रहनेवाला मुस्लिम (आज्ञाकारी) था। वह कदापि मुशरिकों में से न था |
/content/ayah/audio/hudhaify/003067.mp3
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مَا كَانَ إِبْرَاهِيمُ يَهُودِيًّا وَلاَ نَصْرَانِيًّا وَلَكِن كَانَ حَنِيفًا مُّسْلِمًا وَمَا كَانَ مِنَ الْمُشْرِكِينَ |
68 |
निस्संदेह इबराहीम से सबसे अधिक निकटता का सम्बन्ध रखनेवाले वे लोग है जिन्होंने उसका अनुसरण किया, और यह नबी और ईमानवाले लोग। और अल्लाह ईमानवालों को समर्थक एवं सहायक है |
/content/ayah/audio/hudhaify/003068.mp3
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إِنَّ أَوْلَى النَّاسِ بِإِبْرَاهِيمَ لَلَّذِينَ اتَّبَعُوهُ وَهَـذَا النَّبِيُّ وَالَّذِينَ آمَنُواْ وَاللّهُ وَلِيُّ الْمُؤْمِنِينَ |
69 |
किताबवालों में से एक गिरोह के लोगों की कामना है कि काश! वे तुम्हें पथभ्रष्ट कर सकें, जबकि वे केवल अपने-आपकों पथभ्रष्ट कर रहे है! किन्तु उन्हें इसका एहसास नहीं |
/content/ayah/audio/hudhaify/003069.mp3
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وَدَّت طَّآئِفَةٌ مِّنْ أَهْلِ الْكِتَابِ لَوْ يُضِلُّونَكُمْ وَمَا يُضِلُّونَ إِلاَّ أَنفُسَهُمْ وَمَا يَشْعُرُونَ |
70 |
ऐ किताबवालों! तुम अल्लाह की आयतों का इनकार क्यों करते हो, जबकि तुम स्वयं गवाह हो? |
/content/ayah/audio/hudhaify/003070.mp3
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يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لِمَ تَكْفُرُونَ بِآيَاتِ اللّهِ وَأَنتُمْ تَشْهَدُونَ |
71 |
ऐ किताबवालो! सत्य को असत्य के साथ क्यों गड्ड-मड्ड करते और जानते-बूझते हुए सत्य को छिपाते हो? |
/content/ayah/audio/hudhaify/003071.mp3
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يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لِمَ تَلْبِسُونَ الْحَقَّ بِالْبَاطِلِ وَتَكْتُمُونَ الْحَقَّ وَأَنتُمْ تَعْلَمُونَ |
72 |
किताबवालों में से एक गिरोह कहता है, "ईमानवालो पर जो कुछ उतरा है, उस पर प्रातःकाल ईमान लाओ और संध्या समय उसका इनकार कर दो, ताकि वे फिर जाएँ |
/content/ayah/audio/hudhaify/003072.mp3
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وَقَالَت طَّآئِفَةٌ مِّنْ أَهْلِ الْكِتَابِ آمِنُواْ بِالَّذِيَ أُنزِلَ عَلَى الَّذِينَ آمَنُواْ وَجْهَ النَّهَارِ وَاكْفُرُواْ آخِرَهُ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ |
73 |
"और तुम अपने धर्म के अनुयायियों के अतिरिक्त किसी पर विश्वास न करो। कह दो, वास्तविक मार्गदर्शन तो अल्लाह का मार्गदर्शन है - कि कहीं जो चीज़ तुम्हें प्राप्त हो जाए, या वे तुम्हारे रब के सामने तुम्हारे ख़िलाफ़ हुज्जत कर सकें।" कह दो, "बढ़-चढ़कर प्रदान करना तो अल्लाह के हाथ में है, जिसे चाहता है प्रदान करता है। और अल्लाह बड़ी समाईवाला, सब कुछ जाननेवाला है |
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وَلاَ تُؤْمِنُواْ إِلاَّ لِمَن تَبِعَ دِينَكُمْ قُلْ إِنَّ الْهُدَى هُدَى اللّهِ أَن يُؤْتَى أَحَدٌ مِّثْلَ مَا أُوتِيتُمْ أَوْ يُحَآجُّوكُمْ عِندَ رَبِّكُمْ قُلْ إِنَّ الْفَضْلَ بِيَدِ اللّهِ يُؤْتِيهِ مَن يَشَاء وَاللّهُ وَاسِعٌ عَلِيمٌ |
74 |
"वह जिसे चाहता है अपनी रहमत (दयालुता) के लिए ख़ास कर लेता है। और अल्लाह बड़ी उदारता दर्शानेवाला है।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/003074.mp3
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يَخْتَصُّ بِرَحْمَتِهِ مَن يَشَاء وَاللّهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيمِ |
75 |
और किताबवालों में कोई तो ऐसा है कि यदि तुम उसके पास धन-दौलच का एक ढेर भी अमानत रख दो तो वह उसे तुम्हें लौटा देगा। और उनमें कोई ऐसा है कि यदि तुम एक दीनार भी उसकी अमानत में रखों, तो जब तक कि तुम उसके सिर पर सवार न हो, वह उसे तुम्हें अदा नहीं करेगा। यह इसलिए कि वे कहते है, "उन लोगों के विषय में जो किताबवाले नहीं हैं हमारी कोई पकड़ नहीं।" और वे जानते-बूझते अल्लाह पर झूठ मढ़ते है |
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وَمِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ مَنْ إِن تَأْمَنْهُ بِقِنطَارٍ يُؤَدِّهِ إِلَيْكَ وَمِنْهُم مَّنْ إِن تَأْمَنْهُ بِدِينَارٍ لاَّ يُؤَدِّهِ إِلَيْكَ إِلاَّ مَا دُمْتَ عَلَيْهِ قَآئِمًا ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ قَالُواْ لَيْسَ عَلَيْنَا فِي الأُمِّيِّينَ سَبِيلٌ وَيَقُولُونَ عَلَى اللّهِ الْكَذِبَ وَهُمْ يَعْلَمُونَ |
76 |
क्यों नहीं, जो कोई अपनी प्रतिज्ञा पूरी करेगा और डर रखेगा, तो अल्लाह भी डर रखनेवालों से प्रेम करता है |
/content/ayah/audio/hudhaify/003076.mp3
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بَلَى مَنْ أَوْفَى بِعَهْدِهِ وَاتَّقَى فَإِنَّ اللّهَ يُحِبُّ الْمُتَّقِينَ |
77 |
रहे वे लोग जो अल्लाह की प्रतिज्ञा और अपनी क़समों का थोड़े मूल्य पर सौदा करते हैं, उनका आख़िरत में कोई हिस्सा नहीं। अल्लाह न तो उनसे बात करेगा और न क़ियामत के दिन उनकी ओर देखेगा, और न ही उन्हें निखारेगा। उनके लिए तो दुखद यातना है |
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إِنَّ الَّذِينَ يَشْتَرُونَ بِعَهْدِ اللّهِ وَأَيْمَانِهِمْ ثَمَنًا قَلِيلاً أُوْلَـئِكَ لاَ خَلاَقَ لَهُمْ فِي الآخِرَةِ وَلاَ يُكَلِّمُهُمُ اللّهُ وَلاَ يَنظُرُ إِلَيْهِمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَلاَ يُزَكِّيهِمْ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ |
78 |
उनमें कुछ लोग ऐसे है जो किताब पढ़ते हुए अपनी ज़बानों का इस प्रकार उलट-फेर करते है कि तुम समझों कि वह किताब ही में से है, जबकि वह किताब में से नहीं होता। और वे कहते है, "यह अल्लाह की ओर से है।" जबकि वह अल्लाह की ओर से नहीं होता। और वे जानते-बूझते झूठ गढ़कर अल्लाह पर थोपते है |
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وَإِنَّ مِنْهُمْ لَفَرِيقًا يَلْوُونَ أَلْسِنَتَهُم بِالْكِتَابِ لِتَحْسَبُوهُ مِنَ الْكِتَابِ وَمَا هُوَ مِنَ الْكِتَابِ وَيَقُولُونَ هُوَ مِنْ عِندِ اللّهِ وَمَا هُوَ مِنْ عِندِ اللّهِ وَيَقُولُونَ عَلَى اللّهِ الْكَذِبَ وَهُمْ يَعْلَمُونَ |
79 |
किसी मनुष्य के लिए यह सम्भव न था कि अल्लाह उसे किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) और पैग़म्बरी प्रदान करे और वह लोगों से कहने लगे, "तुम अल्लाह को छोड़कर मेरे उपासक बनो।" बल्कि वह तो यही कहेगा कि, "तुम रबवाले बनो, इसलिए कि तुम किताब की शिक्षा देते हो और इसलिए कि तुम स्वयं भी पढ़ते हो।" |
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مَا كَانَ لِبَشَرٍ أَن يُؤْتِيَهُ اللّهُ الْكِتَابَ وَالْحُكْمَ وَالنُّبُوَّةَ ثُمَّ يَقُولَ لِلنَّاسِ كُونُواْ عِبَادًا لِّي مِن دُونِ اللّهِ وَلَـكِن كُونُواْ رَبَّانِيِّينَ بِمَا كُنتُمْ تُعَلِّمُونَ الْكِتَابَ وَبِمَا كُنتُمْ تَدْرُسُونَ |
80 |
और न वह तुम्हें इस बात का हुक्म देगा कि तुम फ़रिश्तों और नबियों को अपना रब बना लो। क्या वह तुम्हें अधर्म का हुक्म देगा, जबकि तुम (उसके) आज्ञाकारी हो? |
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وَلاَ يَأْمُرَكُمْ أَن تَتَّخِذُواْ الْمَلاَئِكَةَ وَالنِّبِيِّيْنَ أَرْبَابًا أَيَأْمُرُكُم بِالْكُفْرِ بَعْدَ إِذْ أَنتُم مُّسْلِمُونَ |
81 |
और याद करो जब अल्लाह ने नबियों के सम्बन्ध में वचन लिया था, "मैंने तुम्हें जो कुछ किताब और हिकमत प्रदान की, इसके पश्चात तुम्हारे पास कोई रसूल उसकी पुष्टि करता हुआ आए जो तुम्हारे पास मौजूद है, तो तुम अवश्य उस पर ईमान लाओगे और निश्चय ही उसकी सहायता करोगे।" कहा, "क्या तुमने इक़रार किया? और इसपर मेरी ओर से डाली हुई जिम्मेदारी को बोझ उठाया?" उन्होंने कहा, "हमने इक़रार किया।" कहा, "अच्छा तो गवाह किया और मैं भी तुम्हारे साथ गवाह हूँ।" |
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وَإِذْ أَخَذَ اللّهُ مِيثَاقَ النَّبِيِّيْنَ لَمَا آتَيْتُكُم مِّن كِتَابٍ وَحِكْمَةٍ ثُمَّ جَاءكُمْ رَسُولٌ مُّصَدِّقٌ لِّمَا مَعَكُمْ لَتُؤْمِنُنَّ
بِهِ وَلَتَنصُرُنَّهُ قَالَ أَأَقْرَرْتُمْ وَأَخَذْتُمْ عَلَى ذَلِكُمْ إِصْرِي قَالُواْ أَقْرَرْنَا قَالَ فَاشْهَدُواْ وَأَنَاْ مَعَكُم مِّنَ الشَّاهِدِينَ |
82 |
फिर इसके बाद जो फिर गए, तो ऐसे ही लोग अवज्ञाकारी है |
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فَمَن تَوَلَّى بَعْدَ ذَلِكَ فَأُوْلَـئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَ |
83 |
अब क्या इन लोगों को अल्लाह के दीन (धर्म) के सिवा किसी और दीन की तलब है, हालाँकि आकाशों और धरती में जो कोई भी है, स्वेच्छापूर्वक या विवश होकर उसी के आगे झुका हुआ है। और उसी की ओर सबको लौटना है? |
