1 |
गवाह है (हवाएँ) जो गर्द-ग़ुबार उड़ाती फिरती है; |
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وَالذَّارِيَاتِ ذَرْوًا |
2 |
फिर बोझ उठाती है; |
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فَالْحَامِلَاتِ وِقْرًا |
3 |
फिर नरमी से चलती है; |
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فَالْجَارِيَاتِ يُسْرًا |
4 |
फिर मामले को अलग-अलग करती है; |
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فَالْمُقَسِّمَاتِ أَمْرًا |
5 |
निश्चय ही तुमसे जिस चीज़ का वादा किया जाता है, वह सत्य है; |
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إِنَّمَا تُوعَدُونَ لَصَادِقٌ |
6 |
और (कर्मों का) बदला अवश्य सामने आकर रहेगा |
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وَإِنَّ الدِّينَ لَوَاقِعٌ |
7 |
गवाह है धारियोंवाला आकाश। |
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وَالسَّمَاء ذَاتِ الْحُبُكِ |
8 |
निश्चय ही तुम उस बात में पड़े हुए हो जिनमें कथन भिन्न-भिन्न है |
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إِنَّكُمْ لَفِي قَوْلٍ مُّخْتَلِفٍ |
9 |
इसमें कोई सरफिरा ही विमुख होता है |
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يُؤْفَكُ عَنْهُ مَنْ أُفِكَ |
10 |
मारे जाएँ अटकल दौड़ानेवाले; |
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قُتِلَ الْخَرَّاصُونَ |
11 |
जो ग़फ़लत में पड़े हुए हैं भूले हुए |
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الَّذِينَ هُمْ فِي غَمْرَةٍ سَاهُونَ |
12 |
पूछते है, "बदले का दिन कब आएगा?" |
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يَسْأَلُونَ أَيَّانَ يَوْمُ الدِّينِ |
13 |
जिस दिन वे आग पर तपाए जाएँगे, |
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يَوْمَ هُمْ عَلَى النَّارِ يُفْتَنُونَ |
14 |
"चखों मज़ा. अपने फ़ितने (उपद्रव) का! यहीं है जिसके लिए तुम जल्दी मचा रहे थे।" |
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ذُوقُوا فِتْنَتَكُمْ هَذَا الَّذِي كُنتُم بِهِ تَسْتَعْجِلُونَ |
15 |
निश्चय ही डर रखनेवाले बाग़ों और स्रोतों में होंगे |
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إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ |
16 |
जो कुछ उनके रब ने उन्हें दिया, वे उसे ले रहे होंगे। निस्संदेह वे इससे पहले उत्तमकारों में से थे |
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آخِذِينَ مَا آتَاهُمْ رَبُّهُمْ إِنَّهُمْ كَانُوا قَبْلَ ذَلِكَ مُحْسِنِينَ |
17 |
रातों को थोड़ा ही सोते थे, |
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كَانُوا قَلِيلًا مِّنَ اللَّيْلِ مَا يَهْجَعُونَ |
18 |
और वही प्रातः की घड़ियों में क्षमा की प्रार्थना करते थे |
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وَبِالْأَسْحَارِ هُمْ يَسْتَغْفِرُونَ |
19 |
और उनके मालों में माँगनेवाले और धनहीन का हक़ था |
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وَفِي أَمْوَالِهِمْ حَقٌّ لِّلسَّائِلِ وَالْمَحْرُومِ |
20 |
और धरती में विश्वास करनेवालों के लिए बहुत-सी निशानियाँ है, |
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وَفِي الْأَرْضِ آيَاتٌ لِّلْمُوقِنِينَ |
21 |
और ,स्वयं तुम्हारे अपने आप में भी। तो क्या तुम देखते नहीं? |
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وَفِي أَنفُسِكُمْ أَفَلَا تُبْصِرُونَ |
22 |
और आकाश मे ही तुम्हारी रोज़ी है और वह चीज़ भी जिसका तुमसे वादा किया जा रहा है |
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وَفِي السَّمَاء رِزْقُكُمْ وَمَا تُوعَدُونَ |
23 |
अतः सौगन्ध है आकाश और धरती के रब की। निश्चय ही वह सत्य बात है ऐसे ही जैसे तुम बोलते हो |
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فَوَرَبِّ السَّمَاء وَالْأَرْضِ إِنَّهُ لَحَقٌّ مِّثْلَ مَا أَنَّكُمْ تَنطِقُونَ |
24 |
क्या इबराईम के प्रतिष्ठित अतिथियों का वृतान्त तुम तक पहँचा? |
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هَلْ أَتَاكَ حَدِيثُ ضَيْفِ إِبْرَاهِيمَ الْمُكْرَمِينَ |
25 |
जब वे उसके पास आए तो कहा, "सलाम है तुमपर!" उसने भी कहा, "सलाम है आप लोगों पर भी!" (और जी में कहा) "ये तो अपरिचित लोग हैं।" |
