1 |
अलिफ़॰ लाम॰ रा॰। यह एक किताब है जिसकी आयतें पक्की है, फिर सविस्तार बयान हुई हैं; उसकी ओर से जो अत्यन्त तत्वदर्शी, पूरी ख़बर रखनेवाला है |
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الَر كِتَابٌ أُحْكِمَتْ آيَاتُهُ ثُمَّ فُصِّلَتْ مِن لَّدُنْ حَكِيمٍ خَبِيرٍ |
2 |
कि "तुम अल्लाह के सिवा किसी की बन्दगी न करो। मैं तो उसकी ओर से तुम्हें सचेत करनेवाला और शुभ सूचना देनेवाला हूँ।" |
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أَلاَّ تَعْبُدُواْ إِلاَّ اللّهَ إِنَّنِي لَكُم مِّنْهُ نَذِيرٌ وَبَشِيرٌ |
3 |
और यह कि "अपने रब से क्षमा माँगो, फिर उसकी ओर पलट आओ। वह तुम्हें एक निश्चित अवधि तक सुखोपभोग की उत्तम सामग्री प्रदान करेगा। और बढ़-बढ़कर कर्म करनेवालों पर वह तदधिक अपना अनुग्रह करेगा, किन्तु यदि तुम मुँह फेरते हो तो निश्चय ही मुझे तुम्हारे विषय में एक बड़े दिन की यातना का भय है |
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وَأَنِ اسْتَغْفِرُواْ رَبَّكُمْ ثُمَّ تُوبُواْ إِلَيْهِ يُمَتِّعْكُم مَّتَاعًا حَسَنًا إِلَى أَجَلٍ مُّسَمًّى وَيُؤْتِ كُلَّ ذِي فَضْلٍ فَضْلَهُ وَإِن تَوَلَّوْاْ فَإِنِّيَ أَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ كَبِيرٍ |
4 |
तुम्हें अल्लाह ही की ओर पलटना है, और उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।" |
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إِلَى اللّهِ مَرْجِعُكُمْ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ |
5 |
देखो! ये अपने सीनों को मोड़ते है, चाहिए कि उससे छिपें। देखों! जब ये अपने कपड़ों से स्वयं को ढाँकते है, वह जानता है जो कुछ वे छिपाते है और जो कुछ वे प्रकट करते है। निस्संदेह वह सीनों तक की बात को जानता है |
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أَلا إِنَّهُمْ يَثْنُونَ صُدُورَهُمْ لِيَسْتَخْفُواْ مِنْهُ أَلا حِينَ يَسْتَغْشُونَ ثِيَابَهُمْ يَعْلَمُ مَا يُسِرُّونَ وَمَا يُعْلِنُونَ إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ |
6 |
धरती में चलने-फिरनेवाला जो प्राणी भी है उसकी रोज़ी अल्लाह के ज़िम्मे है। वह जानता है जहाँ उसे ठहरना है और जहाँ उसे सौपा जाना है। सब कुछ एक स्पष्ट किताब में मौजूद है |
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وَمَا مِن دَآبَّةٍ فِي الأَرْضِ إِلاَّ عَلَى اللّهِ رِزْقُهَا وَيَعْلَمُ مُسْتَقَرَّهَا وَمُسْتَوْدَعَهَا كُلٌّ فِي كِتَابٍ مُّبِينٍ |
7 |
वही है जिसने आकाशों और धरती को छः दिनों में पैदा किया - उसका सिंहासन पानी पर था - ताकि वह तुम्हारी परीक्षा ले कि तुममें कर्म की स्पष्ट से कौन सबसे अच्छा है। और यदि तुम कहो कि "मरने के पश्चात तुम अवश्य उठोगे।" तो जिन्हें इनकार है, वे कहने लगेंगे, "यह तो खुला जादू है।" |
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وَهُوَ الَّذِي خَلَق السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضَ فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ وَكَانَ عَرْشُهُ عَلَى الْمَاء لِيَبْلُوَكُمْ أَيُّكُمْ أَحْسَنُ عَمَلاً وَلَئِن قُلْتَ إِنَّكُم مَّبْعُوثُونَ مِن بَعْدِ الْمَوْتِ لَيَقُولَنَّ الَّذِينَ كَفَرُواْ إِنْ هَـذَا إِلاَّ سِحْرٌ مُّبِينٌ |
8 |
यदि हम एक निश्चित अवधि तक के लिए उनसे यातना को टाले रखें, तो वे कहने लगेंगे, "आख़िर किस चीज़ ने उसे रोक रखा है?" सुन लो! जिन दिन वह उनपर आ जाएगी तो फिर वह उनपर से टाली नहीं जाएगी। और वही चीज़ उन्हें घेर लेगी जिसका वे उपहास करते है |
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وَلَئِنْ أَخَّرْنَا عَنْهُمُ الْعَذَابَ إِلَى أُمَّةٍ مَّعْدُودَةٍ لَّيَقُولُنَّ مَا يَحْبِسُهُ أَلاَ يَوْمَ يَأْتِيهِمْ لَيْسَ مَصْرُوفًا عَنْهُمْ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُواْ بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ |
9 |
यदि हम मनुष्य को अपनी दयालुता का रसास्वादन कराकर फिर उसको छीन लॆं, तॊ (वह दयालुता कॆ लिए याचना नहीं करता) निश्चय ही वह निराशावादी, कृतघ्न है |
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وَلَئِنْ أَذَقْنَا الإِنْسَانَ مِنَّا رَحْمَةً ثُمَّ نَزَعْنَاهَا مِنْهُ إِنَّهُ لَيَئُوسٌ كَفُورٌ |
10 |
और यदि हम इसके पश्चात कि उसे तकलीफ़ पहुँची हो, उसे नेमत का रसास्वादन कराते है तो वह कहने लगता है, "मेरे तो सारे दुख दूर हो गए।" वह तो फूला नहीं समाता, डींगे मारने लगता है |
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وَلَئِنْ أَذَقْنَاهُ نَعْمَاء بَعْدَ ضَرَّاء مَسَّتْهُ لَيَقُولَنَّ ذَهَبَ السَّيِّئَاتُ عَنِّي إِنَّهُ لَفَرِحٌ فَخُورٌ |
11 |
उनकी बात दूसरी है जिन्होंने धैर्य से काम लिया और सत्कर्म किए। वही है जिनके लिए क्षमा और बड़ा प्रतिदान है |
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إِلاَّ الَّذِينَ صَبَرُواْ وَعَمِلُواْ الصَّالِحَاتِ أُوْلَـئِكَ لَهُم مَّغْفِرَةٌ وَأَجْرٌ كَبِيرٌ |
12 |
तो शायद तुम उसमें से कुछ छोड़ बैठोगे, जो तुम्हारी ओर प्रकाशना रूप में भेजी जा रही है। और तुम इस बात पर तंगदिल हो रहे हो कि वे कहते है, "उसपर कोई ख़ज़ाना क्यों नहीं उतरा या उसके साथ कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं आया?" तुम तो केवल सचेत करनेवाले हो। हर चीज़ अल्लाह ही के हवाले है |
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فَلَعَلَّكَ تَارِكٌ بَعْضَ مَا يُوحَى إِلَيْكَ وَضَآئِقٌ بِهِ صَدْرُكَ أَن يَقُولُواْ لَوْلاَ أُنزِلَ عَلَيْهِ كَنزٌ أَوْ جَاء مَعَهُ مَلَكٌ إِنَّمَا أَنتَ نَذِيرٌ وَاللّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ وَكِيلٌ |
13 |
(उन्हें कोई शंका है) या वे कहते है कि "उसने इसे स्वयं घड़ लिया है?" कह दो, "अच्छा, यदि तुम सच्चे हो तो इस जैसी घड़ी हुई दस सूरतें ले आओ और अल्लाह से हटकर जिस किसी को बुला सकते हो बुला लो।" |
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أَمْ يَقُولُونَ افْتَرَاهُ قُلْ فَأْتُواْ بِعَشْرِ سُوَرٍ مِّثْلِهِ مُفْتَرَيَاتٍ وَادْعُواْ مَنِ اسْتَطَعْتُم مِّن دُونِ اللّهِ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ |
14 |
फिर यदि वे तुम्हारी बातें न मानें तो जान लो, यह अल्लाह के ज्ञान ही के साथ अवतरित हुआ है। और यह कि उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। तो अब क्या तुम मुस्लिम (आज्ञाकारी) होते हो? |
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فَإِن لَّمْ يَسْتَجِيبُواْ لَكُمْ فَاعْلَمُواْ أَنَّمَا أُنزِلِ بِعِلْمِ اللّهِ وَأَن لاَّ إِلَـهَ إِلاَّ هُوَ فَهَلْ أَنتُم مُّسْلِمُونَ |
15 |
जो व्यक्ति सांसारिक जीवन और उसकी शोभा का इच्छुक हो तो ऐसे लोगों को उनके कर्मों का पूरा-पूरा बदला हम यहीं दे देते है और इसमें उनका कोई हक़ नहीं मारा जाता |
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مَن كَانَ يُرِيدُ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا وَزِينَتَهَا نُوَفِّ إِلَيْهِمْ أَعْمَالَهُمْ فِيهَا وَهُمْ فِيهَا لاَ يُبْخَسُونَ |
16 |