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أَفَغَيْرَ دِينِ اللّهِ يَبْغُونَ وَلَهُ أَسْلَمَ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ طَوْعًا وَكَرْهًا وَإِلَيْهِ يُرْجَعُونَ |
84 |
कहो, "हम तो अल्लाह पर और उस चीज़ पर ईमान लाए जो हम पर उतरी है, और जो इबराहीम, इसमाईल, इसहाक़ और याकूब़ और उनकी सन्तान पर उतरी उसपर भी, और जो मूसा और ईसा और दूसरे नबियो को उनके रब की ओर से प्रदान हुई (उसपर भी हम ईमान रखते है) । हम उनमें से किसी को उस ओर से प्रदान हुई (उसपर भी हम ईमान रखते है) । हम उनमें से किसी को उस सम्बन्ध से अलग नहीं करते जो उनके बीच पाया जाता है, और हम उसी के आज्ञाकारी (मुस्लिम) है।" |
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قُلْ آمَنَّا بِاللّهِ وَمَا أُنزِلَ عَلَيْنَا وَمَا أُنزِلَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ وَالأَسْبَاطِ وَمَا أُوتِيَ مُوسَى وَعِيسَى وَالنَّبِيُّونَ مِن رَّبِّهِمْ لاَ نُفَرِّقُ بَيْنَ أَحَدٍ مِّنْهُمْ وَنَحْنُ لَهُ مُسْلِمُونَ |
85 |
जो इस्लाम के अतिरिक्त कोई और दीन (धर्म) तलब करेगा तो उसकी ओर से कुछ भी स्वीकार न किया जाएगा। और आख़िरत में वह घाटा उठानेवालों में से होगा |
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وَمَن يَبْتَغِ غَيْرَ الإِسْلاَمِ دِينًا فَلَن يُقْبَلَ مِنْهُ وَهُوَ فِي الآخِرَةِ مِنَ الْخَاسِرِينَ |
86 |
अल्लाह उन लोगों को कैसे मार्ग दिखाएगा, जिन्होंने अपने ईमान के पश्चात अधर्म और इनकार की नीति अपनाई, जबकि वे स्वयं इस बात की गवाही दे चुके हैं कि यह रसूल सच्चा है और उनके पास स्पष्ट निशानियाँ भी आ चुकी हैं? अल्लाह अत्याचारी लोगों को मार्ग नहीं दिखाया करता |
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كَيْفَ يَهْدِي اللّهُ قَوْمًا كَفَرُواْ بَعْدَ إِيمَانِهِمْ وَشَهِدُواْ أَنَّ الرَّسُولَ حَقٌّ وَجَاءهُمُ الْبَيِّنَاتُ وَاللّهُ لاَ يَهْدِي الْقَوْمَ
الظَّالِمِينَ |
87 |
उन लोगों का बदला यही है कि उनपर अल्लाह और फ़रिश्तों और सारे मनुष्यों की लानत है |
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أُوْلَـئِكَ جَزَآؤُهُمْ أَنَّ عَلَيْهِمْ لَعْنَةَ اللّهِ وَالْمَلآئِكَةِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ |
88 |
इसी दशा में वे सदैव रहेंगे, न उनकी यातना हल्की होगी और न उन्हें मुहलत ही दी जाएगी |
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خَالِدِينَ فِيهَا لاَ يُخَفَّفُ عَنْهُمُ الْعَذَابُ وَلاَ هُمْ يُنظَرُونَ |
89 |
हाँ, जिन लोगों ने इसके पश्चात तौबा कर ली और अपनी नीति को सुधार लिया तो निस्संदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है |
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إِلاَّ الَّذِينَ تَابُواْ مِن بَعْدِ ذَلِكَ وَأَصْلَحُواْ فَإِنَّ الله غَفُورٌ رَّحِيمٌ |
90 |
रहे वे लोग जिन्होंने अपने ईमान के पश्चात इनकार किया और अपने इनकार में बढ़ते ही गए, उनकी तौबा कदापि स्वीकार न होगी। वास्तव में वही पथभ्रष्ट हैं |
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إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ بَعْدَ إِيمَانِهِمْ ثُمَّ ازْدَادُواْ كُفْرًا لَّن تُقْبَلَ تَوْبَتُهُمْ وَأُوْلَـئِكَ هُمُ الضَّآلُّونَ |
91 |
निस्संदेह जिन लोगों ने इनकार किया और इनकार ही की दशा में मरे, तो उनमें किसी से धरती के बराबर सोना भी, यदि उसने प्राण-मुक्ति के लिए दिया हो, कदापि स्वीकार नहीं किया जाएगा। ऐसे लोगों के लिए दुखद यातना है और उनका कोई सहायक न होगा |
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إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ وَمَاتُواْ وَهُمْ كُفَّارٌ فَلَن يُقْبَلَ مِنْ أَحَدِهِم مِّلْءُ الأرْضِ ذَهَبًا وَلَوِ افْتَدَى بِهِ أُوْلَـئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ وَمَا لَهُم مِّن نَّاصِرِينَ |
92 |
तुम नेकी और वफ़ादारी के दर्जे को नहीं पहुँच सकते, जब तक कि उन चीज़ो को (अल्लाह के मार्ग में) ख़र्च न करो, जो तुम्हें प्रिय है। और जो चीज़ भी तुम ख़र्च करोगे, निश्चय ही अल्लाह को उसका ज्ञान होगा |
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لَن تَنَالُواْ الْبِرَّ حَتَّى تُنفِقُواْ مِمَّا تُحِبُّونَ وَمَا تُنفِقُواْ مِن شَيْءٍ فَإِنَّ اللّهَ بِهِ عَلِيمٌ |
93 |
खाने की सारी चीज़े इसराईल की संतान के लिए हलाल थी, सिवाय उन चीज़ों के जिन्हें तौरात के उतरने से पहले इसराईल ने स्वयं अपने हराम कर लिया था। कहो, "यदि तुम सच्चे हो तो तौरात लाओ और उसे पढ़ो।" |
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كُلُّ الطَّعَامِ كَانَ حِـلاًّ لِّبَنِي إِسْرَائِيلَ إِلاَّ مَا حَرَّمَ إِسْرَائِيلُ عَلَى نَفْسِهِ مِن قَبْلِ أَن تُنَزَّلَ التَّوْرَاةُ قُلْ فَأْتُواْ بِالتَّوْرَاةِ فَاتْلُوهَا إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ |
94 |
अब इसके पश्चात भी जो व्यक्ति झूठी बातें अल्लाह से जोड़े, तो ऐसे ही लोग अत्याचारी है |
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فَمَنِ افْتَرَىَ عَلَى اللّهِ الْكَذِبَ مِن بَعْدِ ذَلِكَ فَأُوْلَـئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ |
95 |
कहो, "अल्लाह ने सच कहा है; अतः इबराहीम के तरीक़े का अनुसरण करो, जो हर ओर से कटकर एक का हो गया था और मुशरिकों में से न था |
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قُلْ صَدَقَ اللّهُ فَاتَّبِعُواْ مِلَّةَ إِبْرَاهِيمَ حَنِيفًا وَمَا كَانَ مِنَ الْمُشْرِكِينَ |
96 |
"निस्ंसदेह इबादत के लिए पहला घर जो 'मानव के लिए' बनाया गया वहीं है जो मक्का में है, बरकतवाला और सर्वथा मार्गदर्शन, संसारवालों के लिए |
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إِنَّ أَوَّلَ بَيْتٍ وُضِعَ لِلنَّاسِ لَلَّذِي بِبَكَّةَ مُبَارَكًا وَهُدًى لِّلْعَالَمِينَ |
97 |
"उसमें स्पष्ट निशानियाँ है, वह इबराहीम का स्थल है। और जिसने उसमें प्रवेश किया, वह निश्चिन्त हो गया। लोगों पर अल्लाह का हक़ है कि जिसको वहाँ तक पहुँचने की सामर्थ्य प्राप्त हो, वह इस घर का हज करे, और जिसने इनकार किया तो (इस इनकार से अल्लाह का कुछ नहीं बिगड़ता) अल्लाह तो सारे संसार से निरपेक्ष है।" |
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فِيهِ آيَاتٌ بَيِّـنَاتٌ مَّقَامُ إِبْرَاهِيمَ وَمَن دَخَلَهُ كَانَ آمِنًا وَلِلّهِ عَلَى النَّاسِ حِجُّ الْبَيْتِ مَنِ اسْتَطَاعَ إِلَيْهِ سَبِيلاً وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ الله غَنِيٌّ عَنِ الْعَالَمِينَ |
98 |
कहो, "ऐ किताबवालों! तुम अल्लाह की आयतों का इनकार क्यों करते हो, जबकि जो कुछ तुम कर रहे हो, अल्लाह की दृष्टिअ में है?" |
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قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لِمَ تَكْفُرُونَ بِآيَاتِ اللّهِ وَاللّهُ شَهِيدٌ عَلَى مَا تَعْمَلُونَ |
99 |
कहो, "ऐ किताबवालो! तुम ईमान लानेवालों को अल्लाह के मार्ग से क्यो रोकते हो, तुम्हें उसमें किसी टेढ़ की तलाश रहती है, जबकि तुम भली-भाँति वास्तविकता से अवगत हो और जो कुछ तुम कर रहे हो, अल्लाह उससे बेख़बर नहीं है।" |
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قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لِمَ تَصُدُّونَ عَن سَبِيلِ اللّهِ مَنْ آمَنَ تَبْغُونَهَا عِوَجًا وَأَنتُمْ شُهَدَاء وَمَا اللّهُ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ |
100 |
ऐ ईमान लानेवालो! यदि तुमने उनके किसी गिरोह की बात माल ली, जिन्हें किताब मिली थी, तो वे तुम्हारे ईमान लाने के पश्चात फिर तुम्हें अधर्मी बना देंगे |
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يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوَاْ إِن تُطِيعُواْ فَرِيقًا مِّنَ الَّذِينَ أُوتُواْ الْكِتَابَ يَرُدُّوكُم بَعْدَ إِيمَانِكُمْ كَافِرِينَ |
101 |
अब तुम इनकार कैसे कर सकते हो, जबकि तुम्हें अल्लाह की आयतें पढ़कर सुनाई जा रही है और उसका रसूल तुम्हारे बीच मौजूद है? जो कोई अल्लाह को मज़बूती से पकड़ ले, वह सीधे मार्ग पर आ गया |
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وَكَيْفَ تَكْفُرُونَ وَأَنتُمْ تُتْلَى عَلَيْكُمْ آيَاتُ اللّهِ وَفِيكُمْ رَسُولُهُ وَمَن يَعْتَصِم بِاللّهِ فَقَدْ هُدِيَ إِلَى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ |
102 |
ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह का डर रखो, जैसाकि उसका डर रखने का हक़ है। और तुम्हारी मृत्यु बस इस दशा में आए कि तुम मुस्लिम (आज्ञाकारी) हो |
