1 |
सफल हो गए ईमानवाले, |
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قَدْ أَفْلَحَ الْمُؤْمِنُونَ |
2 |
जो अपनी नमाज़ों में विनम्रता अपनाते है; |
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الَّذِينَ هُمْ فِي صَلَاتِهِمْ خَاشِعُونَ |
3 |
और जो व्यर्थ बातों से पहलू बचाते है; |
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وَالَّذِينَ هُمْ عَنِ اللَّغْوِ مُعْرِضُونَ |
4 |
और जो ज़कात अदा करते है; |
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وَالَّذِينَ هُمْ لِلزَّكَاةِ فَاعِلُونَ |
5 |
और जो अपने गुप्तांगों की रक्षा करते है- |
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وَالَّذِينَ هُمْ لِفُرُوجِهِمْ حَافِظُونَ |
6 |
सिवाय इस सूरत के कि अपनी पत्नि यों या लौंडियों के पास जाएँ कि इसपर वे निन्दनीय नहीं है |
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إِلَّا عَلَى أَزْوَاجِهِمْ أوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُهُمْ فَإِنَّهُمْ غَيْرُ مَلُومِينَ |
7 |
परन्तु जो कोई इसके अतिरिक्त कुछ और चाहे तो ऐसे ही लोग सीमा उल्लंघन करनेवाले है।- |
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فَمَنِ ابْتَغَى وَرَاء ذَلِكَ فَأُوْلَئِكَ هُمُ الْعَادُونَ |
8 |
और जो अपनी अमानतों और अपनी प्रतिज्ञा का ध्यान रखते है; |
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وَالَّذِينَ هُمْ لِأَمَانَاتِهِمْ وَعَهْدِهِمْ رَاعُونَ |
9 |
और जो अपनी नमाज़ों की रक्षा करते हैं; |
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وَالَّذِينَ هُمْ عَلَى صَلَوَاتِهِمْ يُحَافِظُونَ |
10 |
वही वारिस होने वाले है |
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أُوْلَئِكَ هُمُ الْوَارِثُونَ |
11 |
जो फ़िरदौस की विरासत पाएँगे। वे उसमें सदैव रहेंगे |
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الَّذِينَ يَرِثُونَ الْفِرْدَوْسَ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ |
12 |
हमने मनुष्य को मिट्टी के सत से बनाया |
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وَلَقَدْ خَلَقْنَا الْإِنسَانَ مِن سُلَالَةٍ مِّن طِينٍ |
13 |
फिर हमने उसे एक सुरक्षित ठहरने की जगह टपकी हुई बूँद बनाकर रखा |
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ثُمَّ جَعَلْنَاهُ نُطْفَةً فِي قَرَارٍ مَّكِينٍ |
14 |
फिर हमने उस बूँद को लोथड़े का रूप दिया; फिर हमने उस लोथड़े को बोटी का रूप दिया; फिर हमने उन हड्डियों पर मांस चढाया; फिर हमने उसे एक दूसरा ही सर्जन रूप देकर खड़ा किया। अतः बहुत ही बरकतवाला है अल्लाह, सबसे उत्तम स्रष्टा! |
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ثُمَّ خَلَقْنَا النُّطْفَةَ عَلَقَةً فَخَلَقْنَا الْعَلَقَةَ مُضْغَةً فَخَلَقْنَا الْمُضْغَةَ عِظَامًا فَكَسَوْنَا الْعِظَامَ لَحْمًا ثُمَّ أَنشَأْنَاهُ خَلْقًا آخَرَ فَتَبَارَكَ اللَّهُ أَحْسَنُ الْخَالِقِينَ |
15 |
फिर तुम अवश्य मरनेवाले हो |
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ثُمَّ إِنَّكُمْ بَعْدَ ذَلِكَ لَمَيِّتُونَ |
16 |
फिर क़ियामत के दिन तुम निश्चय ही उठाए जाओगे |
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ثُمَّ إِنَّكُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ تُبْعَثُونَ |
17 |
और हमने तुम्हारे ऊपर सात रास्ते बनाए है। और हम सृष्टि-कार्य से ग़ाफ़िल नहीं |
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وَلَقَدْ خَلَقْنَا فَوْقَكُمْ سَبْعَ طَرَائِقَ وَمَا كُنَّا عَنِ الْخَلْقِ غَافِلِينَ |
18 |
और हमने आकाश से एक अंदाज़े के साथ पानी उतारा। फिर हमने उसे धरती में ठहरा दिया, और उसे विलुप्त करने की सामर्थ्य भी हमें प्राप्त है |
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وَأَنزَلْنَا مِنَ السَّمَاء مَاء بِقَدَرٍ فَأَسْكَنَّاهُ فِي الْأَرْضِ وَإِنَّا عَلَى ذَهَابٍ بِهِ لَقَادِرُونَ |
19 |
फिर हमने उसके द्वारा तुम्हारे लिए खजूरो और अंगूरों के बाग़ पैदा किए। तुम्हारे लिए उनमें बहुत-से फल है (जिनमें तुम्हारे लिए कितने ही लाभ है) और उनमें से तुम खाते हो |
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فَأَنشَأْنَا لَكُم بِهِ جَنَّاتٍ مِّن نَّخِيلٍ وَأَعْنَابٍ لَّكُمْ فِيهَا فَوَاكِهُ كَثِيرَةٌ وَمِنْهَا تَأْكُلُونَ |
20 |
और वह वृक्ष भी जो सैना पर्वत से निकलता है, जो तेल और खानेवालों के लिए सालन लिए हुए उगता है |
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وَشَجَرَةً تَخْرُجُ مِن طُورِ سَيْنَاء تَنبُتُ بِالدُّهْنِ وَصِبْغٍ لِّلْآكِلِينَ |
21 |
और निश्चय ही तुम्हारे लिए चौपायों में भी एक शिक्षा है। उनके पेटों में जो कुछ है उसमें से हम तुम्हें पिलाते है। औऱ तुम्हारे लिए उनमें बहुत-से फ़ायदे है और उन्हें तुम खाते भी हो |
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وَإِنَّ لَكُمْ فِي الْأَنْعَامِ لَعِبْرَةً نُّسقِيكُم مِّمَّا فِي بُطُونِهَا وَلَكُمْ فِيهَا مَنَافِعُ كَثِيرَةٌ وَمِنْهَا تَأْكُلُونَ |
22 |
और उनपर और नौकाओं पर तुम सवार होते हो |
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وَعَلَيْهَا وَعَلَى الْفُلْكِ تُحْمَلُونَ |
23 |
हमने नूह को उसकी क़ौम की ओर भेजा तो उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अल्लाह की बन्दगी करो। उसके सिवा तुम्हारा और कोई इष्ट-पूज्य नहीं है तो क्या तुम डर नहीं रखते?" |
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وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا نُوحًا إِلَى قَوْمِهِ فَقَالَ يَا قَوْمِ اعْبُدُوا اللَّهَ مَا لَكُم مِّنْ إِلَهٍ غَيْرُهُ أَفَلَا تَتَّقُونَ |
24 |
इसपर उनकी क़ौम के सरदार, जिन्होंने इनकार किया था, कहने लगे, "यह तो बस तुम्हीं जैसा एक मनुष्य है। चाहता है कि तुमपर श्रेष्ठता प्राप्त करे।""अल्लाह यदि चाहता तो फ़रिश्ते उतार देता। यह बात तो हमने अपने अगले बाप-दादा के समयों से सुनी ही नहीं |
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فَقَالَ الْمَلَأُ الَّذِينَ كَفَرُوا مِن قَوْمِهِ مَا هَذَا إِلَّا بَشَرٌ مِّثْلُكُمْ يُرِيدُ أَن يَتَفَضَّلَ عَلَيْكُمْ وَلَوْ شَاء اللَّهُ لَأَنزَلَ مَلَائِكَةً مَّا سَمِعْنَا بِهَذَا فِي آبَائِنَا الْأَوَّلِينَ |
25 |
यह तो बस एक उन्मादग्रस्त व्यक्ति है। अतः एक समय तक इसकी प्रतीक्षा कर लो।" |
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إِنْ هُوَ إِلَّا رَجُلٌ بِهِ جِنَّةٌ فَتَرَبَّصُوا بِهِ حَتَّى حِينٍ |
26 |
उसने कहा, "ऐ मेरे रब! इन्होंने मुझे जो झुठलाया है, इसपर तू मेरी सहायता कर।" |
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قَالَ رَبِّ انصُرْنِي بِمَا كَذَّبُونِ |
27 |
तब हमने उसकी ओर प्रकाशना की कि "हमारी आँखों के सामने और हमारी प्रकाशना के अनुसार नौका बना और फिर जब हमारा आदेश आ जाए और तूफ़ान उमड़ पड़े तो प्रत्येक प्रजाति में से एक-एक जोड़ा उसमें रख ले और अपने लोगों को भी, सिवाय उनके जिनके विरुद्ध पहले फ़ैसला हो चुका है। और अत्याचारियों के विषय में मुझसे बात न करना। वे तो डूबकर रहेंगे |
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فَأَوْحَيْنَا إِلَيْهِ أَنِ اصْنَعِ الْفُلْكَ بِأَعْيُنِنَا وَوَحْيِنَا فَإِذَا جَاء أَمْرُنَا وَفَارَ التَّنُّورُ فَاسْلُكْ فِيهَا مِن كُلٍّ زَوْجَيْنِ اثْنَيْنِ وَأَهْلَكَ إِلَّا مَن سَبَقَ عَلَيْهِ الْقَوْلُ مِنْهُمْ وَلَا تُخَاطِبْنِي فِي الَّذِينَ ظَلَمُوا إِنَّهُم مُّغْرَقُونَ |
28 |
फिर जब तू नौका पर सवार हो जाए और तेरे साथी भी तो कह, प्रशंसा है अल्लाह की, जिसने हमें ज़ालिम लोगों से छुटकारा दिया |
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فَإِذَا اسْتَوَيْتَ أَنتَ وَمَن مَّعَكَ عَلَى الْفُلْكِ فَقُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي نَجَّانَا مِنَ الْقَوْمِ الظَّالِمِينَ |
29 |
और कह, ऐ मेरे रब! मुझे बरकतवाली जगह उतार। और तू सबसे अच्छा मेज़बान है।" |
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وَقُل رَّبِّ أَنزِلْنِي مُنزَلًا مُّبَارَكًا وَأَنتَ خَيْرُ الْمُنزِلِينَ |
30 |
निस्संदेह इसमें कितनी ही निशानियाँ हैं और परीक्षा तो हम करते ही है |
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إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ وَإِن كُنَّا لَمُبْتَلِينَ |
31 |
फिर उनके पश्चात हमने एक दूसरी नस्ल को उठाया; |
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ثُمَّ أَنشَأْنَا مِن بَعْدِهِمْ قَرْنًا آخَرِينَ |
32 |
और उनमें हमने स्वयं उन्हीं में से एक रसूल भेजा कि "अल्लाह की बन्दगी करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई इष्ट-पूज्य नहीं। तो क्या तुम डर नहीं रखते?" |
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فَأَرْسَلْنَا فِيهِمْ رَسُولًا مِنْهُمْ أَنِ اعْبُدُوا اللَّهَ مَا لَكُم مِّنْ إِلَهٍ غَيْرُهُ أَفَلَا تَتَّقُونَ |
33 |
उसकी क़ौम के सरदार, जिन्होंने इनकार किया और आख़िरत के मिलन को झूठलाया और जिन्हें हमने सांसारिक जीवन में सुख प्रदान किया था, कहने लगे, "यह तो बस तुम्हीं जैसा एक मनुष्य है। जो कुछ तुम खाते हो, वही यह भी खाता है और जो कुछ तुम पीते हो, वही यह भी पीता है |
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وَقَالَ الْمَلَأُ مِن قَوْمِهِ الَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِلِقَاء الْآخِرَةِ وَأَتْرَفْنَاهُمْ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا مَا هَذَا إِلَّا بَشَرٌ مِّثْلُكُمْ يَأْكُلُ مِمَّا تَأْكُلُونَ مِنْهُ وَيَشْرَبُ مِمَّا تَشْرَبُونَ |
34 |
यदि तुम अपने ही जैसे एक मनुष्य के आज्ञाकारी हुए तो निश्चय ही तुम घाटे में पड़ गए |
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وَلَئِنْ أَطَعْتُم بَشَرًا مِثْلَكُمْ إِنَّكُمْ إِذًا لَّخَاسِرُونَ |
35 |
क्या यह तुमसे वादा करता है कि जब तुम मरकर मिट्टी और हड़्डियाँ होकर रह जाओगे तो तुम निकाले जाओगे? |
/content/ayah/audio/hudhaify/023035.mp3
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أَيَعِدُكُمْ أَنَّكُمْ إِذَا مِتُّمْ وَكُنتُمْ تُرَابًا وَعِظَامًا أَنَّكُم مُّخْرَجُونَ |
36 |
दूर की बात है, बहुत दूर की, जिसका तुमसे वादा किया जा रहा है! |
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هَيْهَاتَ هَيْهَاتَ لِمَا تُوعَدُونَ |
37 |
वह तो बस हमारा सांसारिक जीवन ही है। (यहीं) हम मरते और जीते है। हम कोई दोबारा उठाए जानेवाले नहीं है |
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إِنْ هِيَ إِلَّا حَيَاتُنَا الدُّنْيَا نَمُوتُ وَنَحْيَا وَمَا نَحْنُ بِمَبْعُوثِينَ |
38 |
वह तो बस एक ऐसा व्यक्ति है जिसने अल्लाह पर झूठ घड़ा है। हम उसे कदापि माननेवाले नहीं।" |
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إِنْ هُوَ إِلَّا رَجُلٌ افْتَرَى عَلَى اللَّهِ كَذِبًا وَمَا نَحْنُ لَهُ بِمُؤْمِنِينَ |
39 |
उसने कहा, "ऐ मेरे रब! उन्होंने जो मुझे झुठलाया, उसपर तू मेरी सहायता कर।" |
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قَالَ رَبِّ انصُرْنِي بِمَا كَذَّبُونِ |
40 |
कहा, "शीघ्र ही वे पछताकर रहेंगे।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/023040.mp3
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قَالَ عَمَّا قَلِيلٍ لَيُصْبِحُنَّ نَادِمِينَ |
41 |
फिर घटित होनेवाली बात के अनुसार उन्हें एक प्रचंड आवाज़ ने आ लिया और हमने उन्हें कूड़ा-कर्कट बनाकर रख दिया। अतः फिटकार है, ऐसे अत्याचारी लोगों पर! |
/content/ayah/audio/hudhaify/023041.mp3
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فَأَخَذَتْهُمُ الصَّيْحَةُ بِالْحَقِّ فَجَعَلْنَاهُمْ غُثَاء فَبُعْدًا لِّلْقَوْمِ الظَّالِمِينَ |
42 |
फिर हमने उनके पश्चात दूसरी नस्लों को उठाया |
/content/ayah/audio/hudhaify/023042.mp3
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ثُمَّ أَنشَأْنَا مِن بَعْدِهِمْ قُرُونًا آخَرِينَ |
43 |
कोई समुदाय न तो अपने निर्धारित समय से आगे बढ़ सकता है और न पीछे रह सकता है |
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مَا تَسْبِقُ مِنْ أُمَّةٍ أَجَلَهَا وَمَا يَسْتَأْخِرُونَ |
44 |
फिर हमने निरन्तर अपने रसूल भेजे। जब भी किसी समुदाय के पास उसका रसूल आया, तो उसके लोगों ने उसे झुठला दिया। अतः हम एक दूसरे के पीछे (विनाश के लिए) लगाते चले गए और हमने उन्हें ऐसा कर दिया कि वे कहानियाँ होकर रह गए। फिटकार हो उन लोगों पर जो ईमान न लाएँ |
/content/ayah/audio/hudhaify/023044.mp3
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ثُمَّ أَرْسَلْنَا رُسُلَنَا تَتْرَا كُلَّ مَا جَاء أُمَّةً رَّسُولُهَا كَذَّبُوهُ فَأَتْبَعْنَا بَعْضَهُم بَعْضًا وَجَعَلْنَاهُمْ أَحَادِيثَ فَبُعْدًا لِّقَوْمٍ لَّا يُؤْمِنُونَ |
45 |
फिर हमने मूसा और उसके भाई हारून को अपनी निशानियों और खुले प्रमाण के साथ फ़िरऔन और उसके सरदारों की ओर भेजा। |
/content/ayah/audio/hudhaify/023045.mp3
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ثُمَّ أَرْسَلْنَا مُوسَى وَأَخَاهُ هَارُونَ بِآيَاتِنَا وَسُلْطَانٍ مُّبِينٍ |
46 |
किन्तु उन्होंने अहंकार किया। वे थे ही सरकश लोग |
/content/ayah/audio/hudhaify/023046.mp3
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إِلَى فِرْعَوْنَ وَمَلَئِهِ فَاسْتَكْبَرُوا وَكَانُوا قَوْمًا عَالِينَ |
47 |
तो व कहने लगे, "क्या हम अपने ही जैसे दो मनुष्यों की बात मान लें, जबकि उनकी क़ौम हमारी ग़ुलाम भी है?" |
/content/ayah/audio/hudhaify/023047.mp3
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فَقَالُوا أَنُؤْمِنُ لِبَشَرَيْنِ مِثْلِنَا وَقَوْمُهُمَا لَنَا عَابِدُونَ |
48 |
अतः उन्होंने उन दोनों को झुठला दिया और विनष्ट होनेवालों में सम्मिलित होकर रहे |
/content/ayah/audio/hudhaify/023048.mp3
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فَكَذَّبُوهُمَا فَكَانُوا مِنَ الْمُهْلَكِينَ |
49 |
और हमने मूसा को किताब प्रदान की, ताकि वे लोग मार्ग पा सकें |
/content/ayah/audio/hudhaify/023049.mp3
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وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ لَعَلَّهُمْ يَهْتَدُونَ |
50 |
और मरयम के बेटे और उसकी माँ को हमने एक निशानी बनाया। और हमने उन्हें रहने योग्य स्रोतबाली ऊँची जगह शरण दी, |
/content/ayah/audio/hudhaify/023050.mp3
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وَجَعَلْنَا ابْنَ مَرْيَمَ وَأُمَّهُ آيَةً وَآوَيْنَاهُمَا إِلَى رَبْوَةٍ ذَاتِ قَرَارٍ وَمَعِينٍ |
51 |
"ऐ पैग़म्बरो! अच्छी पाक चीज़े खाओ और अच्छा कर्म करो। जो कुछ तुम करते हो उसे मैं जानता हूँ |
/content/ayah/audio/hudhaify/023051.mp3
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يَا أَيُّهَا الرُّسُلُ كُلُوا مِنَ الطَّيِّبَاتِ وَاعْمَلُوا صَالِحًا إِنِّي بِمَا تَعْمَلُونَ عَلِيمٌ |
52 |
और निश्चय ही यह तुम्हारा समुदाय, एक ही समुदाय है और मैं तुम्हारा रब हूँ। अतः मेरा डर रखो।" |
/content/ayah/audio/hudhaify/023052.mp3
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وَإِنَّ هَذِهِ أُمَّتُكُمْ أُمَّةً وَاحِدَةً وَأَنَا رَبُّكُمْ فَاتَّقُونِ |
53 |
किन्तु उन्होंने स्वयं अपने मामले (धर्म) को परस्पर टुकड़े-टुकड़े कर डाला। हर गिरोह उसी पर खुश है, जो कुछ उसके पास है |
/content/ayah/audio/hudhaify/023053.mp3
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فَتَقَطَّعُوا أَمْرَهُم بَيْنَهُمْ زُبُرًا كُلُّ حِزْبٍ بِمَا لَدَيْهِمْ فَرِحُونَ |
54 |
अच्छा तो उन्हें उनकी अपनी बेहोशी में डूबे हुए ही एक समय तक छोड़ दो |
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فَذَرْهُمْ فِي غَمْرَتِهِمْ حَتَّى حِينٍ |
55 |
क्या वे समझते है कि हम जो उनकी धन और सन्तान से सहायता किए जा रहे है, |
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أَيَحْسَبُونَ أَنَّمَا نُمِدُّهُم بِهِ مِن مَّالٍ وَبَنِينَ |
56 |
तो यह उनके भलाइयों में कोई जल्दी कर रहे है? |
/content/ayah/audio/hudhaify/023056.mp3
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نُسَارِعُ لَهُمْ فِي الْخَيْرَاتِ بَل لَّا يَشْعُرُونَ |
57 |
नहीं, बल्कि उन्हें इसका एहसास नहीं है। निश्चय ही जो लोग अपने रब के भय से काँपते रहते हैं; |
/content/ayah/audio/hudhaify/023057.mp3
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إِنَّ الَّذِينَ هُم مِّنْ خَشْيَةِ رَبِّهِم مُّشْفِقُونَ |
58 |
और जो लोग अपने रब की आयतों पर ईमान लाते है; |
/content/ayah/audio/hudhaify/023058.mp3
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وَالَّذِينَ هُم بِآيَاتِ رَبِّهِمْ يُؤْمِنُونَ |
59 |
और जो लोग अपने रब के साथ किसी को साझी नहीं ठहराते; |
/content/ayah/audio/hudhaify/023059.mp3
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وَالَّذِينَ هُم بِرَبِّهِمْ لَا يُشْرِكُونَ |
60 |
और जो लोग देते है, जो कुछ देते है और हाल यह होता है कि दिल उनके काँप रहे होते है, इसलिए कि उन्हें अपने रब की ओर पलटना है; |
/content/ayah/audio/hudhaify/023060.mp3
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وَالَّذِينَ يُؤْتُونَ مَا آتَوا وَّقُلُوبُهُمْ وَجِلَةٌ أَنَّهُمْ إِلَى رَبِّهِمْ رَاجِعُونَ |
61 |
यही वे लोग है, जो भलाइयों में जल्दी करते है और यही उनके लिए अग्रसर रहनेवाले है। |
/content/ayah/audio/hudhaify/023061.mp3
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أُوْلَئِكَ يُسَارِعُونَ فِي الْخَيْرَاتِ وَهُمْ لَهَا سَابِقُونَ |
62 |
हम किसी व्यक्ति पर उसकी समाई (क्षमता) से बढ़कर ज़िम्मेदारी का बोझ नहीं डालते और हमारे पास एक किताब है, जो ठीक-ठीक बोलती है, और उनपर ज़ुल्म नहीं किया जाएगा |
/content/ayah/audio/hudhaify/023062.mp3
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وَلَا نُكَلِّفُ نَفْسًا إِلَّا وُسْعَهَا وَلَدَيْنَا كِتَابٌ يَنطِقُ بِالْحَقِّ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ |
63 |
बल्कि उनके दिल इसकी (सत्य धर्म की) ओर से हटकर (वसवसों और गफ़लतों आदि के) भँवर में पडे हुए है और उससे (ईमानवालों की नीति से) हटकर उनके कुछ और ही काम है। वे उन्हीं को करते रहेंगे; |
/content/ayah/audio/hudhaify/023063.mp3
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بَلْ قُلُوبُهُمْ فِي غَمْرَةٍ مِّنْ هَذَا وَلَهُمْ أَعْمَالٌ مِن دُونِ ذَلِكَ هُمْ لَهَا عَامِلُونَ |
64 |
यहाँ तक कि जब हम उनके खुशहाल लोगों को यातना में पकड़ेगे तो क्या देखते है कि वे विलाप और फ़रियाद कर रहे है |
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حَتَّى إِذَا أَخَذْنَا مُتْرَفِيهِم بِالْعَذَابِ إِذَا هُمْ يَجْأَرُونَ |
65 |
(कहा जाएगा,) "आज चिल्लाओ मत, तुम्हें हमारी ओर से कोई सहायता मिलनेवाली नहीं |
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لَا تَجْأَرُوا الْيَوْمَ إِنَّكُم مِّنَّا لَا تُنصَرُونَ |
66 |
तुम्हें मेरी आयतें सुनाई जाती थीं, तो तुम अपनी एड़ियों के बल फिर जाते थे। |
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قَدْ كَانَتْ آيَاتِي تُتْلَى عَلَيْكُمْ فَكُنتُمْ عَلَى أَعْقَابِكُمْ تَنكِصُونَ |
67 |
हाल यह था कि इसके कारण स्वयं को बड़ा समझते थे, उसे एक कहानी कहनेवाला ठहराकर छोड़ चलते थे |
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مُسْتَكْبِرِينَ بِهِ سَامِرًا تَهْجُرُونَ |
68 |
क्या उन्होंने इस वाणी पर विचार नहीं किया या उनके पास वह चीज़ आ गई जो उनके पहले बाप-दादा के पास न आई थी? |
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أَفَلَمْ يَدَّبَّرُوا الْقَوْلَ أَمْ جَاءهُم مَّا لَمْ يَأْتِ آبَاءهُمُ الْأَوَّلِينَ |
69 |
या उन्होंने अपने रसूल को पहचाना नहीं, इसलिए उसका इनकार कर रहे है? |
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أَمْ لَمْ يَعْرِفُوا رَسُولَهُمْ فَهُمْ لَهُ مُنكِرُونَ |
70 |
या वे कहते है, "उसे उन्माद हो गया है।" नहीं, बल्कि वह उनके पास सत्य लेकर आया है। किन्तु उनमें अधिकांश को सत्य अप्रिय है |
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أَمْ يَقُولُونَ بِهِ جِنَّةٌ بَلْ جَاءهُم بِالْحَقِّ وَأَكْثَرُهُمْ لِلْحَقِّ كَارِهُونَ |
71 |
और यदि सत्य कहीं उनकी इच्छाओं के पीछे चलता तो समस्त आकाश और धरती और जो भी उनमें है, सबमें बिगाड़ पैदा हो जाता। नहीं, बल्कि हम उनके पास उनके हिस्से की अनुस्मृति लाए है। किन्तु वे अपनी अनुस्मृति से कतरा रहे है |
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وَلَوِ اتَّبَعَ الْحَقُّ أَهْوَاءهُمْ لَفَسَدَتِ السَّمَاوَاتُ وَالْأَرْضُ وَمَن فِيهِنَّ بَلْ أَتَيْنَاهُم بِذِكْرِهِمْ فَهُمْ عَن ذِكْرِهِم مُّعْرِضُونَ |
72 |
या तुम उनसे कुथ शुल्क माँग रहे हो? तुम्हारे रब का दिया ही उत्तम है। और वह सबसे अच्छी रोज़ी देनेवाला है |
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أَمْ تَسْأَلُهُمْ خَرْجًا فَخَرَاجُ رَبِّكَ خَيْرٌ وَهُوَ خَيْرُ الرَّازِقِينَ |
73 |
और वास्तव में तुम उन्हें सीधे मार्ग की ओर बुला रहे हो |
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وَإِنَّكَ لَتَدْعُوهُمْ إِلَى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ |
74 |
किन्तु जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते वे इस मार्ग से हटकर चलना चाहते है |
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وَإِنَّ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ عَنِ الصِّرَاطِ لَنَاكِبُونَ |
75 |
यदि हम (किसी आज़माइश में डालने के पश्चात) उनपर दया करते और जिस तकलीफ़ में वे होते उसे दूर कर देते तो भी वे अपनी सरकशी में हठात बहकते रहते |
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وَلَوْ رَحِمْنَاهُمْ وَكَشَفْنَا مَا بِهِم مِّن ضُرٍّ لَّلَجُّوا فِي طُغْيَانِهِمْ يَعْمَهُونَ |
76 |
यद्यपि हमने उन्हें यातना में पकड़ा, फिर भी वे अपने रब के आगे न तो झुके और न वे गिड़गिड़ाते ही थे |
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وَلَقَدْ أَخَذْنَاهُم بِالْعَذَابِ فَمَا اسْتَكَانُوا لِرَبِّهِمْ وَمَا يَتَضَرَّعُونَ |
77 |
यहाँ तक कि जब हम उनपर कठोर यातना का द्वार खोल दें तो क्या देखेंगे कि वे उसमें निराश होकर रह गए है |
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حَتَّى إِذَا فَتَحْنَا عَلَيْهِم بَابًا ذَا عَذَابٍ شَدِيدٍ إِذَا هُمْ فِيهِ مُبْلِسُونَ |
78 |
और वही है जिसने तुम्हारे लिए कान और आँखे और दिल बनाए। तुम कृतज्ञता थोड़े ही दिखाते हो! |
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وَهُوَ الَّذِي أَنشَأَ لَكُمُ السَّمْعَ وَالْأَبْصَارَ وَالْأَفْئِدَةَ قَلِيلًا مَّا تَشْكُرُونَ |
79 |
वही है जिसने तुम्हें धरती में पैदा करके फैलाया और उसी की ओर तुम इकट्ठे होकर जाओगे |
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وَهُوَ الَّذِي ذَرَأَكُمْ فِي الْأَرْضِ وَإِلَيْهِ تُحْشَرُونَ |
80 |
और वही है जो जीवन प्रदान करता और मृत्यु देता है और रात और दिन का उलट-फेर उसी के अधिकार में है। फिर क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते? |
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وَهُوَ الَّذِي يُحْيِي وَيُمِيتُ وَلَهُ اخْتِلَافُ اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ أَفَلَا تَعْقِلُونَ |
81 |
नहीं, बल्कि वे लोग वहीं कुछ करते है जो उनके पहले के लोग कह चुके है |
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بَلْ قَالُوا مِثْلَ مَا قَالَ الْأَوَّلُونَ |
82 |
उन्होंने कहा, "क्या जब हम मरकर मिट्टी और हड्डियाँ होकर रह जाएँगे , तो क्या हमें दोबारा जीवित करके उठाया जाएगा? |
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قَالُوا أَئِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًا وَعِظَامًا أَئِنَّا لَمَبْعُوثُونَ |
83 |
यह वादा तो हमसे और इससे पहले हमारे बाप-दादा से होता आ रहा है। कुछ नहीं, यह तो बस अगलों की कहानियाँ है।" |
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لَقَدْ وُعِدْنَا نَحْنُ وَآبَاؤُنَا هَذَا مِن قَبْلُ إِنْ هَذَا إِلَّا أَسَاطِيرُ الْأَوَّلِينَ |
84 |
कहो, "यह धरती और जो भी इसमें आबाद है, वे किसके है, बताओ यदि तुम जानते हो?" |
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قُل لِّمَنِ الْأَرْضُ وَمَن فِيهَا إِن كُنتُمْ تَعْلَمُونَ |
85 |
वे बोल पड़ेगे, "अल्लाह के!" कहो, "फिर तुम होश में क्यों नहीं आते?" |
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سَيَقُولُونَ لِلَّهِ قُلْ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ |
86 |
कहो, "सातों आकाशों का मालिक और महान राजासन का स्वामीकौन है?" |
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قُلْ مَن رَّبُّ السَّمَاوَاتِ السَّبْعِ وَرَبُّ الْعَرْشِ الْعَظِيمِ |
87 |
वे कहेंगे, "सब अल्लाह के है।" कहो, "फिर डर क्यों नहीं रखते?" |
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سَيَقُولُونَ لِلَّهِ قُلْ أَفَلَا تَتَّقُونَ |
88 |
कहो, "हर चीज़ की बादशाही किसके हाथ में है, वह जो शरण देता है औऱ जिसके मुक़ाबले में कोई शरण नहीं मिल सकती, बताओ यजि तुम जानते हो?" |
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قُلْ مَن بِيَدِهِ مَلَكُوتُ كُلِّ شَيْءٍ وَهُوَ يُجِيرُ وَلَا يُجَارُ عَلَيْهِ إِن كُنتُمْ تَعْلَمُونَ |
89 |
वे बोल पड़ेगे, "अल्लाह की।" कहो, "फिर कहाँ से तुमपर जादू चल जाता है?" |
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سَيَقُولُونَ لِلَّهِ قُلْ فَأَنَّى تُسْحَرُونَ |
90 |
नहीं, बल्कि हम उनके पास सत्य लेकर आए है और निश्चय ही वे झूठे है |
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بَلْ أَتَيْنَاهُم بِالْحَقِّ وَإِنَّهُمْ لَكَاذِبُونَ |
91 |
अल्लाह ने अपना कोई बेटा नहीं बनाया और न उसके साथ कोई अन्य पूज्य-प्रभु है। ऐसा होता तो प्रत्येक पूज्य-प्रभु अपनी सृष्टि को लेकर अलग हो जाता और उनमें से एक-दूसरे पर चढ़ाई कर देता। महान और उच्च है अल्लाह उन बातों से, जो वे बयान करते है; |
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مَا اتَّخَذَ اللَّهُ مِن وَلَدٍ وَمَا كَانَ مَعَهُ مِنْ إِلَهٍ إِذًا لَّذَهَبَ كُلُّ إِلَهٍ بِمَا خَلَقَ وَلَعَلَا بَعْضُهُمْ عَلَى بَعْضٍ سُبْحَانَ اللَّهِ عَمَّا يَصِفُونَ |
92 |
जाननेवाला है छुपे और खुले का। सो वह उच्चतर है वह शिर्क से जो वे करते है! |
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عَالِمِ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ فَتَعَالَى عَمَّا يُشْرِكُونَ |
93 |
कहो, "ऐ मेरे रब! जिस चीज़ का वादा उनसे किया जा रहा है, वह यदि तू मुझे दिखाए |
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قُل رَّبِّ إِمَّا تُرِيَنِّي مَا يُوعَدُونَ |
94 |
तो मेरे रब! मुझे उन अत्याचारी लोगों में सम्मिलित न करना।" |
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رَبِّ فَلَا تَجْعَلْنِي فِي الْقَوْمِ الظَّالِمِينَ |
95 |
निश्चय ही हमें इसकी सामर्थ्य प्राप्त है कि हम उनसे जो वादा कर रहे है, वह तुम्हें दिखा दें। |
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وَإِنَّا عَلَى أَن نُّرِيَكَ مَا نَعِدُهُمْ لَقَادِرُونَ |
96 |
बुराई को उस ढंग से दूर करो, जो सबसे उत्तम हो। हम भली-भाँति जानते है जो कुछ बातें वे बनाते है |
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ادْفَعْ بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ السَّيِّئَةَ نَحْنُ أَعْلَمُ بِمَا يَصِفُونَ |
97 |
और कहो, "ऐ मेरे रब! मैं शैतान की उकसाहटों से तेरी शरण चाहता हूँ |
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وَقُل رَّبِّ أَعُوذُ بِكَ مِنْ هَمَزَاتِ الشَّيَاطِينِ |
98 |
और मेरे रब! मैं इससे भी तेरी शरण चाहता हूँ कि वे मेरे पास आएँ।" - |
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وَأَعُوذُ بِكَ رَبِّ أَن يَحْضُرُونِ |
99 |
यहाँ तक कि जब उनमें से किसी की मृत्यु आ गई तो वह कहेगा, "ऐ मेरे रब! मुझे लौटा दे। - ताकि जिस (संसार) को मैं छोड़ आया हूँ |
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حَتَّى إِذَا جَاء أَحَدَهُمُ الْمَوْتُ قَالَ رَبِّ ارْجِعُونِ |
100 |
उसमें अच्छा कर्म करूँ।" कुछ नहीं, यह तो बस एक (व्यर्थ) बात है जो वह कहेगा और उनके पीछे से लेकर उस दिन तक एक रोक लगी हुई है, जब वे दोबारा उठाए जाएँगे |
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لَعَلِّي أَعْمَلُ صَالِحًا فِيمَا تَرَكْتُ كَلَّا إِنَّهَا كَلِمَةٌ هُوَ قَائِلُهَا وَمِن وَرَائِهِم بَرْزَخٌ إِلَى يَوْمِ يُبْعَثُونَ |
101 |
फिर जब सूर (नरसिंघा) में फूँक मारी जाएगी तो उस दिन उनके बीच रिश्ते-नाते शेष न रहेंगे, और न वे एक-दूसरे को पूछेंगे |
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فَإِذَا نُفِخَ فِي الصُّورِ فَلَا أَنسَابَ بَيْنَهُمْ يَوْمَئِذٍ وَلَا يَتَسَاءلُونَ |
102 |
फिर जिनके पलड़े भारी हुए तॊ वही हैं जो सफल। |
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فَمَن ثَقُلَتْ مَوَازِينُهُ فَأُوْلَئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ |
103 |
रहे वे लोग जिनके पलड़े हल्के हुए, तो वही है जिन्होंने अपने आपको घाटे में डाला। वे सदैव जहन्नम में रहेंगे |
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وَمَنْ خَفَّتْ مَوَازِينُهُ فَأُوْلَئِكَ الَّذِينَ خَسِرُوا أَنفُسَهُمْ فِي جَهَنَّمَ خَالِدُونَ |
104 |
आग उनके चेहरों को झुलसा देगी और उसमें उनके मुँह विकृत हो रहे होंगे |
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تَلْفَحُ وُجُوهَهُمُ النَّارُ وَهُمْ فِيهَا كَالِحُونَ |
105 |
(कहा जाएगा,) "क्या तुम्हें मेरी आयातें सुनाई नहीं जाती थी, तो तुम उन्हें झुठलाते थे?" |
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أَلَمْ تَكُنْ آيَاتِي تُتْلَى عَلَيْكُمْ فَكُنتُم بِهَا تُكَذِّبُونَ |
106 |
वे कहेंगे, "ऐ हमारे रब! हमारा दुर्भाग्य हमपर प्रभावी हुआ और हम भटके हुए लोग थे |
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قَالُوا رَبَّنَا غَلَبَتْ عَلَيْنَا شِقْوَتُنَا وَكُنَّا قَوْمًا ضَالِّينَ |
107 |
हमारे रब! हमें यहाँ से निकाल दे! फिर हम दोबारा ऐसा करें तो निश्चय ही हम अत्याचारी होंगे।" |
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رَبَّنَا أَخْرِجْنَا مِنْهَا فَإِنْ عُدْنَا فَإِنَّا ظَالِمُونَ |
108 |
वह कहेगा, "फिटकारे हुए तिरस्कृत, इसी में पड़े रहो और मुझसे बात न करो |
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قَالَ اخْسَؤُوا فِيهَا وَلَا تُكَلِّمُونِ |
109 |
मेरे बन्दों में कुछ लोग थे, जो कहते थे, हमारे रब! हम ईमान ले आए। अतः तू हमें क्षमा कर दे और हमपर दया कर। तू सबसे अच्छा दया करनेवाला है |
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إِنَّهُ كَانَ فَرِيقٌ مِّنْ عِبَادِي يَقُولُونَ رَبَّنَا آمَنَّا فَاغْفِرْ لَنَا وَارْحَمْنَا وَأَنتَ خَيْرُ الرَّاحِمِينَ |
110 |
तो तुमने उनका उपहास किया, यहाँ तक कि उनके कारण तुम मेरी याद को भुला बैठे और तुम उनपर हँसते रहे |
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فَاتَّخَذْتُمُوهُمْ سِخْرِيًّا حَتَّى أَنسَوْكُمْ ذِكْرِي وَكُنتُم مِّنْهُمْ تَضْحَكُونَ |
111 |
आज मैंने उनके धैर्य का यह बदला प्रदान किया कि वही है जो सफलता को प्राप्त हुए।" |
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إِنِّي جَزَيْتُهُمُ الْيَوْمَ بِمَا صَبَرُوا أَنَّهُمْ هُمُ الْفَائِزُونَ |
112 |
वह कहेगाः “तुम धरती में कितने वर्ष रहे”? |
/content/ayah/audio/hudhaify/023112.mp3
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قَالَ كَمْ لَبِثْتُمْ فِي الْأَرْضِ عَدَدَ سِنِينَ |
113 |
वॆ कहेंगेः , "एक दिन या एक दिन का कुछ भाग। गणना करनेवालों से पूछ लीजिए।?" |
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قَالُوا لَبِثْنَا يَوْمًا أَوْ بَعْضَ يَوْمٍ فَاسْأَلْ الْعَادِّينَ |
114 |
वह कहेगा, "तुम ठहरे थोड़े ही, क्या अच्छा होता तुम जानते होते! |
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قَالَ إِن لَّبِثْتُمْ إِلَّا قَلِيلًا لَّوْ أَنَّكُمْ كُنتُمْ تَعْلَمُونَ |
115 |
तो क्या तुमने यह समझा था कि हमने तुम्हें व्यर्थ पैदा किया है और यह कि तुम्हें हमारी और लौटना नहीं है?" |
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أَفَحَسِبْتُمْ أَنَّمَا خَلَقْنَاكُمْ عَبَثًا وَأَنَّكُمْ إِلَيْنَا لَا تُرْجَعُونَ |
116 |
तो सर्वोच्च है अल्लाह, सच्चा सम्राट! उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं, स्वामी है महिमाशाली सिंहासन का |
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فَتَعَالَى اللَّهُ الْمَلِكُ الْحَقُّ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ رَبُّ الْعَرْشِ الْكَرِيمِ |
117 |
और जो कोई अल्लाह के साथ किसी दूसरे पूज्य को पुकारे, जिसके लिए उसके पास कोई प्रमाम नहीं, तो बस उसका हिसाब उसके रब के पास है। निश्चय ही इनकार करनेवाले कभी सफल नहीं होगे |
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وَمَن يَدْعُ مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آخَرَ لَا بُرْهَانَ لَهُ بِهِ فَإِنَّمَا حِسَابُهُ عِندَ رَبِّهِ إِنَّهُ لَا يُفْلِحُ الْكَافِرُونَ |
118 |
और कहो, "मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे और दया कर। तू तो सबसे अच्छा दया करनेवाला है।" |
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وَقُل رَّبِّ اغْفِرْ وَارْحَمْ وَأَنتَ خَيْرُ الرَّاحِمِينَ |