यही वे लोग है जिनके लिए आख़िरत में आग के सिवा और कुछ भी नहीं। उन्होंने जो कुछ बनाया, वह सब वहाँ उनकी जान को लागू हुआ और उनका सारा किया-धरा मिथ्या होकर रहा |
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أُوْلَـئِكَ الَّذِينَ لَيْسَ لَهُمْ فِي الآخِرَةِ إِلاَّ النَّارُ وَحَبِطَ مَا صَنَعُواْ فِيهَا وَبَاطِلٌ مَّا كَانُواْ يَعْمَلُونَ |
17 |
फिर क्या वह व्यक्ति जो अपने रब के एक स्पष्ट प्रमाण पर है और स्वयं उसके रूप में भी एक गवाह उसके साथ-साथ रहता है - और इससे पहले मूसा की किताब भी एक मार्गदर्शक और दयालुता के रूप में उपस्थित रही है- (और वह जो प्रकाश एवं मार्गदर्शन से वंचित है, दोनों बराबर हो सकते है) ऐसे ही लोग उसपर ईमान लाते है, किन्तु इन गिरोहों में से जो उसका इनकार करेगा तो उसके लिए जिस जगह का वादा है, वह तो आग है। अतः तुम्हें इसके विषय में कोई सन्देह न हो। यह तुम्हारे रब की ओर से सत्य है, किन्तु अधिकतर लोग मानते नहीं |
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أَفَمَن كَانَ عَلَى بَيِّنَةٍ مِّن رَّبِّهِ وَيَتْلُوهُ شَاهِدٌ مِّنْهُ وَمِن قَبْلِهِ كِتَابُ مُوسَى إَمَامًا وَرَحْمَةً أُوْلَـئِكَ يُؤْمِنُونَ بِهِ وَمَن يَكْفُرْ بِهِ مِنَ الأَحْزَابِ فَالنَّارُ مَوْعِدُهُ فَلاَ تَكُ فِي مِرْيَةٍ مِّنْهُ إِنَّهُ الْحَقُّ مِن رَّبِّكَ وَلَـكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لاَ يُؤْمِنُونَ |
18 |
उस व्यक्ति से बढ़कर अत्याचारी कौन होगा जो अल्लाह पर थोपकर झूठ घड़े। ऐसे लोग अपने रब के सामने पेश होंगे और गवाही देनेवाले कहेंगे, "यही लोग है जिन्होंने अपने रब पर झूठ घड़ा।" सुन लो! ऐसे अत्याचारियों पर अल्लाह की लानत है |
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وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنِ افْتَرَى عَلَى اللّهِ كَذِبًا أُوْلَـئِكَ يُعْرَضُونَ عَلَى رَبِّهِمْ وَيَقُولُ الأَشْهَادُ هَـؤُلاء الَّذِينَ كَذَبُواْ عَلَى رَبِّهِمْ أَلاَ لَعْنَةُ اللّهِ عَلَى الظَّالِمِينَ |
19 |
जो अल्लाह के मार्ग से रोकते है और उसमें टेढ़ पैदा करना चाहते है; और वही आख़िरत का इनकार करते है |
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الَّذِينَ يَصُدُّونَ عَن سَبِيلِ اللّهِ وَيَبْغُونَهَا عِوَجًا وَهُم بِالآخِرَةِ هُمْ كَافِرُونَ |
20 |
वे धरती में क़ाबू से बाहर नहीं जा सकते और न अल्लाह से हटकर उनका कोई समर्थक ही है। उन्हें दोहरी यातना दी जाएगी। वे न सुन ही सकते थे और न देख ही सकते थे |
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أُولَـئِكَ لَمْ يَكُونُواْ مُعْجِزِينَ فِي الأَرْضِ وَمَا كَانَ لَهُم مِّن دُونِ اللّهِ مِنْ أَوْلِيَاء يُضَاعَفُ لَهُمُ الْعَذَابُ مَا كَانُواْ يَسْتَطِيعُونَ السَّمْعَ وَمَا كَانُواْ يُبْصِرُونَ |
21 |
ये वही लोग है जिन्होंने अपने आपको घाटे में डाला और जो कुछ वे घड़ा करते थे, वह सब उनमें गुम होकर रह गया |
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أُوْلَـئِكَ الَّذِينَ خَسِرُواْ أَنفُسَهُمْ وَضَلَّ عَنْهُم مَّا كَانُواْ يَفْتَرُونَ |
22 |
निश्चय ही वही आख़िरत में सबसे बढ़कर घाटे में रहेंगे |
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لاَ جَرَمَ أَنَّهُمْ فِي الآخِرَةِ هُمُ الأَخْسَرُونَ |
23 |
रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए और अपने रब की ओर झूक पड़े वही जन्नतवाले है, उसमें वे सदैव रहेंगे |
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إِنَّ الَّذِينَ آمَنُواْ وَعَمِلُواْ الصَّالِحَاتِ وَأَخْبَتُواْ إِلَى رَبِّهِمْ أُوْلَـئِكَ أَصْحَابُ الجَنَّةِ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ |
24 |
दोनों पक्षों की उपमा ऐसी है जैसे एक अन्धा और बहरा हो और एक देखने और सुननेवाला। क्या इन दोनों की दशा समान हो सकती है? तो क्या तुम होश से काम नहीं लेते? |
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مَثَلُ الْفَرِيقَيْنِ كَالأَعْمَى وَالأَصَمِّ وَالْبَصِيرِ وَالسَّمِيعِ هَلْ يَسْتَوِيَانِ مَثَلاً أَفَلاَ تَذَكَّرُونَ |
25 |
हमने नूह को उसकी क़ौम की ओर भेजा। (उसने कहा,) "मैं तुम्हें साफ़-साफ़ चेतावनी देता हूँ |
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وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا نُوحًا إِلَى قَوْمِهِ إِنِّي لَكُمْ نَذِيرٌ مُّبِينٌ |
26 |
यह कि तुम अल्लाह के सिवा किसी की बन्दगी न करो। मुझे तुम्हारे विषय में एक दुखद दिन की यातना का भय है।" |
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أَن لاَّ تَعْبُدُواْ إِلاَّ اللّهَ إِنِّيَ أَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ أَلِيمٍ |
27 |
इसपर उसकी क़ौम के सरदार, जिन्होंने इनकार किया था, कहने लगे, "हमारी दृष्टि में तो तुम हमारे ही जैसे आदमी हो और हम देखते है कि बस कुछ ऐसे लोग ही तुम्हारे अनुयायी है जो पहली स्पष्ट में हमारे यहाँ के नीच है। हम अपने मुक़ाबले में तुममें कोई बड़ाई नहीं देखते, बल्कि हम तो तुम्हें झूठा समझते है।" |
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فَقَالَ الْمَلأُ الَّذِينَ كَفَرُواْ مِن قِوْمِهِ مَا نَرَاكَ إِلاَّ بَشَرًا مِّثْلَنَا وَمَا نَرَاكَ اتَّبَعَكَ إِلاَّ الَّذِينَ هُمْ أَرَاذِلُنَا بَادِيَ الرَّأْيِ وَمَا نَرَى لَكُمْ عَلَيْنَا مِن فَضْلٍ بَلْ نَظُنُّكُمْ كَاذِبِينَ |
28 |
उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! तुम्हारा क्या विचार है? यदि मैं अपने रब के एक स्पष्ट प्रमाण पर हूँ और उसने मुझे अपने पास से दयालुता भी प्रदान की है, फिर वह तुम्हें न सूझे तो क्या हम हठात उसे तुमपर चिपका दें, जबकि वह तुम्हें अप्रिय है? |
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قَالَ يَا قَوْمِ أَرَأَيْتُمْ إِن كُنتُ عَلَى بَيِّنَةٍ مِّن رَّبِّيَ وَآتَانِي رَحْمَةً مِّنْ عِندِهِ فَعُمِّيَتْ عَلَيْكُمْ أَنُلْزِمُكُمُوهَا وَأَنتُمْ لَهَا كَارِهُونَ |
29 |
और ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मैं इस काम पर कोई धन नहीं माँगता। मेरा पारिश्रमिक तो बस अल्लाह के ज़िम्मे है। मैं ईमान लानेवालो को दूर करनेवाला भी नहीं। उन्हें तो अपने रब से मिलना ही है, किन्तु मैं तुम्हें देख रहा हूँ कि तुम अज्ञानी लोग हो |
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وَيَا قَوْمِ لا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مَالاً إِنْ أَجْرِيَ إِلاَّ عَلَى اللّهِ وَمَا أَنَاْ بِطَارِدِ الَّذِينَ آمَنُواْ إِنَّهُم مُّلاَقُو رَبِّهِمْ وَلَـكِنِّيَ أَرَاكُمْ قَوْمًا تَجْهَلُونَ |
30 |
और ऐ मेरी क़ौम के लोगो! यदि मैं उन्हें धुत्कार दूँ तो अल्लाह के मुक़ाबले में कौन मेरी सहायता कर सकता है? फिर क्या तुम होश से काम नहीं लेते? |
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وَيَا قَوْمِ مَن يَنصُرُنِي مِنَ اللّهِ إِن طَرَدتُّهُمْ أَفَلاَ تَذَكَّرُونَ |
31 |