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يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اتَّقُواْ اللّهَ حَقَّ تُقَاتِهِ وَلاَ تَمُوتُنَّ إِلاَّ وَأَنتُم مُّسْلِمُونَ |
103 |
और सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़ लो और विभेद में न पड़ो। और अल्लाह की उस कृपा को याद करो जो तुमपर हुई। जब तुम आपस में एक-दूसरे के शत्रु थे तो उसने तुम्हारे दिलों को परस्पर जोड़ दिया और तुम उसकी कृपा से भाई-भाई बन गए। तुम आग के एक गड्ढे के किनारे खड़े थे, तो अल्लाह ने उससे तुम्हें बचा लिया। इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयते खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि तुम मार्ग पा लो |
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وَاعْتَصِمُواْ بِحَبْلِ اللّهِ جَمِيعًا وَلاَ تَفَرَّقُواْ وَاذْكُرُواْ نِعْمَتَ اللّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ كُنتُمْ أَعْدَاء فَأَلَّفَ بَيْنَ قُلُوبِكُمْ فَأَصْبَحْتُم بِنِعْمَتِهِ إِخْوَانًا وَكُنتُمْ عَلَىَ شَفَا حُفْرَةٍ مِّنَ النَّارِ فَأَنقَذَكُم مِّنْهَا كَذَلِكَ يُبَيِّنُ اللّهُ لَكُمْ آيَاتِهِ لَعَلَّكُمْ تَهْتَدُونَ |
104 |
और तुम्हें एक ऐसे समुदाय का रूप धारण कर लेना चाहिए जो नेकी की ओर बुलाए और भलाई का आदेश दे और बुराई से रोके। यही सफलता प्राप्त करनेवाले लोग है |
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وَلْتَكُن مِّنكُمْ أُمَّةٌ يَدْعُونَ إِلَى الْخَيْرِ وَيَأْمُرُونَ بِالْمَعْرُوفِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنكَرِ وَأُوْلَـئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ |
105 |
तुम उन लोगों की तरह न हो जाना जो विभेद में पड़ गए, और इसके पश्चात कि उनके पास खुली निशानियाँ आ चुकी थी, वे विभेद में पड़ गए। ये वही लोग है, जिनके लिए बड़ी (घोर) यातना है। (यह यातना उस दिन होगी) |
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وَلاَ تَكُونُواْ كَالَّذِينَ تَفَرَّقُواْ وَاخْتَلَفُواْ مِن بَعْدِ مَا جَاءهُمُ الْبَيِّنَاتُ وَأُوْلَـئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ |
106 |
जिस दिन कितने ही चेहरे उज्ज्वल होंगे और कितने ही चेहरे काले पड़ जाएँगे, तो जिनके चेहेर काले पड़ गए होंगे (वे सदा यातना में ग्रस्त रहेंगे। खुली निशानियाँ आने का बाद जिन्होंने विभेद किया) उनसे कहा जाएगा, "क्या तुमने ईमान के पश्चात इनकार की नीति अपनाई? तो लो अब उस इनकार के बदले में जो तुम करते रहे हो, यातना का मज़ा चखो।" |
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يَوْمَ تَبْيَضُّ وُجُوهٌ وَتَسْوَدُّ وُجُوهٌ فَأَمَّا الَّذِينَ اسْوَدَّتْ وُجُوهُهُمْ أَكْفَرْتُم بَعْدَ إِيمَانِكُمْ فَذُوقُواْ الْعَذَابَ بِمَا كُنْتُمْ تَكْفُرُونَ |
107 |
रहे वे लोग जिनके चेहरे उज्ज्वल होंगे, वे अल्लाह की दयालुता की छाया में होंगे। वे उसी में सदैव रहेंगे |
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وَأَمَّا الَّذِينَ ابْيَضَّتْ وُجُوهُهُمْ فَفِي رَحْمَةِ اللّهِ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ |
108 |
ये अल्लाह की आयतें है, जिन्हें हम हक़ के साथ तुम्हें सुना रहे है। अल्लाह संसारवालों पर किसी प्रकार का अत्याचार नहीं करना चाहता |
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تِلْكَ آيَاتُ اللّهِ نَتْلُوهَا عَلَيْكَ بِالْحَقِّ وَمَا اللّهُ يُرِيدُ ظُلْمًا لِّلْعَالَمِينَ |
109 |
आकाशों और धरती मे जो कुछ है अल्लाह ही का है, और सारे मामले अल्लाह ही की ओर लौटाए जाते है |
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وَلِلّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأَرْضِ وَإِلَى اللّهِ تُرْجَعُ الأُمُورُ |
110 |
तुम एक उत्तम समुदाय हो, जो लोगों के समक्ष लाया गया है। तुम नेकी का हुक्म देते हो और बुराई से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो। और यदि किताबवाले भी ईमान लाते तो उनके लिए यह अच्छा होता। उनमें ईमानवाले भी हैं, किन्तु उनमें अधिकतर लोग अवज्ञाकारी ही हैं |
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كُنتُمْ خَيْرَ أُمَّةٍ أُخْرِجَتْ لِلنَّاسِ تَأْمُرُونَ بِالْمَعْرُوفِ وَتَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنكَرِ وَتُؤْمِنُونَ بِاللّهِ وَلَوْ آمَنَ أَهْلُ الْكِتَابِ لَكَانَ خَيْرًا لَّهُم مِّنْهُمُ الْمُؤْمِنُونَ وَأَكْثَرُهُمُ الْفَاسِقُونَ |
111 |
थोड़ा दुख पहुँचाने के अतिरिक्त वे तुम्हारा कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते। और यदि वे तुमसे लड़ेंगे, तो तुम्हें पीठ दिखा जाएँगे, फिर उन्हें कोई सहायता भी न मिलेगी |
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لَن يَضُرُّوكُمْ إِلاَّ أَذًى وَإِن يُقَاتِلُوكُمْ يُوَلُّوكُمُ الأَدُبَارَ ثُمَّ لاَ يُنصَرُونَ |
112 |
वे जहाँ कहीं भी पाए गए उनपर ज़िल्लत (अपमान) थोप दी गई। किन्तु अल्लाह की रस्सी थामें या लोगों का रस्सी, तो और बात है। वे ल्लाह के प्रकोप के पात्र हुए और उनपर दशाहीनता थोप दी गई। यह इसलिए कि वे अल्लाह की आयतों का इनकार और नबियों को नाहक़ क़त्ल करते रहे है। और यह इसलिए कि उन्होंने अवज्ञा की और सीमोल्लंघन करते रहे |
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ضُرِبَتْ عَلَيْهِمُ الذِّلَّةُ أَيْنَ مَا ثُقِفُواْ إِلاَّ بِحَبْلٍ مِّنْ اللّهِ وَحَبْلٍ مِّنَ النَّاسِ وَبَآؤُوا بِغَضَبٍ مِّنَ اللّهِ وَضُرِبَتْ عَلَيْهِمُ الْمَسْكَنَةُ ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ كَانُواْ يَكْفُرُونَ بِآيَاتِ اللّهِ وَيَقْتُلُونَ الأَنبِيَاء بِغَيْرِ حَقٍّ ذَلِكَ بِمَا عَصَوا وَّكَانُواْ يَعْتَدُونَ |
113 |
ये सब एक जैसे नहीं है। किताबवालों में से कुछ ऐसे लोग भी है जो सीधे मार्ग पर है और रात की घड़ियों में अल्लाह की आयतें पढ़ते है और वे सजदा करते रहनेवाले है |
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لَيْسُواْ سَوَاء مِّنْ أَهْلِ الْكِتَابِ أُمَّةٌ قَآئِمَةٌ يَتْلُونَ آيَاتِ اللّهِ آنَاء اللَّيْلِ وَهُمْ يَسْجُدُونَ |
114 |
वे अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखते है और नेकी का हुक्म देते और बुराई से रोकते है और नेक कामों में अग्रसर रहते है, और वे अच्छे लोगों में से है |
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يُؤْمِنُونَ بِاللّهِ وَالْيَوْمِ الآخِرِ وَيَأْمُرُونَ بِالْمَعْرُوفِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنكَرِ وَيُسَارِعُونَ فِي الْخَيْرَاتِ وَأُوْلَـئِكَ مِنَ الصَّالِحِينَ |
115 |
जो नेकी भी वे करेंगे, उसकी अवमानना न होगी। अल्लाह का डर रखनेवालो से भली-भाँति परिचित है |
/content/ayah/audio/hudhaify/003115.mp3
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وَمَا يَفْعَلُواْ مِنْ خَيْرٍ فَلَن يُكْفَرُوْهُ وَاللّهُ عَلِيمٌ بِالْمُتَّقِينَ |
116 |
रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया, तो अल्लाह के मुक़ाबले में न उनके माल कुछ काम आ सकेंगे और न उनकी सन्तान ही। वे तो आग में जानेवाले लोग है, उसी में वे सदैव रहेंगे |
/content/ayah/audio/hudhaify/003116.mp3
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إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ لَن تُغْنِيَ عَنْهُمْ أَمْوَالُهُمْ وَلاَ أَوْلاَدُهُم مِّنَ اللّهِ شَيْئًا وَأُوْلَـئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ |
117 |
इस सांसारिक जीवन के लिए जो कुछ भी वे ख़र्च करते है, उसकी मिसाल उस वायु जैसी है जिसमें पाला हो और वह उन लोगों की खेती पर चल जाए, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार नहीं किया, अपितु वे तो स्वयं अपने ऊपर अत्याचार कर रहे है |
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مَثَلُ مَا يُنفِقُونَ فِي هِـذِهِ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا كَمَثَلِ رِيحٍ فِيهَا صِرٌّ أَصَابَتْ حَرْثَ قَوْمٍ ظَلَمُواْ أَنفُسَهُمْ فَأَهْلَكَتْهُ وَمَا ظَلَمَهُمُ اللّهُ وَلَـكِنْ أَنفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ |
118 |
ऐ ईमान लानेवालो! अपनों को छोड़कर दूसरों को अपना अंतरंग मित्र न बनाओ, वे तुम्हें नुक़सान पहुँचाने में कोई कमी नहीं करते। जितनी भी तुम कठिनाई में पड़ो, वही उनको प्रिय है। उनका द्वेष तो उनके मुँह से व्यक्त हो चुका है और जो कुछ उनके सीने छिपाए हुए है, वह तो इससे भी बढ़कर है। यदि तुम बुद्धि से काम लो, तो हमने तुम्हारे लिए निशानियाँ खोलकर बयान कर दी हैं |
