Ha-Mim Sajda

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Hindi: Muhammad Farooq Khan and Muhammad Ahmed

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# Translation Ayah
1 हा॰ मीम॰ حم
2 यह अवतरण है बड़े कृपाशील, अत्यन्त दयावान की ओर से, تَنزِيلٌ مِّنَ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ
3 एक किताब, जिसकी आयतें खोल-खोलकर बयान हुई है; अरबी क़ुरआन के रूप में, उन लोगों के लिए जो जानना चाहें; كِتَابٌ فُصِّلَتْ آيَاتُهُ قُرْآنًا عَرَبِيًّا لِّقَوْمٍ يَعْلَمُونَ
4 शुभ सूचक एवं सचेतकर्त्ता किन्तु उनमें से अधिकतर कतरा गए तो वे सुनते ही नहीं بَشِيرًا وَنَذِيرًا فَأَعْرَضَ أَكْثَرُهُمْ فَهُمْ لَا يَسْمَعُونَ
5 और उनका कहना है कि "जिसकी ओर तुम हमें बुलाते हो उसके लिए तो हमारे दिल आवरणों में है। और हमारे कानों में बोझ है। और हमारे और तुम्हारे बीच एक ओट है; अतः तुम अपना काम करो, हम तो अपना काम करते है।" وَقَالُوا قُلُوبُنَا فِي أَكِنَّةٍ مِّمَّا تَدْعُونَا إِلَيْهِ وَفِي آذَانِنَا وَقْرٌ وَمِن بَيْنِنَا وَبَيْنِكَ حِجَابٌ فَاعْمَلْ إِنَّنَا عَامِلُونَ
6 कह दो, "मैं तो तुम्हीं जैसा मनुष्य हूँ। मेरी ओर प्रकाशना की जाती है कि तुम्हारा पूज्य-प्रभु बस अकेला पूज्य-प्रभु है। अतः तुम सीधे उसी का रुख करो और उसी से क्षमा-याचना करो - साझी ठहरानेवालों के लिए तो बड़ी तबाही है, قُلْ إِنَّمَا أَنَا بَشَرٌ مِّثْلُكُمْ يُوحَى إِلَيَّ أَنَّمَا إِلَهُكُمْ إِلَهٌ وَاحِدٌ فَاسْتَقِيمُوا إِلَيْهِ وَاسْتَغْفِرُوهُ وَوَيْلٌ لِّلْمُشْرِكِينَ
7 जो ज़कात नहीं देते और वही है जो आख़िरत का इनकार करते है। - الَّذِينَ لَا يُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُم بِالْآخِرَةِ هُمْ كَافِرُونَ
8 रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, उनके लिए ऐसा बदला है जिसका क्रम टूटनेवाला नहीं।" إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُمْ أَجْرٌ غَيْرُ مَمْنُونٍ
9 कहो, "क्या तुम उसका इनकार करते हो, जिसने धरती को दो दिनों (काल) में पैदा किया और तुम उसके समकक्ष ठहराते हो? वह तो सारे संसार का रब है قُلْ أَئِنَّكُمْ لَتَكْفُرُونَ بِالَّذِي خَلَقَ الْأَرْضَ فِي يَوْمَيْنِ وَتَجْعَلُونَ لَهُ أَندَادًا ذَلِكَ رَبُّ الْعَالَمِينَ
10 और उसने उस (धरती) में उसके ऊपर से पहाड़ जमाए और उसमें बरकत रखी और उसमें उसकी ख़ुराकों को ठीक अंदाज़े से रखा। माँग करनेवालों के लिए समान रूप से यह सब चार दिन में हुआ وَجَعَلَ فِيهَا رَوَاسِيَ مِن فَوْقِهَا وَبَارَكَ فِيهَا وَقَدَّرَ فِيهَا أَقْوَاتَهَا فِي أَرْبَعَةِ أَيَّامٍ سَوَاء لِّلسَّائِلِينَ
11 फिर उसने आकाश की ओर रुख़ किया, जबकि वह मात्र धुआँ था- और उसने उससे और धरती से कहा, 'आओ, स्वेच्छा के साथ या अनिच्छा के साथ।' उन्होंने कहा, 'हम स्वेच्छा के साथ आए।' - ثُمَّ اسْتَوَى إِلَى السَّمَاء وَهِيَ دُخَانٌ فَقَالَ لَهَا وَلِلْأَرْضِ اِئْتِيَا طَوْعًا أَوْ كَرْهًا قَالَتَا أَتَيْنَا طَائِعِينَ