और मैं तुमसे यह नहीं कहता कि मेरे पास अल्लाह के ख़जाने है और न मुझे परोक्ष का ज्ञान है और न मैं यह कहता हूँ कि मैं कोई फ़रिश्ता हूँ और न उन लोगों के विषय में, जो तुम्हारी दृष्टि में तुच्छ है, मैं यह कहता हूँ कि अल्लाह उन्हें कोई भलाई न देगा। जो कुछ उनके जी में है, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है। (यदि मैं ऐसा कहूँ) तब तो मैं अवश्य ही ज़ालिमों में से हूँगा।" |
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وَلاَ أَقُولُ لَكُمْ عِندِي خَزَآئِنُ اللّهِ وَلاَ أَعْلَمُ الْغَيْبَ وَلاَ أَقُولُ إِنِّي مَلَكٌ وَلاَ أَقُولُ لِلَّذِينَ تَزْدَرِي أَعْيُنُكُمْ لَن يُؤْتِيَهُمُ اللّهُ خَيْرًا اللّهُ أَعْلَمُ بِمَا فِي أَنفُسِهِمْ إِنِّي إِذًا لَّمِنَ الظَّالِمِينَ |
32 |
उन्होंने कहा, "ऐ नूह! तुम हमसे झगड़ चुके और बहुत झगड़ चुके। यदि तुम सच्चे हो तो जिसकी तुम हमें धमकी देते हो, अब उसे हम पर ले ही आओ।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011032.mp3
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قَالُواْ يَا نُوحُ قَدْ جَادَلْتَنَا فَأَكْثَرْتَ جِدَالَنَا فَأْتَنِا بِمَا تَعِدُنَا إِن كُنتَ مِنَ الصَّادِقِينَ |
33 |
उसने कहा, "वह तो अल्लाह ही यदि चाहेगा तो तुमपर लाएगा और तुम क़ाबू से बाहर नहीं जा सकते |
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قَالَ إِنَّمَا يَأْتِيكُم بِهِ اللّهُ إِن شَاء وَمَا أَنتُم بِمُعْجِزِينَ |
34 |
अब जबकि अल्लाह ही ने तुम्हें विनष्ट करने का निश्चय कर लिया हो, तो यदि मैं तुम्हारा भला भी चाहूँ, तो मेरा भला चाहना तुम्हें कुछ भी लाभ नहीं पहुँचा सकता। वही तुम्हारा रब है और उसी की ओर तुम्हें पलटना भी है।" |
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وَلاَ يَنفَعُكُمْ نُصْحِي إِنْ أَرَدتُّ أَنْ أَنصَحَ لَكُمْ إِن كَانَ اللّهُ يُرِيدُ أَن يُغْوِيَكُمْ هُوَ رَبُّكُمْ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ |
35 |
(क्या उन्हें कोई खटक है) या वे कहते है, "उसने स्वयं इसे घड़ लिया है?" कह दो, "यदि मैंने इसे घड़ लिया है तो मेरे अपराध का दायित्व मुझपर ही है। और जो अपराध तुम कर रहे हो मैं उसके दायित्व से मुक्त हूँ।" |
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أَمْ يَقُولُونَ افْتَرَاهُ قُلْ إِنِ افْتَرَيْتُهُ فَعَلَيَّ إِجْرَامِي وَأَنَاْ بَرِيءٌ مِّمَّا تُجْرَمُونَ |
36 |
नूह की ओर प्रकाशना की गई कि "जो लोग ईमान ला चुके है, उनके सिवा अब तुम्हारी क़ौम में कोई ईमान लानेवाला नहीं। अतः जो कुछ वे कर रहे है उसपर तुम दुखी न हो |
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وَأُوحِيَ إِلَى نُوحٍ أَنَّهُ لَن يُؤْمِنَ مِن قَوْمِكَ إِلاَّ مَن قَدْ آمَنَ فَلاَ تَبْتَئِسْ بِمَا كَانُواْ يَفْعَلُونَ |
37 |
तुम हमारे समक्ष और हमारी प्रकाशना के अनुसार नाव बनाओ और अत्याचारियों के विषय में मुझसे बात न करो। निश्चय ही वे डूबकर रहेंगे।" |
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وَاصْنَعِ الْفُلْكَ بِأَعْيُنِنَا وَوَحْيِنَا وَلاَ تُخَاطِبْنِي فِي الَّذِينَ ظَلَمُواْ إِنَّهُم مُّغْرَقُونَ |
38 |
जब नाव बनाने लगता है। उसकी क़ौम के सरदार जब भी उसके पास से गुज़रते तो उसका उपहास करते। उसने कहा, "यदि तुम हमारा उपहास करते हो तो हम भी तुम्हारा उपहास करेंगे, जैसे तुम हमारा उपहास करते हो |
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وَيَصْنَعُ الْفُلْكَ وَكُلَّمَا مَرَّ عَلَيْهِ مَلأٌ مِّن قَوْمِهِ سَخِرُواْ مِنْهُ قَالَ إِن تَسْخَرُواْ مِنَّا فَإِنَّا نَسْخَرُ مِنكُمْ كَمَا تَسْخَرُونَ |
39 |
अब शीघ्र ही तुम जान लोगे कि कौन है जिसपर ऐसी यातना आती है, जो उसे अपमानित कर देगी और जिसपर ऐसी स्थाई यातना टूट पड़ती है |
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فَسَوْفَ تَعْلَمُونَ مَن يَأْتِيهِ عَذَابٌ يُخْزِيهِ وَيَحِلُّ عَلَيْهِ عَذَابٌ مُّقِيمٌ |
40 |
यहाँ तक कि जब हमारा आदेश आ गया और तंदूर उबल पड़ा तो हमने कहा, "हर जाति में से दो-दो के जोड़े चढ़ा लो और अपने घरवालों को भी - सिवाय ऐसे व्यक्ति के जिसके बारे में बात तय पा चुकी है - और जो ईमान लाया हो उसे भी।" किन्तु उसके साथ जो ईमान लाए थे वे थोड़े ही थे |
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حَتَّى إِذَا جَاء أَمْرُنَا وَفَارَ التَّنُّورُ قُلْنَا احْمِلْ فِيهَا مِن كُلٍّ زَوْجَيْنِ اثْنَيْنِ وَأَهْلَكَ إِلاَّ مَن سَبَقَ عَلَيْهِ الْقَوْلُ وَمَنْ آمَنَ وَمَا آمَنَ مَعَهُ إِلاَّ قَلِيلٌ |
41 |
उसने कहा, "उसमें सवार हो जाओ। अल्लाह के नाम से इसका चलना भी है और इसका ठहरना भी। निस्संदेह मेरा रब अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है।" |
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وَقَالَ ارْكَبُواْ فِيهَا بِسْمِ اللّهِ مَجْرَاهَا وَمُرْسَاهَا إِنَّ رَبِّي لَغَفُورٌ رَّحِيمٌ |
42 |
और वह (नाव) उन्हें लिए हुए पहाड़ों जैसी ऊँची लहर के बीच चल रही थी। नूह ने अपने बेटे को, जो उससे अलग था, पुकारा, "ऐ मेरे बेटे! हमारे साथ सवार हो जा। तू इनकार करनेवालों के साथ न रह।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011042.mp3
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وَهِيَ تَجْرِي بِهِمْ فِي مَوْجٍ كَالْجِبَالِ وَنَادَى نُوحٌ ابْنَهُ وَكَانَ فِي مَعْزِلٍ يَا بُنَيَّ ارْكَب مَّعَنَا وَلاَ تَكُن مَّعَ الْكَافِرِينَ |
43 |
उसने कहा, "मैं किसी पहाड़ से जा लगूँगा, जो मुझे पानी से बचा लेगा।" कहा, "आज अल्लाह के आदेश (फ़ैसले) से कोई बचानेवाला नहीं है सिवाय उसके जिसपर वह दया करे।" इतने में दोनों के बीच लहर आ पड़ी और डूबनेवालों के साथ वह भी डूब गया |
/content/ayah/audio/hudhaify/011043.mp3
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قَالَ سَآوِي إِلَى جَبَلٍ يَعْصِمُنِي مِنَ الْمَاء قَالَ لاَ عَاصِمَ الْيَوْمَ مِنْ أَمْرِ اللّهِ إِلاَّ مَن رَّحِمَ وَحَالَ بَيْنَهُمَا الْمَوْجُ فَكَانَ مِنَ الْمُغْرَقِينَ |
44 |
और कहा गया, "ऐ धरती! अपना पानी निगल जा और ऐ आकाश! तू थम जा।" अतएव पानी तह में बैठ गया और फ़ैसला चुका दिया गया और वह (नाव) जूदी पर्वत पर टिक गई औऱ कह दिया गया, "फिटकार हो अत्याचारी लोगों पर!" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011044.mp3
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وَقِيلَ يَا أَرْضُ ابْلَعِي مَاءكِ وَيَا سَمَاء أَقْلِعِي وَغِيضَ الْمَاء وَقُضِيَ الأَمْرُ وَاسْتَوَتْ عَلَى الْجُودِيِّ وَقِيلَ بُعْداً لِّلْقَوْمِ الظَّالِمِينَ |
45 |
नूह ने अपने रब को पुकारा और कहा, "मेरे रब! मेरा बेटा मेरे घरवालों में से है और निस्संदेह तेरा वादा सच्चा है और तू सबसे बड़ा हाकिम भी है।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011045.mp3
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وَنَادَى نُوحٌ رَّبَّهُ فَقَالَ رَبِّ إِنَّ ابُنِي مِنْ أَهْلِي وَإِنَّ وَعْدَكَ الْحَقُّ وَأَنتَ أَحْكَمُ الْحَاكِمِينَ |
46 |
कहा, "ऐ नूह! वह तेरे घरवालों में से नहीं, वह तो सर्वथा एक बिगड़ा काम है। अतः जिसका तुझे ज्ञान नहीं, उसके विषय में मुझसे न पूछ, तेरे नादान हो जाने की आशंका से मैं तुझे नसीहत करता हूँ।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011046.mp3
