Az-Zariyat

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Hindi: Muhammad Farooq Khan and Muhammad Ahmed

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# Translation Ayah
1 गवाह है (हवाएँ) जो गर्द-ग़ुबार उड़ाती फिरती है; وَالذَّارِيَاتِ ذَرْوًا
2 फिर बोझ उठाती है; فَالْحَامِلَاتِ وِقْرًا
3 फिर नरमी से चलती है; فَالْجَارِيَاتِ يُسْرًا
4 फिर मामले को अलग-अलग करती है; فَالْمُقَسِّمَاتِ أَمْرًا
5 निश्चय ही तुमसे जिस चीज़ का वादा किया जाता है, वह सत्य है; إِنَّمَا تُوعَدُونَ لَصَادِقٌ
6 और (कर्मों का) बदला अवश्य सामने आकर रहेगा وَإِنَّ الدِّينَ لَوَاقِعٌ
7 गवाह है धारियोंवाला आकाश। وَالسَّمَاء ذَاتِ الْحُبُكِ
8 निश्चय ही तुम उस बात में पड़े हुए हो जिनमें कथन भिन्न-भिन्न है إِنَّكُمْ لَفِي قَوْلٍ مُّخْتَلِفٍ
9 इसमें कोई सरफिरा ही विमुख होता है يُؤْفَكُ عَنْهُ مَنْ أُفِكَ
10 मारे जाएँ अटकल दौड़ानेवाले; قُتِلَ الْخَرَّاصُونَ
11 जो ग़फ़लत में पड़े हुए हैं भूले हुए الَّذِينَ هُمْ فِي غَمْرَةٍ سَاهُونَ
12 पूछते है, "बदले का दिन कब आएगा?" يَسْأَلُونَ أَيَّانَ يَوْمُ الدِّينِ
13 जिस दिन वे आग पर तपाए जाएँगे, يَوْمَ هُمْ عَلَى النَّارِ يُفْتَنُونَ
14 "चखों मज़ा. अपने फ़ितने (उपद्रव) का! यहीं है जिसके लिए तुम जल्दी मचा रहे थे।" ذُوقُوا فِتْنَتَكُمْ هَذَا الَّذِي كُنتُم بِهِ تَسْتَعْجِلُونَ
15 निश्चय ही डर रखनेवाले बाग़ों और स्रोतों में होंगे إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ
16 जो कुछ उनके रब ने उन्हें दिया, वे उसे ले रहे होंगे। निस्संदेह वे इससे पहले उत्तमकारों में से थे آخِذِينَ مَا آتَاهُمْ رَبُّهُمْ إِنَّهُمْ كَانُوا قَبْلَ ذَلِكَ مُحْسِنِينَ
17 रातों को थोड़ा ही सोते थे, كَانُوا قَلِيلًا مِّنَ اللَّيْلِ مَا يَهْجَعُونَ
18 और वही प्रातः की घड़ियों में क्षमा की प्रार्थना करते थे وَبِالْأَسْحَارِ هُمْ يَسْتَغْفِرُونَ
19 और उनके मालों में माँगनेवाले और धनहीन का हक़ था وَفِي أَمْوَالِهِمْ حَقٌّ لِّلسَّائِلِ وَالْمَحْرُومِ
20 और धरती में विश्वास करनेवालों के लिए बहुत-सी निशानियाँ है, وَفِي الْأَرْضِ آيَاتٌ لِّلْمُوقِنِينَ
21 और ,स्वयं तुम्हारे अपने आप में भी। तो क्या तुम देखते नहीं? وَفِي أَنفُسِكُمْ أَفَلَا تُبْصِرُونَ
22 और आकाश मे ही तुम्हारी रोज़ी है और वह चीज़ भी जिसका तुमसे वादा किया जा रहा है وَفِي السَّمَاء رِزْقُكُمْ وَمَا تُوعَدُونَ
23 अतः सौगन्ध है आकाश और धरती के रब की। निश्चय ही वह सत्य बात है ऐसे ही जैसे तुम बोलते हो فَوَرَبِّ السَّمَاء وَالْأَرْضِ إِنَّهُ لَحَقٌّ مِّثْلَ مَا أَنَّكُمْ تَنطِقُونَ
24 क्या इबराईम के प्रतिष्ठित अतिथियों का वृतान्त तुम तक पहँचा? هَلْ أَتَاكَ حَدِيثُ ضَيْفِ إِبْرَاهِيمَ الْمُكْرَمِينَ
25 जब वे उसके पास आए तो कहा, "सलाम है तुमपर!" उसने भी कहा, "सलाम है आप लोगों पर भी!" (और जी में कहा) "ये तो अपरिचित लोग हैं।" إِذْ دَخَلُوا عَلَيْهِ فَقَالُوا سَلَامًا قَالَ سَلَامٌ قَوْمٌ مُّنكَرُونَ
26 फिर वह चुपके से अपने घरवालों के पास गया और एक मोटा-ताज़ा बछड़ा (का भूना हुआ मांस) ले आया فَرَاغَ إِلَى أَهْلِهِ فَجَاء بِعِجْلٍ سَمِينٍ
27 और उसे उनके सामने पेश किया। कहा, "क्या आप खाते नहीं?" فَقَرَّبَهُ إِلَيْهِمْ قَالَ أَلَا تَأْكُلُونَ
28 फिर उसने दिल में उनसे डर महसूस किया। उन्होंने कहा, "डरिए नहीं।" और उन्होंने उसे एक ज्ञानवान लड़के की मंगल-सूचना दी فَأَوْجَسَ مِنْهُمْ خِيفَةً قَالُوا لَا تَخَفْ وَبَشَّرُوهُ بِغُلَامٍ عَلِيمٍ
29 इसपर उसकी स्त्री (चकित होकर) आगे बढ़ी और उसने अपना मुँह पीट लिया और कहने लगी, "एक बूढ़ी बाँझ (के यहाँ बच्चा पैदा होगा)!" فَأَقْبَلَتِ امْرَأَتُهُ فِي صَرَّةٍ فَصَكَّتْ وَجْهَهَا وَقَالَتْ عَجُوزٌ عَقِيمٌ
30 उन्होंने कहा, "ऐसी ही तेरे रब ने कहा है। निश्चय ही वह बड़ा तत्वदर्शी, ज्ञानवान है।" قَالُوا كَذَلِكَ قَالَ رَبُّكِ إِنَّهُ هُوَ الْحَكِيمُ الْعَلِيمُ
31 उसने कहा, "ऐ (अल्लाह के भेजे हुए) दूतों, तुम्हारे सामने क्या मुहिम है?" قَالَ فَمَا خَطْبُكُمْ أَيُّهَا الْمُرْسَلُونَ
32 उन्होंने कहा, "हम एक अपराधी क़ौम की ओर भेजे गए है; قَالُوا إِنَّا أُرْسِلْنَا إِلَى قَوْمٍ مُّجْرِمِينَ
33 "ताकि उनके ऊपर मिट्टी के पत्थर (कंकड़) बरसाएँ, لِنُرْسِلَ عَلَيْهِمْ حِجَارَةً مِّن طِينٍ
34 जो आपके रब के यहाँ सीमा का अतिक्रमण करनेवालों के लिए चिन्हित है।" مُسَوَّمَةً عِندَ رَبِّكَ لِلْمُسْرِفِينَ
35 फिर वहाँ जो ईमानवाले थे, उन्हें हमने निकाल लिया; فَأَخْرَجْنَا مَن كَانَ فِيهَا مِنَ الْمُؤْمِنِينَ
36 किन्तु हमने वहाँ एक घर के अतिरिक्त मुसलमानों (आज्ञाकारियों) का और कोई घर न पाया فَمَا وَجَدْنَا فِيهَا غَيْرَ بَيْتٍ مِّنَ الْمُسْلِمِينَ
37 इसके पश्चात हमने वहाँ उन लोगों के लिए एक निशानी छोड़ दी, जो दुखद यातना से डरते है وَتَرَكْنَا فِيهَا آيَةً لِّلَّذِينَ يَخَافُونَ الْعَذَابَ الْأَلِيمَ
38 और मूसा के वृतान्त में भी (निशानी है) जब हमने फ़िरऔन के पास के स्पष्ट प्रमाण के साथ भेजा, وَفِي مُوسَى إِذْ أَرْسَلْنَاهُ إِلَى فِرْعَوْنَ بِسُلْطَانٍ مُّبِينٍ
39 किन्तु उसने अपनी शक्ति के कारण मुँह फेर लिया और कहा, "जादूगर है या दीवाना।" فَتَوَلَّى بِرُكْنِهِ وَقَالَ سَاحِرٌ أَوْ مَجْنُونٌ
40 अन्ततः हमने उसे और उसकी सेनाओं को पकड़ लिया और उन्हें गहरे पानी में फेंक दिया, इस दशा में कि वह निन्दनीय था فَأَخَذْنَاهُ وَجُنُودَهُ فَنَبَذْنَاهُمْ فِي الْيَمِّ وَهُوَ مُلِيمٌ
41 और आद में भी (तुम्हारे लिए निशानी है) जबकि हमने उनपर अशुभ वायु चला दी وَفِي عَادٍ إِذْ أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمُ الرِّيحَ الْعَقِيمَ
42 वह जिस चीज़ पर से गुज़री उसे उसने जीर्ण-शीर्ण करके रख दिया مَا تَذَرُ مِن شَيْءٍ أَتَتْ عَلَيْهِ إِلَّا جَعَلَتْهُ كَالرَّمِيمِ
43 और समुद्र में भी (तुम्हारे लिए निशानी है) जबकि उनसे कहा गया, "एक समय तक मज़े कर लो!" وَفِي ثَمُودَ إِذْ قِيلَ لَهُمْ تَمَتَّعُوا حَتَّى حِينٍ
44 किन्तु उन्होंने अपने रब के आदेश की अवहेलना की; फिर कड़क ने उन्हें आ लिया और वे देखते रहे فَعَتَوْا عَنْ أَمْرِ رَبِّهِمْ فَأَخَذَتْهُمُ الصَّاعِقَةُ وَهُمْ يَنظُرُونَ
45 फिर वे न खड़े ही हो सके और न अपना बचाव ही कर सके فَمَا اسْتَطَاعُوا مِن قِيَامٍ وَمَا كَانُوا مُنتَصِرِينَ
46 और इससे पहले नूह की क़ौम को भी पकड़ा। निश्चय ही वे अवज्ञाकारी लोग थे وَقَوْمَ نُوحٍ مِّن قَبْلُ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمًا فَاسِقِينَ
47 आकाश को हमने अपने हाथ के बल से बनाया और हम बड़ी समाई रखनेवाले है وَالسَّمَاء بَنَيْنَاهَا بِأَيْدٍ وَإِنَّا لَمُوسِعُونَ
48 और धरती को हमने बिछाया, तो हम क्या ही ख़ूब बिछानेवाले है وَالْأَرْضَ فَرَشْنَاهَا فَنِعْمَ الْمَاهِدُونَ
49 और हमने हर चीज़ के जोड़े बनाए, ताकि तुम ध्यान दो وَمِن كُلِّ شَيْءٍ خَلَقْنَا زَوْجَيْنِ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ
50 अतः अल्लाह की ओर दौड़ो। मैं उसकी ओर से तुम्हारे लिए एक प्रत्यक्ष सावधान करनेवाला हूँ فَفِرُّوا إِلَى اللَّهِ إِنِّي لَكُم مِّنْهُ نَذِيرٌ مُّبِينٌ
51 और अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य-प्रभु न ठहराओ। मैं उसकी ओर से तुम्हारे लिए एक प्रत्यक्ष सावधान करनेवाला हूँ وَلَا تَجْعَلُوا مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آخَرَ إِنِّي لَكُم مِّنْهُ نَذِيرٌ مُّبِينٌ
52 इसी तरह उन लोगों के पास भी, जो उनसे पहले गुज़र चुके है, जो भी रसूल आया तो उन्होंने बस यही कहा, "जादूगर है या दीवाना!" كَذَلِكَ مَا أَتَى الَّذِينَ مِن قَبْلِهِم مِّن رَّسُولٍ إِلَّا قَالُوا سَاحِرٌ أَوْ مَجْنُونٌ
53 क्या उन्होंने एक-दूसरे को इसकी वसीयत कर रखी है? नहीं, बल्कि वे है ही सरकश लोग أَتَوَاصَوْا بِهِ بَلْ هُمْ قَوْمٌ طَاغُونَ
54 अतः उनसे मुँह फेर लो अब तुमपर कोई मलामत नहीं فَتَوَلَّ عَنْهُمْ فَمَا أَنتَ بِمَلُومٍ
55 और याद दिलाते रहो, क्योंकि याद दिलाना ईमानवालों को लाभ पहुँचाता है وَذَكِّرْ فَإِنَّ الذِّكْرَى تَنفَعُ الْمُؤْمِنِينَ
56 मैंने तो जिन्नों और मनुष्यों को केवल इसलिए पैदा किया है कि वे मेरी बन्दगी करे وَمَا خَلَقْتُ الْجِنَّ وَالْإِنسَ إِلَّا لِيَعْبُدُونِ
57 मैं उनसे कोई रोज़ी नहीं चाहता और न यह चाहता हूँ कि वे मुझे खिलाएँ مَا أُرِيدُ مِنْهُم مِّن رِّزْقٍ وَمَا أُرِيدُ أَن يُطْعِمُونِ
58 निश्चय ही अल्लाह ही है रोज़ी देनेवाला, शक्तिशाली, दृढ़ إِنَّ اللَّهَ هُوَ الرَّزَّاقُ ذُو الْقُوَّةِ الْمَتِينُ
59 अतः जिन लोगों ने ज़ुल्म किया है उनके लिए एक नियत पैमाना है; जैसा उनके साथियों का नियत पैमाना था। अतः वे मुझसे जल्दी न मचाएँ! فَإِنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُوا ذَنُوبًا مِّثْلَ ذَنُوبِ أَصْحَابِهِمْ فَلَا يَسْتَعْجِلُونِ
60 अतः इनकार करनेवालों के लिए बड़ी खराबी है, उनके उस दिन के कारण जिसकी उन्हें धमकी दी जा रही है فَوَيْلٌ لِّلَّذِينَ كَفَرُوا مِن يَوْمِهِمُ الَّذِي يُوعَدُونَ
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