Ar-Ra'd

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Hindi: Muhammad Farooq Khan and Muhammad Ahmed

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# Translation Ayah
1 अलिफ़॰ लाम॰ मीम॰ रा॰। ये किताब की आयतें है औऱ जो कुछ तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर अवतरित हुआ है, वह सत्य है, किन्तु अधिकतर लोग मान नहीं रहे है المر تِلْكَ آيَاتُ الْكِتَابِ وَالَّذِيَ أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ الْحَقُّ وَلَـكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لاَ يُؤْمِنُونَ
2 अल्लाह वह है जिसने आकाशों को बिना सहारे के ऊँचा बनाया जैसा कि तुम उन्हें देखते हो। फिर वह सिंहासन पर आसीन हुआ। उसने सूर्य और चन्द्रमा को काम पर लगाया। हरेक एक नियत समय तक के लिए चला जा रहा है। वह सारे काम का विधान कर रहा है; वह निशानियाँ खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि तुम्हें अपने रब से मिलने का विश्वास हो اللّهُ الَّذِي رَفَعَ السَّمَاوَاتِ بِغَيْرِ عَمَدٍ تَرَوْنَهَا ثُمَّ اسْتَوَى عَلَى الْعَرْشِ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ كُلٌّ يَجْرِي لأَجَلٍ مُّسَمًّى يُدَبِّرُ الأَمْرَ يُفَصِّلُ الآيَاتِ لَعَلَّكُم بِلِقَاء رَبِّكُمْ تُوقِنُونَ
3 और वही है जिसने धरती को फैलाया और उसमें जमे हुए पर्वत और नदियाँ बनाई और हरेक पैदावार की दो-दो क़िस्में बनाई। वही रात से दिन को छिपा देता है। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ है जो सोच-विचार से काम लेते है وَهُوَ الَّذِي مَدَّ الأَرْضَ وَجَعَلَ فِيهَا رَوَاسِيَ وَأَنْهَارًا وَمِن كُلِّ الثَّمَرَاتِ جَعَلَ فِيهَا زَوْجَيْنِ اثْنَيْنِ يُغْشِي اللَّيْلَ النَّهَارَ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يَتَفَكَّرُونَ
4 और धरती में पास-पास भूभाग पाए जाते है जो परस्पर मिले हुए है, और अंगूरों के बाग़ है और खेतियाँ है औऱ खजूर के पेड़ है, इकहरे भी और दोहरे भी। सबको एक ही पानी से सिंचित करता है, फिर भी हम पैदावार और स्वाद में किसी को किसी के मुक़ाबले में बढ़ा देते है। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ हैं, जो बुद्धि से काम लेते है وَفِي الأَرْضِ قِطَعٌ مُّتَجَاوِرَاتٌ وَجَنَّاتٌ مِّنْ أَعْنَابٍ وَزَرْعٌ وَنَخِيلٌ صِنْوَانٌ وَغَيْرُ صِنْوَانٍ يُسْقَى بِمَاء وَاحِدٍ وَنُفَضِّلُ بَعْضَهَا عَلَى بَعْضٍ فِي الأُكُلِ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يَعْقِلُونَ