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قَالَ يَا نُوحُ إِنَّهُ لَيْسَ مِنْ أَهْلِكَ إِنَّهُ عَمَلٌ غَيْرُ صَالِحٍ فَلاَ تَسْأَلْنِ مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ إِنِّي أَعِظُكَ أَن تَكُونَ مِنَ الْجَاهِلِينَ |
47 |
उसने कहा, "मेरे रब! मैं इससे तेरी पनाह माँगता हूँ कि तुझसे उस चीज़ का सवाल करूँ जिसका मुझे कोई ज्ञान न हो। अब यदि तूने मुझे क्षमा न किया और मुझपर दया न की, तो मैं घाटे में पड़कर रहूँगा।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011047.mp3
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قَالَ رَبِّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ أَنْ أَسْأَلَكَ مَا لَيْسَ لِي بِهِ عِلْمٌ وَإِلاَّ تَغْفِرْ لِي وَتَرْحَمْنِي أَكُن مِّنَ الْخَاسِرِينَ |
48 |
कहा गया, "ऐ नूह! हमारी ओर से सलामती और उन बरकतों के साथ उतर, जो तुझपर और उन गिरोहों पर होगी, जो तेरे साथवालों में से होंगे। कुछ गिरोह ऐसे भी होंगे जिन्हें हम थोड़े दिनों का सुखोपभोग कराएँगे। फिर उन्हें हमारी ओर से दुखद यातना आ पहुँचेगी।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011048.mp3
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قِيلَ يَا نُوحُ اهْبِطْ بِسَلاَمٍ مِّنَّا وَبَركَاتٍ عَلَيْكَ وَعَلَى أُمَمٍ مِّمَّن مَّعَكَ وَأُمَمٌ سَنُمَتِّعُهُمْ ثُمَّ يَمَسُّهُم مِّنَّا عَذَابٌ أَلِيمٌ |
49 |
ये परोक्ष की ख़बरें हैं जिनकी हम तुम्हारी ओर प्रकाशना कर रहे है। इससे पहले तो न तुम्हें इनकी ख़बर थी और न तुम्हारी क़ौम को। अतः धैर्य से काम लो। निस्संदेह अन्तिम परिणाम डर रखनेवालो के पक्ष में है |
/content/ayah/audio/hudhaify/011049.mp3
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تِلْكَ مِنْ أَنبَاء الْغَيْبِ نُوحِيهَا إِلَيْكَ مَا كُنتَ تَعْلَمُهَا أَنتَ وَلاَ قَوْمُكَ مِن قَبْلِ هَـذَا فَاصْبِرْ إِنَّ الْعَاقِبَةَ لِلْمُتَّقِينَ |
50 |
और 'आद' की ओर उनके भाई 'हूद' को भेजा। उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अल्लाह की बन्दगी करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई पूज्य प्रभु नहीं। तुमने तो बस झूठ घड़ रखा हैं |
/content/ayah/audio/hudhaify/011050.mp3
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وَإِلَى عَادٍ أَخَاهُمْ هُودًا قَالَ يَا قَوْمِ اعْبُدُواْ اللّهَ مَا لَكُم مِّنْ إِلَـهٍ غَيْرُهُ إِنْ أَنتُمْ إِلاَّ مُفْتَرُونَ |
51 |
ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मैं इसपर तुमसे कोई पारिश्रमिक नहीं माँगता। मेरा पारिश्रमिक तो बस उसके ज़िम्मे है जिसने मुझे पैदा किया। फिर क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते? |
/content/ayah/audio/hudhaify/011051.mp3
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يَا قَوْمِ لا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ أَجْرًا إِنْ أَجْرِيَ إِلاَّ عَلَى الَّذِي فَطَرَنِي أَفَلاَ تَعْقِلُونَ |
52 |
ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अपने रब से क्षमा याचना करो, फिर उसकी ओर पलट आओ। वह तुमपर आकाश को ख़ूब बरसता छोड़ेगा और तुममें शक्ति पर शक्ति की अभिवृद्धि करेगा। तुम अपराधी बनकर मुँह न फेरो।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011052.mp3
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وَيَا قَوْمِ اسْتَغْفِرُواْ رَبَّكُمْ ثُمَّ تُوبُواْ إِلَيْهِ يُرْسِلِ السَّمَاء عَلَيْكُم مِّدْرَارًا وَيَزِدْكُمْ قُوَّةً إِلَى قُوَّتِكُمْ وَلاَ تَتَوَلَّوْاْ مُجْرِمِينَ |
53 |
उन्होंने कहा, "ऐ हूद! तू हमारे पास कोई स्पष्ट प्रमाण लेकर नहीं आया है। तेरे कहने से हम अपने इष्ट -पूज्यों को नहीं छोड़ सकते और न हम तुझपर ईमान लानेवाले है |
/content/ayah/audio/hudhaify/011053.mp3
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قَالُواْ يَا هُودُ مَا جِئْتَنَا بِبَيِّنَةٍ وَمَا نَحْنُ بِتَارِكِي آلِهَتِنَا عَن قَوْلِكَ وَمَا نَحْنُ لَكَ بِمُؤْمِنِينَ |
54 |
हम तो केवल यही कहते है कि हमारे इष्ट-पूज्यों में से किसी की तुझपर मार पड़ गई है।" उसने कहा, "मैं तो अल्लाह को गवाह बनाता हूँ और तुम भी गवाह रहो कि उनसे मेरा कोई सम्बन्ध नहीं, |
/content/ayah/audio/hudhaify/011054.mp3
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إِن نَّقُولُ إِلاَّ اعْتَرَاكَ بَعْضُ آلِهَتِنَا بِسُوَءٍ قَالَ إِنِّي أُشْهِدُ اللّهِ وَاشْهَدُواْ أَنِّي بَرِيءٌ مِّمَّا تُشْرِكُونَ |
55 |
जिनको तुम साझी ठहराकर उसके सिवा पूज्य मानते हो। अतः तुम सब मिलकर मेरे साथ दाँव-घात लगाकर देखो और मुझे मुहलत न दो |
/content/ayah/audio/hudhaify/011055.mp3
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مِن دُونِهِ فَكِيدُونِي جَمِيعًا ثُمَّ لاَ تُنظِرُونِ |
56 |
मेरा भरोसा तो अल्लाह, अपने रब और तुम्हारे रब, पर है। चलने-फिरनेवाला जो प्राणी भी है, उसकी चोटी तो उसी के हाथ में है। निस्संदेह मेरा रब सीधे मार्ग पर है |
/content/ayah/audio/hudhaify/011056.mp3
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إِنِّي تَوَكَّلْتُ عَلَى اللّهِ رَبِّي وَرَبِّكُم مَّا مِن دَآبَّةٍ إِلاَّ هُوَ آخِذٌ بِنَاصِيَتِهَا إِنَّ رَبِّي عَلَى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ |
57 |
किन्तु यदि तुम मुँह मोड़ते हो तो जो कुछ देकर मुझे तुम्हारी ओर भेजा गया था, वह तो मैं तुम्हें पहुँचा ही चुका। मेरा रब तुम्हारे स्थान पर दूसरी किसी क़ौम को लाएगा और तुम उसका कुछ न बिगाड़ सकोगे। निस्संदेह मेरा रब हर चीज़ की देख-भाल कर रहा है।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011057.mp3
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فَإِن تَوَلَّوْاْ فَقَدْ أَبْلَغْتُكُم مَّا أُرْسِلْتُ بِهِ إِلَيْكُمْ وَيَسْتَخْلِفُ رَبِّي قَوْمًا غَيْرَكُمْ وَلاَ تَضُرُّونَهُ شَيْئًا إِنَّ رَبِّي عَلَىَ كُلِّ شَيْءٍ حَفِيظٌ |
58 |
और जब हमारा आदेश आ पहुँचा तो हमने हूद और उसके साथ के ईमान लानेवालों को अपनी दयालुता से बचा लिया। और एक कठोर यातना से हमने उन्हें छुटकारा दिया |
/content/ayah/audio/hudhaify/011058.mp3
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وَلَمَّا جَاء أَمْرُنَا نَجَّيْنَا هُودًا وَالَّذِينَ آمَنُواْ مَعَهُ بِرَحْمَةٍ مِّنَّا وَنَجَّيْنَاهُم مِّنْ عَذَابٍ غَلِيظٍ |
59 |
ये आद है, जिन्होंने अपने रब की आयतों का इनकार किया; उसके रसूलों की अवज्ञा की और हर सरकश विरोधी के पीछे चलते रहे |
/content/ayah/audio/hudhaify/011059.mp3
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وَتِلْكَ عَادٌ جَحَدُواْ بِآيَاتِ رَبِّهِمْ وَعَصَوْاْ رُسُلَهُ وَاتَّبَعُواْ أَمْرَ كُلِّ جَبَّارٍ عَنِيدٍ |
60 |
इस संसार में भी लानत ने उनका पीछा किया और क़ियामत के दिन भी, "सुन लो! निस्संदेह आद ने अपने रब के साथ कुफ़्र किया। सुनो! विनष्ट हो आद, हूद की क़ौम।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011060.mp3
