Yusuf

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Hindi: Muhammad Farooq Khan and Muhammad Ahmed

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# Translation Ayah
1 अलिफ़॰ लाम॰ रा॰। ये स्पष्ट किताब की आयतें हैं الر تِلْكَ آيَاتُ الْكِتَابِ الْمُبِينِ
2 हमने इसे अरबी क़ुरआन के रूप में उतारा है, ताकि तुम समझो إِنَّا أَنزَلْنَاهُ قُرْآنًا عَرَبِيًّا لَّعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ
3 इस क़ुरआन की तुम्हारी ओर प्रकाशना करके इसके द्वारा हम तुम्हें एक बहुत ही अच्छा बयान सुनाते है, यद्यपि इससे पहले तुम बेख़बर थे نَحْنُ نَقُصُّ عَلَيْكَ أَحْسَنَ الْقَصَصِ بِمَا أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ هَـذَا الْقُرْآنَ وَإِن كُنتَ مِن قَبْلِهِ لَمِنَ الْغَافِلِينَ
4 जब यूसुफ़ ने अपने बाप से कहा, "ऐ मेरे बाप! मैंने स्वप्न में ग्यारह सितारे देखे और सूर्य और चाँद। मैंने उन्हें देखा कि वे मुझे सजदा कर रहे है।" إِذْ قَالَ يُوسُفُ لِأَبِيهِ يَا أَبتِ إِنِّي رَأَيْتُ أَحَدَ عَشَرَ كَوْكَبًا وَالشَّمْسَ وَالْقَمَرَ رَأَيْتُهُمْ لِي سَاجِدِينَ
5 उसने कहा, "ऐ मेरे बेटे! अपना स्वप्न अपने भाइयों को मत बताना, अन्यथा वे तेरे विरुद्ध कोई चाल चलेंगे। शैतान तो मनुष्य का खुला हुआ शत्रु है قَالَ يَا بُنَيَّ لاَ تَقْصُصْ رُؤْيَاكَ عَلَى إِخْوَتِكَ فَيَكِيدُواْ لَكَ كَيْدًا إِنَّ الشَّيْطَانَ لِلإِنسَانِ عَدُوٌّ مُّبِينٌ
6 और ऐसा ही होगा, तेरा रब तुझे चुन लेगा और तुझे बातों की तथ्य तक पहुँचना सिखाएगा और अपना अनुग्रह तुझपर और याकूब के घरवालों पर उसी प्रकार पूरा करेगा, जिस प्रकार इससे पहले वह तेरे पूर्वज इबराहीम और इसहाक़ पर पूरा कर चुका है। निस्संदेह तेरा रब सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है।" وَكَذَلِكَ يَجْتَبِيكَ رَبُّكَ وَيُعَلِّمُكَ مِن تَأْوِيلِ الأَحَادِيثِ وَيُتِمُّ نِعْمَتَهُ عَلَيْكَ وَعَلَى آلِ يَعْقُوبَ كَمَا أَتَمَّهَا عَلَى أَبَوَيْكَ مِن قَبْلُ إِبْرَاهِيمَ وَإِسْحَاقَ إِنَّ رَبَّكَ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
7 निश्चय ही यूसुफ़ और उनके भाइयों में सवाल करनेवालों के लिए निशानियाँ है لَّقَدْ كَانَ فِي يُوسُفَ وَإِخْوَتِهِ آيَاتٌ لِّلسَّائِلِينَ
8 जबकि उन्होंने कहा, "यूसुफ़ और उसका भाई हमारे बाप को हमसे अधिक प्रिय है, हालाँकि हम एक पूरा जत्था है। वासत्व में हमारे बाप स्पष्ट तः बहक गए है إِذْ قَالُواْ لَيُوسُفُ وَأَخُوهُ أَحَبُّ إِلَى أَبِينَا مِنَّا وَنَحْنُ عُصْبَةٌ إِنَّ أَبَانَا لَفِي ضَلاَلٍ مُّبِينٍ
9 यूसुफ़ को मार डालो या उसे किसी भूभाग में फेंक आओ, ताकि तुम्हारे बाप का ध्यान केवल तुम्हारी ही ओर हो जाए। इसके पश्चात तुम फिर नेक बन जाना।" اقْتُلُواْ يُوسُفَ أَوِ اطْرَحُوهُ أَرْضًا يَخْلُ لَكُمْ وَجْهُ أَبِيكُمْ وَتَكُونُواْ مِن بَعْدِهِ قَوْمًا صَالِحِينَ
10 उनमें से एक बोलनेवाला बोल पड़ा, "यूसुफ़ की हत्या न करो, यदि तुम्हें कुछ करना ही है तो उसे किसी कुएँ की तह में डाल दो। कोई राहगीर उसे उठा लेगा।" قَالَ قَآئِلٌ مَّنْهُمْ لاَ تَقْتُلُواْ يُوسُفَ وَأَلْقُوهُ فِي غَيَابَةِ الْجُبِّ يَلْتَقِطْهُ بَعْضُ السَّيَّارَةِ إِن كُنتُمْ فَاعِلِينَ
11 उन्होंने कहा, "ऐ हमारे बाप! आपको क्या हो गया है कि यूसुफ़ के मामले में आप हमपर भरोसा नहीं करते, हालाँकि हम तो उसके हितैषी है? قَالُواْ يَا أَبَانَا مَا لَكَ لاَ تَأْمَنَّا عَلَى يُوسُفَ وَإِنَّا لَهُ لَنَاصِحُونَ
12 हमारे साथ कल उसे भेज दीजिए कि वह कुछ चर-चुग और खेल ले। उसकी रक्षा के लिए तो हम हैं ही।" أَرْسِلْهُ مَعَنَا غَدًا يَرْتَعْ وَيَلْعَبْ وَإِنَّا لَهُ لَحَافِظُونَ
13 उसने कहा, यह बात कि तुम उसे ले जाओ, मुझे दुखी कर देती है। कहीं ऐसा न हो कि तुम उसका ध्यान न रख सको और भेड़िया उसे खा जाए।" قَالَ إِنِّي لَيَحْزُنُنِي أَن تَذْهَبُواْ بِهِ وَأَخَافُ أَن يَأْكُلَهُ الذِّئْبُ وَأَنتُمْ عَنْهُ غَافِلُونَ
14 वे बोले, "हमारे एक जत्थे के होते हुए भी यदि उसे भेड़िए ने खा लिया, तब तो निश्चय ही हम सब कुछ गँवा बैठे।" قَالُواْ لَئِنْ أَكَلَهُ الذِّئْبُ وَنَحْنُ عُصْبَةٌ إِنَّا إِذًا لَّخَاسِرُونَ
15 फिर जब वे उसे ले गए और सभी इस बात पर सहमत हो गए कि उसे एक कुएँ की गहराई में डाल दें (तो उन्होंने वह किया जो करना चाहते थे), और हमने उसकी ओर प्रकाशना का, "तू उन्हें उनके इस कर्म से अवगत कराएगा और वे जानते न होंगे।" فَلَمَّا ذَهَبُواْ بِهِ وَأَجْمَعُواْ أَن يَجْعَلُوهُ فِي غَيَابَةِ الْجُبِّ وَأَوْحَيْنَا إِلَيْهِ لَتُنَبِّئَنَّهُم بِأَمْرِهِمْ هَـذَا وَهُمْ لاَ يَشْعُرُونَ
16 कुछ रात बीते वे रोते हुए अपने बाप के पास आए وَجَاؤُواْ أَبَاهُمْ عِشَاء يَبْكُونَ
17 कहने लगे, "ऐ मेरे बाप! हम परस्पर दौड़ में मुक़ाबला करते हुए दूर चले गए और यूसफ़ को हमने अपने सामान के साथ छोड़ दिया था कि इतने में भेड़िया उसे खा गया। आप तो हमपर विश्वास करेंगे नहीं, यद्यपि हम सच्चे है।" قَالُواْ يَا أَبَانَا إِنَّا ذَهَبْنَا نَسْتَبِقُ وَتَرَكْنَا يُوسُفَ عِندَ مَتَاعِنَا فَأَكَلَهُ الذِّئْبُ وَمَا أَنتَ بِمُؤْمِنٍ لِّنَا وَلَوْ كُنَّا صَادِقِينَ
18 वे उसके कुर्ते पर झूठमूठ का ख़ून लगा लाए थे। उसने कहा, "नहीं, बल्कि तुम्हारे जी ने बहकाकर तुम्हारे लिए एक बात बना दी है। अब धैर्य से काम लेना ही उत्तम है! जो बात तुम बता रहे हो उसमें अल्लाह ही सहायक हो सकता है।" وَجَآؤُوا عَلَى قَمِيصِهِ بِدَمٍ كَذِبٍ قَالَ بَلْ سَوَّلَتْ لَكُمْ أَنفُسُكُمْ أَمْرًا فَصَبْرٌ جَمِيلٌ وَاللّهُ الْمُسْتَعَانُ عَلَى مَا تَصِفُونَ
19 एक क़ाफ़िला आया। फिर उसने पनिहारा को भेजा। उसने अपना डोल ज्यों ही डाला तो पुकार उठा, "अरे! कितनी ख़ुशी की बात है। यह तो एक लड़का है।" उन्होंने उसे व्यापार का माल समझकर छुपा लिया। किन्तु जो कुछ वे कर रहे थे, अल्लाह तो उसे जानता ही था وَجَاءتْ سَيَّارَةٌ فَأَرْسَلُواْ وَارِدَهُمْ فَأَدْلَى دَلْوَهُ قَالَ يَا بُشْرَى هَـذَا غُلاَمٌ وَأَسَرُّوهُ بِضَاعَةً وَاللّهُ عَلِيمٌ بِمَا يَعْمَلُونَ
20 उन्होंने उसे सस्ते दाम, गिनती के कुछ दिरहमों में बेच दिया, क्योंकि वे उसके मामलें में बेपरवाह थे وَشَرَوْهُ بِثَمَنٍ بَخْسٍ دَرَاهِمَ مَعْدُودَةٍ وَكَانُواْ فِيهِ مِنَ الزَّاهِدِينَ
21 मिस्र के जिस व्यक्ति ने उसे ख़रीदा, उसने अपनी स्त्री से कहा, "इसको अच्छी तरह रखना। बहुत सम्भव है कि यह हमारे काम आए या हम इसे बेटा बना लें।" इस प्रकार हमने उस भूभाग में यूसुफ़ के क़दम जमाने की राह निकाली (ताकि उसे प्रतिष्ठा प्रदान करें) और ताकि मामलों और बातों के परिणाम से हम उसे अवगत कराएँ। अल्लाह तो अपना काम करके रहता है, किन्तु अधिकतर लोग जानते नहीं وَقَالَ الَّذِي اشْتَرَاهُ مِن مِّصْرَ لاِمْرَأَتِهِ أَكْرِمِي مَثْوَاهُ عَسَى أَن يَنفَعَنَا أَوْ نَتَّخِذَهُ وَلَدًا وَكَذَلِكَ مَكَّنِّا لِيُوسُفَ فِي الأَرْضِ وَلِنُعَلِّمَهُ مِن تَأْوِيلِ الأَحَادِيثِ وَاللّهُ غَالِبٌ عَلَى أَمْرِهِ وَلَـكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لاَ يَعْلَمُونَ
22 और जब वह अपनी जवानी को पहुँचा तो हमने उसे निर्णय-शक्ति और ज्ञान प्रदान किया। उत्तमकार लोगों को हम इसी प्रकार बदला देते है وَلَمَّا بَلَغَ أَشُدَّهُ آتَيْنَاهُ حُكْمًا وَعِلْمًا وَكَذَلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ
23 जिस स्त्री के घर में वह रहता था, वह उस पर डोरे डालने लगी। उसने दरवाज़े बन्द कर दिए और कहने लगी, "लो, आ जाओ!" उसने कहा, "अल्लाह की पनाह! मेरे रब ने मुझे अच्छा स्थान दिया है। अत्याचारी कभी सफल नहीं होते।" وَرَاوَدَتْهُ الَّتِي هُوَ فِي بَيْتِهَا عَن نَّفْسِهِ وَغَلَّقَتِ الأَبْوَابَ وَقَالَتْ هَيْتَ لَكَ قَالَ مَعَاذَ اللّهِ إِنَّهُ رَبِّي أَحْسَنَ مَثْوَايَ إِنَّهُ لاَ يُفْلِحُ الظَّالِمُونَ
24 उसने उसका इरादा कर लिया था। यदि वह अपने रब का स्पष्ट॥ प्रमाण न देख लेता तो वह भी उसका इरादा कर लेता। ऐसा इसलिए हुआ ताकि हम बुराई और अश्लीलता को उससे दूर रखें। निस्संदेह वह हमारे चुने हुए बन्दों में से था وَلَقَدْ هَمَّتْ بِهِ وَهَمَّ بِهَا لَوْلا أَن رَّأَى بُرْهَانَ رَبِّهِ كَذَلِكَ لِنَصْرِفَ عَنْهُ السُّوءَ وَالْفَحْشَاء إِنَّهُ مِنْ عِبَادِنَا الْمُخْلَصِينَ
25 वे दोनों दरवाज़े की ओर झपटे और उस स्त्री ने उसका कुर्ता पीछे से फाड़ डाला। दरवाज़े पर दोनों ने उस स्त्री के पति को उपस्थित पाया। वह बोली, "जो कोई तुम्हारी घरवाली के साथ बुरा इरादा करे, उसका बदला इसके सिवा और क्या होगा कि उसे बन्दी बनाया जाए या फिर कोई दुखद यातना दी जाए?" وَاسُتَبَقَا الْبَابَ وَقَدَّتْ قَمِيصَهُ مِن دُبُرٍ وَأَلْفَيَا سَيِّدَهَا لَدَى الْبَابِ قَالَتْ مَا جَزَاء مَنْ أَرَادَ بِأَهْلِكَ سُوَءًا إِلاَّ أَن يُسْجَنَ أَوْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
26 उसने कहा, "यही मुझपर डोरे डाल रही थी।" उस स्त्री के लोगों में से एक गवाह ने गवाही दी, "यदि इसका कुर्ता आगे से फटा है तो यह सच्ची है और यह झूठा है, قَالَ هِيَ رَاوَدَتْنِي عَن نَّفْسِي وَشَهِدَ شَاهِدٌ مِّنْ أَهْلِهَا إِن كَانَ قَمِيصُهُ قُدَّ مِن قُبُلٍ فَصَدَقَتْ وَهُوَ مِنَ الكَاذِبِينَ
27 और यदि उसका कुर्ता पीछे से फटा है तो यह झूठी है और यह सच्चा है।" وَإِنْ كَانَ قَمِيصُهُ قُدَّ مِن دُبُرٍ فَكَذَبَتْ وَهُوَ مِن الصَّادِقِينَ
28 फिर जब देखा कि उसका कुर्ता पीछे से फटा है तो उसने कहा, "यह तुम स्त्रियों की चाल है। निश्चय ही तुम्हारी चाल बड़े ग़ज़ब की होती है فَلَمَّا رَأَى قَمِيصَهُ قُدَّ مِن دُبُرٍ قَالَ إِنَّهُ مِن كَيْدِكُنَّ إِنَّ كَيْدَكُنَّ عَظِيمٌ
29 यूसुफ़! इस मामले को जाने दे और स्त्री तू अपने गुनाह की माफ़ी माँग। निस्संदेह ख़ता तेरी ही है।" يُوسُفُ أَعْرِضْ عَنْ هَـذَا وَاسْتَغْفِرِي لِذَنبِكِ إِنَّكِ كُنتِ مِنَ الْخَاطِئِينَ
30 नगर की स्त्रियाँ कहने लगी, "अज़ीज़ की पत्नी अपने नवयुवक ग़ुलाम पर डोरे डालना चाहती है। वह प्रेम-प्रेरणा से उसके मन में घर कर गया है। हम तो उसे देख रहे हैं कि वह खुली ग़लती में पड़ गई है।" وَقَالَ نِسْوَةٌ فِي الْمَدِينَةِ امْرَأَةُ الْعَزِيزِ تُرَاوِدُ فَتَاهَا عَن نَّفْسِهِ قَدْ شَغَفَهَا حُبًّا إِنَّا لَنَرَاهَا فِي ضَلاَلٍ مُّبِينٍ
31 उसने जब उनकी मक्करी की बातें सुनी तो उन्हें बुला भेजा और उनमें से हरेक के लिए आसन सुसज्जित किया और उनमें से हरेक को एक छुरी दी। उसने (यूसुफ़ से) कहा, "इनके सामने आ जाओ।" फिर जब स्त्रियों ने देखा तो वे उसकी बड़ाई से दंग रह गई। उन्होंने अपने हाथ घायल कर लिए और कहने लगी, "अल्लाह की पनाह! यह कोई मनुष्य नहीं। यह तो कोई प्रतिष्ठित फ़रिश्ता है।‍" فَلَمَّا سَمِعَتْ بِمَكْرِهِنَّ أَرْسَلَتْ إِلَيْهِنَّ وَأَعْتَدَتْ لَهُنَّ مُتَّكَأً وَآتَتْ كُلَّ وَاحِدَةٍ مِّنْهُنَّ سِكِّينًا وَقَالَتِ اخْرُجْ عَلَيْهِنَّ فَلَمَّا رَأَيْنَهُ أَكْبَرْنَهُ وَقَطَّعْنَ أَيْدِيَهُنَّ وَقُلْنَ حَاشَ لِلّهِ مَا هَـذَا بَشَرًا إِنْ هَـذَا إِلاَّ مَلَكٌ كَرِيمٌ
32 वह बोली, "यह वही है जिसके विषय में तुम मुझे मलामत कर रही थीं। हाँ, मैंने इसे रिझाना चाहा था, किन्तु यह बचा रहा। और यदि इसने न किया जो मैं इससे कहती तो यह अवश्य क़ैद किया जाएगा और अपमानित होगा।" قَالَتْ فَذَلِكُنَّ الَّذِي لُمْتُنَّنِي فِيهِ وَلَقَدْ رَاوَدتُّهُ عَن نَّفْسِهِ فَاسَتَعْصَمَ وَلَئِن لَّمْ يَفْعَلْ مَا آمُرُهُ لَيُسْجَنَنَّ وَلَيَكُونًا مِّنَ الصَّاغِرِينَ
33 उसने कहा, "ऐ मेरे रब! जिसकी ओर ये सब मुझे बुला रही हैं, उससे अधिक तो मुझे क़ैद ही पसन्द है यदि तूने उनके दाँव-घात को मुझसे न टाला तो मैं उनकी और झुक जाऊँगा और निरे आवेग के वशीभूत हो जाऊँगा।" قَالَ رَبِّ السِّجْنُ أَحَبُّ إِلَيَّ مِمَّا يَدْعُونَنِي إِلَيْهِ وَإِلاَّ تَصْرِفْ عَنِّي كَيْدَهُنَّ أَصْبُ إِلَيْهِنَّ وَأَكُن مِّنَ الْجَاهِلِينَ
34 अतः उसने रब ने उसकी सुन ली और उसकी ओर से उन स्त्रियों के दाँव-घात को टाल दिया। निस्संदेह वह सब कुछ सुनता, जानता है فَاسْتَجَابَ لَهُ رَبُّهُ فَصَرَفَ عَنْهُ كَيْدَهُنَّ إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ
35 फिर उन्हें, इसके पश्चात कि वे निशानियाँ देख चुके थे, यह सूझा कि उसे एक अवधि के लिए क़ैद कर दें ثُمَّ بَدَا لَهُم مِّن بَعْدِ مَا رَأَوُاْ الآيَاتِ لَيَسْجُنُنَّهُ حَتَّى حِينٍ
36 कारागार में दो नव युवकों ने भी उसके साथ प्रवेश किया। उनमें से एक ने कहा, "मैंने स्वप्न देखा है कि मैं शराब निचोड़ रहा हूँ।" दूसरे ने कहा, "मैंने देखा कि मैं अपने सिर पर रोटियाँ उठाए हुए हूँ, जिनको पक्षी खा रहे है। हमें इसका अर्थ बता दीजिए। हमें तो आप बहुत ही नेक नज़र आते है।" وَدَخَلَ مَعَهُ السِّجْنَ فَتَيَانَ قَالَ أَحَدُهُمَا إِنِّي أَرَانِي أَعْصِرُ خَمْرًا وَقَالَ الآخَرُ إِنِّي أَرَانِي أَحْمِلُ فَوْقَ رَأْسِي خُبْزًا تَأْكُلُ الطَّيْرُ مِنْهُ نَبِّئْنَا بِتَأْوِيلِهِ إِنَّا نَرَاكَ مِنَ الْمُحْسِنِينَ
37 उसने कहा, "जो भोजन तुम्हें मिला करता है वह तुम्हारे पास नहीं आ पाएगा, उसके तुम्हारे पास आने से पहले ही मैं तुम्हें इसका अर्थ बता दूँगा। यह उन बातों में से है, जो मेरे रब ने मुझे सिखाई है। मैं तो उन लोगों का तरीक़ा छोड़कर, जो अल्लाह को नहीं मानते और जो आख़िरत (परलोक) का इनकार करते हैं, قَالَ لاَ يَأْتِيكُمَا طَعَامٌ تُرْزَقَانِهِ إِلاَّ نَبَّأْتُكُمَا بِتَأْوِيلِهِ قَبْلَ أَن يَأْتِيكُمَا ذَلِكُمَا مِمَّا عَلَّمَنِي رَبِّي إِنِّي تَرَكْتُ مِلَّةَ قَوْمٍ لاَّ يُؤْمِنُونَ بِاللّهِ وَهُم بِالآخِرَةِ هُمْ كَافِرُونَ
38 अपने पूर्वज इबराहीम, इसहाक़ और याक़ूब का तरीक़ा अपनाया है। इमसे यह नहीं हो सकता कि हम अल्लाह के साथ किसी चीज़ को साझी ठहराएँ। यह हमपर और लोगों पर अल्लाह का अनुग्रह है। किन्तु अधिकतर लोग आभार नहीं प्रकट करते وَاتَّبَعْتُ مِلَّةَ آبَآئِـي إِبْرَاهِيمَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ مَا كَانَ لَنَا أَن نُّشْرِكَ بِاللّهِ مِن شَيْءٍ ذَلِكَ مِن فَضْلِ اللّهِ عَلَيْنَا وَعَلَى النَّاسِ وَلَـكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لاَ يَشْكُرُونَ
39 ऐ कारागर के मेरे साथियों! क्या अलग-अलग बहुत-से रह अच्छे है या अकेला अल्लाह जिसका प्रभुत्व सबपर है? يَا صَاحِبَيِ السِّجْنِ أَأَرْبَابٌ مُّتَفَرِّقُونَ خَيْرٌ أَمِ اللّهُ الْوَاحِدُ الْقَهَّارُ
40 तुम उसके सिवा जिनकी भी बन्दगी करते हो वे तो बस निरे नाम हैं जो तुमने रख छोड़े है और तुम्हारे बाप-दादा ने। उनके लिए अल्लाह ने कोई प्रमाण नहीं उतारा। सत्ता और अधिकार तो बस अल्लाह का है। उसने आदेश दिया है कि उसके सिवा किसी की बन्दगी न करो। यही सीधा, सच्चा दीन (धर्म) हैं, किन्तु अधिकतर लोग नहीं जानते مَا تَعْبُدُونَ مِن دُونِهِ إِلاَّ أَسْمَاء سَمَّيْتُمُوهَا أَنتُمْ وَآبَآؤُكُم مَّا أَنزَلَ اللّهُ بِهَا مِن سُلْطَانٍ إِنِ الْحُكْمُ إِلاَّ لِلّهِ أَمَرَ أَلاَّ تَعْبُدُواْ إِلاَّ إِيَّاهُ ذَلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ وَلَـكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لاَ يَعْلَمُونَ
41 ऐ कारागार के मेरे दोनों साथियों! तुममें से एक तो अपने स्वामी को मद्यपान कराएगा; रहा दूसरा तो उसे सूली पर चढ़ाया जाएगा और पक्षी उसका सिर खाएँगे। फ़ैसला हो चुका उस बात का जिसके विषय में तुम मुझसे पूछ रहे हो।" يَا صَاحِبَيِ السِّجْنِ أَمَّا أَحَدُكُمَا فَيَسْقِي رَبَّهُ خَمْرًا وَأَمَّا الآخَرُ فَيُصْلَبُ فَتَأْكُلُ الطَّيْرُ مِن رَّأْسِهِ قُضِيَ الأَمْرُ الَّذِي فِيهِ تَسْتَفْتِيَانِ
42 उन दोनों में से जिसके विषय में उसने समझा था कि वह रिहा हो जाएगा, उससे कहा, "अपने स्वामी से मेरी चर्चा करना।" किन्तु शैतान ने अपने स्वामी से उसकी चर्चा करना भुलवा दिया। अतः वह (यूसुफ़) कई वर्ष तक कारागार ही में रहा وَقَالَ لِلَّذِي ظَنَّ أَنَّهُ نَاجٍ مِّنْهُمَا اذْكُرْنِي عِندَ رَبِّكَ فَأَنسَاهُ الشَّيْطَانُ ذِكْرَ رَبِّهِ فَلَبِثَ فِي السِّجْنِ بِضْعَ سِنِينَ
43 फिर ऐसा हुआ कि सम्राट ने कहा, "मैं एक स्वप्न देखा कि सात मोटी गायों को सात दुबली गायें खा रही है और सात बालें हरी है और दूसरी (सात सूखी) । ऐ सरदारों! यदि तुम स्वप्न का अर्थ बताते हो, तो मुझे मेरे इस स्वप्न के सम्बन्ध में बताओ।" وَقَالَ الْمَلِكُ إِنِّي أَرَى سَبْعَ بَقَرَاتٍ سِمَانٍ يَأْكُلُهُنَّ سَبْعٌ عِجَافٌ وَسَبْعَ سُنبُلاَتٍ خُضْرٍ وَأُخَرَ يَابِسَاتٍ يَا أَيُّهَا الْمَلأُ أَفْتُونِي فِي رُؤْيَايَ إِن كُنتُمْ لِلرُّؤْيَا تَعْبُرُونَ
44 उन्होंने कहा, "ये तो सम्भ्रमित स्वप्न है। हम ऐसे स्वप्न का अर्थ नहीं जानते।" قَالُواْ أَضْغَاثُ أَحْلاَمٍ وَمَا نَحْنُ بِتَأْوِيلِ الأَحْلاَمِ بِعَالِمِينَ
45 इतने में दोनों में सो जो रिहा हो गया था और एक अर्से के बाद उसे याद आया तो वह बोला, "मैं इसका अर्थ तुम्हें बताता हूँ। ज़रा मुझे (यूसुफ़ के पास) भेज दीजिए।" وَقَالَ الَّذِي نَجَا مِنْهُمَا وَادَّكَرَ بَعْدَ أُمَّةٍ أَنَاْ أُنَبِّئُكُم بِتَأْوِيلِهِ فَأَرْسِلُونِ
46 "यूसुफ़, ऐ सत्यवान! हमें इसका अर्थ बता कि सात मोटी गायें है, जिन्हें सात दुबली गायें खा रही है और सात हरी बालें है और दूसरी (सात) सूखी, ताकि मैं लोगों के पास लौटकर जाऊँ कि वे जान लें।" يُوسُفُ أَيُّهَا الصِّدِّيقُ أَفْتِنَا فِي سَبْعِ بَقَرَاتٍ سِمَانٍ يَأْكُلُهُنَّ سَبْعٌ عِجَافٌ وَسَبْعِ سُنبُلاَتٍ خُضْرٍ وَأُخَرَ يَابِسَاتٍ لَّعَلِّي أَرْجِعُ إِلَى النَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَعْلَمُونَ
47 उसने कहा, "सात वर्ष तक तुम व्यवहारतः खेती करते रहोगे। फिर तुम जो फ़सल काटो तो थोड़े हिस्से के सिवा जो तुम्हारे खाने के काम आए शेष को उसकी बाली में रहने देना قَالَ تَزْرَعُونَ سَبْعَ سِنِينَ دَأَبًا فَمَا حَصَدتُّمْ فَذَرُوهُ فِي سُنبُلِهِ إِلاَّ قَلِيلاً مِّمَّا تَأْكُلُونَ
48 फिर उसके पश्चात सात कठिन वर्ष आएँगे जो वे सब खा जाएँगे जो तुमने उनके लिए पहले से इकट्ठा कर रखा होगा, सिवाय उस थोड़े-से हिस्से के जो तुम सुरक्षित कर लोगे ثُمَّ يَأْتِي مِن بَعْدِ ذَلِكَ سَبْعٌ شِدَادٌ يَأْكُلْنَ مَا قَدَّمْتُمْ لَهُنَّ إِلاَّ قَلِيلاً مِّمَّا تُحْصِنُونَ
49 फिर उसके पश्चात एक वर्ष ऐसा आएगा, जिसमें वर्षा द्वारा लोगों की फ़रियाद सुन ली जाएगी और उसमें वे रस निचोड़ेगे।" ثُمَّ يَأْتِي مِن بَعْدِ ذَلِكَ عَامٌ فِيهِ يُغَاثُ النَّاسُ وَفِيهِ يَعْصِرُونَ
50 सम्राट ने कहा, "उसे मेरे पास ले आओ।" किन्तु जब दूत उसके पास पहुँचा तो उसने कहा, "अपने स्वामी के पास वापस जाओ और उससे पूछो कि उन स्त्रियों का क्या मामला है, जिन्होंने अपने हाथ घायल कर लिए थे। निस्संदेह मेरा रब उनकी मक्कारी को भली-भाँति जानता है।" وَقَالَ الْمَلِكُ ائْتُونِي بِهِ فَلَمَّا جَاءهُ الرَّسُولُ قَالَ ارْجِعْ إِلَى رَبِّكَ فَاسْأَلْهُ مَا بَالُ النِّسْوَةِ اللاَّتِي قَطَّعْنَ أَيْدِيَهُنَّ إِنَّ رَبِّي بِكَيْدِهِنَّ عَلِيمٌ
51 उसने कहा, "तुम स्त्रियों का क्या हाल था, जब तुमने यूसुफ़ को रिझाने की चेष्टा की थी?" उन्होंने कहा, "पाक है अल्लाह! हम उसमें कोई बुराई नहीं जानते है।" अज़ीज़ की स्त्री बोल उठी, "अब तो सत्य प्रकट हो गया है। मैंने ही उसे रिझाना चाहा था। वह तो बिलकुल सच्चा है।" قَالَ مَا خَطْبُكُنَّ إِذْ رَاوَدتُّنَّ يُوسُفَ عَن نَّفْسِهِ قُلْنَ حَاشَ لِلّهِ مَا عَلِمْنَا عَلَيْهِ مِن سُوءٍ قَالَتِ امْرَأَةُ الْعَزِيزِ الآنَ حَصْحَصَ الْحَقُّ أَنَاْ رَاوَدتُّهُ عَن نَّفْسِهِ وَإِنَّهُ لَمِنَ الصَّادِقِينَ
52 "यह इसलिए कि वह जान ले कि मैंने गुप्त॥ रूप से उसके साथ विश्वासघात नहीं किया और यह कि अल्लाह विश्वासघातियों का चाल को चलने नहीं देता ذَلِكَ لِيَعْلَمَ أَنِّي لَمْ أَخُنْهُ بِالْغَيْبِ وَأَنَّ اللّهَ لاَ يَهْدِي كَيْدَ الْخَائِنِينَ
53 मैं यह नहीं कहता कि मैं बुरी हूँ - जी तो बुराई पर उभारता ही है - यदि मेरा रब ही दया करे तो बात और है। निश्चय ही मेरा रब बहुत क्षमाशील, दयावान है।" وَمَا أُبَرِّئُ نَفْسِي إِنَّ النَّفْسَ لأَمَّارَةٌ بِالسُّوءِ إِلاَّ مَا رَحِمَ رَبِّيَ إِنَّ رَبِّي غَفُورٌ رَّحِيمٌ
54 सम्राट ने कहा, "उसे मेरे पास ले आओ! मैं उसे अपने लिए ख़ास कर लूँगा।" जब उसने उससे बात-चीक करी तो उसने कहा, "निस्संदेह आज तुम हमारे यहाँ विश्व सनीय अधिकार प्राप्त व्यक्ति हो।" وَقَالَ الْمَلِكُ ائْتُونِي بِهِ أَسْتَخْلِصْهُ لِنَفْسِي فَلَمَّا كَلَّمَهُ قَالَ إِنَّكَ الْيَوْمَ لَدَيْنَا مِكِينٌ أَمِينٌ
55 उसने कहा, "इस भू-भाग के ख़जानों पर मुझे नियुक्त कर दीजिए। निश्चय ही मैं रक्षक और ज्ञानवान हूँ।" قَالَ اجْعَلْنِي عَلَى خَزَآئِنِ الأَرْضِ إِنِّي حَفِيظٌ عَلِيمٌ
56 इस प्रकार हमने यूसुफ़ को उस भू-भाग में अधिकार प्रदान किया कि वह उसमें जहाँ चाहे अपनी जगह बनाए। हम जिसे चाहते हैं उसे अपनी दया का पात्र बनाते है। उत्तमकारों का बदला हम अकारथ नहीं जाने देते وَكَذَلِكَ مَكَّنِّا لِيُوسُفَ فِي الأَرْضِ يَتَبَوَّأُ مِنْهَا حَيْثُ يَشَاء نُصِيبُ بِرَحْمَتِنَا مَن نَّشَاء وَلاَ نُضِيعُ أَجْرَ الْمُحْسِنِينَ
57 और ईमान लानेवालों और डर रखनेवालों के लिए आख़िरत का बदला इससे कहीं उत्तम है وَلَأَجْرُ الآخِرَةِ خَيْرٌ لِّلَّذِينَ آمَنُواْ وَكَانُواْ يَتَّقُونَ
58 फिर ऐसा हुआ कि यूसुफ़ के भाई आए और उसके सामने उपस्थित हुए, उसने तो उन्हें पहचान लिया, किन्तु वे उससे अपरिचित रहे وَجَاء إِخْوَةُ يُوسُفَ فَدَخَلُواْ عَلَيْهِ فَعَرَفَهُمْ وَهُمْ لَهُ مُنكِرُونَ
59 जब उसने उनके लिए उनका सामान तैयार करा दिया तो कहा, "बाप की ओर सो तुम्हारा भाई है, उसे मेरे पास लाना। क्या देखते नहीं कि मैं पूरी माप से देता हूँ और मैं अच्छा आतिशेय भी हूँ?" وَلَمَّا جَهَّزَهُم بِجَهَازِهِمْ قَالَ ائْتُونِي بِأَخٍ لَّكُم مِّنْ أَبِيكُمْ أَلاَ تَرَوْنَ أَنِّي أُوفِي الْكَيْلَ وَأَنَاْ خَيْرُ الْمُنزِلِينَ
60 किन्तु यदि तुम उसे मेरे पास न लाए तो फिर तुम्हारे लिए मेरे यहाँ कोई माप (ग़ल्ला) नहीं और तुम मेरे पास आना भी मत।" فَإِن لَّمْ تَأْتُونِي بِهِ فَلاَ كَيْلَ لَكُمْ عِندِي وَلاَ تَقْرَبُونِ
61 वे बोले, "हम उसके लिए उसके बाप को राज़ी करने की कोशिश करेंगे और हम यह काम अवश्य करेंगे।" قَالُواْ سَنُرَاوِدُ عَنْهُ أَبَاهُ وَإِنَّا لَفَاعِلُونَ
62 उसने अपने सेवकों से कहा, "इनका दिया हुआ माल इनके सामान में रख दो कि जब ये अपने घरवालों की ओर लौटें तो इसे पहचान लें, ताकि ये फिर लौटकर आएँ।" وَقَالَ لِفِتْيَانِهِ اجْعَلُواْ بِضَاعَتَهُمْ فِي رِحَالِهِمْ لَعَلَّهُمْ يَعْرِفُونَهَا إِذَا انقَلَبُواْ إِلَى أَهْلِهِمْ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ
63 फिर जब वे अपने बाप के पास लौटकर गए तो कहा, "ऐ मेरे बाप! (अनाज की) माप हमसे रोक दी गई है। अतः हमारे भाई को हमारे साथ भेज दीजिए, ताकि हम माप भर लाएँ; और हम उसकी रक्षा के लिए तो मौजूद ही हैं।" فَلَمَّا رَجِعُوا إِلَى أَبِيهِمْ قَالُواْ يَا أَبَانَا مُنِعَ مِنَّا الْكَيْلُ فَأَرْسِلْ مَعَنَا أَخَانَا نَكْتَلْ وَإِنَّا لَهُ لَحَافِظُونَ
64 उसने कहा, "क्या मैं उसके मामले में तुमपर वैसा ही भरोसा करूँ जैसा इससे पहले उसके भाई के मामले में तुमपर भरोसा कर चुका हूँ? हाँ, अल्लाह ही सबसे अच्छ रक्षक है और वह सबसे बढ़कर दयावान है।" قَالَ هَلْ آمَنُكُمْ عَلَيْهِ إِلاَّ كَمَا أَمِنتُكُمْ عَلَى أَخِيهِ مِن قَبْلُ فَاللّهُ خَيْرٌ حَافِظًا وَهُوَ أَرْحَمُ الرَّاحِمِينَ
65 जब उन्होंने अपना सामान खोला, तो उन्होंने अपने माल अपनी ओर वापस किया हुआ पाया। वे बोले, "ऐ मेरे बाप, हमें और क्या चाहिए! यह हमारा माल भी तो हमें लौटा दिया गया है। अब हम अपने घरवालों के लिए खाद्य-सामग्री लाएँगे और अपने भाई की रक्षा भी करेंगे। और एक ऊँट के बोझभर और अधिक लेंगे। इतना माप (ग़ल्ला) मिल जाना तो बिलकुल आसान है।" وَلَمَّا فَتَحُواْ مَتَاعَهُمْ وَجَدُواْ بِضَاعَتَهُمْ رُدَّتْ إِلَيْهِمْ قَالُواْ يَا أَبَانَا مَا نَبْغِي هَـذِهِ بِضَاعَتُنَا رُدَّتْ إِلَيْنَا وَنَمِيرُ أَهْلَنَا وَنَحْفَظُ أَخَانَا وَنَزْدَادُ كَيْلَ بَعِيرٍ ذَلِكَ كَيْلٌ يَسِيرٌ
66 उसने कहा, "मैं उसे तुम्हारे साथ कदापि नहीं भेज सकता। जब तक कि तुम अल्लाह को गवाह बनाकर मुझे पक्का वचन न दो कि तुम उसे मेरे पास अवश्य लाओगे, यह और बात है कि तुम घिर जाओ।" फिर जब उन्होंने उसे अपना वचन दे दिया तो उसने कहा, "हम जो कुछ कर रहे है वह अल्लाह के हवाले है।" قَالَ لَنْ أُرْسِلَهُ مَعَكُمْ حَتَّى تُؤْتُونِ مَوْثِقًا مِّنَ اللّهِ لَتَأْتُنَّنِي بِهِ إِلاَّ أَن يُحَاطَ بِكُمْ فَلَمَّا آتَوْهُ مَوْثِقَهُمْ قَالَ اللّهُ عَلَى مَا نَقُولُ وَكِيلٌ
67 उसने यह भी कहा, "ऐ मेरे बेटो! एक द्वार से प्रवेश न करना, बल्कि विभिन्न द्वारों से प्रवेश करना यद्यपि मैं अल्लाह के मुक़ाबले में तुम्हारे काम नहीं आ सकता आदेश तो बस अल्लाह ही का चलता है। उसी पर मैंने भरोसा किया और भरोसा करनेवालों को उसी पर भरोसा करना चाहिए।" وَقَالَ يَا بَنِيَّ لاَ تَدْخُلُواْ مِن بَابٍ وَاحِدٍ وَادْخُلُواْ مِنْ أَبْوَابٍ مُّتَفَرِّقَةٍ وَمَا أُغْنِي عَنكُم مِّنَ اللّهِ مِن شَيْءٍ إِنِ الْحُكْمُ إِلاَّ لِلّهِ عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ وَعَلَيْهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُتَوَكِّلُونَ
68 और जब उन्होंने प्रवेश किया जिस तरह से उनके बाप ने उन्हें आदेश दिया था - अल्लाह की ओर से होनेवाली किसी चीज़ को वह उनसे हटा नहीं सकता था। बस याक़ूब के जी की एक इच्छा थी, जो उसने पूरी कर ली। और निस्संदेह वह ज्ञानवान था, क्योंकि हमने उसे ज्ञान प्रदान किया था; किन्तु अधिकतर लोग जानते नहीं - وَلَمَّا دَخَلُواْ مِنْ حَيْثُ أَمَرَهُمْ أَبُوهُم مَّا كَانَ يُغْنِي عَنْهُم مِّنَ اللّهِ مِن شَيْءٍ إِلاَّ حَاجَةً فِي نَفْسِ يَعْقُوبَ قَضَاهَا وَإِنَّهُ لَذُو عِلْمٍ لِّمَا عَلَّمْنَاهُ وَلَـكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لاَ يَعْلَمُونَ
69 और जब उन्होंने यूसुफ़ के यहाँ प्रवेश किया तो उसने अपने भाई को अपने पास जगह दी और कहा, "मैं तेरा भाई हूँ। जो कुछ ये करते रहे हैं, अब तू उसपर दुखी न हो।" وَلَمَّا دَخَلُواْ عَلَى يُوسُفَ آوَى إِلَيْهِ أَخَاهُ قَالَ إِنِّي أَنَاْ أَخُوكَ فَلاَ تَبْتَئِسْ بِمَا كَانُواْ يَعْمَلُونَ
70 फिर जब उनका सामान तैयार कर दिया तो अपने भाई के सामान में पानी पीने का प्याला रख दिया। फिर एक पुकारनेवाले ने पुकारकर कहा, "ऐ क़ाफ़िलेवालो! निश्चय ही तुम चोर हो।" فَلَمَّا جَهَّزَهُم بِجَهَازِهِمْ جَعَلَ السِّقَايَةَ فِي رَحْلِ أَخِيهِ ثُمَّ أَذَّنَ مُؤَذِّنٌ أَيَّتُهَا الْعِيرُ إِنَّكُمْ لَسَارِقُونَ
71 वे उनकी ओर रुख़ करते हुए बोले, "तुम्हारी क्या चीज़ खो गई है?" قَالُواْ وَأَقْبَلُواْ عَلَيْهِم مَّاذَا تَفْقِدُونَ
72 उन्होंने कहा, "शाही पैमाना हमें नहीं मिल रहा है। जो व्यक्ति उसे ला दे उसको एक ऊँट का बोझभर ग़ल्ला इनाम मिलेगा। मैं इसकी ज़िम्मेदारी लेता हूँ।" قَالُواْ نَفْقِدُ صُوَاعَ الْمَلِكِ وَلِمَن جَاء بِهِ حِمْلُ بَعِيرٍ وَأَنَاْ بِهِ زَعِيمٌ
73 वे कहने लगे, "अल्लाह की क़सम! तुम लोग जानते ही हो कि हम इस भू-भाग में बिगाड़ पैदा करने नहीं आए है और न हम चोर है।" قَالُواْ تَاللّهِ لَقَدْ عَلِمْتُم مَّا جِئْنَا لِنُفْسِدَ فِي الأَرْضِ وَمَا كُنَّا سَارِقِينَ
74 उन्होंने कहा, "यदि तुम झूठे सिद्ध हुए तो फिर उसका दंड क्या है?" قَالُواْ فَمَا جَزَآؤُهُ إِن كُنتُمْ كَاذِبِينَ
75 वे बोले, "उसका दंड यह है कि जिसके सामान में वह मिले वही उसका बदला ठहराया जाए। हम अत्याचारियों को ऐसा ही दंड देते है।" قَالُواْ جَزَآؤُهُ مَن وُجِدَ فِي رَحْلِهِ فَهُوَ جَزَاؤُهُ كَذَلِكَ نَجْزِي الظَّالِمِينَ
76 फिर उसके भाई की खुरजी से पहले उनकी ख़ुरजियाँ देखनी शुरू की; फिर उसके भाई की ख़ुरजी से उसे बरामद कर लिया। इस प्रकार हमने यूसुफ़ का उपाय किया। वह शाही क़ानून के अनुसार अपने भाई को प्राप्त नहीं कर सकता था। बल्कि अल्लाह ही की इच्छा लागू है। हम जिसको चाहे उसके दर्जे ऊँचे कर दें। और प्रत्येक ज्ञानवान से ऊपर एक ज्ञानवान मौजूद है فَبَدَأَ بِأَوْعِيَتِهِمْ قَبْلَ وِعَاء أَخِيهِ ثُمَّ اسْتَخْرَجَهَا مِن وِعَاء أَخِيهِ كَذَلِكَ كِدْنَا لِيُوسُفَ مَا كَانَ لِيَأْخُذَ أَخَاهُ فِي دِينِ الْمَلِكِ إِلاَّ أَن يَشَاء اللّهُ نَرْفَعُ دَرَجَاتٍ مِّن نَّشَاء وَفَوْقَ كُلِّ ذِي عِلْمٍ عَلِيمٌ
77 उन्होंने कहा, "यदि यह चोरी करता है तो चोरी तो इससे पहले इसका एक भाई भी कर चुका है।" किन्तु यूसुफ़ ने इसे अपने जी ही में रखा और उनपर प्रकट नहीं किया। उसने कहा, "मक़ाम की दृष्टि से तुम अत्यन्त बुरे हो। जो कुछ तुम बताते हो, अल्लाह को उसका पूरा ज्ञान है।" قَالُواْ إِن يَسْرِقْ فَقَدْ سَرَقَ أَخٌ لَّهُ مِن قَبْلُ فَأَسَرَّهَا يُوسُفُ فِي نَفْسِهِ وَلَمْ يُبْدِهَا لَهُمْ قَالَ أَنتُمْ شَرٌّ مَّكَانًا وَاللّهُ أَعْلَمْ بِمَا تَصِفُونَ
78 उन्होंने कहा, "ऐ अज़ीज़! इसका बाप बहुत ही बूढ़ा है। इसलिए इसके स्थान पर हममें से किसी को रख लीजिए। हमारी स्पष्ट में तो आप बड़े ही सुकर्मी है।" قَالُواْ يَا أَيُّهَا الْعَزِيزُ إِنَّ لَهُ أَبًا شَيْخًا كَبِيرًا فَخُذْ أَحَدَنَا مَكَانَهُ إِنَّا نَرَاكَ مِنَ الْمُحْسِنِينَ
79 उसने कहा, "इस बात से अल्लाह पनाह में रखे कि जिसके पास हमने अपना माल पाया है, उसे छोड़कर हम किसी दूसरे को रखें। फिर तो हम अत्याचारी ठहगेंगे।" قَالَ مَعَاذَ اللّهِ أَن نَّأْخُذَ إِلاَّ مَن وَجَدْنَا مَتَاعَنَا عِندَهُ إِنَّـا إِذًا لَّظَالِمُونَ
80 तो जब से वे उससे निराश हो गए तो परामर्श करने के लिए अलग जा बैठे। उनमें जो बड़ा था, वह कहने लगा, "क्या तुम जानते नहीं कि तुम्हारा बाप अल्लाह के नाम पर तुमसे वचन ले चुका है और उसको जो इससे पहले यूसुफ़ के मामले में तुमसे क़सूर हो चुका है? मैं तो इस भू-भाग से कदापि टलने का नहीं जब तक कि मेरे बाप मुझे अनुमति न दें या अल्लाह ही मेरे हक़ में कोई फ़ैसला कर दे। और वही सबसे अच्छा फ़ैसला करनेवाला है فَلَمَّا اسْتَيْأَسُواْ مِنْهُ خَلَصُواْ نَجِيًّا قَالَ كَبِيرُهُمْ أَلَمْ تَعْلَمُواْ أَنَّ أَبَاكُمْ قَدْ أَخَذَ عَلَيْكُم مَّوْثِقًا مِّنَ اللّهِ وَمِن قَبْلُ مَا فَرَّطتُمْ فِي يُوسُفَ فَلَنْ أَبْرَحَ الأَرْضَ حَتَّىَ يَأْذَنَ لِي أَبِي أَوْ يَحْكُمَ اللّهُ لِي وَهُوَ خَيْرُ الْحَاكِمِينَ
81 तुम अपने बाप के पास लौटकर जाओ और कहो, "ऐ हमारे बाप! आपके बेटे ने चोरी की है। हमने तो वही कहा जो हमें मालूम हो सका, परोक्ष तो हमारी दृष्टि में था नहीं ارْجِعُواْ إِلَى أَبِيكُمْ فَقُولُواْ يَا أَبَانَا إِنَّ ابْنَكَ سَرَقَ وَمَا شَهِدْنَا إِلاَّ بِمَا عَلِمْنَا وَمَا كُنَّا لِلْغَيْبِ حَافِظِينَ
82 आप उस बस्ती से पूछ लीजिए जहाँ हम थे और उस क़ाफ़िलें से भी जिसके साथ होकर हम आए। निस्संदेह हम बिलकुल सच्चे है।" وَاسْأَلِ الْقَرْيَةَ الَّتِي كُنَّا فِيهَا وَالْعِيْرَ الَّتِي أَقْبَلْنَا فِيهَا وَإِنَّا لَصَادِقُونَ
83 उसने कहा, "नहीं, बल्कि तुम्हारे जी ही ने तुम्हे पट्टी पढ़ाकर एक बात बना दी है। अब धैर्य से काम लेना ही उत्तम है! बहुत सम्भव है कि अल्लाह उन सबको मेरे पास ले आए। वह तो सर्वज्ञ, अत्यन्त तत्वदर्शी है।" قَالَ بَلْ سَوَّلَتْ لَكُمْ أَنفُسُكُمْ أَمْرًا فَصَبْرٌ جَمِيلٌ عَسَى اللّهُ أَن يَأْتِيَنِي بِهِمْ جَمِيعًا إِنَّهُ هُوَ الْعَلِيمُ الْحَكِيمُ
84 उसने उनकी ओर से मुख फेर लिया और कहने लगा, "हाय अफ़सोस, यूसुफ़ की जुदाई पर!" और ग़म के मारे उसकी आँखें सफ़ेद पड़ गई और वह घुटा जा रहा था وَتَوَلَّى عَنْهُمْ وَقَالَ يَا أَسَفَى عَلَى يُوسُفَ وَابْيَضَّتْ عَيْنَاهُ مِنَ الْحُزْنِ فَهُوَ كَظِيمٌ
85 उन्होंने कहा, "अल्लाह की क़सम! आप तो यूसुफ़ ही की याद में लगे रहेंगे, यहाँ तक कि घुलकर रहेंगे या प्राण ही त्याग देंगे।" قَالُواْ تَالله تَفْتَأُ تَذْكُرُ يُوسُفَ حَتَّى تَكُونَ حَرَضًا أَوْ تَكُونَ مِنَ الْهَالِكِينَ
86 उसने कहा, "मैं तो अपनी परेशानी और अपने ग़म की शिकायत अल्लाह ही से करता हूँ और अल्लाह की ओर से जो मैं जानता हूँ, तुम नही जानते قَالَ إِنَّمَا أَشْكُو بَثِّي وَحُزْنِي إِلَى اللّهِ وَأَعْلَمُ مِنَ اللّهِ مَا لاَ تَعْلَمُونَ
87 ऐ मेरे बेटों! जाओ और यूसुफ़ और उसके भाई की टोह लगाओ और अल्लाह की सदयता से निराश न हो। अल्लाह की सदयता से तो केवल कुफ़्र करनेवाले ही निराश होते है।" يَا بَنِيَّ اذْهَبُواْ فَتَحَسَّسُواْ مِن يُوسُفَ وَأَخِيهِ وَلاَ تَيْأَسُواْ مِن رَّوْحِ اللّهِ إِنَّهُ لاَ يَيْأَسُ مِن رَّوْحِ اللّهِ إِلاَّ الْقَوْمُ الْكَافِرُونَ
88 फिर जब वे उसके पास उपस्थित हुए तो कहा, "ऐ अज़ीज़! हमें और हमारे घरवालों को बहुत तकलीफ़ पहुँची हैं और हम कुछ तुच्छ-सी पूँजी लेकर आए है, किन्तु आप हमें पूरी-पूरी माप प्रदान करें। और हमें दान दें। निश्चय ही दान करनेवालों को बदला अल्लाह देता है।" فَلَمَّا دَخَلُواْ عَلَيْهِ قَالُواْ يَا أَيُّهَا الْعَزِيزُ مَسَّنَا وَأَهْلَنَا الضُّرُّ وَجِئْنَا بِبِضَاعَةٍ مُّزْجَاةٍ فَأَوْفِ لَنَا الْكَيْلَ وَتَصَدَّقْ عَلَيْنَا إِنَّ اللّهَ يَجْزِي الْمُتَصَدِّقِينَ
89 उसने कहा, "क्या तुम्हें यह भी मालूम है कि जब तुम आवेग के वशीभूत थे तो यूसुफ़ और उसके भाई के साथ तुमने क्या किया था?" قَالَ هَلْ عَلِمْتُم مَّا فَعَلْتُم بِيُوسُفَ وَأَخِيهِ إِذْ أَنتُمْ جَاهِلُونَ
90 वे बोल पड़े, "क्या यूसुफ़ आप ही है?" उसने कहा, "मैं ही यूसुफ़ हूँ और यह मेरा भाई है। अल्लाह ने हमपर उपकार किया है। सच तो यह है कि जो कोई डर रखे और धैर्य से काम ले तो अल्लाह भी उत्तमकारों का बदला अकारथ नहीं करता।" قَالُواْ أَإِنَّكَ لَأَنتَ يُوسُفُ قَالَ أَنَاْ يُوسُفُ وَهَـذَا أَخِي قَدْ مَنَّ اللّهُ عَلَيْنَا إِنَّهُ مَن يَتَّقِ وَيِصْبِرْ فَإِنَّ اللّهَ لاَ يُضِيعُ أَجْرَ الْمُحْسِنِينَ
91 उन्होंने कहा, "अल्लाह की क़सम! आपको अल्लाह ने हमारे मुक़ाबले में पसन्द किया और निश्चय ही चूक तो हमसे हुई।" قَالُواْ تَاللّهِ لَقَدْ آثَرَكَ اللّهُ عَلَيْنَا وَإِن كُنَّا لَخَاطِئِينَ
92 उसने कहा, "आज तुमपर कोई आरोप नहीं। अल्लाह तुम्हें क्षमा करे। वह सबसे बढ़कर दयावान है। قَالَ لاَ تَثْرَيبَ عَلَيْكُمُ الْيَوْمَ يَغْفِرُ اللّهُ لَكُمْ وَهُوَ أَرْحَمُ الرَّاحِمِينَ
93 मेरा यह कुर्ता ले जाओ और इसे मेरे बाप के मुख पर डाल दो। उनकी नेत्र-ज्योति लौट आएगी, फिर अपने सब घरवालों को मेरे यहाँ ले आओ।" اذْهَبُواْ بِقَمِيصِي هَـذَا فَأَلْقُوهُ عَلَى وَجْهِ أَبِي يَأْتِ بَصِيرًا وَأْتُونِي بِأَهْلِكُمْ أَجْمَعِينَ
94 इधर जब क़ाफ़िला चला तो उनके बाप ने कहा, "यदि तुम मुझे बहकी बातें करनेवाला न समझो तो मुझे तो यूसुफ़ की महक आ रही है।" وَلَمَّا فَصَلَتِ الْعِيرُ قَالَ أَبُوهُمْ إِنِّي لَأَجِدُ رِيحَ يُوسُفَ لَوْلاَ أَن تُفَنِّدُونِ
95 वे बोले, "अल्लाह की क़सम! आप तो अभी तक अपनी उसी पुरानी भ्रांति में पड़े हुए है।" قَالُواْ تَاللّهِ إِنَّكَ لَفِي ضَلاَلِكَ الْقَدِيمِ
96 फिर जब शुभ सूचना देनेवाला आया तो उसने उस (कुर्ते) को उसके मुँह पर डाल दिया और तत्क्षण उसकी नेत्र-ज्योति लौट आई। उसने कहा, "क्या मैंने तुमसे कहा नहीं था कि अल्लाह की ओर से जो मैं जानता हूँ, तुम नहीं जानते।" فَلَمَّا أَن جَاء الْبَشِيرُ أَلْقَاهُ عَلَى وَجْهِهِ فَارْتَدَّ بَصِيرًا قَالَ أَلَمْ أَقُل لَّكُمْ إِنِّي أَعْلَمُ مِنَ اللّهِ مَا لاَ تَعْلَمُونَ
97 वे बोले, "ऐ मेरे बाप! आप हमारे गुनाहों की क्षमा के लिए प्रार्थना करें। वास्तव में चूक हमसे ही हुई।" قَالُواْ يَا أَبَانَا اسْتَغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا إِنَّا كُنَّا خَاطِئِينَ
98 उसने कहा, "मैं अपने रब से तुम्हारे लिए प्रार्थना करूँगा। वह बहुत क्षमाशील, दयावान है।" قَالَ سَوْفَ أَسْتَغْفِرُ لَكُمْ رَبِّيَ إِنَّهُ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ
99 फिर जब वे यूसुफ़ के पास पहुँचे तो उसने अपने माँ-बाप को ख़ास अपने पास जगह दी औऱ कहा, "तुम सब नगर में प्रवेश करो। अल्लाह ने चाहा तो यह प्रवेश निश्चिन्तता के साथ होगा।" فَلَمَّا دَخَلُواْ عَلَى يُوسُفَ آوَى إِلَيْهِ أَبَوَيْهِ وَقَالَ ادْخُلُواْ مِصْرَ إِن شَاء اللّهُ آمِنِينَ
100 उसने अपने माँ-बाप को ऊँची जगह सिंहासन पर बिठाया और सब उसके आगे सजदे मे गिर पड़े। इस अवसर पर उसने कहा, "ऐ मेरे बाप! यह मेरे विगत स्वप्न का साकार रूप है। इसे मेरे रब ने सच बना दिया। और उसने मुझपर उपकार किया जब मुझे क़ैदख़ाने से निकाला और आप भाइयों के बीच फ़साद डलवा दिया था। निस्संदेह मेरा रब जो चाहता है उसके लिए सूक्ष्म उपाय करता है। वास्तव में वही सर्वज्ञ, अत्यन्त तत्वदर्शी है وَرَفَعَ أَبَوَيْهِ عَلَى الْعَرْشِ وَخَرُّواْ لَهُ سُجَّدًا وَقَالَ يَا أَبَتِ هَـذَا تَأْوِيلُ رُؤْيَايَ مِن قَبْلُ قَدْ جَعَلَهَا رَبِّي حَقًّا وَقَدْ أَحْسَنَ بَي إِذْ أَخْرَجَنِي مِنَ السِّجْنِ وَجَاء بِكُم مِّنَ الْبَدْوِ مِن بَعْدِ أَن نَّزغَ الشَّيْطَانُ بَيْنِي وَبَيْنَ إِخْوَتِي إِنَّ رَبِّي لَطِيفٌ لِّمَا يَشَاء إِنَّهُ هُوَ الْعَلِيمُ الْحَكِيمُ
101 मेरे रब! तुने मुझे राज्य प्रदान किया और मुझे घटनाओं और बातों के निष्कर्ष तक पहुँचना सिखाया। आकाश और धरती के पैदा करनेवाले! दुनिया और आख़िरत में तू ही मेरा संरक्षक मित्र है। तू मुझे इस दशा से उठा कि मैं मुस्लिम (आज्ञाकारी) हूँ और मुझे अच्छे लोगों के साथ मिला।" رَبِّ قَدْ آتَيْتَنِي مِنَ الْمُلْكِ وَعَلَّمْتَنِي مِن تَأْوِيلِ الأَحَادِيثِ فَاطِرَ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ أَنتَ وَلِيِّي فِي الدُّنُيَا وَالآخِرَةِ تَوَفَّنِي مُسْلِمًا وَأَلْحِقْنِي بِالصَّالِحِينَ
102 ये परोक्ष की ख़बरे हैं जिनकी हम तुम्हारी ओर प्रकाशना कर रहे है। तुम तो उनके पास नहीं थे, जब उन्होंने अपने मामले को पक्का करके षड्यंत्र किया था ذَلِكَ مِنْ أَنبَاء الْغَيْبِ نُوحِيهِ إِلَيْكَ وَمَا كُنتَ لَدَيْهِمْ إِذْ أَجْمَعُواْ أَمْرَهُمْ وَهُمْ يَمْكُرُونَ
103 किन्तु चाहे तुम कितना ही चाहो, अधिकतर लोग तो मानेंगे नहीं وَمَا أَكْثَرُ النَّاسِ وَلَوْ حَرَصْتَ بِمُؤْمِنِينَ
104 तुम उनसे इसका कोई बदला भी नहीं माँगते। यह तो सारे संसार के लिए बस एक अनुस्मरण है وَمَا تَسْأَلُهُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ إِنْ هُوَ إِلاَّ ذِكْرٌ لِّلْعَالَمِينَ
105 आकाशों और धरती में कितनी ही निशानियाँ हैं, जिनपर से वे इस तरह गुज़र जाते है कि उनकी ओर वे ध्यान ही नहीं देते وَكَأَيِّن مِّن آيَةٍ فِي السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ يَمُرُّونَ عَلَيْهَا وَهُمْ عَنْهَا مُعْرِضُونَ
106 इनमें अधिकतर लोग अल्लाह को मानते भी है तो इस तरह कि वे साझी भी ठहराते है وَمَا يُؤْمِنُ أَكْثَرُهُمْ بِاللّهِ إِلاَّ وَهُم مُّشْرِكُونَ
107 क्या वे इस बात से निश्चिन्त है कि अल्लाह की कोई यातना उन्हें ढँक ले या सहसा वह घड़ी ही उनपर आ जाए, जबकि वे बिलकुल बेख़बर हों? أَفَأَمِنُواْ أَن تَأْتِيَهُمْ غَاشِيَةٌ مِّنْ عَذَابِ اللّهِ أَوْ تَأْتِيَهُمُ السَّاعَةُ بَغْتَةً وَهُمْ لاَ يَشْعُرُونَ
108 कह दो, "यही मेरा मार्ग है। मैं अल्लाह की ओर बुलाता हूँ। मैं स्वयं भी पूर्ण प्रकाश में हूँ और मेरे अनुयायी भी - महिमावान है अल्लाह! ृृ- और मैं कदापि बहुदेववादी नहीं।" قُلْ هَـذِهِ سَبِيلِي أَدْعُو إِلَى اللّهِ عَلَى بَصِيرَةٍ أَنَاْ وَمَنِ اتَّبَعَنِي وَسُبْحَانَ اللّهِ وَمَا أَنَاْ مِنَ الْمُشْرِكِينَ
109 तुमसे पहले भी हमने जिनको रसूल बनाकर भेजा, वे सब बस्तियों के रहनेवाले पुरुष ही थे। हम उनकी ओर प्रकाशना करते रहे - फिर क्या वे धरती में चले-फिरे नहीं कि देखते कि उनका कैसा परिणाम हुआ, जो उनसे पहले गुज़रे है? निश्चय ही आख़िरत का घर ही डर रखनेवालों के लिए सर्वोत्तम है। तो क्या तुम समझते नहीं? - وَمَا أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ إِلاَّ رِجَالاً نُّوحِي إِلَيْهِم مِّنْ أَهْلِ الْقُرَى أَفَلَمْ يَسِيرُواْ فِي الأَرْضِ فَيَنظُرُواْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ وَلَدَارُ الآخِرَةِ خَيْرٌ لِّلَّذِينَ اتَّقَواْ أَفَلاَ تَعْقِلُونَ
110 यहाँ तक कि जब वे रसूल निराश होने लगे और वे समझने लगे कि उनसे झूठ कहा गया था कि सहसा उन्हें हमारी सहायता पहुँच गई। फिर हमने जिसे चाहा बचा लिया। किन्तु अपराधी लोगों पर से तो हमारी यातना टलती ही नहीं حَتَّى إِذَا اسْتَيْأَسَ الرُّسُلُ وَظَنُّواْ أَنَّهُمْ قَدْ كُذِبُواْ جَاءهُمْ نَصْرُنَا فَنُجِّيَ مَن نَّشَاء وَلاَ يُرَدُّ بَأْسُنَا عَنِ الْقَوْمِ الْمُجْرِمِينَ
111 निश्चय ही उनकी कथाओं में बुद्धि और समझ रखनेवालों के लिए एक शिक्षाप्रद सामग्री है। यह कोई घड़ी हुई बात नहीं है, बल्कि यह अपने से पूर्व की पुष्टि में है, और हर चीज़ का विस्तार और ईमान लानेवाले लोगों के लिए मार्ग-दर्शन और दयालुता है لَقَدْ كَانَ فِي قَصَصِهِمْ عِبْرَةٌ لِّأُوْلِي الأَلْبَابِ مَا كَانَ حَدِيثًا يُفْتَرَى وَلَـكِن تَصْدِيقَ الَّذِي بَيْنَ يَدَيْهِ وَتَفْصِيلَ كُلَّ شَيْءٍ وَهُدًى وَرَحْمَةً لِّقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ
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