5 अब यदि तुम्हें आश्चर्य ही करना है तो आश्चर्य की बात तो उनका यह कहना है कि ,"क्या जब हम मिट्टी हो जाएँगे तो क्या हम नए सिरे से पैदा भी होंगे?" वही हैं जिन्होंने अपने रब के साथ इनकार की नीति अपनाई और वही है, जिनकी गर्दनों मे तौक़ पड़े हुए है और वही आग (में पड़ने) वाले है जिसमें उन्हें सदैव रहना है وَإِن تَعْجَبْ فَعَجَبٌ قَوْلُهُمْ أَئِذَا كُنَّا تُرَابًا أَئِنَّا لَفِي خَلْقٍ جَدِيدٍ أُوْلَـئِكَ الَّذِينَ كَفَرُواْ بِرَبِّهِمْ وَأُوْلَئِكَ الأَغْلاَلُ فِي أَعْنَاقِهِمْ وَأُوْلَـئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ هُمْ فِيهَا خَالِدون
6 वे भलाई से पहले बुराई के लिए तुमसे जल्दी मचा रहे हैं, हालाँकि उनसे पहले कितनी ही शिक्षाप्रद मिसालें गुज़र चुकी है। किन्तु तुम्हारा रब लोगों को उनके अत्याचार के बावजूद क्षमा कर देता है और वास्तव में तुम्हारा रब दंड देने में भी बहुत कठोर है وَيَسْتَعْجِلُونَكَ بِالسَّيِّئَةِ قَبْلَ الْحَسَنَةِ وَقَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِهِمُ الْمَثُلاَتُ وَإِنَّ رَبَّكَ لَذُو مَغْفِرَةٍ لِّلنَّاسِ عَلَى ظُلْمِهِمْ وَإِنَّ رَبَّكَ لَشَدِيدُ الْعِقَابِ
7 जिन्होंने इनकार किया, वे कहते हैं, "उसपर उसके रब की ओर से कोई निशानी क्यों नहीं अवतरित हुई?" तुम तो बस एक चेतावनी देनेवाले हो और हर क़ौम के लिए एक मार्गदर्शक हुआ है وَيَقُولُ الَّذِينَ كَفَرُواْ لَوْلا أُنزِلَ عَلَيْهِ آيَةٌ مِّن رَّبِّهِ إِنَّمَا أَنتَ مُنذِرٌ وَلِكُلِّ قَوْمٍ هَادٍ
8 किसी भी स्त्री-जाति को जो भी गर्भ रहता है अल्लाह उसे जान रहा होता है और उसे भी जो गर्भाशय में कमी-बेशी होती है। और उसके यहाँ हरेक चीज़ का एक निश्चित अन्दाज़ा है اللّهُ يَعْلَمُ مَا تَحْمِلُ كُلُّ أُنثَى وَمَا تَغِيضُ الأَرْحَامُ وَمَا تَزْدَادُ وَكُلُّ شَيْءٍ عِندَهُ بِمِقْدَارٍ
9 वह परोक्ष और प्रत्यक्ष का ज्ञाता है, महान है, अत्यन्त उच्च है عَالِمُ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ الْكَبِيرُ الْمُتَعَالِ
10 तुममें से कोई चुपके से बात करे और जो कोई ज़ोर से और जो कोई रात में छिपता हो और जो दिन में चलता-फिरता दीख पड़ता हो उसके लिए सब बराबर है سَوَاء مِّنكُم مَّنْ أَسَرَّ الْقَوْلَ وَمَن جَهَرَ بِهِ وَمَنْ هُوَ مُسْتَخْفٍ بِاللَّيْلِ وَسَارِبٌ بِالنَّهَارِ
11 उसके रक्षक (पहरेदार) उसके अपने आगे और पीछे लगे होते हैं जो अल्लाह के आदेश से उसकी रक्षा करते है। किसी क़ौम के लोगों को जो कुछ प्राप्त होता है अल्लाह उसे बदलता नहीं, जब तक कि वे स्वयं अपने आपको न बदल डालें। और जब अल्लाह किसी क़ौम का अनिष्ट चाहता है तो फिर वह उससे टल नहीं सकता, और उससे हटकर उनका कोई समर्थक और संरक्षक भी नहीं لَهُ مُعَقِّبَاتٌ مِّن بَيْنِ يَدَيْهِ وَمِنْ خَلْفِهِ يَحْفَظُونَهُ مِنْ أَمْرِ اللّهِ إِنَّ اللّهَ لاَ يُغَيِّرُ مَا بِقَوْمٍ حَتَّى يُغَيِّرُواْ مَا بِأَنْفُسِهِمْ وَإِذَا أَرَادَ اللّهُ بِقَوْمٍ سُوءًا فَلاَ مَرَدَّ لَهُ وَمَا لَهُم مِّن دُونِهِ مِن وَالٍ