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وَأُتْبِعُواْ فِي هَـذِهِ الدُّنْيَا لَعْنَةً وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ أَلا إِنَّ عَادًا كَفَرُواْ رَبَّهُمْ أَلاَ بُعْدًا لِّعَادٍ قَوْمِ هُودٍ |
61 |
समूद को और उसके भाई सालेह को भेजा। उसने कहा, "ऐ मेरी क़़ौम के लोगों! अल्लाह की बन्दगी करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई अन्य पूज्य-प्रभु नहीं। उसी ने तुम्हें धरती से पैदा किया और उसमें तुम्हें बसायाय़ अतः उससे क्षमा माँगो; फिर उसकी ओर पलट आओ। निस्संदेह मेरा रब निकट है, प्रार्थनाओं को स्वीकार करनेवाला भी।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011061.mp3
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وَإِلَى ثَمُودَ أَخَاهُمْ صَالِحًا قَالَ يَا قَوْمِ اعْبُدُواْ اللّهَ مَا لَكُم مِّنْ إِلَـهٍ غَيْرُهُ هُوَ أَنشَأَكُم مِّنَ الأَرْضِ وَاسْتَعْمَرَكُمْ فِيهَا فَاسْتَغْفِرُوهُ ثُمَّ تُوبُواْ إِلَيْهِ إِنَّ رَبِّي قَرِيبٌ مُّجِيبٌ |
62 |
उन्होंने कहा, "ऐ सालेह! इससे पहले तू हमारे बीच ऐसा व्यक्ति था जिससे बड़ी आशाएँ थीं। क्या तू हमें उनको पूजने से रोकता है जिनकी पूजा हमारे बाप-दादा करते रहे है? जिनकी ओर तू हमें बुला रहा है उसके विषय में तो हमें संदेह है जो हमें दुविधा में डाले हुए है।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011062.mp3
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قَالُواْ يَا صَالِحُ قَدْ كُنتَ فِينَا مَرْجُوًّا قَبْلَ هَـذَا أَتَنْهَانَا أَن نَّعْبُدَ مَا يَعْبُدُ آبَاؤُنَا وَإِنَّنَا لَفِي شَكٍّ مِّمَّا تَدْعُونَا إِلَيْهِ مُرِيبٍ |
63 |
उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगों! क्या तुमने सोचा? यदि मैं अपने रब के एक स्पष्ट प्रमाण पर हूँ और उसने मुझे अपनी ओर से दयालुता प्रदान की है, तो यदि मैं उसकी अवज्ञा करूँ तो अल्लाह के मुक़ाबले में कौन मेरी सहायता करेगा? तुम तो और अधिक घाटे में डाल देने के अतिरिक्त मेरे हक़ में और कोई अभिवृद्धि नहीं करोगे |
/content/ayah/audio/hudhaify/011063.mp3
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قَالَ يَا قَوْمِ أَرَأَيْتُمْ إِن كُنتُ عَلَى بَيِّنَةً مِّن رَّبِّي وَآتَانِي مِنْهُ رَحْمَةً فَمَن يَنصُرُنِي مِنَ اللّهِ إِنْ عَصَيْتُهُ فَمَا تَزِيدُونَنِي غَيْرَ تَخْسِيرٍ |
64 |
ऐ मेरी क़ौम के लोगो! यह अल्लाह की ऊँटनी तुम्हारे लिए एक निशानी है। इसे छोड़ दो कि अल्लाह की धरती में खाए और इसे तकलीफ़ देने के लिए हाथ न लगाना अन्यथा समीपस्थ यातना तुम्हें आ लेगी।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011064.mp3
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وَيَا قَوْمِ هَـذِهِ نَاقَةُ اللّهِ لَكُمْ آيَةً فَذَرُوهَا تَأْكُلْ فِي أَرْضِ اللّهِ وَلاَ تَمَسُّوهَا بِسُوءٍ فَيَأْخُذَكُمْ عَذَابٌ قَرِيبٌ |
65 |
किन्तु उन्होंने उसकी कूंचे काट डाली। इसपर उसने कहा, "अपने घरों में तीन दिन और मज़े ले लो। यह ऐसा वादा है, जो झूठा सिद्ध न होगा।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011065.mp3
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فَعَقَرُوهَا فَقَالَ تَمَتَّعُواْ فِي دَارِكُمْ ثَلاَثَةَ أَيَّامٍ ذَلِكَ وَعْدٌ غَيْرُ مَكْذُوبٍ |
66 |
फिर जब हमारा आदेश आ पहुँचा, तो हमने अपनी दयालुता से सालेह को और उसके साथ के ईमान लानेवालों को बचा लिया, और उस दिन के अपमान से उन्हें सुरक्षित रखा। वास्तव में, तुम्हारा रब बड़ा शक्तिवान, प्रभुत्वशाली है |
/content/ayah/audio/hudhaify/011066.mp3
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فَلَمَّا جَاء أَمْرُنَا نَجَّيْنَا صَالِحًا وَالَّذِينَ آمَنُواْ مَعَهُ بِرَحْمَةٍ مِّنَّا وَمِنْ خِزْيِ يَوْمِئِذٍ إِنَّ رَبَّكَ هُوَ الْقَوِيُّ الْعَزِيزُ |
67 |
और अत्याचार करनेवालों को एक भयंकर चिंघार ने आ लिया और वे अपने घरों में औंधे पड़े रह गए, |
/content/ayah/audio/hudhaify/011067.mp3
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وَأَخَذَ الَّذِينَ ظَلَمُواْ الصَّيْحَةُ فَأَصْبَحُواْ فِي دِيَارِهِمْ جَاثِمِينَ |
68 |
मानो वे वहाँ कभी बसे ही न थे। "सुनो! समूद ने अपने रब के साथ कुफ़्र किया। सुन लो! फिटकार हो समूद पर!" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011068.mp3
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كَأَن لَّمْ يَغْنَوْاْ فِيهَا أَلاَ إِنَّ ثَمُودَ كَفرُواْ رَبَّهُمْ أَلاَ بُعْدًا لِّثَمُودَ |
69 |
और हमारे भेजे हुए (फ़रिश्ते) इबराहीम के पास शुभ सूचना लेकर पहुँचे। उन्होंने कहा, "सलाम हो!" उसने भी कहा, "सलाम हो।" फिर उसने कुछ विलम्भ न किया, एक भुना हुआ बछड़ा ले आया |
/content/ayah/audio/hudhaify/011069.mp3
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وَلَقَدْ جَاءتْ رُسُلُنَا إِبْرَاهِيمَ بِالْبُـشْرَى قَالُواْ سَلاَمًا قَالَ سَلاَمٌ فَمَا لَبِثَ أَن جَاء بِعِجْلٍ حَنِيذٍ |
70 |
किन्तु जब देखा कि उनके हाथ उसकी ओर नहीं बढ़ रहे है तो उसने उन्हें अजनबी समझा और दिल में उनसे डरा। वे बोले, "डरो नहीं, हम तो लूत की क़ौम की ओर से भेजे गए है।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011070.mp3
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فَلَمَّا رَأَى أَيْدِيَهُمْ لاَ تَصِلُ إِلَيْهِ نَكِرَهُمْ وَأَوْجَسَ مِنْهُمْ خِيفَةً قَالُواْ لاَ تَخَفْ إِنَّا أُرْسِلْنَا إِلَى قَوْمِ لُوطٍ |
71 |
उसकी स्त्री भी खड़ी थी। वह इसपर हँस पड़ी। फिर हमने उसको इसहाक़ और इसहाक़ के बाद याक़ूब की शुभ सूचना दी |
/content/ayah/audio/hudhaify/011071.mp3
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وَامْرَأَتُهُ قَآئِمَةٌ فَضَحِكَتْ فَبَشَّرْنَاهَا بِإِسْحَاقَ وَمِن وَرَاء إِسْحَاقَ يَعْقُوبَ |
72 |
वह बोली, "हाय मेरा हतभाग्य! क्या मैं बच्चे को जन्म दूँगी, जबकि मैं वृद्धा और ये मेरे पति है बूढें? यह तो बड़ी ही अद्भुपत बात है!" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011072.mp3
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قَالَتْ يَا وَيْلَتَى أَأَلِدُ وَأَنَاْ عَجُوزٌ وَهَـذَا بَعْلِي شَيْخًا إِنَّ هَـذَا لَشَيْءٌ عَجِيبٌ |
73 |
वे बोले, "क्या अल्लाह के आदेश पर तुम आश्चर्य करती हो? घरवालो! तुम लोगों पर तो अल्लाह की दयालुता और उसकी बरकतें है। वह निश्चय ही प्रशंसनीय, गौरववाला है।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011073.mp3
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قَالُواْ أَتَعْجَبِينَ مِنْ أَمْرِ اللّهِ رَحْمَتُ اللّهِ وَبَرَكَاتُهُ عَلَيْكُمْ أَهْلَ الْبَيْتِ إِنَّهُ حَمِيدٌ مَّجِيدٌ |
74 |
फिर जब इबराहीम की घबराहट दूर हो गई और उसे शुभ सूचना भी मिली तो वह लूत की क़ौम के विषय में हम से झगड़ने लगा |
/content/ayah/audio/hudhaify/011074.mp3
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فَلَمَّا ذَهَبَ عَنْ إِبْرَاهِيمَ الرَّوْعُ وَجَاءتْهُ الْبُشْرَى يُجَادِلُنَا فِي قَوْمِ لُوطٍ |
75 |
निस्संदेह इबराहीम बड़ा ही सहनशील, कोमल हृदय, हमारी ओर रुजू (प्रवृत्त) होनेवाला था |
/content/ayah/audio/hudhaify/011075.mp3
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إِنَّ إِبْرَاهِيمَ لَحَلِيمٌ أَوَّاهٌ مُّنِيبٌ |
76 |
"ऐ ईबराहीम! इसे छोड़ दो। तुम्हारे रब का आदेश आ चुका है और निश्चय ही उनपर न टलनेवाली यातना आनेवाली है।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011076.mp3
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يَا إِبْرَاهِيمُ أَعْرِضْ عَنْ هَذَا إِنَّهُ قَدْ جَاء أَمْرُ رَبِّكَ وَإِنَّهُمْ آتِيهِمْ عَذَابٌ غَيْرُ مَرْدُودٍ |
77 |
और जब हमारे दूत लूत के पास पहुँचे तो वह उनके कारण अप्रसन्न हुआ और उनके मामले में दिल तंग पाया। कहने लगा, "यह तो बड़ा ही कठिन दिन है।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011077.mp3
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وَلَمَّا جَاءتْ رُسُلُنَا لُوطًا سِيءَ بِهِمْ وَضَاقَ بِهِمْ ذَرْعًا وَقَالَ هَـذَا يَوْمٌ عَصِيبٌ |
78 |
उसकी क़ौम के लोग दौड़ते हुए उसके पास आ पहुँचे। वे पहले से ही दुष्कर्म किया करते थे। उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! ये मेरी (क़ौम की) बेटियाँ (विधिवत विवाह के लिए) मौजूड है। ये तुम्हारे लिए अधिक पवित्र है। अतः अल्लाह का डर रखो और मेरे अतिथियों के विषय में मुझे अपमानित न करो। क्या तुममें एक भी अच्छी समझ का आदमी नहीं?" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011078.mp3
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وَجَاءهُ قَوْمُهُ يُهْرَعُونَ إِلَيْهِ وَمِن قَبْلُ كَانُواْ يَعْمَلُونَ السَّيِّئَاتِ قَالَ يَا قَوْمِ هَـؤُلاء بَنَاتِي هُنَّ أَطْهَرُ لَكُمْ فَاتَّقُواْ اللّهَ وَلاَ تُخْزُونِ فِي ضَيْفِي أَلَيْسَ مِنكُمْ رَجُلٌ رَّشِيدٌ |
79 |
उन्होंने कहा, "तुझे तो मालूम है कि तेरी बेटियों से हमें कोई मतलब नहीं। और हम जो चाहते है, उसे तू भली-भाँति जानता है।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011079.mp3
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قَالُواْ لَقَدْ عَلِمْتَ مَا لَنَا فِي بَنَاتِكَ مِنْ حَقٍّ وَإِنَّكَ لَتَعْلَمُ مَا نُرِيدُ |
80 |
उसने कहा, "क्या ही अच्छा होता मुझमें तुमसे मुक़ाबले की शक्ति होती या मैं किसी सुदृढ़ आश्रय की शरण ही ले सकता।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011080.mp3
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قَالَ لَوْ أَنَّ لِي بِكُمْ قُوَّةً أَوْ آوِي إِلَى رُكْنٍ شَدِيدٍ |
81 |
उन्होंने कहा, "ऐ लूत! हम तुम्हारे रब के भेजे हुए है। वे तुम तक कदापि नहीं पहुँच सकते। अतः तुम रात के किसी हिस्सेमें अपने घरवालों को लेकर निकल जाओ और तुममें से कोई पीछे पलटकर न देखे। हाँ, तुम्हारी स्त्री का मामला और है। उनपर भी वही कुछ बीतनेवाला है, जो उनपर बीतेगा। निर्धारित समय उनके लिए प्रातःकाल का है। तो क्या प्रातःकाल निकट नहीं?" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011081.mp3
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قَالُواْ يَا لُوطُ إِنَّا رُسُلُ رَبِّكَ لَن يَصِلُواْ إِلَيْكَ فَأَسْرِ بِأَهْلِكَ بِقِطْعٍ مِّنَ اللَّيْلِ وَلاَ يَلْتَفِتْ مِنكُمْ أَحَدٌ إِلاَّ امْرَأَتَكَ إِنَّهُ مُصِيبُهَا مَا أَصَابَهُمْ إِنَّ مَوْعِدَهُمُ الصُّبْحُ أَلَيْسَ الصُّبْحُ بِقَرِيبٍ |
82 |
फिर जब हमारा आदेश आ पहुँचा तो हमने उसको तलपट कर दिया और उसपर ककरीले पत्थर ताबड़-तोड़ बरसाए, |
/content/ayah/audio/hudhaify/011082.mp3
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فَلَمَّا جَاء أَمْرُنَا جَعَلْنَا عَالِيَهَا سَافِلَهَا وَأَمْطَرْنَا عَلَيْهَا حِجَارَةً مِّن سِجِّيلٍ مَّنضُودٍ |
83 |
जो तुम्हारे रब के यहाँ चिन्हित थे। और वे अत्याचारियों से कुछ दूर भी नहीं |
/content/ayah/audio/hudhaify/011083.mp3
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مُّسَوَّمَةً عِندَ رَبِّكَ وَمَا هِيَ مِنَ الظَّالِمِينَ بِبَعِيدٍ |
84 |
मदयन की ओर उनके भाई शुऐब को भेजा। उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अल्लाह की बन्दही करो, उनके सिवा तुम्हारा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। और नाप और तौल में कमी न करो। मैं तो तुम्हें अच्छी दशा में देख रहा हूँ, किन्तु मुझे तुम्हारे विषय में एक घेर लेनेवाले दिन की यातना का भय है |
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وَإِلَى مَدْيَنَ أَخَاهُمْ شُعَيْبًا قَالَ يَا قَوْمِ اعْبُدُواْ اللّهَ مَا لَكُم مِّنْ إِلَـهٍ غَيْرُهُ وَلاَ تَنقُصُواْ الْمِكْيَالَ وَالْمِيزَانَ إِنِّيَ أَرَاكُم بِخَيْرٍ وَإِنِّيَ أَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ مُّحِيطٍ |
85 |
ऐ मेरी क़ौम के लोगो! इनसाफ़ के साथ नाप और तौल को पूरा रखो। और लोगों को उनकी चीज़ों में घाटा न दो और धरती में बिगाड़ पैदा करनेवाले बनकर अपने मुँह को कुलषित न करो |
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وَيَا قَوْمِ أَوْفُواْ الْمِكْيَالَ وَالْمِيزَانَ بِالْقِسْطِ وَلاَ تَبْخَسُواْ النَّاسَ أَشْيَاءهُمْ وَلاَ تَعْثَوْاْ فِي الأَرْضِ مُفْسِدِينَ
بَقِيَّةُ اللّهِ خَيْرٌ لَّكُمْ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ وَمَا أَنَاْ عَلَيْكُم بِحَفِيظٍ |
86 |
यदि तुम मोमिन हो तो जो अल्लाह के पास शेष रहता है वही तुम्हारे लिए उत्तम है। मैं तुम्हारे ऊपर कोई नियुक्त रखवाला नहीं हूँ।" |
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بَقِيَّةُ اللّهِ خَيْرٌ لَّكُمْ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ وَمَا أَنَاْ عَلَيْكُم بِحَفِيظٍ |
87 |
वे बोले, "ऐ शुऐब! क्या तेरी नमाज़ तुझे यही सिखाती है कि उन्हें हम छोड़ दें जिन्हें हमारे बाप-दादा पूजते आए है या यह कि हम अपने माल का उपभोग अपनी इच्छानुसार न करें? बस एक तू ही तो बड़ा सहनशील, समझदार रह गया है!" |
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قَالُواْ يَا شُعَيْبُ أَصَلاَتُكَ تَأْمُرُكَ أَن نَّتْرُكَ مَا يَعْبُدُ آبَاؤُنَا أَوْ أَن نَّفْعَلَ فِي أَمْوَالِنَا مَا نَشَاء إِنَّكَ لَأَنتَ الْحَلِيمُ الرَّشِيدُ |
88 |
उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! तुम्हारा क्या विचार है? यदि मैं अपने रब के एक स्पष्ट प्रमाण पर हूँ और उसने मुझे अपनी ओर से अच्छी आजीविका भी प्रदान की (तो झुठलाना मेरे लिए कितना हानिकारक होगा!) और मैं नहीं चाहता कि जिन बातों से मैं तुम्हें रोकता हूँ स्वयं स्वयं तुम्हारे विपरीत उनको करने लगूँ। मैं तो अपने बस भर केवल सुधार चाहता हूँ। मेरा काम बनना तो अल्लाह ही की सहायता से सम्भव है। उसी पर मेरा भरोसा है और उसी की ओर मैं रुजू करता हूँ |
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قَالَ يَا قَوْمِ أَرَأَيْتُمْ إِن كُنتُ عَلَىَ بَيِّنَةٍ مِّن رَّبِّي وَرَزَقَنِي مِنْهُ رِزْقًا حَسَنًا وَمَا أُرِيدُ أَنْ أُخَالِفَكُمْ إِلَى مَا أَنْهَاكُمْ عَنْهُ إِنْ أُرِيدُ إِلاَّ الإِصْلاَحَ مَا اسْتَطَعْتُ وَمَا تَوْفِيقِي إِلاَّ بِاللّهِ عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ وَإِلَيْهِ أُنِيبُ |