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إِذْ دَخَلُوا عَلَيْهِ فَقَالُوا سَلَامًا قَالَ سَلَامٌ قَوْمٌ مُّنكَرُونَ |
26 |
फिर वह चुपके से अपने घरवालों के पास गया और एक मोटा-ताज़ा बछड़ा (का भूना हुआ मांस) ले आया |
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فَرَاغَ إِلَى أَهْلِهِ فَجَاء بِعِجْلٍ سَمِينٍ |
27 |
और उसे उनके सामने पेश किया। कहा, "क्या आप खाते नहीं?" |
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فَقَرَّبَهُ إِلَيْهِمْ قَالَ أَلَا تَأْكُلُونَ |
28 |
फिर उसने दिल में उनसे डर महसूस किया। उन्होंने कहा, "डरिए नहीं।" और उन्होंने उसे एक ज्ञानवान लड़के की मंगल-सूचना दी |
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فَأَوْجَسَ مِنْهُمْ خِيفَةً قَالُوا لَا تَخَفْ وَبَشَّرُوهُ بِغُلَامٍ عَلِيمٍ |
29 |
इसपर उसकी स्त्री (चकित होकर) आगे बढ़ी और उसने अपना मुँह पीट लिया और कहने लगी, "एक बूढ़ी बाँझ (के यहाँ बच्चा पैदा होगा)!" |
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فَأَقْبَلَتِ امْرَأَتُهُ فِي صَرَّةٍ فَصَكَّتْ وَجْهَهَا وَقَالَتْ عَجُوزٌ عَقِيمٌ |
30 |
उन्होंने कहा, "ऐसी ही तेरे रब ने कहा है। निश्चय ही वह बड़ा तत्वदर्शी, ज्ञानवान है।" |
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قَالُوا كَذَلِكَ قَالَ رَبُّكِ إِنَّهُ هُوَ الْحَكِيمُ الْعَلِيمُ |
31 |
उसने कहा, "ऐ (अल्लाह के भेजे हुए) दूतों, तुम्हारे सामने क्या मुहिम है?" |
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قَالَ فَمَا خَطْبُكُمْ أَيُّهَا الْمُرْسَلُونَ |
32 |
उन्होंने कहा, "हम एक अपराधी क़ौम की ओर भेजे गए है; |
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قَالُوا إِنَّا أُرْسِلْنَا إِلَى قَوْمٍ مُّجْرِمِينَ |
33 |
"ताकि उनके ऊपर मिट्टी के पत्थर (कंकड़) बरसाएँ, |
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لِنُرْسِلَ عَلَيْهِمْ حِجَارَةً مِّن طِينٍ |
34 |
जो आपके रब के यहाँ सीमा का अतिक्रमण करनेवालों के लिए चिन्हित है।" |
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مُسَوَّمَةً عِندَ رَبِّكَ لِلْمُسْرِفِينَ |
35 |
फिर वहाँ जो ईमानवाले थे, उन्हें हमने निकाल लिया; |
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فَأَخْرَجْنَا مَن كَانَ فِيهَا مِنَ الْمُؤْمِنِينَ |
36 |
किन्तु हमने वहाँ एक घर के अतिरिक्त मुसलमानों (आज्ञाकारियों) का और कोई घर न पाया |
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فَمَا وَجَدْنَا فِيهَا غَيْرَ بَيْتٍ مِّنَ الْمُسْلِمِينَ |
37 |
इसके पश्चात हमने वहाँ उन लोगों के लिए एक निशानी छोड़ दी, जो दुखद यातना से डरते है |
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وَتَرَكْنَا فِيهَا آيَةً لِّلَّذِينَ يَخَافُونَ الْعَذَابَ الْأَلِيمَ |
38 |
और मूसा के वृतान्त में भी (निशानी है) जब हमने फ़िरऔन के पास के स्पष्ट प्रमाण के साथ भेजा, |
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وَفِي مُوسَى إِذْ أَرْسَلْنَاهُ إِلَى فِرْعَوْنَ بِسُلْطَانٍ مُّبِينٍ |
39 |
किन्तु उसने अपनी शक्ति के कारण मुँह फेर लिया और कहा, "जादूगर है या दीवाना।" |
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فَتَوَلَّى بِرُكْنِهِ وَقَالَ سَاحِرٌ أَوْ مَجْنُونٌ |
40 |
अन्ततः हमने उसे और उसकी सेनाओं को पकड़ लिया और उन्हें गहरे पानी में फेंक दिया, इस दशा में कि वह निन्दनीय था |
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فَأَخَذْنَاهُ وَجُنُودَهُ فَنَبَذْنَاهُمْ فِي الْيَمِّ وَهُوَ مُلِيمٌ |
41 |
और आद में भी (तुम्हारे लिए निशानी है) जबकि हमने उनपर अशुभ वायु चला दी |
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وَفِي عَادٍ إِذْ أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمُ الرِّيحَ الْعَقِيمَ |
42 |
वह जिस चीज़ पर से गुज़री उसे उसने जीर्ण-शीर्ण करके रख दिया |
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مَا تَذَرُ مِن شَيْءٍ أَتَتْ عَلَيْهِ إِلَّا جَعَلَتْهُ كَالرَّمِيمِ |
43 |
और समुद्र में भी (तुम्हारे लिए निशानी है) जबकि उनसे कहा गया, "एक समय तक मज़े कर लो!" |
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وَفِي ثَمُودَ إِذْ قِيلَ لَهُمْ تَمَتَّعُوا حَتَّى حِينٍ |
44 |
किन्तु उन्होंने अपने रब के आदेश की अवहेलना की; फिर कड़क ने उन्हें आ लिया और वे देखते रहे |
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فَعَتَوْا عَنْ أَمْرِ رَبِّهِمْ فَأَخَذَتْهُمُ الصَّاعِقَةُ وَهُمْ يَنظُرُونَ |
45 |
फिर वे न खड़े ही हो सके और न अपना बचाव ही कर सके |
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فَمَا اسْتَطَاعُوا مِن قِيَامٍ وَمَا كَانُوا مُنتَصِرِينَ |
46 |
और इससे पहले नूह की क़ौम को भी पकड़ा। निश्चय ही वे अवज्ञाकारी लोग थे |
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وَقَوْمَ نُوحٍ مِّن قَبْلُ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمًا فَاسِقِينَ |
47 |
आकाश को हमने अपने हाथ के बल से बनाया और हम बड़ी समाई रखनेवाले है |
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وَالسَّمَاء بَنَيْنَاهَا بِأَيْدٍ وَإِنَّا لَمُوسِعُونَ |
48 |
और धरती को हमने बिछाया, तो हम क्या ही ख़ूब बिछानेवाले है |
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وَالْأَرْضَ فَرَشْنَاهَا فَنِعْمَ الْمَاهِدُونَ |
49 |
और हमने हर चीज़ के जोड़े बनाए, ताकि तुम ध्यान दो |
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وَمِن كُلِّ شَيْءٍ خَلَقْنَا زَوْجَيْنِ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ |
50 |
अतः अल्लाह की ओर दौड़ो। मैं उसकी ओर से तुम्हारे लिए एक प्रत्यक्ष सावधान करनेवाला हूँ |
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فَفِرُّوا إِلَى اللَّهِ إِنِّي لَكُم مِّنْهُ نَذِيرٌ مُّبِينٌ |
51 |
और अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य-प्रभु न ठहराओ। मैं उसकी ओर से तुम्हारे लिए एक प्रत्यक्ष सावधान करनेवाला हूँ |
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وَلَا تَجْعَلُوا مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آخَرَ إِنِّي لَكُم مِّنْهُ نَذِيرٌ مُّبِينٌ |
52 |
इसी तरह उन लोगों के पास भी, जो उनसे पहले गुज़र चुके है, जो भी रसूल आया तो उन्होंने बस यही कहा, "जादूगर है या दीवाना!" |
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كَذَلِكَ مَا أَتَى الَّذِينَ مِن قَبْلِهِم مِّن رَّسُولٍ إِلَّا قَالُوا سَاحِرٌ أَوْ مَجْنُونٌ |
53 |
क्या उन्होंने एक-दूसरे को इसकी वसीयत कर रखी है? नहीं, बल्कि वे है ही सरकश लोग |
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أَتَوَاصَوْا بِهِ بَلْ هُمْ قَوْمٌ طَاغُونَ |
54 |
अतः उनसे मुँह फेर लो अब तुमपर कोई मलामत नहीं |
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فَتَوَلَّ عَنْهُمْ فَمَا أَنتَ بِمَلُومٍ |
55 |
और याद दिलाते रहो, क्योंकि याद दिलाना ईमानवालों को लाभ पहुँचाता है |
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وَذَكِّرْ فَإِنَّ الذِّكْرَى تَنفَعُ الْمُؤْمِنِينَ |
56 |
मैंने तो जिन्नों और मनुष्यों को केवल इसलिए पैदा किया है कि वे मेरी बन्दगी करे |
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وَمَا خَلَقْتُ الْجِنَّ وَالْإِنسَ إِلَّا لِيَعْبُدُونِ |
57 |
मैं उनसे कोई रोज़ी नहीं चाहता और न यह चाहता हूँ कि वे मुझे खिलाएँ |
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مَا أُرِيدُ مِنْهُم مِّن رِّزْقٍ وَمَا أُرِيدُ أَن يُطْعِمُونِ |
58 |
निश्चय ही अल्लाह ही है रोज़ी देनेवाला, शक्तिशाली, दृढ़ |
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إِنَّ اللَّهَ هُوَ الرَّزَّاقُ ذُو الْقُوَّةِ الْمَتِينُ |
59 |
अतः जिन लोगों ने ज़ुल्म किया है उनके लिए एक नियत पैमाना है; जैसा उनके साथियों का नियत पैमाना था। अतः वे मुझसे जल्दी न मचाएँ! |
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فَإِنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُوا ذَنُوبًا مِّثْلَ ذَنُوبِ أَصْحَابِهِمْ فَلَا يَسْتَعْجِلُونِ |
60 |
अतः इनकार करनेवालों के लिए बड़ी खराबी है, उनके उस दिन के कारण जिसकी उन्हें धमकी दी जा रही है |
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فَوَيْلٌ لِّلَّذِينَ كَفَرُوا مِن يَوْمِهِمُ الَّذِي يُوعَدُونَ |