12 वही है जो भय और आशा के निमित्त तुम्हें बिजली की चमक दिखाता है और बोझिल बादलों को उठाता है هُوَ الَّذِي يُرِيكُمُ الْبَرْقَ خَوْفًا وَطَمَعًا وَيُنْشِئُ السَّحَابَ الثِّقَالَ
13 बादल की गरज उसका गुणगान करती है और उसके भय से काँपते हुए फ़रिश्ते भी। वही कड़कती बिजलियाँ भेजता है, फिर जिसपर चाहता है उन्हें गिरा देता है, जबकि वे अल्लाह के विषय में झगड़ रहे होते है। निश्चय ही उसकी चाल बड़ी सख़्त है وَيُسَبِّحُ الرَّعْدُ بِحَمْدِهِ وَالْمَلاَئِكَةُ مِنْ خِيفَتِهِ وَيُرْسِلُ الصَّوَاعِقَ فَيُصِيبُ بِهَا مَن يَشَاء وَهُمْ يُجَادِلُونَ فِي اللّهِ وَهُوَ شَدِيدُ الْمِحَالِ
14 उसी के लिए सच्ची पुकार है। उससे हटकर जिनको वे पुकारते है, वे उनकी पुकार का कुछ भी उत्तर नहीं देते। बस यह ऐसा ही होता है जैसे कोई अपने दोनों हाथ पानी की ओर इसलिए फैलाए कि वह उसके मुँह में पहुँच जाए, हालाँकि वह उसतक पहुँचनेवाला नहीं। कुफ़्र करनेवालों की पुकार तो बस भटकने ही के लिए होती है لَهُ دَعْوَةُ الْحَقِّ وَالَّذِينَ يَدْعُونَ مِن دُونِهِ لاَ يَسْتَجِيبُونَ لَهُم بِشَيْءٍ إِلاَّ كَبَاسِطِ كَفَّيْهِ إِلَى الْمَاء لِيَبْلُغَ فَاهُ وَمَا هُوَ بِبَالِغِهِ وَمَا دُعَاء الْكَافِرِينَ إِلاَّ فِي ضَلاَلٍ
15 आकाशों और धरती में जो भी है स्वेच्छापूर्वक या विवशतापूर्वक अल्लाह ही को सजदा कर रहे है और उनकी परछाइयाँ भी प्रातः और संध्या समय وَلِلّهِ يَسْجُدُ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ طَوْعًا وَكَرْهًا وَظِلالُهُم بِالْغُدُوِّ وَالآصَالِ
16 कहो, "आकाशों और धरती का रब कौन है?" कहो, "अल्लाह" कह दो, "फिर क्या तुमने उससे हटकर दूसरों को अपना संरक्षक बना रखा है, जिन्हें स्वयं अपने भी किसी लाभ का न अधिकार प्राप्त है और न किसी हानि का?" कहो, "क्या अंधा और आँखोंवाला दोनों बराबर होते है? या बराबर होते हो अँधरे और प्रकाश? या जिनको अल्लाह का सहभागी ठहराया है, उन्होंने भी कुछ पैदा किया है, जैसा कि उसने पैदा किया है, जिसके कारण सृष्टि का मामला इनके लिए गडुमडु हो गया है?" कहो, "हर चीज़ को पैदा करनेवाला अल्लाह है और वह अकेला है, सब पर प्रभावी!" قُلْ مَن رَّبُّ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ قُلِ اللّهُ قُلْ أَفَاتَّخَذْتُم مِّن دُونِهِ أَوْلِيَاء لاَ يَمْلِكُونَ لِأَنفُسِهِمْ نَفْعًا وَلاَ ضَرًّا قُلْ هَلْ يَسْتَوِي الأَعْمَى وَالْبَصِيرُ أَمْ هَلْ تَسْتَوِي الظُّلُمَاتُ وَالنُّورُ أَمْ جَعَلُواْ لِلّهِ شُرَكَاء خَلَقُواْ كَخَلْقِهِ فَتَشَابَهَ الْخَلْقُ عَلَيْهِمْ قُلِ اللّهُ خَالِقُ كُلِّ شَيْءٍ وَهُوَ الْوَاحِدُ الْقَهَّارُ
