Al-Qamar

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Hindi: Muhammad Farooq Khan and Muhammad Ahmed

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# Translation Ayah
1 वह घड़ी निकट और लगी और चाँद फट गया; اقْتَرَبَتِ السَّاعَةُ وَانشَقَّ الْقَمَرُ
2 किन्तु हाल यह है कि यदि वे कोई निशानी देख भी लें तो टाल जाएँगे और कहेंगे, "यह तो जादू है, पहले से चला आ रहा है!" وَإِن يَرَوْا آيَةً يُعْرِضُوا وَيَقُولُوا سِحْرٌ مُّسْتَمِرٌّ
3 उन्होंने झुठलाया और अपनी इच्छाओं का अनुसरण किया; किन्तु हर मामले के लिए एक नियत अवधि है। وَكَذَّبُوا وَاتَّبَعُوا أَهْوَاءهُمْ وَكُلُّ أَمْرٍ مُّسْتَقِرٌّ
4 उनके पास अतीत को ऐसी खबरें आ चुकी है, जिनमें ताड़ना अर्थात पूर्णतः तत्वदर्शीता है। وَلَقَدْ جَاءهُم مِّنَ الْأَنبَاء مَا فِيهِ مُزْدَجَرٌ
5 किन्तु चेतावनियाँ उनके कुछ काम नहीं आ रही है! - حِكْمَةٌ بَالِغَةٌ فَمَا تُغْنِ النُّذُرُ
6 अतः उनसे रुख़ फेर लो - जिस दिन पुकारनेवाला एक अत्यन्त अप्रिय चीज़ की ओर पुकारेगा; فَتَوَلَّ عَنْهُمْ يَوْمَ يَدْعُ الدَّاعِ إِلَى شَيْءٍ نُّكُرٍ
7 वे अपनी झुकी हुई निगाहों के साथ अपनी क्रबों से निकल रहे होंगे, मानो वे बिखरी हुई टिड्डियाँ है; خُشَّعًا أَبْصَارُهُمْ يَخْرُجُونَ مِنَ الْأَجْدَاثِ كَأَنَّهُمْ جَرَادٌ مُّنتَشِرٌ
8 दौड़ पड़ने को पुकारनेवाले की ओर। इनकार करनेवाले कहेंगे, "यह तो एक कठिन दिन है!" مُّهْطِعِينَ إِلَى الدَّاعِ يَقُولُ الْكَافِرُونَ هَذَا يَوْمٌ عَسِرٌ
9 उनसे पहले नूह की क़ौम ने भी झुठलाया। उन्होंने हमारे बन्दे को झूठा ठहराया और कहा, "यह तो दीवाना है!" और वह बुरी तरह झिड़का गया كَذَّبَتْ قَبْلَهُمْ قَوْمُ نُوحٍ فَكَذَّبُوا عَبْدَنَا وَقَالُوا مَجْنُونٌ وَازْدُجِرَ
10 अन्त में उसने अपने रब को पुकारा कि "मैं दबा हुआ हूँ। अब तू बदला ले।" فَدَعَا رَبَّهُ أَنِّي مَغْلُوبٌ فَانتَصِرْ
11 तब हमने मूसलाधार बरसते हुए पानी से आकाश के द्वार खोल दिए; فَفَتَحْنَا أَبْوَابَ السَّمَاء بِمَاء مُّنْهَمِرٍ
12 और धरती को प्रवाहित स्रोतों में परिवर्तित कर दिया, और सारा पानी उस काम के लिए मिल गया जो नियत हो चुका था وَفَجَّرْنَا الْأَرْضَ عُيُونًا فَالْتَقَى الْمَاء عَلَى أَمْرٍ قَدْ قُدِرَ
13 और हमने उसे एक तख़्तों और कीलोंवाली (नौका) पर सवार किया, وَحَمَلْنَاهُ عَلَى ذَاتِ أَلْوَاحٍ وَدُسُرٍ
14 जो हमारी निगाहों के सामने चल रही थी - यह बदला था उस व्यक्ति के लिए जिसकी क़द्र नहीं की गई। تَجْرِي بِأَعْيُنِنَا جَزَاء لِّمَن كَانَ كُفِرَ
15 हमने उसे एक निशानी बनाकर छोड़ दिया; फिर क्या कोई नसीहत हासिल करनेवाला? وَلَقَد تَّرَكْنَاهَا آيَةً فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ
16 फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरे डरावे? فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ
17 और हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या है कोई नसीहत करनेवाला? وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ
18 आद ने भी झुठलाया, फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरा डराना? كَذَّبَتْ عَادٌ فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ
19 निश्चय ही हमने एक निरन्तर अशुभ दिन में तेज़ प्रचंड ठंडी हवा भेजी, उसे उनपर मुसल्लत कर दिया, तो वह लोगों को उखाड़ फेंक रही थी إِنَّا أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ رِيحًا صَرْصَرًا فِي يَوْمِ نَحْسٍ مُّسْتَمِرٍّ
20 मानो वे उखड़े खजूर के तने हो تَنزِعُ النَّاسَ كَأَنَّهُمْ أَعْجَازُ نَخْلٍ مُّنقَعِرٍ
21 फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरे डरावे? فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ
22 और हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या है कोई नसीहत हासिल करनेवाला? وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ
23 समूद ने चेतावनियों को झुठलाया; كَذَّبَتْ ثَمُودُ بِالنُّذُرِ
24 और कहने लगे, "एक अकेला आदमी, जो हम ही में से है, क्या हम उसके पीछे चलेंगे? तब तो वास्तव में हम गुमराही और दीवानापन में पड़ गए! فَقَالُوا أَبَشَرًا مِّنَّا وَاحِدًا نَّتَّبِعُهُ إِنَّا إِذًا لَّفِي ضَلَالٍ وَسُعُرٍ
25 "क्या हमारे बीच उसी पर अनुस्मृति उतारी है? नहीं, बल्कि वह तो परले दरजे का झूठा, बड़ा आत्मश्लाघी है।" أَأُلْقِيَ الذِّكْرُ عَلَيْهِ مِن بَيْنِنَا بَلْ هُوَ كَذَّابٌ أَشِرٌ
26 "कल को ही वे जान लेंगे कि कौन परले दरजे का झूठा, बड़ा आत्मश्लाघी है। سَيَعْلَمُونَ غَدًا مَّنِ الْكَذَّابُ الْأَشِرُ
27 हम ऊँटनी को उनके लिए परीक्षा के रूप में भेज रहे है। अतः तुम उन्हें देखते जाओ और धैर्य से काम लो إِنَّا مُرْسِلُو النَّاقَةِ فِتْنَةً لَّهُمْ فَارْتَقِبْهُمْ وَاصْطَبِرْ
28 "और उन्हें सूचित कर दो कि पानी उनके बीच बाँट दिया गया है। हर एक पीने की बारी पर बारीवाला उपस्थित होगा।" وَنَبِّئْهُمْ أَنَّ الْمَاء قِسْمَةٌ بَيْنَهُمْ كُلُّ شِرْبٍ مُّحْتَضَرٌ
29 अन्ततः उन्होंने अपने साथी को पुकारा, तो उसने ज़िम्मा लिया फिर उसने उसकी कूचें काट दी فَنَادَوْا صَاحِبَهُمْ فَتَعَاطَى فَعَقَرَ
30 फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरे डरावे? فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ
31 हमने उनपर एक धमाका छोड़ा, फिर वे बाड़ लगानेवाले की रौंदी हुई बाड़ की तरह चूरा होकर रह गए إِنَّا أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ صَيْحَةً وَاحِدَةً فَكَانُوا كَهَشِيمِ الْمُحْتَظِرِ
32 हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या कोई नसीहत हासिल करनेवाला? وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ
33 लूत की क़ौम ने भी चेतावनियों को झुठलाया كَذَّبَتْ قَوْمُ لُوطٍ بِالنُّذُرِ
34 हमने लूत के घरवालों के सिवा उनपर पथराव करनेवाली तेज़ वायु भेजी। إِنَّا أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ حَاصِبًا إِلَّا آلَ لُوطٍ نَّجَّيْنَاهُم بِسَحَرٍ
35 हमने अपनी विशेष अनुकम्पा से प्रातःकाल उन्हें बचा लिया। हम इसी तरह उस व्यक्ति को बदला देते है जो कृतज्ञता दिखाए نِعْمَةً مِّنْ عِندِنَا كَذَلِكَ نَجْزِي مَن شَكَرَ