12 फिर दो दिनों में उनको अर्थात सात आकाशों को बनाकर पूरा किया और प्रत्येक आकाश में उससे सम्बन्धित आदेश की प्रकाशना कर दी औऱ दुनिया के (निकटवर्ती) आकाश को हमने दीपों से सजाया (रात के यात्रियों के दिशा-निर्देश आदि के लिए) और सुरक्षित करने के उद्देश्य से। यह अत्.न्त प्रभुत्वशाली, सर्वज्ञ का ठहराया हुआ है।" فَقَضَاهُنَّ سَبْعَ سَمَاوَاتٍ فِي يَوْمَيْنِ وَأَوْحَى فِي كُلِّ سَمَاء أَمْرَهَا وَزَيَّنَّا السَّمَاء الدُّنْيَا بِمَصَابِيحَ وَحِفْظًا ذَلِكَ تَقْدِيرُ الْعَزِيزِ الْعَلِيمِ
13 अब यदि वे लोग ध्यान में न लाएँ तो कह दो, "मैं तुम्हें उसी तरह के कड़का (वज्रवात) से डराता हूँ, जैसा कड़का आद और समूद पर हुआ था।" فَإِنْ أَعْرَضُوا فَقُلْ أَنذَرْتُكُمْ صَاعِقَةً مِّثْلَ صَاعِقَةِ عَادٍ وَثَمُودَ
14 जब उनके पास रसूल उनके आगे और उनके पीछे से आए कि "अल्लाह के सिवा किसी की बन्दगी न करो।" तो उन्होंने कहा, "यदि हमारा रब चाहता तो फ़रिश्तों को उतार देता। अतः जिस चीज़ के साथ तुम्हें भेजा गया है, हम उसे नहीं मानते।" إِذْ جَاءتْهُمُ الرُّسُلُ مِن بَيْنِ أَيْدِيهِمْ وَمِنْ خَلْفِهِمْ أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا اللَّهَ قَالُوا لَوْ شَاء رَبُّنَا لَأَنزَلَ مَلَائِكَةً فَإِنَّا بِمَا أُرْسِلْتُمْ بِهِ كَافِرُونَ
15 रहे आद, तो उन्होंने नाहक़ धरती में घमंड किया और कहा, "कौन हमसे शक्ति में बढ़कर है?" क्या उन्होंने नहीं देखा कि अल्लाह, जिसने उन्हें पैदा किया, वह उनसे शक्ति में बढ़कर है? वे तो हमारी आयतों का इनकार ही करते रहे فَأَمَّا عَادٌ فَاسْتَكْبَرُوا فِي الْأَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَقَالُوا مَنْ أَشَدُّ مِنَّا قُوَّةً أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّ اللَّهَ الَّذِي خَلَقَهُمْ هُوَ أَشَدُّ مِنْهُمْ قُوَّةً وَكَانُوا بِآيَاتِنَا يَجْحَدُونَ
16 अन्ततः हमने कुछ अशुभ दिनों में उनपर एक शीत-झंझावात चलाई, ताकि हम उन्हें सांसारिक जीवन में अपमान और रुसवाई की यातना का मज़ा चखा दें। और आख़िरत की यातना तो इससे कहीं बढ़कर रुसवा करनेवाली है। और उनको कोई सहायता भी न मिल सकेगी فَأَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ رِيحًا صَرْصَرًا فِي أَيَّامٍ نَّحِسَاتٍ لِّنُذِيقَهُمْ عَذَابَ الْخِزْيِ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَلَعَذَابُ الْآخِرَةِ أَخْزَى وَهُمْ لَا يُنصَرُونَ
17 और रहे समूद, तो हमने उनके सामने सीधा मार्ग दिखाया, किन्तु मार्गदर्शन के मुक़ाबले में उन्होंने अन्धा रहना ही पसन्द किया। परिणामतः जो कुछ वे कमाई करते रहे थे उसके बदले में अपमानजनक यातना के कड़के ने उन्हें आ पकड़ा وَأَمَّا ثَمُودُ فَهَدَيْنَاهُمْ فَاسْتَحَبُّوا الْعَمَى عَلَى الْهُدَى فَأَخَذَتْهُمْ صَاعِقَةُ الْعَذَابِ الْهُونِ بِمَا كَانُوا يَكْسِبُونَ
18 और हमने उन लोगों को बचा लिया जो ईमान लाए थे और डर रखते थे وَنَجَّيْنَا الَّذِينَ آمَنُوا وَكَانُوا يَتَّقُونَ
19 और विचार करो जिस दिन अल्लाह के शत्रु आग की ओर एकत्र करके लाए जाएँगे, फिर उन्हें श्रेणियों में क्रमबद्ध किया जाएगा, यहाँ तक की जब वे उसके पास पहुँच जाएँगे وَيَوْمَ يُحْشَرُ أَعْدَاء اللَّهِ إِلَى النَّارِ فَهُمْ يُوزَعُونَ
20 तो उनके कान और उनकी आँखें और उनकी खालें उनके विरुद्ध उन बातों की गवाही देंगी, जो कुछ वे करते रहे होंगे حَتَّى إِذَا مَا جَاؤُوهَا شَهِدَ عَلَيْهِمْ سَمْعُهُمْ وَأَبْصَارُهُمْ وَجُلُودُهُمْ بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ
21 वे अपनी खालों से कहेंगे, "तुमने हमारे विरुद्ध क्यों गवाही दी?" वे कहेंगी, "हमें उसी अल्लाह ने वाक्-शक्ति प्रदान की है, जिसने प्रत्येक चीज़ को वाक्-शक्ति प्रदान की।" - उसी ने तुम्हें पहली बार पैदा किया और उसी की ओर तुम्हें लौटना है وَقَالُوا لِجُلُودِهِمْ لِمَ شَهِدتُّمْ عَلَيْنَا قَالُوا أَنطَقَنَا اللَّهُ الَّذِي أَنطَقَ كُلَّ شَيْءٍ وَهُوَ خَلَقَكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ
22 तुम इस भय से छिपते न थे कि तुम्हारे कान तुम्हारे विरुद्ध गवाही देंगे, और न इसलिए कि तुम्हारी आँखें गवाही देंगी और न इस कारण से कि तुम्हारी खाले गवाही देंगी, बल्कि तुमने तो यह समझ रखा था कि अल्लाह तुम्हारे बहुत-से कामों को जानता ही नहीं وَمَا كُنتُمْ تَسْتَتِرُونَ أَنْ يَشْهَدَ عَلَيْكُمْ سَمْعُكُمْ وَلَا أَبْصَارُكُمْ وَلَا جُلُودُكُمْ وَلَكِن ظَنَنتُمْ أَنَّ اللَّهَ لَا يَعْلَمُ كَثِيراً مِّمَّا تَعْمَلُونَ
23 और तुम्हारे उस गुमान ने तुम्हे बरबाद किया जो तुमने अपने रब के साथ किया; अतः तुम घाटे में पड़कर रहे وَذَلِكُمْ ظَنُّكُمُ الَّذِي ظَنَنتُم بِرَبِّكُمْ أَرْدَاكُمْ فَأَصْبَحْتُم مِّنْ الْخَاسِرِينَ
24 अब यदि वे धैर्य दिखाएँ तब भी आग ही उनका ठिकाना है। और यदि वे किसी प्रकार (उसके) क्रोध को दूर करना चाहें, तब भी वे ऐसे नहीं कि वे राज़ी कर सकें فَإِن يَصْبِرُوا فَالنَّارُ مَثْوًى لَّهُمْ وَإِن يَسْتَعْتِبُوا فَمَا هُم مِّنَ الْمُعْتَبِينَ
25 हमने उनके लिए कुछ साथी नियुक्त कर दिए थे। फिर उन्होंने उनके आगे और उनके पीछे जो कुछ था उसे सुहाना बनाकर उन्हें दिखाया। अन्ततः उनपर भी जिन्नों और मनुष्यों के उन गिरोहों के साथ फ़ैसला सत्यापित होकर रहा, जो उनसे पहले गुज़र चुके थे। निश्चय ही वे घाटा उठानेवाले थे وَقَيَّضْنَا لَهُمْ قُرَنَاء فَزَيَّنُوا لَهُم مَّا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ وَحَقَّ عَلَيْهِمُ الْقَوْلُ فِي أُمَمٍ قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِهِم مِّنَ الْجِنِّ وَالْإِنسِ إِنَّهُمْ كَانُوا خَاسِرِينَ
26 जिन लोगों ने इनकार किया उन्होंने कहा, "इस क़ुरआन को सुनो ही मत और इसके बीच में शोर-गुल मचाओ, ताकि तुम प्रभावी रहो।" وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لَا تَسْمَعُوا لِهَذَا الْقُرْآنِ وَالْغَوْا فِيهِ لَعَلَّكُمْ تَغْلِبُونَ
27 अतः हम अवश्य ही उन लोगों को, जिन्होंने इनकार किया, कठोर यातना का मजा चखाएँगे, और हम अवश्य उन्हें उसका बदला देंगे, जो निकृष्टतम कर्म वे करते रहे है فَلَنُذِيقَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا عَذَابًا شَدِيدًا وَلَنَجْزِيَنَّهُمْ أَسْوَأَ الَّذِي كَانُوا يَعْمَلُونَ
28 वह है अल्लाह के शत्रुओं का बदला - आग। उसी में उसका सदा का घर है, उसके बदले में जो वे हमारी आयतों का इनकार करते रहे ذَلِكَ جَزَاء أَعْدَاء اللَّهِ النَّارُ لَهُمْ فِيهَا دَارُ الْخُلْدِ جَزَاء بِمَا كَانُوا بِآيَاتِنَا يَجْحَدُونَ
29 और जिन लोगों ने इनकार किया वे कहेंगे, "ऐ हमारे रब! हमें दिखा दे उन जिन्नों और मनुष्यों को, जिन्होंने हमको पथभ्रष़्ट किया कि हम उन्हें अपने पैरों तले डाल दे ताकि वे सबसे नीचे जा पड़े وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا رَبَّنَا أَرِنَا الَّذَيْنِ أَضَلَّانَا مِنَ الْجِنِّ وَالْإِنسِ نَجْعَلْهُمَا تَحْتَ أَقْدَامِنَا لِيَكُونَا مِنَ الْأَسْفَلِينَ
30 जिन लोगों ने कहा कि "हमारा रब अल्लाह है।" फिर इस पर दृढ़तापूर्वक जमें रहे, उनपर फ़रिश्ते उतरते है कि "न डरो और न शोकाकुल हो, और उस जन्नत की शुभ सूचना लो जिसका तुमसे वादा किया गया है إِنَّ الَّذِينَ قَالُوا رَبُّنَا اللَّهُ ثُمَّ اسْتَقَامُوا تَتَنَزَّلُ عَلَيْهِمُ الْمَلَائِكَةُ أَلَّا تَخَافُوا وَلَا تَحْزَنُوا وَأَبْشِرُوا بِالْجَنَّةِ الَّتِي كُنتُمْ تُوعَدُونَ
31 हम सांसारिक जीवन में भी तुम्हारे सहचर मित्र है और आख़िरत में भी। और वहाँ तुम्हारे लिए वह सब कुछ है, जिसकी इच्छा तुम्हारे जी को होगी। और वहाँ तुम्हारे लिए वह सब कुछ होगा, जिसका तुम माँग करोगे نَحْنُ أَوْلِيَاؤُكُمْ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَفِي الْآخِرَةِ وَلَكُمْ فِيهَا مَا تَشْتَهِي أَنفُسُكُمْ وَلَكُمْ فِيهَا مَا تَدَّعُونَ
32 आतिथ्य के रूप में क्षमाशील, दयावान सत्ता की ओर से" نُزُلًا مِّنْ غَفُورٍ رَّحِيمٍ
33 और उस व्यक्ति से बात में अच्छा कौन हो सकता है जो अल्लाह की ओर बुलाए और अच्छे कर्म करे और कहे, "निस्संदेह मैं मुस्लिम (आज्ञाकारी) हूँ?" وَمَنْ أَحْسَنُ قَوْلًا مِّمَّن دَعَا إِلَى اللَّهِ وَعَمِلَ صَالِحًا وَقَالَ إِنَّنِي مِنَ الْمُسْلِمِينَ
34 भलाई और बुराई समान नहीं है। तुम (बुरे आचरण की बुराई को) अच्छे से अच्छे आचरण के द्वारा दूर करो। फिर क्या देखोगे कि वही व्यक्ति तुम्हारे और जिसके बीच वैर पड़ा हुआ था, जैसे वह कोई घनिष्ठ मित्र है وَلَا تَسْتَوِي الْحَسَنَةُ وَلَا السَّيِّئَةُ ادْفَعْ بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ فَإِذَا الَّذِي بَيْنَكَ وَبَيْنَهُ عَدَاوَةٌ كَأَنَّهُ وَلِيٌّ حَمِيمٌ
35 किन्तु यह चीज़ केवल उन लोगों को प्राप्त होती है जो धैर्य से काम लेते है, और यह चीज़ केवल उसको प्राप्त होती है जो बड़ा भाग्यशाली होता है وَمَا يُلَقَّاهَا إِلَّا الَّذِينَ صَبَرُوا وَمَا يُلَقَّاهَا إِلَّا ذُو حَظٍّ عَظِيمٍ
36 और यदि शैतान की ओर से कोई उकसाहट तुम्हें चुभे तो अल्लाह की शरण माँग लो। निश्चय ही वह सबकुछ सुनता, जानता है وَإِمَّا يَنزَغَنَّكَ مِنَ الشَّيْطَانِ نَزْغٌ فَاسْتَعِذْ بِاللَّهِ إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ
37 रात और दिन और सूर्य और चन्द्रमा उसकी निशानियों में से है। तुम न तो सूर्य को सजदा करो और न चन्द्रमा को, बल्कि अल्लाह को सजदा करो जिसने उन्हें पैदा किया, यदि तुम उसी की बन्दगी करनेवाले हो وَمِنْ آيَاتِهِ اللَّيْلُ وَالنَّهَارُ وَالشَّمْسُ وَالْقَمَرُ لَا تَسْجُدُوا لِلشَّمْسِ وَلَا لِلْقَمَرِ وَاسْجُدُوا لِلَّهِ الَّذِي خَلَقَهُنَّ إِن كُنتُمْ إِيَّاهُ تَعْبُدُونَ
38 लेकिन यदि वे घमंड करें (और अल्लाह को याद न करें), तो जो फ़रिश्ते तुम्हारे रब के पास है वे तो रात और दिन उसकी तसबीह करते ही रहते है और वे उकताते नहीं فَإِنِ اسْتَكْبَرُوا فَالَّذِينَ عِندَ رَبِّكَ يُسَبِّحُونَ لَهُ بِاللَّيْلِ وَالنَّهَارِ وَهُمْ لَا يَسْأَمُونَ
39 और यह चीज़ भी उसकी निशानियों में से है कि तुम देखते हो कि धरती दबी पड़ी है; फिर ज्यों ही हमने उसपर पानी बरसाया कि वह फबक उठी और फूल गई। निश्चय ही जिसने उसे जीवित किया, वही मुर्दों को जीवित करनेवाला है। निस्संदेह उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है وَمِنْ آيَاتِهِ أَنَّكَ تَرَى الْأَرْضَ خَاشِعَةً فَإِذَا أَنزَلْنَا عَلَيْهَا الْمَاء اهْتَزَّتْ وَرَبَتْ إِنَّ الَّذِي أَحْيَاهَا لَمُحْيِي الْمَوْتَى إِنَّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
40 जो लोग हमारी आयतों में कुटिलता की नीति अपनाते है वे हमसे छिपे हुए नहीं हैं, तो क्या जो व्यक्ति आग में डाला जाए वह अच्छा है या वह जो क़ियामत के दिन निश्चिन्त होकर आएगा? जो चाहो कर लो, तुम जो कुछ करते हो वह तो उसे देख ही रहा है إِنَّ الَّذِينَ يُلْحِدُونَ فِي آيَاتِنَا لَا يَخْفَوْنَ عَلَيْنَا أَفَمَن يُلْقَى فِي النَّارِ خَيْرٌ أَم مَّن يَأْتِي آمِنًا يَوْمَ الْقِيَامَةِ اعْمَلُوا مَا شِئْتُمْ إِنَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ
41 जिन लोगों ने अनुस्मृति का इनकार किया, जबकि वह उनके पास आई, हालाँकि वह एक प्रभुत्वशाली किताब है, (तो न पूछो कि उनका कितना बुरा परिणाम होगा) إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا بِالذِّكْرِ لَمَّا جَاءهُمْ وَإِنَّهُ لَكِتَابٌ عَزِيزٌ
42 असत्य उस तक न उसके आगे से आ सकता है और न उसके पीछे से; अवतरण है उसकी ओर से जो अत्यन्त तत्वदर्शी, प्रशंसा के योग्य है لَا يَأْتِيهِ الْبَاطِلُ مِن بَيْنِ يَدَيْهِ وَلَا مِنْ خَلْفِهِ تَنزِيلٌ مِّنْ حَكِيمٍ حَمِيدٍ
43 तुम्हें बस वही कहा जा रहा है, जो उन रसूलों को कहा जा चुका है, जो तुमसे पहले गुज़र चुके है। निस्संदेह तुम्हारा रब बड़ा क्षमाशील है और दुखद दंड देनेवाला भी مَا يُقَالُ لَكَ إِلَّا مَا قَدْ قِيلَ لِلرُّسُلِ مِن قَبْلِكَ إِنَّ رَبَّكَ لَذُو مَغْفِرَةٍ وَذُو عِقَابٍ أَلِيمٍ
44 यदि हम उसे ग़ैर अरबी क़ुरआन बनाते तो वे कहते कि "उसकी आयतें क्यों नहीं (हमारी भाषा में) खोलकर बयान की गई? यह क्या कि वाणी तो ग़ैर अरबी है और व्यक्ति अरबी?" कहो, "वह उन लोगों के लिए जो ईमान लाए मार्गदर्शन और आरोग्य है, किन्तु जो लोग ईमान नहीं ला रहे है उनके कानों में बोझ है और वह (क़ुरआन) उनके लिए अन्धापन (सिद्ध हो रहा) है, वे ऐसे है जिनको किसी दूर के स्थान से पुकारा जा रहा हो।" وَلَوْ جَعَلْنَاهُ قُرْآنًا أَعْجَمِيًّا لَّقَالُوا لَوْلَا فُصِّلَتْ آيَاتُهُ أَأَعْجَمِيٌّ وَعَرَبِيٌّ قُلْ هُوَ لِلَّذِينَ آمَنُوا هُدًى وَشِفَاء وَالَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ فِي آذَانِهِمْ وَقْرٌ وَهُوَ عَلَيْهِمْ عَمًى أُوْلَئِكَ يُنَادَوْنَ مِن مَّكَانٍ بَعِيدٍ
45 हमने मूसा को भी किताब प्रदान की थी, फिर उसमें भी विभेद किया गया। यदि तुम्हारे रब की ओर से पहले ही से एक बात निश्चित न हो चुकी होती तो उनके बीत फ़ैसला चुका दिया जाता। हालाँकि वे उसकी ओर से उलझन में डाल देनेवाले सन्देह में पड़े हुए है وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ فَاخْتُلِفَ فِيهِ وَلَوْلَا كَلِمَةٌ سَبَقَتْ مِن رَّبِّكَ لَقُضِيَ بَيْنَهُمْ وَإِنَّهُمْ لَفِي شَكٍّ مِّنْهُ مُرِيبٍ
46 जिस किसी ने अच्छा कर्म किया तो अपने ही लिए और जिस किसी ने बुराई की, तो उसका वबाल भी उसी पर पड़ेगा। वास्तव में तुम्हारा रब अपने बन्दों पर तनिक भी ज़ुल्म नहीं करता مَنْ عَمِلَ صَالِحًا فَلِنَفْسِهِ وَمَنْ أَسَاء فَعَلَيْهَا وَمَا رَبُّكَ بِظَلَّامٍ لِّلْعَبِيدِ
47 उस घड़ी का ज्ञान अल्लाह की ओर फिरता है। जो फल भी अपने कोषों से निकलते है और जो मादा भी गर्भवती होती है और बच्चा जनती है, अनिवार्यतः उसे इन सबका ज्ञान होता है। जिस दिन वह उन्हें पुकारेगा, "कहाँ है मेरे साझीदार?" वे कहेंगे, "हम तेरे समक्ष खुल्लम-ख़ुल्ला कह चुके है कि हममें से कोई भी इसका गवाह नहीं।" إِلَيْهِ يُرَدُّ عِلْمُ السَّاعَةِ وَمَا تَخْرُجُ مِن ثَمَرَاتٍ مِّنْ أَكْمَامِهَا وَمَا تَحْمِلُ مِنْ أُنثَى وَلَا تَضَعُ إِلَّا بِعِلْمِهِ وَيَوْمَ يُنَادِيهِمْ أَيْنَ شُرَكَائِي قَالُوا آذَنَّاكَ مَا مِنَّا مِن شَهِيدٍ
48 और जिन्हें वे पहले पुकारा करते थे वे उनसे गुम हो जाएँगे। और वे समझ लेंगे कि उनके लिए कोई भी भागने की जगह नहीं है وَضَلَّ عَنْهُم مَّا كَانُوا يَدْعُونَ مِن قَبْلُ وَظَنُّوا مَا لَهُم مِّن مَّحِيصٍ
49 मनुष्य भलाई माँगने से नहीं उकताता, किन्तु यदि उसे कोई तकलीफ़ छू जाती है तो वह निराश होकर आस छोड़ बैठता है لَا يَسْأَمُ الْإِنسَانُ مِن دُعَاء الْخَيْرِ وَإِن مَّسَّهُ الشَّرُّ فَيَؤُوسٌ قَنُوطٌ
50 और यदि उस तकलीफ़ के बाद, जो उसे पहुँची, हम उसे अपनी दयालुता का आस्वादन करा दें तो वह निश्चय ही कहेंगा, "यह तो मेरा हक़ ही है। मैं तो यह नहीं समझता कि वह, क़ियामत की घड़ी, घटित होगी और यदि मैं अपने रब की ओर लौटाया भी गया तो अवश्य ही उसके पास मेरे लिए अच्छा पारितोषिक होगा।" फिर हम उन लोगों को जिन्होंने इनकार किया, अवश्य बताकर रहेंगे, जो कुछ उन्होंने किया होगा। और हम उन्हें अवश्य ही कठोर यातना का मज़ा चखाएँगे وَلَئِنْ أَذَقْنَاهُ رَحْمَةً مِّنَّا مِن بَعْدِ ضَرَّاء مَسَّتْهُ لَيَقُولَنَّ هَذَا لِي وَمَا أَظُنُّ السَّاعَةَ قَائِمَةً وَلَئِن رُّجِعْتُ إِلَى رَبِّي إِنَّ لِي عِندَهُ لَلْحُسْنَى فَلَنُنَبِّئَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا بِمَا عَمِلُوا وَلَنُذِيقَنَّهُم مِّنْ عَذَابٍ غَلِيظٍ
51 जब हम मनुष्य पर अनुकम्पा करते है तो वह ध्यान में नहीं लाता और अपना पहलू फेर लेता है। किन्तु जब उसे तकलीफ़ छू जाती है, तो वह लम्बी-चौड़ी प्रार्थनाएँ करने लगता है وَإِذَا أَنْعَمْنَا عَلَى الْإِنسَانِ أَعْرَضَ وَنَأى بِجَانِبِهِ وَإِذَا مَسَّهُ الشَّرُّ فَذُو دُعَاء عَرِيضٍ
52 कह दो, "क्या तुमने विचार किया, यदि वह (क़ुरआन) अल्लाह की ओर सो ही हुआ और तुमने उसका इनकार किया तो उससे बढ़कर भटका हुआ और कौन होगा जो विरोध में बहुत दूर जा पड़ा हो?" قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِن كَانَ مِنْ عِندِ اللَّهِ ثُمَّ كَفَرْتُم بِهِ مَنْ أَضَلُّ مِمَّنْ هُوَ فِي شِقَاقٍ بَعِيدٍ
53 शीघ्र ही हम उन्हें अपनी निशानियाँ वाह्य क्षेत्रों में दिखाएँगे और स्वयं उनके अपने भीतर भी, यहाँ तक कि उनपर स्पष्टा हो जाएगा कि वह (क़ुरआन) सत्य है। क्या तुम्हारा रब इस दृष्टि, से काफ़ी नहीं कि वह हर चीज़ का साक्षी है سَنُرِيهِمْ آيَاتِنَا فِي الْآفَاقِ وَفِي أَنفُسِهِمْ حَتَّى يَتَبَيَّنَ لَهُمْ أَنَّهُ الْحَقُّ أَوَلَمْ يَكْفِ بِرَبِّكَ أَنَّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ
54 जान लो कि वे लोग अपने रब से मिलन के बारे में संदेह में पड़े हुए है। जान लो कि निश्चय ही वह हर चीज़ को अपने घेरे में लिए हुए है أَلَا إِنَّهُمْ فِي مِرْيَةٍ مِّن لِّقَاء رَبِّهِمْ أَلَا إِنَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ مُّحِيطٌ
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