17 उसने आकाश से पानी उतारा तो नदी-नाले अपनी-अपनी समाई के अनुसार बह निकले। फिर पानी के बहाव ने उभरे हुए झाग को उठा लिया और उसमें से भी, जिसे वे ज़ेवर या दूसरे सामान बनाने के लिए आग में तपाते हैं, ऐसा ही झाग उठता है। इस प्रकार अल्लाह सत्य और असत्य की मिसाल बयान करता है। फिर जो झाग है वह तो सूखकर नष्ट हो जाता है और जो कुछ लोगों को लाभ पहुँचानेवाला होता है, वह धरती में ठहर जाता है। इसी प्रकार अल्लाह दृष्टांत प्रस्तुत करता है أَنزَلَ مِنَ السَّمَاء مَاء فَسَالَتْ أَوْدِيَةٌ بِقَدَرِهَا فَاحْتَمَلَ السَّيْلُ زَبَدًا رَّابِيًا وَمِمَّا يُوقِدُونَ عَلَيْهِ فِي النَّارِ ابْتِغَاء حِلْيَةٍ أَوْ مَتَاعٍ زَبَدٌ مِّثْلُهُ كَذَلِكَ يَضْرِبُ اللّهُ الْحَقَّ وَالْبَاطِلَ فَأَمَّا الزَّبَدُ فَيَذْهَبُ جُفَاء وَأَمَّا مَا يَنفَعُ النَّاسَ فَيَمْكُثُ فِي الأَرْضِ كَذَلِكَ يَضْرِبُ اللّهُ الأَمْثَالَ
18 जिन लोगों ने अपने रब का आमंत्रण स्वीकार कर लिया, उनके लिए अच्छा पुरस्कार है। रहे वे लोग जिन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया यदि उनके पास वह सब कुछ हो जो धरती में हैं, बल्कि उसके साथ उतना और भी हो तो अपनी मुक्ति के लिए वे सब दे डालें। वही हैं, जिनका बुरा हिसाब होगा। उनका ठिकाना जहन्नम है और वह अत्यन्त बुरा विश्राम-स्थल है ِلَّذِينَ اسْتَجَابُواْ لِرَبِّهِمُ الْحُسْنَى وَالَّذِينَ لَمْ يَسْتَجِيبُواْ لَهُ لَوْ أَنَّ لَهُم مَّا فِي الأَرْضِ جَمِيعًا وَمِثْلَهُ مَعَهُ لاَفْتَدَوْاْ بِهِ أُوْلَـئِكَ لَهُمْ سُوءُ الْحِسَابِ وَمَأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ وَبِئْسَ الْمِهَادُ
19 भला वह व्यक्ति जो जानता है कि जो कुछ तुम पर उतरा है तुम्हारे रब की ओर से सत्य है, कभी उस जैसा हो सकता है जो अंधा है? परन्तु समझते तो वही है जो बुद्धि और समझ रखते है, أَفَمَن يَعْلَمُ أَنَّمَا أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَبِّكَ الْحَقُّ كَمَنْ هُوَ أَعْمَى إِنَّمَا يَتَذَكَّرُ أُوْلُواْ الأَلْبَابِ
20 जो अल्लाह के साथ की हुई प्रतिज्ञा को पूरा करते है औऱ अभिवचन को तोड़ते नहीं, الَّذِينَ يُوفُونَ بِعَهْدِ اللّهِ وَلاَ يِنقُضُونَ الْمِيثَاقَ
21 और जो ऐसे हैं कि अल्लाह नॆ जिसे जोड़ने का आदेश दिया है उसे जोड़ते हैं और अपनॆ रब से डरते रहते हैं और बुरॆ हिसाब का उन्हॆं डर लगा रहता है وَالَّذِينَ يَصِلُونَ مَا أَمَرَ اللّهُ بِهِ أَن يُوصَلَ وَيَخْشَوْنَ رَبَّهُمْ وَيَخَافُونَ سُوءَ الحِسَابِ
22 और जिन लोगों ने अपने रब की प्रसन्नता की चाह में धैर्य से काम लिया और नमाज़ क़ायम की और जो कुछ हमने उन्हें दिया है, उसमें से खुले और छिपे ख़र्च किया, और भलाई के द्वारा बुराई को दूर करते है। वही लोग है जिनके लिए आख़िरत के घर का अच्छा परिणाम है, وَالَّذِينَ صَبَرُواْ ابْتِغَاء وَجْهِ رَبِّهِمْ وَأَقَامُواْ الصَّلاَةَ وَأَنفَقُواْ مِمَّا رَزَقْنَاهُمْ سِرًّا وَعَلاَنِيَةً وَيَدْرَؤُونَ بِالْحَسَنَةِ السَّيِّئَةَ أُوْلَئِكَ لَهُمْ عُقْبَى الدَّارِ
23 अर्थात सदैव रहने के बाग़ है जिनमें वे प्रवेश करेंगे और उनके बाप-दादा और उनकी पत्नियों और उनकी सन्तानों में से जो नेक होंगे वे भी और हर दरवाज़े से फ़रिश्ते उनके पास पहुँचेंगे جَنَّاتُ عَدْنٍ يَدْخُلُونَهَا وَمَنْ صَلَحَ مِنْ آبَائِهِمْ وَأَزْوَاجِهِمْ وَذُرِّيَّاتِهِمْ وَالمَلاَئِكَةُ يَدْخُلُونَ عَلَيْهِم مِّن كُلِّ بَابٍ
24 (वे कहेंगे) "तुमपर सलाम है उसके बदले में जो तुमने धैर्य से काम लिया।" अतः क्या ही अच्छा परिणाम है आख़िरत के घर का! سَلاَمٌ عَلَيْكُم بِمَا صَبَرْتُمْ فَنِعْمَ عُقْبَى الدَّارِ
25 रहे वे लोग जो अल्लाह की प्रतिज्ञा को उसे दृढ़ करने के पश्चात तोड़ डालते है और अल्लाह ने जिसे जोड़ने का आदेश दिया है, उसे काटते है और धरती में बिगाड़ पैदा करते है। वहीं है जिनके लिए फिटकार है और जिनके लिए आख़िरत का बुरा घर है وَالَّذِينَ يَنقُضُونَ عَهْدَ اللّهِ مِن بَعْدِ مِيثَاقِهِ وَيَقْطَعُونَ مَا أَمَرَ اللّهُ بِهِ أَن يُوصَلَ وَيُفْسِدُونَ فِي الأَرْضِ أُوْلَئِكَ لَهُمُ اللَّعْنَةُ وَلَهُمْ سُوءُ الدَّارِ
26 अल्लाह जिसको चाहता है प्रचुर फैली हुई रोज़ी प्रदान करता है औऱ इसी प्रकार नपी-तुली भी। और वे सांसारिक जीवन में मग्न हैं, हालाँकि सांसारिक जीवन आख़िरत के मुक़ाबले में तो बस अल्प सुख-सामग्री है اللّهُ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ يَشَاء وَيَقَدِرُ وَفَرِحُواْ بِالْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَمَا الْحَيَاةُ الدُّنْيَا فِي الآخِرَةِ إِلاَّ مَتَاعٌ
27 जिन लोगों ने इनकार किया वे कहते है, "उसपर उसके रब की ओर से कोई निशानी क्यों नहीं उतरी?" कहो, "अल्लाह जिसे चाहता है पथभ्रष्ट कर देता है। अपनी ओर से वह मार्गदर्शन उसी का करता है जो रुजू होता है।" وَيَقُولُ الَّذِينَ كَفَرُواْ لَوْلاَ أُنزِلَ عَلَيْهِ آيَةٌ مِّن رَّبِّهِ قُلْ إِنَّ اللّهَ يُضِلُّ مَن يَشَاء وَيَهْدِي إِلَيْهِ مَنْ أَنَابَ
28 ऐसे ही लोग है जो ईमान लाए और जिनके दिलों को अल्लाह के स्मरण से आराम और चैन मिलता है। सुन लो, अल्लाह के स्मरण से ही दिलों को संतोष प्राप्त हुआ करता है الَّذِينَ آمَنُواْ وَتَطْمَئِنُّ قُلُوبُهُم بِذِكْرِ اللّهِ أَلاَ بِذِكْرِ اللّهِ تَطْمَئِنُّ الْقُلُوبُ
29 जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनके लिए सुख-सौभाग्य है और लौटने का अच्छा ठिकाना है الَّذِينَ آمَنُواْ وَعَمِلُواْ الصَّالِحَاتِ طُوبَى لَهُمْ وَحُسْنُ مَآبٍ
30 अतएव हमने तुम्हें एक ऐसे समुदाय में भेजा है जिससे पहले कितने ही समुदाय गुज़र चुके है, ताकि हमने तुम्हारी ओर जो प्रकाशना की है, उसे उनको सुना दो, यद्यपि वे रहमान के साथ इनकार की नीति अपनाए हुए है। कह दो, "वही मेरा रब है। उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। उसी पर मेरा भरोसा है और उसी की ओर मुझे पलटकर जाना है।" كَذَلِكَ أَرْسَلْنَاكَ فِي أُمَّةٍ قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِهَا أُمَمٌ لِّتَتْلُوَ عَلَيْهِمُ الَّذِيَ أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ وَهُمْ يَكْفُرُونَ بِالرَّحْمَـنِ قُلْ هُوَ رَبِّي لا إِلَـهَ إِلاَّ هُوَ عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ وَإِلَيْهِ مَتَابِ
31 और यदि कोई ऐसा क़ुरआन होता जिसके द्वारा पहाड़ चलने लगते या उससे धरती खंड-खंड हो जाती या उसके द्वारा मुर्दे बोलने लगते (तब भी वे लोग ईमान न लाते) । नहीं, बल्कि बात यह है कि सारे काम अल्लाह ही के अधिकार में है। फिर क्या जो लोग ईमान लाए है वे यह जानकर निराश नहीं हुए कि यदि अल्लाह चाहता तो सारे ही मनुष्यों को सीधे मार्ग पर लगा देता? और इनकार करनेवालों पर तो उनकी करतूतों के बदले में कोई न कोई आपदा निरंतर आती ही रहेगी, या उनके घर के निकट ही कहीं उतरती रहेगी, यहाँ तक कि अल्लाह का वादा आ पूरा होगा। निस्संदेह अल्लाह अपने वादे के विरुद्ध नहीं जाता।" وَلَوْ أَنَّ قُرْآنًا سُيِّرَتْ بِهِ الْجِبَالُ أَوْ قُطِّعَتْ بِهِ الأَرْضُ أَوْ كُلِّمَ بِهِ الْمَوْتَى بَل لِّلّهِ الأَمْرُ جَمِيعًا أَفَلَمْ يَيْأَسِ الَّذِينَ آمَنُواْ أَن لَّوْ يَشَاء اللّهُ لَهَدَى النَّاسَ جَمِيعًا وَلاَ يَزَالُ الَّذِينَ كَفَرُواْ تُصِيبُهُم بِمَا صَنَعُواْ قَارِعَةٌ أَوْ تَحُلُّ قَرِيبًا مِّن دَارِهِمْ حَتَّى يَأْتِيَ وَعْدُ اللّهِ إِنَّ اللّهَ لاَ يُخْلِفُ الْمِيعَادَ
32 तुमसे पहले भी कितने ही रसूलों का उपहास किया जा चुका है, किन्तु मैंने इनकार करनेवालों को मुहलत दी। फिर अंततः मैंने उन्हें पकड़ लिया, फिर कैसी रही मेरी सज़ा? وَلَقَدِ اسْتُهْزِئَ بِرُسُلٍ مِّن قَبْلِكَ فَأَمْلَيْتُ لِلَّذِينَ كَفَرُواْ ثُمَّ أَخَذْتُهُمْ فَكَيْفَ كَانَ عِقَابِ
33 भला वह (अल्लाह) जो प्रत्येक व्यक्ति के सिर पर, उसकी कमाई पर निगाह रखते हुए खड़ा है (उसके समान कोई दूसरा हो सकता है)? फिर भी लोगों ने अल्लाह के सहभागी-ठहरा रखे है। कहो, "तनिक उनके नाम तो लो! (क्या तुम्हारे पास उनके पक्ष में कोई प्रमाण है?) या ऐसा है कि तुम उसे ऐसी बात की ख़बर दे रहे हो, जिसके अस्तित्व की उसे धरती भर में ख़बर नहीं? या यूँ ही यह एक ऊपरी बात ही बात है?" नहीं, बल्कि इनकार करनेवालों को उनकी मक्कारी ही सुहावनी लगती है और वे मार्ग से रुक गए है। जिसे अल्लाह ही गुमराही में छोड़ दे, उसे कोई मार्ग पर लानेवाला नहीं أَفَمَنْ هُوَ قَآئِمٌ عَلَى كُلِّ نَفْسٍ بِمَا كَسَبَتْ وَجَعَلُواْ لِلّهِ شُرَكَاء قُلْ سَمُّوهُمْ أَمْ تُنَبِّئُونَهُ بِمَا لاَ يَعْلَمُ فِي الأَرْضِ أَم بِظَاهِرٍ مِّنَ الْقَوْلِ بَلْ زُيِّنَ لِلَّذِينَ كَفَرُواْ مَكْرُهُمْ وَصُدُّواْ عَنِ السَّبِيلِ وَمَن يُضْلِلِ اللّهُ فَمَا لَهُ مِنْ هَادٍ
34 उनके लिए सांसारिक जीवन में भी यातना, तो वह अत्यन्त कठोर है। औऱ कोई भी तो नहीं जो उन्हें अल्लाह से बचानेवाला हो لَّهُمْ عَذَابٌ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَلَعَذَابُ الآخِرَةِ أَشَقُّ وَمَا لَهُم مِّنَ اللّهِ مِن وَاقٍ
35 डर रखनेवालों के लिए जिस जन्नत का वादा है उसकी शान यह है कि उसके नीचे नहरें बह रही है, उसके फल शाश्वत है और इसी प्रकार उसकी छाया भी। यह परिणाम है उनका जो डर रखते है, जबकि इनकार करनेवालों का परिणाम आग है مَّثَلُ الْجَنَّةِ الَّتِي وُعِدَ الْمُتَّقُونَ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الأَنْهَارُ أُكُلُهَا دَآئِمٌ وِظِلُّهَا تِلْكَ عُقْبَى الَّذِينَ اتَّقَواْ وَّعُقْبَى الْكَافِرِينَ النَّارُ
36 जिन लोगों को हमने किताब प्रदान की है वे उससे, जो तुम्हारी ओर उतारा है, हर्षित होते है और विभिन्न गिरोहों के कुछ लोग ऐसे भी है जो उसकी कुछ बातों का इनकार करते है। कह दो, "मुझे पर बस यह आदेश हुआ है कि मैं अल्लाह की बन्दगी करूँ और उसका सहभागी न ठहराऊँ। मैं उसी की ओर बुलाता हूँ और उसी की ओर मुझे लौटकर जाना है।" وَالَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ يَفْرَحُونَ بِمَا أُنزِلَ إِلَيْكَ وَمِنَ الأَحْزَابِ مَن يُنكِرُ بَعْضَهُ قُلْ إِنَّمَا أُمِرْتُ أَنْ أَعْبُدَ اللّهَ وَلا أُشْرِكَ بِهِ إِلَيْهِ أَدْعُو وَإِلَيْهِ مَآبِ
37 और इसी प्रकार हमने इस (क़ुरआन) को एक अरबी फ़रमान के रूप में उतारा है। अब यदि तुम उस ज्ञान के पश्चात भी, जो तुम्हारे पास आ चुका है, उनकी इच्छाओं के पीछे चले तो अल्लाह के मुक़ाबले में न तो तुम्हारा कोई सहायक मित्र होगा और न कोई बचानेवाला وَكَذَلِكَ أَنزَلْنَاهُ حُكْمًا عَرَبِيًّا وَلَئِنِ اتَّبَعْتَ أَهْوَاءهُم بَعْدَ مَا جَاءكَ مِنَ الْعِلْمِ مَا لَكَ مِنَ اللّهِ مِن وَلِيٍّ وَلاَ وَاقٍ
38 तुमसे पहले भी हम, कितने ही रसूल भेज चुके है और हमने उन्हें पत्नियों और बच्चे भी दिए थे, और किसी रसूल को यह अधिकार नहीं था कि वह अल्लाह की अनुमति के बिना कोई निशानी स्वयं ला लेता। हर चीज़ के एक समय जो अटल लिखित है وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا رُسُلاً مِّن قَبْلِكَ وَجَعَلْنَا لَهُمْ أَزْوَاجًا وَذُرِّيَّةً وَمَا كَانَ لِرَسُولٍ أَن يَأْتِيَ بِآيَةٍ إِلاَّ بِإِذْنِ اللّهِ لِكُلِّ أَجَلٍ كِتَابٌ
39 अल्लाह जो कुछ चाहता है मिटा देता है। इसी तरह वह क़ायम भी रखता है। मूल किताब तो स्वयं उसी के पास है يَمْحُو اللّهُ مَا يَشَاء وَيُثْبِتُ وَعِندَهُ أُمُّ الْكِتَابِ
40 हम जो वादा उनसे कर रहे है चाहे उसमें से कुछ हम तुम्हें दिखा दें, या तुम्हें उठा लें। तुम्हारा दायित्व तो बस सन्देश का पहुँचा देना ही है, हिसाब लेना तो हमारे ज़िम्मे है وَإِن مَّا نُرِيَنَّكَ بَعْضَ الَّذِي نَعِدُهُمْ أَوْ نَتَوَفَّيَنَّكَ فَإِنَّمَا عَلَيْكَ الْبَلاَغُ وَعَلَيْنَا الْحِسَابُ
41 क्या उन्होंने देखा नहीं कि हम धरती पर चले आ रहे है, उसे उसके किनारों से घटाते हुए? अल्लाह ही फ़ैसला करता है। कोई नहीं जो उसके फ़ैसले को पीछे डाल सके। वह हिसाब भी जल्द लेता है أَوَلَمْ يَرَوْاْ أَنَّا نَأْتِي الأَرْضَ نَنقُصُهَا مِنْ أَطْرَافِهَا وَاللّهُ يَحْكُمُ لاَ مُعَقِّبَ لِحُكْمِهِ وَهُوَ سَرِيعُ الْحِسَابِ
42 उनसे पहले जो लोग गुज़रे है, वे भी चालें चल चुके है, किन्तु वास्तविक चाल तो पूरी की पूरी अल्लाह ही के हाथ में है। प्रत्येक व्यक्ति जो कमाई कर रहा है उसे वह जानता है। इनकार करनेवालों को शीघ्र ही ज्ञात हो जाएगा कि परलोक-गृह के शुभ परिणाम के अधिकारी कौन है وَقَدْ مَكَرَ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ فَلِلّهِ الْمَكْرُ جَمِيعًا يَعْلَمُ مَا تَكْسِبُ كُلُّ نَفْسٍ وَسَيَعْلَمُ الْكُفَّارُ لِمَنْ عُقْبَى الدَّارِ
43 जिन लोगों ने इनकार की नीति अपनाई, वे कहते है, "तुम कोई रसूल नहीं हो।" कह दो, "मेरे और तुम्हारे बीच अल्लाह की और जिस किसी के पास किताब का ज्ञान है उसकी, गवाही काफ़ी है।" وَيَقُولُ الَّذِينَ كَفَرُواْ لَسْتَ مُرْسَلاً قُلْ كَفَى بِاللّهِ شَهِيدًا بَيْنِي وَبَيْنَكُمْ وَمَنْ عِندَهُ عِلْمُ الْكِتَابِ
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