36 उसने जो उन्हें हमारी पकड़ से सावधान कर दिया था। किन्तु वे चेतावनियों के विषय में संदेह करते रहे وَلَقَدْ أَنذَرَهُم بَطْشَتَنَا فَتَمَارَوْا بِالنُّذُرِ
37 उन्होंने उसे फुसलाकर उसके पास से उसके अतिथियों को बलाना चाहा। अन्ततः हमने उसकी आँखें मेट दीं, "लो, अब चखो मज़ा मेरी यातना और चेतावनियों का!" وَلَقَدْ رَاوَدُوهُ عَن ضَيْفِهِ فَطَمَسْنَا أَعْيُنَهُمْ فَذُوقُوا عَذَابِي وَنُذُرِ
38 सुबह सवेरे ही एक अटल यातना उनपर आ पहुँची, وَلَقَدْ صَبَّحَهُم بُكْرَةً عَذَابٌ مُّسْتَقِرٌّ
39 "लो, अब चखो मज़ा मेरी यातना और चेतावनियों का!" فَذُوقُوا عَذَابِي وَنُذُرِ
40 और हमने क़ुरआन को नसीहत के लिए अनुकूल और सहज बना दिया है। फिर क्या है कोई नसीहत हासिल करनेवाला? وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ
41 और फ़िरऔनियों के पास चेतावनियाँ आई; وَلَقَدْ جَاء آلَ فِرْعَوْنَ النُّذُرُ
42 उन्होंने हमारी सारी निशानियों को झुठला दिया। अन्ततः हमने उन्हें पकड़ लिया, जिस प्रकार एक ज़बरदस्त प्रभुत्वशाली पकड़ता है كَذَّبُوا بِآيَاتِنَا كُلِّهَا فَأَخَذْنَاهُمْ أَخْذَ عَزِيزٍ مُّقْتَدِرٍ
43 क्या तुम्हारे काफ़िर कुछ उन लोगो से अच्छे है या किताबों में तुम्हारे लिए कोई छुटकारा लिखा हुआ है? أَكُفَّارُكُمْ خَيْرٌ مِّنْ أُوْلَئِكُمْ أَمْ لَكُم بَرَاءةٌ فِي الزُّبُرِ
44 या वे कहते है, "और हम मुक़ाबले की शक्ति रखनेवाले एक जत्था है?" أَمْ يَقُولُونَ نَحْنُ جَمِيعٌ مُّنتَصِرٌ
45 शीघ्र ही वह जत्था पराजित होकर रहेगा और वे पीठ दिखा जाएँगे سَيُهْزَمُ الْجَمْعُ وَيُوَلُّونَ الدُّبُرَ
46 नहीं, बल्कि वह घड़ी है, जिसका समय उनके लिए नियत है और वह बड़ी आपदावाली और कटु घड़ी है! بَلِ السَّاعَةُ مَوْعِدُهُمْ وَالسَّاعَةُ أَدْهَى وَأَمَرُّ
47 निस्संदेह, अपराधी लोग गुमराही और दीवानेपन में पड़े हुए है إِنَّ الْمُجْرِمِينَ فِي ضَلَالٍ وَسُعُرٍ
48 जिस दिन वे अपने मुँह के बल आग में घसीटे जाएँगे, "चखो मज़ा आग की लपट का!" يَوْمَ يُسْحَبُونَ فِي النَّارِ عَلَى وُجُوهِهِمْ ذُوقُوا مَسَّ سَقَرَ
49 निश्चय ही हमने हर चीज़ एक अंदाज़े के साथ पैदा की है إِنَّا كُلَّ شَيْءٍ خَلَقْنَاهُ بِقَدَرٍ
50 और हमारा आदेश (और काम) तो बस एक दम की बात होती है जैसे आँख का झपकना وَمَا أَمْرُنَا إِلَّا وَاحِدَةٌ كَلَمْحٍ بِالْبَصَرِ
51 और हम तुम्हारे जैसे लोगों को विनष्ट कर चुके है। फिर क्या है कोई नसीहत हासिल करनेवाला? وَلَقَدْ أَهْلَكْنَا أَشْيَاعَكُمْ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ
52 जो कुछ उन्होंने किया है, वह पन्नों में अंकित है وَكُلُّ شَيْءٍ فَعَلُوهُ فِي الزُّبُرِ
53 और हर छोटी और बड़ी चीज़ लिखित है وَكُلُّ صَغِيرٍ وَكَبِيرٍ مُسْتَطَرٌ
54 निश्चय ही डर रखनेवाले बाग़ो और नहरों के बीच होंगे, إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي جَنَّاتٍ وَنَهَرٍ
55 प्रतिष्ठित स्थान पर, प्रभुत्वशाली सम्राट के निकट فِي مَقْعَدِ صِدْقٍ عِندَ مَلِيكٍ مُّقْتَدِرٍ
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