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يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تَتَّخِذُواْ بِطَانَةً مِّن دُونِكُمْ لاَ يَأْلُونَكُمْ خَبَالاً وَدُّواْ مَا عَنِتُّمْ قَدْ بَدَتِ الْبَغْضَاء مِنْ أَفْوَاهِهِمْ وَمَا تُخْفِي صُدُورُهُمْ أَكْبَرُ قَدْ بَيَّنَّا لَكُمُ الآيَاتِ إِن كُنتُمْ تَعْقِلُونَ |
119 |
ये चो तुम हो जो उनसे प्रेम करते हो और वे तुमसे प्रेम नहीं करते, जबकि तुम समस्त किताबों पर ईमान रखते हो। और वे जब तुमसे मिलते है तो कहने को तो कहते है कि "हम ईमान लाए है।" किन्तु जब वे अलग होते है तो तुमपर क्रोध के मारे दाँतों से उँगलियाँ काटने लगते है। कह दो, "तुम अपने क्रोध में आप मरो। निस्संदेह अल्लाह दिलों के भेद को जानता है।" |
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هَاأَنتُمْ أُوْلاء تُحِبُّونَهُمْ وَلاَ يُحِبُّونَكُمْ وَتُؤْمِنُونَ بِالْكِتَابِ كُلِّهِ وَإِذَا لَقُوكُمْ قَالُواْ آمَنَّا وَإِذَا خَلَوْاْ عَضُّواْ عَلَيْكُمُ الأَنَامِلَ مِنَ الْغَيْظِ قُلْ مُوتُواْ بِغَيْظِكُمْ إِنَّ اللّهَ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ |
120 |
यदि तुम्हारा कोई भला होता है तो उन्हें बुरा लगता है। परन्तु यदि तुम्हें कोई अप्रिय बात पेश आती है तो उससे वे प्रसन्न हो जाते है। यदि तुमने धैर्य से काम लिया और (अल्लाह का) डर रखा, तो उनकी कोई चाल तुम्हें नुक़सान नहीं पहुँचा सकती। जो कुछ वे कर रहे है, अल्लाह ने उसे अपने धेरे में ले रखा है |
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إِن تَمْسَسْكُمْ حَسَنَةٌ تَسُؤْهُمْ وَإِن تُصِبْكُمْ سَيِّئَةٌ يَفْرَحُواْ بِهَا وَإِن تَصْبِرُواْ وَتَتَّقُواْ لاَ يَضُرُّكُمْ كَيْدُهُمْ شَيْئًا إِنَّ اللّهَ بِمَا يَعْمَلُونَ مُحِيطٌ |
121 |
याद करो जब तुम सवेरे अपने घर से निकलकर ईमानवालों को युद्ध के मोर्चों पर लगा रहे थे। - अल्लाह तो सब कुछ सुनता, जानता है |
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وَإِذْ غَدَوْتَ مِنْ أَهْلِكَ تُبَوِّئُ الْمُؤْمِنِينَ مَقَاعِدَ لِلْقِتَالِ وَاللّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ |
122 |
जब तुम्हारे दो गिरोहों ने साहस छोड़ देना चाहा, जबकि अल्लाह उनका संरक्षक मौजूद था - और ईमानवालों को तो अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए |
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إِذْ هَمَّت طَّآئِفَتَانِ مِنكُمْ أَن تَفْشَلاَ وَاللّهُ وَلِيُّهُمَا وَعَلَى اللّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُونَ |
123 |
और बद्र में अल्लाह तुम्हारी सहायता कर भी चुका था, जबकि तुम बहुत कमज़ोर हालत में थे। अतः अल्लाह ही का डर रखो, ताकि तुम कृतज्ञ बनो |
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وَلَقَدْ نَصَرَكُمُ اللّهُ بِبَدْرٍ وَأَنتُمْ أَذِلَّةٌ فَاتَّقُواْ اللّهَ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ |
124 |
जब तुम ईमानवालों से कह रहे थे, "क्या यह तुम्हारे लिए काफ़ी नही हैं कि तुम्हारा रब तीन हज़ार फ़रिश्ते उतारकर तुम्हारी सहायता करे?" |
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إِذْ تَقُولُ لِلْمُؤْمِنِينَ أَلَن يَكْفِيكُمْ أَن يُمِدَّكُمْ رَبُّكُم بِثَلاَثَةِ آلاَفٍ مِّنَ الْمَلآئِكَةِ مُنزَلِينَ |
125 |
हाँ, क्यों नहीं। यदि तुम धैर्य से काम लो और डर रखो, फिर शत्रु सहसा तुमपर चढ़ आएँ, उसी क्षण तुम्हारा रब पाँच हज़ार विध्वंशकारी फ़रिश्तों से तुम्हारी सहायता करेगा |
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بَلَى إِن تَصْبِرُواْ وَتَتَّقُواْ وَيَأْتُوكُم مِّن فَوْرِهِمْ هَـذَا يُمْدِدْكُمْ رَبُّكُم بِخَمْسَةِ آلافٍ مِّنَ الْمَلآئِكَةِ مُسَوِّمِينَ |
126 |
अल्लाह ने तो इसे तुम्हारे लिए बस एक शुभ-सूचना बनाया और इसलिए कि तुम्हारे दिल सन्तुष्ट हो जाएँ - सहायता तो बस अल्लाह ही के यहाँ से आती है जो अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है |
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وَمَا جَعَلَهُ اللّهُ إِلاَّ بُشْرَى لَكُمْ وَلِتَطْمَئِنَّ قُلُوبُكُم بِهِ وَمَا النَّصْرُ إِلاَّ مِنْ عِندِ اللّهِ الْعَزِيزِ الْحَكِيمِ |
127 |
ताकि इनकार करनेवालों के एक हिस्से को काट डाले या उन्हें बुरी पराजित और अपमानित कर दे कि वे असफल होकर लौटें |
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لِيَقْطَعَ طَرَفًا مِّنَ الَّذِينَ كَفَرُواْ أَوْ يَكْبِتَهُمْ فَيَنقَلِبُواْ خَآئِبِينَ |
128 |
तुम्हें इस मामले में कोई अधिकार नहीं - चाहे वह उसकी तौबा क़बूल करे या उन्हें यातना दे, क्योंकि वे अत्याचारी है |
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لَيْسَ لَكَ مِنَ الأَمْرِ شَيْءٌ أَوْ يَتُوبَ عَلَيْهِمْ أَوْ يُعَذَّبَهُمْ فَإِنَّهُمْ ظَالِمُونَ |
129 |
आकाशों और धरती में जो कुछ भी है, अल्लाह ही का है। वह जिसे चाहे क्षमा कर दे और जिसे चाहे यातना दे। और अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है |
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وَلِلّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأَرْضِ يَغْفِرُ لِمَن يَشَاء وَيُعَذِّبُ مَن يَشَاء وَاللّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ |
130 |
ऐ ईमान लानेवालो! बढ़ोत्तरी के ध्येय से ब्याज न खाओ, जो कई गुना अधिक हो सकता है। और अल्लाह का डर रखो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो |
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يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تَأْكُلُواْ الرِّبَا أَضْعَافًا مُّضَاعَفَةً وَاتَّقُواْ اللّهَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ |
131 |
और उस आग से बचो जो इनकार करनेवालों के लिए तैयार है |
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وَاتَّقُواْ النَّارَ الَّتِي أُعِدَّتْ لِلْكَافِرِينَ |
132 |
और अल्लाह और रसूल के आज्ञाकारी बनो, ताकि तुमपर दया की जाए |
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وَأَطِيعُواْ اللّهَ وَالرَّسُولَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ |
133 |
और अपने रब की क्षमा और उस जन्नत की ओर बढ़ो, जिसका विस्तार आकाशों और धरती जैसा है। वह उन लोगों के लिए तैयार है जो डर रखते है |
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وَسَارِعُواْ إِلَى مَغْفِرَةٍ مِّن رَّبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا السَّمَاوَاتُ وَالأَرْضُ أُعِدَّتْ لِلْمُتَّقِينَ |
134 |
वे लोग जो ख़ुशहाली और तंगी की प्रत्येक अवस्था में ख़र्च करते रहते है और क्रोध को रोकते है और लोगों को क्षमा करते है - और अल्लाह को भी ऐसे लोग प्रिय है, जो अच्छे से अच्छा कर्म करते है |
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الَّذِينَ يُنفِقُونَ فِي السَّرَّاء وَالضَّرَّاء وَالْكَاظِمِينَ الْغَيْظَ وَالْعَافِينَ عَنِ النَّاسِ وَاللّهُ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ |
135 |
और जिनका हाल यह है कि जब वे कोई खुला गुनाह कर बैठते है या अपने आप पर ज़ुल्म करते है तौ तत्काल अल्लाह उन्हें याद आ जाता है और वे अपने गुनाहों की क्षमा चाहने लगते हैं - और अल्लाह के अतिरिक्त कौन है, जो गुनाहों को क्षमा कर सके? और जानते-बूझते वे अपने किए पर अड़े नहीं रहते |
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وَالَّذِينَ إِذَا فَعَلُواْ فَاحِشَةً أَوْ ظَلَمُواْ أَنْفُسَهُمْ ذَكَرُواْ اللّهَ فَاسْتَغْفَرُواْ لِذُنُوبِهِمْ وَمَن يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إِلاَّ اللّهُ وَلَمْ يُصِرُّواْ عَلَى مَا فَعَلُواْ وَهُمْ يَعْلَمُونَ |
136 |
उनका बदला उनके रब की ओर से क्षमादान है और ऐसे बाग़ है जिनके नीचे नहरें बहती होंगी। उनमें वे सदैव रहेंगे। और क्या ही अच्छा बदला है अच्छे कर्म करनेवालों का |
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أُوْلَـئِكَ جَزَآؤُهُم مَّغْفِرَةٌ مِّن رَّبِّهِمْ وَجَنَّاتٌ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا وَنِعْمَ أَجْرُ الْعَامِلِينَ |
137 |
तुमसे पहले (धर्मविरोधियों के साथ अल्लाह की) रीति के कितने ही नमूने गुज़र चुके है, तो तुम धरती में चल-फिरकर देखो कि झुठलानेवालों का परिणाम हुआ है |
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قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِكُمْ سُنَنٌ فَسِيرُواْ فِي الأَرْضِ فَانْظُرُواْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُكَذَّبِينَ |
138 |
यह लोगों के लिए स्पष्ट बयान और डर रखनेवालों के लिए मार्गदर्शन और उपदेश है |