89 |
ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मेरे प्रति तुम्हारा विरोध कहीं तुम्हें उस अपराध पर न उभारे कि तुमपर वही बीते जो नूह की क़ौम या हूद की क़ौम या सालेह की क़ौम पर बीत चुका है, और लूत की क़ौम तो तुमसे कुछ दूर भी नहीं। |
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وَيَا قَوْمِ لاَ يَجْرِمَنَّكُمْ شِقَاقِي أَن يُصِيبَكُم مِّثْلُ مَا أَصَابَ قَوْمَ نُوحٍ أَوْ قَوْمَ هُودٍ أَوْ قَوْمَ صَالِحٍ وَمَا قَوْمُ لُوطٍ مِّنكُم بِبَعِيدٍ |
90 |
अपने रब से क्षमा माँगो और फिर उसकी ओर पलट आओ। मेरा रब तो बड़ा दयावन्त, बहुत प्रेम करनेवाला हैं।" |
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وَاسْتَغْفِرُواْ رَبَّكُمْ ثُمَّ تُوبُواْ إِلَيْهِ إِنَّ رَبِّي رَحِيمٌ وَدُودٌ |
91 |
उन्होंने कहा, "ऐ शुऐब! तेरी बहुत-सी बातों को समझने में तो हम असमर्थ है। और हम तो तुझे देखते है कि तू हमारे मध्य अत्यन्त निर्बल है। यदि तेरे भाई-बन्धु न होते तो हम पत्थर मार-मारकर कभी का तुझे समाप्त कर चुके होते। तू इतने बल-बूतेवाला तो नहीं कि हमपर भारी हो।" |
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قَالُواْ يَا شُعَيْبُ مَا نَفْقَهُ كَثِيراً مِّمَّا تَقُولُ وَإِنَّا لَنَرَاكَ فِينَا ضَعِيفًا وَلَوْلاَ رَهْطُكَ لَرَجَمْنَاكَ وَمَا أَنتَ عَلَيْنَا بِعَزِيزٍ |
92 |
उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! क्या मेरे भाई-बन्धु तुमपर अल्लाह से भी ज़्यादा भारी है कि तुमने उसे अपने पीछे डाल दिया? तुम जो कुछ भी करते हो निश्चय ही मेरे रब ने उसे अपने घेरे में ले रखा है |
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قَالَ يَا قَوْمِ أَرَهْطِي أَعَزُّ عَلَيْكُم مِّنَ اللّهِ وَاتَّخَذْتُمُوهُ وَرَاءكُمْ ظِهْرِيًّا إِنَّ رَبِّي بِمَا تَعْمَلُونَ مُحِيطٌ |
93 |
ऐ मेरी क़ौम के लोगो! तुम अपनी जगह कर्म करते रहो, मैं भी कर रहा हूँ। शीघ्र ही तुमको ज्ञात हो जाएगा कि किसपर वह यातना आती है, जो उसे अपमानित करके रहेगी, और कौन है जो झूठा है! प्रतीक्षा करो, मैं भी तुम्हारे साथ प्रतीक्षा कर रहा हूँ।" |
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وَيَا قَوْمِ اعْمَلُواْ عَلَى مَكَانَتِكُمْ إِنِّي عَامِلٌ سَوْفَ تَعْلَمُونَ مَن يَأْتِيهِ عَذَابٌ يُخْزِيهِ وَمَنْ هُوَ كَاذِبٌ وَارْتَقِبُواْ إِنِّي مَعَكُمْ رَقِيبٌ |
94 |
अन्ततः जब हमारा आदेश आ पहुँचा तो हमने अपनी दयालुता से शुऐब और उसके साथ के ईमान लानेवालों को बचा लिया। और अत्याचार करनेवालों को एक प्रचंड चिंघार ने आ लिया और वे अपने घरों में औंधे पड़े रह गए, |
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وَلَمَّا جَاء أَمْرُنَا نَجَّيْنَا شُعَيْبًا وَالَّذِينَ آمَنُواْ مَعَهُ بِرَحْمَةٍ مَّنَّا وَأَخَذَتِ الَّذِينَ ظَلَمُواْ الصَّيْحَةُ فَأَصْبَحُواْ فِي دِيَارِهِمْ جَاثِمِينَ |
95 |
मानो वे वहाँ कभी बसे ही न थे। "सुन लो! फिटकार है मदयनवालों पर, जैसे समूद पर फिटकार हुई!" |
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كَأَن لَّمْ يَغْنَوْاْ فِيهَا أَلاَ بُعْدًا لِّمَدْيَنَ كَمَا بَعِدَتْ ثَمُودُ |
96 |
और हमने मूसा को अपनी निशानियाँ और स्पष्ट प्रमाण के साथ |
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وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا مُوسَى بِآيَاتِنَا وَسُلْطَانٍ مُّبِينٍ |
97 |
फ़िरऔन और उसके सरदारों के पास भेजा, किन्तु वे फ़िरऔन ही के कहने पर चले, हालाँकि फ़िरऔन की बात कोई ठीक बात न थी। |
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إِلَى فِرْعَوْنَ وَمَلَئِهِ فَاتَّبَعُواْ أَمْرَ فِرْعَوْنَ وَمَا أَمْرُ فِرْعَوْنَ بِرَشِيدٍ |
98 |
क़ियामत के दिन वह अपनी क़ौम के लोगों के आगे होगा - और उसने उन्हें आग में जा उतारा, और बहुत ही बुरा घाट है वह उतरने का! |
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يَقْدُمُ قَوْمَهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فَأَوْرَدَهُمُ النَّارَ وَبِئْسَ الْوِرْدُ الْمَوْرُودُ |
99 |
यहाँ भी लानत ने उनका पीछा किया और क़ियामत के दिन भी - बहुत ही बुरा पुरस्कार है यह जो किसी को दिया जाए! |
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وَأُتْبِعُواْ فِي هَـذِهِ لَعْنَةً وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ بِئْسَ الرِّفْدُ الْمَرْفُودُ |
100 |
ये बस्तियों के कुछ वृत्तान्त हैं, जो हम तुम्हें सुना रहे है। इनमें कुछ तो खड़ी है और कुछ की फ़सल कट चुकी है |
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ذَلِكَ مِنْ أَنبَاء الْقُرَى نَقُصُّهُ عَلَيْكَ مِنْهَا قَآئِمٌ وَحَصِيدٌ |
101 |
हमने उनपर अत्याचार नहीं किया, बल्कि उन्होंने स्वयं अपने आप पर अत्याचार किया। फिर जब तेरे रब का आदेश आ गया तो उसके वे पूज्य, जिन्हें वे अल्लाह से हटकर पुकारा करते थे, उनके कुछ भी काम न आ सके। उन्होंने विनाश के अतिरिक्त उनके लिए किसी और चीज़ में अभिवृद्धि नहीं की |
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وَمَا ظَلَمْنَاهُمْ وَلَـكِن ظَلَمُواْ أَنفُسَهُمْ فَمَا أَغْنَتْ عَنْهُمْ آلِهَتُهُمُ الَّتِي يَدْعُونَ مِن دُونِ اللّهِ مِن شَيْءٍ لِّمَّا جَاء أَمْرُ رَبِّكَ وَمَا زَادُوهُمْ غَيْرَ تَتْبِيبٍ |
102 |
तेरे रब की पकड़ ऐसी ही होती है, जब वह किसी ज़ालिम बस्ती को पकड़ता है। निस्संदेह उसकी पकड़ बड़ी दुखद, अत्यन्त कठोर होती है |
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وَكَذَلِكَ أَخْذُ رَبِّكَ إِذَا أَخَذَ الْقُرَى وَهِيَ ظَالِمَةٌ إِنَّ أَخْذَهُ أَلِيمٌ شَدِيدٌ |
103 |
निश्चय ही इसमें उस व्यक्ति के लिए एक निशानी है जो आख़िरत की यातना से डरता हो। वह एक ऐसा दिन होगा, जिसमें सारे ही लोग एकत्र किए जाएँगे और वह एक ऐसा दिन होगा, जिसमें सब कुछ आँखों के सामने होगा, |
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إِنَّ فِي ذَلِكَ لآيَةً لِّمَنْ خَافَ عَذَابَ الآخِرَةِ ذَلِكَ يَوْمٌ مَّجْمُوعٌ لَّهُ النَّاسُ وَذَلِكَ يَوْمٌ مَّشْهُودٌ |
104 |
हम उसे केवल थोड़ी अवधि के लिए ही लग रहे है; |
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وَمَا نُؤَخِّرُهُ إِلاَّ لِأَجَلٍ مَّعْدُودٍ |
105 |
जिस दिन वह आएगा, तो उसकी अनुमति के बिना कोई व्यक्ति बात तक न कर सकेगा। फिर (मानवों में) कोई तो उनमें अभागा होगा और कोई भाग्यशाली |
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يَوْمَ يَأْتِ لاَ تَكَلَّمُ نَفْسٌ إِلاَّ بِإِذْنِهِ فَمِنْهُمْ شَقِيٌّ وَسَعِيدٌ |
106 |
तो जो अभागे होंगे, वे आग में होंगे; जहाँ उन्हें आर्तनाद करना और फुँकार मारना है |
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فَأَمَّا الَّذِينَ شَقُواْ فَفِي النَّارِ لَهُمْ فِيهَا زَفِيرٌ وَشَهِيقٌ |
107 |
वहाँ वे सदैव रहेंगे, जब तक आकाश और धरती स्थिर रहें, बात यह है कि तुम्हारे रब की इच्छा ही चलेगी। तुम्हारा रब जो चाहे करे |
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خَالِدِينَ فِيهَا مَا دَامَتِ السَّمَاوَاتُ وَالأَرْضُ إِلاَّ مَا شَاء رَبُّكَ إِنَّ رَبَّكَ فَعَّالٌ لِّمَا يُرِيدُ |
108 |
रहे वे जो भाग्यशाली होंगे तो वे जन्नत में होंगे, जहाँ वे सदैव रहेंगे जब तक आकाश और धरती स्थिर रहें। बात यह है कि तुम्हारे रब की इच्छा ही चलेगी। यह एक ऐसा उपहार है, जिसका सिलसिला कभी न टूटेगा |
/content/ayah/audio/hudhaify/011108.mp3
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وَأَمَّا الَّذِينَ سُعِدُواْ فَفِي الْجَنَّةِ خَالِدِينَ فِيهَا مَا دَامَتِ السَّمَاوَاتُ وَالأَرْضُ إِلاَّ مَا شَاء رَبُّكَ عَطَاء غَيْرَ مَجْذُوذٍ |
109 |
अतः जिनको ये पूज रहे है, उनके विषय में तुझे कोई संदेह न हो। ये तो बस उसी तरह पूजा किए जा रहे है, जिस तरह इससे पहले इनके बाप-दादा पूजा करते रहे हैं। हम तो इन्हें इनका हिस्सा बिना किसी कमी के पूरा-पूरा देनेवाले हैं |
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فَلاَ تَكُ فِي مِرْيَةٍ مِّمَّا يَعْبُدُ هَـؤُلاء مَا يَعْبُدُونَ إِلاَّ كَمَا يَعْبُدُ آبَاؤُهُم مِّن قَبْلُ وَإِنَّا لَمُوَفُّوهُمْ نَصِيبَهُمْ غَيْرَ مَنقُوصٍ |
110 |
हम मूसा को भी किताब दे चुके है। फिर उसमें भी विभेद किया गया था। यदि तुम्हारे रब की ओर से एक बात पहले ही निश्चित न कर दी गई होती तो उनके बीच कभी का फ़ैसला कर दिया गया होता। ये उसकी ओर से असमंजस में डाल देनेवाले संदेह में पड़े हुए है |
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وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ فَاخْتُلِفَ فِيهِ وَلَوْلاَ كَلِمَةٌ سَبَقَتْ مِن رَّبِّكَ لَقُضِيَ بَيْنَهُمْ وَإِنَّهُمْ لَفِي شَكٍّ مِّنْهُ مُرِيبٍ |
111 |
निश्चय ही समय आने पर एक-एक को, जितने भी है उनको तुम्हारा रब उनका किया पूरा-पूरा देकर रहेगा। वे जो कुछ कर रहे हैं, निस्संदेह उसे उसकी पूरी ख़बर है |
/content/ayah/audio/hudhaify/011111.mp3
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وَإِنَّ كُـلاًّ لَّمَّا لَيُوَفِّيَنَّهُمْ رَبُّكَ أَعْمَالَهُمْ إِنَّهُ بِمَا يَعْمَلُونَ خَبِيرٌ |
112 |
अतः जैसा तुम्हें आदेश हुआ है, जमें रहो और तुम्हारे साथ के तौबा करनेवाले भी जमें रहें, और सीमोल्लंघन न करना। जो कुछ भी तुम करते हो, निश्चय ही वह उसे देख रहा है |
/content/ayah/audio/hudhaify/011112.mp3
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فَاسْتَقِمْ كَمَا أُمِرْتَ وَمَن تَابَ مَعَكَ وَلاَ تَطْغَوْاْ إِنَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ |
113 |
उन लोगों की ओर तनिक भी न झुकना, जिन्होंने अत्याचार की नीति अपनाई हैं, अन्यथा आग तुम्हें आ लिपटेगी - और अल्लाह से हटकर तुम्हारा कोई संरक्षक मित्र नहीं - फिर तुम्हें कोई सहायता भी न मिलेगी |
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وَلاَ تَرْكَنُواْ إِلَى الَّذِينَ ظَلَمُواْ فَتَمَسَّكُمُ النَّارُ وَمَا لَكُم مِّن دُونِ اللّهِ مِنْ أَوْلِيَاء ثُمَّ لاَ تُنصَرُونَ |
114 |
और नमाज़ क़ायम करो दिन के दोनों सिरों पर और रात के कुछ हिस्से में। निस्संदेह नेकियाँ बुराइयों को दूर कर देती है। यह याद रखनेवालों के लिए एक अनुस्मरण है |
/content/ayah/audio/hudhaify/011114.mp3
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وَأَقِمِ الصَّلاَةَ طَرَفَيِ النَّهَارِ وَزُلَفًا مِّنَ اللَّيْلِ إِنَّ الْحَسَنَاتِ يُذْهِبْنَ السَّـيِّئَاتِ ذَلِكَ ذِكْرَى لِلذَّاكِرِينَ |
115 |
और धैर्य से काम लो, इसलिए कि अल्लाह सुकर्मियों को बदला अकारथ नहीं करता; |
/content/ayah/audio/hudhaify/011115.mp3
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وَاصْبِرْ فَإِنَّ اللّهَ لاَ يُضِيعُ أَجْرَ الْمُحْسِنِينَ |
116 |
फिर तुमसे पहले जो नस्लें गुज़र चुकी है उनमें ऐसे भले-समझदार क्यों न हुए जो धरती में बिगाड़ से रोकते, उन थोड़े-से लोगों के सिवा जिनको उनमें से हमने बचा लिया। अत्याचारी लोग तो उसी सुख-सामग्री के पीछे पड़े रहे, जिसमें वे रखे गए थे। वे तो थे ही अपराधी |
/content/ayah/audio/hudhaify/011116.mp3
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فَلَوْلاَ كَانَ مِنَ الْقُرُونِ مِن قَبْلِكُمْ أُوْلُواْ بَقِيَّةٍ يَنْهَوْنَ عَنِ الْفَسَادِ فِي الأَرْضِ إِلاَّ قَلِيلاً مِّمَّنْ أَنجَيْنَا مِنْهُمْ وَاتَّبَعَ الَّذِينَ ظَلَمُواْ مَا أُتْرِفُواْ فِيهِ وَكَانُواْ مُجْرِمِينَ |
117 |
तुम्हारा रब तो ऐसा नहीं है कि बस्तियों को अकारण विनष्ट कर दे, जबकि वहाँ के निवासी बनाव और सुधार में लगे हों |
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وَمَا كَانَ رَبُّكَ لِيُهْلِكَ الْقُرَى بِظُلْمٍ وَأَهْلُهَا مُصْلِحُونَ |
118 |
और यदि तुम्हारा रब चाहता तो वह सारे मनुष्यों को एक समुदाय बना देता, किन्तु अब तो वे सदैव विभेद करते ही रहेंगे, |
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وَلَوْ شَاء رَبُّكَ لَجَعَلَ النَّاسَ أُمَّةً وَاحِدَةً وَلاَ يَزَالُونَ مُخْتَلِفِينَ |
119 |
सिवाय उनके जिनपर तुम्हारा रब दया करे और इसी के लिए उसने उन्हें पैदा किया है, और तुम्हारे रब की यह बात पूरी होकर रही कि "मैं जहन्नम को अपराधी जिन्नों और मनुष्यों सबसे भरकर रहूँगा।" |
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إِلاَّ مَن رَّحِمَ رَبُّكَ وَلِذَلِكَ خَلَقَهُمْ وَتَمَّتْ كَلِمَةُ رَبِّكَ لأَمْلأنَّ جَهَنَّمَ مِنَ الْجِنَّةِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ |
120 |
रसूलों के वृत्तान्तों में से हर वह कथा जो हम तुम्हें सुनाते है उसके द्वारा हम तुम्हारे हृदय को सुदृढ़ करते हैं। और इसमें तुम्हारे पास सत्य आ गया है और मोमिनों के लिए उपदेश और अनुस्मरण भी |
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وَكُـلاًّ نَّقُصُّ عَلَيْكَ مِنْ أَنبَاء الرُّسُلِ مَا نُثَبِّتُ بِهِ فُؤَادَكَ وَجَاءكَ فِي هَـذِهِ الْحَقُّ وَمَوْعِظَةٌ وَذِكْرَى لِلْمُؤْمِنِينَ |
121 |
जो लोग ईमान नहीं ला रहे हैं उनसे कह दो, "तुम अपनी जगह कर्म किए जाओ, हम भी कर्म कर रहे है |
/content/ayah/audio/hudhaify/011121.mp3
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وَقُل لِّلَّذِينَ لاَ يُؤْمِنُونَ اعْمَلُواْ عَلَى مَكَانَتِكُمْ إِنَّا عَامِلُونَ |
122 |
तुम भी प्रतीक्षा करो, हम भी प्रतीक्षा कर रहे है।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/011122.mp3
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وَانتَظِرُوا إِنَّا مُنتَظِرُونَ |
123 |
अल्लाह ही का है जो कुछ आकाशों और धरती में छिपा है, और हर मामला उसी की ओर पलटता है। अतः उसी की बन्दगी करो और उसी पर भरोसा रखो। जो कुछ तुम करते हो, उससे तुम्हारा रब बेख़बर नहीं है |
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وَلِلّهِ غَيْبُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ وَإِلَيْهِ يُرْجَعُ الأَمْرُ كُلُّهُ فَاعْبُدْهُ وَتَوَكَّلْ عَلَيْهِ وَمَا رَبُّكَ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ |