Al-Hijr

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Hindi: Muhammad Farooq Khan and Muhammad Ahmed

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# Translation Ayah
1 अलिफ़॰ लाम॰ रा॰। यह किताब अर्थात स्पष्ट क़ुरआन की आयतें हैं الَرَ تِلْكَ آيَاتُ الْكِتَابِ وَقُرْآنٍ مُّبِينٍ
2 ऐसे समय आएँगे जब इनकार करनेवाले कामना करेंगे कि क्या ही अच्छा होता कि हम मुस्लिम (आज्ञाकारी) होते! رُّبَمَا يَوَدُّ الَّذِينَ كَفَرُواْ لَوْ كَانُواْ مُسْلِمِينَ
3 छोड़ो उन्हें खाएँ और मज़े उड़ाएँ और (लम्बी) आशा उन्हें भुलावे में डाले रखे। उन्हें जल्द ही मालूम हो जाएगा! ذَرْهُمْ يَأْكُلُواْ وَيَتَمَتَّعُواْ وَيُلْهِهِمُ الأَمَلُ فَسَوْفَ يَعْلَمُونَ
4 हमने जिस बस्ती को भी विनष्ट किया है, उसके लिए अनिवार्यतः एक निश्चित फ़ैसला रहा है! وَمَا أَهْلَكْنَا مِن قَرْيَةٍ إِلاَّ وَلَهَا كِتَابٌ مَّعْلُومٌ
5 किसी समुदाय के लोग न अपने निश्चि‍त समय से आगे बढ़ सकते है और न वे पीछे रह सकते है مَّا تَسْبِقُ مِنْ أُمَّةٍ أَجَلَهَا وَمَا يَسْتَأْخِرُونَ
6 वे कहते है, "ऐ व्यक्ति, जिसपर अनुस्मरण अवतरित हुआ, तुम निश्चय ही दीवाने हो! وَقَالُواْ يَا أَيُّهَا الَّذِي نُزِّلَ عَلَيْهِ الذِّكْرُ إِنَّكَ لَمَجْنُونٌ
7 यदि तुम सच्चे हो तो हमारे समक्ष फ़रिश्तों को क्यों नहीं ले आते?" لَّوْ مَا تَأْتِينَا بِالْمَلائِكَةِ إِن كُنتَ مِنَ الصَّادِقِينَ
8 फ़रिश्तों को हम केवल सत्य के प्रयोजन हेतु उतारते है और उस समय लोगों को मुहलत नहीं मिलेगी مَا نُنَزِّلُ الْمَلائِكَةَ إِلاَّ بِالحَقِّ وَمَا كَانُواْ إِذًا مُّنظَرِينَ
9 यह अनुसरण निश्चय ही हमने अवतरित किया है और हम स्वयं इसके रक्षक हैं إِنَّا نَحْنُ نَزَّلْنَا الذِّكْرَ وَإِنَّا لَهُ لَحَافِظُونَ
10 तुमसे पहले कितने ही विगत गिरोंहों में हम रसूल भेज चुके है وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ فِي شِيَعِ الأَوَّلِينَ
11 कोई भी रसूल उनके पास ऐसा नहीं आया, जिसका उन्होंने उपहास न किया हो وَمَا يَأْتِيهِم مِّن رَّسُولٍ إِلاَّ كَانُواْ بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ
12 इसी तरह हम अपराधियों के दिलों में इसे उतारते है كَذَلِكَ نَسْلُكُهُ فِي قُلُوبِ الْمُجْرِمِينَ
13 वे इसे मानेंगे नहीं। पहले के लोगों की मिसालें गुज़र चुकी हैं لاَ يُؤْمِنُونَ بِهِ وَقَدْ خَلَتْ سُنَّةُ الأَوَّلِينَ
14 यदि हम उनपर आकाश से कोई द्वार खोल दें और वे दिन-दहाड़े उसमें चढ़ने भी लगें, وَلَوْ فَتَحْنَا عَلَيْهِم بَابًا مِّنَ السَّمَاء فَظَلُّواْ فِيهِ يَعْرُجُونَ
15 फिर भी वे यही कहेंगे, "हमारी आँखें मदमाती हैं, बल्कि हम लोगों पर जादू कर दिया गया है!" لَقَالُواْ إِنَّمَا سُكِّرَتْ أَبْصَارُنَا بَلْ نَحْنُ قَوْمٌ مَّسْحُورُونَ
16 हमने आकाश में बुर्ज (तारा-समूह) बनाए और हमने उसे देखनेवालों के लिए सुसज्जित भी किया وَلَقَدْ جَعَلْنَا فِي السَّمَاء بُرُوجًا وَزَيَّنَّاهَا لِلنَّاظِرِينَ
17 और हर फिटकारे हुए शैतान से उसे सुरक्षित रखा - وَحَفِظْنَاهَا مِن كُلِّ شَيْطَانٍ رَّجِيمٍ
18 यह और बात है कि किसी ने चोरी-छिपे कुछ सुनगुन ले लिया तो एक प्रत्यक्ष अग्निशिखा ने भी झपटकर उसका पीछा किया - إِلاَّ مَنِ اسْتَرَقَ السَّمْعَ فَأَتْبَعَهُ شِهَابٌ مُّبِينٌ
19 और हमने धरती को फैलाया और उसमें अटल पहाड़ डाल दिए और उसमें हर चीज़ नपे-तुले अन्दाज़ में उगाई وَالأَرْضَ مَدَدْنَاهَا وَأَلْقَيْنَا فِيهَا رَوَاسِيَ وَأَنبَتْنَا فِيهَا مِن كُلِّ شَيْءٍ مَّوْزُونٍ
20 और उसमें तुम्हारे गुज़र-बसर के सामान निर्मित किए, और उनको भी जिनको रोज़ी देनेवाले तुम नहीं हो وَجَعَلْنَا لَكُمْ فِيهَا مَعَايِشَ وَمَن لَّسْتُمْ لَهُ بِرَازِقِينَ
21 कोई भी चीज़ तो ऐसी नहीं है जिसके भंडार हमारे पास न हों, फिर भी हम उसे एक ज्ञात (निश्चिंत) मात्रा के साथ उतारते है وَإِن مِّن شَيْءٍ إِلاَّ عِندَنَا خَزَائِنُهُ وَمَا نُنَزِّلُهُ إِلاَّ بِقَدَرٍ مَّعْلُومٍ
22 हम ही वर्षा लानेवाली हवाओं को भेजते है। फिर आकाश से पानी बरसाते है और उससे तुम्हें सिंचित करते है। उसके ख़जानादार तुम नहीं हो لَوَاقِحَ فَأَنزَلْنَا مِنَ السَّمَاء مَاء فَأَسْقَيْنَاكُمُوهُ وَمَا أَنتُمْ لَهُ بِخَازِنِينَ
23 हम ही जीवन और मृत्यु देते है और हम ही उत्तराधिकारी रह जाते है وَإنَّا لَنَحْنُ نُحْيِي وَنُمِيتُ وَنَحْنُ الْوَارِثُونَ
24 हम तुम्हारे पहले के लोगों को भी जानते है और बाद के आनेवालों को भी हम जानते है وَلَقَدْ عَلِمْنَا الْمُسْتَقْدِمِينَ مِنكُمْ وَلَقَدْ عَلِمْنَا الْمُسْتَأْخِرِينَ
25 तुम्हारा रब ही है, जो उन्हें इकट्ठा करेगा। निस्संदेह वह तत्वदर्शी, सर्वज्ञ है وَإِنَّ رَبَّكَ هُوَ يَحْشُرُهُمْ إِنَّهُ حَكِيمٌ عَلِيمٌ
26 हमने मनुष्य को सड़े हुए गारे की खनखनाती हुई मिट्टी से बनाया है, وَلَقَدْ خَلَقْنَا الإِنسَانَ مِن صَلْصَالٍ مِّنْ حَمَإٍ مَّسْنُونٍ
27 और उससे पहले हम जिन्नों को लू रूपी अग्नि से पैदा कर चुके थे وَالْجَآنَّ خَلَقْنَاهُ مِن قَبْلُ مِن نَّارِ السَّمُومِ
28 याद करो जब तुम्हारे रब ने फ़रिश्तों से कहा, "मैं सड़े हुए गारे की खनखनाती हुई मिट्टी से एक मनुष्य पैदा करनेवाला हूँ وَإِذْ قَالَ رَبُّكَ لِلْمَلاَئِكَةِ إِنِّي خَالِقٌ بَشَرًا مِّن صَلْصَالٍ مِّنْ حَمَإٍ مَّسْنُونٍ
29 तो जब मैं उसे पूरा बना चुकूँ और उसमें अपनी रूह फूँक दूँ तो तुम उसके आगे सजदे में गिर जाना!" فَإِذَا سَوَّيْتُهُ وَنَفَخْتُ فِيهِ مِن رُّوحِي فَقَعُواْ لَهُ سَاجِدِينَ
30 अतएव सब के सब फ़रिश्तो ने सजदा किया, فَسَجَدَ الْمَلآئِكَةُ كُلُّهُمْ أَجْمَعُونَ
31 सिवाय इबलीस के। उसने सजदा करनेवालों के साथ शामिल होने से इनकार कर दिया إِلاَّ إِبْلِيسَ أَبَى أَن يَكُونَ مَعَ السَّاجِدِينَ
32 कहा, "ऐ इबलीस! तुझे क्या हुआ कि तू सजदा करनेवालों में शामिल नहीं हुआ?" قَالَ يَا إِبْلِيسُ مَا لَكَ أَلاَّ تَكُونَ مَعَ السَّاجِدِينَ
33 उसने कहा, "मैं ऐसा नहीं हूँ कि मैं उस मनुष्य को सजदा करूँ जिसको तू ने सड़े हुए गारे की खनखनाती हुए मिट्टी से बनाया।" قَالَ لَمْ أَكُن لِّأَسْجُدَ لِبَشَرٍ خَلَقْتَهُ مِن صَلْصَالٍ مِّنْ حَمَإٍ مَّسْنُونٍ
34 कहा, "अच्छा, तू निकल जा यहाँ से, क्योंकि तुझपर फिटकार है! قَالَ فَاخْرُجْ مِنْهَا فَإِنَّكَ رَجِيمٌ
35 निश्चय ही बदले के दिन तक तुझ पर धिक्कार है।" وَإِنَّ عَلَيْكَ اللَّعْنَةَ إِلَى يَوْمِ الدِّينِ
36 उसने कहा, "मेरे रब! फिर तू मुझे उस दिन तक के लिए मुहलत दे, जबकि सब उठाए जाएँगे।" قَالَ رَبِّ فَأَنظِرْنِي إِلَى يَوْمِ يُبْعَثُونَ
37 कहा, "अच्छा, तुझे मुहलत है, قَالَ فَإِنَّكَ مِنَ الْمُنظَرِينَ
38 उस दिन तक के लिए जिसका समय ज्ञात एवं नियत है।" إِلَى يَومِ الْوَقْتِ الْمَعْلُومِ
39 उसने कहा, "मेरे रब! इसलिए कि तूने मुझे सीधे मार्ग से विचलित कर दिया है, अतः मैं भी धरती में उनके लिए मनमोहकता पैदा करूँगा और उन सबको बहकाकर रहूँगा, قَالَ رَبِّ بِمَا أَغْوَيْتَنِي لأُزَيِّنَنَّ لَهُمْ فِي الأَرْضِ وَلأُغْوِيَنَّهُمْ أَجْمَعِينَ
40 सिवाय उनके जो तेरे चुने हुए बन्दे होंगे।" إِلاَّ عِبَادَكَ مِنْهُمُ الْمُخْلَصِينَ
41 कहा, "मुझ तक पहुँचने का यही सीधा मार्ग है, قَالَ هَذَا صِرَاطٌ عَلَيَّ مُسْتَقِيمٌ
42 मेरे बन्दों पर तो तेरा कुछ ज़ोर न चलेगा, सिवाय उन बहके हुए लोगों को जो तेरे पीछे हो लें إِنَّ عِبَادِي لَيْسَ لَكَ عَلَيْهِمْ سُلْطَانٌ إِلاَّ مَنِ اتَّبَعَكَ مِنَ الْغَاوِينَ
43 निश्चय ही जहन्नम ही का ऐसे समस्त लोगों से वादा है وَإِنَّ جَهَنَّمَ لَمَوْعِدُهُمْ أَجْمَعِينَ
44 उसके सात द्वार है। प्रत्येक द्वार के लिए एक ख़ास हिस्सा होगा।" لَهَا سَبْعَةُ أَبْوَابٍ لِّكُلِّ بَابٍ مِّنْهُمْ جُزْءٌ مَّقْسُومٌ
45 निस्संदेह डर रखनेवाले बाग़ों और स्रोतों में होंगे, إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ
46 "प्रवेश करो इनमें निर्भयतापूर्वक सलामती के साथ!" ادْخُلُوهَا بِسَلاَمٍ آمِنِينَ
47 उनके सीनों में जो मन-मुटाव होगा उसे हम दूर कर देंगे। वे भाई-भाई बनकर आमने-सामने तख़्तों पर होंगे وَنَزَعْنَا مَا فِي صُدُورِهِم مِّنْ غِلٍّ إِخْوَانًا عَلَى سُرُرٍ مُّتَقَابِلِينَ
48 उन्हें वहाँ न तो कोई थकान और तकलीफ़ पहुँचेगी औऱ न वे वहाँ से कभी निकाले ही जाएँगे لاَ يَمَسُّهُمْ فِيهَا نَصَبٌ وَمَا هُم مِّنْهَا بِمُخْرَجِينَ
49 मेरे बन्दों को सूचित कर दो कि मैं अत्यन्त क्षमाशील, दयावान हूँ; نَبِّئْ عِبَادِي أَنِّي أَنَا الْغَفُورُ الرَّحِيمُ
50 और यह कि मेरी यातना भी अत्यन्त दुखदायिनी यातना है وَ أَنَّ عَذَابِي هُوَ الْعَذَابُ الأَلِيمَ
51 और उन्हें इबराहीम के अतिथियों का वृत्तान्त सुनाओ, وَنَبِّئْهُمْ عَن ضَيْفِ إِ بْراَهِيمَ
52 जब वे उसके यहाँ आए और उन्होंने सलाम किया तो उसने कहा, "हमें तो तुमसे डर लग रहा है।" إِذْ دَخَلُواْ عَلَيْهِ فَقَالُواْ سَلامًا قَالَ إِنَّا مِنكُمْ وَجِلُونَ
53 वे बोले, "डरो नहीं, हम तुम्हें एक ज्ञानवान पुत्र की शुभ सूचना देते है।" قَالُواْ لاَ تَوْجَلْ إِنَّا نُبَشِّرُكَ بِغُلامٍ عَلِيمٍ
54 उसने कहा, "क्या तुम मुझे शुभ सूचना दे रहे हो, इस अवस्था में कि मेरा बुढापा आ गया है? तो अब मुझे किस बात की शुभ सूचना दे रहे हो?" قَالَ أَبَشَّرْتُمُونِي عَلَى أَن مَّسَّنِيَ الْكِبَرُ فَبِمَ تُبَشِّرُونَ
55 उन्होंने कहा, "हम तुम्हें सच्ची शुभ सूचना दे रहे हैं, तो तुम निराश न हो" قَالُواْ بَشَّرْنَاكَ بِالْحَقِّ فَلاَ تَكُن مِّنَ الْقَانِطِينَ
56 उसने कहा, "अपने रब की दयालुता से पथभ्रष्टों के सिवा और कौन निराश होगा?" قَالَ وَمَن يَقْنَطُ مِن رَّحْمَةِ رَبِّهِ إِلاَّ الضَّآلُّونَ
57 उसने कहा, "ऐ दूतो, तुम किस अभियान पर आए हो?" قَالَ فَمَا خَطْبُكُمْ أَيُّهَا الْمُرْسَلُونَ
58 वे बोले, "हम तो एक अपराधी क़ौम की ओर भेजे गए है, قَالُواْ إِنَّا أُرْسِلْنَا إِلَى قَوْمٍ مُّجْرِمِينَ
59 सिवाय लूत के घरवालों के। उन सबको तो हम बचा लेंगे, إِلاَّ آلَ لُوطٍ إِنَّا لَمُنَجُّوهُمْ أَجْمَعِينَ
60 सिवाय उसकी पत्नी के - हमने निश्चित कर दिया है, वह तो पीछे रह जानेवालों में रहेंगी।" إِلاَّ امْرَأَتَهُ قَدَّرْنَا إِنَّهَا لَمِنَ الْغَابِرِينَ
61 फिर जब ये दूत लूत के यहाँ पहुँचे, فَلَمَّا جَاء آلَ لُوطٍ الْمُرْسَلُونَ
62 तो उसने कहा, "तुम तो अपरिचित लोग हो।" قَالَ إِنَّكُمْ قَوْمٌ مُّنكَرُونَ
63 उन्होंने कहा, "नहीं, बल्कि हम तो तुम्हारे पास वही चीज़ लेकर आए है, जिसके विषय में वे सन्देह कर रहे थे قَالُواْ بَلْ جِئْنَاكَ بِمَا كَانُواْ فِيهِ يَمْتَرُونَ
64 और हम तुम्हारे पास यक़ीनी चीज़ लेकर आए है, और हम बिलकुल सच कह रहे है وَأَتَيْنَاكَ بَالْحَقِّ وَإِنَّا لَصَادِقُونَ
65 अतएव अब तुम अपने घरवालों को लेकर रात्रि के किसी हिस्से में निकल जाओ, और स्वयं उन सबके पीछे-पीछे चलो। और तुममें से कोई भी पीछे मुड़कर न देखे। बस चले जाओ, जिधर का तुम्हे आदेश है।" فَأَسْرِ بِأَهْلِكَ بِقِطْعٍ مِّنَ اللَّيْلِ وَاتَّبِعْ أَدْبَارَهُمْ وَلاَ يَلْتَفِتْ مِنكُمْ أَحَدٌ وَامْضُواْ حَيْثُ تُؤْمَرُونَ
66 हमने उसे अपना यह फ़ैसला पहुँचा दिया कि प्रातः होते-होते उनकी जड़ कट चुकी होगी وَقَضَيْنَا إِلَيْهِ ذَلِكَ الأَمْرَ أَنَّ دَابِرَ هَؤُلاء مَقْطُوعٌ مُّصْبِحِينَ
67 इतने में नगर के लोग ख़ुश-ख़ुश आ पहुँचे وَجَاء أَهْلُ الْمَدِينَةِ يَسْتَبْشِرُونَ
68 उसने कहा, "ये मेरे अतिथि है। मेरी फ़ज़ीहत मत करना, قَالَ إِنَّ هَؤُلاء ضَيْفِي فَلاَ تَفْضَحُونِ
69 अल्लाह का डर ऱखो, मुझे रुसवा न करो।" وَاتَّقُوا اللّهَ وَلاَ تُخْزُونِ
70 उन्होंने कहा, "क्या हमने तुम्हें दुनिया भर के लोगों का ज़िम्मा लेने से रोका नहीं था?" قَالُوا أَوَلَمْ نَنْهَكَ عَنِ الْعَالَمِينَ
71 उसने कहा, "तुमको यदि कुछ करना है, तो ये मेरी (क़ौम की) बेटियाँ (विधितः विवाह के लिए) मौजूद है।" قَالَ هَؤُلاء بَنَاتِي إِن كُنتُمْ فَاعِلِينَ
72 तुम्हारे जीवन की सौगन्ध, वे अपनी मस्ती में खोए हुए थे, لَعَمْرُكَ إِنَّهُمْ لَفِي سَكْرَتِهِمْ يَعْمَهُونَ
73 अन्ततः पौ फटते-फटते एक भयंकर आवाज़ ने उन्हें आ लिया, فَأَخَذَتْهُمُ الصَّيْحَةُ مُشْرِقِينَ
74 और हमने उस बस्ती को तलपट कर दिया, और उनपर कंकरीले पत्थर बरसाए فَجَعَلْنَا عَالِيَهَا سَافِلَهَا وَأَمْطَرْنَا عَلَيْهِمْ حِجَارَةً مِّن سِجِّيلٍ
75 निश्चय ही इसमें भापनेवालों के लिए निशानियाँ है إِنَّ فِي ذَلِكَ لآيَاتٍ لِّلْمُتَوَسِّمِينَ
76 और वह (बस्ती) सार्वजनिक मार्ग पर है وَإِنَّهَا لَبِسَبِيلٍ مُّقيمٍ
77 निश्चय ही इसमें मोमिनों के लिए एक बड़ी निशानी है إِنَّ فِي ذَلِكَ لآيَةً لِّلْمُؤمِنِينَ
78 और निश्चय ही ऐसा वाले भी अत्याचारी थे, وَإِن كَانَ أَصْحَابُ الأَيْكَةِ لَظَالِمِينَ
79 फिर हमने उनसे भी बदला लिया, और ये दोनों (भू-भाग) खुले मार्ग पर स्थित है فَانتَقَمْنَا مِنْهُمْ وَإِنَّهُمَا لَبِإِمَامٍ مُّبِينٍ
80 हिज्रवाले भी रसूलों को झुठला चुके है وَلَقَدْ كَذَّبَ أَصْحَابُ الحِجْرِ الْمُرْسَلِينَ
81 हमने तो उन्हें अपनी निशानियाँ प्रदान की थी, परन्तु वे उनकी उपेक्षा ही करते रहे وَآتَيْنَاهُمْ آيَاتِنَا فَكَانُواْ عَنْهَا مُعْرِضِينَ
82 वे बड़ी बेफ़िक्री से पहाड़ो को काट-काटकर घर बनाते थे وَكَانُواْ يَنْحِتُونَ مِنَ الْجِبَالِ بُيُوتًا آمِنِينَ
83 अन्ततः एक भयानक आवाज़ ने प्रातः होते- होते उन्हें आ लिया فَأَخَذَتْهُمُ الصَّيْحَةُ مُصْبِحِينَ
84 फिर जो कुछ वे कमाते रहे, वह उनके कुछ काम न आ सका فَمَا أَغْنَى عَنْهُم مَّا كَانُواْ يَكْسِبُونَ
85 हमने तो आकाशों और धरती को और जो कुछ उनके मध्य है, सोद्देश्य पैदा किया है, और वह क़ियामत की घड़ी तो अनिवार्यतः आनेवाली है। अतः तुम भली प्रकार दरगुज़र (क्षमा) से काम लो وَمَا خَلَقْنَا السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا إِلاَّ بِالْحَقِّ وَإِنَّ السَّاعَةَ لآتِيَةٌ فَاصْفَحِ الصَّفْحَ الْجَمِيلَ
86 निश्चय ही तुम्हारा रब ही बड़ा पैदा करनेवाला, सब कुछ जाननेवाला है إِنَّ رَبَّكَ هُوَ الْخَلاَّقُ الْعَلِيمُ
87 हमने तुम्हें सात 'मसानी' का समूह यानी महान क़ुरआन दिया- وَلَقَدْ آتَيْنَاكَ سَبْعًا مِّنَ الْمَثَانِي وَالْقُرْآنَ الْعَظِيمَ
88 जो कुछ सुख-सामग्री हमने उनमें से विभिन्न प्रकार के लोगों को दी है, तुम उसपर अपनी आँखें न पसारो और न उनपर दुखी हो, तुम तो अपनी भुजाएँ मोमिनों के लिए झुकाए रखो, لاَ تَمُدَّنَّ عَيْنَيْكَ إِلَى مَا مَتَّعْنَا بِهِ أَزْوَاجًا مِّنْهُمْ وَلاَ تَحْزَنْ عَلَيْهِمْ وَاخْفِضْ جَنَاحَكَ لِلْمُؤْمِنِينَ
89 और कह दो, "मैं तो साफ़-साफ़ चेतावनी देनेवाला हूँ।" وَقُلْ إِنِّي أَنَا النَّذِيرُ الْمُبِينُ
90 जिस प्रकार हमने हिस्सा-बख़रा करनेवालों पर उतारा था, كَمَا أَنزَلْنَا عَلَى المُقْتَسِمِينَ
91 जिन्होंने (अपने) क़ुरआन को टुकड़े-टुकड़े कर डाला الَّذِينَ جَعَلُوا الْقُرْآنَ عِضِينَ
92 अब तुम्हारे रब की क़सम! हम अवश्य ही उन सबसे उसके विषय में पूछेंगे فَوَرَبِّكَ لَنَسْأَلَنَّهُمْ أَجْمَعِيْنَ
93 जो कुछ वे करते रहे। عَمَّا كَانُوا يَعْمَلُونَ
94 अतः तु्म्हें जिस चीज़ का आदेश हुआ है, उसे हाँक-पुकारकर बयान कर दो, और मुशरिको की ओर ध्यान न दो فَاصْدَعْ بِمَا تُؤْمَرُ وَأَعْرِضْ عَنِ الْمُشْرِكِينَ
95 उपहास करनेवालों के लिए हम तुम्हारी ओर से काफ़ी है إِنَّا كَفَيْنَاكَ الْمُسْتَهْزِئِينَ
96 जो अल्लाह के साथ दूसरों को पूज्य-प्रभु ठहराते है, तो शीघ्र ही उन्हें मालूम हो जाएगा! الَّذِينَ يَجْعَلُونَ مَعَ اللّهِ إِلـهًا آخَرَ فَسَوْفَ يَعْمَلُونَ
97 हम जानते है कि वे जो कुछ कहते है, उससे तुम्हारा दिल तंग होता है وَلَقَدْ نَعْلَمُ أَنَّكَ يَضِيقُ صَدْرُكَ بِمَا يَقُولُونَ
98 तो तुम अपने रब का गुणगान करो और सजदा करनेवालों में सम्मिलित रहो فَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ وَكُن مِّنَ السَّاجِدِينَ
99 और अपने रब की बन्दगी में लगे रहो, यहाँ तक कि जो यक़ीनी है, वह तुम्हारे सामने आ जाए وَاعْبُدْ رَبَّكَ حَتَّى يَأْتِيَكَ الْيَقِينُ
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