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هَـذَا بَيَانٌ لِّلنَّاسِ وَهُدًى وَمَوْعِظَةٌ لِّلْمُتَّقِينَ |
139 |
हताश न हो और दुखी न हो, यदि तुम ईमानवाले हो, तो तुम्हीं प्रभावी रहोगे |
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وَلاَ تَهِنُوا وَلاَ تَحْزَنُوا وَأَنتُمُ الأَعْلَوْنَ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ |
140 |
यदि तुम्हें आघात पहुँचे तो उन लोगों को भी ऐसा ही आघात पहुँच चुका है। ये युद्ध के दिन हैं, जिन्हें हम लोगों के बीच डालते ही रहते है और ऐसा इसलिए हुआ कि अल्लाह ईमानवालों को जान ले और तुममें से कुछ लोगों को गवाह बनाए - और अत्याचारी अल्लाह को प्रिय नहीं है |
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إِن يَمْسَسْكُمْ قَرْحٌ فَقَدْ مَسَّ الْقَوْمَ قَرْحٌ مِّثْلُهُ وَتِلْكَ الأيَّامُ نُدَاوِلُهَا بَيْنَ النَّاسِ وَلِيَعْلَمَ اللّهُ الَّذِينَ آمَنُواْ وَيَتَّخِذَ مِنكُمْ شُهَدَاء وَاللّهُ لاَ يُحِبُّ الظَّالِمِينَ |
141 |
और ताकि अल्लाह ईमानवालों को निखार दे और इनकार करनेवालों को मिटा दे |
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وَلِيُمَحِّصَ اللّهُ الَّذِينَ آمَنُواْ وَيَمْحَقَ الْكَافِرِينَ |
142 |
क्या तुमने यह समझ रखा है कि जन्नत में यूँ ही प्रवेश करोगे, जबकि अल्लाह ने अभी उन्हें परखा ही नहीं जो तुममें जिहाद (सत्य-मार्ग में जानतोड़ कोशिश) करनेवाले है। - और दृढ़तापूर्वक जमें रहनेवाले है |
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أَمْ حَسِبْتُمْ أَن تَدْخُلُواْ الْجَنَّةَ وَلَمَّا يَعْلَمِ اللّهُ الَّذِينَ جَاهَدُواْ مِنكُمْ وَيَعْلَمَ الصَّابِرِينَ |
143 |
और तुम तो मृत्यु की कामनाएँ कर रहे थे, जब तक कि वह तुम्हारे सामने नहीं आई थी। लो, अब तो वह तुम्हारे सामने आ गई और तुमने उसे अपनी आँखों से देख लिया |
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وَلَقَدْ كُنتُمْ تَمَنَّوْنَ الْمَوْتَ مِن قَبْلِ أَن تَلْقَوْهُ فَقَدْ رَأَيْتُمُوهُ وَأَنتُمْ تَنظُرُونَ |
144 |
मुहम्मद तो बस एक रसूल है। उनसे पहले भी रसूल गुज़र चुके है। तो क्या यदि उनकी मृत्यु हो जाए या उनकी हत्या कर दी जाए तो तुम उल्टे पाँव फिर जाओगे? जो कोई उल्टे पाँव फिरेगा, वह अल्लाह का कुछ नहीं बिगाडेगा। और कृतज्ञ लोगों को अल्लाह बदला देगा |
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وَمَا مُحَمَّدٌ إِلاَّ رَسُولٌ قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِهِ الرُّسُلُ أَفَإِن مَّاتَ أَوْ قُتِلَ انقَلَبْتُمْ عَلَى أَعْقَابِكُمْ وَمَن يَنقَلِبْ عَلَىَ عَقِبَيْهِ فَلَن يَضُرَّ اللّهَ شَيْئًا وَسَيَجْزِي اللّهُ الشَّاكِرِينَ |
145 |
और अल्लाह की अनुज्ञा के बिना कोई व्यक्ति मर नहीं सकता। हर व्यक्ति एक लिखित निश्चित समय का अनुपालन कर रहा है। और जो कोई दुनिया का बदला चाहेगा, उसे हम इस दुनिया में से देंगे, जो आख़िरत का बदला चाहेगा, उसे हम उसमें से देंगे और जो कृतज्ञता दिखलाएँगे, उन्हें तो हम बदला देंगे ही |
/content/ayah/audio/hudhaify/003145.mp3
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وَمَا كَانَ لِنَفْسٍ أَنْ تَمُوتَ إِلاَّ بِإِذْنِ الله كِتَابًا مُّؤَجَّلاً وَمَن يُرِدْ ثَوَابَ الدُّنْيَا نُؤْتِهِ مِنْهَا وَمَن يُرِدْ ثَوَابَ الآخِرَةِ نُؤْتِهِ مِنْهَا وَسَنَجْزِي الشَّاكِرِينَ |
146 |
कितने ही नबी ऐसे गुज़रे है जिनके साथ होकर बहुत-से ईशभक्तों ने युद्ध किया, तो अल्लाह के मार्ग में जो मुसीबत उन्हें पहुँची उससे वे न तो हताश हुए और न उन्होंने कमज़ोरी दिखाई और न ऐसा हुआ कि वे दबे हो। और अल्लाह दृढ़तापूर्वक जमे रहनेवालों से प्रेम करता है |
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وَكَأَيِّن مِّن نَّبِيٍّ قَاتَلَ مَعَهُ رِبِّيُّونَ كَثِيرٌ فَمَا وَهَنُواْ لِمَا أَصَابَهُمْ فِي سَبِيلِ اللّهِ وَمَا ضَعُفُواْ وَمَا اسْتَكَانُواْ وَاللّهُ يُحِبُّ الصَّابِرِينَ |
147 |
उन्होंने कुछ नहीं कहा सिवाय इसके कि "ऐ हमारे रब! तू हमारे गुनाहों को और हमारे अपने मामले में जो ज़्यादती हमसे हो गई हो, उसे क्षमा कर दे और हमारे क़दम जमाए रख, और इनकार करनेवाले लोगों के मुक़ाबले में हमारी सहायता कर।" |
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وَمَا كَانَ قَوْلَهُمْ إِلاَّ أَن قَالُواْ ربَّنَا اغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا وَإِسْرَافَنَا فِي أَمْرِنَا وَثَبِّتْ أَقْدَامَنَا وانصُرْنَا عَلَى الْقَوْمِ الْكَافِرِينَ |
148 |
अतः अल्लाह ने उन्हें दुनिया का भी बदला दिया और आख़िरत का अच्छा बदला भी। और सत्कर्मी लोगों से अल्लाह प्रेम करता है |
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فَآتَاهُمُ اللّهُ ثَوَابَ الدُّنْيَا وَحُسْنَ ثَوَابِ الآخِرَةِ وَاللّهُ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ |
149 |
ऐ ईमान लानेवालो! यदि तुम उन लोगों के कहने पर चलोगे जिन्होंने इनकार का मार्ग अपनाया है, तो वे तुम्हें उल्टे पाँव फेर ले जाएँगे। फिर तुम घाटे में पड़ जाओगे |
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يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوَاْ إِن تُطِيعُواْ الَّذِينَ كَفَرُواْ يَرُدُّوكُمْ عَلَى أَعْقَابِكُمْ فَتَنقَلِبُواْ خَاسِرِينَ |
150 |
बल्कि अल्लाह ही तुम्हारा संरक्षक है; और वह सबसे अच्छा सहायक है |
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بَلِ اللّهُ مَوْلاَكُمْ وَهُوَ خَيْرُ النَّاصِرِينَ |
151 |
हम शीघ्र ही इनकार करनेवालों के दिलों में धाक बिठा देंगे, इसलिए कि उन्होंने ऐसी चीज़ो को अल्लाह का साक्षी ठहराया है जिनसे साथ उसने कोई सनद नहीं उतारी, और उनका ठिकाना आग (जहन्नम) है। और अत्याचारियों का क्या ही बुरा ठिकाना है |
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سَنُلْقِي فِي قُلُوبِ الَّذِينَ كَفَرُواْ الرُّعْبَ بِمَا أَشْرَكُواْ بِاللّهِ مَا لَمْ يُنَزِّلْ بِهِ سُلْطَانًا وَمَأْوَاهُمُ النَّارُ وَبِئْسَ
مَثْوَى الظَّالِمِينَ |
152 |
और अल्लाह ने तो तुम्हें अपना वादा सच्चा कर दिखाया, जबकि तुम उसकी अनुज्ञा से उन्हें क़त्ल कर रहे थे। यहाँ तक कि जब तुम स्वयं ढीले पड़ गए और काम में झगड़ा डाल दिया और अवज्ञा की, जबकि अल्लाह ने तुम्हें वह चीज़ दिखा दी थी जिसकी तुम्हें चाह थी। तुममें कुछ लोग दुनिया चाहते थे और कुछ आख़िरत के इच्छुक थे। फिर अल्लाह ने तुम्हें उनके मुक़ाबले से हटा दिया, ताकि वह तुम्हारी परीक्षा ले। फिर भी उसने तुम्हें क्षमा कर दिया, क्योंकि अल्लाह ईमानवालों के लिए बड़ा अनुग्राही है |
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وَلَقَدْ صَدَقَكُمُ اللّهُ وَعْدَهُ إِذْ تَحُسُّونَهُم بِإِذْنِهِ حَتَّى إِذَا فَشِلْتُمْ وَتَنَازَعْتُمْ فِي الأَمْرِ وَعَصَيْتُم مِّن بَعْدِ مَا أَرَاكُم
مَّا تُحِبُّونَ مِنكُم مَّن يُرِيدُ الدُّنْيَا وَمِنكُم مَّن يُرِيدُ الآخِرَةَ ثُمَّ صَرَفَكُمْ عَنْهُمْ لِيَبْتَلِيَكُمْ وَلَقَدْ عَفَا عَنكُمْ وَاللّهُ ذُو فَضْلٍ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ |
153 |
जब तुम लोग दूर भागे चले जा रहे थे और किसी को मुड़कर देखते तक न थे और रसूल तुम्हें पुकार रहा था, जबकि वह तुम्हारी दूसरी टुकड़ी के साथ था (जो भागी नहीं), तो अल्लाह ने तुम्हें शोक पर शोक दिया, ताकि तुम्हारे हाथ से कोई चीज़ निकल जाए या तुमपर कोई मुसीबत आए तो तुम शोकाकुल न हो। और जो कुछ भी तुम करते हो, अल्लाह उसकी भली-भाँति ख़बर रखता है |
/content/ayah/audio/hudhaify/003153.mp3
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إِذْ تُصْعِدُونَ وَلاَ تَلْوُونَ عَلَى أحَدٍ وَالرَّسُولُ يَدْعُوكُمْ فِي أُخْرَاكُمْ فَأَثَابَكُمْ غُمَّاً بِغَمٍّ لِّكَيْلاَ تَحْزَنُواْ عَلَى مَا فَاتَكُمْ وَلاَ مَا أَصَابَكُمْ وَاللّهُ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ |
154 |
फिर इस शोक के पश्चात उसने तुमपर एक शान्ति उतारी - एक निद्रा, जो तुममें से कुछ लोगों को घेर रही थी और कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्हें अपने प्राणों की चिन्ता थी। वे अल्लाह के विषय में ऐसा ख़याल कर रहे थे, जो सत्य के सर्वथा प्रतिकूल, अज्ञान (काल) का ख़याल था। वे कहते थे, "इन मामलों में क्या हमारा भी कुछ अधिकार है?" कह दो, "मामले तो सबके सब अल्लाह के (हाथ में) हैं।" वे जो कुछ अपने दिलों में छिपाए रखते है, तुमपर ज़ाहिर नहीं करते। कहते है, "यदि इस मामले में हमारा भी कुछ अधिकार होता तो हम यहाँ मारे न जाते।" कह दो, "यदि तुम अपने घरों में भी होते, तो भी जिन लोगों का क़त्ल होना तय था, वे निकलकर अपने अन्तिम शयन-स्थलों कर पहुँचकर रहते।" और यह इसलिए भी था कि जो कुछ तुम्हारे सीनों में है, अल्लाह उसे परख ले और जो कुछ तुम्हारे दिलों में है उसे साफ़ कर दे। और अल्लाह दिलों का हाल भली-भाँति जानता है |
/content/ayah/audio/hudhaify/003154.mp3
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ثُمَّ أَنزَلَ عَلَيْكُم مِّن بَعْدِ الْغَمِّ أَمَنَةً نُّعَاسًا يَغْشَى طَآئِفَةً مِّنكُمْ وَطَآئِفَةٌ قَدْ أَهَمَّتْهُمْ أَنفُسُهُمْ يَظُنُّونَ بِاللّهِ غَيْرَ
الْحَقِّ ظَنَّ الْجَاهِلِيَّةِ يَقُولُونَ هَل لَّنَا مِنَ الأَمْرِ مِن شَيْءٍ قُلْ إِنَّ الأَمْرَ كُلَّهُ لِلَّهِ يُخْفُونَ فِي أَنفُسِهِم مَّا لاَ يُبْدُونَ لَكَ يَقُولُونَ لَوْ كَانَ لَنَا مِنَ الأَمْرِ شَيْءٌ مَّا قُتِلْنَا هَاهُنَا قُل لَّوْ كُنتُمْ فِي بُيُوتِكُمْ لَبَرَزَ الَّذِينَ كُتِبَ عَلَيْهِمُ الْقَتْلُ إِلَى مَضَاجِعِهِمْ وَلِيَبْتَلِيَ اللّهُ مَا فِي صُدُورِكُمْ وَلِيُمَحَّصَ مَا فِي قُلُوبِكُمْ وَاللّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ |
155 |
तुममें से जो लोग दोनों गिरोहों की मुठभेड़ के दिन पीठ दिखा गए, उन्हें तो शैतान ही ने उनकी कुछ कमाई (कर्म) का कारण विचलित कर दिया था। और अल्लाह तो उन्हें क्षमा कर चुका है। निस्संदेह अल्लाह बड़ा क्षमा करनेवाला, सहनशील है |
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إِنَّ الَّذِينَ تَوَلَّوْاْ مِنكُمْ يَوْمَ الْتَقَى الْجَمْعَانِ إِنَّمَا اسْتَزَلَّهُمُ الشَّيْطَانُ بِبَعْضِ مَا كَسَبُواْ وَلَقَدْ عَفَا اللّهُ عَنْهُمْ إِنَّ اللّهَ غَفُورٌ حَلِيمٌ |
156 |
ऐ ईमान लानेवालो! उन लोगों की तरह न हो जाना जिन्होंने इनकार किया और अपने भाईयों के विषय में, जबकि वे सफ़र में गए हों या युद्ध में हो (और उनकी वहाँ मृत्यु हो जाए तो) कहते है, "यदि वे हमारे पास होते तो न मरते और न क़त्ल होते।" (ऐसी बातें तो इसलिए होती है) ताकि अल्लाह उनको उनके दिलों में घर करनेवाला पछतावा और सन्ताप बना दे। अल्लाह ही जीवन प्रदान करने और मृत्यु देनेवाला है। और तुम जो कुछ भी कर रहे हो वह अल्लाह की स्पष्ट में है |
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يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لاَ تَكُونُواْ كَالَّذِينَ كَفَرُواْ وَقَالُواْ لإِخْوَانِهِمْ إِذَا ضَرَبُواْ فِي الأَرْضِ أَوْ كَانُواْ غُزًّى لَّوْ كَانُواْ عِندَنَا مَا مَاتُواْ وَمَا قُتِلُواْ لِيَجْعَلَ اللّهُ ذَلِكَ حَسْرَةً فِي قُلُوبِهِمْ وَاللّهُ يُحْيِـي وَيُمِيتُ وَاللّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ |
157 |
और यदि तुम अल्लाह के मार्ग में मारे गए या मर गए, तो अल्लाह का क्षमादान और उसकी दयालुता तो उससे कहीं उत्तम है, जिसके बटोरने में वे लगे हुए है |
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وَلَئِن قُتِلْتُمْ فِي سَبِيلِ اللّهِ أَوْ مُتُّمْ لَمَغْفِرَةٌ مِّنَ اللّهِ وَرَحْمَةٌ خَيْرٌ مِّمَّا يَجْمَعُونَ |
158 |
हाँ, यदि तुम मर गए या मारे गए, तो प्रत्येक दशा में तुम अल्लाह ही के पास इकट्ठा किए जाओगे |
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وَلَئِن مُّتُّمْ أَوْ قُتِلْتُمْ لإِلَى الله تُحْشَرُونَ |
159 |
(तुमने तो अपनी दयालुता से उन्हें क्षमा कर दिया) तो अल्लाह की ओर से ही बड़ी दयालुता है जिसके कारण तुम उनके लिए नर्म रहे हो, यदि कहीं तुम स्वभाव के क्रूर और कठोर हृदय होते तो ये सब तुम्हारे पास से छँट जाते। अतः उन्हें क्षमा कर दो और उनके लिए क्षमा की प्रार्थना करो। और मामलों में उनसे परामर्श कर लिया करो। फिर जब तुम्हारे संकल्प किसी सम्मति पर सुदृढ़ हो जाएँ तो अल्लाह पर भरोसा करो। निस्संदेह अल्लाह को वे लोग प्रिय है जो उसपर भरोसा करते है |
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فَبِمَا رَحْمَةٍ مِّنَ اللّهِ لِنتَ لَهُمْ وَلَوْ كُنتَ فَظًّا غَلِيظَ الْقَلْبِ لاَنفَضُّواْ مِنْ حَوْلِكَ فَاعْفُ عَنْهُمْ وَاسْتَغْفِرْ لَهُمْ وَشَاوِرْهُمْ فِي الأَمْرِ فَإِذَا عَزَمْتَ فَتَوَكَّلْ عَلَى اللّهِ إِنَّ اللّهَ يُحِبُّ الْمُتَوَكِّلِينَ |
160 |
यदि अल्लाह तुम्हारी सहायता करे, तो कोई तुमपर प्रभावी नहीं हो सकता। और यदि वह तुम्हें छोड़ दे, तो फिर कौन हो जो उसके पश्चात तुम्हारी सहायता कर सके। अतः ईमानवालों को अल्लाह ही पर भरोसा रखना चाहिए |
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إِن يَنصُرْكُمُ اللّهُ فَلاَ غَالِبَ لَكُمْ وَإِن يَخْذُلْكُمْ فَمَن ذَا الَّذِي يَنصُرُكُم مِّن بَعْدِهِ وَعَلَى اللّهِ فَلْيَتَوَكِّلِ الْمُؤْمِنُونَ |
161 |
यह किसी नबी के लिए सम्भब नहीं कि वह दिल में कीना-कपट रखे, और जो कोई कीना-कपट रखेगा तो वह क़ियामत के दिन अपने द्वेष समेत हाज़िर होगा। और प्रत्येक व्यक्ति को उसकी कमाई का पूरा-पूरा बदला दे दिया जाएँगा और उनपर कुछ भी ज़ुल्म न होगा |
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وَمَا كَانَ لِنَبِيٍّ أَن يَغُلَّ وَمَن يَغْلُلْ يَأْتِ بِمَا غَلَّ يَوْمَ الْقِيَامَةِ ثُمَّ تُوَفَّى كُلُّ نَفْسٍ مَّا كَسَبَتْ وَهُمْ لاَ يُظْلَمُونَ |
162 |
भला क्या जो व्यक्ति अल्लाह की इच्छा पर चले वह उस जैसा हो सकता है जो अल्लाह के प्रकोप का भागी हो चुका हो और जिसका ठिकाना जहन्नम है? और वह क्या ही बुरा ठिकाना है |
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أَفَمَنِ اتَّبَعَ رِضْوَانَ اللّهِ كَمَن بَاء بِسَخْطٍ مِّنَ اللّهِ وَمَأْوَاهُ جَهَنَّمُ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ |
163 |
अल्लाह के यहाँ उनके विभिन्न दर्जे है और जो कुछ वे कर रहे है, अल्लाह की स्पष्ट में है |
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هُمْ دَرَجَاتٌ عِندَ اللّهِ واللّهُ بَصِيرٌ بِمَا يَعْمَلُونَ |
164 |
निस्संदेह अल्लाह ने ईमानवालों पर बड़ा उपकार किया, जबकि स्वयं उन्हीं में से एक ऐसा रसूल उठाया जो उन्हें आयतें सुनाता है और उन्हें निखारता है, और उन्हें किताब और हिक़मत (तत्वदर्शिता) का शिक्षा देता है, अन्यथा इससे पहले वे लोग खुली गुमराही में पड़े हुए थे |
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لَقَدْ مَنَّ اللّهُ عَلَى الْمُؤمِنِينَ إِذْ بَعَثَ فِيهِمْ رَسُولاً مِّنْ أَنفُسِهِمْ يَتْلُو عَلَيْهِمْ آيَاتِهِ وَيُزَكِّيهِمْ وَيُعَلِّمُهُمُ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَإِن كَانُواْ مِن قَبْلُ لَفِي ضَلالٍ مُّبِينٍ |
165 |
यह क्या कि जब तुम्हें एक मुसीबत पहुँची, जिसकी दोगुनी तुमने पहुँचाए, तो तुम कहने लगे कि, "यह कहाँ से आ गई?" कह दो, "यह तो तुम्हारी अपनी ओर से है, अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।" |
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أَوَلَمَّا أَصَابَتْكُم مُّصِيبَةٌ قَدْ أَصَبْتُم مِّثْلَيْهَا قُلْتُمْ أَنَّى هَـذَا قُلْ هُوَ مِنْ عِندِ أَنْفُسِكُمْ إِنَّ اللّهَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ |
166 |
और दोनों गिरोह की मुठभेड़ के दिन जो कुछ तुम्हारे सामने आया वह अल्लाह ही की अनुज्ञा से आया और इसलिए कि वह जान ले कि ईमानवाले कौन है |
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وَمَا أَصَابَكُمْ يَوْمَ الْتَقَى الْجَمْعَانِ فَبِإِذْنِ اللّهِ وَلِيَعْلَمَ الْمُؤْمِنِينَ |
167 |
और इसलिए कि वह कपटाचारियों को भी जान ले जिनसे कहा गया कि "आओ, अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो या दुश्मनों को हटाओ।" उन्होंने कहा, "यदि हम जानते कि लड़ाई होगी तो हम अवश्य तुम्हारे साथ हो लेते।" उस दिन वे ईमान की अपेक्षा अधर्म के अधिक निकट थे। वे अपने मुँह से वे बातें कहते है, जो उनके दिलों में नहीं होती। और जो कुछ वे छिपाते है, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है |
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وَلْيَعْلَمَ الَّذِينَ نَافَقُواْ وَقِيلَ لَهُمْ تَعَالَوْاْ قَاتِلُواْ فِي سَبِيلِ اللّهِ أَوِ ادْفَعُواْ قَالُواْ لَوْ نَعْلَمُ قِتَالاً لاَّتَّبَعْنَاكُمْ هُمْ لِلْكُفْرِ يَوْمَئِذٍ أَقْرَبُ مِنْهُمْ لِلإِيمَانِ يَقُولُونَ بِأَفْوَاهِهِم مَّا لَيْسَ فِي قُلُوبِهِمْ وَاللّهُ أَعْلَمُ بِمَا يَكْتُمُونَ |
168 |
ये वही लोग है जो स्वयं तो बैठे रहे और अपने भाइयों के विषय में कहने लगे, "यदि वे हमारी बात मान लेते तो मारे न जाते।" कह तो, "अच्छा, यदि तुम सच्चे हो, तो अब तुम अपने ऊपर से मृत्यु को टाल देना।" |
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الَّذِينَ قَالُواْ لإِخْوَانِهِمْ وَقَعَدُواْ لَوْ أَطَاعُونَا مَا قُتِلُوا قُلْ فَادْرَؤُوا عَنْ أَنفُسِكُمُ الْمَوْتَ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ |
169 |
तुम उन लोगों को जो अल्लाह के मार्ग में मारे गए है, मुर्दा न समझो, बल्कि वे अपने रब के पास जीवित हैं, रोज़ी पा रहे हैं |
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وَلاَ تَحْسَبَنَّ الَّذِينَ قُتِلُواْ فِي سَبِيلِ اللّهِ أَمْوَاتًا بَلْ أَحْيَاء عِندَ رَبِّهِمْ يُرْزَقُونَ |
170 |
अल्लाह ने अपनी उदार कृपा से जो कुछ उन्हें प्रदान किया है, वे उसपर बहुत प्रसन्न है और उन लोगों के लिए भी ख़ुश हो रहे है जो उनके पीछे रह गए है, अभी उनसे मिले नहीं है कि उन्हें भी न कोई भय होगा और न वे दुखी होंगे |
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فَرِحِينَ بِمَا آتَاهُمُ اللّهُ مِن فَضْلِهِ وَيَسْتَبْشِرُونَ بِالَّذِينَ لَمْ يَلْحَقُواْ بِهِم مِّنْ خَلْفِهِمْ أَلاَّ خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلاَ هُمْ َيحْزَنُونَ |
171 |
वे अल्लाह के अनुग्रह और उसकी उदार कृपा से प्रसन्न हो रहे है और इससे कि अल्लाह ईमानवालों का बदला नष्ट नहीं करता |
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يَسْتَبْشِرُونَ بِنِعْمَةٍ مِّنَ اللّهِ وَفَضْلٍ وَأَنَّ اللّهَ لاَ يُضِيعُ أَجْرَ الْمُؤْمِنِينَ |
172 |
जिन लोगों ने अल्लाह और रसूल की पुकार को स्वीकार किया, इसके पश्चात कि उन्हें आघात पहुँच चुका था। इन सत्कर्मी और (अल्लाह का) डर रखनेवालों के लिए बड़ा प्रतिदान है |
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الَّذِينَ اسْتَجَابُواْ لِلّهِ وَالرَّسُولِ مِن بَعْدِ مَا أَصَابَهُمُ الْقَرْحُ لِلَّذِينَ أَحْسَنُواْ مِنْهُمْ وَاتَّقَواْ أَجْرٌ عَظِيمٌ |
173 |
ये वही लोग है जिनसे लोगों ने कहा, "तुम्हारे विरुद्ध लोग इकट्ठा हो गए है, अतः उनसे डरो।" तो इस चीज़ ने उनके ईमान को और बढ़ा दिया। और उन्होंने कहा, "हमारे लिए तो बस अल्लाह काफ़ी है और वही सबसे अच्छा कार्य-साधक है।" |
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الَّذِينَ قَالَ لَهُمُ النَّاسُ إِنَّ النَّاسَ قَدْ جَمَعُواْ لَكُمْ فَاخْشَوْهُمْ فَزَادَهُمْ إِيمَاناً وَقَالُواْ حَسْبُنَا اللّهُ وَنِعْمَ الْوَكِيلُ |
174 |
तो वे अल्लाह को ओर से प्राप्त होनेवाली नेमत और उदार कृपा के साथ लौटे। उन्हें कोई तकलीफ़ छू भी नहीं सकी और वे अल्लाह की इच्छा पर चले भी, और अल्लाह बड़ी ही उदार कृपावाला है |
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فَانقَلَبُواْ بِنِعْمَةٍ مِّنَ اللّهِ وَفَضْلٍ لَّمْ يَمْسَسْهُمْ سُوءٌ وَاتَّبَعُواْ رِضْوَانَ اللّهِ وَاللّهُ ذُو فَضْلٍ عَظِيمٍ |
175 |
वह तो शैतान है जो अपने मित्रों को डराता है। अतः तुम उनसे न डरो, बल्कि मुझी से डरो, यदि तुम ईमानवाले हो |
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إِنَّمَا ذَلِكُمُ الشَّيْطَانُ يُخَوِّفُ أَوْلِيَاءهُ فَلاَ تَخَافُوهُمْ وَخَافُونِ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ |
176 |
जो लोग अधर्म और इनकार में जल्दी दिखाते है, उनके कारण तुम दुखी न हो। वे अल्लाह का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। अल्लाह चाहता है कि उनके लिए आख़िरत में कोई हिस्सा न रखे, उनके लिए तो बड़ी यातना है |
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وَلاَ يَحْزُنكَ الَّذِينَ يُسَارِعُونَ فِي الْكُفْرِ إِنَّهُمْ لَن يَضُرُّواْ اللّهَ شَيْئاً يُرِيدُ اللّهُ أَلاَّ يَجْعَلَ لَهُمْ حَظًّا فِي الآخِرَةِ وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ |
177 |
जो लोग ईमान की क़ीमत पर इनकार और अधर्म के ग्राहक हुए, वे अल्लाह का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते, उनके लिए तो दुखद यातना है |
/content/ayah/audio/hudhaify/003177.mp3
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إِنَّ الَّذِينَ اشْتَرَوُاْ الْكُفْرَ بِالإِيمَانِ لَن يَضُرُّواْ اللّهَ شَيْئًا وَلهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ |
178 |
और यह ढ़ील जो हम उन्हें दिए जाते है, इसे अधर्मी लोग अपने लिए अच्छा न समझे। यह ढील तो हम उन्हें सिर्फ़ इसलिए दे रहे है कि वे गुनाहों में और अधिक बढ़ जाएँ, और उनके लिए तो अत्यन्त अपमानजनक यातना है |
/content/ayah/audio/hudhaify/003178.mp3
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وَلاَ يَحْسَبَنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ أَنَّمَا نُمْلِي لَهُمْ خَيْرٌ لِّأَنفُسِهِمْ إِنَّمَا نُمْلِي لَهُمْ لِيَزْدَادُواْ إِثْمًا وَلَهْمُ عَذَابٌ مُّهِينٌ |
179 |
अल्लाह ईमानवालों को इस दशा में नहीं रहने देगा, जिसमें तुम हो। यह तो उस समय तक की बात है जबतक कि वह अपवित्र को पवित्र से पृथक नहीं कर देता। और अल्लाह ऐसा नहीं है कि वह तुम्हें परोक्ष की सूचना दे दे। किन्तु अल्लाह इस काम के लिए जिसको चाहता है चुन लेता है, और वे उसके रसूल होते है। अतः अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ। और यदि तुम ईमान लाओगे और (अल्लाह का) डर रखोगे तो तुमको बड़ा प्रतिदान मिलेगा |
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مَّا كَانَ اللّهُ لِيَذَرَ الْمُؤْمِنِينَ عَلَى مَا أَنتُمْ عَلَيْهِ حَتَّىَ يَمِيزَ الْخَبِيثَ مِنَ الطَّيِّبِ وَمَا كَانَ اللّهُ لِيُطْلِعَكُمْ عَلَى الْغَيْبِ وَلَكِنَّ اللّهَ يَجْتَبِي مِن رُّسُلِهِ مَن يَشَاء فَآمِنُواْ بِاللّهِ وَرُسُلِهِ وَإِن تُؤْمِنُواْ وَتَتَّقُواْ فَلَكُمْ أَجْرٌ عَظِيمٌ |
180 |
जो लोग उस चीज़ में कृपणता से काम लेते है, जो अल्लाह ने अपनी उदार कृपा से उन्हें प्रदान की है, वे यह न समझे कि यह उनके हित में अच्छा है, बल्कि यह उनके लिए बुरा है। जिस चीज़ में उन्होंने कृपणता से काम लिया होगा, वही आगे कियामत के दिन उनके गले का तौक़ बन जाएगा। और ये आकाश और धरती अंत में अल्लाह ही के लिए रह जाएँगे। तुम जो कुछ भी करते हो, अल्लाह उसकी ख़बर रखता है |
/content/ayah/audio/hudhaify/003180.mp3
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وَلاَ يَحْسَبَنَّ الَّذِينَ يَبْخَلُونَ بِمَا آتَاهُمُ اللّهُ مِن فَضْلِهِ هُوَ خَيْرًا لَّهُمْ بَلْ هُوَ شَرٌّ لَّهُمْ سَيُطَوَّقُونَ مَا بَخِلُواْ بِهِ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَلِلّهِ مِيرَاثُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَاللّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌ |
181 |
अल्लाह उन लोगों की बात सुन चुका है जिनका कहना है कि "अल्लाह तो निर्धन है और हम धनवान है।" उनकी बात हम लिख लेंगे और नबियों को जो वे नाहक क़त्ल करते रहे है उसे भी। और हम कहेंगे, "लो, (अब) जलने की यातना का मज़ा चखो।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/003181.mp3
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لَّقَدْ سَمِعَ اللّهُ قَوْلَ الَّذِينَ قَالُواْ إِنَّ اللّهَ فَقِيرٌ وَنَحْنُ أَغْنِيَاء سَنَكْتُبُ مَا قَالُواْ وَقَتْلَهُمُ الأَنبِيَاء بِغَيْرِ حَقٍّ وَنَقُولُ ذُوقُواْ عَذَابَ الْحَرِيقِ |
182 |
यह उसका बदला है जो तुम्हारे हाथों ने आगे भेजा। अल्लाह अपने बन्दों पर तनिक भी ज़ुल्म नहीं करता |
/content/ayah/audio/hudhaify/003182.mp3
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ذَلِكَ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيكُمْ وَأَنَّ اللّهَ لَيْسَ بِظَلاَّمٍ لِّلْعَبِيدِ |
183 |
ये वही लोग है जिनका कहना है कि "अल्लाह ने हमें ताकीद की है कि हम किसी रसूल पर ईमान न लाएँ, जबतक कि वह हमारे सामने ऐसी क़ुरबानी न पेश करे जिसे आग खा जाए।" कहो, "तुम्हारे पास मुझसे पहले कितने ही रसूल खुली निशानियाँ लेकर आ चुके है, और वे वह चीज़ भी लाए थे जिसके लिए तुम कह रहे हो। फिर यदि तुम सच्चे हो तो तुमने उन्हें क़त्ल क्यों किया?" |
/content/ayah/audio/hudhaify/003183.mp3
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الَّذِينَ قَالُواْ إِنَّ اللّهَ عَهِدَ إِلَيْنَا أَلاَّ نُؤْمِنَ لِرَسُولٍ حَتَّىَ يَأْتِيَنَا بِقُرْبَانٍ تَأْكُلُهُ النَّارُ قُلْ قَدْ جَاءكُمْ رُسُلٌ مِّن قَبْلِي بِالْبَيِّنَاتِ وَبِالَّذِي قُلْتُمْ فَلِمَ قَتَلْتُمُوهُمْ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ |
184 |
फिर यदि वे तुम्हें झुठलाते ही रहें, तो तुमसे पहले भी कितने ही रसूल झुठलाए जा चुके है, जो खुली निशानियाँ, 'ज़बूरें' और प्रकाशमान किताब लेकर आए थे |
/content/ayah/audio/hudhaify/003184.mp3
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فَإِن كَذَّبُوكَ فَقَدْ كُذِّبَ رُسُلٌ مِّن قَبْلِكَ جَآؤُوا بِالْبَيِّنَاتِ وَالزُّبُرِ وَالْكِتَابِ الْمُنِيرِ |
185 |
प्रत्येक जीव मृत्यु का मज़ा चखनेवाला है, और तुम्हें तो क़ियामत के दिन पूरा-पूरा बदला दे दिया जाएगा। अतः जिसे आग (जहन्नम) से हटाकर जन्नत में दाख़िल कर दिया गया, वह सफल रहा। रहा सांसारिक जीवन, तो वह माया-सामग्री के सिवा कुछ भी नहीं |
/content/ayah/audio/hudhaify/003185.mp3
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كُلُّ نَفْسٍ ذَآئِقَةُ الْمَوْتِ وَإِنَّمَا تُوَفَّوْنَ أُجُورَكُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فَمَن زُحْزِحَ عَنِ النَّارِ وَأُدْخِلَ الْجَنَّةَ فَقَدْ فَازَ وَما الْحَيَاةُ الدُّنْيَا إِلاَّ مَتَاعُ الْغُرُورِ |
186 |
तुम्हारें माल और तुम्हारे प्राण में तुम्हारी परीक्षा होकर रहेगी और तुम्हें उन लोगों से जिन्हें तुमसे पहले किताब प्रदान की गई थी और उन लोगों से जिन्होंने 'शिर्क' किया, बहुत-सी कष्टप्रद बातें सुननी पड़ेगी। परन्तु यदि तुम जमें रहे और (अल्लाह का) डर रखा, तो यह उन कर्मों में से है जो आवश्यक ठहरा दिया गया है |
/content/ayah/audio/hudhaify/003186.mp3
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لَتُبْلَوُنَّ فِي أَمْوَالِكُمْ وَأَنفُسِكُمْ وَلَتَسْمَعُنَّ مِنَ الَّذِينَ أُوتُواْ الْكِتَابَ مِن قَبْلِكُمْ وَمِنَ الَّذِينَ أَشْرَكُواْ أَذًى كَثِيراً وَإِن تَصْبِرُواْ وَتَتَّقُواْ فَإِنَّ ذَلِكَ مِنْ عَزْمِ الأُمُورِ |
187 |
याद करो जब अल्लाह ने उन लोगों से, जिन्हें किताब प्रदान की गई थी, वचन लिया था कि "उसे लोगों के सामने भली-भाँति स्पट् करोगे, उसे छिपाओगे नहीं।" किन्तु उन्होंने उसे पीठ पीछे डाल दिया और तुच्छ मूल्य पर उसका सौदा किया। कितना बुरा सौदा है जो ये कर रहे है |
/content/ayah/audio/hudhaify/003187.mp3
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وَإِذَ أَخَذَ اللّهُ مِيثَاقَ الَّذِينَ أُوتُواْ الْكِتَابَ لَتُبَيِّنُنَّهُ لِلنَّاسِ وَلاَ تَكْتُمُونَهُ فَنَبَذُوهُ وَرَاء ظُهُورِهِمْ وَاشْتَرَوْاْ بِهِ ثَمَناً قَلِيلاً فَبِئْسَ مَا يَشْتَرُونَ |
188 |
तुम उन्हें कदापि यह न समझना, जो अपने किए पर ख़ुश हो रहे है और जो काम उन्होंने नहीं किए, चाहते है कि उनपर भी उनकी प्रशंसा की जाए - तो तुम उन्हें यह न समझाना कि वे यातना से बच जाएँगे, उनके लिए तो दुखद यातना है |
/content/ayah/audio/hudhaify/003188.mp3
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لاَ تَحْسَبَنَّ الَّذِينَ يَفْرَحُونَ بِمَا أَتَواْ وَّيُحِبُّونَ أَن يُحْمَدُواْ بِمَا لَمْ يَفْعَلُواْ فَلاَ تَحْسَبَنَّهُمْ بِمَفَازَةٍ مِّنَ الْعَذَابِ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ |
189 |
आकाशों और धरती का राज्य अल्लाह ही का है, और अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है |
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وَلِلّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَاللّهُ عَلَىَ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ |
190 |
निस्सदेह आकाशों और धरती की रचना में और रात और दिन के आगे पीछे बारी-बारी आने में उन बुद्धिमानों के लिए निशानियाँ है |
/content/ayah/audio/hudhaify/003190.mp3
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إِنَّ فِي خَلْقِ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَاخْتِلاَفِ اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ لآيَاتٍ لِّأُوْلِي الألْبَابِ |
191 |
जो खड़े, बैठे और अपने पहलुओं पर लेटे अल्लाह को याद करते है और आकाशों और धरती की रचना में सोच-विचार करते है। (वे पुकार उठते है,) "हमारे रब! तूने यह सब व्यर्थ नहीं बनाया है। महान है तू, अतः हमें आग की यातना से बचा ले |
/content/ayah/audio/hudhaify/003191.mp3
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الَّذِينَ يَذْكُرُونَ اللّهَ قِيَامًا وَقُعُودًا وَعَلَىَ جُنُوبِهِمْ وَيَتَفَكَّرُونَ فِي خَلْقِ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ رَبَّنَا مَا خَلَقْتَ هَذا بَاطِلاً سُبْحَانَكَ فَقِنَا عَذَابَ النَّارِ |
192 |
"हमारे रब, तूने जिसे आग में डाला, उसे रुसवा कर दिया। और ऐसे ज़ालिमों का कोई सहायक न होगा |
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رَبَّنَا إِنَّكَ مَن تُدْخِلِ النَّارَ فَقَدْ أَخْزَيْتَهُ وَمَا لِلظَّالِمِينَ مِنْ أَنصَار |
193 |
"हमारे रब! हमने एक पुकारनेवाले को ईमान की ओर बुलाते सुना कि अपने रब पर ईमान लाओ। तो हम ईमान ले आए। हमारे रब! तो अब तू हमारे गुनाहों को क्षमा कर दे और हमारी बुराइयों को हमसे दूर कर दे और हमें नेक और वफ़़ादार लोगों के साथ (दुनिया से) उठा |
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رَّبَّنَا إِنَّنَا سَمِعْنَا مُنَادِيًا يُنَادِي لِلإِيمَانِ أَنْ آمِنُواْ بِرَبِّكُمْ فَآمَنَّا رَبَّنَا فَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا وَكَفِّرْ عَنَّا سَيِّئَاتِنَا وَتَوَفَّنَا مَعَ الأبْرَارِ |
194 |
"हमारे रब! जिस चीज़ का वादा तूने अपने रसूलों के द्वारा किया वह हमें प्रदान कर और क़ियामत के दिन हमें रुसवा न करना। निस्संदेह तू अपने वादे के विरुद्ध जानेवाला नहीं है।" |
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رَبَّنَا وَآتِنَا مَا وَعَدتَّنَا عَلَى رُسُلِكَ وَلاَ تُخْزِنَا يَوْمَ الْقِيَامَةِ إِنَّكَ لاَ تُخْلِفُ الْمِيعَادَ |
195 |
तो उनके रब ने उनकी पुकार सुन ली कि "मैं तुममें से किसी कर्म करनेवाले के कर्म को अकारथ नहीं करूँगा, चाहे वह पुरुष हो या स्त्री। तुम सब आपस में एक-दूसरे से हो। अतः जिन लोगों ने (अल्लाह के मार्ग में) घरबार छोड़ा और अपने घरों से निकाले गए और मेरे मार्ग में सताए गए, और लड़े और मारे गए, मैं उनसे उनकी बुराइयाँ दूर कर दूँगा और उन्हें ऐसे बाग़ों में प्रवेश कराऊँगा जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी।" यह अल्लाह के पास से उनका बदला होगा और सबसे अच्छा बदला अल्लाह ही के पास है |
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فَاسْتَجَابَ لَهُمْ رَبُّهُمْ أَنِّي لاَ أُضِيعُ عَمَلَ عَامِلٍ مِّنكُم مِّن ذَكَرٍ أَوْ أُنثَى بَعْضُكُم مِّن بَعْضٍ فَالَّذِينَ هَاجَرُواْ َأُخْرِجُواْ مِن دِيَارِهِمْ وَأُوذُواْ فِي سَبِيلِي وَقَاتَلُواْ وَقُتِلُواْ لأُكَفِّرَنَّ عَنْهُمْ سَيِّئَاتِهِمْ وَلأُدْخِلَنَّهُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الأَنْهَارُ ثَوَابًا مِّن عِندِ اللّهِ وَاللّهُ عِندَهُ حُسْنُ الثَّوَابِ |
196 |
बस्तियों में इनकार करनेवालों की चलत-फिरत तुम्हें किसी धोखे में न डाले |
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لاَ يَغُرَّنَّكَ تَقَلُّبُ الَّذِينَ كَفَرُواْ فِي الْبِلاَدِ |
197 |
यह तो थोड़ी सुख-सामग्री है फिर तो उनका ठिकाना जहन्नम है, और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है |
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مَتَاعٌ قَلِيلٌ ثُمَّ مَأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ وَبِئْسَ الْمِهَادُ |
198 |
किन्तु जो लोग अपने रब से डरते रहे उनके लिए ऐसे बाग़ होंगे जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। वे उसमें सदैव रहेंगे। यह अल्लाह की ओर से पहला आतिथ्य-सत्कार होगा और जो कुछ अल्लाह के पास है वह नेक और वफ़ादार लोगों के लिए सबसे अच्छा है |
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لَكِنِ الَّذِينَ اتَّقَوْاْ رَبَّهُمْ لَهُمْ جَنَّاتٌ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا نُزُلاً مِّنْ عِندِ اللّهِ وَمَا عِندَ اللّهِ خَيْرٌ لِّلأَبْرَارِ |
199 |
और किताबवालों में से कुछ ऐसे भी है, जो इस हाल में कि उनके दिल अल्लाह के आगे झुके हुए होते है, अल्लाह पर ईमान रखते है और उस चीज़ पर भी जो तुम्हारी ओर उतारी गई है, और उस चीज़ पर भी जो स्वयं उनकी ओर उतरी। वे अल्लाह की आयतों का 'तुच्छ मूल्य पर सौदा' नहीं करते, उनके लिए उनके रब के पास उनका प्रतिदान है। अल्लाह हिसाब भी जल्द ही कर देगा |
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وَإِنَّ مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ لَمَن يُؤْمِنُ بِاللّهِ وَمَا أُنزِلَ إِلَيْكُمْ وَمَا أُنزِلَ إِلَيْهِمْ خَاشِعِينَ لِلّهِ لاَ يَشْتَرُونَ بِآيَاتِ اللّهِ ثَمَنًا
قَلِيلاً أُوْلَـئِكَ لَهُمْ أَجْرُهُمْ عِندَ رَبِّهِمْ إِنَّ اللّهَ سَرِيعُ الْحِسَابِ |
200 |
ऐ ईमान लानेवालो! धैर्य से काम लो और (मुक़ाबले में) बढ़-चढ़कर धैर्य दिखाओ और जुटे और डटे रहो और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम सफल हो सको |
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يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اصْبِرُواْ وَصَابِرُواْ وَرَابِطُواْ وَاتَّقُواْ اللّهَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ |